ज़ोर से बोलने वाली स्त्री : चीनी लोक-कथा

The Loud-Mouthed Woman : Chinese Folktale

नरक का देवता उन सब भूतों की देख भाल करता था जो नरक में रहते थे। पर यह काम उसके लिये बड़ा अजीब सा काम था क्योंकि उसको यहाँ कोई खास काम नहीं था और उसको समय बिताना भी बहुत मुश्किल था।

वह अक्सर खाली ही रहता था क्योंकि नरक ठंडा और अँधेरा था और वहाँ कोई कोई कभी कभी ही आता था।

एक दिन वह नरक का देवता मरे हुए लोगों के जज के पास गया और उससे उसने प्रार्थना की कि वह और ज़्यादा लोगों को भूत में बदले ताकि वहाँ उसके लिये कुछ काम तो हो और उसका समय भी ठीक से बीते।

सो मरे हुए लोगों के जज ने नरक के देवता की बात मानी और उसने अपने एक बहुत ही चालाक भूत को धरती पर भेजा और उससे कहा कि वह जितने लोगों को भी मार सके उतने लोगों को मार कर नरक भेज दे।

चालाक भूत ने उसका हुक्म माना और लोगों को भूत बनाने के लिये धरती की तरफ चल दिया।

जब वह चालाक भूत धरती पर पहुँचा तो वह सबसे पहले एक खेत पर गया जो एक वौंग फू नाम की स्त्री का था। वहाँ वह रसोईघर में अपना खाना बना रही थी।

जब वह खाना बना रही थी तो वह भूत उसके मुर्गीखाने में घुस गया और उसकी सारी मुर्गियों को उसमें से निकाल निकाल कर बाहर उड़ा दिया। जब वौंग फू ने देखा कि उसकी सारी मुर्गियाँ खेत में चारों तरफ उड़ गयीं तो वह उनका पीछा करने के लिये उनके पीछे पीछे भागी।

पर मुर्गियाँ तो अब आजाद थीं और अपनी आजादी कौन छोड़ता है सो वे भी उस भूत की सहायता से वौंग फू से एक कदम आगे ही भागती रहीं। पीछा करते करते वौंग फू बहुत थक गयी और दिल का दौरा पड़ जाने की वजह से गिर कर मर गयी। वह भूत उस स्त्री को उठा कर मरे हुए लोगों के जज के पास ले आया और मरे हुए लोगों के जज ने उसको वहाँ से नरक भेज दिया।

वह भूत फिर धरती पर वापस लौट गया और अबकी बार वह एक अमीर आदमी के घर पहुँचा। वह आदमी रोज तीसरे पहर को अपने पैसे गिना करता था। वह भूत जा कर उसके पास बैठ गया और उसने उसके सोने चाँदी के सिक्के खिड़की से बाहर सड़क पर जाने वालों के सिर पर फेंकने शुरू कर दिये।

उस अमीर आदमी ने उन सिक्कों को पकड़ने की बहुत कोशिश की पर वे उसके हाथ से ऐसे फिसल जाते थे जैसे तेल लगी मछली। इस तरह से उसके पास से सारा पैसा चला गया।

जब उसके हाथ से सारा पैसा चला गया तो वह बहुत दुखी हो कर अपना दिल पकड़ कर कुर्सी में बैठ गया। उसको भी दिल का दौरा पड़ गया था और वह भी वहीं कुर्सी में बैठे बैठे मर गया तो वह भूत उसको भी नरक ले गया।

वह चालाक भूत अब अपनी सफलता पर बहुत खुश हुआ और अब जहाँ भी उसको मौका लगा उसने और दूसरे लोगों को भी तंग करना और डराना जारी रखा।

कभी कभी तो उसको केवल अपना काला बदसूरत चेहरा और बड़े बड़े पीले दाँत ही दिखाने की जरूरत पड़ती और लोग उनको देखते ही मर जाते। इस तरह एक हफ्ते में तो नरक के कमरों में बहुत सारे भूत भर गये और नरक के देवता के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गयी।

