तीन अनारों से प्यार : इतालवी लोक-कथा
The Love of the Three Pomegranates : Italian Folk Tale
एक बार एक राजा का बेटा शाम को मेज पर बैठा खाना खा रहा था कि रिकोटा चीज़ काटते समय वह अपनी उंगली काट बैठा।
उस कटी हुई जगह से एक बूँद खून टपक कर चीज़ के ऊपर गिर गया। यह देख कर उसने अपनी माँ से कहा — “माँ मुझे दूध जैसी सफेद और खून जैसी लाल पत्नी चाहिये।”
माँ बोली — “क्यों मेरे बेटे। जो कोई लड़की इतनी गोरी होगी वह इतनी लाल नहीं होगी और जो इतनी लाल होगी तो वह इतनी गोरी नहीं होगी। पर फिर भी तुम दुनिया में घूमो और ऐसी लड़की की तलाश करो शायद तुमको ऐसी कोई लड़की मिल जाये।”
सो राजा का बेटा ऐसी दुलहिन ढूँढने चल दिया। कुछ दूर जाने के बाद उसको एक स्त्री मिली। उसने राजकुमार से पूछा — “ओ नौजवान, तुम कहाँ जा रहे हो?”
राजकुमार बोला — “मैं अपना भेद एक स्त्री पर प्रगट नहीं करता।” और यह कह कर वह आगे बढ़ गया।
आगे जा कर उसको एक बूढ़ा मिला। उसने भी राजकुमार से यही पूछा — “बेटे, तुम कहाँ जा रहे हो?”
राजकुमार बोला — “हाँ, मैं आपको तो यह बता सकता हूँ कि मैं कहाँ जा रहा हूँ। जनाब आप सुनें, मैं एक ऐसी लड़की की तलाश में हूँ जो दूध जैसी सफेद भी हो और खून जैसी लाल भी हो।”
बूढ़ा बोला — “बेटे, जो खून जैसी लाल होगी वह दूध जैसी सफेद नहीं होगी और जो दूध जैसी सफेद होगी तो वह खून जैसी लाल नहीं होगी।
खैर, तुम ऐसा करो कि तुम ये तीन अनार ले लो। इनको तोड़ना और देखना कि इनमें से क्या निकलता है। पर ध्यान रहे कि इनको किसी फव्वारे के या पानी के पास ही तोड़ना।”
राजकुमार ने उस बूढ़े से वे तीनों अनार ले लिये और आगे चल दिया। आगे चल कर एक फव्वारे के पास उसने उनमें से एक अनार तोड़ा तो उसमें एक लड़की निकली जो दूध जैसी सफेद और खून जैसी लाल थी।
वह लड़की निकलते ही चिल्लायी — “ओ नौजवान, मुझे पानी दो वरना मैं मर जाऊँगी।”
राजकुमार ने अपने दोनों हाथों को पानी में डुबो कर उनमें पानी भरा और उसको दिया पर वह सुन्दर लड़की यह कहते हुए कि उसको पानी देने में देर हो गयी वहीं मर गयी।
फिर उसने दूसरा अनार तोड़ा तो उसमें से एक और सुन्दर लड़की निकली। यह लड़की भी दूध की तरह सफेद और खून की तरह लाल थी। उसने भी निकलते ही कहा — “ओ नौजवान, मुझे पानी दो वरना मैं मर जाऊँगी।”
वह उसके लिये भी पानी ले कर आया पर फिर भी पानी लाने में उसको देर हो गयी और वह लड़की भी वहीं मर गयी। राजकुमार को बड़ा दुख हुआ सो अब की बार उसने तीसरा अनार तोड़ने से पहले ही फव्वारे से पानी ला कर रख लिया।
अब उसने तीसरा अनार तोड़ा तो उसमें से भी एक सुन्दर लड़की निकली। यह लड़की भी दूध की तरह सफेद और खून की तरह लाल थी। यह पिछली दोनों लड़कियों से ज़्यादा सुन्दर थी।
इस बार राजकुमार ने तुरन्त ही उसके मुँह पर पानी फेंका और वह ज़िन्दा रही। उसने कोई कपड़ा नहीं पहना हुआ था सो राजकुमार ने उसको अपना शाल ओढ़ा दिया।
फिर राजकुमार ने उस लड़की से कहा — “तुम इस पेड़ पर चढ़ जाओ तब तक मैं तुम्हारे पहनने के लिये कुछ कपड़े और तुमको ले जाने के लिये एक गाड़ी ले कर आता हूँ।”
यह कह कर वह राजकुमार तो चला गया और वह लड़की उस फव्वारे के पास लगे हुए एक पेड़ पर चढ़ कर बैठ गयी।
