वेनिस का व्यापारी (नाटक कहानी के रूप में) : विलियम शेक्सपियर

The Merchant of Venice (English Play in Hindi) : William Shakespeare

शाइलॉक वेनिस नगर का एक धनी व्यक्ति था । सूदखोरी उसका मुख्य कार्य था। वह लोगों से मनमाना ब्याज वसूलता था। इस धंधे में उससे बढ़कर जालिम और अन्यायी दूसरा कोई नहीं था । वह व्यक्ति की जरूरत देखकर ब्याज निर्धारित करता था । उसका उसूल था कि जितना ब्याज निर्धारित कर दिया, उसमें फिर किसी प्रकार की नरमी नहीं। इसी क्रूरतापूर्ण व्यवहार के कारण वह वेनिस नगर में बदनाम था। लोग पीठ पीछे तो उसकी बुराई करते ही थे, मुँह पर भी खरी-खोटी सुनाने से पीछे नहीं हटते थे । शाइलॉक यहूदी था, इसलिए भी वेनिसवासी उससे घृणा करते थे।

लेकिन इतना कुछ होने पर भी शाइलॉक लोगों की परवाह नहीं करता था । उसका कहना था कि वह किसी को घर से बुलाकर कर्ज नहीं देता। लोग स्वयं आकर उससे उधार लेते हैं। और फिर जरूरतमंदों की सहायता करने तथा वक्त-बेवक्त उनके काम आने के बदले कुछ ब्याज वसूलने में क्या बुराई है ?

वेनिस में एंटोनियो नामक एक ईसाई व्यापारी भी रहता था। लोग उसका बड़ा सम्मान करते थे । ईसाई होने के कारण एंटोनियो को सूदखोरी से घृणा थी और वह उससे दूर ही रहता था । यही कारण था कि वह शाइलॉक को इतना नापसंद करता था कि उसके मुँह पर ही उसे कठोर शब्द कह देता था।

शाइलॉक की तरह एंटोनियो भी लोगों को उधार दिया करता था, किंतु इसके बदले वह किसी से ब्याज नहीं लेता था। उसका यह कार्य केवल परोपकार और मुसीबत में फँसे लोगों की सहायता के लिए था । इसी कारण शाइलॉक उससे ईर्ष्या करता था और उसे सबक सिखाने के लिए उचित अवसर की प्रतीक्षा कर रहा था।

एंटोनियो का बेसैनियो नामक एक विश्वस्त मित्र था । एक बार वह एंटोनियो से मिलने आया। दोनों मित्र बहुत लंबे अंतराल के बाद मिल रहे थे। एंटोनियो ने उसे गले से लगा लिया और उसका भरपूर स्वागत किया। इसके बाद उसके आने का कारण पूछा।

बेसैनियो दुखी स्वर में बोला, “मित्र, वेनिस नगर से कुछ दूरी पर एक टापू है । वहाँ एक धनी व्यापारी रहता है। उसकी पार्शिया नामक एक बेटी है । मैं बचपन से ही उस व्यापारी को जानता हूँ । उसके घर पार्शिया से मेरी मुलाकात हुई और धीरे - धीरे पार्शिया एवं मैं परस्पर प्रेम करने लगे। कुछ ही दिन पूर्व उस व्यापारी की मृत्यु हो गई। अब हम दोनों विवाह करना चाहते हैं; लेकिन एक अड़चन है।"

“कैसी अड़चन, मित्र? मुझे ठीक प्रकार से बताओ ।" एंटोनियो ने उत्सुक होकर पूछा।

"मित्र, मृत्यु से पूर्व व्यापारी ने अपनी सारी संपत्ति पार्शिया के नाम कर दी थी । अब पार्शिया ही उस संपत्ति की एकमात्र वारिस है। वह भारी संपत्ति की स्वामिनी है; उसके पास धन का भंडार है । उसकी तुलना में मैं एक फटेहाल और निर्धन व्यक्ति हूँ । ऐसी स्थिति में उसे पत्नी बनाने के बारे में सोचना भी मेरे लिए तारे तोड़ने के बराबर है। लेकिन मैं उससे इतना प्रेम करता हूँ कि अलग जीने की कल्पना भी नहीं कर सकता। इसलिए मैं तुम्हारे पास आया हूँ। यदि तुम कुछ धन उधार दे सको तो मैं सम्मानपूर्वक पार्शिया से विवाह कर सकता हूँ।" बेसैनियो ने अपने दिल की बात बताई।

