छोटे केंकड़े की जादुई आँखें : ब्राज़ील की लोक-कथा

The Magic Eyes of Little Crab : Lok-Katha (Brazil)

एक बार की बात है कि ब्राज़ील में एक केंकड़ा रहता था। उसकी आँखें जादुई थीं। कैसे? कि वह अपनी आँखों को बाहर निकाल कर उन्हें समुद्र के ऊपर उड़ा सकता था और फिर उन्हें वापस बुला कर अपने सिर में लगा सकता था।

बस उसे केवल यह कहना होता था कि “ओ मेरी आँखें जाओ और समुद्र के ऊपर घूम कर आओ।”

छोटे केंकड़े की आँखें उसके सिर में से निकलतीं और बाहर निकल कर समुद्र पर घूमने चली जातीं। छोटे केंकड़े की आँखें समुद्र के किनारे पर समुद्र का रेतीला तला देखतीं और दूर नीला गहरा समुद्र देखतीं। वे मूँगे की पहाड़ियों के आसपास घूमती हुई रंगीन मछलियाँ देखतीं और और भी बहुत सारी चीज़ें देखतीं।

जब छोटा केंकड़ा यह देखते देखते थक जाता तो वह अपनी आँखों से कहता “ओ मेरी आँखें अब समुद्र पर से वापस आ जाओ।”

तो वे उसके पास वापस आ जातीं और आ कर उसके सिर पर लग जातीं। यह उसके लिये एक अच्छा खेल था।

एक दिन जब छोटा केंकड़ा अपनी आँखों से खेल रहा था तो वहाँ एक चीता आ गया। तभी छोटे केंकड़े ने अपनी आँखों से कहा “ओ मेरी आँखें जाओ और समुद्र के ऊपर घूम कर आओ।” छोटे केंकड़े की आँखें उसके सिर से निकलीं और समुद्र देखने चली गयीं।

चीते ने सुना छोटा केंकड़ा कह रहा था “ओह कितना सुन्दर है।” कुछ देर बाद छोटे केंकड़ा बोला “ओ मेरी आँखें अब समुद्र पर से वापस आ जाओ।” तो उसने देखा कि छोटे केंकड़े की आँखें वापस आयीं और उसके सिर पर लग गयीं।

चीता आश्चर्य से यह सब देख रहा था। उसने केंकड़े से पूछा — “केंकड़े भाई यह तुम क्या कर रहे हो?”

छोटा केंकड़ा बोला — “मैं अपनी आँखों के साथ खेल रहा हूँ। मैं अपनी आँखें अपने सिर से बाहर निकाल सकता हूँ और उन्हें गहरे नीले समुद्र के ऊपर उड़ने के लिये भेज सकता हूँ। और फिर जब चाहूँ मैं उन्हें वापस बुला सकता हूँ। मैं जब ऐसा करता हूँ तो मैं सुन्दर सुन्दर चीज़ें देख सकता हूँ।”

चीते ने उससे प्रार्थना की — “मेहरबानी कर के यह खेल मुझे भी एक बार दिखाओ न।”

सो छोटा केंकड़ा बोला — “ओ मेरी आँखें जाओ और समुद्र के ऊपर घूम कर आओ।” छोटे केंकड़े की आँखें उसके सिर से निकलीं और समुद्र देखने चली गयीं।

चीते ने पूछा — “अब तुम मुझे बताओ कि तुम क्या देख रहे हो?”

छोटा केंकड़ा बोला — “मुझे समुद्र के किनारे के पास समुद्र का रेतीला तला दिखायी दे रहा है। इसके अलावा मैं दूर का गहरा नीला पानी भी देख सकता हूँ।”

चीता बोला — “अब तुम अपनी आँखें वापस लाओ।”

छोटा केंकड़ा बोला — “ओ मेरी आँखें अब समुद्र पर से वापस आ जाओ।” तो उसने देखा कि छोटे केंकड़े की आँखें वापस आयीं और आ कर उसके सिर पर लग गयीं।

चीता बोला — “केंकड़े भाई यह तो बड़ी मजेदार चीज़ है। ऐसा मेरे लिये भी कर दो न।”

छोटा केंकड़ा बोला — “मैं कर तो सकता हूँ पर मैं करूँगा नहीं क्योंकि यह बहुत खतरे वाला काम है। समुद्र में एक बहुत बड़ी मछली रहती है। उसका नाम है ऊन्हालून्का मछली। हो सकता है वह आपकी आँखों को देख ले और फिर समुद्र में से निकल कर उन्हें खा ले।”

चीता बोला — “मैं ऐसी बेवकूफ मछलियों से नहीं डरता। तुम बस मेरी आँखों को समुद्र के ऊपर भेजो नहीं तो देख लो तुम्हें इसके लिये बहुत पछताना पड़ेगा।”

