संगीत वाला पानी : अमरीकी लोक-कथा

The Musical Waters : American Lok-Katha

(Folktale from Native Americans, Pueblo Tribe/मूल अमेरिकी, पुऐब्लो जनजाति की लोककथा)

बच्चो क्या कभी तुमने प्रकृति का संगीत सुना है? मेरे मकान के पीछे वाले हिस्से में हर सुबह एक संगीत सम्मेलन होता है। चिड़ियें गातीं हैं चीं चीं चीं चीं। कोयल गाती ही कुहू कुहू कुहू कुहू और कठफोड़वा ठक ठक कर के ढोल बजाता है।

और दूसरे जानवर भी उनके साथ साथ गाते बजाते हैं। हवा भी साँय साँय कर के उनके उत्साह को काबू में रखती है।

इन सबके अलावा मेरे घर के पीछे एक और आवाज है और वह है गिरते हुए फव्वारे के पानी की आवाज। क्या कभी तुमने बहते पानी और पेड़ों की बीच से बहती हवा का संगीत सुना है?

इस तरह का पहला संगीत सम्मेलन बहुत समय पहले, उस समय से भी पहले, तब हुआ था जब जानवर आदमियों की तरह से बोला करते थे।

एक बार पुऐब्लो इंडियन जाति का एक बहुत ही लोकप्रिय सरदार मर गया। यह अक्लमन्द आदमी अपनी जाति का बहुत दिनों तक सरदार रहा।

यह इतना बड़ा सरदार था कि इसकी मौत का इसके लोगों के ऊपर बड़े अजीब ढंग से और बहुत बुरा असर पड़ा। उसके मरने के बाद कोई भी सरदार नहीं बनना चाहता था। ऐसा क्यों था? क्योंकि कोई उसके जैसा कोई अक्लमन्द और नहीं था।

और दूसरा कोई भी उसके बाद लोगों में कोई ऐसा अप्रिय फैसला करने का खतरा मोल लेना नहीं चाहता था जिसके लिये कि लोग उसको नापसन्द करें – सिवाय एक अक्लमन्द बूढ़े लोमड़े के।

यह अक्लमन्द बूढ़ा लोमड़ा पुएब्लो जाति का तो नहीं था पर वह उनका बहुत पास का पड़ोसी जरूर था। उसका घर भी उनके गाँव के पास में ही था।

जब कोई भी आदमी उस जाति का सरदार बनने के लिये आगे नहीं आया तो वह अक्लमन्द बूढ़ा लोमड़ा पुऐब्लो जाति के सलाहकारों की कमेटी के पास इस बारे में बात करने के लिये आया और उसने उनसे उस जाति के बड़े लोगों के घर में घुसने की इजाज़त माँगी। यह घर जमीन में से खोदा गया एक कमरा था।

उस घर की छत भारी भारी लकड़ियों की बनायी गयी थी और उस छत को धरती माँ की मिट्टी से ढक दिया गया था। उस छत में एक छेद था जिससे गर्मी और भाप बाहर जा सकती थी।

उस कमरे में सब बड़े लोग चुपचाप बैठे थे। पानी उस कमरे के फर्श के बीच में उन गर्म पत्थरों पर डाला गया, उससे स्स्स्स्स की आवाज निकली और सारा कमरा भाप से भर गया।

जब वह अक्लमन्द लोमड़ा बोला तो उसने अपनी बात को कम से कम शब्दों में कहने की कोशिश की क्योंकि उस कमरे में वह अकेला ही लोमड़े के बालों वाला कोट पहने था। उसने कहा — “मैं आप सबका नया सरदार हूँ।”

पहले तो सब लोगों ने सोचने के मूड में एक साथ अपना सिर हिलाया फिर लोगों ने अकेले अकेले भी सिर हिलाया। वह तो ठीक था कि कोई भी सरदार बनने की जिम्मेदारी लेना नहीं चाहता था पर लोमड़े को अपना सरदार चुनना? यह तो एक अजीब सी बात थी।

हर बड़े आदमी ने इधर उधर देखा तो पाया कि और सब दूसरे लोग हाँ में सिर हिला रहे थे। सो सब लोग एक साथ खड़े हो कर बोले — “हम सब तुमको अपना सरदार मानते हैं।”

