आला अफ़सर (नाटक) : निकोलाई गोगोल
The Government Inspector (Play in Hindi) : Nikolai Gogol
पात्र
एन्टन एन्टनोविच (मेयर)
आन्ना आन्द्रेयेव्ना (उसकी बीवी)
मारिया एन्टनोव्ना (उसकी बेटी)
ल्यूका लूकिच ख्लोपोवः शिक्षाधिकारी (जिला विद्यालय निरीक्षक)
उसकी बीवी
एम्मस फ्योदोयोविच ल्याप्किन त्याप्किन (जिला जज)
अरटेमी फिलिप्फोविच जेमलेनिका (जिला अनुदान संस्थाओं का वार्डन)
इवान कुजमिच श्योकिन (पोस्ट मास्टर)
प्योत्र इवानोविच बाबचिंस्की (स्थानीय जमींदार)
प्योत्र इवानोविच डाबचिंस्की(स्थानीय जमींदार)
इवान अलेक्जेन्ड्रोविच ख्लेस्टाकोव (पीटर्सबर्ग का एक क्लर्क(नकल-नवीस)
फ्योदोर आन्द्रेविच ल्युल्यूकोव (अवकाश प्राप्त सरकारी अफ़सर)
इवान लजारेविच रस्टाकोवस्की (सम्मानित नागरिक)
कोरोब्किन (सम्मानित नागरिक)
स्विस्टुनोव (पुलिस का सिपाही)
पुगोविस्टीन (पुलिस का सिपाही)
देर्जीमोर्दा (पुलिस का सिपाही)
अब्दुलिन (व्यापारी)
फेदरोन्या पेत्रोव्ना (लोहार की बीवी)
सार्जेन्ट की विधवा।
मिश्का (मेयर का नौकर)
सराय का वेटर।
मेहमान, दुकानदार, कस्बे के लोग और प्रार्थी।
अंक : एक; दृश्य : एक
(मेयर के घर का सजा हुआ कमरा। मेयर, अनुदान संस्थाओं का वार्डन, जिला शिक्षाधिकारी, जिला जज, पुलिस अधिक्षक, जिला चिकित्सक और दो पुलिस के सिपाही।)
मेयर : महानुभावो! मैंने आप लोगों को एक बहुत बुरी ख़बर सुनाने के लिये बुलाया है। सरकार की ओर से एक आला अफ़सर हमारे निरीक्षण के लिये आ रहा है।
जज : आला अफ़सर!
वार्डन : कैसा आला अफ़सर?
मेयर : सेन्ट पीटर्सबर्ग से भेजा गया एक आला अफ़सर! गोपनीय तौर से और इससे भी ख़राब बात, गुप्त निर्देशों के साथ।
जज : जरूर कोई गम्भीर बात है।
वार्डन : अब क्या होगा?
शिक्षाधिकारी : और गुप्त निर्देशों के साथ। हे प्रभु!
मेयर : मुझे इसका पूर्वाभास था। पिछली रात, मुझे लगातार दो भयानक चूहों का सपना आया। मैंने ज़िन्दगी में वैसे डरावाने जन्तु नहीं देखे। मैं आप को बताना चाहता हूँ दो विशाल काले दुष्ट जन्तु! इधर-उधर सूंघते और आहिस्ता-आहिस्ता मेरी ओर बढ़ते हुए....... फिर वे यकायक ग़ायब हो गये और सुबह मुझे चिल्खोव की ये चिट्ठी मिली। आप उसे जानते होंगे- अरटेमी फिलिप्पोविच चिल्खोव। अब चिट्ठी को ग़ौर से सुनिये लिखा है- “मेरे दोस्त, चचाजाद भाई और उपकर्ता.....(होंठों में बुदबुदाता है। पत्र की पंक्तियों पर नज़र दौड़ाता हुआ)..... आपको चेतावनी देने के लिये.. ये रहा, हाँ, “अन्य ख़बरों के अलावा मैं आपको विशेष रूप से ख़बरदार करना चाहता हूँ कि निरीक्षक आला अफ़सर, हमारे प्रदेश और ख़ास तौर से हमारे जिले का निरीक्षण करने के लिये आ चुका है।(महत्त्वपूर्ण तरीके से उंगली उठाकर) यह ख़बर मुझे अत्यन्त विश्वस्त सूत्रों से मिली है। ख़बर यह भी है कि वह साधारण आदमी के भेष में है। चूँकि मैं जानता हूँ कि तुमने भी दूसरों की तरह कुछ छोटे-मोटे पाप किये हैं, क्योंकि तुम सयाने हो और कोई मौका गवांना पसंद नहीं करते....(ख़ैर यहाँ हम सभी दोस्त हैं और दोस्तों में क्या पर्दा....पत्र से पढ़ता है) हर हाल में, मैं तुम्हें पूरी चौकसी बरतने को आगाह करता हूँ। क्योंकि अगर फि़लहाल वह यहाँ नहीं भी हो और खुफिया तौर से कहीं और टिका हुआ हो, तो भी उसके किसी भी पल आ टपकने की संभावना है।.... कल मैं....ठीक है....कल मेरी बहिन अन्ना किरलोव्ना अपने पति के साथ आयी.... इवान फिलिप्पोविच बहुत ढीठ हो गया है और इस समय वायलिन बजा रहा है....आदि-आदि....ये पारिवारिक बातें हैं।....तो महानुभावो! आपने मौके की नजाकत समझ ली?
जज : बिलकुल समझ ली। अजूबा स्थिति है। एकदम अजूबा।
शिक्षाधिकारी : लेकिन एन्टन एन्टनोविच क्यों? कोई सरकारी निरीक्षक क्यों आ रहा है? इसका मतलब क्या है?
मेयर : मेरे ख़्याल से इसलिये कि हमारी किस्मत को हमसे दुश्मनी है (गहरी सांस खींच कर) ईश्वर को धन्यवाद कि पहले वह दूसरे जिलों मेें गया। अब हमारी बारी है।
जज : एन्टन एन्टनोविच! मुझे यक़ीन है कि इसके पीछे कोई गहरा कारण है। रूस जल्द ही किसी युद्ध में फंसना चाहता है। इसलिये मंत्रालय ने उसे गद्दारों का पता लगाने भेजा है।
मेयर : आपकी राय सुन ली। हैरत है इसके बावजूद आप अपने को चतुर-सुजान मानते हैं। जंगलों की सरहद पर बसे हमारे कस्बे में गद्दार। अगर कोई गद्दार होगा तो वह किसी विदेश से सम्पर्क करना चाहेगा। जबकि यहाँ से कोई घोड़े पर सवार होकर तीन साल तक विदेश नहीं पहुँच सकता।
जज : नहीं, मुझे बोलने दीजिये। ये बिलकुल.... सरकार बहुत चौकन्ना है। हम उससे दूर बैठे हो सकते हैं, इसके बावजूद वह हम पर खुफिया नज़र रखती है।
मेयर : खुफिया या नाखुफिया। आप सब को ख़बरदार किया जाता है। जहाँ तक मेरा सवाल है मैंने कुछ निर्देश दे दिये हैं। ऐसी ही उम्मीद मैं आपसे करता हूँं। ख़ास तौर से अरटेमी फिलिप्पोविच आपसे। मान कर चलिये कि यहाँ क़दम रखते ही, सबसे पहले वह अनुदान से चलने वाली संस्थाओं का मुआयाना करना चाहेगा। इसलिये हर चीज़ चाक-चौबन्द होनी चाहिये। मरीजों को साफ-सुथरा दिखना चाहिये। उनकी टोपियाँ धुली हुई होनी चाहिये, जिससे उसकी शक्लेें लोहारों जैसी न दिखें।
वार्डन : हो जायेगा। ये कोई गम्भीर समस्या नहीं। हम कुछ धुली टोपियों का इंतजाम कर लेंगे।
मेयर : ये जरूरी है। इसके अलावा हर बिस्तर पर लैटिन या किसी भाषा में निर्देश टंगे होना चाहिये। जैसे-मर्ज का नाम, मरीज का नाम, बीमार पड़ने का दिन तारीख और सप्ताह।.... यों क्रिश्चियन इवानोविच, ये तुम्हारे विभाग का मामला है जिसकी तुम्हें ज़्यादा जानकारी होना चाहिये इसके अलावा मरीजों को बदबूदार तम्बाकू के सेवन से रोकिये, कमरे में क़दम रखते ही दम घुटने लगता है। बेहतर हो कुछ मरीजों को भगा दें। वैसे भी उनकी तादाद ज़्यादा है। इससे निरीक्षक पर ये प्रभाव पड़ेगा कि यहाँ का डाक्टर अक्षम है।
वार्डन : अरे नहीं। मैंने और डाक्टर हिब्नर ने मिल कर एक तरकीब निकाल रखी है हम मरीजों को महंगी दवाइयाँ नहीं देते। उन्हें कुदरत की मर्जी पर छोड़ देते हैं। ये लोग सीध्ो-सादे प्राणी होते हैं। जिन्हें जीना होता है, जी जाते हैं, मरना होता है, मर जाते हैं। डाक्टर हिब्नर के लिये मरीजों की शिकायतें समझाना मुश्किल होता है, क्योंकि उन्हें रूसी नहीं आती....(डाक्टर हिब्नर मुँह से ईह।.... जैसी आवाज़ निकालता है।)
मेयर : और आप एम्मस फ्योदोरोविच! आप अपनी अदालत की फिक्र करेंगे। आपके चपरासी ने प्रतीक्षालय को बत्तखों का दड़वा बना रखा है। मैं पूरी तौर से बत्तख-पालन के पक्ष में हूँ और चपरासी भी इससे क्यों वंचित रहें? लेकिन अदालत का कमरा इसकी उपयुक्त जगह नहीं। इसके बारे में आपसे पहले भी कहना चाहता था। लेकिन हमेशा की तरह भूल गया।
जज : मैंने उन्हें अपनी रसोई में पहुँचा दिया है। एन्टन एन्टनोविच। क्या आप आज मेरे घर रात्रि-भोज पर पधारेंगे?
मेयर : इसके अलावा मुझे आपके कमरे में पड़ा कबाड़ पसन्द नहीं और आपकी फाइलों वाली आलमारी के ऊपर टंगा हुआ वो हन्टर। उसे वहाँ नहीं होना चाहिये। मुझे पता है कि आप शिकार के शौकीन हैं लेकिन निरीक्षण के लौटने तक उसे अदालत मेें नहीं होना चाहिये। इसके बाद चाह तो फिर वहीं टांग दें और आपका वो सरकारी वकील। हालाँकि वह बहुत चालाक है लेकिन किसी शराब के कारखाने की तरह गंधाता है। ये ठीक नहीं। मैं पहले भी इसका जिक्र करना चाहता था लेकिन भूल गया। और अब जैसा कि वह कहता है कि यह उसकी प्राड्डतिक गंध है तो आप उसे गाजर, लहसुन या ऐसी ही कोई चीज़ खाने की सलाह दे सकते हैं।.... या फिर डाक्टर हिब्नर कोई उपाय बता सकते हैं।
(डाक्टर ‘‘ईह।..'' की आवाज़ निकालता है।)
जज : मुझे भय है कि मैं इसका निदान नहीं कर सकता। उसका कहना है कि जब वह बच्चा था तब नर्स के हाथ से छूट कर सीध्ो बोदका में जा पड़ा तभी से उसके शरीर से बोदका की गंध आती है।
मेयर : मैं सिर्फ़ आपका ध्यान आकार्षित करना चाहता था। जहाँ तक मेरा अपना सवाल है, चिल्खोव ने मेरे जिन कामों को छोटे-मोटे पाप कहा है, उनके बारे में कुछ नहीं कहना। संसार में ऐसा कोई मनुष्य नहीं होगा जिसने छोटे-मोटे पाप न किये हों। ईश्वर ने व्यवस्था ही कुछ ऐसी बनाई है। वाल्तेयर के चेले कुछ भी कहते रहें।
जज : लेकिन एन्टन एन्टनोविच! छोटे-मोटे पाप से आपका मतलब क्या है? मेरा मतलब है पाप और पाप में फ़र्क़ होता है। मैं मानता हूँ कि मैं रिश्वत लेता हूँ। लेकिन कैसी रिश्वत - बोरजई पिल्ले जिसका कोई महत्त्व नहीं।
मेयर : महत्त्व है। ये रिश्वत है नहीं?
जज : तो ठीक है, एन्टन एन्टनोविच! अगर कोई अपनी बीवी के लिये शाल और 500 रूबल का फरकोट लेता है, तो इसे क्या कहेंगे?
मेयर : अगर आप सिर्फ़ बोरजई पिल्ले हैं और कुछ नहीं, तो कोई बात नहीं। लेकिन आपको ईश्वर मेें विश्वास नहीं। न ही प्रार्थना के लिये कभी गिरजे जाते हैं। कम से कम मैं आस्था के साथ हर रोज़ गिरजे तो जाता हूँ। लेकिन आप....? मैं आपके बारे में सब कुछ जानता हूँ जब आप सृष्टि-निर्माण के बारे में बोलना शुरू करते हैं तो मेरे रोंगटे खड़े हो जाते हैं।
जज : सृष्टि की रचना कैसे शुरू हुई, इसके बारे में मेरे अपने ख़्याल हैं।
मेयर : अगर कोई मुझसे पूछे, तो मैं कहूँगा कि बहुत सोचने से बेहतर है कि कुछ सोचा ही न जाय। मैंने यों ही सोचा कि अदालत का जिक्र करूं। लेकिन ईमान से, वहाँ कोई आना पसंद नहीं करेगा। आप एक इच्छित और सुरक्षित जगह पर हैं।.... और ल्यूका लूकिच। आपको अपने अध्यापकों के बारे मेें कुछ करना चाहिये। मैं मानता हूँ कि वे विद्वान और बड़े-बड़े कालेजों से निकले हुए लोग हैं। लेकिन उनका व्यवहार ज़ाहिलाना है। मैं चौड़े-चकले चेहरे वाले एक अध्यापक को जानता हूँ। वह अपना चेहरा बिना डरावाना बनाये....इस तरह (अपना चेहरा बना कर दिखाता है) क्लास में प्रकट ही नहीं हो सकता। अगर वह सिर्फ़ विद्यार्थियों के सामने ऐसा करता तो कोई हर्ज नहीं था, हो सकता है ये जरूरी हो.... लेकिन फर्ज कीजिये, अपनी यही हरकत अगर वह हमारे मेहमान के सामने दोहराये तो वह इसे अपना अपमान समझ सकता है। फिर शैतान ही बता सकता है कि इसका क्या हश्र होगा?
शिक्षा. : ईमान से! मैं खुद नहीं समझ पाता कि उसका क्या करूं? मैं खुद भी उसे कई बार टोंक चुका हूँ।
मेयर : और वो इतिहास का प्रोफेसर। मैं मानता हूँ वह अपने विषय का धुरंधर है लेकिन वह अपने ज्ञान-प्रवाह में इस कदर बह जाता है कि खुद को भूल जाता है। एक बार मैंने उसका व्याख्यान सुना है। जब तक वह असीरियों और बेबीलोनियनों के बारे में बोलता रहा सब कुछ दुरुस्त था। लेकिन जैसे ही उसने सिकन्दर महान के बारे में बोलना शुरू किया तो जैसे आग फट पड़ी हो। उसने डेस्क के पीछे से उछल कर एक कुर्सी उठाई और उसे फर्श पर पटक कर टुकड़े-टुकड़े कर दिया। माना कि सिकन्दर महान था लेकिन इसके लिये फर्नीचर तोड़ने में क्या तुक है? कुर्सियों मेें रुपया लगता है- सरकारी रुपया....
शिक्षा. : सच है। वह अत्यधिक उत्साही है। मैं पहले ही इस ओर उसका ध्यान आड्डष्ट कर चुका हूँ। लेकिन उसका कहना है- ‘‘आपको जो कहना हो कहो, मैं ज्ञान की खातिर अपनी जान दे दूंगा।''
मेयर : विद्वानों के लिये जैसे कोई विधि का विधान हो। ये या तो पियक्कड़ होंगे या भांड़।
शिक्षा. : शिक्षा विभाग में आने वालों का ईश्वर ही मालिक होता है। यहाँ हर जगह हर आदमी अपनी टांग अड़ाता है और कोई अपने को किसी से कम नहीं समझता ।
मेयर : अगर ये अदृश्य बला न आती तो कोई बात नहीं थी। लेकिन वह किसी भी क्षण कहीं भी प्रकट हो सकता है और पूछ सकता है- अहा प्यारे बच्चो! तुममें से जज कौन है....और अनुदान संस्थाओें का वार्डन...? इन्हें मेरे सामने पेश करो।
दृश्य : दो
(पोस्ट मास्टर का प्रवेश)
पो.मा. : ये किसी आला अफ़सर के आने की क्या हवा है?
मेयर : तुम्हें कुछ नहीं मालूम?
पो.मा. : मैंने तो अभी अभी पोस्ट आफिस मेें बाबचिंस्की से सुना....
मेयर : तुम्हारा क्या ख़्याल है?
पो.मा. : हम टर्की से युद्ध लड़ने जा रहे हैं।
जज : वही बात! जो मैंने कही थी।
मेयर : आप दोनों को एक साथ इल्हाम हुआ?
पो.मा. : बात एकदम साफ़ है- तुर्की से युद्ध। ये गंदे मेंढक फिर हमारे मुकाबले पर हैं।
मेयर : तुर्कों से युद्ध? मेरा ठेंगा। इससे हमें ही तकलीफ उठानी पड़ेगी, तुर्कों को नहीं। दरअसल आज मुझे एक पत्र मिला है।
पो.मा. : पत्र! तो तुर्कों से जंग नहीं?
मेयर : तुम जंग पसंद करते हो?
पो.मा. : आप बतायें। आपकी राय ज़्यादा मौजूं है।
मेयर : मैं ज़्यादा चिन्तित नहीं। सच है कि मुझे व्यापारियों से परेशानी होगी वे शिकायत करेंगे कि मैं उनके साथ सख्ती से पेश आता हूँ। लेकिन अगर मैं उनसे कुछ लेता हूँ तो बिना किसी वैर भाव के। मुझे तो ऐसा लगता है कि (पोस्ट मास्टर को बांह पकड़ कर बगल में लेते हुए) किसी ने मेेरी चुगली की है। वर्ना किसी आला अफसर को भेजने की क्या जरूरत थी? सुनो इवान कुजमिच। हम सब के भले के लिये तुम एक काम कर सकते हो। अपने पोस्ट आफिस के मार्फत आने वाले हर पत्र को, भाप से थोड़ा सा खोल कर देखो कि उसमें क्या लिखा है? कोई शिकायत है या मामूली डाक। अगर नुकसानदेह नहीं, तो फिर बंद कर दो। चाहो तो बिना बंद किये ही भेज दो।
पो.मा. : ओह! ये तरीका मैं जानता हूँ। बताने की जरूरत नहीं। मैं कब से ये काम करता आ रहा हूँ किसी की सुरक्षा के ख़्याल से नहीं, बल्कि अपनी उत्सुकता के कारण। दरअसल दुनिया में कहाँ-कहाँ क्या हो रहा है, यह जानने के लिये मैं मरा जाता हूँ। मैं आपको बताना चाहता हूँ कि कुछ पत्र कितने मज़ेदार होते हैं। कभी-कभी तो भाषा के मामले में वे मास्को-गजट को मात करते हैं।
मेयर : तो बताओ तुमने किसी पत्र में पीटर्सबर्ग से आने वाले किसी आला अफसर के बारे मेें पढ़ा?
पो.मा. : पीटर्सबर्ग के अफसर के बारे में कुछ नहीं पढ़ा। कोस्टे और सरटेव के अफसरों के बारे में ढेरों। अफसोस है कि आप उन पत्रों को नहीं पढ़ते और नहीं जानते कि किस सुख से वंचित हो रहे हैं। हाल ही में एक लेफ्टीनेन्ट ने एक दोस्त को लिखे पत्र में एक नृत्योत्सव का भव्य और साहसिक वर्णन कुछ इस प्रकार किया है- “मेरी ज़िन्दगी, मेरे दोस्त एम्पीरियन क्षेत्र से शुरू होती है। हवा में लहराती हुई झंडियाँ, बजता हुआ बैन्ड और ढेरों सुन्दरियाँ....” पूरे एहसास के साथ लिखा गया पत्र। मैंने उसे अपने लिये निकाल कर रख लिया है। आपको सुनाऊँ?
मेयर : ये उसके लिये उपयुक्त समय नहीं। लेकिन इवान कुजमिच। मुझ पर एक एहसान करो। अगर कोई शिकायती पत्र मिले तो बेझिझक निकाल कर अपने पास रख लो।
जज : आप लोग होशियारी से काम लें, वर्ना मुसीबत मेें फंस सकते हैं।
पो.मा. : ईश्वर न करे।
मेयर : बेकार की बात! हम इसे परम गोपनीय रखेंगे। किसी को बतायेंंगे ही नहीं। समझे?
जज : हाँ, हवा में ख़तरे की गंध तो है, एन्टन एन्टनोविच! मैं खुद आपके पास एक छोटी-सी भेंट एक पिल्ला लेकर आ रहा था, जो उसी नस्ल का है जिसका मेरा खू़बसूरत कुत्ता। जिसे आपने देखा है। क्या आपने एक समाचार सुना। चेप्टोविच, बारखोवस्की पर मुकदमा कर रहा है जो मेरे लिये बहुत फायदेमंद है। अब मैं दोनों की जागीरों मेें आज़ादी से शिकार खेल सकता हूँ।
मेयर : बूढ़े खुर्राट! सुनो। इस वक़्त मेरे दिमाग़ मेें तुम्हारे शिकार नहीं, दूसरी बातें हैं। मैं उस अदृश्य ख़तरे को अपने दिमाग़ से नहीं निकाल पाता। हर पल लगता है कि दरवाज़ा अब खुला, अब खुला.... और लो दोखो।
दृश्य : तीन
(बाबचिंस्की और डाबचिंस्की का प्रवेश।
दोनों घबराये हुए हैं)
बाबचिंस्की : एक असाधारण घटना।
डाबचिंस्की : विचित्र और असाधारण।
सब : क्या,क्या? कैसी घटना!
डाबचिंस्की : एकदम असाधारण! हम अभी-अभी सराय में झांक कर आ रहे हैं।
बाबचिंस्की : मैं प्योत्र इवानोविच के साथ सराय गया हुआ था।
डाबचिंस्की : मुझे बोलने दो। मैं सुनाऊँगा।
बाबचिंस्की : नहीं मैं। तुम अच्छे किस्सा-गो नहीं।
डाबचिंस्की : तुम सब गड़बड़ कर दोगे और ख़ास बातें भूल जाओगे।
बाबचिंस्की : बिलकुल नहीं। महानुभाओ! मुझ पर मेहरबानी करें और इसे रोकें।
मेयर : आखिर माजरा क्या है? ईश्वर के लिये जल्द बोलो क्या बात है। ड्डपया आसन ग्रहण करें सज्जनो! इधर प्योत्र इवानोविच! इस कुर्सी पर बैठें।(सब दोनों को घेर कर बैठ जाते हैं ) हाँ, क्या बात है?
बाबचिंस्की : जब मैं आपसे बिदा हुआ....हाँ ठीक उस बेचैनी पैदा करने वाले पत्र के बाद.... नहीं प्योत्र इवानोविच ड्डपया बीच मेंं टांग मत अड़ाओ, मुझे एक-एक चीज़ याद है... तो यहाँ से मैं सीधा कोरोब्किन के घर गया। वह घर पर नहीं था तो रस्टाकोवस्की के घर। वह भी घर पर नहीं था तो आपकी ख़बर पहुँचाने के लिये इवान कुजामिच के पास गया...इसके बाद प्योत्र इवानोविच के घर...
डाबचिंस्की : गोश्त की दुकान के बगल में...
