लालची बुढ़िया : रूसी लोक-कथा
The Greedy Old Woman : Russian Folk Tale
एक बार की बात है कि एक बूढ़ा और एक बुढ़िया थे। दोनों ही किसान थे। एक दिन बूढ़ा लकड़ी काटने के लिये जंगल गया तो वहाँ उसे एक बहुत पुराना पेड़ दिखायी दिया तो उसने उसे काटने का निश्चय किया।
जैसे ही वह उस पर कुल्हाड़ी चलाने वाला था कि वह पेड़ बोला — “ओ बूढ़े मेरी जान बख्श दो। जो भी तुम्हारी इच्छा होगी मैं तुम्हारी वह सब इच्छाऐं पूरी करूँगा।”
बूढ़ा बोला — “तो ठीक है। तुम मुझे अमीर बना दो।”
पेड़ बोला — “ठीक है तुम घर जाओ और तुम देखोगे कि घर पर हर वह चीज़ तुम्हारा इन्तजार कर रही है जो तुम चाहते हो।”
यह सुन कर बूढ़ा अपने घर लौट गया। लो। वहाँ तो उसकी पुरानी झोंपड़ी की बजाय एक नया मकान खड़ा हुआ था और उसमें उसके ऐशो आराम की हर चीज़ मौजूद थी।
वहाँ उसमें उसके पास इतना पैसा था कि वह उसमें से चाहे जितना फूँक सकता था। उसके और उसकी पत्नी के लिये बीसियों बरसों के लिये बहुत सारा आटा था।
उसके पास वहाँ इतनी सारी गायें घोड़े और भेड़ें थे कि उनको गिनने में ही उसको तीन दिन से ज़्यादा लगते। बुढ़िया ने बूढ़े से पूछा — “तुम्हें ये सब चीज़ें मिली कहाँ से?”
बूढ़ा बोला — “आज मुझे एक पेड़ मिल गया जिसने मुझसे यह कहा कि वह मुझे वह सब देगा जो मैं चाहूँगा।”
दोनों को अपने इस नये वातावरण में रहते हुए लगभग एक महीना बीत गया। बुढ़िया अब अपनी इस अमीर ज़िन्दगी से ऊब चुकी थी।
एक दिन बुढ़िया बूढ़े से बोली — “हमारी इस अमीरी का क्या फायदा अगर कोई हमारी इज़्ज़त नहीं करता तो। अगर मालिक का नौकर चाहे तो वह हमसे बहुत मुश्किल काम ले सकता है और अगर ऐसा कुछ है जो वह नहीं चाहता तो हमें डाँट देता है। तुम ऐसा करो कि तुम उस पेड़ के पास जाओ और उससे कहो कि वह तुम्हें सेनापति बना दे।”
बूढ़े ने अपनी कुल्हाड़ी उठायी और जंगल चल दिया। वहाँ जा कर वह उस पेड़ के पास पहुँचा और उसे काटने ही वाला था कि पेड़ ने पूछा — “बूढ़े तुम्हें क्या चाहिये?”
बूढ़ा बोला — “मुझे सेनापति बनवा दो।”
पेड़ बोला — “ठीक है। घर जाओ। भगवान तुम्हारी सहायता करें।”
यह सुन कर वह घर वापस चला गया।
लो अगले ही दिन उसे सेनापति के काम पर रख लिया। उसके नीचे काम करने वाले सिपाही उससे गाँव में अपने लिये मकान खोजने के लिये कह रहे थे। वे चिल्ला रहे थे — “ओ शैतान तुम अब तक कहाँ घूम रहे थे? हमारे लिये घर खोजो और वे भी अच्छे अच्छे। चलो जल्दी करो।”
कह कर वे गुस्से में भर कर उसकी ओर चारों ओर से पीटने के लिये दौड़े। यह देख कर कि सेनापति को जो इज़्ज़त मिलनी चाहिये वह उसे नहीं मिल रही है बुढ़िया ने कहा — “ऐसे सेनापति होने से क्या फायदा जिसमें इज़्ज़त ही न मिले। सिपाहियों ने तो तुम्हें पीट ही दिया।
अगर तुम मकान मालिक बन जाओ तो कैसा रहे। मकान मालिक तो अपने साथ जो चाहे वह कर सकता है। अबकी बार जा कर तुम पेड़ से कहो कि वह तुम्हें मकान मालिक बना दे।”
अगले दिन बूढ़े ने फिर से अपनी कुल्हाड़ी उठायी और फिर से जंगल में उसी पेड़ को काटने जा पहुँचा। जैसे ही वह उस पेड़ को काटने वाला था तो पेड़ ने पूछा — “बूढ़े अब तुम्हें क्या चाहिये?” बूढ़ा बोला — “मुझे मकान मालिक बना दो।”
पेड़ बोला — “ठीक है। घर जाओ भगवान तुम पर दया करें।”
यह सुन कर किसान घर लौट गया लो अब तो वह मकान मालिक बन गया।
अब उनकी ज़िन्दगी आराम से निकलने लगी। कुछ दिन तक आराम की ज़िन्दगी बिताने के बाद बुढ़िया को लगा कि अब उसे कुछ और चाहिये।
सो कुछ दिन बाद वह बूढ़े से बोली — “इस आराम की ज़िन्दगी से क्या फायदा। अगर तुम कर्नल बन जाते तो कितना अच्छा रहता। हर आदमी हमसे जलता।”
सो उसने बूढ़े से फिर से उस पेड़ के पास जाने के लिये कहा और कहा कि वह पेड़ से कहे कि वह उसे कर्नल बना दे। अगले दिन फिर से बूढ़े ने अपनी कुल्हाड़ी उठायी और जंगल में उसी पेड़ के पास चल दिया।
वहाँ पहुँच कर वह पेड़ को काटने ही वाला था कि पेड़ ने पूछा
— “बूढ़े अब तुम्हें क्या चाहिये?”