जब बड़े लोगों ने उसको अपना सरदार मान लिया तो वह लोमड़ा अपना सामान लेने के लिये अपने घर चला गया।

लोमड़े के जाने के बाद एक आदमी ने दूसरे से कहा — “भाई, मैं बड़े आश्चर्य में हूँ कि तुम सब लोगों ने एक लोमड़े को अपना सरदार कैसे चुन लिया।”

वह दूसरा आदमी बोला — “मैंने? वह तो तुमने दूसरों के साथ अपना सिर हाँ में वोट देने के लिये हिलाया तो फिर मुझे भी हाँ करनी पड़ी।”

पहला आदमी बोला — “वोट? मैं तो अपना सिर केवल इस लिये हिला रहा था कि मैं तो उसकी प्रार्थना के ऊपर विचार करते हुए केवल नम्र बनने की कोशिश कर रहा था। पर तुमने वोट क्यों दिया?”

पहला आदमी बोला — “मैं भी केवल सोच ही रहा था और सिर हिला रहा था। मेरा मतलब उसको वोट देने का ब्ल्किुल भी नहीं था।”

जब तक लोमड़ा अपना सामान ले कर गाँव लौटा तब तक पुऐब्लो जाति की कमेटी एक बार फिर मिल चुकी थी।

जब लोमड़ा वहाँ आया तो उन्होंने उससे कहा — “मिस्टर लोमड़े, हमने अपना विचार बदल दिया है। अब हम तुम्हें अपना सरदार नहीं मानते।” और उन्होंने उस लोमड़े को वापस भेज दिया।

पर फिर भी वे यह निश्चय नहीं कर सके कि अगर वे लोमड़े को अपना सरदार नहीं मानते तो उनको किसको अपना सरदार बनाना चाहिये।

बिना सरदार के कोई फैसला भी नहीं लिया जा सकता था। यह कोई नहीं बता सकता था कि किसका शिकार किया जाये। यहाँ तक कि छोटे छोटे फैसले भी नहीं किये जा सकते थे जैसे कूड़ा बाहर कौन ले कर जायेगा।

सारे घरों में कूड़ा इकठ्ठा हो रहा था क्योंकि वहाँ कोई सरदार ही नहीं था जो उनको यह बताता कि गाँव के बाहर कूड़ा कहाँ फेंकना है।

वह बूढ़ा अक्लमन्द लोमड़ा यह सब सुन कर बहुत दुखी हुआ क्योंकि वह पुऐब्लो जाति के लोगों को बहुत अच्छे लोग समझता था और वे इस समय बिना सरदार के मुसीबत में थे।

उसने सोचा — “उनको एक बहुत अच्छे सरदार की जरूरत थी। उनको उसी की सरदार की हैसियत से जरूरत थी। मैं उनके ऊपर दया करता और उनको ऐसे ही आगे बढ़ाता जैसे मैंने अपने आपको आगे बढ़ाया है।”

यह सोचता हुआ वह एक नाले के पास बैठ गया जो झील में आ कर गिर रहा था। पानी के पत्थर पर गिरने से जो आवाज हो रही थी वह उसके कानों को बड़ी भली लग रही थी। इससे उसको ठीक से सोचने में भी सहायता मिल रही थी।

जब वह सोच रहा था तो चारों तरफ देख रहा था। उसको वहीं पास के खेत में सूरजमुखी फूलों की डंडियों के बीच से हवा बहती सुनायी दी। वह उस जगह के पास आया जहाँ से उस बहती हुई हवा की आवाज आ रही थी।

बूढ़े अक्लमन्द लोमड़े ने देखा कि वह आवाज एक डंडी के छेद में से आ रही थी जो किसी कीड़े ने उसमें बना लिया था।

लोमड़े को एक विचार आया। उसने सूरजमुखी की कुछ डंडियाँ इकठ्ठी कीं और उनको अपने घर ले गया। बैठ कर उसने उन डंडियों को खोखला कर लिया।

फिर उसने उनके खुले हुए सिरों को बन्द कर दिया और उनके एक तरफ कुछ छेद बना लिये। इस तरह से हर डंडी की एक बाँसुरी बन गयी। उसने उन सबको बजा बजा कर भी देख लिया। उनमें से कुछ की आवाज तेज़ थी और कुछ की बहुत धीमी।