डाबचिंस्की : (बीच में ) हाँ, वही। जब मैंने इसे देखा तो कहा-‘‘क्या तुमने वह ख़बर सुनी, जो एन्टन एन्टनोविच को एक पत्र के मार्फत अपने विश्वसनीय सूत्र से मिली? लेकिन प्योत्र इवानोविच पहले ही आपके नौकर से सुन चुके थे। जिसे आपने किसी काम से गोयेचुएव के घर भेजा था.
डाबचिंस्की : (बीच में ) फ्रेंच बरांडी की बोतल के लिये।
बाबचिंस्की : (उसे हाथों से परे ठेलता हुआ) बरांडी की बोतल के लिये....बीच में टांग मत अड़ाना.... तो इसने कहा-‘‘चलो सराय चलें। मैंने सुबह से कुछ नहीं खाया। मेरा पेट गुड़-गुड़ कर रहा है। आप देख रहे हैं इसका पेट.... वहाँ लज़ीज मछली मिलती है और जैसे ही हम अंदर घुसे कि वह नौजवान....
डाबचिंस्की : मुफ्ती पहने प्रकट हुआ....
बाबचिंस्की : मुफ्ती पहने प्रकट हुआ। डायनिंग हाल में आया और गम्भीर-भाव से टहलने लगा। उसकी रोबीली सूरत और शानदार तौर तरीकों से मुझे इल्हाम-सा हुआ। मैंने प्योत्र इवानोविच की ओर मुड़ कर कहा-“तुम यहाँ कोई विचित्र बात देख रहे हो?” इस पर इसने बूढ़े दरबान की ओर इशारा किया और कहा- “हाँ, इसकी बीवी के तीन हफ्ते पहले बच्चा पैदा हुआ है और कितना सुन्दर। कभी वह भी अपने बाप की तरह सराय चलायेगा। इसके बाद इसने बूढ़े ब्लास से पूछा-‘‘वह नौजवान कौन है?'' (डाबचिंस्की से) देखो प्योत्र इवानोविच! बीच में मत बोलना। तुम ठीक से नहीं बता सकते। तुम्हारा एक दांत गायब है और जब तुम बोलते हो तो तुम्हारे मुंह से सीटी की आवाज निकलती है।.... हाँ तो ब्लास ने जवाब दिया- ये एक अफसर है जो पीटर्स बर्ग से आया है। इसका नाम इवान अलेक्जेन्ड्रोविच ख्लेस्टाकोव है। सरटोव जा रहा है। इसके साथ कुछ गड़बड़ है। यहाँ दूसरा हफ्ता हो रहा है लेकिन जाने का नाम नहीं लेता और सारा ख़र्चा अपने नाम डलवाता जाता है, एक पाई अदा नहीं करता। जब मैंने ये सुना तो मुझे इल्हाम-सा हुआ और मैंने डाबचिंस्की सेकहा- “अहा।...”
डाबचिंस्की : नहीं प्योत्र इवानोविच। ‘अहा', मैंने कहा था।
बाबचिंस्की : ठीक है, पहले तुमने कहा, फिर मैंने।.... तो हमने कहा-“अहा” जिस समय इसे सरटोव की यात्रा पर होना चाहिये, ये यहाँ क्यों डटा हुआ है? हाँ...ये वही है- वही!...
मेयर : वही कौन?
बाबचिंस्की : आला अफसर! जिसके आने की ख़्ाबर आपको मिली है।
मेयर : (भयभीत) हे प्यारे ईश्वर! नहीं, ये वह नहीं हो सकता।
बाबचिंस्की : वही होना चाहिये। वह किसी चीज़ की कीमत नहीं अदा करता और जाने का नाम नहीं लेता। उसके अलावा और कौन हो सकता है? यहाँ तक कि उसके पास सरटोव जाने के लिये घोड़ों का पास भी है।
डाबचिंस्की : बिलकुल वही है। जब उसने देखा कि हम दोनोें सालमन खा रहे हैं, तो झपट कर आया और हमारी प्लेटोें को बारीकी से घूरने लगा। वह हर चीज़ का निरीक्षण करता है.... और कैसी तीखी निगाह, मैं तो डर गया था।
मेयर : हे ईश्वर! हम पापियों पर दया कर। वह किस कमरे में ठहरा है?
डाबचिंस्की : कमरा नम्बर पाँच। सीढ़ियों के नीचे।
बाबचिंस्की : वो ही कमरा जिसमें पिछले साल दो अफसरों में लड़ाई हुई थी।
मेयर : और वहाँ दो हफ्ते ठहरा हुआ है?
बाबचिंस्की : दो हफ्ते से। संत वासिल के दिन आया था।
मेयर : हें, दो हफ्ते से। हे पवित्र संतो, और हुतात्माओ, पिछले दो हफ्तों में मैंने क्या-क्या किया? सार्जेन्ट की बीवी को कोड़े लगवाये... कैदियों को खाना नहींं दिया...सड़कें साफ नहीं करायीं, कूड़े से पटी पड़ी हैं... कितनी शर्म की बात।
वार्डन : एन्टन एन्टनोविच! क्या हम उसके पास अपना प्रतिनिधि मंडल ले चलें?
जज : नहीं! नियामानुसार मिलने वालों मेें सब से पहले नगर-प्रमुख, फिर पादरी फिर व्यापारी होने चाहिये। हमें फ्रीमसन की पुस्तक में दिये नियमों के अनुसार चलना चाहिये।
मेयर : नहीं, मैं, अपने तरीके से परिस्थिति से निपटूंगा, धन्यवाद। हम पहले भी ऐसी मुश्किलों का सामना कर चुके हैं और साफ बच निकले। यहाँ तक कि चोटी पर जा पहुंचे। ईश्वर की मदद से इससे भी बच निकलेंगे (डाबचिंस्की से) तुमने बताया वह नौजवान है?
डाबचिंस्की : कोई तेईस चौबीस का।
मेयर : तब ठीक है। नौजवानों को काबू करना आसान होता है। कोई खुर्राट होता तो जरूर खटिया खड़ी हो जाती। जवान सीधे-सादे होते हैं। अब आप लोग जायें और अपने अपने विभागों को चुस्त-दुरुस्त करें। मैं खुफिया तौर से सराय जाऊँगा और देखूंगा कि हमारे मेहमान की बढ़िया खातिर हो। स्विस्टुनोव।
स्विस्टुनोव : हाजिर हूँ।
मेयर : दौड़ कर पुलिस अधीक्षक को बुलाओ... नहीं, यहाँ तुम्हारी जरूरत पड़ेगी... किसी और से कहो कि फौरन से पेश्तर बुला लाये....और तुरंत वापस आओ।(स्विस्टुनोव भाग कर जाता है)
वार्डन : अब हमें चलना चाहिये। एम्मस फ्योदोरोविच। हम मुसीबत में फंस सकते हैं।
जज : आपको किस बात की फिक्र? बस कुछ धुली टोपियों का इंतजाम कर लें।
वार्डन : फिक्र टोपियों की नहीं। मुझसे उम्मीद की जाती है कि मरीजों को गोश्त का शोरबा दूं। लेकिन वहाँ इस कदर भाजी की दुर्गन्ध भरी पड़ी है कि नाक मूंदनी पड़े।
जज : बहरहाल, मैं तो उसके लिये अपनी नींद हराम नहीं करूंगा अदालत की जांच कौन करना चाहेगा। अगर वह मेरे फैसलों को पढ़ेगा तो अफसोस करेगा। मैं पन्द्रह साल से न्याय की कुर्सी पर बैठा हुआ हूँ और जितनी भी बार किसी मुकदमे की तह में जाने की कोशिश करता हूँ, हार मान लेता हूँ। हजरत सुलेमान भी कानून के अनुसार किसी मुकदमे का सही फैसला नहीं दे सकते थे।
(जज, वार्डन और शिक्षाधिकारी का दरवाजे पर हड़बड़ी में लौट रहे सिपाही से टकराते हुए प्रस्थान।)
दृश्य : चार
मेयर : फिटन तैयार है?
स्विस्टुकोव : जी हाँ श्रीमान्।
मेयर : ठीक है। बाहर जाओ।....नहीं रुको.... मेरे लिये....बाकी लोग कहाँ गायब हो गये? क्या?....यहाँ सिर्फ तुम हो? मैंने प्रोखोरोव को भी यहीं रहने का आदेश दिया था। प्रोखेरोव कहाँ है?
स्विस्टुकोव : प्रोखोरोव को पुलिस-चौकी पर होना चाहिये था। हालाँकि वह वहाँ से भी गैरहाजिर है।
मेयर : सो क्यों?
स्विस्टुकोव : उसे उठा कर ले जाना पड़ा। इस कदर धुत था। हम उस पर दो ड्रम पानी डाल चुके हैं, फिर भी होश नहीं।
मेयर : (सिर थाम कर) हे पवित्र माँ! क्या होने वाला है? जाओ, बाहर खड़े हो जाओ.... नहीं, दौड़ कर मेरे कमरे में जाओ और मेरी तलवार और कंटोप उठा लाओ। अच्छा डाबचिंस्की चला जाय।
बाबचिंस्की : मुझे भी ले चलो एन्टन अन्टनोविच।
मेयर : नहीं, नहीं, प्योत्र इवानोविच। मुझे अफसोस है.... इसके अलावा फिटन में जगह नहीं।
बाबचिंस्की : कोई बात नहीं। मैं पीछे लटक कर चलूंगा। मैं किवाड़ों की फांक से दोबारा उसके शानदार तौर-तरीकों को देखना चाहता हूँ।
मेयर : (सिपाही से तलवार लेता हुआ) दूसरे सिपाहियों को जल्द बुला कर बोलो....लेकिन मेरी तलवार देखो। कितनी खरोचें पड़ गई हैं। वो बदमाश दुकानदार अब्दुलिन। उसे पता होना चाहिये कि मेयर साहब की तलवार पुरानी पड़ चुकी है, लेकिन नई नहीं भेजेगा। ये दुकानदार है या छंटे हुए बदमाशों का गिरोह? गंदे ठग! मुझे लगता है सब मिल कर मेरे खि़लाफ़ अर्जी देने की साजिश कर रहे हैं। हाँ, तुम सिपाहियों से बोलो कि झाड़ू उठायें और सड़क साफ करें- वह सड़क जो सराय तक जाती है और ख़्याल रखें कि सफाई कायदे की हो और सुनो तुम जो बातें करते हुए चांदी की चम्मच जूते में सरका लेने में माहिर हो, मेरी आँखों में धूल नहीं झोंक सकते। याद करो तुमने चमायेव बजाज को कैसे लूटा था। उससे दो गज वर्दी का कपड़ा लेना था, लेकिन तुमने पूरा थान पार कर दिया। ख़बरदार। तुम जूतों से बाहर हो रहे हो....
दृश्य : पाँच
(पुलिस अधीक्षक का प्रवेश)
मेयर : आह! स्टीफन इलिच! ईश्वर के लिये कहाँ थे? किस शैतान की हुजूरी में?
पु.अधिक्षक : मैं गेट पर था श्रीमान्!
मेयर : सुनो स्टीफन इलिच! पीटर्सबर्ग से आला अफसर शहर में आ चुका है। तुम क्या करने जा रहे हो?
पु.अधीक्षक : जैसा कि आपका आदेश था, सिपाही पुगोविस्टीन को कुछ आदमियों के साथ सड़क पर झाडू लगाने के लिये भेज दिया।
मेयर : और देर्जीमोर्दा कहाँ है?
पु.अधीक्षक : अग्नि-शामक गाड़ी के साथ गया है।
मेयर : और प्रोखोरोव नशे में धुत पड़ा है?
पु.अधीक्षक : सच है श्रीमान्!
मेयर : लेकिन तुमने ऐसा होने क्यों दिया?
पु. अधीक्षक : ईश्वर साक्षी है। मैंने कल उसे, एक झगड़े की तहकीकात करने भेजा था। वहीं से धुत हो कर लौटा।
मेयर : अब सुनो, तुम्हें क्या करना है। सिपाही पुगोविस्टीन लम्बू जवान है। प्रभाव डालने के लिये उसे पुल पर खड़ा कर दो। पुल की पट्टियाँ गिरा कर उनकी जगह लट्ठे लगा दो जिससे लगे कि यह एक निर्माणाधीन क्षेत्र है। जितना हिस्सा गिरा सको उतना बेहतर। उससे उसे पता चलेगा कि मेयर किस कदर क्रियाशील है। नहीं रुको। पट्टियों के पीछे पड़े कचड़े को तो मैं भूल ही गया था-चालीस गाड़ी से कम नहीं होगा। कहीं पर भी कोई मूर्ति लगाओ, पर पट्टियाँ बनाओ लोग कचड़े से भर देते हैं। शैतान ही जानता होगा इतना कूड़ा कहाँ से लाते हैं।(गहरी सांसें भरता है).... अगर आला अफसर किसी सिपाही से पूछे कि क्या तुम्हें कोई शिकायत है, तो उसका जवाब होना चाहिये- “नहीं, महामहिम! कोई शिकायत नही।” अगर किसी को शिकायत करनी ही हो, तो मैं बताऊँगा क्या कहे (अपनी घबरहाट पर काबू पाने की कोशिश करता हुआ) आह प्यारे ईश्वर। मैं पापी हूँ। घोर पापी (बजाय टोप के टोप का डिब्बा उठा लेता है।) अगर इस बला से बच गया तो तुम्हारे सम्मान में इतनी बड़ी मोमबत्ती जलाऊँगा जितनी आज तक नहीं देखी होगी।.... हर सुअर व्यापारी से एक एक मन मोम तलब करूंगा.... हे ईश्वर। प्योत्र इवानोविच। अब हमें चलना चाहिये। (बजाय टोप के टोप का डिब्बा सिर पर लगा लेता है)
पु. अधीक्षक : एन्टन एन्टनोविच! ये टोप का डिब्बा है। टोप नहीं।
मेयर : बिलकुल! उसका बुरा हो। अगर वो पूछे कि हमने अस्पताल के लिये गिरजे का निर्माण क्यों नहीं किया, जिसके लिये हमें पाँच साल पहले अनुदान दिया गया था? तो मत भूलो कि हमने गिरजे का निर्माण किया था लेकिन उसमें आग लग गई, जिसकी सूचना ऊपर भेज दी गई थी। कोई मूर्ख भूल से यह न कह दे कि गिरजा कभी बना ही नहीं। सिपाही देर्जीमोर्दा से बोल देना कि फिलहाल अपने घूंसों को काबू में रखे। व्यवस्था बनाये रखने का उसे एक ही तरीका आता है- चेहरे पर घूंसे। किसी ने कुछ किया हो या नहीं। प्योत्र इवानोविच! अब हमें चलना चाहिये।(बाहर आता है, लौटता है।) और याद रहे सिपाही जब भी सड़क पर हों पूरी वर्दी में हों। ये बदमाश सिर्फ़ वर्दी की कमीज पहले रहते हैं। (सब का प्रस्थान)
दृश्य : छह
(अन्ना आन्द्रेयेव्ना और मारिया एन्टनोव्ना मंच पर भाग दौड़ कर रही हैं।)
अ. आन्द्रे : ये लोग कहाँ मर गये। इे ईश्वर! (दरवाज़ा खोल कर आवाज़ देती है) एन्टन! अन्तोषा! एन्टनचिक!....(जल्दी-जल्दी मारिया से) सारी गड़बड़ी तुम्हारी वजह से। मैंने ऐसा कभी नहीं देखा। (दौड़ कर खिड़की पर जाती है, आवाज़ देती है) एन्टन! तुम कहाँ जा रहे हो? क्या?.... वह आ गया?.... क्या उसके मूछें हैं? मूंछे कैसी हैं?
मेयर : (बाहर से) बाद में! ये बातें बाद में।
अ. आन्द्रे : बाद में क्यों? मुझे अभी बताओ। क्या वह कोई कर्नल है (जाने की आवाज़ें, वितृष्णा से) तुम्हें इसका फल मिलेगा। इस लड़की ने क्या माँ, माँ लगा रखी है.... कहती है पहले अपना रूमाल बांध लूं, एक सेकेन्ड लगेगा। एन्टन के कारण मुझसे हर बेहतरीन चीज़ छूट गई। प्यादे से फर्जी बना घमन्डी। ये लड़की जब भी पोस्ट मास्टर की आवाज़ सुनती है, दर्पण के सामने खड़ी होकर ़ाृंगार करने लगती है। अपने को कभी इस कोण से कभी उस कोण से निहारती है। तेरा ख़्याल वो तेरे लिए काली टोपी पहन कर आता है। असलियत ये है कि वो तेरे मुड़ते ही मुंह बनाने लगता है...
गा.एन्ट. : ओह!.... बकवास बंद करो माँ। हम घन्टे दो घन्टे में सारी बातें जान लेंगे।
अ. आन्द्रे. : शुक्रिया! घंटे दो घंटे क्यों? एक महीना क्यों नहीं कहती। तब हम और ज़्यादा जान लेंगे (खिड़की से बाहर झांक कर) हे....अद्योता क्या तुम्हें बाहर कोई दिखा? उन्होंने तुम्हें भगा दिया, उससे क्या? मूर्ख लड़की। फिर भी तुझे पूछना चाहिये था। तुम्हें फिटन के पीछे भागना चाहिये था। अब जाओ, दौड़ कर पता लगाओ ये लोग कहाँ गये हैं और ये भी पता लगाना कि आने वाला कौन है। तुम समझ रही हो न? ताले सुराख से झांक कर देखना उसकी आँखों का रंग कैसा है और सीध्ो वापस आना। तो अब दौड़ो तेज़, और तेज़ और तेज़...(मारिया दौड़ कर खिड़की पर माँ के पास आ खड़ी होती है। पर्दा खिड़की पर झुका हुआ दोनों को ढक लेता है)
अंक : दो ; दृश्य : एक
(सराय का एक छोटा-सा कमरा। बिस्तर, टेबिल सूटकेस, खाली बोतलें, जूते ओर ब्रश आदि.... ओसिप अपने मालिक के बिस्तर पर लेटा हुआ है)
ओसिप : गोर! इन कब्चों को पत्थर मार कर भगा दो। (स्वगत) इस कदर भूखा हूँ कि मेरा पेट पीटल के बैन्ड की तरह बज रहा है और हम घर के पास भी नहीं पहुँच रहे हैं। हाय रे गुलामी! पीटर्सबर्ग छोड़े दो महीने हो रहे हैं। मेरा मालिक सड़कों पर रुपये लुटाता रहा और अब टांगों में दुम दबाये चिन्तन कर रहा है। उसके पास पूरे सफ़र के लायक रुपये थे। लेकिन हम जिस शहर में भी रुके, अपने ताम-झाम का प्रदर्शन उसके लिये जरूरी होता है। (मालिक की नकल उतारता है) भले आदमी! शहर का चक्कर लगाओ और मेरे लिये बढ़िया से बढ़िया सराय का पता लगा कर बताओ। भोजन भी सर्वोत्तम होना चाहिये। मैं सड़ा हुआ कचड़ा नहीं खा सकता। तुम समझ रहे हो न? मेरे लिये हर चीज़ सर्वोत्तम। इससे कम कुछ नहीं। ये ठीक होता अगर वह कोई हैसियतदार आदमी होता मामूली नकल-नवीस नहीं। रास्ते में लार्ड मक से भेंट हुई तो उसका दोस्त बन गया और जुए में जेब साफ करवा ली और अब यहाँ बिना चटनी के बैठे हैं। मेरा दम घुट रहा है। अपने गाँव में शान-शौकत न सही लेकिन चैन की ज़िन्दगी थी। कोई औरत ले आओ और उसके साथ सारे दिन स्टोव के पास लेटे पाई खाते रहो। पीटर्सबर्ग मजे़दार जगह है। बस तुम्हारे पास खू़ब रुपया होना चाहिये और तुम एक बेहतरीन ज़िन्दगी जी सकते हो। थियेटर हो या कुत्ता-नृत्य, जो भी पसंद हो देखो वहाँ का हर आदमी कितनी शिष्ट भाषा में बात करता है। बाज़ार की गलियों से गुज़रो तो दुकानदार आवाज़ देते हैं। श्रीमान किश्ती लीजिए और सरकारी अफसर के बगल में बैठ कर यात्रा कीजिये। दुकानों में मटरगश्ती करो तो कोई बूढ़ा फौजी मिल जायेगा जो केमरें के किस्से सुनायेगा, और कंधे पर टंके सितारों का मतलब समझायेगा। कभी किसी ब्रिगेडियर की खू़बसूरत मेम की झलक मिल जायेगी। इसके अलावा वहाँ ब्यूटी पार्लर की सुन्दर कन्याओं को तो देखना ही चाहिये पीटर्सबर्ग की हर चीज़ अभिजात और विनम्र है। चलते-चलते थक गये तो किसी लार्ड की तरह बग्धी ले लो। किराया अदा करने की फिक्र मत करो। जिस तरह हर घर में सामने के दरवाजे़ की तरह पिछला दरवाज़ा भी होता है... बस तुम्हें इतनी फुर्ती दिखानी पड़ती है कि शैतान भी न पकड़ सके। इसके लिये एक ही नियम होता है-या तो तुम्हारा पेट भरा हुआ हो, या तुम भूख से मर रहे हो...। (गहरी साँस लेकर) हे क्राइस्ट.... इस वक़्त एक प्याली सूप के लिये मैं क्या नहीं कर सकता? इतना भूखा हूँ कि एक पूरा घोड़ा खा सकता हूँ(बाहर से आहटें) कोई आ रहा है। मालिक होना चाहिये। (फुर्ती से पलंग से कूदता है)
दृश्य : दो
(ख्लेस्टाकोव का प्रवेश)
ख्लेस्टाकोव : ये लो। (आसिप को अपना टोप और छड़ी पकड़ाता है) तुमने फिर मेरे बिस्तर पर ऐश किया?
ओसिप : आपके बिस्तर पर क्यों? क्या मैंने कभी पलंग नहीं देखे?
ख्लेस्टाकोव : झूठे! देखो, सलवटें पड़ी हुई हैं।
ओसिप : मुझे बिस्तर की क्या जरूरत। मैं नहीं जानता बिस्तर क्या होता है? मेरे पास दो पैर हैं, उन पर खड़ा हो सकता हूँ। आपके बिस्तर का क्या करूँगा?
ख्लेस्टाकोव : (कमरे में चहलकदमी करता हुआ) देखो, थैले में कुछ तम्बाकू है?
ओसिप : तम्बाकू! कैसी तम्बाकू? वह तो आपने तीन दिन पहले पी ली।
ख्लेस्टाकोव : (अनिश्चित, लेकिन ज़ोर से) तुम नीचे जाओ।
ओसिप : नीचे किधर?
ख्लेस्टाकोव : (अनिश्चित, लगभग मनुहार से) डाइनिंग रूम में और उनसे बोलो कि मेरे लिये खाना भेज दें।
ओसिप : जाने से कोई फायदा नहीं। कोई उम्मीद नहीं।
ख्लेस्टाकोव : मेरी हुक्मअदूली की जुर्रल! बदतमीज़।
ओसिप : जाने में कोई फायदा नहीं। सराय मालिक का कहना है कि वह हमें खाना नहीं देगा।
ख्लेस्टाकोव : इतनी अशिष्टता! मैं बर्दाश्त नहीं कर सकता।
ओसिप : वह ये भी कह रहा था मैं तुम्हारी शिकायत करने मेयर के पास जा रहा हूँ। तुम लोग दो हफ्ते से गुलछर्रे उड़ा रहे हो। तुम और तुम्हारा मालिक दोनों उचक्के हो। तुम जैसों से, पहले भी हमारा पाला पड़ चुका है। मुफ्तखोर।
ख्लेस्टाकोव : लेकिन चूहे तुम किस बात पर खुश हो?
