नये जूते : चीनी लोक-कथा

The New Shoes : Chinese Folktale

एक बार की बात है कि एक आदमी को नये जूते चाहिये थे। इस आदमी का हिसाब बहुत अच्छा था। उसको मालूम था कि अगर उसे ठीक जूता चाहिये तो उसे अपना पैर ठीक से नापना चाहिये।

अब इस आदमी को नापना भी बहुत अच्छा आता था और इसको चीज़ों की तस्वीर भी बहुत अच्छी बनानी आती थी। इसकी बनी हुई तस्वीर बहुत सही होती थी। सो बाजार जाने से पहले एक कागज पर उसने अपने पैर की एक बहुत ही बड़ी तस्वीर बनायी। उसने अपना पैर ठीक से नापा और उस नाप को उस कागज पर ठीक से लिख दिया। और फिर घर से निकलने से पहले एक अच्छे हिसाब जानने वाले की तरह उसने उन संख्याओं को फिर से एक बार देख लिया कि वे ठीक हैं कि नहीं।

उसके घर से उस बाजार का रास्ता बहुत लम्बा था जहाँ से उसको जूता खरीदना था। जब तक वह बाजार पहुँचा तब तक दोपहर हो चुकी थी।

पर जब वह जूते वाले की दूकान पर पहुँचा तो उसे याद आया कि वह अपना वह कागज तो घर पर ही भूल आया है जिस पर उसने अपने पैर का नाप लिखा था। बिना उस कागज के वह जूता कैसे खरीदेगा यह सोच कर वह बेचारा उस कागज को लाने के लिये उलटे पैरों घर वापस लौट पड़ा।

जब वह दोबारा वापस बाजार लौटा तो शाम हो चुकी थी। बाजार भी बन्द हो रहा था। जूते वाली दूकान के मालिक ने अपने सारे जूते डिब्बों में बन्द कर दिये थे और अब घर जाने की तैयारी में था।

उसने जूते वाले से कहा कि वह अपने जूते खोले और उसको एक जूता बेचे। उसको जूता बहुत जरूरी चाहिये था।

जूते वाला बोला — “ओ बेवकूफ़ आदमी, जब तुम यहाँ पहली बार आये थे तभी तुमने मेरी दूकान में आ कर जूता क्यों नहीं खरीदा? तुमको अपने पैर का नाप का नक्शा लाने के लिये घर जाने की जरूरत ही क्या थी? तुम तो खुद ही यहाँ मौजूद थे।”

यह सुन कर उस आदमी ने शर्म से अपना सिर झुका लिया और बोला — “मुझे लगा कि मेरी समस्या को सुलझाने का केवल एक ही तरीका था। मुझे अपनी समस्या को सुलझाने के लिये दूसरों की भी राय ले लेनी थी कि शायद उनके पास मेरे हल से कोई और ज़्यादा अच्छा हल होता।”

इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हमको किसी एक सवाल को हल करने के कई तरीके आने चाहिये।

हमारी यह आगे बढ़ती दुनियाँ इतनी सारी समस्याओं से भरी हुई है कि हमको एक समस्या को कई तरीके से सुलझाना आना चाहिये ताकि उस समस्या को सुलझाने का अगर हमारा एक तरीका काम न करे तो दूसरा तरीका इस्तेमाल किया जा सके।

(साभार सुषमा गुप्ता जी, जिन्होंने लोक-कथाओं पर उल्लेखनीय काम किया है.)

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