जादुई नाशपाती का पेड़ : चीनी लोक-कथा
The Magic Pear Tree : Chinese Folktale
यह बहुत समय पुरानी बात है कि एक बार चीन में एक किसान अपनी बहुत ही मीठी और रसीली नाशपातियाँ बेचने के लिये बाजार गया। क्योंकि उसकी नाशपातियाँ बहुत ही मीठी और रसीली थीं इसलिये वह सोच रहा था कि उसको उनके बहुत अच्छे दाम मिल जायेंगे।
बाजार में जा कर वह एक अच्छी सी जगह देख कर अपनी नाशपातियाँ बेचने के लिये बैठ गया और आवाज लगाने लगा — “बढ़िया वाली नाशपाती ले लो, बढ़िया वाली नाशपाती ले लो।”
उसकी आवाज सुन कर एक फटे कपड़े पहने बूढ़ा साधु उसके पास आया और उसने उससे एक नाशपाती माँगी।
किसान बोला — “मैं तुमको एक नाशपाती क्यों दूँ? तुम तो बहुत ही आलसी आदमी हो। और तुमने तो अपनी पूरी ज़िन्दगी में कभी एक दिन भी ईमानदारी से काम नहीं किया।”
यह सुन कर साधु को थोड़ा आश्चर्य तो हुआ पर फिर भी वह वहाँ से गया नहीं बल्कि उसने अपनी प्रार्थना फिर से दोहरायी।
किसान उसकी इस हरकत से और गुस्सा हो गया और उसने उस साधु को और भी बुरा भला कहा।
साधु बोला — “ठीक है जनाब। मैं आपकी गाड़ी में लदी नाशपाती तो नहीं गिन सकता क्योंकि वे तो सैंकड़ों में हैं और मैंने तो आपसे केवल एक नाशपाती ही माँगी थी। फिर इतनी सी बात ने आपको इतना गुस्सा क्यों कर दिया?”
इस बीच उस किसान और साधु के चारों तरफ काफी लोग इकठ्ठा हो गये। यह सोचते हुए कि उसके यह कहने से यह समस्या हल हो जायेगी उनमें से एक आदमी ने किसान से कहा — “तुम इस साधु को एक छोटी सी नाशपाती दे क्यों नहीं देते? यह बेचारा एक ही नाशपाती तो माँग रहा है। तुम्हारे पास तो सैंकड़ों में हैं।”
दूसरा बोला — “जैसा वह बूढ़ा कह रहा है वैसा ही कर दो न। केवल एक नाशपाती की ही तो बात है।”
पर किसान तो किसी की सुन ही नहीं रहा था – नहीं तो नहीं। बस।
साधु ने उस बूढ़े को सिर झुका कर धन्यवाद दिया और बोला — “तुमको तो मालूम है कि मैं एक साधु हूँ। जब मैं साधु बना था तो मैंने अपना सब कुछ छोड़ दिया था। अब न तो मेरे पास घर है और न ही मेरे पास कपड़े हैं जिनको मैं अपना कह सकूँ।
मेरे पास खाना भी नहीं है सिवाय उस खाने के जो लोग मुझे दे देते हैं। ऐसे आदमी को तुम एक नाशपाती देने से कैसे इनकार कर सकते हो जबकि मैं तुमसे माँग रहा हूँ? मैं इतना मतलबी नहीं हो सकता जितना कि तुम मुझे समझ रहे हो।
मैं तुम सब लोगों को जो नाशपाती मैंने बोयी हैं उनको खाने का न्यौता देता हूँ। अगर तुम लोग मेरे न्यौते को स्वीकार कर लोगे तो मुझे बहुत खुशी होगी।”
यह सुन कर वहाँ खड़े सब लोग चौंक गये। वे सोचने लगे कि जब इस साधु के पास इतनी सारी नाशपाती थीं कि यह सबको खिला सकता है तो इसने इस आदमी से एक नाशपाती माँगी ही क्यों।
पर देखने में ऐसा नहीं लग रहा था जैसे उसके पास कुछ हो। तो फिर उसके कहने का मतलब क्या था?