ओसिप : उसका कहना है अगर हम ग्राहकों को घर की तरह जमने देंगे, तो कभी नहीं भगा पायेंगे। मैं अभी मेयर के पास शिकायत करने जा रहा हूँ वह तुम दोनों को जेल की हवा खिलायेगा।
ख्लेस्टाकोव : बहुत बकवास कर ली मूर्ख! अब जाकर उससे बोलो कि मेरा खाना भेजे।
ओसिप : बेहतर हो उसे यहीं बुला दूं। आप खुद बात कर लें।
ख्लेस्टाकोव : यहाँ बुलाने की क्या जरूरत है? तुम्हीं कह आओ।
ओसिप : लेकिन उससे कोई फायदा नहीं।
ख्लेस्टाकोव : तो ईश्वर के लिये जाओ और बुला लाओ।
दृश्य : तीन
(कमरे में ख्लेस्टाकोव, अकेला)
ख्लेस्टाकोव : इस कदर भूखा होना भयानक है। इस ख़्याल से कि भूख से कुछ राहत मिलेगी कुछ घूम भी लिया। लेकिन कोई फ़र्क़ नहीं। बल्कि इससे भूख और भी भड़क गयी। अगर पेन्ना में मौज-मस्ती में न पड़ा होता, तो घर लौटने के लिये मेरे पास काफी रकम होती। उस इन्फेंट्री-केप्टन ने मुझे लूट लिया। अब ख़्याल आता है। हर बार ताश भी वही बांटता था, लफंगा। उसने पंद्रह मिनट में मेरी सारी जेबें साफ कर दीं। मैं उसके मुंह पर एक घूसा जड़ना चाहता था, लेकिन मौका नहीं मिला। ये कैसा असभ्य कस्बा है? यहाँ कोई उधार नहीं देता। टुच्चे लोग। (सीटी बजाता और गुनगुनाता हुआ कमरे में चहलकदमी करता है) ये लोग अभी तक क्यों नहीं आये? (वेटर के साथ ओसिप का प्रवेश)
वेटर : सराय-मालिक ने मुझे ये जानने के लिये भेजा है कि आप क्या चाहते हैं?
ख्लेस्टाकोव : हैलो! कैसे हो प्यारे दोस्त?
वेटर : बढ़िया! ईश्वर को धन्यवाद।
ख्लेस्टाकोव : धंधा बढ़िया चल रहा है?
वेटर : बढ़िया। ईश्वर को धन्यवाद।
ख्लेस्टाकोव : ढेरों ग्राहक आते हैं?
वेटर : ढेरों। ग्राहकों से फुर्सत नहीं।
ख्लेस्टाकोव : देखो मेरे दोस्त, उन्होंने अभी तक मेरा खाना नहीं भेजा। मुझे जरूरी काम पर जाना है। जाकर उन्हें एक फटकार तो लगाओ।
वेटर : मालिक का कहना है कि अब खाना नहीं मिलेगा। यह भी कि वे मेयर से आपकी शिकायत करने जा रहे हैं।
ख्लेस्टाकोव : शिकायत? किस बात की प्यारे भाई? मेरा मतलब है आदमी को जिन्दा रहने के लिये खाना तो खाना ही पड़ता है। नहीं इस तरह तो मैं मर जाऊँगा। यह बात मैं पूरी गम्भीरता से कह रहा हूँ।
वेटर : सच है। लेकिन मालिक का कहना है- जब तक वह पिछला उधार नहीं चुकाता, उसे रोटी का एक टुकड़ा भी न दिया जाय।
ख्लेस्टाकोव : लेकिन क्या तुम उसे समझा नहीं सकते?
वेटर : क्या नहीं समझा सकता?
ख्लेस्टाकोव : यही कि रुपयों की चिन्ता क्यों करता है। मुझे भयंकर भूख लगी है। वह गवांर सोचता है कि अगर एक दिन वह बिना भोजन के रह सकता है, तो मैं रह सकता हूँ।
वेटर : ठीक है। कहता हूँ।
(ओसिप के साथ जाता है)
दृश्य : चार
(कमरे में ख्लेस्टाकोव, अकेला)
ख्लेस्टाकोव : अगर सराय मालिक ने न कह दिया तो मैं क्या करूंगा? मुझे ज़िन्दगी में आज तक इतनी भयंकर भूख नहीं लगी। हो सकता है मैं अपने कपड़े ही खाना शुरू कर दूं.... जैसे अपनी पतलून। लेकिन नहीं अगर मरना ही पड़ा तो अपने सेंट पीटर्सबर्ग वाले सूट मेें ही मरूंगा। ये मेरे लिये कितनी दयनीय बात है कि पीटर्सबर्ग में मुझे जोचीम ने किराये पर बग्घी नहीं दी। बग्घी में सवार होकर अपने घर लौटने की शान ही कुछ और होती। कितना भव्य दृश्य होता-बग्घी में बैठा हुआ मैं, दोनों बाजुओं पर जलते हुए प्रखर लैम्प, और मेरे पीछे सेवा में खड़ा ओसिप.... मैं सारे दृश्य की कल्पना कर सकता हूँ.... ये कौन साहिबान हैं? लोग पूछते और सुनहरी वर्दीधारी मेरा अर्दली घोषित करता है(झुक कर अर्दली की नकल उतारता हुआ) इवान अलेक्जेन्ड्रोविच ख्लेस्टाकोव, अपना परिचय प्रस्तुत करते हैं....क्या श्रीमान् अपनी स्वीकृति प्रदान करेंगे? फूहड़। गवांर लोग। ये क्या जाने कि स्वीकृति प्रदान करने का क्या मतलब होता है। अगर मेरी जगह ये बेवकूफ सराय मालिक होता तो रीछ की तरह सीध्ो उनके डांइग रूम में जा धमकता। लेकिन मैं उस सुन्दर कन्या की ओर एक-एक कदम बढ़ता और कहता-कुमारी जी! क्या मैं....? (अपने हाथ मलता हुआ पैर फटफटाता है) थू!....(थूकता है) भूख और बर्दाश्त नहीं होती। लगता है दम निकल रहा है।
दृश्य : पाँच
(ओसिप के साथ वेटर का प्रवेश)
ख्लेस्टाकोव : हाँ तो?....
ओसिप : खाना हाजिर है।
ख्लेस्टाकोव : हाजिर है। (कुर्सी से उछल कर हुर्रे।)
वेटर : (हाथ में प्लेटें और नेपिकन) मालिक का कहना है-आखिरी बार।
ख्लेस्टाकोव : मैं तुम्हारे मालिक पर थूकता हूँ। खाने में क्या, क्या है?
वेटर : सूप और कबाब।
ख्लेस्टाकोव : क्या सिर्फ दो चीजें?
वेटर : सिर्फ दो।
ख्लेस्टाकोव : बेहूदा बात। मैं इसे बर्दाशत नहीं कर सकता। उससे बोलो कि क्यों जुल्म ढा रहा है। बहुत हो चुका।
वेटर : मालिक का कहना है-बहुत हो चुका।
ख्लेस्टाकोव : प्लेट में चटनी क्यों नहीं है?
वेटर : थी नहीं।
ख्लेस्टाकोव : थी नहीं का मतलब? जब रसोई से गुजरा तो चटनी तैयार हो रही थी? और मछली? सुबह दो मोटे ग्राहक खा रहे थे।
वेटर : ठीक है-थी और नहीं थी।
ख्लेस्टाकोव : तुम्हारा क्या मतलब है?.... नहीं है?
वेटर : एकदम नहीं है।
ख्लेस्टाकोव : न मछली,न सालमन,न कीमा....?
वेटर : सब है। लेकिन कायदे के ग्राहकों के लिये।
ख्लेस्टाकोव : बेबकूफ! लफंगा!....
वेटर : जी हाँ श्रीमान्!
ख्लेस्टाकोव : गलीज़! सुअर के बच्चे! जो खाना दूसरों को मिलता है मुझे क्यों नहीं? मैं तुम्हारी सराय का मेहमान हूँ। समझा?....
वेटर : आप और उनमें फ़र्क़ है।
ख्लेस्टाकोव : क्या फ़र्क़ है?
वेटर : बहुत सीधा। वे अपने बिल चुकाते हैं।
ख्लेस्टाकोव : तुम जैसे बेबकूफ से बहस करने का मेरे पास वक्त नहीं (चम्मच से सूप मुंह में डालता हुआ) ये क्या बला है? तुम इसे सूप कहते हो? किसी प्लेट का धोवन इस कप में भर दिया है। कोई स्वाद नहीं, इससे बदबू आती है। इसकी जरूरत नहीं। उठा लो। इसे ले जाओ।
वेटर : ठीक है। मालिक का कहना है कि खाना भी जैसा है, यही है। पसंद नहीं, मत खाओ।
ख्लेस्टाकोव : (प्लेटों को दोनों हाथ से ढकता हुआ) नहीं, नहीं, नहीं.... रहने दे मूर्ख! तुम दूसरे ग्राहकों के साथ ऐसा करने के आदी हो सकते हो, लेकिन मेरे साथ ऐसी जुर्रत मत करना। मैं ऊँची हैसियत का स्वामी हूँ।(फिर खाना शुरू करता है)हे ईश्वर! कितना बेस्वाद सूप! मुझे शक है कि दुनिया में किसी और ने ऐसा सूप खाया होगा जिसमें बजाय चिकनई के मुर्ग के पंख तैरते हों।(सूप से गोश्त निकाल कर काटता है) नर्क! ये कैसा मुर्ग है? ओसिप तुम्हें सूप की जरूरत होगी? अब कबाब देखें।(चाकू से काटता है) हे ईश्वर ये क्या है? कबाब तो है नहीं।
वेटर : तो क्या है?
ख्लेस्टाकोव : शैतान ही बता सकता है कि क्या है। लेकिन गोश्त तो है नहीं। सब्जियों के छिलके। (खाता है) वे जानते हैं कि मुझे क्या खिला रहे हैं। उफ्। लफंगे! दांत उखाड़ने के लिये एक ही काफी है (दांत सहलाता) लुटेरे! (रूमाल से मुंह पोंछता है) और क्या है?
वेटर : और कुछ नहीं।
ख्लेस्टाकोव : क्या?....ये संगीन जुर्म है। यहाँ, तक कि पेस्ट्री और चटनी भी नहीं। मुसाफिरों के लुटेरे। (चम्मचें प्लेटें उठा कर वेटर का ओसिप के साथ प्रस्थान।)
दृश्य : छह
ख्लेस्टाकोव : लगता ही नहीं कि कुछ खाया। पेट की आग और भड़क गई है। क्या करूं?
ओसिप : (लौटता हुआ) मेयर आया हुआ है। आपके बारे में पूछ-ताछ कर रहा है।
ख्लेस्टाकोव : (आतंकित)मेयर! हे परमात्मा। तो सराय-मालिक ने शिकायत कर दी। फर्ज करो उसने मुझे सचमुच जेल में डाल दिया तो? इतना अशिष्ट तो उसे नहीं होना चाहिये। ये मैं क्या सोचे जा रहा हूँ जेल। कितने सारे लोग मुझे देखेंगे। सड़क पर अफसरों और जनता की भीड़ है। इनके अलावा उस दुकान की वह गुड़िया-सी छोकरी! वह भी देखेगी। नहीं, मैं किसी हालत में जेल नहीं जाऊँगा। उन्होंने मुझे समझ क्या रखा है- कोई व्यापारी या मजदूर?(तन कर खड़ा होता और हिम्मत जुटाता हुआ) मैं उनसे सीध्ो सवाल करूंगा-तुम्हें जुर्रत कैसे हुई? (किवाड़ों का हेन्डिल घूमता है। ख्लेस्टाकोव डर कर सिकुड़ जाता है)
दृश्य : सात
(डाबचिंस्की के साथ मेयर का प्रवेश। डाबचिंस्की बुत की तरह बेजुम्बिश खड़ा हो जाता है। मेयर और ख्लेस्टाकोव, एक-दूसरे से डरते हुए, एक दूसरे को आँखें फाड़ कर देखते हैं।)
मेयर : (होश में लौटता हुआ अटेंशन की मुद्रा में आकर)सलाम बजाता हूँ महामहिम।.
ख्लेस्टाकोव : (झुक कर) सम्मानीय। मेरे ख्याल से..
मेयर : क्षमा करें।
ख्लेस्टोकोव : एकदम नहीं।
मेयर : मेयर होने के नाते यह देखना मेरा फर्ज है कि किसी ओहदेदार या आगन्तुक को कोई कष्ट न हो।
ख्लेस्टाकोव : (पहले थोड़ा झिझकता है लेकिन बाद में लय में आता हुआ जोर से)लेकिन इसके लिये मैं क्या कर सकता हूँ? इसमें मेरा कोई दोष नहीं। मैं उनका बिल चुका दूंगा। मैं वादा करता हूँ। मैंने घर से पैसा मंगाया है।(बाबचिंस्की दरवाजे़ के बाहर मंडराता है) सराय - मालिक की ग़लती ज़्यादा बड़ी है। खाने के लिये जो गोश्त वह भेजता है, उससे पुराने जूतों जैसा स्वाद आता है और जहाँ तक सूप का सवाल है, ईश्वर ही जानता है किस चीज़ का बनाता है.... मुझे खिड़की के बाहर फेंकना पड़ा। यह आदमी मुझे सुबह से शाम तक भूखों मारता है और यहाँ की चाय भी एकदम बेमिसाल। उससे मछली की गंध आती है। ऐसी हालत में मैं कैसे सोच लूं कि....
मेयर : मुझे क्षमा करें। इसमें मेरी कोई ग़लती नहीं। बाज़ार में गोरी से लाया गया ताजा गोश्त हर समय उपलब्ध रहता है। मुझे ताज्जुब है उसे सड़ा हुआ गोशत मिला कहाँ से? लेकिन अगर आपको ये जगह पसंद नहीं तो शायद मैं आपको सुझाव दे सकता हूँ कि मेरे साथ दूसरे कमरों में चलें।
ख्लेस्टाकोव : मैं नहीं जाऊँगा। मैं जानता हूँ दूसरे कमरों से आपका क्या मतलब है। आपका मतलब है- जेल। आपको इसका कोई अधिकार नहीं। आपने ऐसा कहने की जुर्रत कैसे की? मैं....मैं.... पीटर्सबर्ग से आया हुआ एक बड़ा सरकारी अफसर हूँ। (भड़क कर)मैं....मैं....मैं....।
मेयर : (स्वगत) हे परमपिता! इसे हर बात का पता है। बदमाश व्यापारियों ने पहले से ख़बर कर दी।
ख्लेस्टाकोव : (हिम्मत जुटाता हुआ)तुम पूरी फौज भी ले आओ तो मैं यहाँ से टस से मस होने वाला नहीं। मैं सीधा मंत्री के पास जाऊँगा। तुम ने समझ क्या रखा है? मैं तुम्हें....
मेयर : (थर-थर काँपता हुआ अटेंशन की मुद्रा में) कृपया महामहिम! मुझे माफी दें। मेरी एक बीवी और छोटे-छोटे बच्चे हैं। मुझे बर्बाद न करें।
ख्लेस्टाकोव : मैं नहीं जाऊँगा। इससे आपके तवाह होने का क्या संबंध है? चूँकि आपके बीवी बच्चे हैं इसलिये मैं जेल जाऊँ? क्या बात कही है? (बाबचिंस्की दरवाज़े से अंदर झांकता है) मेरा कोई इरादा नहीं।
मेयर : यह सब मेरे कम वेतन और अनुभवहीनता के कारण हुआ। आप देख सकते हैं मेरा वेतन चाय और शक्कर ख़रीदने लायक भी नहीं और रिश्वत भी कोई ख़ास नहीं। कभी टेबिल पर रखने की कोई चीज़ या कोट का कपड़ा जहाँ तक सार्जेंट की विधवा को कोड़े लगवाने का सवाल है वह कोरी अफवाह है। मेरे दुश्मनों द्वारा फैलायी गई अफवाह। आपको मुश्किल से विश्वास होगा, इन लोगों से मुझे जान का ख़तरा है।
ख्लेस्टाकोव : (अंदर से डरा हुआ, बाहर से सख़्त) उनसे मुझे क्या लेना-देना? आप मुझे अपने दुश्मनों और सार्जेन्ट की बेवा के किस्से क्यों सुना रहे हैं? सार्जेन्ट की बेवा की बात और है। लेकिन मुझे कोड़े लगवाने की सोचना भी मत। कैसा ख़्याल है? आप अपने को समझते क्या हैं? इस वक़्त मेरे पास रुपया नहीं है, इसीलिये इस सराय में अटका पड़ा हूँ। इस वक़्त मेरे पास फूटी कौड़ी नहीं....
मेयर : (स्वगत) पक्का खिलाड़ी है। इसने सही रास्ता पकड़ा है, लेकिन मैं क्या करूँ? सब इतना गड-मड है कि समझ में नहीं आता किस सिरे से पकडू़?.... धुएँ में लट्ठ घुमाऊँ फिर जो हो सो देखा जायेगा (प्रकट) महामहिम! यदि आपको आवास की जरूरत हो तो आदेश करें मेहमानों की मदद करना हमारा फर्ज है।
ख्लेस्टाकोव : अलबत्ता कुछ उधार से काम चल जायेगा। उससे सराय का बिल चुका दूंगा। 200 रुपया से हो जायेगा। कुछ कम हों तो भी....
मेयर : (जेब से नोट निकालता हुआ) ये रहे। ठीक 200 हैं। कृपया गिनने का कष्ट न करें।
ख्लेस्टाकोव : कृतज्ञ हुआ। अपनी जागीर पहुँचते ही आपकी रकम लौटा दूंगा। लेन-देन के मामले में मैं बहुत पाबंद हूँ। मैं देख रहा हूँ कि आप एक भद्र-पुरळष हैं। अब एकदम अलग बात होगी।
मेयर : (स्वगत) हे परमपिता उसने ले लिये और मैंने होशियारी से 200 की जगह चार सौ सरका दिये।
ख्लेस्टाकोव : ओसिप! (ओसिप का प्रवेश) वेटर को बुलाओ। (मेयर और डाबचिंस्की से) आप लोग खड़े क्यों हैं? कृपया आसन ग्रहण करें, मेरा अनुरोध है (डाबचिंस्की से) प्रिय महोदय, मेरी प्रार्थना है।
मेयर : कृपया परेशान न हों। हमें खड़े रहने में आनंद है।
ख्लेस्टाकोव : नहीं महोदय! मेरी प्रार्थना है। मैं समझ रहा हूँ कि आप दयालु और ईमानदार लोग हैं। पहले मेरा ख़्याल था कि आप...(डाबचिंस्की से) कृपया बैठ जायें।(मेयर और डाबचिंस्की कुर्सियों पर बैठ जाते हैं, बाबचिंस्की अंदर झांकता है)
मेयर : (स्वगत) कुछ हिम्मत से काम लेना चाहिये। अगर ये अजनबी बना रहना चाहता है तो हम भी उसका खेल-खेल सकते हैं। हम बहाना करें कि हम भी उसे नहीं पहचानते (प्रकट) मैं और कस्बे के जमींदार डाबचिंस्की, इधर से गुजर रहे थे ख़्याल आया कि देखते चलें सराय मालिक हमारे आगन्तुकों से कैसा व्यवहार करते हैं। मैं उन मेयरों से नहीं जो चीज़ों को अपनी मर्जी से चलने के लिये छोड़ देते हैं। न सिर्फ़ कर्तव्य भाव से, बल्कि जैसा हर ईसाई के लिये लाज़िमी है, मैं ये सुनिश्चित करना चाहता हूँ कि यहाँ से गुज़रने वाले हर यात्री को विनम्र स्वागत मिले और इसी के पुरस्कार स्वरूप मुझे एक महत्त्वपूर्ण हस्ती से परिचित होने की खु़शी हासिल हुई।
ख्लेस्टाकोव : मुझे भी आपसे परिचित होने की खु़शी है। अगर आप न आते तो इस दड़बे में कुछ दिन और काटने पड़ते। मेरी समझ मेें नहीं आ रहा था सराय मालिक का बिल कैसे चुकाऊँ!
मेयर : (स्वगत) सयाने की बात सुनो। इसकी समझ में नहीं आ रहा था कि सराय का बिल कैसे चुकायेगा (प्रकट) क्या पूछने का दुस्साहस कर सकता हूँ कि महामहिम किस दिशा में प्रस्थान करेंगे?
ख्लेस्टाकोव : अपनी जागीर सरटोव जाऊँगा।
मेयर : (स्वगत) कहता है सरटोव और एकदम बेझिझक। ऐसे शातिर के साथ हर पल कान खड़े रखना जरूरी है। (प्रकट) यात्रा तो बढ़िया है। रास्ते में घोड़े बदलने की दिक्कत आयेगी। लेकिन कहते हैं ऐसे कामों से दिमागी कसरत होती है। मेरे ख़्याल से श्रीमान् मौज-मस्ती के लिये जा रहे होंगे?
ख्लेस्टाकोव : नहीं मेरे पिता ने बुलाया है। मुझसे नाराज हैं। उनका सोचना है कि सेन्टपीटर्सबर्ग मेंं पदवियाँ पेड़ों पर लगती हैं।
मेयर : महामहिम यहाँ कुछ दिन रुकेंगे?
ख्लेस्टाकोव : कह नहीं सकता। दरअसल मेरा बाप खच्चर की तरह अड़ियल और मूर्ख है इस बार उससे साफ़-साफ़ बोल दूंगा-आपको जो कहना हो कहो। मैं सेन्ट पीटर्सबर्ग के अलावा कहीं नहीं रह सकता। मैं गवांर किसानों के बीच अपनी ज़िन्दगी कैसे बर्बाद कर दूं। आज के आदमी की ज़रूरतें दूसरे तरह की होती हैं। साफ़-साफ़ बोल दूंगा-मेरे दिल में संसार की ऊँची चीज़ों को पाने की महत्त्वाकांक्षा है।
मेयर : (स्वगत) खूबसूरत जाल बुन रहा है। एक के बाद दूसरा झूठ। कुछ भी हो किसी न किसी तरह पकड़ ही लूंगा। (प्रकट) एकदम सत्य-वचन। सरहद के जंगली इलाके में कोई क्या करेगा? मिसाल के लिये मुझे देखिये। देश-सेवा में दिन-रात एक करता हूँ, कोई कोशिश नहीं छोड़ता। लेकिन देखिये, इसका कोई पुरस्कार नहीं...(कमरे में चारों ओर नज़रें दौड़ाता है) कमरा कुछ सीलनभरा लगता है।
ख्लेस्टाकोव : सीलनभरा और शर्मनाक! आपने इसके खटमल नहीं देखे। कुत्तों की तरह काटते हैं।
मेयर : हे ईश्वर! इतने महत्त्वपूर्ण आगन्तुक का ये हाल! इसके अलावा कुछ अंधेरा भी है। नहीं....?
ख्लेस्टाकोव : नरक जैसा अंध्ोरा। सराय मालिक की नीति है कि मोमबत्ती भी न दी जाय। कोई पुस्तक पढ़ना चाहूँ या कोई रचना लिखना चाहूँ तो भी नहीं। इतना अंध्ोरा है।
मेयर : क्या मैं कुछ कहूँ? लेकिन नहीं उतना दुस्साहस मैं नहीं कर सकता।
ख्लेस्टाकोव : क्या, क्या....?
मेयर : नहीं, मैं उसके योग्य नहीं।
ख्लेस्टाकोव : लेकिन किसके योग्य?
