सौदागर का बदला : चीनी लोक-कथा
The Merchant’s Revenge : Chinese Folktale
लू शी चाँग जब पन्द्रह साल का था तभी उसने अपने गरीब परिवार को छोड़ दिया था और पास के एक शहर में काम ढूँढने चला गया था।
वहाँ जा कर वह एक सिल्क के सौदागर के साथ काम करने लगा। अपनी मेहनत और अपनी होशियारी से उसको अपने काम की जानकारी भी बहुत अच्छी हो गयी थी।
बहुत सारे लोग उसको जानने लगे और उसकी इज़्ज़त करने लगे। जब तक वह तीस साल का हुआ तो वह अप ने प्रान्त में सबसे ज़्यादा अमीर सिल्क का सौदागर बन गया था। पर वह अपना घर नहीं भूला और उसने निश्चय किया कि वह अब अपने घर लौटेगा और जा कर अपने बूढ़े माता पिता की सेवा करेगा।
एक दिन वसन्त की एक सुबह को उसने दो घोड़ों पर सोना, जेड, हाथी दाँत और सिल्क लादी और अपने घर चल दिया।
जहाँ वह काम करता था वहाँ से उसके अपने गाँव का रास्ता दो दिन का था सो जब पहले दिन रात हुई तो वह अभी भी अपने घर से आधे रास्ते दूर था। इसलिये उसने रास्ते में एक सराय में रुकने का निश्चय किया।
कई घंटों तक वह सराय ढूँढता रहा पर उसको कोई सराय ही नहीं मिली। आखिर एक मिट्टी के बर्तन बनाने वाले कुम्हार के घर के दरवाजे पर उसको एक लालटेन जलती दिखायी दे गयी। वह वहीं चला गया और वहाँ जा कर उसने उसके घर का दरवाजा खटखटाया और रात को रहने की जगह माँगी।
पर बदकिस्मती से उसने उस गाँव के सबसे ज़्यादा लालची आदमी के घर का दरवाजा खटखटा दिया था। जैसे ही उस कुम्हार और उसकी पत्नी ने घर का दरवाजा खोला तो उन्होंने उस सौदागर के घोड़ों पर बँधे कीमती कपड़े और कीमती चीज़ों से भरे थैले देखे।
दोनों के मन में उस सामान को चुराने का लालच इतना ज़्यादा हो गया कि उन्होंने उस सौदागर को तुरन्त ही अन्दर बुला लिया और खाना खिलाया।
जैसे ही वह सौदागर चावल खाने बैठा कि चाऊ ताई49 ने लू शी चाँग के सिर पर इतने ज़ोर से हथौड़ा मारा कि उसका सिर फट गया और वह वहीं मर गया।
अँधेरे में ही पति पत्नी दोनों मिल कर उसके शरीर को अपने घर के पीछे ले गये और एक गहरी कब्र खोद कर उसमें उसे गाड़ दिया।
कुम्हार तो रात भर में ही अमीर हो गया यह खबर सारे गाँव में बहुत जल्दी ही फैल गयी। और यह खबर उस कुम्हार को एक पैसे उधार देने वाले चाँग पाई कू के कान में भी पड़ी।
उस कुम्हार ने उस पैसे उधार देने वाले से कुछ पैसा उधार ले रखा था सो वह तुरन्त ही अपने घोड़े पर जीन51 कस कर और उस पर बैठ कर बर्तन बनाने वाले कुम्हार से अपना पैसा वसूल करने चल दिया।
जब चाँग पाई कू कुम्हार के घर पहुँचा तो उसको तो उसके घर में बदलाव देख कर विश्वास ही नहीं हुआ कि वह उसी कुम्हार का घर था जिसको उसने पैसा उधार दिया था।
उसने अपने घर में दो बहुत सुन्दर सोने वाले कमरे बनवा लिये थे जिनके आगे एक लोहे का बरामदा था। जहाँ उसके मकान में पहले झाड़ियों से भरा एक मैदान था वहाँ उसने एक पत्थर का बागीचा और एक मछली से भरा तालाब बनवा लिया था।
हालाँकि उसके घर में ये सब खरचीले बदलाव थे जबकि इस बीच उसकी दूकान से एक भी कटोरा या जग या कोई और बर्तन नहीं बेचा गया था।
उसके अपने पुराने मिट्टी के बर्तनों पर भी धूल जमी पड़ी थी क्योंकि उसकी दूकान तो जनता के लिये बहुत दिनों से खुली ही नहीं थी। तो फिर उसके पास यह पैसा आया कहाँ से?