कई डंडियों को तो उसने फेंक दिया केवल एक बाँसुरी रख ली क्योंकि उन सब में वही एक बाँसुरी थी जो बिल्कुल ठीक बज रही थी। उसी बाँसुरी पर उसने संगीत बजाना शुरू किया तो वह तो बहुत ही मीठा था। ऐसा लग रहा था कि जैसे कोई मीठी आवाज में गा रहा हो।

उस अक्लमन्द लोमड़े ने वह बाँसुरी अपने घर में छिपा दी और वह फिर से उन बड़े लोगों की कमेटी के सामने गया।

जब वह गाँव में घुसा तो उसने देखा कि पुऐब्लो लोग आपस में एक दूसरे से लड़ रहे थे और बहस कर रहे थे। जब कोई सरदार नहीं होता तो फिर यही होता है लोग लड़ते ही हैं क्योंकि उनको सँभालने वाला कोई नहीं होता।

वह एक बार फिर बड़े लोगों के उस घर में घुसा जिसमें वह पहले भी गया था – पर इस बार बिना बुलाये।

वहाँ जा कर वह उनसे बोला — “अगर तुम लोग मुझे पेड़ों के दिन खत्म होने से पहले पहले अपना सरदार नहीं मानते तो झील का सारा पानी झील से बाहर फैल जायेगा और तुम लोगों के गाँव तक आ कर तुम्हें और तुम्हारे मकान दोनों को डुबो देगा।”

इतना कह कर वह वहाँ से चला गया।

उसके जाने के बाद सारे बड़े लोग हँस पड़े और इतनी देर तक हँसते रहे जब तक उनकी आँखों में आँसू नहीं आ गये लेकिन उसके बाद वह थोड़ा गम्भीर हो गये।

उन्होंने एक दूसरे से पूछा — “यह अक्लमन्द लोमड़ा झील के पानी के बारे में क्या जानता है?”

उसके बाद वे झील के किनारे गये और वहाँ जा कर उसके मजबूत किनारों की तरफ देखा जिन्होंने उसके पानी को बाहर निकलने से रोक कर रखा हुआ था।

देख कर उनको विश्वास हो गया कि झील का पानी किसी तरह भी बाहर नहीं आ सकता था और यह सोच कर वे और ज़ोर से हँस दिये।

पर जब वे हँस रहे थे तब अक्लमन्द लोमड़े ने जंगल से ले कर झील के ऊँचे किनारे तक एक लम्बी तंग नाली तैयार की जहाँ वे इंडियन्स रोज सुबह पानी भरने जाया करते थे।

जब वह नाली खत्म हो गयी तो वह अपने घर से अपनी बाँसुरी वहाँ ले आया और सुबह का इन्तजार करने लगा।

जब पहला आदमी झील पर पानी भरने आया तो उस अक्लमन्द लोमड़े ने अपनी उस सूरजमुखी की डंडी से बनी बाँसुरी पर एक धुन बजानी शुरू कर दी।

उस इन्डियन ने चारों तरफ देखा पर उसको कोई दिखायी नहीं दिया। वह बोला — “यह क्या पानी का देवता गा रहा है?”

और गाँव वालों को यह बताने के लिये कि आज तो पानी का देवता झील पर गा रहा था वह तुरन्त गाँव की तरफ दौड़ गया।

अगली सुबह किसी और के झील पर जाने से पहले ही गाँव की एक सबसे बड़ी स्त्री झील पर भेजी गयी।

उस स्त्री को देख कर लोमड़े ने फिर से बाँसुरी बजायी – इस बार और ज़ोर से और और ज़्यादा मीठी। ऐसा लग रहा था जैसे वह मीठी आवाज पानी के ऊपर से आ रही हो।

उस स्त्री ने जा कर गाँव वालों को बताया कि उसने भी पानी के देवता की आवाज सुनी और वह भी यही सोचती है कि वह बाहर आने के लिये और हम सबको डुबोने के लिये तैयार है। फिर वह सारे गाँव में सब लोगों को वह बताती रही जो उसने सुना था।