मेयर : मेरे घर में आपके लिये एक सुन्दर सुसज्जित कमरा है। खूब शान्त और रोशन। लेकिन नहीं.... मेरे जैसे अदना के लिये ये बहुत बड़ा सम्मान होगा। कृपया अन्यथा न लें, मैं सिफ़र् आपकी सेवा करना चाहता हूँ।
ख्लेस्टाकोव : प्यारे साथी। लेकिन इसके विपरीत मुझे प्रसन्नता होगी। इस खस्ता इमारत में रहने के बजाये मैं किसी प्राईवेट मकान में रहना ज़्यादा पसंद करूँगा।
मेयर : (हर्षातिरेक से) मुझे भी प्रसन्नता है।....मेरी बीवी प्रसन्नता से पागल हो उठेगी। मैं बचपन ही से मेहमान-नवाज रहा हूँ। ख़ास तौर से तब, जब आप जैसे विद्वान हमारे मेहमान हों। कृपया ये न समझें कि मैं चापलूसी कर रहा हूँ। मैं हमेशा दिल की बात कहता हूँ।
ख्लेस्टाकोव : हार्दिक धन्यवाद! मैं भी आप जैसा ही हूँ। ढोंगियों को सख्त़ नापसंद करता हूँ। आपकी साफ़गोई और नम्रता ने मेरा दिल गर्मा दिया है। जीवन में आदर, और समर्पण से ज़्यादा कोई क्या चाह सकता है?
दृश्य : आठ
(ओसप के साथ वेटर का प्रवेश)
वेटर : आपने बुलाया श्रीमान?
ख्लेस्टाकोव : हाँ, मेरा बिल दो।
वेटर : आपका बिल कल दे चुका हूँ।
ख्लेस्टाकोव : तुम्हारे बेबकूफी भरे बिल को मैं हिफाजत से नहीं रख सकता। बताओ कितने देना है?
वेटर : पहले दिन आपने सारे कोर्स खाये, दूसरे दिन सालमन पी। इसके बाद हर चीज़ उधार....
ख्लेस्टाकोव : मैं मीनू नहीं। बिल मांग रहा हूँ।
मेयर : कृपया इसमें दिमाग खराब न करें। ये काम बाद में भी हो सकता है। (वेटर से) यहाँ से दफा हो। मैं बाद में देख लूंगा।
ख्लेस्टाकोव : बेहतर है। (रुपये जेब में रख लेता है) (वेटर जाता है। बाबचिंस्की अंदर झांकता है।)
दृश्य : नौ
मेयर : आप हमारे कस्बे की कुछ सरकारी इमारतों को देखना पसंद करेंगे श्रीमान?
ख्लेस्टाकोव : किसलिये?
मेयर : यह देखने के लिये कि हम उन्हें किस तरह चलाते हैं। कितनी मुस्तैदी से अपनी जिम्मेदारी निभाते हैं?
ख्लेस्टाकोव : बिलकुल! ख़ुशी से। (बाबचिंस्की का सिर अंदर झांकता है)
मेयर : और एक झलक विद्यालय की भी। यह देखने के लिये कि हम विज्ञान की शिक्षा को किस तहर आगे बढ़ा रहे हैं।
ख्लेस्टाकोव : जरूर! जरूर!
मेयर : इसके बाद हमारी जेल का निरीक्षण। यह देखने के लिये कि हम अपने अपराधियों को कैसे रखते हैं।
ख्लेस्टाकोव : जेल क्यों? मैं अनुदान-संस्थाओं को देखना ज़्यादा पसंद करूंगा।
मेयर : ठीक है। ठीक है। अपने वाहन से चलेंगे या हमारी फिटन से?
ख्लेस्टाकोव : आपके साथ भी चल सकता हूँ।
मेयर : (डाबचिंस्की से)प्योत्र इवानोविच। अब आपके लिये जगह नहीं होगी।
डाबचिंस्की : कोई बात नहीं। मैं अपना इंतजाम कर लूंगा।
मेयर : (अलग) सुनो, मैं चाहता हूँ तुम मेरे दो संदेश लेकर दौड़ कर जाओ। पहला मेरी पत्नी के लिये, दूसरा वार्डन जेमलेनिका के लिये। (ख्लेस्टाकोव से) क्या मैं अपनी पत्नी को चंद सतरें लिखने की आज़ादी ले सकता हूँ। ताकि वह हमारे गौरवशाली मेहमान के स्वागत की तैयारी में जुट जाय?
ख्लेस्टाकोव : क्या हर्ज है। यहाँ कलम दवात तो है लेकिन काग़ज़ नहीं.... इस बिल से काम चल सकता है?
मेयर : (स्वगत, बड़बड़ाता हुआ) देखना है एक बोतल शराब और स्वादिष्ट भोजन के बाद क्या सूरतेहाल बनता है। हम उसे कुछ देसी भी छनवा देंगे, जो ऊपर से घासलेट लगती है, लेकिन एक हाथी को चित कर सकती है।(पर्चा लिख कर डाबचिंस्की को देता है, जिसे लेकर वह फुर्ती से दरवाजे़ की ओर भागता है। एकाएक दरवाज़ा तेज़ी से खुलता है और बाबचिंस्की मुंह के बल स्टेज पर गिरता है। स्टेज पर दहशत और शोर-गुल) बाबचिंस्की कपड़े झाड़ता हुआ उठ खड़ा होता है।
ख्लेस्टाकोव : चोट तो नहीं आयी?
बाबचिंस्की : नहीं, नहीं। कोई बात नहीं। कृपया परेशान न हों। थोड़ी सी खरोंच लगी है। इधर, नाक पर। मैं डाक्टर हिब्नर के पास जा रहा हूँ। वे मल्हम-पट्टी कर देंगे।
मेयर : (बाबचिंस्की से सख़्त नाराज, ख्लेस्टाकोव से) परेशान न हों महामहिम अब मुझे आज्ञा दें। आपका सामान आपका आदमी ले जायेगा (ओसिप से) प्यारे भाई। सारा सामाना मेरे घर ले आओ। (ख्लेस्टाकोव से)नहीं महामहिम, पहले आप (ख्लेस्टाकोव को रास्ता दिखाता है और उसके पीछे हो लेता है, फिर बाबचिंस्की को झिड़कने के लिये लौटता है।) मैं अब कभी तुम्हारा विश्वास नहीं करूंगा। तुम्हें मुंह के बल गिरने के लिये कोई दूसरी जगह नहीं मिली? मूर्ख!
अंक : तीन ; दृश्य : एक
(खिड़की से बाहर देखती हुई अन्ना आन्द्रेयेव्ना और मारिया एन्टनोव्ना)
अन्ना आन्द्रे. : हम यहाँ एक घन्टे से इंतजार में खड़े हैं और वह भी तुम्हारे ़ाृंगार के कारण। तुम हमेशा बन-ठन कर रहती हो और उलझने पैदा करती हो। दरअसल मुझे तुम्हारी बात पर कान नहीं देना चाहिये था। उफ्! ये पगला देने वाला इंतजार! सड़क पर एक आदमी नहीं! लगता है जैसे सारा कस्बा मर गया हो।
मा. एन्ट. : सच है माँ। लेकिन हमें एक मिनट में सब पता चल जायेगा। अद्योता लौटता ही होगी (खिड़की पर झुक कर चिल्लाती है) माँ! देखो कोई आ रहा है वो....सड़क के उस सिरे पर दौड़ता चला आ रहा है।
अन्ना आन्द्रे : कहाँ? मुझे तो कोई नहीं दिखता। तुम हमेशा कल्पना में देख लेती हो अरे हाँ.... कोई है तो। कौन हो सकता है। ये? मोटा और नाटा फ्रॉक-कोट पहने हुए.... कौन हो सकता है? दुनिया के किस कोने का प्राणी?
मा.एन्ट. : डाबचिंस्की है माँ।
आन्ना आन्द्रे. : डाबचिंस्की! मेरा ठेंगा! तू और तेरी कल्पनायें! डाबचिंस्की नहीं है (खिड़की के बाहर रूमाल हिलाती है) हे तुम! जल्दी आओ!
मा. एन्ट. : डाबचिंस्की है माँ।
अन्ना आन्द्रे. : चुप रहो। मैं जानती हूँ तुम मुझे चिढ़ाने के लिये उसका नाम ले रही हो। मैं कहती हूँ डाबचिंस्की नहीं है।
मा.एन्ट. : वो.... रहा। नहीं देख सकती डाबचिंस्की है?
अन्ना आन्द्रे. : हो सकता है डाबचिंस्की हो....ये तो मैं भी देख रही हूँ। तो अब बहस किस बात की?(खिड़की से चिल्ला कर)जल्द आओ.... तुम और तेज नहीं दौड़ सकते? बाकी लोग कहाँ है? क्या....? नहीं....? और मेरा पति....? (गुस्से से खिड़की से हटती हुई) ये आदमी बड़ा मूर्ख है। बिना अन्दर आये कुछ नहीं बताएगा।
दृश्य : दो
(डाबचिंस्की का प्रवेश)
अन्ना आन्द्रे. : तुम्हें अपने पर घोर शर्म आनी चाहिये। मैं तुम्हें एक भला-मानुष मान कर तुम्हारा विश्वास करती रही। लेकिन नहीं! सब गये तो तुम भी पीछे लग गये। किसी को भी मुझे ये बताने की चिन्ता नहीं कि क्या हो रहा है। यह ख़्याल करके कि मैं तुम्हारे नन्हें बनेच्का और लिजान्का की धर्म-माँ भी हूँ, तुम्हें शर्म आनी चाहिये।
(हांफता हुआ)
डाबचिंस्की : ईश्वर साक्षी है मेम साब। यहाँ के लिये दौड़ते-दौड़ते मेरा दम निकल गया। शुभ दिन मारिया एन्टनोव्ना।
मा. एन्ट. : शुभ दिन प्योत्र इवानोविच।
अन्ना आन्द्रे. : अब मुझे जल्दी से सारी बातें बताओ।
डाबचिंस्की : एन्टन एन्टनोविच ने आपके लिये एक पुर्जा भेजा है।
अन्ना आन्द्रे. : लेकिन वह है कौन? कोई जनरल है?
डाबचिंस्की : जनरल नहीं है। लेकिन देख कर लगता है कि है। इस कदर शिष्टाचारी और रोबीला।
मेयर : चिट्ठी में उसी का जिक्र होगा।
डाबचिंस्की : सबसे पहले उसका पता मैंने ही चलाया था। मैंने और बाबचिंस्की ने।
अन्ना आन्द्रे. : ये बताओ, हुआ क्या?
डाबचिंस्की : ईश्वर को धन्यवाद दें। अभी तक सब ठीक-ठाक चला। गौर करें पहले उसने एन्टन एन्टनोविच को जम कर हड़काया। सराय के इंतजाम की शिकायत की और घोषित कर दिया कि वह उनके साथ कहीं नहीं जायेगा। जेल तो किसी हालत में नहीं। लेकिन जैसे ही उसे महसूस हुआ कि इसमें एन्टन एन्टनोविच की कोई ग़लती नहीं तो शान्त होकर बतियाने लगा। ईश्वर को धन्यवाद कि उसका गुस्सा जल्दी ठंडा पड़ गया और बात बनने लगी। इस समय अस्पताल का निरीक्षण करने गये हैं। एन्टन एन्टनोविच डर रहे थे कि किसी ने उनकी शिकायत न की हो। कुछ-कुछ मैं भी डर रहा था?
अन्ना आन्द्रे. : तुम सरकारी नौकर नहीं। तुम्हें काहे का डर?
डाबचिंस्की : उस जैसे लट्ठ-दिमाग़ से कोई भी डरेगा।
अन्ना आन्द्रे. : बस, बस! ये फालतू बातें रहने दो। ये बताओ वह दिखता कैसा है? बूढ़ा है या जवान?
डाबचिंस्की : ओह एकदम जवान! कोई तेईस साल का। लेकिन बातें सयानों की तरह करता है। (उसकी नकल करता है, ठीक है, हम वहाँ भी एक नज़र देख लेंगे.... वहाँ भी, हवा में हाथ लहराता है) मैं थोड़ा सा पढ़ना लिखना पसंद करता हूँ लेकिन इस कमरे में मामूली-सा अंध्ोरा रहता है।
अन्ना आन्द्रे. : लेकिन देखने में कैसा है-गोरा या सांवला?
डाबचिंस्की : गन्दुमी। लेकिन आँखें बाज जैसी....जिनमें देखते ही बेचैनी होने लगती है।
अन्ना आन्द्रे. : इस पुर्जे में क्या लिखा है?(पढ़ती है) मैं जल्दी-जल्दी में लिख रहा हूँ। पहले गम्भीर आफत में पड़ा, लेकिन बाद में प्रार्थनाओं के बदले में ईश्वर की कृपा में विश्वास करते हुए....दो फ्राई सलाद आधा कैबियर कीमत एक रूबल....केबियर....?(रूक कर) इसका सींग पूंछ कुछ समझ में नहीं आता....ये क्या लिखा है-दो प्लेट पछली....?भाजी....?
डाबचिंस्की : सराय का बिल होना चाहिये। वे इतनी जल्दी में थे कि जो मिला उसी पर लिख दिया।
आन्ना आन्द्रे. : अच्छा, सराय का बिल! देखती हूँ (पढ़ती है) ईश्वर की कृपा में विश्वास रखते हुए आगे भी सब ठीक चलने की उम्मीद है। तुम हमारे महत्त्वपूर्ण मेहमान के लिये पीले वाल-पेपरों वाला कमरा जल्द सजा दो। खाना बनाने की चिन्ता मत करना। हम अस्पताल में खा कर आयेंगे। लेकिन शारब जरूर काफी मात्रा में मंगा लेना। किसी को अब्दुलिन की दुकान पर भेजो और उससे कहो कि बढ़िया से बढ़िया शराब दे। वर्ना मैं उसे उजाड़ दूंगा। तुम्हारे हाथ चूूमता हूँ। तुम्हारा एन्टन। हे ईश्वर! हमें जल्दी करना चाहिये। ए मिश्का! कहाँ हो?....मिश्का।.... (डाबचिंस्की दरवाजे़ पर दौड़ कर चिल्लाता है)
डाबचिंस्की : मिश्का! मिश्का! मिशका! (मिश्का का प्रवेश)
अन्ना आन्द्रे. : सुनो, दौड़ कर अब्दुलिन की दुकान पर जाओ। रुको तुम्हेें एक लिस्ट देती हूँ (टेबिल पर बैठ कर लिखती है, लिखते वक़्त पढ़ती जाती है) ये लिस्ट सीडोर को दे दो और बोलो कि जल्द अब्दुलिन की दुकान से शराब ले आये। इसके बाद मेहमानों वाले कमरे को एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण मेहमान के लिये सजा दो। कमरे, बिस्तर, वाश-वेसिन सभी ज़रूरी चीजे़ं लगा दो।
डाबचिंस्की : बेहतर है कि अब दौड़ कर जाऊँ और देखूं कि मुआयना कैसा चल रहा है।
अन्ना आन्द्रे. : तो जल्द जाओ। मैं नहीं रोकूँगी।
दृश्य : तीन
अन्ना आन्द्रे. : माशा! अब हमें अपनी पोशाकों के बारे में तय कर लेना चाहिये। वह पीटर्सबर्ग की संस्कृति का भद्र पुरळष है। हमें उसकी नज़र में हास्यास्पद नहीं दिखना चाहिये। मेरे ख़्याल से तुम्हारे लिये पीली-नीली, चुन्नटों वाली ठीक रहेगी।
मा.एन्ट. : आह नहीं माँ!.... पीली-नीली नहीं। मुझे उससे चिढ़ है। इसके अलावा श्रीमती त्याप्किन भी यही ड्रेस पहनती हैं, और वो जेमलेनिका लड़की भी। मैं तो फूलों वाली ड्रेस पहनूंगी।
अन्ना आन्द्रे. : फूलों वाली! तुम सिर्फ मुझे परेशान करने के लिये जिद कर रही हो! तुम्हारे लिये पीली-नीली इसलिये ठीक रहेगी क्योंकि मैं अपनी पीली-गुलाबी पहनने जा रही हूँ जिससे मुझे इतना प्रेम है। मा.मान्ट. : नहीं माँ। पीली-गुलाबी नहीं। वह तुम पर फबती नहीं।
अन्ना आन्द्रे. : क्यों भला? क्या मैं पूछ सकती हूँ कि क्यों?
मा.मान्ट. : पीली गुलाबी पोशाक के लिये कजरारी आँखें होनी चाहिये।
अन्ना आन्द्रे. : (व्यंग्य से)कुछ बोली तो। ये लड़की मुझे बताना चाहती है कि मेरी कजरारी आँखें नहीं, इसलिये नहीं। जबकि मैं अपना हर काम हीरों की रानी (पान की बेगम) से सगुन निकाल कर करती हूँ।
मा.एन्ट. : लेकिन माँ, तुम दिलों की रानी (पान की बेगम)ज़्यादा दिखती हो।
अन्ना आन्द्रे. : बकवास! मैं कभी दिलों की रानी नहीं रही। (मारिया एन्टनोव्ना के साथ जल्दी से जाती है) क्या सचमुच, मैं दिलों की रानी हूँ। पता नहीं ये लड़की आगे क्या-क्या सोचेगी?(उनके जाने के साथ ही दाइर्ं बाइर्ं ओर के दरवाज़े खुलते हैं। एक से झाड़ू हाथ में लिए मिश्का आकर फर्श साफ़ करने लगता है, दूसरे से सिर पर बक्सा रखे ओसिप का प्रवेश।)
दृश्य : चार
ओसिप : इसे कहाँ रख दूं?
मिश्का : उधर बूढ़े बाबा, अंदर।
ओसिप : जरा इसे पकड़ो। कैसी कुत्ती जिऩ्दगी है। खाली पेट लम्बा रास्ता पार करना मुश्किल होता है।
मिश्का : बूढ़े बाबा, क्या जनरल साहब जल्द आने वाले हैं?
ओसिप : कौन जनरल साहब?
मिशका : क्यों, तुम्हारे मालिक?
ओसिप : मेरा मालिक? उसे तुम क्या कहते हो? जनरल?....
मिश्का : वह जनरल साहब नहीं हैं?
ओसिप : वह जनरल, बल्कि डेढ़ जनरल बन चुके हैं।
मिश्का : तुम्हारा मतलब जनरल से भी ऊपर?
ओसिप : बिलकुल। चाहो तो शर्त बद सकते हो।
मिश्का : मेरे लिये मुसीबत। ताज्जुब नहीं, ये लोग क्यों इतने घबराये हुए हैं।
ओसिप : देखो बैठो। तुम मुझे समझदार लगते हो। थोड़ा-सा खाना खिला सकते हो? मिशका : पिता जी। इस वक्त तो कुछ भी नहीं है। रूखा-सूखा तुम पसंद नहीं करोगे लेकिन जब तुम्हारे मालिक भोजन पर बैठेंगे तुम्हें भी भरपेट खिलाया जायेगा।
ओसिप : रूखा-सूखा से तुम्हारा क्या मतलब है?
मिश्का : सब्जी का शोरवा, खिचड़ी, भुना हुआ कीमा।
ओसिप : ठीक है। बदलाव के लिये चल जायेगा। यही ले आओ।
मिश्का : ठीक है।
(दोनों बक्से को टांग कर बगल के कमरे में ले जाते हैं)
दृश्य : पाँच
(सिपाही सामने का बड़ा दरवाजा खोलते हैं। ख्लेस्टाकोव का प्रवेश उसके पीछे क्रमशः मेयर, वार्डन, शिक्षाधिकारी, डाबचिंस्की और नाम पर पट्टी चिपकाये बाबचिंस्की। मेयर फर्श पर पड़े काग़ज़ के टुकड़े की ओर संकेत करता है, जिसे उठाने के लिये दोनों सिपाही झपटते हैं। आपस में टकराते हैं)
ख्लेस्टाकोव : अस्पताल दर्शनीय था। मैं कहने को बाध्य हूँ कि जिस तरह से आप आगंतुकों को घुमाते हैं, उससे मैं प्रभावित हुआ हूँ। दूसरे कस्बों में उन्होेंने मुझे कुछ नहीं दिखाया।
मेयर : साफ़ कहने का दुस्साहस करूं तो दूसरे कस्बों में अफसर अपनी जेबों की चिन्ता ज़्यादा करते हैं। जबकि हम अपनी मुस्तैदी और अच्छे काम से अपने अफसरों की शाबाशी पाने के अलावा दूसरी चीज़ों के बारे में कम सोचते हैं।
ख्लेस्टाकोव : अद्भुत भोजन था। मैंने छक कर खाया। क्या आप लोग हर रोज़ ऐसा भोजन करते हैं?
मेयर : इसके विपरीत वह हमारे खू़बसूरत मेहमान के लिये ख़ास तौर से तैयार कराया गया था।
ख्लेस्टाकोव : मुझे स्वादिष्ट भोजन से प्रेम है ज़िन्दगी है भी काहे के लिये? सुन्दर फूल चुनने के लिये। उस स्वादिष्ट मछली को क्या कहते हैं?
वार्डन : (झपट कर) टाउट मुनेरी महामहिम।
ख्लेस्टाकोव : बेहद स्वादिष्ट थी। हमने खाना कहाँ खाया था-अस्पताल में? नहीं?
वार्डन : सच है श्रीमान्। हमारे अनुदान संस्थान में।
ख्लेस्टाकोव : याद आता है वहां कुछ बिस्तर भी पड़े देखे थे? हालांकि उतने मरीज नहीं थे? क्या सब स्वस्थ हो कर जा चुके हैं?
वार्डन : कोई एक दर्जन बचे हैं। बाक़ी सब स्वास्थ्य लाभ कर अपने घर जा चुके। हमारा संस्थान इसी तरह चलता है। जबसे मैंने व्यवस्था संभाली, आपको मुश्किल से विश्वास होगा मरीज मक्ख्यिों की तरह तंदुरुस्त होने लगे। वे अस्पताल में क़दम रखते ही स्वस्थ महसूस करने लगते हैं और यह भी अस्पताल की दवाइयों से नहीं बल्कि हमारी उत्तम व्यवस्था के कारण।
मेयर : लेकिन एक मेयर की जिम्मेदारी की तुलना में ये कुछ भी नहीं। मुझे कई मोर्चों पर एक साथ जूझना पड़ता है। सड़कों की सफाई, इमारतों का रख-रखाव, पुनर्निर्माण और एक से एक शातिर, बदमाशों से दिमाग़ लड़ाना। लेकिन ईश्वर को धन्यवाद सब कुछ राई-रत्ती ठीक चल रहा है। ईश्वर साक्षी है सोने से पहले मेरी यही प्रार्थना होती है, ‘‘हे प्रभु मेरे अफसर मेरे उत्साह को देखें और मुझ पर ड्डपा दृष्टि रखें। वे मुझे पुरस्कृत करें या नहीं ये सोचना उनका काम है। काम से मुझे मानसिक शान्ति मिलती है। जिस कस्बे की व्यवस्था चुस्त होती है वहां की सड़कें साफ़ रहती हैं, कैदियों की देख-भाल होती है, वहां ज़्यादा पियक्कड़ नहीं होते इससे ज़्यादा मैं और क्या चाह सकता हूँ। मैं अलंकरणों के पीछे नहीं भागता। मेरे लिये तो अच्छा काम ही अपना इनाम है।
वार्डन : (स्वगत) उचक्के की बात सुनो। इसे तो बातूनी होने का इनाम मिलना चाहिये।
ख्लेस्टाकोव : आप सच कहते हैं। कभी-कभी मैं भी थोड़ा दार्शनिक चिन्तन कर लेता हूँ.... एक या दो पैरा.... आप समझ सकते हैं।
बाबचिंस्की : (डाबचिंस्की) सच है प्योत्र इवानोविच। जिस स्टाइल से ये अपनी बात रखता है, उससे पता चलता है इसने विज्ञान का अध्ययन किया है।.... नहीं?
ख्लेस्टाकोव : क्या इस कस्बे में मनोरंजन के साधन नहीं? क्या आप लोग कभी ताश खेलने के लिये नहीं जुटते?