एंटोनियो उसका हाथ अपने हाथों में लेते हुए बोला, "मित्र, तुम सिर्फ इतनी-सी बात के लिए परेशान हो रहे हो? मेरे होते तुम्हें चिंता की कोई जरूरत नहीं है । बताओ, तुम्हें कितने धन की आवश्यकता है? मैं तुम्हारी हरसंभव सहायता करूँगा।”

'कम-से-कम तीन हजार दुकैत (ducat) । 'बेसैनियो ने अटकते हुए कहा ।

'तीन हजार दुकैत! "एंटोनियो गहरी सोच में पड़ गया । यह धनराशि उसके लिए कोई बड़ी बात नहीं थी, परंतु इस समय उसके पास सिर्फ पाँच सौ दुकैत ही थे । उसका सारा धन व्यापार में लगा हुआ था। लेकिन वह बेसैनियो की सहायता करना चाहता था, अतः उसने शाइलॉक से धन उधार लेने का निश्चय कर लिया । वह उसी समय बेसैनियो को लेकर शाइलॉक के पास गया।

शाइलॉक की अनुभवी आँखें देखते ही पहचान गईं कि एंटोनियो उसके पास किस काम से आया है। इस अवसर की उसे वर्षों से प्रतीक्षा थी । उसकी प्रसन्नता का कोई ठिकाना न रहा । वह चेहरे पर कुटिल मुसकान लाते हुए बोला, “कहो एंटोनियो, आज इधर का रास्ता कैसे भूल गए ? "

" शाइलॉक, मुझे इसी समय तीन हजार दुकैत की आवश्यकता है।"

शाइलॉक हँसते हुए बोला, "एंटोनियो, तुमने हमेशा मेरा विरोध किया है, बार-बार लोगों के बीच मेरा अपमान किया है, मुझे अपशब्द कहे हैं । परंतु इस समय तुम मेरे पास सहायता के लिए आए हो, इसलिए मैं तुम्हें उधार अवश्य दूँगा। ब्याज से तुम्हें घृणा है, अतः मैं तुम्हें बिना ब्याज के उधार दूँगा । परंतु मेरी एक शर्त है।"

"शर्त! क्या शर्त?”

"यदि तुमने मेरा ऋण निर्धारित समय के अंदर नहीं चुकाया तो मैं तुम्हारे शरीर के किसी भी भाग से डेढ़ सेर मांस काटकर निकाल लूँगा।"

एंटोनियो आश्चर्यचकित रह गया । शाइलॉक ने बड़ी विचित्र शर्त रखी थी । परंतु उसे विश्वास था कि माल से भरे उसके जहाज शीघ वेनिस पहुँच जाएँगे और वह तीन महीने से पूर्व ही सारा ऋण चुका देगा। अतः उसने शर्त स्वीकार कर ली। शाइलॉक ने उसी समय शपथ-पत्र तैयार करवाया, उस पर एंटोनियो के हस्ताक्षर करवाए और उसे तीन हजार दुकैत दे दिए।

एंटोनियो ने सारा धन बेसैनियो को सौंप दिया और मुस्कराते हुए बोला, “मित्र, तुम जल्दी से जाकर पार्शिया के साथ विवाह कर लो। अब तुम्हारे विवाह में कोई अड़चन नहीं आएगी ।"

बेसैनियो सारे घटनाक्रम को देख रहा था। उसकी आँखों में आँसू छलक आए, बोला, “मित्र, मैं तुम्हारे जीवन को दाँव पर लगाकर विवाह नहीं कर सकता ।"

एंटोनियो उसे समझाते हुए बोला, "मेरी चिंता मत करो, बेसैनियो ! मेरे जहाज तीन महीने से पूर्व ही लौट आएँगे और मैं शाइलॉक का सारा ऋण चुका दूँगा। तुम पार्शिया के साथ खुशी-खुशी विवाह करो।"

इस प्रकार, उसने समझा-बुझाकर बेसैनियो को विदा किया।

कुछ दिनों बाद बेसैनियो ने पार्शिया के साथ विवाह कर लिया। फिर दोनों एक-दूसरे के प्रेम में खो गए और प्रसन्नतापूर्वक जीवन व्यतीत करने लगे।