इससे पहले कि यह चालाक भूत वापस नरक लौटता इस भूत की सफलता को देख कर इसको कुछ और लोग लाने के लिये एक हफ्ता और दिया गया। यह देख कर इस भूत ने इस हफ्ते में पिछले हफ्ते से भी ज़्यादा लोगों को मारने का इरादा किया।

एक सुबह जब वह गाँवों में से हो कर गुजर रहा था तो उसको गर्म गर्म चर्बी बनाने की खुशबू आयी। वह उस खुशबू के पीछे पीछे चल दिया तो एक रसोईघर में आया जहाँ एक स्त्री अपने परिवार के लिये दोपहर का खाना बना रही थी।

वह स्त्री लम्बी, मजबूत और अच्छी हड्डियों वाली थी। गाँव भर में वह ज़ोर से बोलने वाल्ी स्त्री के नाम से जानी जाती थी। जब भूत ने देखा कि वह स्त्री उस चर्बी को एक मिट्टी के बर्तन में पलटने वाली थी तो वह उधर उसका एक घूँट पीने के लिये दौड़ा। पर उसके वहाँ पहुँचने से पहले ही उसने वह बर्तन बन्द कर दिया था।

गुस्से में आ कर उसने अपना पैर पटका और अपने आपसे ही बोला — “उँह यह तो बहुत ही मतलबी ज़ोर से बोलने वाली स्त्री है। सजा के तौर पर मैं इसके चेहरे पर गर्म तेल छिड़कने वाला हूँ जिससे यह जल कर मर जायेगी।”

जैसे ही वह भूत तेल का एक लोटा उसके चेहरे पर छिड़कने के लिये तैयार हुआ कि एक लड़का दौड़ता हुआ उस घर में घुसा। उस लड़के के चेहरे पर बहुत सारी कीचड़ लगी हुई थी।

उसको देख कर वह स्त्री चिल्लायी — “ज़रा अपना यह गन्दा काला चेहरा तो देख। मैंने तुझसे हजारों बार कहा है कि तू कीचड़ में न खेला कर पर तू है कि सुनता ही नहीं।”

बच्चा यह सुन कर रोने लगा तो स्त्री थोड़ी मुलायम पड़ गयी और हँसते हुए बोली — “ठीक है। चल यहाँ बैठ। मैं अमी तेरे नहाने के लिये पानी गर्म करती हूँ। गर्म पानी से नहा कर तेरा सारा शरीर साफ हो जायेगा।”

जब भूत ने यह सुना तो उसने सोचा शायद वह स्त्री यह सब उसी से कह रही है। तो वह तो यह सुन कर डर के मारे काँपने लगा।

वह पानी से ज़्यादा किसी और चीज़ से नहीं डरता था सो उसने उस स्त्री की तरफ दोबारा देखा भी नहीं और अपने हाथ में लिया हुआ तेल का लोटा नीचे रखा और नरक की तरफ भाग लिया। हाँफते हुए उसने मरे हुए लोगों के जज को उस स्त्री के बारे में बताया जो उसको गर्म पानी में उबालने वाली थी। जज ने धीरज से उसकी बात सुनी और उसको आराम करने के लिये नरक भेज दिया।

जज ने सोचा कि वह इस ज़ोर से बोलने वाली स्त्री को खुद जा कर देखेगा कि वह वाकई वह स्त्री इतनी खतरनाक है या नहीं जितना खतरनाक कि वह भूत उसको बता रहा था।

जब मरे हुए लोगों का जज उस स्त्री के घर पहुँचा तो उसने अपने आपको एक लकड़ी के लठ्ठे के रूप में बदल लिया और उसके घर की देहरी57 पर जा कर लेट गया।

वहाँ से उसने उस स्त्री को उसके नाम से बुलाया तो वह स्त्री अन्दर से बाहर दौड़ी आयी। पर जैसे ही वह अपने दरवाजे पर आयी तो वहाँ लकड़ी का एक लठ्ठा देख कर अचानक रुक गयी और ज़ोर से बोली कि यह लकड़ी का लठ्ठा वहाँ दरवाजे पर किसने डाला।