मेयर : (स्वगत) ओहो, मेरे शातिर दोस्त मैं समझ रहा हूँ तुम क्या सूंघ रहे हो।(प्रकट) मैं अपने कस्बे में ऐसी चीज़ की इज़ाजत नहीं दे सकता। मैंने तो ज़िन्दगी भर ताश का पत्ता नहीं छुआ। एक बार बच्चों के लिये ताश का घर बनाया तो रात भर बुरे सपने आये। मुझे आश्चर्य है कुछ लोग कैसे ताशों में अपना कीमती समय बर्बाद करते हैं।
शिक्षा अधि. : (स्वगत)पिछली रात इसने मेरे 100 रूबल नहीं जीते थे?
मेयर : मेरा सारा समय एक बेहतर काम... जनता की सेवा में बीतता है।
ख्लेस्टाकोव : मैं ऐसा नहीं सोचता कि यहाँ आप निष्पक्ष हैं। दरअसल ये इस बात पर है कि जीवन को आप किस कोण से देखते हैं। आप ऐसे व्यक्ति हैं, जो उस वक़्त भी काम से चिपटा रहता है जब उसे ताश की टेबिल पर दांव लगाता होना चाहिये। जो हो। ताश के खेल से ढेरों लुत्फ उठाया जा सकता है।
दृश्य : छह
(अन्ना आन्द्रेयेव्ना और मारिया एन्टनोव्ना का प्रवेश)
मेयर : महामहिम! मुझे अपनी पत्नी और बेटी को प्रस्तुत करने की इज़ाजत दें।
ख्लेस्टाकोव : (झुक कर) श्रीमती जी! मैं भावविभोर हूँ.... मेरा मतलब है आपके सान्निध्य से।
अन्ना आन्द्रे. : आप जैसे महत्त्वपूर्ण व्यक्ति को अपने बीच पाकर, मेरी प्रसन्नता आपसे बड़ी है।
ख्लेस्टाकोव : (बड़प्पन से) मुझे कहने की इज़ाजत दें कि सारी प्रसन्नता मेरी है।
अन्ना आन्द्रे. : सचमुच महाशय! आप बड़े चाटुकार हैं। कृपया बैठ जायें।
ख्लेस्टाकोव : आपके बगल में खड़ा होना ही परम आनन्ददायक है। फिर भी आपका आग्रह है तो बैठ जाता हूँ (बैठ जाता है) आपके पहलू में बैठना अदभुत है।
अन्ना आन्द्रे. : लेकिन ये बात आप दिल से नहीं कहते। पीटर्सबर्ग की तुलना के लायक यहाँ कुछ भी नहीं।
ख्लेस्टाकोव : मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ। ऐसी तुलना बेमानी है। जैसी जिन्दगी का मैं आदी हूँ उसमें गन्दी सरायें और सांस्कृतिक रेगिस्तानों से गुजरना भी शामिल है। लेकिन मैं कहने को बाध्य हूँ कि ऐसे में इस तरह के सुन्दर अवसरों का आना सारी यात्रा को खुशगवार बना देता है।
अन्ना आन्द्रे. : फिर भी आपको असुविधा हो रही होगी।
ख्लेस्टाकोव : निस्संदेह कस्बों में पहाड़ियों और घाटियों का अपना सौन्दर्य होता है, लेकिन, यह भी सच है कि इसकी तुलना पीटर्सबर्ग से नहीं की जा सकती। आह सेन्ट पीटर्सबर्ग। ज़िन्दगी अगर कहीं है तो वहीं। आप सोचती होंगी कि मैं एक मामूली नकल-नवीस हूँ। लेकिन मेरी अपने विभाग-प्रमुख से गहरी छनती है। वो मेरे पुट्ठे पर हाथ मार कर कहेगा-आज शाम के खाने पर मेरे घर आओ। मैं दो मिनट के लिये दफ्तर जाऊँगा और बोलूंगा ये करो, वो....करो.... और ये नकल-नवीस यानी कि एक चूहा वहाँ से भाग निकलेगा....टिर्र। एक बार उन्होंने मुझे तरक्की देनी चाही। लेकिन मैंने सोचा इससे क्या फायदा?....और ख़ारिज कर दी। वहाँ का दरबान हमेशा मेरे पीछे ब्रश लिये दौड़ता रहता है और कहता है मुझे इज़ाजत दें श्रीमान्। आपके जूतों में एक चमक मार दूं। (मेयर से) आप सब महानुभाव खड़े क्यों हैं। बैठ जाइये। (तीनों एक साथ)
मेयर : मुझे अपनी जगह पता है महामहिम।
वार्डन : मुझे खड़े रहने में आनंद आ रहा है।
शिक्षा अधि. : ड्डपया परेशान न हों।
ख्लेस्टाकोव : ईश्वर के लिये बैठ जाइये। (तीनों बैठ जाते हैं)
ख्लेस्टाकोव : मैं औपचारिकता की खातिर खड़ा रहना पसंद नहीं करता। हालाँकि ये सच है कि मामूली दिखने के लिये मैं अपने तौर-तरीके बदलता रहता हूँ। लेकिन मेरा छिपा रहना असंभव है। एकदम असंभव है। जैसे ही कहीं से गुजरता हूँ, अगले कोने तक पहुंचते ही लोग कह उठते हैं-‘‘देखो ये इवान अलेक्जेन्ड्राविच है।'' एक जगह तो लोगों ने मुझे कोई जनरल समझ लिया। सारे सैनिक अपनी अपनी चौकियाँ छोड़ कर भागे आये और मुझे सलामी देने लगे। इसके बाद उनका अफसर जो मेरा दोस्त निकला मुझसे बोला-प्यारे भाई! तुम्हें पता है हमने तुम्हें कमान्डर इन चीफ समझ लिया था....?
अन्ना आन्द्रे. : हे दयालु ईश्वर! ये कौन सोच सकता था?
ख्लेस्टाकोव : हाँ, हाँ, वहाँ के लिये मैं एक प्रसिद्ध हरफनमौला हूँ। मैं पीटर्सबर्ग की सारी अभिनेत्रियों को जानता हूँ। मैं उनके लिये हल्के-फुल्के प्रहसन लिख देता हूँ।....वहाँ के सारे साहित्यकारों को भी जानता हूँ। मैं और पूश्किन तो लंगोटिया यार हैं। मैं अक्सर उसके घर जाता हूँ और कहता हूँ- “क्या ठाठ है प्यारे पुश?” और वह जवाब देगा- मध्य तक पहुँच गया हूँ.... मैं आपको बताना चाहता हूँ पूश्किन खासा मसखरा है।
अन्ना अले. : तो आप लेखक भी हैं। प्रतिभाशाली होना कितनी बड़ी बात है। आप पत्रिकाओं में भी लिखते हैं?
ख्लेस्टाकोव : हाँ, थोड़ा बहुत पत्रिकाओं में भी। मैंने कई जमे हुए नाटकों जैसे राबर्टोइस डायबोलो, फिगारो का ब्याह और रोमी को उखाड़ दिया है और ये भी संयोग से। दरअसल ये मनहूस थियेटर मैंनेजर मेरे पीछे पड़े रहते हैं-“साहब हमारे लिये भी कुछ लिखिये” और मैंने सोचा क्या लिखूं और मैं एक शाम लिखने को बैठा तो ढेर सा लिख दिया। भावों पर मेरा पूरा नियंत्रण है। बैरन ब्रेम्बियस के नाम से लिखे ‘उम्मीद का बजड़ा' और “मास्को टेलीग्राम” दरअसल मेरे ही लिखे हैं।
अन्ना आन्द्रे. : आपका मतलब ये तो नहीं कि आप ही बैरन ब्रेम्बियस हैं?
ख्लेस्टाकोव : मैं उसकी रचनाओं में संशोधन किया करता हूँ। स्मिरडिन इसके लिये मुझे 4000 रूबल प्रति वर्ष देता है।
अन्ना आन्द्रे. : ड्डपया बतायें कि क्या ‘‘यूरी माइलोस्लावस्की'' भी आपका लिखा हुआ है?
ख्लेस्टाकोव : आह हाँ! मेरा ही लिखा।
अन्ना आन्द्रे. : मेरा भी यही ख़्याल था।
मारिया एन्ट. : लेकिन माँ, कवर पर तो जोगीस्किन लिखा था।
अन्ना अले. : तुम मानोगी नहीं, क्यों?
ख्लेस्टाकोव : उसके लेखक जोगोस्किन ही हैं। इसी शीर्षक से एक किताब और है जो मैंने लिखी है।
अन्ना आन्द्रे : मुझे विश्वास था आपने ही लिखी है। मैंने उसे पढ़ा है। क्या खूब लिखी है।
ख्लेस्टाकोव : मुझे स्वीकार करना चाहिये कि साहित्य ही मेरा जीवन है। मेरी हवेली पीटर्सबर्ग की सर्वोत्तम हवेली है। हर कोई जानता है इसे इवान अलेक्जेन्ड्राविच की हवेली कहते हैं। (सबको संबोधित करता हुआ) महानुभावो! कभी पीटसबर्ग आयें तो मेरी हवेली आना न भूलें। आपको पता होना चाहिये मैं अक्सर नृत्य-भोज देता हूँ।
अन्ना आन्द्रे : मैं कल्पना कर सकती हूँ वे कितने भव्य और सुसंस्कृत होते होंगे।
ख्लेस्टाकोव : उनका वर्णन करना असंभव है। एक बार मैंने अपने मेहमानोें को ऐसी शिकंजी पिलाई जिसकी कीमत 200 रूबल थी। पेरिस से स्टीमर में एक ड्रम ऐसा सूप मंगाया था जिसकी सुगंध दिव्य थी। मैं अक्सर किसी न किसी नृत्योत्सव में होता हूँ। या फिर हम चार की चौकड़ी-मैं विदेश मंत्री, फ्रान्स और जर्मनी के राजदूत ताश पर जमे होते हैं। कभी-कभी तो इतनी रात तक कि नींद आने लगती है। मैं किसी तरह चौथी मंजिल पर अपने फ्लैट में पहुंचता हूँ और अर्दली को हुक्म देता हूँ नीचे से मेरा कोट ले आओ माब्रुश्का और उसे नीचे तक भागना होता है। सुबह फिर हाल राजकुमारों और काउंटों से भरने लगता है और जब तक मैं पहुंचूं मधुमक्खियों की तरह भनभनाने लगता है। कभी-कभी प्रधानमंत्री भी तशरीफ ले आते हैं....(सब घबरा कर उठ खड़े होते हैं ख्लेस्टाकोव और भी जोश में आता हुआ) यहाँ तक बड़े-बड़े अखबार मुझे महामहिम कह कर संबोधित करते हैं। कुछ अर्से मैं एक विभाग का प्रमुख भी रहा। अजीब बात थी कि इसका निदेशक कहीं ग़ायब हो गया था। इसलिये होड़ थी कि उसकी जगह कौन लेता है। दौड़ में कई जनरल भी थे। लेकिन जैसे ही उन्हें इस टेढ़े काम का स्वाद मिला, भाग खड़े हुए। ऊपर से लगता था कि आसान काम है अंदर से देखो तो भयंकर। अंत में उन्हें मेरा ख़्याल आया। मेरे लिये सारे शहर में दूत दौड़ाये गये-दूत, कोरियर और लड़के, जिनकी कोई गिनती नहीं। कुल मिलाकर 35000 आखिर माजरा क्या है? मैंने उनसे पूछा। “इवान अलेक्जेन्ड्रोविच! आप इस विभाग को संभालो। उन्होंने कहा। मैं स्वीकारता हूँ शुरू में मुझे कुछ घबराहट हुई। उस वक़्त मैं अपने ड्रेसिंग गाउन में था। पहले मैंने साफ इन्कार करना चाहा। लेकिन बाद में सोचा-ये ख़बर सम्राट के कानों तक पहुंचेगी। मुझे अपना रिकार्ड नहीं ख़राब करना चाहिये। मैंने जवाब दिया-अगर तुम्हारा अनुरोध है तो ठीक है.... और जिस वक़्त मैंने अपने नये दफ़्तर में क़दम रखा तो जैसे भूचाल आ गया हो। मैंने उनसे कहा-अब तुम्हें हर घड़ी हर पल मुस्तैद रहना पड़ेगा....और सब के सब थर-थर कांपने लगे....(मेयर और उसके साथी थरथर कांपने लगते हैं। इसके साथ ही ख्लेस्टाकोव का जोश और भी बढ़ जाता है) नहीं!....मुझे कोई भी हल्के तौर से लेने की जुर्रत नहीं कर सकता। मैं उनके दिलों में ईश्वर का भय कर देता हूँ। यहाँ तक कि मंत्रि-मंडल भी मुझसे खौफ खाता है। मेरे ख़्याल से मैं हूँ भी ऐसा। मैं किसी से जवाब में न सुनना पसंद नहीं करता। मेरे लिये सबके दरवाजे खुले हैं....मैं हर रोज़ राजमहल जाता हूँ.... हो सकता है कल के दिन वे मुझे फील्ड मार्शल बना दें....(जोश के अतिरेक में फर्श पर गिर पड़ने को होता है, दूसरे उसे बीच ही में आदरपूर्वक संभाल लेते हैं।)
मेयर : (आगे बढ़ कर सिर से पैर तक कांपता हुआ) बू!....बू!....
ख्लेस्टाकोव : (यकायक और जल्दी से) क्या हैं?
मेयर : बूया!....
ख्लेस्टाकोव : मैं इस शब्द का मतलब नहीं समझता-कूड़ा?
मेयर : बूया!....महम....महामहिम अब आराम फरमाना चाहते होंगे। कमरा तैयार है....और जरूरत की सारी चीजें़....
ख्लेस्टाकोव : फिजूल की बात....आराम करना चाहते होंगे....हम आराम नहीं करेंगे लेकिन आप कहते हैं तो करेंगे.... भोजन बढ़िया था महानुभावो....
ख्लेस्टाकोव : फिजूल की बात....अब आप आराम फरमाना चाहते होंगे....हम आराम नहीं फरमाना चाहते....लेकिन आपका अनुरोध है तो फर्मा लेंगे। भोजन बढ़िया था महानुभावो! बहुत बढ़िया! (लड़खड़ाता हुआ, मेयर के साथ कमरे में जाता है)
दृश्य : सात
बाबचिंस्की : आखिरकार हमारे बीच एक मर्द है प्योत्र इवानोविच! एक असली मर्द। मैं आज तक इतने बड़े अफसर के साथ नहीं रहा। मैं डर से मरा जा रहा था तुम्हारे ख़्याल से इसका ओहदा क्या होगा?
डाबचिंस्की : मेरे ख़्याल से जनरल....
बाबचिंस्की : जनरल सोते समय जूते उतार देता है। मेरे ख़्याल से जनरलिस्मो! तुमने गौर किया मंत्रि-मंडल के बारे में किस तरह दहाड़ रहा था। चलो हम दौड़ कर ल्याप्किन त्याप्किन को सारा किस्सा सुनायें। क्षमा करेंगी अन्ना आन्द्रयेव्ना। (दोनों जाते हैं)
वार्डन : (शिक्षाधिकारी से) मैं भयंकर भयभीत हूँ। मैं नहीं जानता किस चीज़ से। यहाँ तक कि उसके सामने हम अपनी वर्दी में भी नहीं थे। अगर वह होश में आ जाये और इसकी रिपोर्ट पीटर्सबर्ग भेज दे तो....? (अन्ना आन्द्रेयव्ना से)क्षमा करें श्रीमती जी (शिक्षाधिकारी के साथ प्रस्थान)
दृश्य : आठ
अन्ना आन्द्रे. : कितना आकर्षक पुरुष!
मा. एन्टनो. : कितना प्यारा!
अन्ना आन्द्रे. : कितना सुसंस्कृत! कितना शालीन! ओह सुन्दरतम! मैं इस नौजवान की पूजा करती हूँ। मैं हर्षविभोर हूँ। वह मेरी ओर आकृष्ट था। मुझसे नजरें नहीं हटा पा रहा था।
मा. एन्टनो : नहीं, माँ, मुझ पर से।
अन्ना आन्द्रे. : अब मुन्नी आज कोई मूर्खता मत करना। आज मेंरे पास समय नहीं होगा।
मा.एन्टनो. : लेकिन माँ! वह मुझे देख रहा था।
अन्ना आन्द्रे. : हे ईश्वर! लड़की, तुम झगड़ा करने से बाज नहीं आओगी। तुम में कौन से सुरखाब के पर लगे हैं जो तुम्हें निहार रहा था?
मा. एन्टनो. : नहीं माँ, मैं कहती हूँ वह मुझे देख रहा था। जब वह अपनी किताबों के बारे में बता रहा था, तब उसने मेरी ओर देखा था और जब राजदूतों के साथ ताश खेलने के बारे में बता रहा था तब भी।
अन्ना आन्द्रे. : ठीक है। उसने तुम्हारी ओर देखा तो सिर्फ़ शिष्टाचार के नाते। जबकि उसकी एकटक नज़रें मेरी ओर थीं।
दृश्य : नौ
(दबे पाँवों मेयर का प्रवेश)
मेयर : (होंठों पर उंगली रख कर)
श....श....
अन्ना आन्द्रे. : क्यों?
मेयर : काश हमने इसे इतनी न पिलाई होती। जितना वह कह गया.... अगर उसका आधा भी सच है तो....(सोचता है)और क्यों नहीं होगा? जब सच कम होते हैं तो प्रकट हो ही जाते हैं। हालांकि उसने कुछ बढ़ा-चढ़ा कर कहा। लेकिन उससे क्या। आजकल के भाषणों में आधे झूठ तो होते ही हैं। जैसे मंत्रियों के साथ ताश खेलता है....राज-महल में जाता है....और भी...जितना सोचते जाओ। मेरा दिमाग़ चकरा रहा है। लगता है जैसे किसी ऊँचे पहाड़ की चोटी से चिपका हुआ हूँ या फाँसी के तख़्ते पर हूँ।
अन्ना आन्द्रे. : मैं उससे बिलकुल नहीं डरती। मुझे तो वह एक कुलीन भद्र-पुरळष लगता है। मुझे उसके ओहदे की रत्ती भर चिन्ता नहीं।
मेयर : मूर्ख औरत! तुम सब्जियों तरकारियों से आगे कुछ नहीं सोच सकती। तुम्हारा कोई भरोसा नहीं कब क्या कह बैठो? लेकिन सफील पर, मेरा कटा हुआ सिर होगा, तुम्हारा नहीं। तुम उससे इस तरह बतिया रही थी जैसे कोई मामूली डाबचिंस्की हो।
अन्ना आन्द्रे. : मैं तुम्हें सलाह दूंगी कि इस पचड़े में मत पड़ो। हम अपनी फिक्र कर सकते हैं। शुक्रिया। (बेटी की ओर देखती है)
मेयर : तुम से तो बात करना ही फिजूल है। मछलियों की जोड़ी! मैं डर के मारे कुछ सोच भी नहीं सकता। (दरवाज़ा खोल कर) दौड़ कर दोनों सिपाहियों को बुलाओ। वे गेट पर हैं (कुछ देर ख़ामोश रहने के बाद) अजब चक्कर है। देखने में तो वह कुछ भी नहीं लगता....एकदम दुबला - पतला। अंदाजा लगाना मुश्किल है कि कौन हो सकता है। फ्राक-कोट मेें ऐसा दिखता है जैसे कोई मक्खी हो, जिसके पंख कुतर दिये गये हों। हालांकि मानना पड़ेगा कि सराय में उसका प्रदर्शन भव्य था। मैं तो बिलकुल नहीं समझ पाता कौन है....कैसा आदमी है। लेकिन बाद में चूक कर गया। ये लड़के ज्यादा देर अपना मुंह बंद नहीं रख सकते।
दृश्य : दस
(ओसिप का प्रवेश। सब उसकी ओर झपटते हैं)
अन्ना आन्द्रे. : ओह! यहाँ आओ भले आदमी।
मेयर : हश....धीरे बोलो। क्या महामहिम सो गये?
ओसिप : बिलकुल नहीं। अभी तो जमुहाइयां लेते हुए कमर सीधी कर रहे हैं।
अन्ना आन्द्रे. : तुम्हारा नाम क्या है?
ओसिप : ओसिप श्रीमती जी।
मेयर : (पत्नी और बेटी से) बहुत बोल लिया। (ओसिप से) भरपूर भोजन किये भले आदमी?
ओसिप : जी हाँ श्रीमान्! भरपूर और प्रेम पूर्वक।
अन्ना आन्द्रे. : अब बताओ, पीटर्सबर्ग में बहुत से काउन्ट और राजकुमार तुम्हारे मालिक से मिलने आते होंगे?
ओसिप : (स्वगत) क्या कह दूँ? इसका ख़्याल रखना पड़ेगा कि इन्होंने मुझे बढ़िया भोजन कराये हैं, आगे और भी बढ़िया करायेंगे! (प्रकट) हाँ श्रीमती जी। सभी तरह के लोग.... काउन्ट भी।
मा.एन्टनो. : प्यारे ओसिप! तुम्हारा मालिक है बड़ा ख़ूबसूरत।
अन्ना आन्द्रे. : अब बताओ ओसिप, क्या तुम्हारे मालिक.
मेयर : बहुत बोल लिया...तुम दखलन्दाजी कर रही हो....मुझे बताओ
अन्ना आन्द्रे. : तुम्हारे मालिक का ओहदा क्या है?
मेयर : ईश्वर के लिये मूर्खता भरे सवाल बंद करो। हमें गंभीर मामलों पर बात करनी है अब बताओ क्या तुम्हारे मालिक बहुत सख़्त हैं? किसी को भी बिना सजा दिये नहीं छोड़ते?
ओसिप : हाँ, व्यवस्था के मामले में बहुत सख्त हैं। हर चीज़ बाकायदा पसंद करते हैं।
मेयर : मुझे कहना चाहिये आप मुझे सूरत शकल से पसंद हैं। आप मुझे भले मानुष लगते हैं।
अन्ना आन्द्रे. : अब बताओ ओसिप, वे अपने घर वर्दी में जायेंगे या....?
मेयर : चुप रहो। यहाँ एक आदमी की ज़िन्दगी सूली पर टंगी है (ओसिप से) सुनो दोस्त! मैं आपको बहुत पसंद करता हूँ। जब ऐसी सर्दी में सफर करना हो तो, चाय की एक अतिरिक्त प्याली हमेशा मुफीद होती है इस कष्ट के लिये कुछ रूबल?
ओसिप : (रुपये लेता हुआ)धन्यवाद! ईश्वर, एक गरीब की मदद करने के लिये आपका भला करे।
मेयर : ठीक है! ठीक है। आपकी सेवा करके मैं प्रसन्न हुआ।
अन्ना आन्द्रे. : ओसिप, तुम्हारे मालिक को कैसी आँखें पसंद हैं?
मा. एन्टनो. : प्यारे ओसिप। तुम्हारे मालिक की छोटी सी नाक कितनी सुन्दर है।
मेयर : चुप भी रहो। अब मुझे बोलने दो। (ओसिप से) दोस्त अब बताओ तुम्हारे मालिक किन चीज़ों पर विशेष ध्यान देते हैं? मेरा मतलब सफ़र में किन चीजों को पसंद करते हैं?
ओसिप : सब उनके नज़रिये पर निर्भर है। सब से ज़्यादा वे अपनी ख़ातिर और मनोरंजन पसंद करते हैं।
मेयर : बढ़िया आवभगत....क्यों?
