छोटा आधा-मुर्गा : स्पेनी लोक-कथा

The Little Half-Chick : Spanish Folk Tale in Hindi

स्पेन में एक मुर्गी सुबह से अपने बड़े से घोंसले में अपने बहुत ही खास अंडों के ऊपर बैठी हुई थी।

वे अंडे खास इसलिये थे क्योंकि ये अंडे वह पहली बार से रही थी। इससे पहले उसके अंडे एक किसान ले जाया करता था और उसका अपना बच्चा कहने के लिये कोई नहीं था।

सुबह ही उसके एक अंडे में से एक बच्चा निकला था। वह बहुत ही प्यारा चूज़ा था छोटे छोटे पंखों से ढका हुआ। उसके बाद उसके और भाई बहिन भी आना शुरू हो गये।

उसके सब बच्चे पहले बच्चे के बराबर ही सुन्दर थे और वह मुर्गी अपने बच्चों को देख कर बहुत खुश थी।

अब वह अपने आखिरी अंडे पर बैठी हुई थी कि उसने उसके लुढ़कने की आवाज सुनी और साथ में अन्दर से खट खट की आवाज भी।

और फिर वह अंडा टूट गया और बच्चे की चोंच का आखिरी हिस्सा उसको दिखायी दिया। जैसे जैसे वह बच्चा उस अंडे में से बाहर निकलता रहा धीरे धीरे उस अंडे का खोल टूटता रहा। और उसके बाद माँ ने बच्चे की “पीप” की आवाज सुनी।

पर उस बच्चे को देख कर माँ मुर्गी की खुशी चिन्ता में बदल गयी क्योंकि यह बच्चा उसके और सब बच्चों से अलग था। वह अभी भी उसके पंखों के नीचे था।

यह चूज़ा ऐसा लग रहा था जैसे कि वह दो हिस्सों में बँटा हुआ हो। क्योंकि वह केवल आधा ही चूज़ा था। उसकी केवल एक टाँग थी, एक पंख था और एक आँख थी।

उसने सोचा — “ओह बेचारा मेरा बच्चा, यह तो केवल आधा ही चूज़ा है। यह तो कभी ठीक से बड़ा भी नहीं होगा और कभी अपने दूसरे भाइयों और बहिनों जैसा भी नहीं हो पायेगा।

इसके भाई बहिन तो अपने आप खेतों आदि में खूब दौड़ेंगे पर इसको हमेशा ही घर के आस पास ही रहना पड़ेगा जहाँ मैं उसकी देखभाल कर सकूँ।”

उसको देख कर वह बहुत दुखी हो गयी पर वह क्या करती। वह उसको हमेशा आधा चूज़ा कह कर ही बुलाती।

हालाँकि वह आधा चूज़ा देखने में बहुत अजीब सा और मजबूर सा लगता पर वह अपनी माँ की देखभाल में नहीं रहना चाहता था। वह अपनी मरजी की करता था और माँ का कहा नहीं मानता था।

जब माँ और सब चूज़ों को बुलाती तो वे सब उसके पास तुरन्त ही आ जाते पर वह आधा चूज़ा जब उसकी इच्छा होती तभी आता और बाकी समय उसकी आवाज को अनसुना कर देता।

वह यह दिखाने के लिये एक तरफ को घूम जाता कि क्योंकि उसका एक ही कान था इसलिये उसने उसकी आवाज सुनी ही नहीं।

जब उसकी माँ अपने बच्चों को ले कर घूमने निकलती तो आधा चूज़ा कहीं झाड़ी में छिप जाता या फिर किसी मक्की के खेत में छिप जाता।

इससे सब चिन्ता में पड़ जाते कि वह आधा चूज़ा कहाँ गया पर माँ मुर्गी का दिल कभी उसको सजा देने को नहीं करता। ना ही वह कभी उससे गुस्सा होती।

