बन्दर का ढोल : चीनी लोक-कथा
The Monkey’s Drum : Chinese Folktale
बहुत दिनों पहले की बात है कि चीन में एक बड़ा दयालु नौजवान रहता था जिसका नाम था यान। वह अपने बड़ों की बहुत इज़्ज़त करता था और जानवरों के ऊपर बहुत दया करता था।
वह अकेला ही रहता था उसके कोई पत्नी तो नहीं थी क्योंकि अभी उसकी शादी नहीं हुई थी पर उसकी निगाह में एक बहुत ही सुन्दर लड़की थी जो उसको बहुत अच्छी लगती थी।
वह उससे शादी करना चाहता था पर वह एक बहुत ही अमीर आदमी की बेटी थी और उसका पिता अपनी बेटी की शादी किसी ऐसे आदमी से नहीं करता जो उसको ठीक से “दुलहिन की कीमत” नहीं देता।
अमीर आदमी बोला — “कोई आदमी मेरी बेटी से शादी नहीं करेगा जब तक कि वह शादी की भेंट – एक लाल लिफाफे में काफी जवाहरात या फिर काफी पैसा मुझे नहीं देगा।”
“दुलहिन की कीमत” लेना चीन में एक रिवाज था जो चीन में हर लड़की का पिता मानता था। लेकिन यह कीमत इस बात से तय होती थी कि लड़के के पास कितना पैसा है।
बहुत सारे परिवार इस बात का बहुत ध्यान रखते थे कि वे अपनी बेटी के लिये बहुत सारा पैसा न माँगें ताकि लोगों को ऐसा न लगे कि वे अपनी बेटी को बेच रहे हैं।
यान के पास केवल एक ही कीमती पत्थर था और वह उसकी अँगूठी में जड़ा हुआ था जो उसकी माँ ने उसको बरसों पहले दी थी।
वह उसको अपने गले में पहने रहता था कि एक दिन शायद उसकी पत्नी उसको पहनेगी। सो वह यह पत्थर इस लालची आदमी को देने वाला नहीं था।
एक दिन यान इस अमीर आदमी के घर काम करने की इच्छा से गया ताकि वह उसको यह दिखा सके कि वह बहुत मेहनती आदमी था और साथ में एक बहुत अच्छा दामाद भी।
फिर भी उस आदमी ने यान के साथ बहुत बुरा बर्ताव किया और अपने दूसरे काम करने वालों के मुकाबले में उससे बहुत ज़्यादा तो काम लिया और यान को उतना पैसा भी नहीं दिया जितना कि उसको उसे देना चाहिये था।
वह नहीं चाहता था कि यान जैसा गरीब आदमी उसकी बेटी से शादी करे।
एक दिन यान पहाड़ों की तरफ लकड़ी काटने गया। वह सारी सुबह बहुत मेहनत से काम करता रहा। जब उसने दोपहर का खाना खाने के लिये अपना काम बन्द किया तो वह कुछ देर के लिये धूप में अपना सिर कर के लेट गया और आँखें बन्द कर लीं।
जब वह वहाँ लेटा हुआ था तो उसने बन्दरों की चिचियाने की आवाजें सुनी। वे वहीं उसके पास वाले पेड़ों पर खेल रहे थे। यान देखना चाहता था कि अगर वे बन्दर उसको इस तरह चुपचाप बिना हिले डुले पड़े देखते तो वे क्या करते सो वह वहाँ चुपचाप बिना हिले डुले पड़ा रहा।
कुछ ही देर में बन्दरों ने उसको चारों तरफ से घेर लिया पर फिर भी वह वहीं चुपचाप लेटा रहा और हिला भी नहीं।
एक बन्दर ने यान की एक बाँह में चिऊँटी काटी और पूछा — “यह क्या है?” यान नहीं हिला।
दूसरा बन्दर बोला — “यह तो आदमी की तरह से नहीं हिल रहा।” उसने यान के बाल भी खींचे पर यान नहीं हिला।
वह बन्दर फिर बोला — “लगता है यह तो मूर्ति है।”
तीसरे बन्दर ने यान की पलक उठायी पर यान फिर भी नहीं हिला।
एक और बन्दर ने यान के कान में घास का एक तिनका घुसाया पर यान फिर भी नहीं हिला।
एक बन्दर ने यान का मुँह खोला और उसकी जीभ बाहर खींची पर यान फिर भी नहीं हिला।
एक बन्दर ने यान की नाक में अपनी उँगली डाली पर यान फिर भी नहीं हिला।
बन्दर ने घोषित किया कि वह एक मूर्ति पड़ी थी क्योंकि अगर वह कोई आदमी होता तो वह जरूर ही हिलता।
एक बन्दर ने यान के पेट में मारा तो उसके पेट से हवा निकली जिससे यान के मुँह से निकला “उँह”। यह सुन कर वह बन्दर बोला — “अब मुझे पता चला यह तो मूर्ति भी नहीं बल्कि एक ढोल है।”