ओसिप : हाँ! अब मुझी को लो। हालाँकि मैं एक फकत गुलाम हूँ। लेकिन उन्हें इस बात का ध्यान रहता है कि मेरे साथ बढ़िया सलूक हो। ईश्वर की सौगंध! कभी-कभी किसी शहर को छोड़ते वक्त मुझसे पूछ बैठते हैं क्यों ओसिप, उन्होंने तुम्हारी ख़ूब ख़ातिर की न?” और मेरे साथ जवाब होता है- सब कुछ सड़ा हुआ श्रीमान् तो वे पूछते हैं- तो क्यों ओसिप, ये कोई बढ़िया मेहमान-नवाज नहीं?....पीटर्सबर्ग पहुँचने पर मुझे याद दिलाना....लेकिन मैं सोचता हूँ-क्यों किसी का नुकसान करूं? मैं सीधा-सादा आदमी हूँ श्रीमान्....
मेयर : तुम भले आदमी हो ओसिप और बात भी अक्लमंदी की करते हो। मैंने चाय के लिये तुम्हें कुछ दिया....नहीं? कुछ नाश्ते के लिये और रख लो।
ओसिप : आप बड़े दयालु हैं श्रीमान्।(रुपये रख लेता है)मैं आपके लिये स्वास्थ्य-कामना के साथ पियूंगा।
अन्ना आन्द्रे. : मेरे कमरे में आओ ओसिप मैं तुम्हें कुछ देना चाहती हूँ।
मा.एन्टनो. : प्यारे ओसिप! तुम्हारे मालिक के लिये मेरा एक चुम्बन। (बगल के कमरे से ख्लेस्टाकोव के खांसने की आवाज़)
मेयर : श....श....(दबे पांव चलता है) ईश्वर के लिये कोई आहट नहीं। अब तुम दोनों भी जाओ।(दोनों का प्रस्थान)
मेयर : औरतें हमेशा गध्ो की लातों पर गौर करती हैं। (ओसिप से) तो अच्छा दोस्त।
दृश्य : ग्यारह
(देर्जीमोर्दा और स्विस्टफकोव का प्रवेश)
मेयर : गन्दे रीछो! जूतों को इस तरह टप-टप करते चले आ रहे हो जैसे गाड़ी से लट्ठे उतारे जा रहे हों।
देर्जीमोर्दा : मैं आपके हुक्म की तामील कर रहा था।
मेयर : (धीरे से....उसके मुंह पर हाथ रख देता है) हमेशा कव्वे की तरह कांव-कांव करता है (उसकी नकल करता हुआ) आपके हुक्म की तामील कर रहा था। बड़बोले! लफंगे!....(ओसिप से)अब दोस्त तुम जाओ, अपने मालिक की टहल करो (ओसिप जाता है) तुम दोनोें जाओ और मुस्तैदी से दरवाजे़ पर खड़े रहो। अपनी जगह से एक इंच भी इधर उधर मत होना। और किसी को भी अन्दर मत घुसने देना। ख़ास तौर से उन दो व्यापारियों को.... अगर घुसने दिया तो.... जैसी ही देखो कि कोई दरख़्वास्त लिये आ रहा है, या सूरत से ही लगे कि दरख़्वास्त देना चाहता है, तो झपट कर गर्दन से पकड़ कर, बूट मार कर भगा दो। अब जाओ। श....श....(सिपाही पंजों पर चलते हुए जाते हैं)
अंक : चार ; दृश्य : एक
(मेयर का घर। वही कमरा) (पंजों पर चलते हुए जज, वार्डन, पोस्ट मास्टर, शिक्षाधिकारी, डाबचिंस्की और बाबचिंस्की का प्रवेश, सब फुसफसा कर बोलते हैं)
जज : ईश्वर के लिये सब एक लाइन में खड़े हो जायें और अनुशासन में रहें। एक क्षण भी न भूलें कि यह शिख़्सयत राज-महल में जाती है और मंत्रि-मंडल की बखिया उध्ोड़ती है। ईश्वर हमारी मदद करे। अब सभी लोग क्रम में खड़े हो जायें। नहीं, नहीं प्योत्र इवानोविच इस सिरे पर आप और उस सिरे पर आप। (बाबचिंस्की और डाबचिंस्की पंजों पर दौड़ कर अपनी अपनी जगह लेते हैं)
वार्डन : जैसा आप कहें। लेकिन हमें कोई न कोई इंतजाम जरूर करना चाहिये।
जज : क्या इंतजाम?
वार्डन : आप जानते हैं मेरा क्या मतलब है।
जज : उसे दो....खिसका दें।
वार्डन : यहाँ तक कि दो भी।
जज : लेकिन इसमें बड़ा ख़तरा है। वह सरकार का आला अफसर है। हड़कम्प मचा सकता है। हालांकि हम ओट से पेश करेंगे-“ये जनता की ओर से फलां-फलां जन कल्याण योजना के लिये चंदा....?”
पोस्टमास्टर : या ये कह सकते हैं कि ये रुपया हमें डाक से मिला। हमें नहीं पता किसने भेजा।
वार्डन : ख़्ाबरदार! कहीं वह आप ही को डाक से दूसरे प्रदेश न भेज दे। हम यहाँ झुन्ड बना कर क्यों खड़े हैं। ये भद्र-पुरूषों के तौर-तरीके नहीं। बेहतर हो हम उसके सामने एक-एक कर, पेश होकर अपनी सेवा भेंट करें। इससे हमें उससे बतियाने का मौका भी मिल जायेगा। भद्र समाज का यही नियम है। मेरे ख्याल से एम्मस फ्योदोरोविच, आपको सबसे पहले जाना चाहिये।
जज : मुझे? नहीं। मेरे ख़्याल से सबसे पहले आपको जाना चाहिये। अस्पताल में भोजन किये थे। हमारे मेहमान ने आपके अस्पताल में खाया-पिया है।
वार्डन : दरअसल, युवा जागरण और आधुनिक विज्ञान के प्रतिनिधि के रूप में ल्यूका ल्यूकिच सबसे ज़्यादा उपयुक्त रहेंगे।
शिक्षाधिकारी : नहीं महानुभावो! ये मेरे बस के बाहर है। बचपन से मेरी एक ग्रंथि बन गई है। जैसे ही मुझसे एक सीढ़ी ऊपर का व्यक्ति मुझसे कुछ कहता है, मेरा कलेजा उछल कर होंठों पर आ जाता है, और जुबान हिलना बन्द कर देती है। नहींं! महानुभावो, मैं असमर्थ हूँ।
वार्डन : तब यह भार आप पर ही आता है एम्मस फ्योदोरोविच! ख़ूबसूरत जुमले गढ़ने और वक्तृत्व की कला में आप सिसरो का मुकाबला करते हैं।
जज : सिसरो से मुकाबला इसलिये कि मैं अपने कुत्तों की प्रशंसा में कभी-कभी बह जाता हूँ। आप कहना क्या चाहते हैं?
वार्डन : सिर्फ़ शिकारी कुत्त्ो नहीं, हर मामले में। हमें तबाही से बचायें एम्मस फ्योदोरोविच हमारे संरक्षक बन जायें। सब से पहले आप ही जायें।
जज : तो सब महानुभाव बाहर चलें। (इस बीच, कमरे से ख्लेस्टाकोव के खांसने और चहलकदमी करने की आहटें आती हैं। सब एक-दूसरे को धकियाते हुए दरवाजे़ की ओर भागते हैं। कुछ चीखें सुनाई पड़ती हैं)
डाबचिंस्की : ओह प्योत्र इवानोविच! तुम मेरे पैर पर खड़े हो।(आह और ऊँह की आवाज़ें....अंत में मंच खाली हो जाता है)
दृश्य : दो
(ख्लेस्टाकोव का प्रवेश आँखों में खुमारी, अकेला)
ख्लेस्टाकोव : (स्वगत) एकदम से भिड़ गया हूँ। ताज्जुब है इन्हें पंखों वाला बिस्तर कहाँ से मिल गया? मेरा शरीर पसीने से भीग रहा है, सिर घन्टे की तरह बज रहा है। याद आता है, भोजन के वक्त जरूर उन्होंने कुछ रकम सरकाई। इस जगह मैं खूब मजे कर सकता हूँ। दुनिया में सुन्दर आव-भगत से बढ़ कर कुछ भी नहीं। बशर्ते वह निस्वार्थ हों। मेयर की बेटी कोई बुरी केक नहीं। यहाँ तक जरूरत पर माँ से भी काम चल सकता है। मैं तय नहीं कर पाता पहले ये या वो?....वैसे ये जगह मुझे बहुत पसंद है।....
दृश्य : तीन
(जज का प्रवेश)
जज : (अंदर कदम रखते ही स्वगत) हे प्रभु! मेरी मदद कर। मेरे घुटने जवाब दे रहे हैं। (तन कर खड़े होते और तलवार पर हाथ रखते हुए) क्या मैं अपना परिचय देने का सम्मान प्राप्त कर सकता हूँ महामहिम!.... मैं ल्याप्किन त्याप्किन, जिला न्यायालय का कालेजिएट असेसर और जज।
ख्लेस्टाकोव : कृपया बैठ जायें। तो आप यहाँ के जज हैं?
जज : यहाँ के नागरिकों द्वारा सन् 1816 में तीन वर्ष के लिये नियुक्त। तब से यहीं हूँ महामहिम!
ख्लेस्टाकोव : मुझे बतायें, क्या जज होना फायदे का धंधा है?
जज : अधिकारियों के प्रशंसा-पत्रों के अलावा आर्डर आफ संत ब्लादीमीर, चतुर्थ श्रेणी के अलंकरण से सम्मानित....(स्वगत) उफ्! ये रुपये मेरी हथेली को जला रहे हैं।
ख्लेस्टाकोव : हाँ, ब्लादीमीर जगह मुझे पसंद है। संत एनी से बेहतर है....वहीं?
जज : (अपनी मुट्ठी को आगे बढ़ाता हुआ,स्वगत) हे स्वर्ग में बिराजमान परमेश्वर, लगता है दहकते हुए कोयलों पर बैठा हुआ हूँ....
ख्लेस्टाकोव : आपकी हथेली में क्या है?
जज : (डर जाता है। रुपये उसकी हथेली से छूट कर फर्श पर गिर जाते हैं)क्या?....कुछ नहीं?
ख्लेस्टाकोव : कुछ नहीं कैसे? तुम्हारी मुट्ठी से कुछ रुपये नहीं गिरे?
जज : (कांपता हुआ)ओह नहीं श्रीमंत! (स्वगत) अब कठघरे में खड़े होने की मेरी बारी है। मैं जेल-गाड़ी की खड़खड़ाहट सुन सकता हूँ।
ख्लेस्टाकोव : (फर्श से रुपया उठा कर)आप जानते हैं, ये रुपया है?
जज : (स्वगत) अब मेरे लिये सब कुछ खत्म। अब मैं मरा।
ख्लेस्टाकोव : मैंने कहा....आप क्या हैं....? हाँ जज! आप कुछ समय के लिये ये रुपये मुझे उधार क्यों नहीं दे देते?
जज : (जल्दी-जल्दी) क्यों नहीं?.... क्यों नहीं?.... बिलकुल। प्रसन्नता के साथ....(स्वगत) हे पवित्र माता! इस आफत से बचाओ।
ख्लेस्टाकोव : सफर के दौरान मेरे रुपये कम पड़ गये। अपनी जागीर पहुँचते ही आपका रुपया लौटा दूंगा।
जज : ओह! कृपया श्रीमंत! इस पर दोबारा मत सोचें। हर हालत में ये मेरे लिये सम्मान की बात है। मैं हर समय अपने अधिकारियों की सेवा करने की फितरत में रहता हूँ। जो भी मेरी क्षमता है....हालांकि जो कम है। (कुर्सी से उठ कर अटेंशन की मुद्रा में) अपनी उपस्थिति से श्रीमंत को और परेशान नहीं करूंगा। क्या आप मुझे कोई निर्देश देना चाहेंगे?
ख्लेस्टाकोव : निर्देश?
जज : जिला न्यायालय के लिये।
ख्लेस्टाकोव : नहीं। अब जिला न्यायालय की कोई जरूरत नहीं।
जज : (झुक कर बाहर निकलता हुआ) ....ईश्वर को धन्यवाद। मैंने आज का दिन जीत लिया।
ख्लेस्टाकोव : (जज के जाने के बाद)बढ़िया आदमी है....ये जज।
दृश्य : चार
(कड़क वर्दी में तलवार की मूंठ पर हाथ रखे पोस्टमास्टर का प्रवेश)
पोस्टमास्टर : क्या मैं अपने को प्रस्तुत करने का सम्मान प्राप्त कर सकता हूँ? मैं जिला पोस्ट मास्टर और काउंसलर श्योकिन।
ख्लेस्टाकोव : आपसे मिल कर मुझे खुशी हुई। अच्छे साथ से ज्यादा मुझे कुछ पसंद नहीं। आप सारी ज़िन्दगी यहीं रहे? मैंने आपके कस्बे को अधिक पसंद नहीं किया....माना कि ये राजधानी नहीं....लेकिन फिर भी कैसा नरक? है न?
पोस्टमास्टर : न....नहीं श्रीमान् (संभलता हुआ) सच है श्रीमान्।
ख्लेस्टाकोव : राजधानी में यात्रा के लिये बग्घियाँ होती हैं। वहाँ आप देहाती गाड़ियों से बचे रहते हैं।
पोस्टमास्टर : ओह बिलकुल सच है श्री मान्। (स्वगत) ये कतई कोई ऊँचा ओहदेदार नहीं लगता। हर बात में मेरी सलाह पूछता है।
ख्लेस्टाकोव : लेकिन बावजूद इसके कस्बे में आप मजे से रह सकते हैं। आपका क्या ख़्याल है?
पोस्टमास्टर : ओह हाँ श्रीमान्। बिलकुल सच कहते हैं श्रीमान्।
ख्लेस्टाकोव : और ये इस पर निर्भर करता है कि आप चाहते क्या हैं?.... बस कुछ सम्मान और प्रेम? आपका क्या ख़्याल है?
ख्लेस्टाकोव : बिलकुल। मेरा भी यही ख़्याल है।
ख्लेस्टाकोव : मुझे अत्यंत प्रसन्नता है कि आपके ख़्याल मेरे ख़्यालों से मिलते हैं। लोगों का ख़्याल है कि मैं कुछ बेढब हूँ (उसकी आँखों में आँखें डाल कर टटोलते हुए स्वगत) इसे भी हिला-डुला कर देखा जाय....शायद...(प्रकट)आपको अजीब लग सकता है....लेकिन सच है कि रास्ते में मेरी जेबें ख़ाली हो गयीं। एक पाई नहीं बची। जरा, इस पर सोचिये....? क्या आप मुझे 300 रूबल उधार दे सकते हैं?
पोस्टमास्टर : क्या?....क्यों नहीं? बड़ी प्रसन्नता से। ये लें श्री मंत। आपकी सेवा करके अत्यंत आनंदित हुआ। (रुपये देता है)
ख्लेस्टाकोव : ड्डतज्ञ हुआ। मैं स्वीकार करता हूँ कि यात्राओं के दौरान मैं अपने को सुन्दर चीजों से वंचित करने से घृणा करता हूँ। क्यों न करूं?....आप मुझसे सहमत हैं न? सौ प्रतिशत?
पोस्टमास्टर : (राहत की गहरी सांस ले कर) ओह श्री मंत!....(तन कर खड़े होकर और तलवार की मूठ पर हाथ रख कर) अपनी उपस्थिति से आपको और परेशान नहीं करूंगा। क्या महामहिम डाक-कर्मचारियों के लिये कोई निर्देश देंगे?
ख्लेस्टाकोव : नहीं, नहीं! कोई नहीं।
(पोस्टमास्टर झुकता है और बाहर आता है।)
ख्लेस्टाकोव : (सिगार जलाता हुआ)पोस्ट मास्टर भी भलामानुष निकला। मुझे ऐसे आदमी पसंद हैं।
दृश्य : पाँच
(जिला शिक्षाधिकारी का प्रवेश, उसे पीछे से ठेल दिया गया है, पीछे से आवाजें़, “अंदर जा कायर...”)
शिक्षाधिकारी : (कांपता हुआ तन कर खड़ा होता, और तलवार की मूठ को जकड़ता हुआ) महामहिम के समक्ष प्रस्तुत होकर सम्मानित....मैं ट्यूटलर काऊंसलर ख्लोपोव, जिला विद्यालय निरीक्षक।
ख्लेस्टाकोव : प्रसन्न हुआ। बैठिये....बैठ जाओ। सिगार पियो....पियोगे?(उसकी ओर सिगार बढ़ाता है)
शिक्षाधिकारी : (अनिर्णीत, स्वगत) हे ईश्वर! इसकी कल्पना मैंने नहीं की थी। सिगार लूं या नहीं?
ख्लेस्टाकोव : ले लो। ले लो कोई ख़राब सिगार नहीं। पीटर्सबर्ग को बदनाम नहीं करेगा। सौ सिगारों के पच्चीस रूबल लगते हैं। एक बार पी लोगे तो अपने हाथ चूमोगे। चलाओ....(उसे मोमबत्ती देता है।
(शिक्षाधिकारी सिगार जलाने की कोशिश करता है। उसका हाथ कांपता है)
ख्लेस्टाकोव : सिगार को उल्टा पकड़े हुए हो।
शिक्षाधिकारी : (डर से, उसके हाथ से सिगार छूट जाता है, स्वगत) हे स्वर्ग में बिराजमान ईश्वर! मेरे मनहूस शर्मीलेपन ने फिर मुझे तबाह किया।
ख्लेस्टाकोव : मैं देख रहा हूँ आप सिगारों के पारखी नहीं। मुझे भय है कि ये मेरी कमजोरियों में से एक है। सिगार और औरत....मैं खूबसूरत औरतों के आकर्षण से बच नहीं पाता। तुम्हारे क्या हवाल हैं? कैसी पसंद है-भूरे बालों वाली गोरी या काले बालों वाली सांवरी?
शिक्षाधिकारी : मुझे नहीं मालूम....महामहिम!
ख्लेस्टाकोव : नहीं नहीं, मुद्दे से भागिये मत।मैं आपकी पसंद जानने को बेताब हूँ।
शिक्षाधिकारी : श....श....शिरी मंत की सेवा में सविनय निवेदन है कि....कि....(स्वगत) हे सर्वशक्तिमान!....मैं क्या कहूँ?
ख्लेस्टाकोव : अहा! तो तुम नहीं बताओगे कि किस सांवली-सलोनी को अपने फंदे में फांस चुके हो? यह बात सच है। नहीं? कबूल करो। (शिक्षाधिकारी गूंगे-बहरे की तरह खड़ा रहता है)
ख्लेस्टाकोव : अहा! मुझे बताने में शर्मा रहे हो?
शिक्षाधिकारी : (नर्वस) मैं डर रहा था महामहिम कि कहीं....(स्वगत) मेरी जुबान ने फिर मुझे तबाह किया।
ख्लेस्टाकोव : डर गये? मेरी आँखों में ऐसा प्रभाव है कि लोगों के दिल में खौफ बैठ जाता है। कम से कम इतना तो मैं जानता हूँ कि संसार की कोई औरत मुझे इन्कार नहीं कर सकती। तुम मुझसे सहमत हो?
शिक्षाधिकारी : बिलकुल हूँ महामहिम!
ख्लेस्टाकोव : तुम्हें एक अजब बात का पता है? इस वक़्त मेरी हजामत बनी हुई। सफर के दौरान मैं अपनी सब रकम हार गया। तुम मुझे 300 रूबल उधार दे सकते हो?
शिक्षाधिकारी : (जेबें तलाशता हुआ, स्वगत) कहाँ रखे थे?. कहीं गिर तो नहीं गये? हे ईश्वर! मिल गये..ये रहे.. (नोट निकालता है। कांपता हुआ ख्लेस्टाकोव को देता है।)
ख्लेस्टाकोव : उपकृत हुआ।
शिक्षाधिकारी : (तन कर खड़ा होता और तलवार की मूठ पकड़ता हुआ)अपनी उपस्थिति से आपको और हैरान नहीं करूंगा।
ख्लेस्टाकोव : जाओ, मौज करो।
शिक्षाधिकारी : (लगभग भागता हुआ, स्वगत) ईश्वर को धन्यवाद। उम्मीद करना चाहिये कि अब वह स्कूल के निरीक्षण के लिये नहीं आयेगा।
दृश्य : छह
(तलवार की मूठ पर हाथ रखे वार्डन का प्रवेश)
वार्डन : (झुक कर) आपके सामने प्रस्तुत होने का सम्मान चाहता हूँ महामहिम! मैं अनुदानिक संस्थाओं का वार्डन आलिक काउंसिलर जेमलेनिका।
ख्लेस्टाकोव : क्या हाल-चाल हैं? कृपया बैठिये।
वार्डन : हाल ही मुझे अपने संस्थान में मुझे आपका स्वागत करने का गौरव प्राप्त हुआ था।
ख्लेस्टाकोव : हुआ था, मुझे याद है। तुमने शानदार भोज दिया था।
वार्डन : अपने को देशसेवा में झोंक देना मेरे लिये गौरव की बात है।
ख्लेस्टाकोव : मुझे कहना पड़ता है कि स्वादिष्ट भोजन मेरी कमजोरी है.... उसमें कुछ कमी थी। नहीं?....
वार्डन : संभव है महामहिम! वैसे मैं अपने कर्तव्य-पालन में कोई ढिलाई नहीं करता....(अपनी कुर्सी उसके करीब सरकाता है, फंसे गले से आगे कहता है) यहाँ का ये पोस्टमास्टर है न? उसके बारे में इससे ज़्यादा क्या कहा जाय कि काम के नाम पर उंगली भी नहीं हिलाता। डाक वितरण में जिस तरह देरी होती है, उससे आपको लग सकता है कि इसकी जांच होनी चाहिये। और ये जज भी जो मुझसे पहले हाजिर हुआ था, अपना सारा समय खरगोशों के शिकार में बिताता है। अदालत के अंदर शिकारी कुत्त्ो बाधंता है.... और इसका व्यक्तिगत जीवन भी महामहिम! अगर मैं आपके सामने कहने का दुस्साहस करूं, जो कि मुझे देश-हित में करना चाहिये....इसके बावजूद कि वह मेरा दोस्त और रिश्तेदार है, घोर रूप से गन्दा है। यहाँ का एक जमीदार है-डाबचिंस्की। महामहिम उससे मिल चुके हैं, जैसे ही वह घर से निकलता है, जज उसकी बीवी से अभिसार के लिए जा टपकता है। हाँ! ये बिलकुल सच है। मैं कसम खा सकता हूँ आप उसके बच्चों को देख सकते हैं। एक की शक्ल डाबचिंस्की से नहीं मिलती। यहाँ तक कि बेटी की शक्ल भी जज से मिलती है।
ख्लेस्टाकोव : क्या यह सच है? मैं कभी विश्वास नहीं करता।
वार्डन : और हमारा शिक्षाधिकारी! समझ में नहीं आता हमारे अधिकारियों ने कैसे उसे नियुक्ति दे दी। वह किसी भी जैकोबियन (प्रजातांत्रिक) से बदतर है। हमारे बच्चों के दिमाग़ में इस तरह के विध्वंसक विचार भरता है कि कह नहीं सकता। शायद श्री मंत चाहेंगे कि मैं ये सब एक कागज पर लिख दे दूं।
ख्लेस्टाकोव : हाँ लिखकर। जब ऊब होती है तो मैं मनोरंजक चीजें पढ़ना पसंद करता हूँ। तुम्हारा नाम क्या है? मेरी याददाश्त तुम जानते हो?....
वार्डन : जेमलेनिका महामहिम!
ख्लेस्टाकोव : जेमलेनिका! अब तुम बताओ तुम्हारे कोई बच्चे हैं?
वार्डन : हाँ पाँच हैं श्रीमान जी। दो सयाने हो चुके हैं।
ख्लेस्टाकोव : बताओ उनकी शक्ल....
वार्डन : उनके नाम महामहिम?
ख्लेस्टाकोव : हाँ उनके नाम क्या हैं?
