भूखा लोमड़ा और अकड़ू उम्मीदवार : अमरीकी लोक-कथा
The Hungry Fox and the Boastful Suitor : American Lok-Katha
(Folktale from Native Americans, Iroquois Tribe/मूल अमेरिकी, इरक्वॉइ जनजाति की लोककथा)
एक बार एक लोमड़ा अपना खाना ढूँढने के लिये इधर उधर घूम रहा था पर उसको कोई शिकार ही हाथ नहीं लग रहा था।
उसको खाना खाये हुए भी काफी समय हो गया था सो भूख के मारे उसका पेट इतनी ज़ोर से बोल रहा था कि उसकी आवाज के सामने उसको कुछ और सुनायी ही नहीं दे रहा था।
अचानक उसको लगा कि कोई गाना गाते हुए उधर चला आ रहा था। तुरन्त ही वह अपने रास्ते से कूद कर एक झाड़ी में जा कर छिप कर पेट के बल बैठ गया।
गाने की आवाज धीरे धीरे तेज़ होती जा रही थी। लोमड़े ने देखा कि कोई पहाड़ी के ऊपर आ रहा था। उसने फिर देखा कि वह तो सारस (Heron) का एक पंख था।
लोमड़े ने सोचा कि अगर वह पंख यहाँ है तो सारस भी यहीं कहीं होगा सो वह उस पंख पर कूदने के लिये अपने पंजे उठा कर तैयार हो गया। पर जैसे जैसे वह पंख ऊपर उठता चला गया तो उसने देखा कि वहाँ तो कोई चिड़िया नहीं थी।
वह पंख तो एक टोप (Gustoweh) में लगा हुआ था जो इरोकोइ लोग अपने सिर पर पहनते थे। और अब तो उस इरोकोइ आदमी का चेहरा भी दिखायी देने लगा था। वह घोड़े पर चढ़ा चला आ रहा था।
लोमड़े ने सोचा — “अगर यह मुझे देख लेगा तो मैं तो अपनी भूख हमेशा के लिये भूल जाऊँगा।” और यह तो सभी जानते थे कि इरोकोइ लोग लोमड़े की खाल को कितनी कीमती समझते थे। सो लोमड़े ने अपने को चूहे से भी छोटा बनाने की कोशिश की ताकि वह उस इरोकोइ आदमी से छिप सके।
वह इरोकोई आदमी एक जवान लड़का था। वह और पास आता गया तो लोमड़े ने देखा कि वह तो बहुत अच्छे कपड़े पहने था। जैसे जैसे वह पास आता जा रहा था लोमड़े को उसका गाना और साफ सुनायी देता जा रहा था।
वह यह गाना अपनी ही तारीफ में गा रहा था। उसने गाया —
हिरों के पंख से ज़्यादा और कोई बहादुर नहीं है
और मुझे यह पता होना चाहिये क्योंकि वह मैं हूँ
कोई और इससे ज़्यादा अच्छे कपड़े नहीं पहनता
कोई और मुझसे अच्छा मछियारा नहीं है
अगर तुमको कोई शक है तो आओ और देख लो
वह एक जवान लड़की के घर जा रहा था जिससे वह कुछ दिनों से मिल रहा था। वह उसको प्रभावित करने की कोशिश कर रहा था ताकि वह लड़की उससे शादी करने के लिये तैयार हो जाये।
उसके अच्छे कपड़े और उसका गाना भी उसी लड़की के लिये था। पर लोमड़ा न तो उस सारस के पंख वाले लड़के का गाना सुन रहा था और न ही उसके अच्छे कपड़े देख रहा था। उसका ध्यान तो बस उसकी तरफ से आने वाली मछली की बू से था।
उसके कम्बल से लटकते बड़े से थैले में बहुत सारी मछली भरी हुई थी। लोमड़े के मुँह में पानी आ रहा था और उसकी जीभ बाहर को निकली पड़ रही थी। मछली खाये हुए भी उसे कितना समय बीत गया था यह सोच कर ही उसका डर निकल गया।
वह लड़का अब उसके पास से गुजर रहा था पर लोमड़ा तो बहुत आगे की सोच रहा था।
लोमड़े ने सोचा इससे मछली लेने का एक ही तरीका है। और वह वह तरीका सोचते हुए सड़क से छिपता हुआ जंगल से हो कर उस लड़के से आगे निकलने के लिये भागा। जल्दी ही वह उस इरोकोइ लड़के से आगे निकल गया।
एक मोड़ के पास जा कर वह रास्ते के किनारे पर लेट गया। उसने अपनी आँखें बन्द कर लीं और मुँह खोल लिया ताकि उसकी जीभ धूल में लटकी रहे।
ऐसा कर के वह बिना हिले डुले चुपचाप लेट गया और उस लड़के के आने का इन्तजार करने लगा। जल्दी ही उसको उस लड़के का अपनी तारीफ वाला गाना फिर सुनायी देने लगा।
अब सारस के पंख वाला लड़का तो अपने गाने में बहुत मग्न था और अपनी तारीफ में कुछ और शब्द भी ढूँढ रहा था जैसे कि वह अपने सफेद हिरन की खाल के कोट में कितना अच्छा लग रहा था कि वह लोमड़े के पास से गुजर गया।
पर जैसे ही वह लोमड़े के पास से गुजर गया तो उसको वह लोमड़ा दिखायी दे गया तो वह रुका — “उँह, यह क्या है?”