उसने यान को दोबारा मारा तो यान फिर से बोला “उँह”।
उसने यान को तिबारा मारा तो यान फिर से बोला “उँह”।
उसने यान को चौथी बारा मारा तो यान फिर से बोला “उँह”।
यान को उसने फिर पाँचवीं बार मारा तो यान फिर से बोला “उँह”।
बस अब वह यान को मारता रहा और उसमें से “उँह उँह” की आवाज आती रही।
बन्दर बोले — “वाह क्या ही अच्छा ढोल है। यह तो बड़ा आदमी वाला ढोल है। चलो हम इसको अपनी गुफा में ले चलते हैं और वहाँ ले जा कर इसको बजायेंगे। अब तो हमारे पास यह बड़ा आदमी वाला ढोल है।”
और वे उसको अपने सिर के ऊपर उठा कर ले चले — “उँह उँह उँह उँह उँह उँह उँह उँह उँह उँह ....। इसको हवा में उठाओ और सँभाल कर ले चलो।” और वे उसको इस तरह से उठा कर पहाड़ के ऊपर अपनी गुफा में ले चले।
एक बन्दर यान के पेट पर बैठ गया और उसको मारता चला गया जैसे ढोल को बजाते हैं — “हमारे बड़े आदमी ढोल को नीचे मत गिराना, हमारे बड़े आदमी ढोल को नीचे मत गिराना, उँह उँह उँह उँह उँह उँह उँह उँह उँह।”
अब बन्दरों ने एक बड़ी सी गहरी घाटी पार करनी शुरू की जिसमें नीचे नदी बह रही थी। जब वे उस घाटी के ऊपर वाला पुल पार कर रहे थे तो बन्दरों ने यान को बहुत सँभाल कर पकड़ा हुआ था। यान ने भी अपनी आँखें बन्द कर रखी थीं और वह बिल्कुल नहीं हिल रहा था।
पुल पार कर के बन्दर पहाड़ों में अपनी गुफा की तरफ चले। उन्होंने यान को अपनी गुफा में एक पत्थर की मेज पर लिटा दिया — “यह बड़ा आदमी ढोल तो हमारा है, हम इसको फूलों से ढक देते हैं। उँह उँह उँह उँह उँह उँह उँह उँह उँह।”
बन्दरों ने यान को फूलों से ढकना शुरू कर दिया। उन्होंने उसके बालों में फूल लगाये, कानों में फूल रखे, नाक में फूल रखा। उसी समय एक बन्दर ने वह चमकीली अँगूठी देखी जो यान ने अपने गले में पहनी हुई थी।
एक बन्दर बोला — “ओह, कितना सुन्दर पत्थर है।”
फिर वह अपनी सोने वाली जगह गया और वहाँ से कुछ लाल और हरे रंग के पत्थर उठा लाया और उसकी अँगूठी के पास ला कर रख दिये।
दूसरे बन्दर भी वहाँ से दूसरी रंगीन मोतियों की माला, जंजीरें और चमकीले पत्थर लाने के लिये दौड़ गये।
इस बीच यान ने अपनी आँखें ज़रा सी खोलीं तो देखा कि बन्दर उसके शरीर को कीमती पत्थरों, गले के हारों, कलाई के कंगनों से ढक रहे थे। उसने अपनी आँखें फिर से बन्द कर लीं और चुपचाप लेटा रहा।
“चलो अब अपना बड़ा आदमी ढोल बजाते हैं – उँह उँह उँह उँह उँह उँह उँह उँह उँह।”
बन्दर रात गये तक अपना ढोल बजाते रहे और नाचते रहे। फिर जब वे थक गये तो अपनी अपनी सोने की जगहों पर चले गये।
जब सारे बन्दर सो गये तो यान सावधानी से उस पत्थर के ऊपर से नीचे उतरा। उसने वहाँ से जितने जवाहरात उठा सकता था उतने जवाहरात उठाये और अपने गाँव की तरफ जल्दी जल्दी चल दिया। उसने उस घाटी के ऊपर का पुल बड़ी सावधानी से पार किया।
घर आ कर उसने कुछ जवाहरात बेच कर एक बड़ा सा खेत खरीद लिया और अपने लिये एक बड़ा सा मकान बना लिया। कुछ पैसा उसने गाँव के गरीबों की सहायता करने में लगा दिया और कुछ जवाहरात उसने उस दिन के लिये अपने पास रख लिये जब उसकी शादी होगी।
जल्दी ही उसके पुराने लालची मालिक को उसके अमीर होने का पता चल गया। उसने यान से कहा — “अब तुम मेरी बेटी की “दुलहिन की कीमत” देने लायक हो गये हो। क्या मैं तुम्हारे लिये वह बड़ा वाला लाल लिफाफा ले आऊँ ताकि हम तुम्हारी शादी के बारे में बात कर सकें?”