पर वहाँ उसकी बात का जवाब देने वाला तो कोई था नहीं सो उसने अपने पति को बुलाया। उसकी कड़कती आवाज सुन कर तो वह मरने वालों का जज भी काँप गया। पर उसका पति बेचारा तुरन्त ही उसकी पुकार पर दौड़ा चला आया।

उसने अपने पति से कहा — “इस लकड़ी को तुरन्त ही काट दो ताकि हम इसको आज के रात का खाना बनाने के लिये इस्तेमाल कर सकें।” कह कर उसने पैर मार कर उस लठ्ठे को एक तरफ को हटा दिया और रसोईघर में चली गयी।

यह सुन कर उसका पति भी तुरन्त ही एक कुल्हाड़ी लाने के लिये अन्दर चला गया। पति के जाने के बाद मरे हुए लोगों का जज तुरन्त ही अपने असली रूप में आ गया और अपने घायल शरीर को सहलाने लगा।

इससे पहले कि वह स्त्री उसको फिर से मारती वह उड़ कर अपने नरक भाग गया जहाँ जा कर उसने अपनी कहानी नरक के देवता को सुनायी।

नरक के देवता ने इस स्त्री के बारे में अपने चालाक भूत के मुँह से पहले से ही बहुत कुछ सुन रखा था। और अब इस मरे हुए लोगों के जज के मुँह से उसकी कहानी सुन कर तो उसको बहुत ही आनन्द आया कि उस जज को भी उससे परेशानी हुई।

नरक के देवता ने मरे हुए हुए लोगों के जज से कहा — “मुझे पता नहीं कि तुम्हारे दिमाग में क्या घुस गया है पर तुम्हारी रिपोर्ट से तो ऐसा लगता है कि जैसे इस स्त्री के तीन सिर हैं और छह बाँहें हैं।

मुझे लगता है कि इस स्त्री को मुझे खुद ही देखना पड़ेगा। मुझे यकीन है कि मैं उसको एक ही दिन में नरक ले आऊँगा।” और यह सोच कर नरक का देवता खुद ही धरती की तरफ चल दिया।

जब वह धरती पर पहुँचा तो शाम हो चुकी थी। उसने अपने आपको एक साये में बदल लिया ताकि वह उस ज़ोर से बोलने वाली स्त्री के घर में चुपचाप घुस सके।

उस समय सारा परिवार शाम के खाने के लिये इकठ्ठा हुआ था सो वह एक सुरक्षित जगह ढूँढने लगा जहाँ वह आराम से छिप सके। वहीं रसोईघर के एक कोने में घोंघों से भरा एक मिट्टी का बर्तन रखा था सो नरक के देवता ने अपने आपको एक मोटे से घोंघे में बदला और जा कर उस घोंघों वाले बर्तन में बैठ गया।

वहाँ बैठे बैठे वह यह सोचता रहा कि वह उस स्त्री को कैसे मारेगा। तभी उसने उस स्त्री को अपने बेटे से यह कहते हुए सुना कि वह उसको उस मिट्टी के बर्तन में से एक कटोरा मोटे वाले घोंघे ला कर दे।

लड़का उठा और उसने माटे मोटे घोंघे ढूँढने के लिये उस मिट्टी के बर्तन में अपना हाथ डाल दिया और वह उसमें से मोटे मोटे घोंघे ढूँढने लगा। उस बच्चे के हाथ उसके शरीर से कई बार छुए तो वह पास पड़े घोंघों के नीचे और नीचे घुसता गया।

आखिर उस बच्चे ने कुछ घोंघे उठाये और वहाँ से चला गया और वह नरक का देवता अपने आपको खुशकिस्मत समझते हुए कि मैं बच गया उड़ कर वहाँ से अपने घर नरक चला गया।

जब नरक के देवता ने उस चालाक भूत और मरे हुए लागों के जज को उस स्त्री के बारे में बताया तब भी उसकी साँस ठीक से नहीं आ रही थी और वह काँप रहा था।

वह बोला — “अब मुझे पता चला कि तुम लोगों का क्या मतलब था। मुझे लगता है कि मैं बहुत खुशकिस्मत हूँ कि मैं वहाँ से बच कर आ गया हूँ। मुझे लगता है कि वह इस तरह की स्त्री नहीं है इसलिये हमको उसको छोड़ देना चाहिये।”