कहते हुए वह अपने घोड़े से नीचे उतरा और पीछे की तरफ आया। उसने उसे देखा — “उँह, यह तो एक मरा हुआ लोमड़ा है।”
उसने एक लम्बी सी डंडी उठायी और उस डंडी से लोमड़े की बगल में एक तरफ को मारा। पर लोमड़ा बिल्कुल चुपचाप पड़ा रहा।
लड़के को लगा कि लोमड़ा मरा हुआ है फिर भी पक्का करने के लिये कि वह वाकई मरा हुआ है वह उसको पास से देखने के लिये उसके ऊपर झुका।
उसने देखा कि वह लोमड़ा वाकई मरा हुआ था। इसके अलावा वह पतला जरूर था पर उसकी खाल ठीक थी सो उसने उसको उसकी पूँछ पकड़ कर उठा लिया।
वह बोला — “लगता है कि इसको मरे हुए ज़्यादा देर नहीं हुई है। बस इसमें से थोड़ी सी बदबू जरूर आ रही है।”
जब उस लड़के ने यह कहा तो लोमड़े ने अपना मुँह थोड़ा सा खोला और उसके होठ उसके दाँतों के पीछे चले गये। पर सारस के पंख वाले लड़के ने यह नहीं देखा। उसको उठा कर उसने सोचा कि वह उसकी खाल घर पहुँच कर अभी अभी निकाल लेगा।
जब उस लड़के ने यह कहा तो लोमड़े ने अपनी आँख मिचकायी। पर सारस के पंख वाले लड़के ने उसका आँख मिचकाना भी नहीं देखा।
फिर उस लड़के का विचार बदल गया। उसने सोचा — “नहीं, अगर मैंने इसकी खाल अभी निकाली तो मेरे इतने अच्छे नये कपड़े गन्दे हो जायेंगे इसलिये अभी मैं इसको लिये चलता हूँ बाद में देखूँगा।”
वह अपने घोड़े के पास आया, अपने थैले की रस्सी खोली और बोला — “जब स्वेयिंग रीड (Swaying Reed) की माँ इस लोमड़े को देखेगी जिसे मैंने पकड़ा है तो वह सोचेगी कि मैं कितना बड़ा शिकारी हूँ। और अपनी बेटी को मुझसे शादी की रोटी (Marriage Bread) लाने के लिये जरूर राजी कर लेगी।”
उसने उस लोमड़े को मछलियों के साथ ही अपने थैले में डाल लिया और उस थैले का मुँह रस्सी से बन्द कर अपने घोड़े पर लाद लिया।
फिर वह खुद भी घोड़े पर चढ़ गया और फिर से गाता हुआ चल दिया उस लड़की के घर चल दिया। इस बार उसका गाना इस बारे में था कि वह कितना बड़ा शिकारी था।
अब उस थैले में वह लोमड़ा कुछ देर तक तो शान्त पड़ा रहा पर फिर उसने एक तरफ से वह थैला काटना शुरू किया। जब उस का वह छेद कुछ बड़ा हो गया तो उसने उस छेद में से एक एक कर के मछलियाँ फेंकना शुरू कर दिया।
जब उसने उस छेद में से सारी मछलियाँ फेंक दीं तो उसने उस छेद को थोड़ा और बड़ा किया और खुद भी उसमें से बाहर कूद गया। बहुत दिनों बाद आज उसको बहुत अच्छा खाना मिला था।
वह सारस के पंख वाला लड़का तो अपने गाने में इतना मग्न था कि उसने यह सब देखा ही नहीं। अब वह उस गाँव तक पहुँच गया था जहाँ उसकी स्वेयिंग रीड रहती थी।
वह स्वेयिंग रीड की माँ के घर के सामने रुका और अपने घोड़े पर बैठा तब तक गाता रहा जब तक वहाँ काफी लोग इकठ्ठा नहीं हो गये। उसने वहाँ अपने बढ़िया कपड़ों के बारे में गाया, उन मछलियों के बारे में गाया जो उसने पकड़ीं थीं और दूसरे जानवरों के बारे में गाया जो उसने मारे थे और पकड़े थे।
वैसे तो वे मछलियाँ भी उसने पकड़ीं नहीं थीं बल्कि अपनी माँ के मोती लगे जूतों को बेच कर खरीदी थीं।
स्वेयिंग रीड और उसकी माँ घर से बाहर निकली तो उनको देख कर उस लड़के ने यह सोच कर अपना हाथ अपने थैले की तरफ बढ़ाया कि अब वह उनको यह दिखायेगा कि वह घर में कितना सारा खाना ला सकता है।
पर यह क्या? जैसे ही उसने अपना थैला उठाया तो वह तो उसको बहुत हल्का लगा। उसमें तो कुछ भी नहीं था वह खाली था। और साथ में उसकी तली में एक बड़ा सा छेद भी था। उसका गाना रुक गया। चुपचाप उसने अपना घोड़ा मोड़ा और वापस चल दिया।
उस दिन उसको लगा कि इस तरह के अपनी तारीफ वाले गीत किसी आदमी को बड़ा नही बनाते। किसी लोमड़े को पाना एक बात है और उसकी खाल निकालना दूसरी बात।
(साभार सुषमा गुप्ता जी, जिन्होंने लोक-कथाओं पर उल्लेखनीय काम किया है)