यान बोला — “नहीं धन्यवाद। मैं पत्नी खरीदना नहीं चाहता।”
पर वह लालची आदमी यान के पीछे पड़ा रहा जब तक कि यान ने उसको यह नहीं बता दिया कि वे जवाहरात और पैसे उसको कहाँ से मिले थे।
यान की कहानी सुनने के बाद वह लालची आदमी तुरन्त ही बड़े बड़े थैले लाने के लिये अपने घर गया ताकि वह वहाँ से यान से भी ज़्यादा जवाहरात ला सके। और फिर तुरन्त ही उस पहाड़ की तरफ चल दिया जहाँ यान बन्दरों से मिला था।
वह लालची आदमी भी यान की तरह से आँखें बन्द कर के उस पहाड़ पर जमीन पर लेट गया। कुछ मिनटों में ही उसको भी बन्दरों की चिचियाहट की आवाज सुनायी पड़ने लगी।
वह वहाँ बिल्कुल नहीं हिला और चुपचाप पड़ा रहा।
जल्दी ही बन्दरों ने उसको घेर लिया। एक ने उसके बाल खींचे, दूसरे ने उसके कानों में, मुँह में, आँखों में उँगली घुसायी, पर वह नहीं हिला।
एक बन्दर बोला — “यह तो हमारा बड़ा आदमी ढोल है।” फिर एक ने उसके पेट में मारा तो वह बोला — “आउ आउ।”
फिर दूसरे ने मारा, फिर तीसरे ने मारा तो वह बोलता रहा — “आउ आउ आउ आउ आउ।”
एक बन्दर बोला — “हमारा यह ढोल ठीक से नहीं बोल रहा। पर फिर भी हम इसको अपनी गुफा में ले चलते हैं इसको हम वहीं बजायेंगे।”
सो वे उस लालची आदमी को अपने सिर पर उठा कर पहाड़ की तरफ अपनी गुफा में ले चले — “इसको हवा में उठाओ और सँभाल कर ले चलो, आउ आउ आउ आउ आउ।”
एक बन्दर उसके पेट पर बैठ गया और उसके पेट पर मारता रहा। वह लालची आदमी वैसे तो चुपचाप लेटा रहा बस वह जभी बोलता था जब वह बन्दर उसके पेट पर मारता था।
“हमारे बड़े आदमी ढोल को नीचे नहीं गिराना, आउ आउ आउ आउ आउ।”
बन्दरों ने अब वह घाटी वाला पुल पार करना शुरू कर दिया था जिसके नीचे वह बहुत तेज़ नदी बह रही थी। जब वे पुल पार कर रहे थे तो वे उसको बड़ी सावधानी से ले जा रहे थे पर उस लालची आदमी ने आँख खोल कर नीचे देखा तो डर के मारे चिल्लाया — “ए तुम लोग गिरा मत देना मुझे।”
उसकी इस चिल्लाहट से बन्दर डर गये और उनके हाथों से वह आदमी छूट गया। वह नीचे पानी में जा गिरा जहाँ से वह तेज़ पानी उसको बहा कर ले गया।
यान ने वह अँगूठी उस लालची आदमी की बेटी को दे दी। उस लालची आदमी के जाने के बाद वह लड़की यान की बहुत प्यारी पत्नी बन गयी। दोनों खुशी से रहने लगे।
उसके बाद बन्दरों को अपना बड़ा आदमी ढोल फिर कभी नहीं मिला इसलिये वे फिर अपने पेट को ही बजा बजा कर गाते रहे — “हमारे पास एक बड़ा आदमी ढोल था, हमारे पास एक बड़ा आदमी ढोल था, आउ आउ आउ आउ आउ।”
(साभार सुषमा गुप्ता जी, जिन्होंने लोक-कथाओं पर उल्लेखनीय काम किया है.)