उसको हमेशा ही ऐसा लगता कि उसकी यह हालत केवल उसकी अपनी वजह से थी क्योंकि उसने उसको अपना कहना मानना नहीं सिखाया था। और इसी लिये उसका बरताव दिन पर दिन और बुरा होता जा रहा था।

वह आधा चूज़ा जिस किसी से भी मिलता उसी के साथ बुरा बरताव करता और इस तरह से वह किसी को भी अच्छा नहीं लगता था। वह दूसरे चूज़ों और जानवरों से लड़ता भी बहुत था।

जब माँ मुर्गी अपने दूसरे चूज़ों को बाहर घुमाने ले जाती तो वह गायब हो जाता जिससे उसकी माँ को चिन्ता हो जाती।

उसके भाई बहिन यह सोचते कि शायद वह हमेशा के लिये ही गायब हो गया हो और फिर वापस न आये खास करके जब जबकि उनकी माँ हमेशा उनको यह याद दिलाती रहती कि वह एक खास चूज़ा है और उससे कोई आशा रखना बेकार है।

पर उसके अन्दर खास चीज़ केवल एक यही थी कि वह बहुत नीच था नहीं तो वह आधा चूज़ा सबके साथ मिल कर रहता।

एक बार वह आधा मुर्गा खेतों से मुर्गीखाने में आया और अपनी माँ से बोला — “माँ, मैं इस मुर्गीखाने और यहाँ की हर चीज़ से थक गया हूँ सो मैं मैड्रिड जा रहा हूँ राजा के पास, उसके महल में रहने के लिये।

मेरे जैसे खास मुर्गे को खास जगह पर ही रहना चाहिये। तुम देखना कि एक दिन मैं इतना बड़ा हो जाऊँगा कि सब मेरे नीचे होंगे।”

उसकी माँ बोली — “बेटे, तुम मैड्रिड नहीं जा सकते। मैड्रिड बहुत दूर है। तुम्हारे केवल एक ही टाँग है और एक ही पंख है। तुम वहाँ तक जाते जाते थक जाओगे।”

हालाँकि उसके भाई बहनों को यह सब बिल्कुल भी अच्छा नहीं लग रहा था जैसा कि वह कर रहा था पर फिर भी उन्होंने उससे रुक जाने के लिये कहा और उनकी अन्दर से भी यही इच्छा थी कि उसको कोई नुकसान न पहुँचे।

पर वह आधा मुर्गा तो किसी की सुन ही नहीं रहा था। वह बोला — “देखना, मैं किसी दिन तुम सबको महल में बुला लूँगा।” और वह अपनी एक टाँग पर कूदता हुआ और अपना एक पंख फड़फड़ाता हुआ वहाँ से चल दिया।

पीछे से उसकी माँ चिल्लायी — “सबके साथ अच्छी तरह से रहना बेटे।”

पर जैसी कि उसकी आदत थी वह तो अपने आप में ही खोया रहता था और इस समय तो वह वैसे भी जल्दी में था। उसने तो पीछे मुड़ कर बाई-बाई कहने की भी चिन्ता नहीं की।

चलते चलते वह एक छोटे नाले के पास से गुजरा। उस नाले में बहुत सारी घास और पानी के पौधे उग आये थे जिससे उसके पानी का बहाव कुछ रुक सा गया था।

उस नाले का पानी बोला — “ओ आधे मुर्गे, क्या तुम मेहरबानी करके मेरे अन्दर से ये घास और पौधे बाहर निकाल दोगे ताकि में ठीक से बह सकूँ? मेहरबानी करके मेरी सहायता करो। अगर तुम आज मेरी सहायता करोगे तो किसी दिन मैं भी तुम्हारी सहायता करूँगा।”

आधा मुर्गा बोला — “मुझे किसी की सहायता की जरूरत नहीं है। मैं तुम्हारी सहायता में अपना समय बरबाद नहीं कर सकता। मैं तो राजा को मिलने के लिये मैड्रिड जा रहा हूँ। तुम यह सब कूड़ा अपने आप ही निकाल लो।”