एक दिन पार्शिया और बेसैनियो एकांत में बैठे प्रेम भरी बातें कर रहे थे, तभी एक सेवक वहाँ आया और बेसैनियो को एक पत्र थमा दिया।

बेसैनियो ने उसे खोला। लिखा था—

‘प्रिय मित्र बेसैनियो! तुम्हारे सुखद पलों में बाधा डालने के लिए मुझे क्षमा करना। पार्शिया से भी मेरी ओर से क्षमा माँग लेना। मित्र, मैं तुम्हें एक दुखद समाचार देना चाहता हूँ । माल से भरे जिन जहाजों के बल पर मैंने ऋण लिया था, वे समुद्र में कहीं लापता हो गए हैं। अब उनके लौटने या मिलने की उम्मीद नहीं है। शाइलॉक को धन लौटाने की समय-सीमा पास आ रही है। समय समाप्त होने तक यदि मैंने ऋण नहीं लौटाया तो मेरे साथ क्या होगा, इसके बारे में तुम भली-भाँति जानते हो। परंतु मित्र, दुनिया से विदा होने से पूर्व मैं तुम्हें देखना चाहता हूँ। यही मेरी आखिरी इच्छा है। मैं बड़ी व्याकुलता से तुम्हारी प्रतीक्षा करूँगा। संभव हो तो तुम जरूर आना।

तुम्हारा मित्र

एंटोनियो

पत्र पढ़ते ही बेसैनियो स्तब्ध रह गया। पत्र हाथों से छूटकर नीचे गिर गया, आँखों से आँसू बहने लगे। उसकी यह दशा देखकर पार्शिया भयभीत हो गई। उसने पत्र उठाकर शीघ्रता से पढ़ डाला। परंतु उसे कुछ भी समझ न आया। उसने प्रश्नसूचक नेत्रों से बेसैनियो की ओर देखा ।

तब बेसैनियो ने उसे शुरू से लेकर अंत तक सारी बात बताई और रोते हुए बोला, “मेरे कारण एंटोनियो के प्राण संकट में पड़े हैं। आज उसे मेरी सहायता की आवश्यकता है। उसकी रक्षा के लिए मुझे इसी समय वेनिस जाना होगा ।"

एंटोनियो की दरियादिली के बारे में सुनकर पार्शिया की आँखें भी छलक उठीं। वह बेसैनियो से बोली, “दुनिया में ऐसे व्यक्ति कम ही होते हैं, जो मित्रता के लिए अपनी जान तक कुर्बान कर देते हैं। आपको अपने मित्र की प्राणरक्षा अवश्य करनी चाहिए । ऐसे सच्चे मित्र जीवन की अमूल्य निधि होते हैं। आप इसी समय वेनिस के लिए रवाना हो जाएँ। मैं उनकी कुशलता के लिए ईश्वर से प्रार्थना करूँगी।"

बेसैनियो उसी समय वेनिस की ओर चल पड़ा।

पार्शिया जितनी सुंदर थी उतनी ही बुद्धिमान और सूझ-बूझवाली युवती भी थी। बेसैनियो के जाने के बाद वह अपनी नौकरानी को साथ लेकर घोड़े पर सवार होकर वेनिस की ओर चल दी। उस समय दोनों ने पुरुष-वेश धारण कर रखा था।

उधर, वेनिस की कचहरी में शाइलॉक और एंटोनियो उपस्थित थे। इस तरह का अनोखा मुकदमा न तो किसी ने पहले कभी सुना था और न ही देखा था । इसलिए मानो पूरा वेनिस नगर ही कचहरी में उमड़ा पड़ा था। चारों ओर शोर-शराबा और सनसनी फैली हुई थी। मुजरिम के कठघरे में एंटोनियो सिर झुकाए खड़ा था, जबकि शाइलॉक एक हाथ में शपथ-पत्र और दूसरे हाथ में चाकू लिए खूँखार निगाहों से उसे घूर रहा था। एंटोनियो के पास ही अपराध-बोध से गड़ा बेसैनियो खड़ा था।

अभी न्यायाधीश की प्रतीक्षा हो रही थी कि तभी कचहरी में दो सुंदर युवकों ने प्रवेश किया। उनमें से एक युवक ने एक पत्र निकालकर अदालत के एक अधिकारी को सौंप दिया ।