तीसरी सुबह जाति के सारे लोग झील पर एक साथ जाने के लिये तैयार हुए। उन्होंने आपस में कहा — “अगर हम लोगों ने आज तीसरी बार भी पानी के देवता की आवाज सुनी तो हम लोग यह सोच लेंगे कि पानी का देवता उस लोमड़े को हमारा सरदार बनाना चाहता है।”

पर जब वे झील के किनारे आये तो उन्होंने झील के पानी के केवल टपकने की आवाज सुनी – यह आवाज तो केवल पानी के पत्थरों के ऊपर गिरने की आवाज थी जो एक संगीतमयी आवाज लग रही थी।

जाति के सबसे बड़े आदमी ने पूछा — “ओ झील के देवता, क्या तुम यह चाहते हो कि हम लोमड़े को अपना सरदार बना लें?”

और लो, उस बाँसुरी की आवाज तो उनको फिर से सुनायी पड़ी। वह अक्लमन्द लोमड़ा फिर वहाँ अपनी सूरजमुखी की डंडी से बनी बाँसुरी बजा रहा था।

हर एक ने हाँ में ऊपर से नीचे की तरफ सिर हिलाया। पर इस बार वे सोच नहीं रह रहे थे बल्कि लोमड़े को सरदार बनाने के लिये वोट देने के लिये सिर हिला रहे थे।

यह निश्चय करने के बाद कि वे उस बूढ़े लोमड़े को अपना सरदार बना लेंगे उन्होंने एक आदमी को कहा कि वह उस बूढ़े अक्लमन्द लोमड़े को ढूँढ कर गाँव लाये और आग जला कर कमेटी की मीटिंग बुलाये।

यह देख कर लोमड़े ने अपने बालों पर से धूल झाड़ी और वहाँ से अपने घर चला गया। बड़े लोगों के भेजे हुए आदमी से पहले ही वह अपने घर पहुँच गया और जब वह आदमी उसके घर आया तो उसने उसका अपने घर में स्वागत किया।

वह आदमी उसको ले कर गाँव गया और आग जला कर कमेटी की मीटिंग बुलायी। कमेटी के एक बड़े आदमी ने लोमड़े से कहा कि उसको उनका सरदार बनना ही है। अगर उन्होंने ऐसा नहीं किया तो झील का पानी बाहर निकल कर उनको और उनके गाँव को डुबो देगा।

लोमड़े ने पूछा — “क्या तुमको पक्का यकीन है कि तुम मुझे अपना सरदार बनाना चाहते हो?”

गाँव के हर आदमी ने एक आवाज में कहा “हाँ”।

इस तरह वह बूढ़ा चालाक लोमड़ा जानवरों के बोलने की ताकत खोने से पहले ही पुऐब्लो जाति का सरदार बन गया।

वह उन सबके लिये बहुत अच्छा था और उन सबसे बड़ी दया का बर्ताव करता था। वह उनको चतुराई के फैसले लेने में उनकी सहायता करता था।

वह उनको बताता था कि उनको अपने घरों का कूड़ा कबाड़ा कहाँ फेंकना है और आपस में प्रेम से कैसे रहना है।

एक खास चीज़ जो उसने उनको सिखायी वह थी सूरजमुखी की डंडियों से मीठा संगीत बजाना। इस संगीत से वे जंगली जानवरों और चिड़ियों को अपने बस में कर लेते थे। आश्चर्य की बात तो यह थी कि उनका यह संगीत पानी के देवता के संगीत जैसा लगता था।

अब वह अक्लमन्द लोमड़ा तो नहीं है पर उसका संगीत आज भी सुना जा सकता है। कभी कभी पुऐब्लो लोगों के नाती पोते उस संगीत को बजाते हैं जिन्होंने उसे अपने पुरखों से सीखा था और दूसरे समय में यह पानी में से आता है।

(साभार सुषमा गुप्ता जी, जिन्होंने लोक-कथाओं पर उल्लेखनीय काम किया है)

  • अमेरिका की कहानियां और लोक कथाएं
  • भारतीय भाषाओं तथा विदेशी भाषाओं की लोक कथाएं
  • मुख्य पृष्ठ : संपूर्ण हिंदी कहानियां, नाटक, उपन्यास और अन्य गद्य कृतियां