चाँग पाई कू ने कुम्हार की दूकान का दरवाजा खटखटाया तो उसने चाँग पाई कू का बड़े प्रेम से स्वागत किया और कहा — “आओ, मुझे मालूम है कि तुम यहाँ क्यों आये हो। तुम मुझसे पैसा उधार माँगना चाहते हो। मैं ठीक बोल रहा हूँ न?”
चाँग पाई कू आश्चर्य से बाला — “यह तुम क्या कह रहे हो? पैसा और तुमसे उधार माँगने? मुझे यकीन है कि तुम अपना उधार भूले नहीं हो।”
कुम्हार फिर बोला — “मेरे दोस्त, अब तुमको अपनी गरीबी पर शर्माने की जरूरत नहीं है। मुझे मालूम है कि तुम मुझसे दान लेने के लिये आये हो फिर इसमें यह बहाना बनाने की क्या जरूरत है कि मैंने तुमसे उधार ले रखा है। तुम चाहो तो वैसे ही मुझसे पैसे उधार माँग सकते हो।”
पैसे उधार देने वाले ने कहा — “यह तुम क्या कह रहे हो तुम अच्छी तरह जानते हो कि मैंने तुमको जाड़े के मौसम में खाना खरीदने के लिये काफी पैसे उधार दिये थे। जब तक तुम मेरा वह उधार वापस नहीं कर देते तब तक मैं यहाँ से हिलने वाला नहीं हूँ।” पर कुम्हार ने उसको उधार देने से साफ मना कर दिया और दोनों चुपचाप खड़े रह गये।
अन्त में कुम्हार ने अपनी कमर से लटका रस्सी खींचने से खुलने बन्द होने वाला चमड़े का एक थैला खोला और उस थैले के सिक्के उसके सामने फर्श पर डालते हुए हुए कहा — “यह लो और खिसको यहाँ से। और मेरे इस दान के लिये मेरा धन्यवाद करो।”
फिर वह कुम्हार चाँग पाई कू को हाथों पर चलते और उन सिक्कों को फर्श पर से उठाते देखता रहा। चाँग पाई कू ने उन सिक्कों को उठा कर गिना तो वे तो अभी भी उसके उधार दिये हुए पैसों से कम थे।
उसने अपने उधार की रकम पूरी करने के लिये कुम्हार की मिट्टी की एक प्लेट उठा ली और अपने कोट के अन्दर रख ली और गुस्से में भर कर वहाँ से अपने घर चल दिया जो दूर जंगल के उस पार था।
जब वह जंगल में आधे रास्ते में पहुँचा तो बहुत ज़ोर से हवा चलने लगी जिससे वहाँ के पेड़ बहुत ज़ोर ज़ोर से हिलने लगे और वह हवा उसको उसकी सूती जैकेट के अन्दर उसके बदन को काटने लगी। ठंड उसकी हड्डियों तक पहुँच रही थी।
पहले तो वह उस ठंड से काँपने लगा फिर छींकने लगा। उस की वह छींक भी इतने ज़ोर की थी कि उस छींक के साथ ही कुम्हार की जो मिट्टी की प्लेट वह अपने कोट मे रख कर लाया था बाहर निकल कर नीचे जमीन पर गिर पड़ी।
भगवान का धन्यवाद कि वह प्लेट नीचे गिर कर टूटी नहीं।
उसके गिरते ही एक आवाज आयी — “ज़रा सँभाल के। दर्द होता है।”
चाँग पाई कू ने वह प्लेट उठा कर फिर जेब में रख ली और चौंक कर इधर उधर देखा कि वह आवाज किधर से आ रही थी पर उसको हवा से हिलते पत्तों के अलावा और कहीं कुछ भी दिखायी नहीं दिया।
उसको लगा कि यह सब शायद उसका ख्याल होगा और यही सोच कर वह आगे बढ़ चला। लेकिन वही आवाज उसको फिर से आयी कि वह थोड़ा धीरे धीरे चले।
चाँग पाई कू ने फिर उस आवाज को टाल दिया और वह अपने घर पहुँचने के लिये और तेज़ी से जाने लगा। जब वह अपने रसोइ घर में पहुँचा तो उसने वह मिट्टी की प्लेट एक लकड़ी की कुर्सी पर रख दी।
पर वह आवाज दर्द से फिर से चिल्लायी तो अबकी बार चाँग पाई कू को विश्वास हो गया कि वह आवाज उस मिट्टी की प्लेट से ही आ रही थी। उसने वह प्लेट उठा ली और अपने कान से लगा ली।
वह आवाज फिर बोली — “हाँ हाँ, मैं इस मिट्टी की प्लेट में ही हूँ। मेरी सहायता करो चाँग। मेरा खून किया गया है। मेरी सहायता करो ताकि मेरे खून को न्याय मिल सके।”
चाँग पाई कू ने उससे पूछा — “क्या तुम कोई भूत हो?”