अधिकारी पत्र खोलकर पढ़ने लगा । पत्र में लिखा था—

'माननीय अधिकारी गण,

मुझे खेद है कि अस्वस्थता के कारण आज मैं कचहरी में उपस्थित नहीं हो सकता। इसलिए अपने स्थान पर में एक होनहार युवक को न्यायाधीश के रूप में भेज रहा हूँ। यह युवक आयु में छोटा अवश्य है, लेकिन बुद्धिमत्ता और न्यायप्रियता में मेरे समान है। मुझे पूरा विश्वास है कि यह इस अनोखे और विवादित मुकदमे का निर्णय बड़ी कुशलता के साथ करेगा। आशा है, आप लोग इसे न्यायाधीश के रूप में स्वीकार करेंगे।

हस्ताक्षर

सत्र न्यायाधीश

उपस्थित सभी अधिकारियों ने युवक को उस मुकदमे का न्यायाधीश स्वीकार कर लिया । यह युवक कोई और नहीं, पार्शिया ही थी, जो अपनी दासी के साथ वहाँ आई थी।

मुकदमे की कार्यवाही आरंभ हुई। पार्शिया ने शपथ-पत्र पढ़ा और शाइलॉक से बोली, “इस शपथ-पत्र के अनुसार एंटोनियो को तीन महीने के अंदर तुम्हारा ऋण चुकाना था। लेकिन वह इसमें असफल रहा। इसलिए तुम्हें शपथ-पत्र की शर्तों के पालन का पूरा अधिकार है।"

न्यायाधीश की बात सुनकर शाइलॉक की प्रसन्नता की कोई सीमा न रही। उसने टोपी उतारी और सिर झुकाते हुए बोला, “आप मनुष्य के रूप में साक्षात् धर्मराज हैं, जो इस मुकदमे का निर्णय करने के लिए पृथ्वी पर उतरे हैं। आपने सही निर्णय लेकर अपनी न्यायप्रियता को सिद्ध किया है ।"

तभी पार्शिया उसकी बात काटते हुए बोली, “शाइलॉक, एंटोनियो ऋण लौटाने में असफल रहा है। इसलिए शर्त के अनुसार तुम उसके शरीर के किसी भी भाग से डेढ़ सेर मांस काट सकते हो। लेकिन...

‘लेकिन... लेकिन क्या ?" शाइलॉक ने खुशी से अनियंत्रित होते हुए पूछा ।

"शाइलॉक दया सबसे बढ़कर है। कानून भी दया के सामने नतमस्तक है। यदि तुम इनसानियत को मानते हो और दयालु हो तो एंटोनियो को क्षमा कर दो। इसके बदले तुम जितना चाहो उतना धन तुम्हें मिल सकता है।"

शाइलॉक महीनों से इस दिन की प्रतीक्षा में था । वह एंटोनियो से गिन-गिनकर बदले लेना चाहता था। इसलिए गरजते हुए बोला, ‘‘महोदय, मुझे धन नहीं, न्याय चाहिए।"

चारों ओर सन्नाटा छा गया। उपस्थित लोग स्तब्ध थे। किसी ने भी शाइलॉक से ऐसे व्यवहार की अपेक्षा नहीं की थी। सब उसके प्रति घृणा और क्रोध से भर गए।

"ठीक है शाइलॉक, तुम्हें न्याय अवश्य मिलेगा। तुम एंटोनियो के शरीर से डेढ़ सेर मांस काट सकते हो ।" न्यायाधीश ने अपना निर्णय सुना दिया ।

बेसैनियो दौड़कर एंटोनियो के गले से लग गया और रोते हुए बोला, “मित्र, मेरे ही कारण आज तुम्हारी यह दुर्गति हो रही है। इसके लिए मैं अपने आपको कभी क्षमा नहीं कर सकता।"

एंटोनियो उसे समझाते हुए बोला, "नहीं मित्र, इसमें तुम्हारा कोई दोष नहीं है । सब भाग्य का खेल है। और फिर, तुम्हारे लिए प्राण देकर मुझे असीम खुशी मिलेगी।"

यह कहकर उसने बेसैनियो को गले से लगा लिया। दोनों मित्रों का यह प्रेम देखकर सबकी आँखें छलक आईं, मन में दुख और संवेदना का सागर उमड़ आया । इस दृश्य ने पत्थरदिल लोगों को भी पिघला दिया।