वार्डन : इवान, निकोलाई, एलिजाविटा, मारिया और पेटीफोशिया।
ख्लेस्टाकोव : बहुत सुन्दर।
वार्डन : मैं अपनी उपस्थिति से आपको ज़्यादा परेशान नहीं करूंगा, जिसमें आपका वह समय ख़र्च हो जो बड़ी जिम्मेदारियों में लगना चाहिये। (झुक कर बाहर जाने को होता है)
ख्लेस्टाकोव : नहीं बिलकुल नहीं। तुमने जो मुझसे कहा उससे मेरा मनोरंजन हुआ। कभी फिर आओ। (लौटकर दरवाजा खोल कर वार्डन को आवाज़ देता है) तुमने अपना नाम नहीं बताया। तुम्हारा क्रिश्चियन नाम क्या है?
वार्डन : अरटेमी फिलिप्पोविच महामहिम!
ख्लेस्टाकोव : सुना अरटेमी फिलिप्पोविच! तुम्हें विश्वास नहीं होगा, रास्ते में मेरे सारे रुपये ख़र्च हो गये। जेब में एक कोपेक नहीं। तुम मुझे कुछ उधार दे सकते हो?.... कोई चार सौ रूबल।
वार्डन : हाँ, हाँ क्यों नहीं?....(रुपये देता है)
ख्लेस्टाकोव : क्या इसे एक सौभाग्य नहीं कहा जायेगा?आपका बहुत आभार। (वार्डन का प्रस्थान) (बाबचिंस्की और डाबचिंस्की का प्रवेश)
बाबचिंस्की : अपने को सेवा में प्रस्तुत करने का सम्मान चाहता हूँ। मैं-प्योत्र इवानोविच बाबचिंस्की। जमीदार।
ख्लेस्टाकोव : आह हां। आपसे मिल चुका हूँ। आप गिर पड़े थे। आपकी नाक के क्या हाल हैं?
बाबचिंस्की : ड्डपया परेशान न हों। नाक दुरुस्त है। इसके लिये ईश्वर को धन्यवाद।
ख्लेस्टाकोव : ठीक है। बढ़िया। महाशय कुछ रुपये लिये हो?
बाबचिंस्की : रुपये! कैसे रुपये?
ख्लेस्टाकोव : (जल्दी से लेकिन तेज आवाज़ में) उधार के रूप में 1000 रूबल या कुछ।
बाबचिंस्की : ईश्वर कसम इतने तो नहीं। तुम्हारे पास होंगे प्योत्र इवानोविच?
डाबचिंस्की : मेरे पास भी नहीं। अगर महामहिम सुनना पसंद करें तो मेरे रुपये पब्लिक चैरिटी बोर्ड में जमा हैं।
ख्लेस्टाकोव : हजार नहीं तो सौ दे सकते हो?
बाबचिंस्की : (जेबें तलाशता हुआ) क्या तुम्हारे पास 100 हैं? मेरे पास तो कुल जमा 40 हैं।
डाबचिंस्की : (अपना बटुआ उलटता हुआ) सिर्फ 25 हैं। बस।
बाबचिंस्की : गौर से देखो प्योत्र इवानोविच। तुम्हारी जेब में सुराख है। अस्तर में खिसक गये होंगे।
डाबचिंस्की : (देखता है) नहीं है।
ख्लेस्टाकोव : कोई बात नहीं। इतने में मेरा काम चल जायेगा। मुझे 65 रूबल दे दो। (नोट लेता है) कोई फिक्र मत करना।
डाबचिंस्की : क्या मैं श्रीमान् जी से एक बेहद नाजुक मामले में, मदद् मांगने की हिम्मत कर सकता हूँ?
ख्लेस्टाकोव : क्या मामला?
डाबचिंस्की : हद से ज़्यादा नाजुक मामला है। श्रीमान् मुझे, मेरे जुमले के लिये माफ करेंगे। मेरा पुत्र शादी के दायरे के बाहर पैदा हुआ था।
ख्लेस्टाकोव : सचमुच?
डाबचिंस्की : एक तरह से कहा जाय तो। क्योंकि वह उसी तरह पैदा हुआ था जैसे शादी के दायरे के अंदर होता। महामहिम समझ रहे होंगे। और फिर जैसा कि मेरे लिये उचित था, मैंने उस पर शादी की सील लगा दी। अब मैं चाहता हूँ उसे मेरा कानूनी बेटा माना जाय। उसे मैं अपना खानदानी नाम डाबचिंस्की देना चाहता हूँ।
ख्लेस्टाकोव : तो दे दो। इसमें दिक्कत क्या है?
डाबचिंस्की : मैं आपको कष्ट न देता....लेकिन अगर आप उसे देखेंगे तो अफसोस करेंगे। वह इस कदर प्रतिभाशाली है। वह अभी से कंठस्थ कवितायें सुना सकता है अगर उसे कलम बनाने का चाकू दे दिया जाय तो वह आपके लिये मय घोड़े के घोड़ीगाड़ी उकेर सकता है। और किसी जादूगर की तरह बहुत जल्द। प्योत्र इवानोविच मेरी बात का समर्थन कर सकते हैं।
बाबचिंस्की : लड़का तो वाकई प्रतिभाशाली है।
ख्लेस्टाकोव : ठीक है। ठीक है। जो भी मेरे हाथ में होगा जरूर करूंगा। (बाबचिंस्किी की ओर मुड़ कर) तुम कुछ कहना चाहते हो?
बाबचिंस्की : एक विनय है, जो आपके समक्ष निवेदन करना चाहता हूँ।
ख्लेस्टाकोव : क्या?
बाबचिंस्की : जब आप पीटर्सबर्ग पहुंचें, तो सभी महापुरुषों से मेरी ओर से कहें कि... श्री मंत...वे श्री मंत...श्री मान या महामहिम जो भी हों कि फलां कस्बे में एक शख्स रहता है जिसका नाम प्योत्र इवानोवचि बाबचिंस्की है। या फिर सिर्फ़ इतना कि फलां कस्बे में प्योत्र इवानोविच नामक एक शख्स रहता है।
ख्लेस्टाकोव : कह दूंगा।
डाबचिंस्की : आपको अपनी उपस्थिति के बोझ से लादने के लिये हमें क्षमा करें।
बाबचिंस्की : आपको अपनी उपस्थिति के बोझ से लादने के लिये हमें क्षमा करें।
ख्लेस्टाकोव : कोइ बात नहीं। (दोनों को बाहर का रास्ता दिखाता है)
दृश्य : सात
(कमरे में ख्लेस्टाकोव अकेला)
ख्लेस्टाकोव : यहां तमाम अधिकारी इकट्ठे हो रहे हैं। उन्हें भ्रम है कि मैं कोई आला अफसर हूँ। सराय में मैंने ही उन्हें इसका आभास कराया था।....भेड़ों का झुन्ड। मैं पीटर्सबर्ग पहुंच कर त्रयाप्चिकिन को सारा किस्सा सुनाऊंगा वह इस तरह के लेख लिखता है। इसके लिये यहां भी आ सकता है। हे....ओसिप! मेरे लिये काग़ज़-क़लम लाओ। (“अभी लाया” कहता हुआ ओसिप का चेहरा दरवाजे से अंदर झांकता है) त्रयाप्चिकिन एक बार किसी चीज में दांत गड़ाता है तो चीर कर रख देता है म़जाक मेें कहा जा सकता है कि वह अपने सगे बाप को भी नहीं छोड़ता। साथ ही वह अपनी मुटि्ठयां भी गर्म रखना चाहता है उधार दे कर उपकृत करने वाले ये अफसर उसके लिये बुरे नहीं रहेंगे। अब जरा गिन कर देखूं कितनी रकम कमाई-तीन सौ पोस्टमास्टर के छह सौ, सात सौ, आठ सौ....उफ कितना गंदा नोट.... नौ सौ.... कुल एक हज़ार से ज़्यादा अब मुझे उस जुआरी केप्टन के पास दौड़ना चाहिये। उसे अपने साथ ठगी करने का मज़ा चखाना है।
दृश्य : आठ
(कागज-कलम लिये ओसिप का प्रवेश)
ख्लेस्टाकोव : ठीक है। क्यों उचक्के देख रहा है कैसी खातिर हो रही है? (लिखने लगता है)
ओसिप : आप चाहें तो अपने जुमले को दोहरा कर खुश हो सकते हैं। लेकिन एक बात है इवान अलेक्जेन्ड्रोविच।
ख्लेस्टाकोव : (लिखता हुआ) वो क्या?
ओसिप : अब हमें यहां से उड़ लेना चाहिए। यहाँ से गायब हो जाना चाहिये। ईश्वर के लिये।....
ख्लेस्टाकोव : बेवकूफ! क्यों?
ओसिप : मुझे ऐसा महसूस होता है, बस! हमने दो दिन इनका शाही लुत्फ लिया। अब जब तक परिस्थितियाँ हमारे माफिक हैं, हमें चल देना चाहिये। भला ऐसे लोगों के बीच रहने का क्या तुक है?
ख्लेस्टाकोव : (पत्र लिखता हुआ) तुक है। जिसके लिये कुछ और रुकना। चाहता हूँ। कल हो सकता है....
ओसिप : हो सकता है कल बहुत देर हो जाय। ऐसे लोगों के बीच रहने में ख़तरे हैं। अभी ये आपके लिये लाल गलीचे बिछा रहे हैं, लेकिन किसी भी क्षण हमारी किस्मत पलट सकती है-हो सकता है अगले ही क्षण....अगले ही मिनिट कोई आ जाये उनके पास बढ़िया घोड़े हैं। हम बिजली की तरह गायब हो जायेंगे। अभी वे आपको कोई और समझ रहे हैं। हमें जल्द से जल्द भाग निकलना चाहिये। इसके अलावा आपके बूढ़े बाप आपे से बाहर हो रहे होंगे। उनके पास तूफानी घोड़े हैं। वे हमारी धूल भी नहीं पा सकेंगे।
ख्लेस्टाकोव : (लिखता हुआ) अच्छा ठीक है। ये पत्र लो। इसके साथ घोड़ों के लिये भी आर्डर दे देना। देख लेना घोड़े तेज हों। कोचवान से बोल देना हमें तूफानी रफ्तार से ले चलें। मैं उसे एक रूबल फ्री मील दूंगा। (लिखना जारी रहता है) जब तक त्रयाप्चिकिन इस पत्र को नहीं पढ़ता तब तक इंतज़ार करो बच्चो! वह हँसी से मर जायेगा....
ओसिप : ये काम यहीं के किसी आदमी को सौंपता हूँ। तब तक मैं सामान बांधता हूँ, ताकि समय ख़राब न हो।
ख्लेस्टाकोव : (लिखता हुआ) तुम जैसा ठीक समझो। सिर्फ़ मेरे लिये मोमबत्ती ला दो।
ओसिप : (जाता है, बाहर से) हे तुम! जब चिट्ठी लिख जाये तो दौड़ कर पोस्ट आफिस जाओ। पोस्टमास्टर से बोलना कि इसके पैसे नहीं मिलेंगे। ये भी कहना कि हमारे लिये एक बढ़िया ट्राइका भेज दें। इसका किराया भी नहीं मिलेगा। गवर्नर साहब सरकारी दौर पर हैं। जल्दी, वर्ना महामहिम नाराज हो जायेंगे। रुको अभी चिट्ठी पूरी नहीं हुई।
ख्लेस्टाकोव : (लिखता हुआ) मुझे नहीं मालूम इन दिनों वह कहाँ रह रहा है। वह बिना किराया दिये अपने ठिकाने बदलता रहता है। पता नहीं इस वक़्त पोस्ट अॉफिस स्ट्रीट पर रहता है या गोरोबखाया में? पते में, अंदाज से पोस्ट अॉफिस स्ट्रीट लिख देता हूँ। (पत्र की तहें लगा कर पता लिखता है। ओसिप मोमबत्ती लाता है ख्लेस्टाकोव पत्र बंद कर सील लगाता है। बाहर से देर्जीमोर्दा की कड़क आवाज सुन पड़ती है- “हे!....तुम कहाँ चले जा रहे हो। अंदर जाने की इजाजत नहीं।”)
ख्लेस्टाकोव : (ओसिप को पत्र सौंपता हुआ) इसे ले जाओ।
व्यापारी : (बाहर) तुम हमें नहीं रोक सकते। हम जरूरी काम से आये हैं। हमें अंदर जाने दो।
देर्जीमोर्दा : (बाहर) भाग जाओ। महामहिम सो रहे हैं। तुमसे नहीं मिलेंगे। (आवाजें़ बढ़ जाती हैं)
ख्लेस्टाकोव : ये आवाजें़ कैसी हैं? ओसिप बाहर जाकर देखो तो।
ओसिप : कुछ व्यापारी अंदर आना चाहते हैं। सिपाही आने नहीं देता। वे हाथ के काग़ज़ हिला रहे हैं। लगता है आपसे मिलना चाहते हैं।
ख्लेस्टाकोव : (खिड़की पर पहुँच कर) दोस्तो! क्या बात है? मैं आप लोगों के लिये क्या कर सकता हूँ?
व्यापारी : (बाहर)हमारी प्रार्थना है महामहिम! हम अपनी दरख्वास्तें पेश करना चहते हैं।
ख्लेस्टाकोव : इन से बालो कि अंदर आ सकते हैं (खिड़की से अर्जियाँ लेता है, एक को खोल कर पढ़ता है) “सेवा में, श्रीमान् महामहिम लार्ड.. प्रेषक व्यापारी अब्दुलिन”। ऐसी तो कोई उपाधि नहीं सुनी। काहे के बारे में है।
दृश्य : नौ
(शराब की बोतलों और केकों से भरी टोकरी के साथ व्यापारियों का प्रवेश)
ख्लेस्टाकोव : मित्रो! मैं आपके लिये क्या कर सकता हूँ?
व्यापारी : हम आपसे दया की भीख मांगते हैं।
ख्लेस्टाकोव : आपकी क्या समस्या है?
व्यापारी : हमें तबाह मत कीजिये महामहिम! हमें अन्यायपूर्ण दमन से बचाइये।
ख्लेस्टाकोव : आपका दमन कौन कर रहा है?
व्यापारी : सब इस मेयर की करतूत है महामहिम! ऐसा मेयर यहाँ कभी नहीं आया! ऐसी गंदी हरकतें करता है कि आपको विश्वास नहीं होगा। वह अपने सारे सिपाहियों की फौज हम पर छोड़ देता है और उसके व्यवहार का तरीका-वह हमारी दाढ़ियाँ खींचता है, हमें तातार कहता है, जैसे हम उसे आदर न देते हों। जबकि ईश्वर की सौगंध हम हमेशा अपना फर्ज पूरा करते हैं। उसकी बीवी और बेटी के लिये कपड़े भेंट करने में हमें कोई आपत्ति नहीं। लेकिन उसके लिये ये काफ़ी नहीं। वह अक्सर हमारी दुकान में आ धमकता है और जो भी चीज़ पसंद होती है उठा कर ले जाता है। कोई टुकड़ा देखेगा और कहेगा-“बढ़िया कपड़ा है, इसे मेरे घर भेज देना।” और इस तरह पचास गज सर्वोत्तम कपड़ा मुफ्त चला जाता है।
ख्लेस्टाकोव : हें.... ऐसा है? बदमाश कहीं का!
व्यापारी : ‘बदमाश' उसके लिये उपयुक्त शब्द है। वह दुकान में आता है तो हर चीज़ उसकी नज़रों से छिपा कर रखनी पड़ती है। मुफ्त के माल के बारे में उसकी कोई ख़ास पसंद नहीं। कोई भी सड़ी-गली चीज़ उठा लेता है। एक बार पुराने बेर, जो हमारे डिब्बों में सात साल से सड़-घुन रहे थे, वह आया और मुटि्ठयाँ भर-भर खाने लगा। उसके नाम वाले सेन्ट एन्टोनी के दिन हम उसे तरह-तरह के उपहार देते हैं। लेकिन इससे उसका पेट नहीं भरता। अब कहता है अपना नाम सेन्ट अनुफ्रियस के दिन पर रख रहा है-जिसका मतलब होता है और अधिक उपहार।
ख्लेस्टाकोव : ये आदमी पक्का लुटेरा है।
व्यापारी : बिलकुल! बिलकुल! अगर कोई ज़रा भी चूं चपड़ करता है तो उस पर अपनी पुलिस की फौज पेल देता है। या फिर उसको अपने ही घर में ताले भीतर बंद कर देता है और कहता है- “मैं तुम्हें कोड़े नहीं लगा सकता, पीट नहीं सकता सिर्फ़ खारी मछली खिला कर जिन्दा रख सकता हूँ।”
ख्लेस्टाकोव : यह आदमी पूरा राक्षस है। इससे छोटे जुर्म के लिये भी उसे साइबेरिया भेजा जा सकता है।
व्यापारी : साइबेरिया या उससे भी आगे कहीं....जहाँ महामहिम चाहें। उसे हमसे बहुत दूर होना चाहिये। महामहिम हमारी छोटी सी भेंट स्वीकार करें-थोड़े से केक और शराब....
ख्लेस्टाकोव : हे ईश्वर नहीं! स्वप्न में भी नहीं। मैं रिश्वत नहीं लेता। लेकिन अगर 300 रूबल दें तो उसे )ण के रूप में स्वीकार कर सकता हूँ।
व्यापारी : बिलकुल अच्छे पिता। (रुपया निकालते हैं) तीन सौ क्यों 500 लीजिये, लेकिन हमारी रक्षा कीजिये।
ख्लेस्टाकोव : अगर आपका अनुरोध है तो ठीक है। लेकिन ये सिर्फ एक )ण है।
व्यापारी : (चांदी की तश्तरी में रूबल पेश करते हुए) इनके साथ तश्तरी भी स्वीकार करें।
ख्लेस्टाकोव : कोई मुजायका नहीं।
व्यापारी : और महामहिम! कुछ मीठे केक।
ख्लेस्टाकोव : नहीं, नहीं, मैं रिश्वत नहीं लेता।
ओसिप : ओह ग्रहण करें श्रीमान्। आप नहीं जानते रास्ते में कब जरूरत पड़ जाय। इधर बढ़ाओ। ये क्या है- रस्सी? इसे भी दो। रास्ते में अगर गाड़ी कहीं से टूट गई तो इससे बांधा जा सकेगा।
व्यापारी : हम पर कृपा दृष्टि करें श्रीमान्। अगर आप हमारी मदद नहीं करेंगे तो हम नहीं जानते हमारी क्या गत बनेगी....हमें फांसी पर भी चढ़ाया जा सकता है।
ख्लेस्टाकोव : भद्र लोगो! खातिरजमा रखें। मेरे हाथ जो भी होगा, जरूर करूंगा (व्यापारियों का प्रस्थान। एक औरत की चीखने की आवाज़-“मुझे रोकने की कोशिश मत करो। मैं तुम्हारी शिकायत करूंगी मुझे धक्के मत दो....मुझे तकलीफ हो रही है।) (ख्लेस्टाकोव खिड़की पर आता है) क्या बात है औरतो? दो औरतों की आवाजें! हम पर दया करों पिता। हम आपसे दया की भीख मांगते हैं। मेरी शिकायत सुन लें श्रीमान!
ख्लेस्टाकोव : इन्हें अंदर आने दो।
दृश्य : दस
(लोहार की बीवी और सार्जेन्ट की विधवा का प्रवेश)
लो. की बीवी : (बिलकुल झुक कर) हम पर दया करें।
सा.की बीवी : हम पर दया करें।
ख्लेस्टाकोव : भद्र महिलाओ। आप कौन हैं?
सा.की.विधवा : इवानोवा पूज्यवर! सार्जेन्ट इवानोवा की विधवा।
लो.की.बीवी : फेदरोव्ना पेत्रोव्ना प्योश्लोव्किना श्रीमान्। प्योश्लोव्किन लोहार की बीवी।
ख्लेस्टाकोव : एक समय पर एक बोलो। हाँ, कहो क्या बात है?
लो.की बीवी : हम पर दया करें पिता। मुझे मेयर की शिकायत करनी है। ईश्वर उसकी आत्मा को नरक में सड़ाये। उसकी चोट्टी बीवी, चाचाओं और चाचियों को नरक दे।
ख्लेस्टाकोव : उसने ऐसा क्या किया?
लो.की बीवी : उसने मेरे पति को जबरदस्ती फौज में भर्ती कर लिया, जबकि उसका नम्बर नहीं था। इसके अलावा उसे कानूनन भर्ती नहीं किया जा सकता। वह शादीशुदा है।
ख्लेस्टाकोव : कैसे किया?
लो. की बीवी : वह सारे तरीके निकाल सकता है और उसने निकाले हैं। ईश्वर उसे कयामत तक नरक दे। उसके चाचा-चाची को भी नरक दे। अगर उसका बाप जिन्दा है तो उसे बुरे दिन दिखाये। भर्ती एक दर्जी के शराबी बेटे की होनी थी। उसके बाप ने कीमती तोहफे दिये, तो उसे छोड़ कर दुकानदार पेन्टेव्येव के बेटे के पीछे पड़ गया। पेन्टेव्येव ने इसकी बीवी के पास कपड़ों के तीन थान भेजे तो उसे छोड़ कर मेरे पीछे पड़ गया। मुझसे कहता था-“तुझे पति की क्या जरूरत है वह तेरे काम का नहीं?” काम का है या नहीं ये तो मेरे कहने की बात है। इसके बाद बदमाश बोला ‘‘वह चोर है। अभी तक चोरी नहीं की तो क्या? आगे करेगा। अगली बार तो उसे भर्ती होना ही पड़ेगा।'' लेकिन मैं बिना पति के कैसे रहूँ? इतनी कमजोर हो गई हूँ। लुटेरा! इसके खानदान का कोई दिन की रोशनी न देखे। अगर इसकी सास जिन्दा है तो उसे....
ख्लेस्टाकोव : ठीक है। ठीक है। (लोहार की बीवी को बाहर जाने का संकेत करता है) हाँ, तुम्हें क्या कहना है?
लो.की बीवी : (बाहर जाती हुई) अच्छे पिता। कृपा करें भूलें नहीं। मुझ पर दया करें।
सा.की बीवी : मुझे भी मेयर के बारे में कुछ कहना है श्रीमान्।
ख्लेस्टाकोव : क्या कहना है। संक्षेप में बताओ।
सा.की.बीवी : मुझे मेयर ने कोड़ों से पिटवाया था श्रीमान। ईश्वर साक्षी है
ख्लेस्टाकोव : कैसे?
सा.की.बीवी : सब धोखे में हुआ। बाज़ार में कुछ-कुछ किसान औरतों में झगड़ा हो गया। जब पुलिस पहुंची तो झगड़ा ख़त्म हो चुका था। लेकिन उन्हें किसी न किसी को सजा देनी थी, सो मुझे पकड़ लिया। मेयर ने मुझे कोड़े लगवाये। दो दिन मैं तकलीफ के मारे बैठ नहीं पायी।
ख्लेस्टाकोव : मुझसे क्या चाहती हो?
सा.की बीवी : अब क्या हो सकता है। आप उससे मेरे नुक्सान की भरपाई करने को बोल दें। कुछ नगदी मिल जाये तो मेरा काम चल जायेगा।
ख्लेस्टाकोव : ठीक है। ठीक है। मैं बोल दूंगा। अब जाओ। (सार्जेन्ट की बीवी जाती है, इसके साथ ही अर्जियाँ दबाये हुए कई हाथ खिड़की के अंदर घुस आते हैं) ये क्या?.... बाहर जाओ। अब मैं किसी से नहीं मिलूंगा। ईश्वर के लिये इन्हें बाहर निकालो मैं मर रहा हूँ। ओसिप....किसी को अंदर मत आने देना। (खिड़की पर जा कर चिल्लाता है) ऐ! बाहर निकलो कीड़ों! अब कल आना (दरवाज़ा खुलता है। फ्रीज कोट पहने एक शक्ल प्रकट होती है। उसकी दाढ़ी बढ़ी हुई है, होंठ सूजे हुए हैं, गाल पर पट्टी। उसके पीछे प्रार्थियों की भीड़) अरे! तुम लोग कहाँ चले आ रहे हो (पहले आदमी के साथ भीड़ को पीछे धकेलता, अपने पीछे दरवाज़ा बन्द करता हुआ बाहर निकल जाता है।)
दृश्य : ग्यारह
(मारिया एन्टनोवा का प्रवेश)
मा.एन्टनो. : ओह!