यह सुन कर छोटा केंकड़ा डर गया। वह तुरन्त बोला — “ओ चीते की आँखें जाओ और समुद्र के ऊपर घूम कर आओ।” चीते की आँखें उसके सिर से निकलीं और समुद्र देखने चली गयीं।

चीता तुरन्त ही चिल्ला कर बोला — “ओह यह सब कितना सुन्दर है। अब मुझे भी समुद्र के किनारे के पास के समुद्र का रेतीला तला दिखायी दे रहा है। इसके अलावा मैं दूर का गहरा नीला पानी भी देख सकता हूँ। मूँगे की पहाड़ियों के पास छोटी छोटी रंगीन मछलियाँ भी तैरती देख सकता हूँ।”

कुछ पल बाद छोटा केंकड़ा बोला — “ओ चीते की आँखें अब समुद्र के ऊपर से वापस आ जाओ।” तुरन्त ही चीते की आँखें वापस आ कर उसके सिर पर लग गयीं।

चीता बोला — “केंकड़े भाई यह तो बहुत ही बढ़िया रहा। मेहरबानी कर के इसे दोबारा करो।”

छोटा केंकड़ा बोला — “मैं ऐसा कर तो सकता हूँ पर मैं करूँगा नहीं क्योंकि यह बहुत खतरे वाला काम है। समुद्र में एक बहुत बड़ी मछली रहती है। उसका नाम है ऊन्हालून्का मछली। हो सकता है वह तुम्हारी आँखों को देख ले और फिर समुद्र में से निकल कर उन्हें खा ले।”

चीता बोला — “मैं ऐसी बेवकूफ मछलियों से नहीं डरता। तुम मेरी आँखों को समुद्र के ऊपर भेजो नहीं तो देख लो तुम्हें इसके लिये बहुत पछताना पड़ेगा।”

यह सुन कर छोटा केंकड़ा फिर डर गया। वह तुरन्त बोला — “ओ चीते की आँखें जाओ और समुद्र के ऊपर घूम कर आओ।” चीते की आँखें उसके सिर से निकलीं और समुद्र देखने चली गयीं। पर तभी ऊन्हालून्का मछली ऊपर आयी और चीते की आँखों को खा गयी। चीता चिल्लाया — “केंकड़े भाई मैं कुछ नहीं देख सकता सब अँधेरा हो गया है। मेरी आँखें वापस लाओ।”

छोटा केंकड़ा बोला — “चीते भाई मैं आपकी आँखें वापस नहीं ला सकता। ऐसा लगता है कि जिसका मुझे डर था वही हुआ। ऊन्हालून्का मछली आयी होगी और आपकी आँखें खा गयी होगी।”

चीता छोटे केंकड़े को धमकाते हुए बोला — “केंकड़े भाई मेरी आँखें वापस लाओ नहीं तो तुम बहुत पछताओगे।”

यह सुन कर छोटा केंकड़ा फिर डर गया और जा कर एक बड़े पत्थर के नीचे छिप गया। चीता कुछ न देख पाने की वजह से बहुत गुस्से में था। वह इधर उधर भागने लगा और न देख पाने की वजह से कभी किसी से और कभी किसी से टकराने लगा।

एक गिद्ध ऊपर से उसका भागना देख रहा था। वह नीचे आया और चीते से पूछा — “चीते जी। आप क्यों चिल्ला रहे हैं और क्यों इधर उधर भागे भागे फिर रहे हैं।”

चीता बोला — “मैं इसलिये चिल्ला रहा हूँ क्योंकि छोटे केंकड़े ने मेरी आँखें ले ली हैं और वह मुझे वापस नहीं दे रहा।”

गिद्ध बोला — “मैं आपको नयी आँखें ला कर दूँगा अगर आप मेरा खाना ढूँढने में मेरी सहायता करें तो।”

चीता तुरन्त ही इस बात पर राजी हो गया और गिद्ध दो ब्लूबैरीज़ लाने के लिये उड़ गया। जल्दी ही वह ब्लूबैरीज़ ले कर आ गया और चीते की आँखों के गड्ढों में लगा दीं। अब वह पहले की तरह से देखने लगा।

चीता बोला — “तुम्हारा बहुत बहुत धन्यवाद गिद्ध भाई। आज के बाद जब भी मैं या मेरे परिवार का कोई भी सदस्य कोई भी शिकार करेगा तो उसके ढाँचे का माँस और हड्डियाँ तुम्हारे और तुम्हारे परिवार के लिये छोड़ देगा।”

आज तक भी जब भी चीते या उसके परिवार वाले कोई शिकार करते हैं तो उसका कुछ हिस्सा गिद्ध के लिये छोड़ देते हैं। उधर आज तक केंकड़े भी चीते के डर से समुद्र के किनारे चट्टानों के नीचे छिपे रहते हैं।

(साभार सुषमा गुप्ता जी, जिन्होंने लोक-कथाओं पर उल्लेखनीय काम किया है.)

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