इस बीच शाइलॉक चाकू लेकर एंटोनिया की ओर बढ़ा। जैसे ही वह उसपर वार करने को हुआ, न्यायाधीश की कठोर आवाज गूँजी— "सावधान शाइलॉक! शपथ-पत्र में सिर्फ मांस काटने का उल्लेख है। इसलिए ध्यान रखना, यदि मांस काटते समय एंटोनियो के शरीर से खून की एक भी बूँद गिरी तो तुम्हें फाँसी पर लटका दिया जाएगा!” शाइलॉक का हाथ जहाँ का - तहाँ रुक गया । वह आँखें फाड़-फाड़कर न्यायाधीश को देखने लगा।"ऐसे क्या देख रहे हो, शाइलॉक ? अपना काम पूरा करो।" पार्शिया ने कठोर स्वर में कहा।

'खून के गिरते ही मुझे फाँसी पर लटका दिया जाएगा', यह बात सोचकर शाइलॉक के पसीने छूटने लगे। उसने चाकू एक ओर फेंक दिया और गिड़गिड़ाते हुए बोला, “मी लॉर्ड! मैं एंटोनियो को छोड़ता हूँ । इसके बदले मुझे मेरा धन लौटा दिया जाए ।"

पार्शिया पुनः बोली, “ शाइलॉक, मैंने तुम्हें एक अवसर दिया था; किंतु तुम्हें धन नहीं, एंटोनियो का मांस चाहिए था। इसलिए अब इस निर्णय को बदला नहीं जा सकता । चाकू उठाओ और बिना खून गिराए मांस काट लो। अगर तुमने अदालत का निर्णय मानने से इनकार किया तो तुम्हारी सारी संपत्ति जब्त कर ली जाएगी।"

'मुझ पर दया करें, रहम करें! मैं बरबाद हो जाऊँगा ।' शाइलॉक गिड़गिड़ाते हुए घुटनों के बल बैठ गया।

"जो दया करना नहीं जानता, जिसके लिए इनसानियत का कोई मूल्य नहीं है, उसे दया की भीख कभी नहीं मिल सकती। परंतु अगर एंटोनियो चाहे तो तुम्हें क्षमा किया जा सकता है।"

शाइलॉक ने एंटोनियो की ओर देखा और हाथ जोड़कर क्षमा माँगने लगा।

तब एंटोनियो बोला,‘“मैं इसके सभी अपराध क्षमा करता हूँ । परंतु इसकी संपत्ति जब्त करके इसकी बेटी को सौंप दी जाए, जिसे इसने घर से निकाल दिया है। यदि इसे यह शर्त स्वीकार हो तो इसे क्षमा कर दिया जाए।"

शाइलॉक ने सिर झुकाकर सहमति दे दी । फिर एंटोनियो को मुक्त कर दिया गया। बेसैनियो ने प्रसन्नता से भरकर एंटोनिया को गले से लगा लिया। लेकिन अभी वह न्यायाधीश बनी पार्शिया को नहीं पहचान सका था। वह उसके पास गया और तीन हजार दुकैत स्वीकार करने की प्रार्थना की।

लेकिन पार्शिया ने धन के बदले बेसैनियो से उसकी अँगूठी माँग ली। वह अँगूठी पार्शिया ने उसे प्रेम-स्वरूप दी थी। इसलिए उसे यह प्राणों से भी अधिक प्रिय थी । परंतु मित्र की जान बचाने की खुशी में उसने वह अँगूठी उसे दे दी। इसके बाद पार्शिया नौकरानी के साथ अपने घर की ओर चल दी।

कुछ दिनों बाद बेसैनियो और एंटोनियो भी टापू पर पहुँचे। वहाँ पार्शिया ने बेसैनियो से अँगूठी के बारे में पूछा। वह घबरा गया। तब पार्शिया ने मुस्काराते हुए अँगूठी बेसैनियो के हाथ में रख दी। अँगूठी देखकर दोनों मित्र आश्चर्यचकित रह गए। तब पार्शिया ने उन्हें बताया कि किस प्रकार उसने पुरुष वेश बनाकर मुकदमे की पैरवी की थी।

तभी एंटोनियो के एक नौकर ने आकर खबर दी, “मालिक, आपके सभी जहाज मिल गए हैं।"

इस प्रकार शुभ समाचारों से चारों ओर खुशियाँ बिखर गईं ।

(रूपांतर - महेश शर्मा)

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