इस सवाल पर वह प्लेट चुप रही पर फिर भी वह उससे अपने सवाल पूछता रहा — “तुम किस तरह की आत्मा हो? तुम इस मिट्टी की प्लेट में क्यों छिपी हो? तुम्हें किसने मारा है?”
तब लू शी चाँग ने उसको बताया कि उसका खून कैसे हुआ था और किस तरह से उसको कुम्हार के पीछे के बागीचे में गाड़ा गया था। फिर किस तरह खून होने के बाद लू शी चाँग की आत्मा उस लाल मिट्टी में चली गयी थी जिसमें उसको गाड़ा गया था।
उसके खून के कई दिन बाद उस कुम्हार ने उसकी कब्र से मिट्टी निकाल कर एक मिट्टी की प्लेट बनायी और यह वही प्लेट थी जिसे इस समय चाँग पाई कू अपने हाथ में पकड़े हुए था।
अब यह आत्मा किसी ऐसे आदमी की सहायता की तलाश में थी जो उसके खून को वहाँ के जिला जज पाओ कुंग को जा कर बता सकता और उसको न्याय दिलवा सकता।
जब लू शी चाँग अपनी कहानी सुना चुका तो उस प्लेट से आँसू टपक पड़े। चाँग पाई कू एक रोती हुई प्लेट देख कर चौंक गया। प्लेट के आँसू देख कर उसने निश्चय किया कि वह उस आदमी के साथ जरूर ही न्याय करेगा।
अगले दिन सुबह सवेरे ही उसने वह प्लेट एक सिल्क के कपड़े में लपेटी और पास के एक शहर की अदालत की तरफ चल दिया। जब वह जिला मजिस्ट्रेट पाओ कुंग की अदालत के दरवाजे पर पहुँचा तो उसने उस मिट्टी की प्लेट की पूरी कहानी सुनायी और तुरन्त ही जिला मजिस्ट्रेट से मिलने की इजाज़त माँगी। उसको तुरन्त ही मजिस्ट्रेट के सामने ले जाया गया।
जज अक्लमन्द था। उसने चाँग पाई कू की सारी कहानी बड़े ध्यान से सुनी और फिर प्लेट में बसी आत्मा से पूछा कि वह कौन थी। पर लू शी चाँग ने एक भी शब्द नहीं बोला।
इस पर जिला मजिस्टे्रट पाओ कुंग ने वह प्लेट उठायी और अपने कान के पास ला कर उससे फिर पूछा — “ओ प्लेट की आत्मा, मुझसे बात करो।” पर वह प्लेट फिर भी चुप रही।
पाओ कुंग ने सोचा कि “लगता है यह पैसे उधार देने वाला पागल हो गया है। कहीं प्लेट भी बोलती है क्या। सो उसने गुस्से में आ कर अपने नौकरों से उसको अदालत से बाहर निकलवा दिया।
बाहर आ कर चाँग पाई कू ने उस प्लेट को मारा और कहा कि लू शी चाँग उसको बताये कि वह जज के सामने चुप क्यों रहा, बोला क्यों नहीं।
लू शी चाँग बोला — “मेहरबानी कर के मुझे मारो नहीं। मैं वहाँ नहीं बोल सकता था क्योंकि मैं वहाँ था ही नहीं। वे जो दो चौकीदार दरवाजे पर खड़े थे उन्होंने तुमको तो जाने की इजाज़त दे दी थी पर आत्माओं की दुनिया के दरवाजे के देवताओं ने मुझे अन्दर नहीं जाने दिया।
तो जब मैं वहाँ था ही नहीं तो मैं बोलता कैसे। क्या यह बात तुम जज पाओ कुंग को समझा सकते हो?”
