पिनटौर्प की लेडी : स्वीडिश लोक-कथा
The Lady of Pintorp : Folktale Sweden
ऐरिक्सबर्ग के बागीचों के बीच आजकल जहाँ किले जैसी बिल्डिंग खड़ी है बहुत पहले वहाँ पिनटौर्प नाम का एक शहर हुआ करता था जिससे एक लेडी औफ पिनटौर्प की कहानी जुड़ी हुई है।
वह कहानी कुछ ऐसे कही जाती है कि पिनटौर्प में एक भला आदमी रहता था जो बेचारा छोटी उम्र में ही मर गया था। उसकी सब सम्पत्ति की मालिक उसकी पत्नी थी। तो भी उसकी पत्नी अपने नौकरों के प्रति बजाय दयालु होने के उनसे हर तरीके से बहुत काम लेती थी और उनसे बहुत बुरा बर्ताव करती थी।
उसके किले के नीचे बहुत सारे तहखाने बने हुए थे। जिनमें बहुत सारे भोले भाले लोग बन्द थे। वह बच्चों और भिखारियों के पीछे कुत्ते छोड़ देती थी। अगर कोई समय पर काम पर नहीं आता था तो वह यकीनन शाम को अपनी पीठ पर कोड़े खा कर ही जाता था।
एक बार सुबह को जब लोग काम पर आ रहे थे वह स्त्री किले की सीढ़ियों पर खड़ी थी। उसने एक लकड़हारे को देर से आते देखा। उसके देर से आने पर वह गुस्से में भर गयी और उसने उसे तुरन्त ही गालियाँ देना और उसका अपमान करना शुरू कर दिया।
उसने उसको अपने राज्य के सबसे बड़े ओक के पेड़ को काटने और उसे शाम तक अपने दरबार में लाने का हुक्म दिया। और अगर उसने उसके हुक्म का पालन नहीं किया तो वह उसको बिना किसी दया के उसकी झोंपड़ी से बाहर निकाल देगी और उसके पास जो कुछ भी है वह राज्य का हो जायेगा।
इस कठोर फैसले के ऊपर विचार करते हुए वह बेचारा जंगल की तरफ चल दिया। जंगल में उसे एक बूढ़ा मिला। लकड़हारे को उदास देख कर बूढ़े ने उससे पूछा — “क्या बात है भाई इतने उदास क्यों हो?”
अभागे आदमी ने जवाब दिया — “अगर मेरा मालिक भगवान की दया से मेरी सहायता नहीं करता तो मेरा तो सब कुछ खत्म हो गया।” कह कर उसने अपनी मालकिन का हुक्म उसे बता दिया।
अजनबी बोला — “तुम चिन्ता मत करो। तुम इस ओक के पेड़ को काट लो। फिर इसके कटे हुए तने पर बैठ जाओ तो ऐरिक जिलैन्स्टर्ना और स्वान्ते बनेर इस पेड़ को दरबार तक ले जाने में तुम्हारी सहायता करेंगे।”
लकड़हारे ने वैसा ही किया। उसने उस पेड़ के तने को काटना शुरू किया तो लो वह तो तीसरी मार में ही बहुत शोर की आवाज के साथ नीचे गिर पड़ा। फिर वह उसके तने पर उसके पत्तों की तरफ मुँह कर के बैठ गया।
तुरन्त ही पेड़ वहाँ से चलने लगा जैसे घोड़े उसे खींच कर ले जा रहे हों। जल्दी ही वह इतनी तेज़ी से चलने लगा कि रास्ते में जो लकड़ी के खम्भे लगे थे और बागीचों के डंडे आदि खदे हुए थे वे सब लकड़ी की छीलन की तरह से इधर उधर उड़ने लगे।
जल्दी ही वह दरबार में पहुँच गया। जैसे ही पेड़ का पत्तियों वाल हिस्सा किले के दरवाजे से टकराया तो दोनों ले कर जाने वालों में से एक लड़खड़ा गया। उसी समय एक आवाज आयी — “क्या? क्या तुम गिर रहे हो स्वान्ते?”