मरे हुए लोगों का जज तो इस बात पर राजी हो गया पर वह चालाक भूत उस ज़ोर से बोलने वाली स्त्री को मारने पर तुला हुआ था।

उसको लगा कि जब तक वह उसको मार नहीं लेगा उसको चैन नहीं मिलेगा सो जब उसे कोई नहीं देख रहा था तो वह वहाँ से धरती पर जाने के लिये खिसक गया और उस स्त्री के घर पहुँच गया।

अबकी बार वहाँ जा कर उसने उस स्त्री के बदकिस्मत पति को पकड़ लिया और घसीट कर उसको लकड़ी के एक कमरे में बन्द कर दिया।

फिर वह उसके पति की शक्ल में आ गया और अपनी उसी शक्ल में वह उस स्त्री के पलंग पर जा कर लेट गया। उसने सोचा कि वह स्त्री अभी सोने आयेगी तब वह उसे देख लेगा।

पलंग पर लेट कर वह उसकी पत्नी का इन्तजार करने लगा। वह वहाँ बहुत देर तक इन्तजार करता रहा पर वह स्त्री वहाँ नहीं आयी।

बहुत देर तक इन्तजार करने के बाद भी जब वह स्त्री अपने सोने के कमरे में नहीं आयी तो उसे उसको ढूँढने के लिये मजबूरन उस कमरे के बाहर जाना पड़ा।

ढूँढते ढूँढते वह उसको रसोईघर में मिली। उसने देखा कि वह रसोईघर में अपने पैर धो रही थी। वह उसको देख कर बहुत खुश हुआ और दबे पाँव उसके पीछे जा कर उसके कन्धे पर अपना हाथ रख दिया।

फिर वह अपनी सबसे ज़्यादा मीठी आवाज में बोला — “लाओ मैं तुम्हारे पैर धो दूँ। सारा दिन काम करते करते तुम थक गयी होगी। मैं तुम्हारे शरीर में तेल भी लगा दूँगा ताकि तुम्हारी खाल चिकनी हो जाये।”

उस भूत ने महसूस किया कि उस स्त्री के कन्धे काँप रहे थे। तो बजाय इसके कि वह मुस्कुरा कर पीछे को तरफ घूमती उसने पानी की बालटी उठायी और घूम कर उस भूत के ऊपर उस बालटी का पानी डाल दिया। फिर वह रसोईघर का दरवाजा ज़ोर से बन्द करती हुई रसोईघर से बाहर निकल गयी।

पानी के शरीर पर पडते ही उस भूत ने एक ज़ोर की चीख मारी क्योंकि उस पानी से उसका शरीर पिघलने लगा था। नरक के देवता ने उसकी वह चीख सुन ली और तुरन्त ही उसने उस भूत को नरक लाने के लिये दो और भूत धरती पर भेज दिये। वे दो भूत उस चालाक भूत को उठा कर नरक ले आये।

जब वह कुछ सँभला तो नरक के देवता ने उसको और दूसरे भूतों को बुला कर एक मीटिंग की। उस मीटिंग में उसने कहा — “बस बहुत हो गया। अब तुम लोग उस स्त्री को छोड़ दो। मुझे उसकी आवाज अब बिल्कुल भी नहीं सुननी।

और उसके जैसी अगर कोई दूसरी स्त्रियाँ हैं भी तो भी तुम लोगों के लिये अब सबसे अच्छा तो यही है कि तुम लोग आदमियों की दुनियाँ ही छोड़ दो।”

सब भूत इस बात पर राजी हो गये और बस उसके बाद भूतों और मरे हुए लोगों के जज ने लोगों को फिर कभी परेशान नहीं किया।

(साभार सुषमा गुप्ता जी, जिन्होंने लोक-कथाओं पर उल्लेखनीय काम किया है.)

  • चीन की कहानियां और लोक कथाएं
  • भारतीय भाषाओं तथा विदेशी भाषाओं की लोक कथाएं
  • मुख्य पृष्ठ : संपूर्ण हिंदी कहानियां, नाटक, उपन्यास और अन्य गद्य कृतियां