यह सुन कर चाँग पाई कुंग फिर से जज के पास लौटा तो उस जज ने फिर से चाँग पाई कुंग का मामला बड़े ध्यान से सुना। यह सुन कर उसने एक टोटका बनाया जिसके द्वारा उसने दरवाजे के देवताओं से प्रार्थना की थी कि वह उस आत्मा को अन्दर आने दें।
अदालत के चौकीदारों ने उस टोटके को दरवाजे के बाहर ले जा कर जला दिया और प्लेट के अन्दर की लू शी चाँग की आत्मा को अदालत के अन्दर आने दिया गया।
अन्दर आ कर चाँग पाई कू ने वह प्लेट जज की मेज पर रख दी और जज ने उससे एक बार फिर वही सवाल पूछा पर एक बार फिर वह प्लेट नहीं बोली।
अबकी बार चाँग पाई कू का धीरज छूट गया। उसने उस प्लेट को बहुत ज़ोर से हिलाया पर फिर भी उस प्लेट ने कोई जवाब नहीं दिया।
पाओ कुंग को अब विश्वास हो गया था कि यह सब कहानी उसको बेवकूफ बनाने की एक चाल थी। उसने अपनी अदालत के चौकीदारों को एक बार फिर अन्दर बुलाया और चाँग पाई कू को अच्छी तरह से पीट कर अदालत से बाहर निकालने का हुक्म सुना दिया।
चौकीदारों ने उसको चमड़े के कोड़े से मारा और अदालत से बाहर निकाल दिया। बेचारा चाँग पाई कू शाम तक वहीं महल के बाहर एक तरफ को सड़क पर घायल सा पड़ा रहा। जब वह कुछ होश में आया तो उसने उस मिट्टी की प्लेट को पैर मार कर नाली में फेंक दिया।
लू शी चाँग ने उससे फिर पार्थना की — “थोड़ा शान्त हो जाओ। मैं तुमको बताता हूँ कि क्या हुआ। मुझे एक मौका और दो। मैं जज से बोलने ही वाला था कि मैंने देखा कि मैंने तो कपड़े ही नहीं पहने हैं।
अब मैं उस रूप में तो जज से बात नहीं कर सकता था। उसकी इज़्ज़त रखने के लिये मेरी आत्मा को कपड़े पहनने चाहिये थे।
मेहरबानी कर के मुझे इस तरह मत छोड़ो। मुझे तुम्हारी बहुत जरूरत है। अगर तुम मेरी सहायता नहीं करोगे तो मैं ज़िन्दगी भर के लिये इस प्लेट में ही कैद हो कर रह जाऊँगा। मेहरबानी कर के मुझे एक मौका और दो और मुझे बचा लो।”
लू शी चाँग की यह प्रार्थना सुन कर चाँग पाई कू का दिल पिघल गया और वह उसको एक बार फिर जज के सामने ले जाने के लिये तैयार हो गया।
उसने उस प्लेट को एक कपड़े में लपेटा और लँगड़ाता हुआ फिर से जज की अदालत की तरफ चल दिया। बार बार वह कुछ कदम पर लू शी चाँग का नाम ले ले कर उसको जाँच लेता था कि वह वहाँ है भी कि नहीं।
लू शी चाँग की आत्मा बोली — “तुम चिन्ता न करो मैं यहीं हूँ और मैं वायदा करता हूँ कि अब मैं यहीं रहूँगा।”
जब वे अदालत के दरवाजे के पास पहुँचे तो लू शी चाँग की आत्मा ने दरवाजे के चौकीदारों को एक तरफ खड़े हो जाने के लिये कहा। चौकीदार एक बोलती हुई प्लेट को सुन कर इतने आश्चर्यचकित हुए कि वे तुरन्त ही कूद कर एक तरफ हट गये।