पिनटौर्प की लेडी वहीं किले की सीढ़ियों पर खड़ी थी। उसे अच्छी तरह मालूम था कि उसकी सहायता कौन कर रहा था। बजाय उसके लिये अफसोस करने के उसने लकड़हारे का बहुत अपमान किया और बहुत डाँटा और आखीर में उसे जेल में बन्द करने का हुक्म दे दिया।
उसी समय धरती काँपी और किले की दीवारें हिल गयीं। एक काली कोच जिसे दो काले घोड़े खींच रहे थे किले के सामने रुकी। एक सुन्दर सा नौजवान उस कोच में से काले रंग का सूट पहने उतरा। उसने लेडी को सिर झुकाया और तैयार हो कर अपने पीछे आने के लिये कहा।
लेडी जान गयी कि वह कौन था सो वह काँप गयी। उसने काँपते हुए तीन साल की मोहलत माँगी जिसे उस नौजवान ने मना कर दिया। फिर उसने तीन हफ्ते की और फिर तीन दिन की मोहलत माँगी पर नौजवान ने उसको उसका घर ठीक करने के लिये केवल तीन मिनट का ही समय दिया।
जब लेडी ने देखा कि उसके पास कोई और सहायता नहीं है तो उसने नौजवान से विनती की कि कम से कम उसे उसका पादरी उसकी दासी और उसके व्यक्तिगत नौकर को अपने साथ ले जाने की इजाज़त दी जाये।
उसकी यह विनती स्वीकार कर ली गयी और सब गाड़ी में बैठे। घोड़े तुरन्त ही भाग लिये। गाड़ी इतनी तेज़ जा रही थी कि जो किले में खड़े हुए थे उनको वह जाती हुई केवल एक काली धारी सी लगी।
जब वह लेडी और उसके साथी कुछ देर तक चल लिये तो वे एक बहुत ही शानदार किले के पास आ गये। काले कपड़े पहने वाला नौजवान उनको सीढ़ियों से ऊपर ले गया।
ऊपर पहुँच कर लेडी ने अपने कीमती कपड़े उतार दिये और एक मेटे कपड़े का कोट और लकड़ी के जूते पहन लिये। तब नौजवान ने उसके बालों में तीन बार कंघी की उसके बाद वह उसे सहन नहीं कर सकी। फिर वह उसके साथ तीन बार नाचा जब तक वह थक कर चूर नहीं हो गयी।
पहले नाच के बाद लेडी को अपने व्यक्तिगत नौकर को अपनी अँगूठी देने के लिये बाध्य किया गया तो उसकी अँगूठी ने उसके नौकर की उँगली आग की तरह जला दी।
दूसरे नाच के बाद उसे अपनी दासी को अपने किले की चाभियाँ देनी पड़ीं। दासी ने जब उन्हें अपने हाथ में पकड़ा तो उसे लगा जैसे उसने कोई गर्म लोहे की सलाख पकड़ ली हो।
जब वह तीसरी बार नाच ली तो एक छिपा हुआ दरवाजा खुल गया और वह लेडी उसमें लपट और धुँए में गुम हो गयी। पादरी जो उस समय उसके सबसे पास खड़ा था उसने उत्सुकतापूर्वक उस दरवाजे में झाँका जिसमें उसकी मालकिन गायब हो गयी थी तो उसकी गहराइयों में से एक चिनगारी ऊपर उठी और उड़ कर उसकी आँख में गिर गयी। जिससे उसकी एक आँख हमेशा के लिये चली गयी।
जब सब कुछ खत्म हो गया तो काले कपड़े पहने वाले नौजवान ने लेडी के साथ आये हुए सभी लोगों को किले वापस ले जाने का हुक्म दिया। साथ में उनको साफ साफ मना किया कि वे अपने चारों तरफ बिल्कुल न देखें।
वे जल्दी से कोच में बैठ गये। सड़क चौड़ी थी एकसार थी सो घोड़े तेज़ी से भागे जा रहे थे। पर थोड़ी दूर चलने के बाद ही व्यक्तिगत दासी अपने आपको रोक न सकी और उसने अपने चारों तरफ देखा तो उसी पल घोड़े कोच सड़क सभी कुछ गायब हो गया और उन्होंने अपने आपको एक जंगल में पाया। वहाँ से उन्हें बाहर निकलने और अपने घर पिनटौर्प पहुँचने में तीन साल लग गये।
(साभार सुषमा गुप्ता जी, जिन्होंने लोक-कथाओं पर उल्लेखनीय काम किया है)