और वह चलता चला गया कूदता और अपने पंख फड़फड़ाता हुआ राजा को देखने के लिये।

कुछ देर बाद वह एक आग के पास आ पहुँचा जिसको कैम्प लगाने वाले जंगल में जलता छोड़ गये थे। वह अब बहुत धीरे धीरे जल रही थी और बस अब बुझने ही वाली थी।

उसने आधे मुर्गे को वहाँ से जाते देखा तो चिल्लायी — “ओ आधे मुर्गे, मेहरबानी करके मेरी सहायता करो। क्या तुम मेरे अन्दर कुछ लकड़ियाँ नहीं डालोगे?

अगर तुम ऐसा नहीं करोगे तो मैं बुझ जाऊँगी। और अगर तुम कुछ लकड़ी मेरे अन्दर डाल दोगे तो मैं किसी दिन तुम्हारे काम आऊँगी।”

आधा मुर्गा बोला — “मुझे किसी की सहायता की जरूरत नहीं है। मैं तुम्हारी सहायता में अपना समय बरबाद नहीं कर सकता। मैं तो राजा से मिलने के लिये मैड्रिड जा रहा हूँ। तुम अपने लिये लकड़ियाँ अपने आप इकठ्ठी कर लो।”

और वह चला गया कूदता और अपने पंख फड़फड़ाता हुआ राजा को देखने के लिये। उसके बाद चलते चलते वह एक पेड़ के पास आ पहुँचा। आधे मुर्गे ने उसमें से आती हुई एक कराह की आवाज सुनी।

जब उसने ऊपर की तरफ देखा तो देखा कि हवा उस पेड़ की शाखाओं में उलझ कर रह गयी है।

हवा बोली — “ओ आधे मुर्गे, मैं यहाँ इस पेड़ की शाखाओं में अटक गयी हूँ। मेहरबानी करके यहाँ ऊपर आ कर इन शाखाओं को ज़रा हटा दो ताकि मैं यहाँ से निकल जाऊँ। इसके बदले में मैं एक दिन तुम्हारी सहायता जरूर करूँगी।”

आधा मुर्गा बोला — “मुझे किसी की सहायता की जरूरत नहीं है। मैं तुम्हारी सहायता में अपना समय बरबाद नहीं कर सकता। मैं तो राजा से मिलने के लिये मैड्रिड जा रहा हूँ। तुम ये शाखाएँ अपने आप हटा लो।”

और वह चला गया कूदता और अपने पंख फड़फड़ाता हुआ राजा से मिलने के लिये।

आखिर वह एक ऐसी जगह आ पहुँचा जहाँ से वह स्पेन की राजधानी मेड्रिड देख सकता था।

उसको देख कर वह बोला — “यही मेरी जगह है। मैं यहाँ से ऊँचा खड़ा हो कर इस शहर को रोज देखूँगा न कि उस बेवकूफ मुगीखाने में कूदता रहूँगा। मुझे मालूम है कि राजा मुझे देख कर बहुत खुश होगा।”

वह कूदा, उसने अपने पंख फड़फड़ाये और शहर के दरवाजे में घुसा। शहर में घुस कर उसने बहुत सारी बहुत शानदार इमारतें देखीं और बहुत सारे सुन्दर सुन्दर घर देखे।

वह कूदता और अपने पंख फड़फड़ाता हुआ एक सबसे सुन्दर घर के पास आया। उस घर के चारों तरफ ऊँची ऊँची दीवार थी जिस पर मीनारें लगी हुई थीं। उन मीनारों पर पहरेदार खड़े थे जो वहाँ से सारे शहर को देख रहे थे।

उस दरवाजे के अन्दर लकड़ी के दो दरवाजे और थे जिन पर सिपाही खड़े पहरा दे रहे थे।

आधे मुर्गे ने सोचा — “यही राजा का महल होगा।” और यह सोच कर वह कूदता और अपना पंख फड़फड़ाता हुआ उन दरवाजों के पहरेदार सिपाहियों के पास जा पहुँचा।