चाँग पाई कू पाओ के दफ्तर दौड़ा गया और कपड़े में लिपटी वह प्लेट उसकी मेज पर रख दी और उखड़ी साँस लेता हुआ बोला — “अब आप इस प्लेट से कोई भी सवाल पूछ सकते हैं, जज साहब।”
जज गुस्से से बोला — “दूर हो जाओ मेरी नजरों से।”
“योर औनर, मेहरबानी कर के इस प्लेट की बात तो सुन लीजिये कि यह क्या कहना चाहती है।”
जैसे ही चाँग पाई कू ने अपनी बात खत्म की कि प्लेट में से एक धीमी सी आवाज आयी और उस प्लेट की आत्मा ने लू शी चाँग के खून की सारी घटनाऐं जज के सामने कह दीं कि उसका खून कैसे हुआ था।
उसके बाद वह आत्मा जज का जवाब सुनने के लिये रुक गयी पर पाओ कुंग तो एक प्लेट को बोलता सुन कर इतना भौंचक्का हो गया था कि वह तो कुछ बोल ही नहीं सका।
सो उस आत्मा ने अपनी कहानी जारी रखी और फिर सौदागर की मौत के साथ ही उस कहानी को खत्म किया।
यह सब सुन कर पाओ कुंग ने बिना किसी हिचक के अपने चौकीदारों को बुलाया और उस कुम्हार और उसकी पत्नी को बन्दी बना कर लाने के लिये कहा।
अगली सुबह दोनों खून करने की सुनवायी की अदालत में लाये गये और उस आत्मा ने उनके खिलाफ गवाही दी।
जब प्लेट का बोलना खत्म हो गया तो कुम्हार की पत्नी तो रोते रोते बेहोश ही हो गयी।
फिर बाद में उन्होंने अपना जुर्म मान लिया। जज ने उन दोनों का जुर्म साबित करते हुए उन दोनों को मौत की सजा सुना दी।
उस शाम जब सूरज ढल रहा था तो वे दोनों एक खुश भीड़ के सामने शहर के चौराहे पर फाँसी पर लटका दिये गये।
जब वे फाँसी पर लटका दिये गये तो चाँग पाई कू थका हुआ अपने घर लौट आया पर वह अपनी इस कोशिश से बहुत सन्तुष्ट था कि आज उसने एक खूनी को न्याय दिलवाया और एक आत्मा को प्लेट में से आजाद कर दिया।
उन दोनों के फाँसी पर लटक जाने के बाद से वह प्लेट भी नहीं बोली थी जिससे चाँग पाई कू को लगा कि लू शी चाँग की आत्मा अब आराम कर रही थी सो उसने वह प्लेट अपने रसोईघर की आलमारी के सबसे ऊपर वाले तख्ते पर रख दी।
जज के फैसले के अनुसार कुम्हार का सारा सामान लू शी चाँग के माता पिता को दे दिया गया। उन्होंने भी चाँग पाई कू को काफी सोना, चाँदी और जेड एक चमड़े के थैले में रख कर धन्यवाद के रूप में दिये।
चाँग पाई कू ने अपना यह इनाम अपने रसोईघर के फर्श में लगे लकड़ी के तख्तों के नीचे गाड़ दिया। जैसे ही उसने अपना यह इनाम लकड़ी के तख्तों के नीचे गाड़ कर तख्ते उसके ऊपर रखे कि रसोईघर की आलमारी में रखी प्लेट ऊपर से नीचे फर्श पर कूद पड़ी और टूट गयी।
चाँग पाई कू ने उसको बहुत मेहनत से जोड़ा भी पर वह प्लेट फिर कभी नहीं बोली क्योंकि लू शी चाँग की आत्मा तो अब उस प्लेट में से आजाद हो गयी थी और वह वहाँ थी ही नहीं।
(साभार सुषमा गुप्ता जी, जिन्होंने लोक-कथाओं पर उल्लेखनीय काम किया है.)