एक मुस्लिम खानाबदोश लड़की उस फव्वारे पर रोज पानी भरने आया करती थी। वह उस दिन भी वहाँ पानी भरने आयी। जैसे ही उसने अपना मिट्टी का घड़ा फव्वारे के पानी में पानी भरने के लिये डुबोया तो उस पानी में उसको उस लड़की के चेहरे की परछाईं दिेखायी दी।
उसको लगा कि वह परछाईं उसके अपने चेहरे की है सो वह एक लम्बी सी साँस भर कर बोली —
वह मैं जो खुद बहुत सुन्दर हूँ पानी का बरतन ले कर घर जाऊँ?
और यह कह कर उसने वह बरतन तुरन्त ही पानी में से निकाल लिया और जमीन पर पटक दिया। बरतन मिट्टी का था सो जमीन पर गिरते ही टूट गया। वह बिना पानी और बिना बरतन लिये ही घर चली गयी।
जब वह घर पहुँची तो उसकी मालकिन ने उसको खाली हाथ आते देख कर गुस्से से डाँटा — “ओ बदसूरत खानाबदोश, तेरी हिम्मत कैसे हुई बिना पानी लिये घर वापस आने की? और तू तो बरतन भी नहीं लायी? कहाँ है बरतन?”
सो उस खानाबदोश लड़की ने एक और मिट्टी का बरतन उठाया और फिर फव्वारे पर लौट गयी। जब वह अपने बरतन में फिर पानी भरने लगी तो फिर उसको वही परछाईं दिखायी दी। उसको फिर लगा कि वह अपने चेहरे की परछाईं पानी में देख रही है सो वह फिर बोली —
मैं इतनी सुन्दर और पानी का बरतन ले कर घर जाऊँ?
उसने फिर अपना मिट्टी का बरतन जमीन पर पटक दिया। वह बरतन भी मिट्टी का था सो वह भी जमीन पर गिरते ही टूट गया और वह फिर बिना पानी और बिना बरतन के घर चली गयी।
उसकी मालकिन ने फिर उसको इस तरह खाली हाथ आने और दो बरतन खोने के लिये बहुत डाँटा तो उसने फिर एक और बरतन उठाया और फिर पानी भरने के लिये फव्वारे पर चली गयी।
फिर उसने पानी लेने के लिये बरतन फव्वारे के पानी में डुबोया तो फिर उस लड़की की परछाईं पानी में देख कर फिर उसने वह बरतन तोड़ दिया।
अब तक वह लड़की पेड़ पर चुपचाप बैठी थी पर अब की बार जब उसने वह बरतन तोड़ा तो वह हँस पड़ी। उसकी हँसी की आवाज सुन कर उस खानाबदोश लड़की ने ऊपर की तरफ देखा तो वहाँ तो एक बहुत सुन्दर लड़की बैठी थी।
वह चिल्लायी — “ओह तो वह तुम हो। तुमने ही मेरे तीन बरतन तुड़वाये और यह चौथा भी तुड़वाने वाली थी। पर तुम वाकई बहुत सुन्दर हो। मुझे तुम्हारे बाल बहुत अच्छे लग रहे हैं। आओ तुम नीचे आओ मैं तुम्हारे बाल सँवार दूँँ।”
वह लड़की पेड़ से नीचे उतरना नहीं चाहती थी परन्तु बदसूरत खानाबदोश लड़की ने उससे पेड़ से नीचे उतरने की बहुत जिद की — “तुम मेरे पास आओ न, मैं तुम्हारे बाल बना दूँ। इससे तुम और भी ज़्यादा सुन्दर लगोगी।”
कहते हुए उस बदसूरत खानाबदोश लड़की ने उसको उसका हाथ पकड़ कर पेड़ से नीचे उतार लिया। उसने उसके बाल खोले तो उसको उसके बालों में लगी एक पिन दिखायी दे गयी। उसने वह पिन उस बेचारी लड़की के कान में ठूँस दी।
इससे उस लड़की के कान में से एक बूँद खून निकल कर नीचे गिर पड़ा और वह मर गयी। पर जब वह खून की बूँद जमीन पर पड़ी तो वह एक कबूतरी बन गयी और उड़ गयी।
इस तरह उस लड़की को मार कर और उसके कपड़े पहन कर वह बदसूरत खानाबदोश लड़की खुद पेड़ पर चढ़ कर बैठ गयी।
थोड़ी देर में राजकुमार गाड़ी और कपड़े ले कर वापस आ गया और बदसूरत खानाबदोश की तरफ आश्चर्य से देख कर बोला — “अरे तुम तो दूध जैसी सफेद और खून जैसी लाल थीं। तुम इतनी साँवली कैसे हो गयीं?”