वह उनसे बोला — “एक तरफ हटो और महल का दरवाजा खोलो। मैं यहाँ राजा से मिलने आया हूँ। वह मुझको बहुत बड़ा ओहदा देगा और बहुत जल्दी ही तुम सब मेरे नीचे काम करने वाले हो।”

यह सुन कर सारे पहरेदार इस जिद्दी आधे मुगेपर ज़ोर से हँस पड़े।

वह आधा मुर्गा महल के दरवाजे के सामने आगे पीछे कूदता और अपना एक पंख फड़फड़ा कर कहता रहा — “राजा मुझसे बहुत जल्दी ही मिलना चाहता है, मुझे अन्दर जाने दो। वह दिन बहुत जल्दी ही आने वाला है जब तुम सब मेरे नीचे होगे और मेरा हुकुम मानोगे।”

तभी किसी ने महल की खिड़की से झाँका और आधे मुर्गे को महल के दरवाजे के सामने कूदते और अपना पंख फड़फड़ाते हुए देखा तो वह ज़ोर से चिल्लाया — “जल्दी। इस आधे मुर्गे को जल्दी महल में आने दो। राजा ऐसे ही मुर्गे की तलाश में है और वह उससे मिलना चाहता है।”

सिपाहियों ने उस आधे मुर्गे के सामने सिर झुकाया और वह आधा मुर्गा ऊपर तक उड़ कर उनके ऊपर चिल्लाया — “मैंने तुमसे कहा था न कि मैं बहुत ही खास हूँ। तुमने सुना न कि राजा मुझे ढूँढ रहा है और मुझसे अभी अभी मिलना चाहता है। सो जल्दी से दरवाजा खोलो मैं तुम लोगों के ऊपर राज करने वाला हूँ।”

सो पहरेदारों ने उसके लिये महल का दरवाजा खोल दिया और वह कूदता और अपना पंख फड़फड़ाता हुआ अन्दर घुस गया। जैसे ही वह अन्दर घुसा तो उसने एक आदमी को खुली बाँहों और बड़ी सी मुस्कुराहट लिये अपनी तरफ आते देखा।

वह आदमी बोला — “आओ, आओ। तुम्हारा यहाँ स्वागत है। राजा तुमसे अभी अभी मिलना चाहता है।” कह कर उसने उस आधे मुर्गे को अपनी बाँहों में उठा लिया और उसे रसोई की तरफ ले चला।

उसने कहा — “राजा ने आज शाम के खाने में मुर्गे का सूप खाने की इच्छा प्रगट की है और मैं राजा का रसोइया हूँ।”

कह कर उसने उस मुर्गे को पानी से भरे एक बरतन में डाल कर आग पर रख दिया ताकि उसको पकाने से पहले उसकी खाल मुलायम हो जाये और वह उसके पंख आसानी से निकाल सके।

पानी ठंडा था उससे उसके पंख उसके शरीर से चिपक गये। आधा मुर्गा चिल्लाया — “ओ पानी, मुझे इस तरह से भिगोना छोड़ो। तुम मुझे बहुत परेशान कर रहे हो। मेहरबानी करके मेरी सहायता करो।”

पानी बोला — “मैं जब उस छोटे नाले में बह रहा था और मैंने तुमसे अपनी घास निकालने के लिये कहा था जो मेरे बहाव को रोक रही थी तब तुमने मेरी घास निकालने से मना कर दिया था और तुमने मेरी कोई सहायता नहीं की थी।

और जब मैंने तुमसे कहा कि एक दिन मैं तुम्हारी सहायता करूँगा तब तुमने कहा था कि तुमको मेरी सहायता की जरूरत नहीं है सो अब तुम अपनी सहायता अपने आप करो।

अब जब तुम्हारे साथ यह सब हो रहा है तो अब तुमको अपने आस पास के लोगों के साथ खराब बरताव करने की सजा मिल रही है। भुगतो।”

