जादुई तकिया : चीनी लोक-कथा
The Magic Pillow : Chinese Folktale
बहुत पुरानी बात है कि एक दिन एक बौद्ध साधु तीर्थ यात्रा पर निकला तो रास्ते में वह एक सराय में रुका। वहाँ उसने फर्श पर बैठने के लिये अपनी चटाई बिछायी और अपना मिट्टी का खाना माँगने वाला कटोरा भी उसके पास ही रख लिया।
एक नौजवान आदमी उधर से गुजर रहा था तो वह उस साधु के उस कटोरे में एक सिक्का डालने के लिये रुका और बोला — “कितनी अजीब बात है। यह बड़ी अजीब सी बात है न कि मुझ जैसा गरीब और दुखी किसान तुम जैसे अमीर और सन्तुष्ट आदमी को दान दे रहा है?”
साधु बोला — “तुम तो अच्छे खाये पिये और काफी तन्दुरुस्त लगते हो फिर तुम दुखी क्यों हो?”
नौजवान बोला — “मैं सुखी कैसे हो सकता हूँ? मैं तो केवल एक साधारण किसान की तरह रोज सारा दिन जमीन जोतता हूँ और उसी से अपना और अपने परिवार का पेट पालता हूँ। मैं दुनियाँ में कुछ बनना चाहता हूँ, न कि साधारण किसान की तरह से जीना।” इतना कह कर उसने एक ठंडी साँस भरी।
वह फिर बोला — “मैं एक बड़ा लड़ने वाला बनना चाहता हूँ, एक बड़ा जनरल। या फिर एक अमीर आदमी जिसके पास खूब बढ़िया खाना हो और खूब कीमती कपड़े हों। या फिर मैं राजा के दरबार में बहुत ऊँचा ओहदा पाना चाहता हूँ। बस मैं खूब बड़ा और कोई बहुत ही ऊँचा आदमी बनना चाहता हूँ।”
जब वह नौजवान ये सब बातें कर रहा था तो उसको नींद आने लगी सो वह उस साधु की चटाई पर ही बैठ गया। फिर वह कुछ झुक सा गया, फिर लेट गया और फिर जल्दी ही सो भी गया।
यह देख कर कि वह नौजवान वहीं सो गया है, उस साधु ने उसके सिर के नीचे एक तकिया रख दिया और बोला — “बुद्ध के एक शिष्य की तरफ से यह भेंट तुम्हारी सब इच्छाएँ पूरी करे। जब तुम इस तकिये पर लेटो तो यह तकिया तुम्हारी सब इच्छाओं को पूरा करे।”
जब वह नौजवान सुबह जागा तो वह तो बड़े आश्चर्य में पड़ गया। वह तो अपने घर में था। कुछ समय बाद उसने एक बहुत सुन्दर लड़की से शादी कर ली।
उस साधु की दुआओं से वह अपने खेत से पहले से कहीं बहुत ज़्यादा पैसा कमाने लगा। उस ज़्यादा पैसे से उसने और जमीन खरीद ली। अपनी सहायता के लिये खेत पर काम करने के लिये उसने और ज़्यादा मजदूर रख लिये।
धीरे धीरे वह एक बहुत बड़ा और एक बहुत अमीर आदमी बन गया। उसने अपना खाली समय पढ़ने में लगाया तो वह एक मजिस्ट्रेट बन गया और दूसरों के ऊपर राज करने लगा।
एक दिन राजा ने उसको अपने दरबार में काम करने के लिये बुला लिया। तो अब तो वह अपने शहर का एक बहुत ही खास आदमी बन गया था।
उसके बाद उसके साथ बुरी घटनाएँ घटनी शुरू हुईं। उसके ऊपर धोखाधड़ी का झूठा इलजाम लगाया गया। उसको दूसरे की गलतियों की सजा मिलने लगी। उसको मारने की सजा दे दी गयी। उसकी पत्नी और उसके दोस्त उसको छोड़ कर चले गये। उसको बहुत बुरा और अकेला लगने लगा।
जब उसको मारने के लिये ले जाया जा रहा था तो वहाँ उसने पत्थर पर झुक कर यह इच्छा की — “काश मैं एक साधारण सा किसान ही होता।”
उसकी गर्दन उस मारने वाले पत्थर पर थी और उसका सिर एक टोकरी के ऊपर लटका हुआ था। जल्लाद ने उसका गला काटने के लिये अपनी तलवार उठायी।
किसान ने डर कर अपनी आँखें खोलीं तो वह क्या देखता है कि वह तो उस बौद्ध साधु के सामने बैठा हुआ है जिसको उसने सिक्का दिया था।
वह फिर से जवान हो गया था। वह अब शाही कपड़े नहीं पहने था बल्कि वही अपने पुराने वाले साधारण किसान वाले कपड़े ही पहने था।
वह अब उस जल्लाद के सामने भी सिर नहीं झुकाये था। उसने सिर उठा कर ऊपर देखा तो उसके सिर पर अब तलवार भी नहीं थी। उसके सामने तो वह बौद्ध साधु मुस्कुराता हुआ अपनी सराय के सामने बैठा था।
तब उस नौजवान ने उस बौद्ध साधु को अपनी कहानी सुनायी और वह बौद्ध साधु उसकी कहानी मुस्कुराते हुए सुनता जा रहा था। जब उस नौजवान ने अपनी कहानी खत्म कर ली तभी उसको यह पता चला कि वह सब इसी साधु ने ही उसे दिया था।
उस साधु ने उसको फिर यह भी दिखाया कि अगर उसका सपना पूरा हो गया होता तो उसकी और आगे की ज़िन्दगी कैसी होती।
नौजवान ने उसको धन्यवाद दिया और बोला — “आपने मुझे इस जादुई तकिये को इस्तेमाल करा कर बहुत ही अच्छी सीख दी है। मैंने देख लिया कि बड़ा और अमीर आदमी बन कर क्या होता है और अब मुझे बड़ा और अमीर आदमी बनने की कोई इच्छा नहीं है।”
और वह उस साधु को सिर झुका कर खुशी खुशी अपने घर लौट गया।
(साभार सुषमा गुप्ता जी, जिन्होंने लोक-कथाओं पर उल्लेखनीय काम किया है.)