फिर एक बड़ी उम्र वाले आदमी ने किसान से एक नाशपाती खरीद कर उसको दे दी। उस साधु ने अपनी नाशपाती बड़े ध्यान से खायी जब तक कि उसका एक बहुत ही छोटा सा बीज रह गया। नाशपाती खा कर उसने वहीं एक गड्ढा खोदा और उस बीज को उस गड्ढे में दबा दिया।
फिर उसने भीड़ से एक गिलास पानी माँगा तो एक आदमी ने उसको एक गिलास पानी दे दिया। वह पानी उसने उस बीज को दे दिया। देखते ही देखते उसमें से पहले कल्ला फूटा फिर कुछ हरी पत्तियाँ निकलीं और फिर वे पत्तियाँ भी बहुत जल्दी ही बढ़ती चली गयीं।
वहाँ खड़े लोगों को यह देख कर बहुत आश्चर्य हुआ। पर उनके आश्चर्य का तब तो बिल्कुल ही ठिकाना न रहा जब उन्होंने देखा कि उस बीज में से तो पत्तियाँ और शाखाएँ निकलती ही चली गयीं निकलती ही चली गयीं और कुछ पल में ही उनके सामने एक छोटा सा नाशपाती का पेड़ खड़ा था।
वह छोटा सा पेड़ वहीं नहीं रुका बल्कि और भी तेज़ी से बढ़ता ही जा रहा था और वे सारे लोग दम साध कर चुपचाप उस पेड़ को बढ़ता हुआ देख रहे थे।
पत्तियों और शाखाओं के बाद उसमें कलियाँ आयीं, फिर फूल आये, और फिर वह सारा पेड़ मीठी रसीली नाशपातियों से भर गया।
साधु का चेहरा खुशी से चमक उठा। उसने उस पेड़ से एक एक कर के नाशपाती तोड़ीं और भीड़ में खड़े सब लोगों को बाँट दीं। सब लोग वे नाशपाती खा कर ताज़ादम हो गये।
पर इससे पहले कि लोग यह जान पायें कि यह सब क्या हो रहा है उस साधु ने एक कुल्हाड़ी ली और उस पेड़ को काट डाला। पेड़ को उसने अपने कन्धे पर रखा और अपने रास्ते चला गया।
किसान तो यह सब देख कर बिल्कुल ही भौंचक्का रह गया। उसको तो अपनी आँखों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था कि कुछ पल पहले एक पूरा बढ़ा हुआ नाशपाती का पेड़ उसकी अपनी नाशपाती की गाड़ी के पास खड़ा हुआ था और वह पूरा का पूरा पेड़ नाशपातियों से लदा हुआ था और अब वह पेड़ उस साधु के कन्धे पर रखा जा रहा था।
तभी उसकी निगाह अपनी नाशपाती की गाड़ी पर गयी तो उसने देखा कि उसकी अपनी गाड़ी तो खाली पड़ी थी। उसमें एक भी नाशपाती नहीं थी। बल्कि उसकी गाड़ी का एक हैन्डिल भी गायब था।
तब उस किसान को पता चला कि क्या हुआ था। उस बूढ़े साधु ने उसकी गाड़ी के एक हैन्डिल से अपनी नाशपाती का पेड़ उगाया और उसी की नाशपातियाँ उस पेड़ पर लगा दी थीं। उसने उस साधु को इधर उधर देखने की कोशिश भी की पर वह तो उसे कहीं दिखायी ही नहीं दिया।
नाशपाती का वह पेड़ जो वह साधु इतनी आसानी से काट कर ले गया था कुछ दूर जा कर सड़क के किनारे मिला। वह उसकी गाड़ी का गायब हुआ वाला हैन्डिल था।
किसान तो यह सब देख कर आग बबूला हो रहा था पर भीड़ थी कि इस पर हँसे जा रही थी हँसे जा रही थी।
(साभार सुषमा गुप्ता जी, जिन्होंने लोक-कथाओं पर उल्लेखनीय काम किया है.)