बदसूरत खानाबदोश लड़की बोली — “जब सूरज बाहर निकला तो धूप की वजह से मैं साँवली पड़ गयी।”
“पर तुम्हारी तो आवाज भी बदली हुई है, वह कैसे बदल गयी?
इसके जवाब में वह खानाबदोश लड़की बोली — “हवा ज़ोर से चली और उसी ने मेरी आवाज ऐसी कर दी।”
“पर तुम तो बहुत सुन्दर थीं और अब तो तुम बहुत ही बदसूरत लग रही हो।”
इसके जवाब में वह बोली — “तभी ठंडी हवा चली जिसने मेरे चेहरे को जमा दिया।”
इन जवाबों से राजकुमार को विश्वास हो गया कि वह वही लड़की थी जिसको वह छोड़ कर गया था और वह उसको गाड़ी में बिठा कर अपने घर ले गया। महल में आ कर राजकुमार ने उससे शादी कर ली। अब वह राजकुमार की पत्नी बन गयी।
उधर वह कबूतरी रोज सुबह राजकुमार के शाही रसोईघर की खिड़की पर आ कर बैठ जाती और रसोइये से कहती — “ओ शापित रसोईघर के रसोइये, तू मुझे बता कि राजकुमार इस समय उस बदसूरत खानाबदोश लड़की के साथ क्या कर रहा है?”
शाही रसोइया जवाब देता — “वह खाता है, पीता है और सो जाता है, बस।”
कबूतरी फिर कहती — “तू मुझे थोड़ा सा सूप दे दे तो मैं तुझे सोने के आलूबुखारे दूँगी।”
रसोइया उसको एक कटोरा भर के सूप देता और वह कबूतरी सूप पी कर अपने को हिला डुला कर अपने कुछ सोने के पंख गिरा देती और उड़ जाती।
पर अगली सुबह वह फिर आ जाती और फिर रसोइये से पूछती — “ओ शापित रसोईघर के रसोइये, तू मुझे बता कि राजकुमार इस समय उस बदसूरत खानाबदोश लड़की के साथ क्या कर रहा है?”
शाही रसोइया फिर वही जवाब देता — “वह खाता है, पीता है और सो जाता है, बस।”
कबूतरी फिर कहती — “तू मुझे थोड़ा सा सूप दे दे तो मैं तुझे सोने के आलूबुखारे दूँगी।”
रसोइया फिर उसको एक कटोरा भर के सूप देता, वह उस सूप को पीती और फिर अपने को हिला डुला कर अपने कुछ सोने के पंख गिरा देती और उड़ जाती।
कुछ समय बाद रसोइये ने सोचा कि वह राजा के पास जा कर यह सब राजा को बताये। सो वह राजा के पास गया और उसने जा कर उसको सारी कहानी सुनायी।
राजा ने उसकी कहानी ध्यान से सुनी और बोला — “कल जब वह कबूतरी तुम्हारे पास आये तो उसको पकड़ लेना और मेरे पास ले आना। मैं उसको अपने पास रखूँगा।”
बदसूरत खानाबदोश लड़की उन दोनों की बात सुन रही थी। वह यह जान गयी कि उसने उस कबूतरी को वहाँ से उड़ जाने देने की गलती कर ली थी। पर अब वह क्या करे?