बूढ़ा बोला — “मैं अब कर्नल बनना चाहता हूँ।”
पेड़ बोला — “ठीक है। तुम कर्नल बन जाओगे। अब जाओ भगवान तुम पर दया करें।” बूढ़ा घर वापस चला गया और लो वह तो अब कर्नल बन गया।
कुछ समय बाद बुढ़िया बोली — “उँह कर्नल होना कोई बड़ी बात नहीं है। अगर वह चाहे तो तुम जनरल के गार्डहाउस में रह सकते हो। तुम फिर से पेड़ के पास जाओ और उससे कहो कि वह तुम्हें जनरल बना दे।”
अगले दिन फिर से बूढ़े ने अपनी कुल्हाड़ी उठायी और जंगल में उसी पेड़ के पास चल दिया। वहाँ पहुँच कर वह पेड़ को काटने ही वाला था कि पेड़ ने पूछा — “बूढ़े अब तुम्हें क्या चाहिये?”
बूढ़ा बोला — “मैं अब जनरल बनना चाहता हूँ।”
पेड़ बोला — “ठीक है। तुम जनरल बन जाओगे। अब जाओ भगवान तुम पर दया करें।” बूढ़ा घर वापस चला गया और लो वह तो अब जनरल बन गया।
कुछ और समय बीता। बुढ़िया जो केवल जनरल बनने से ही सन्तुष्ट नहीं थी। एक दिन बूढ़े से बोली — “जनरल बनना ही काफी नहीं है। तुमको तो राजा होना चाहिये। एक राजा अगर वह चाहे तो किसी को भी साइबेरिया तक भेज सकता है। सो एक बार पेड़ के पास फिर जाओ और उससे कहो कि वह तुम्हें राजा बना दे।’
सो एक बार फिर बूढ़े ने अपनी कुल्हाड़ी उठायी और जंगल में उसी पेड़ के पास चल दिया। वहाँ पहुँच कर वह पेड़ को काटने ही वाला था कि पेड़ ने पूछा — “बूढ़े अब तुम्हें क्या चाहिये?”
बूढ़ा बोला — “मैं अब राजा बनना चाहता हूँ।”
पेड़ बोला — “ठीक है। तुम राजा बन जाओगे। अब जाओ भगवान तुम पर दया करें।” बूढ़ा घर वापस चला गया और लो वह तो अब राजा बन गया।
वहाँ उसके लिये बहुत सारे लोग उसे महल के अन्दर ले जाने के लिये खड़े हुए थे। वे बोले — “राजा तो मर गया है। तो अब उसके बदले में हम आपको राजा बनाने के लिये यहाँ खड़े हुए हैं।”
कुछ दिन तो किसान ने राज किया पर बुढ़िया अपने रानी होने से भी सन्तुष्ट नहीं थी। एक दिन वह बूढ़े से बोली — “केवल राजा होने से ही क्या होता है एक दिन भगवान चाहेगा तो हमारे लिये मौत भेजेगा और हमें मरना पड़ेगा और फिर लोग हमें दफ़ना देंगे। तुम एक बार पेड़ के पास फिर जाओ और उससे कहो कि वह हम दोनों को भगवान बना दे।”
सो अगले दिन बूढ़े ने फिर से अपनी कुल्हाड़ी उठायी और जंगल में उसी पेड़ के पास चल दिया। वहाँ पहुँच कर वह पेड़ को काटने ही वाला था कि पेड़ ने पूछा — “बूढ़े अब तुम्हें क्या चाहिये?”
बूढ़ा बोला — “हम दोनों अब भगवान बनना चाहते हैं।” पेड़ ने जब उसकी ये बेवकूफी से भरी बातें सुनी उसने अपनी पत्तियाँ बड़े ज़ोर ज़ोर से हिलायीं और बोला — “तुम लोग अब भगवान नहीं बनोगे बल्कि अब तुम भालू बनोगे।”
पेड़ के यह कहते ही बूढ़ा एक भालू और बुढ़िया एक मादा भालू बन गये और दूर जंगल में भाग गये।
(साभार सुषमा गुप्ता जी, जिन्होंने लोक-कथाओं पर उल्लेखनीय काम किया है.)