वह पानी का बरतन आग पर रखा था सो कुछ ही देर में पानी गर्म होने लगा और पानी की गर्मी उस आधे मुर्गे के शरीर को जलाने लगी। वह गर्म पानी के उस बरतन में इधर से उधर कूदने लगा।

वह फिर चिल्लाया — “ओ आग़ मेहरबानी करके मुझे इतनी तकलीफ मत दो। तुम तो बहुत ही गर्म हो। मेहरबानी करके मुझे जलाना बन्द करो।”

बरतन के नीचे से आग बोली — “ओ आधे मुर्गे, क्या तुमको याद नहीं है जब मैं मर रही थी और मैंने तुमको अपनी सहायता के लिये पुकारा था?

तुमने कहा था कि तुम अपनी सहायता अपने आप कर लो। तुमने यह भी कहा था कि तुमको किसी की सहायता की जरूरत नहीं पड़ेगी। मुझे लगता है कि किसी के साथ अच्छा बरताव न करने की तुम्हारी यही सजा है।”

तभी रसोइया वहाँ आया और उसने यह देखने के लिये बरतन का ढक्कन उठाया कि मुर्गा उसके पंख निकालने और राजा का खाना बनाने के लायक हो गया कि नहीं।

देख कर वह बोला — “ओह, इस मुर्गे से तो बिल्कुल काम नहीं चलेगा।”

क्योंकि वह आधा मुर्गा तो जल गया था और छेद वाले पत्थर जैसा हो गया था। वह तो पूरा का पूरा ही काला हो गया था। उसने उसको उठा कर महल की खिड़की से बाहर फेंक दिया।

हालाँकि वह आधा मुर्गा छेदों वाले पत्थर जैसा हो चुका था पर फिर भी वह इस लायक था जो वह हवा को पुकार सकता सो उसने हवा को पुकारा — “ओ हवा, मेहरबानी करके मुझे जमीन पर गिरने और मरने से पहले ही पकड़ लो।”

हवा ने आधे मुर्गे की पुकार सुनी और उसको उठा लिया और महल की ऊँची दीवार पर ले गयी और बोली — “तुमने मेरी सहायता करने से मना कर दिया था जब मैं पेड़ की शाखाओं में फँस गयी थी।

तुमने मुझसे कहा था कि मैं अपनी सहायता अपने आप कर लूँ। और साथ में तुमने मुझसे यह भी कहा था कि तुमको किसी की सहायता की जरूरत नहीं है।

सो ऐसा लगता है कि तुम्हारी कहानी अब बदल गयी है। मुझे तुम्हारी सहायता नहीं करनी चाहिये थी पर तुम्हारी माँ, भाई और बहिन दुखी होते अगर मैं तुमको इतनी ऊपर से गिर जाने देती तो।”

हवा फिर उस आधे मुर्गे को शहर के सबसे ऊँचे चचपर ले गयी और वहाँ उस चर्च के क्रास के ऊपर बिठा कर बोली — “तुमने एक बार कहा था कि तुम सबको नीचे देखोगे और तुम सबके ऊपर होंगे।

सो आज तुम्हारी वह इच्छा पूरी हुई। दूसरे लोग तुमको हमेशा ऊपर की तरफ देखेंगे और मुस्कुरायेंगे कि अब तुम किसी को कोई दुख नहीं पहुँचा सकते।” कह कर हवा उसको उस क्रास के ऊपर बिठा कर चली गयी।

तुम लोग जब कभी मैड्रिड जाआगे तो वहाँ उस आधे मुर्गे को उस क्रास के ऊपर एक टाँग से बैठा पाओगे। अपनी एक आँख से वह सबको नीचे देखता रहता है।

वह अभी भी अपने आपको बहुत ऊँचा समझता है पर हवा उसकी शान को अपने कन्ट्रोल में रखती है। वह जब चाहे उसको अपने ज़ोर से किधर भी घुमा देती है। आज हम उस आधे मुर्गे को हवा की दिशा बताने वाला कहते हैं।

(साभार : सुषमा गुप्ता)

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