सो अगले दिन सुबह जब वह कबूतरी खिड़की पर आ कर बैठी तो उस खानाबदोश लड़की ने रसोइये को खूब पीटा और उस कबूतरी के शरीर में लोहे की एक सलाई घुसा कर उसे मार डाला।
इससे कबूतरी तो मर गयी पर उसके खून की एक बूँद खिड़की के बाहर जमीन पर गिर पड़ी। उस बूँद से तुरन्त ही वहाँ अनार का एक पेड़ उग आया।
अनार के इस पेड़ में एक जादू था कि जो भी मर रहा हो अगर वह इस पेड़ का एक अनार खा ले तो वह ज़िन्दा हो जाता था। इस लिये उस बदसूरत खानाबदोश लड़की के पास उस पेड़ का एक अनार लेने के लिये एक लम्बी लाइन लगी रहती।
आखीर में उस पेड़ के सब अनार खत्म हो गये और उस पेड़ पर केवल एक अनार रह गया। वह अनार उन सब अनारों में सबसे बड़ा था जो उस पेड़ पर पहले लगे थे। सो उस खानाबदोश लड़की ने सबको यह कह दिया कि अब इस पेड़ के सारे अनार खत्म हो गये हैं और अब यह आखिरी अनार मैं अपने लिये रखूँगी।
एक दिन एक बुढ़िया वहाँ आयी और उस खानाबदोश लड़की से बोली — “रानी जी, मेहरबानी करके यह अनार मुझे दे दीजिये। मेरे पति की हालत बहुत खराब है। अगर यह अनार आप मुझे दे देंगी तो मेरे पति बच जायेंगे।”
वह खानाबदोश लड़की बोली — “अब इस पेड़ पर बस यह एक ही अनार बचा है और इसको अब मैंने सजावट के लिये यहाँ रखा हुआ है।”
पर राजकुमार ने उसको ऐसा करने से मना किया। वह बोला — “उस बेचारी बुढ़िया के पति की हालत बहुत खराब है। तुमको उसको अनार देने से मना नहीं करना चाहिये।”
इस तरह राजकुमार ने उस खानाबदोश लड़की से उस आखिरी अनार को उस बुढ़िया को दिलवा दिया। बुढ़िया खुशी खुशी वह अनार ले कर घर चली गयी।
पर घर जा कर उसने देखा कि उसका पति तो तब तक मर गया था। उसने सोचा “तो अब मैं इस अनार को सजावट के लिये ही रख लेती हूँ” और वह उसने एक खुली आलमारी में रख दिया। उस अनार में वह लड़की रहती थी।
वह बुढ़िया रोज “मास” पढ़ने चर्च जाती थी। जब वह मास पढ़ने के लिये चली जाती तो वह लड़की उस अनार में से निकलती।
वह उस बुढ़िया के लिये आग जलाती, उसका घर साफ करती और उसके लिये खाना बनाती। खाना बना कर उसको उसकी खाने की मेज पर लगाती और यह सब करके वह फिर अपने अनार में चली जाती।
वह बुढ़िया जब घर वापस आती तो अपना घर ठीक ठाक पा कर और अपने लिये खाना बना देख कर बहुत चकित होती। एक दिन वह चर्च के कनफैशन के कमरे में गयी और अपने कनफैशन सुनने वाले से जा कर उसे सब कुछ बताया।
वह बोला — “तुम ऐसा करो कि कल तुम मास जाने का केवल बहाना बनाओ पर अपने घर में या फिर अपने घर के आस पास ही कहीं छिप जाओ और फिर देखो कि तुम्हारे घर में क्या क्या होता है। इस तरीके से तुम जान पाओगी कि तुम्हारे घर में यह सब काम कौन करता है।”
अगले दिन उस कनफैशन सुनने वाले की सलाह मान कर उस बुढ़िया ने मास जाने का केवल बहाना ही किया। वह घर के बाहर तक गयी और दरवाजे के बाहर तक जा कर रुक गयी और एक ऐसी जगह जा कर खड़ी हो गयी जहाँ से वह अपना घर अच्छी तरह से देख सकती थी।
उसके जाने के बाद वह लड़की रोज की तरह अपने अनार में से निकली और उस बुढ़िया के घर का काम करना शुरू कर दिया।
तभी वह बुढ़िया घर के अन्दर आ गयी। बुढ़िया को देख कर वह लड़की अपने अनार के अन्दर घुसने की कोशिश करने लगी पर उस बुढ़िया ने उसे अनार के अन्दर जाने से पहले ही पकड़ लिया।
बुढ़िया ने पूछा — “तुम कहाँ से आयी हो?”
वह लड़की बोली — “भगवान आपको सुखी रखे, मुझे मारना नहीं, मुझे मारना नहीं।”
बुढ़िया प्यार से बोली — “मैं तुमको मारूँगी नहीं पर मैं यह जानना चाहती हूँ कि तुम आयी कहाँ से हो?”
लड़की बोली — “मैं इस अनार के अन्दर रहती हूँ।”
और उसने बुढ़िया को अपनी सारी कहानी सुना दी।
उसकी कहानी सुन कर उस बुढ़िया ने उसको अपने जैसी किसान लड़की की पोशाक पहनायी क्योंकि इस लड़की ने अभी भी कपड़े नहीं पहन रखे थे।
अगले रविवार को वह उसको मास के लिये चर्च ले गयी। वहाँ पर राजकुमार भी आता था। उसने उस लड़की को देखा तो उसके मुँह से निकला — “हे भगवान, मुझे तो अपनी आँखों पर विश्वास ही नहीं हो रहा कि यह वही लड़की है जिससे मैं फव्वारे पर मिला था।”
सो मास खत्म हो जाने के बाद उसने चर्च के बाहर उस बुढ़िया का इन्तजार करने का निश्चय किया। जब वह बुढ़िया चर्च के बाहर निकली तो राजकुमार ने उससे पूछा — “मुझे सच सच बताइये माँ जी कि यह लड़की आपके पास कहाँ से आयी?”
“सरकार मुझे मारियेगा नहीं।”
राजकुमार बहुत बेचैनी से बोला — “नहीं नहीं, मैं आपको बिल्कुल नहीं मारूँगा। बस आप मुझे यह बता दें कि यह लड़की आपके पास आयी कहाँ से?”
बुढ़िया फिर भी डरते डरते बोली — “यह लड़की उस अनार में से निकली है जो आपने मुझे दिया था।”
राजकुमार फिर बोला — “तो यह भी अनार में थी?”
फिर वह उस लड़की से बोला — “पर तुम इस अनार में घुसी कैसे?”
इस पर उसने राजकुमार को अपनी सारी कहानी सुना दी। राजकुमार उस लड़की को ले कर महल वापस लौटा और सीधा उस खानाबदोश लड़की के पास गया। उसने उस अनार वाली लड़की से उस खानाबदोश लड़की के सामने एक बार फिर अपनी कहानी सुनाने को कहा।
जब अनार वाली लड़की ने अपनी कहानी खत्म कर दी तो राजकुमार ने खानाबदोश लड़की से कहा — “सुना तुमने? मैं अपने हाथों से तुमको मारना नहीं चाहता इसलिये अच्छा है कि तुम खुद ही मर जाओ।”
खानाबदोश लड़की ने देखा कि अब कोई और रास्ता नहीं रह गया है तो वह बोली “मेरे अन्दर लोहे की एक सलाई घुसा दो और मुझे शहर के चौराहे पर जला दो तो मैं मर जाऊँगी।” ऐसा ही किया गया।
इसके बाद राजकुमार ने उस अनार वाली लड़की से शादी कर ली और दोनों बहुत दिनों तक खुशी खुशी रहे।
(साभार : सुषमा गुप्ता)