ख्लेस्टाकोव : क्या मैंने आपको डरा दिया कुमारी जी?
मा. एन्टनो. : न....नहीं।
ख्लेस्टाकोव : मुझे प्रसन्नता है कुमारी जी कि आपने मुझे उस तरह का व्यक्ति समझ लिया जो....क्या मैं जान सकता हूँ कि आप कहाँ जा रही हैं?
मा.एन्टनो. : कहीं नहीं जा रही थी। सच?
ख्लेस्टाकोव : किसी ख़ास कारण से कहीं नहीं जा रही हैं?
मा.एन्टनो. : मैं सोचती थी, यहाँ माँ होंगी।
ख्लेस्टाकोव : नहीं, मैं जानना चाहता हूँ किस कारण से आप कहीं नहीं जा रहीं?
मा.एन्टनो. : मैं आपके महत्त्वपूर्ण कामों में बाधा बन रही हूँ?
ख्लेस्टाकोव : आपकी आँखों में झांकने से महत्त्वपूर्ण कुछ भी नहीं। आप मुझे यह प्रसन्नता दे सकती हैं।
मा.एन्टनो. : सेन्ट पीटर्सबर्ग में ऐसे ही बोलते होंगे?
ख्लेस्टाकोव : सुन्दरी से और कैसे बोला जाय? क्या मैं आपसे कुर्सी पर बैठने का अनुरोध कर सकता हूँ? मेरा मतलब है.... हालाँकि आपके बैठने के लिये तो सिंहासन होना चाहिये।
मा.एन्टनो. : मैं नहीं जानती। मुझे जाना चाहिये। (बैठ जाती है),
ख्लेस्टाकोव : आपका रूमाल कितना सुन्दर है।
मा.एन्टनो : आप शहराती हम कस्बाइयों का हमेशा मजाक उड़ाते हैं?
ख्लेस्टाकोव : काश! ये रूमाल मैं होता तो आपकी नर्गिसी गर्दन के इर्दगिर्द लिपटा होता।
मा.एन्टनो. : मैं नहीं जानती आप किस चीज़ की प्रशंसा कर रहे हैं। मौसम कितना खुशनुमा है?
ख्लेस्टाकोव : आपके होंठ कुमारी जी किसी भी मौसम से ज़्यादा खु़शनुमा हैं।
मा. एन्टनो. : आप कविता करते हैं। मैं चाहती हूँ कि आप मेरे अलबम में कुछ कवितायें लिख दें। आपको बहुत सी याद होंगी?
ख्लेस्टाकोव : कुमारी जी की इच्छा मेरे लिये आदेश है। आपको कैसी कवितायें पसंद हैं?
मा.एन्टनो. : ओह! कैसी भी। नई और सुन्दर कवितायें।
ख्लेस्टाकोव : मुझे बहुत सी कवितायें याद हैं।
मा.एन्टनो. : बतायें मेरे लिये कैसी लिखेंगे। सुना कर बतायें।
ख्लेस्टाकोव : इसमें परेशानी की क्या बात है। मैं बिना सुनाये लिख सकता हूँ।
मा.एन्टनो. : मुझे कविताओं से बेहद प्रेम है।
ख्लेस्टाकोव : मुझे सभी तरह की कवितायें आती हैं ये कैसी रहेगी-मत कहो/कि सफल नहीं होगा संघर्ष/हालांकि संघर्ष भयानक है/और लड़ाई लम्बी। ये मेरी कविता है। इसके अलावा और भी बहुत सी लिखी हैं जो इस समय याद नहीं आतीं। मुद्दे की बात ये है कि अब मैं आपकी आंखों में झांकता हूँ (अपनी कुर्सी उसके करीब खिसकाता है) तो प्रेम....
मा.एन्टनो. : प्रेम! मैं नहीं जानती कि प्रेम क्या होता है? मैंने कभी नहीं जाना कि प्रेम का क्या मतलब होता है? (अपनी कुर्सी दूर खिसकाती है)
ख्लेस्टाकोव : (कुर्सी करीब खिसकाता है) दूर क्यों भागती हो? पास बैठना ज्यादा आनंददायक होता है।
मा.एन्टनो. : पास क्यों बैठें? जबकि दूर और पास बैठना बराबर है। (अपनी कुर्सी दूर खिसकाती है)
ख्लेस्टाकोव : (कुर्सी करीब खिसकाता है) दूर क्यों? जबकि पास और दूर बैठना बराबर है।
मा.एन्टनो. : (कुर्सी दूर खिसका कर) लेकिन क्यों?
ख्लेस्टाकोव : (कुर्सी पास खिसकाता हुआ) सब कुछ सोचने पर निर्भर है। ये तुम्हारा ख्याल भर है कि हम पास-पास बैठे हैं।....सोचो कि हम दूर-दूर बैठे हैं। आह कुमारी जी! अगर मैं आपको बांहों में भर कर छाती से लगा लेता तो कितना आनंदित होता।
मा.एन्टनो. : (खिड़की से बाहर झांकती हुई)ये चिड़िया जो अभी यहाँ से गुजरी, कौन थी-मुनैंया?
ख्लेस्टाकोव : (खिड़की से बाहर देखते हुए) हाँ, मुनैंया! (उसके कंध्ो चूम लेता है)
मा.एन्टनो. : (उछल कर गुस्से से)बहुत हो चुका! इतनी हिम्मत!....(जाने को होती है)
ख्लेस्टाकोव : (उसे रोकता हुआ)क्षमा करो प्रिय! ये मेरा प्रेम था, पवित्र प्रेम जिसने मुझसे ये हरकत कराई।
मा.एन्टनो. : आप मुझे कोई देहाती लड़की समझते हैं?(जाने की कोशिश करती है)
ख्लेस्टाकोव : (उसे रोकता हुआ) मैं सौंगध से कहता हूँ ये मेरा प्रेम था। मैंने सिर्फ़ मजाक किया था। मारिया एन्टनोव्ना कृपया मुझे क्षमा करें। मैं घुटनों के बल आपसे माफी मांगता हूँ (घुटनों पर गिरकर) मैं आपसे क्षमा मांगता हूँ।
दृश्य बारह
(अन्ना आन्द्रेयेव्ना का प्रवेश)
आन्ना आन्द्रे. : (ख्लेस्टाकोव को घुटनों पर देख कर) हे दयालु ईश्वर!
ख्लेस्टाकोव : (उठता हुआ, स्वगत) मारे गये।
अन्ना आन्द्रे. : युवा लड़की! इसका क्या मतलब है? ये कैसा सलूक है?
मा.एन्टनो. : माँ....मैं....
अन्ना आन्द्रे. : यहाँ से बाहर जाओ सुन रही हो। इसी पल! और यहाँ दोबारा आने की हिम्मत मत करना। (मारिया रोती हुई जाती है) मैं कहने को बाध्य हूँ महामहिम!..मुझे आश्चर्य है?
ख्लेस्टाकोव : (स्वगत) ये खुद भी कम लजीज नहीं। (घुटनों पर गिर कर) श्रीमती जी आप देख रही हैं मैं प्रेम रोगी हो गया हूँ।
अन्ना आन्द्रे. : यह आप क्या कर रहे हैं? मेरे प्रिय! कृपया खड़े हो जायें फर्श गंदा है।
ख्लेस्टाकोव : नहीं! मैं जानना चाहता हूँ मेरे भाग्य में क्या है-जीवन या मुत्यु?
अन्ना आन्द्रे. : क्षमा करें क्या आप मेरी बेटी के बारे में कोई घोषणा कर रहे हैं?
ख्लेस्टाकोव : नहीं, नहीं! जिससे मुझे प्रेम है वह आप हैं। मेरी ज़िन्दगी एक पतले धागे से लटकी हुई है। यदि आप मेरे प्रेम का प्रतिदान नहीं करेंगी तो मैं जीने के काबिल नहीं रहूँगा। मेरा सारा शरीर दहक रहा है। मैं आपका हाथ मांगता हूँ।
अन्ना आन्द्रे. : आप जानते हैं... एक हद तक... मेरा मतलब है मैं एक विवाहित महिला हूँ।
ख्लेस्टाकोव : उससे क्या? सच्चा प्रेम कोई सीमायें नहीं जानता। दिल के अपने कानून होते हैं-जैसा कि कविवर करमजीन ने कहा है “हम एक साथ किसी दूर के सघन कुंज में भाग चलें....मैं आपका हाथ मांगता हूँ”
दृश्य : तेरह
(मारिया एन्टनोव्ना का प्रवेश)
मा.एन्टनो. : पापा का कहना है कि तुम....(ख्लेस्टाकोव को घुटनों पर देखकर चीखती हो ) हे ईश्वर!..
अन्ना आन्द्रे. : तुम क्यों....तुम जानती हो तुम क्या कर रही हो? यहाँ चोट खाई बिल्ली की तरह दौड़ती आयी। मुझे पता है तुम्हारे दिमाग में क्या मूर्खता भरी पड़ी है और तुम्हें किस बात का आश्चर्य है। तुम्हें देख कर कोई सोच भी नहीं सकता कि तुम अठारह साल की हो चुकी हो। बिल्कुल तीन साल की बच्ची की तरह लगती हो। तुम एक शिष्ट महिला की तरह व्यवहार करना कब सीखोगी।
मा.एन्टनो. : (सुबकती हुई) माँ, मुझे सचमुच मालूम नहीं था कि....
अन्ना आन्द्रे. : तुम्हें कभी कुछ मालूम नहीं रहता। तुम्हारे साथ यही दिक्कत है। तुम ल्याप्किन त्याप्चिकिन लड़कियों से किसी मामले में बेहतर नहीं। मैं नहीं समझ पाती कि तुम क्यों हमेशा उन की नकल करती हो। जबकि सीखने कि लिये तुम्हारे सामने एक बेहतर मिसाल है। जैसे मैं तुम्हारी माँ।
ख्लेस्टाकोव : (मारिया का हाथ पकड़ता हुआ) अन्ना आन्द्रेयेव्ना! मेरी प्रार्थना है कि हमारे प्रेम-मार्ग में रोड़ा न बने। हमें आशीर्वाद दें।
अन्ना आन्द्रे. : (आश्चर्य-चकित) आपका मतलब है मैं नहीं....ये!
ख्लेस्टाकोव : जल्द बतायें मेरे लिये ज़िन्दगी या मौत?
अन्ना आन्द्रे. : देखो मूर्ख! तुमने क्या किया। तुम्हारे कारण हमारे मेहमान मेरे सामने घुटनोंं पर गिरते हैं और तुम पागल की तरह भागती हुई अंदर चली आती हो। मुझे स्वीकृति देने से इन्कार कर देना चाहिये। तुम इस खुशी के काबिल नहीं।
दृश्य : चौदह
(मेयर का प्रवेश)
मेयर : क्षमा महामहिम! मुझे बख्श दें। मुझे तबाह न करें।
ख्लेस्टाकोव : क्या बात है?
मेयर : कुछ व्यापारी आपसे मेरी शिकायत करने आये थे महामहिम! उनकी आधी बातें भी सही नहीं महामहिम। सब के सब झूठे और ठग हैं। और वो सार्जेन्ट की विधवा जो कहती थी कि मैंने उसे कोड़े लगवाये झूठ कहती थी। मैं ईश्वर की सौगंध से कहता हूँ, उसने खुद ही अपने को कोड़े मारे।
ख्लेस्टाकोव : भाड़ में जाये सार्जेन्ट की विधवा। उसकी कौन चिन्ता करता है।
मेयर : उनका विश्वास न करें। वे सब मक्कार हैं। पूरा कस्बा जानता है और जहाँ तक ठगी का सवाल है, मैं ये बताने की इज़ाजत चाहता हूँ कि दुनिया में इनसे बड़े ठग आज तक नहीं हुए।
अन्ना आन्द्रे. : मेरे ख़्याल से तुम्हें उस सम्मान का पता नहीं जो इवान अलेक्जेन्ड्रोविच हमें दे रहे हैं। वे हमारी बेटी का हाथ मांग रहे हैं।
मेयर : क्या औरत मेरा दिमाग़ ख़राब हो गया है। महामहिम नाराज न हों। वह भी अपनी माँ की तरह दिमाग़ से कुछ कमज़ोर है।
ख्लेस्टाकोव : लेकिन यह सच है कि मैं उससे प्रेम करता हूँ। उसका हाथ मांगता हूँ।
मेयर : महामहिम! मुझे विश्वास नहीं होता।
अन्ना आन्द्रे. : लेकिन ये कह रहे हैं।
ख्लेस्टाकोव : मैं गम्भीरता से कह रहा हूँ, मैं उसके प्रेम में पागल हो सकता हूँ।
मेयर : मुझे विश्वास नहीं होता श्रीमान्। मैं इस सम्मान के योग्य नहीं।
ख्लेस्टाकोव : अगर आप सहमति नहीं देते तो मैं क्या करूंगा, इसकी जिम्मेदारी भी मैं नहीं लेता।
मेयर : मुझे विश्वास नहीं होता। महामहिम मेरे साथ दिल्लगी कर रहे है।
अन्ना आन्द्रे. : हे महान बेसब्रे! पहले सुनो तो कि ये भद्र पुरळष क्या कह रहे हैं। लेकिन तुम्हें सब्र ही नहीं।
मेयर : मुझे विश्वास नहीं होता।
ख्लेस्टाकोव : आपकी सहमति! आपकी सहमति! मैं भयानक रूप से हताश हूँ। मैं कुछ भी कर सकता हूँ जब मैं खुद को गोली मार लूँगा तो आप खुद को अदालत के कठघरे में खड़ा पायेंगे।
मेयर : नहीं, नहीं, महामहिम! मैं आत्मा और काया दोनों से निर्दोष हूँ। नाराज न हों। आपको जो करना हो करें। मैं कुछ नहीं सोच पाता। मेरा सिर चकरा रहा है।
आन्ना आन्द्रे. : तो आगे बढ़ कर उन्हें आशीर्वाद दो। (ख्लेस्टाकोव मारिया को मेयर के पास ले जाता है)
मेयर : ओह! ईश्वर तुम दोनों को प्रसन्न रखे। लेकिन जहाँ तक मेरा सवाल है मैं बेकसूर हूँ, मैं सौगंध से कहता हूँ। (ख्लेस्टाकोव मारिया एन्टनोव्ना का चुम्बन लेता है, मेयर देखता है)
मेयर : हे शैतान! ये क्या है? (अपनी आँखें पोंछता हैं) वे एक दूसरे को चूम रहे हैं। हे ईश्वर ये सच है कि उनकी सगाई हो चुकी। (खुशी से चीखते और उछलते हुए) अई एन्टन! आज का दिन मेरे लिये सौभाग्य का दिन है।
दृश्य : पन्द्रह
(ओसिप अंदर आता है)
ओसिप : घोड़े तैयार हैं।
ख्लेस्टाकोव : ठीक है। एक मिनिट में तैयार हुआ।
मेयर : मेरा कहना है महामहिम, आप नहीं जा रहे हैं। क्या आप जा रहे हैं?
ख्लेस्टाकोव : बिलकुल। इसी पल।
मेयर : लेकिन आपने....मेरा मतलब है महामहिम ने....शादी के बारे में कुछ नहीं कहा।
ख्लेस्टाकोव : हाँ शादी....एक मिनिट देर से नहीं। पहले अपने धनी बूढ़े बाप से मिलना है। आपको पता है। कल आ जाऊँगा।
मेयर : हम आपको रोकने की धृष्टता नहीं करेंगे। आपकी सुरक्षित वापसी का इंतजार करेंगे।
ख्लेस्टाकोव : बिलकुल! मैं सही समय पर आ जाऊँगा मेरी प्रिया विदा....ओह मुझे शब्द नहीं सूझते। मेरी प्रिया विदा। (मारिया का हाथ चूमता है)
मेयर : रास्ते में आपको किसी चीज़ की जरूरत तो नहीं होगी महामहिम! आपके पास नगदी की कुछ कमी थी।
ख्लेस्टाकोव : आपको इसका अंदाजा कैसे....(सोच कर) हाँ कुछ....
मेयर : कितने की?
ख्लेस्टाकोव : सोचने दें....200 रूबल उधार दे दें। मेरा मतलब चार सौ। मैं आपकी भूल का फायदा नहीं उठाना चाहता। यानी फिर से कहा जाय तो आठ सौ।
मेयर : बिलकुल! बटुए से रुपये निकालता है। इस बार ख़ास बात ये है कि नोट बिलकुल नये और खू़बसूरत हैं।
ख्लेस्टाकोव : नये हैं? (नोटों का मुआयना करता है) कहते हैं नये नोट नया सौभाग्य लाते हैं। नहीं?
मेयर : बिलकुल लाते हैं।
ख्लेस्टाकोव : अच्छा एन्टन एन्टनोविच! आपके सत्कार के लिये बहुत बहुत आभार। मैं तो कहूँगा ऐसा सत्कार मुझे इससे पहले कभी नहीं मिला। विदा प्रिया मारिया एन्टनोव्ना। विदा अन्ना आन्द्रेयेव्ना। (अन्ना आन्द्रेयेव्ना और मारिया एन्टनोव्ना का प्रस्थान। गाड़ी आने की आवाजे़ं)
मेयर : ये क्या? आपको डाक ले जाने वाली गाड़ी में यात्रा नहीं करना चाहिये।
ख्लेस्टाकोव : मैं हमेशा इसी तरह चलता हूँ। स्प्रिंगदार गाड़ी में मुझे सिरदर्द होने लगता है।
कोचवान : भोआ!
मेयर : कम से कम सीट पर बिछाने के लिये कुछ ले लें। कहें तो एक कम्बल ला दूँ।
ख्लेस्टाकोव : किसलिये? उससे क्या फ़र्क़ पड़ता है। लेकिन आप कहते हैं तो ला दीजिये।
मेयर : (आवाज़ देता है) हे अघोता! स्टोर से सबसे बढ़िया गलीचा ले आओ नीला वाला गलीचा।
कोवचान : भोआ!
मेयर : हम महामहिम का कब तक इंतज़ार करें?
ख्लेस्टाकोव : कल या परसों।
ओसिप : (अघोता से) तो ये गलीचा है। इस तरफ इधर रख दो। सूखी घास उस तरफ कर दो।
कोचवान : भोआ।
ओसिप : उधर नहीं, इधर....ठीक है। महामहिम इधर बिराजें।
ख्लेस्टाकोव : विदा एन्टन एन्टनोविच।
मेयर : नमस्कार श्रीमान।
स्त्रियाँ : नमस्कार इवान अलेक्जेन्ड्रोविच।
ख्लेस्टाकोव : नमस्कार अम्मा।
कोचवान : विदा, मेरी सुन्दरियो।(घन्टी की आवाजें। पर्दा गिरता है)
अंक : पाँच ; दृश्य : एक
मेयर : कैसा रहा अन्ना आन्द्रेयेव्ना? हमने कभी इस सौभाग्य की कल्पना नहीं की थी। एक बढ़िया और कीमती पकड़। हमारे किसी भी सपने से परे। एक क्षण पहले तुम एक मामूली से बूढ़े मेयर की बीवी थी, दूसरे क्षण उस बेहतरीन नौजवान शैतान की सास!
अन्ना आन्द्रे. : तुम्हारे ख़्याल के विपरीत मैं इसे आता हुआ देख रही थी। तुम इसलिये नहीं समझ सके क्योंकि तुम एक गवांर देहाती हो....जो भद्र लोगों मेें कभी नहीं उठा-बैठा।
मेयर : मैं स्वयं एक शिष्ट एवं सुसंस्ड्डत व्यक्ति हूँ। तुम्हारी तरह न सही। लेकिन अन्ना आन्द्रेयेव्ना, ज़रा सोचो, अब हम बिलकुल भिन्न रंग के पंछी हैं और ऊँची उड़ान पर हैं। बाक़ी सब भूल जाओ.... लेकिन ठहरो। अब जरा उन मेंढकों, घास में छिपे संपेलुओं की तबियत हरी कर दूँ, जिन्होंने मेरे खिलाफ जासूसी की और शिकायतें की। हे! बाहर कौन है? (स्विस्टुनोव का प्रवेश) अहा! स्विस्टुनोव जाओ और उन दुकानदारोें को पकड़ लाओ मैं सूदखारों के इस गिरोह को सबक सिखाना चाहता हूँ। बत्तखो! इस बार मैं सचमुच तुम्हें शिकायत करने का मौका दूँगा। अभी तक मैं तुम्हारी दाढ़ी खीचता था, अब उखाड़ लूंगा। मुझे हर उस शक्स का नाम चाहिये, जिसने मेरी शिकायत की, हर उस चूहे का नाम जिसने मेरे खि़लाफ़ दरख्वास्तें लिखीं। इसके अलवा शहर का हर खासो-आम जान ले कि ईश्वर ने मुझे कितना सम्मान बख्शा है। मैं अपनी बेटी का विवाह किसी ऐरे-गैरे से नहीं, बल्कि ऐसे व्यक्ति से कर रहा हूँ जैसा दुनिया ने आज तक नहीं देखा होगा। जो कुछ भी कर सकता है....कुछ भी। यह ख़बर लोगों को छतों से चिल्ला चिल्ला कर सुनाओ.... घन्टे बजाओ। आज का दिन तुम्हारे मेयर के लिये महान दिन है (स्विस्टुनोव का प्रस्थान) तो अन्ना आन्द्रेयेव्ना! तुमने क्या तय किया? यहाँ रहोगी या पीटर्सबर्ग में?
अन्ना आन्द्रे. : पीटर्सबर्ग में। सोचना भी मत कि यहाँ रहूंगी।
मेयर : तुम कहती हो कि पीटर्सबर्ग में, तो ठीक है। लेकिन यहाँ भी कोई ख़राब नहींं। सिवा इसके कि मैं फकत एक मेयर ही बना रहूंगा।
अन्ना आन्द्रे. : सचमुच! मेयर का क्या महत्त्व है?
मेयर : अन्ना आन्द्रेयेव्ना! क्या तुम्हें लगता है कि पीटर्सबर्ग में, मुझे कोई बड़ा ओहदा मिल सकता है। तुम नहीं जानती कि उसके साथ तमाम मंत्रियों से दोस्ती गांठते और राजमहल में प्रवेश के बाद, मैं सेवा-निवृत होने तक एक जनरल बन सकता हूँ। एक! क्या ख़्याल है अन्ना आन्द्रेयेव्ना? मैं एक जनरल बन सकता हूँ।
अन्ना आन्द्रे. : इसकी उम्मीद करनी चाहिये।
मेयर : एहे! मैं कंध्ो पर टंके रूमाल के साथ जनरली वर्दी में! तुम किस रंग का रूमाल पसंद करोगी अन्ना आन्द्रेयेव्ना? लाल या नीला?
अन्ना आन्द्रे. : निश्चित रूप से नीला?
मेयर : एह! इनकी बात सुनो। लाल में भी कोई हर्ज नहीं। जानती हो, जनरल के लिये सबसे बड़ी जलवे की क्या बात होती है? अगर उसे कहीं जाना होता है तो उसके दूत और मातहत पहले से दौड़े जाते हैं- ‘‘जनरल साहब पधार रहे हैं। उनके लिये सर्वोत्तम घोड़े चाहिये....'' और नगर के सारे सभासद, केप्टन और मेयर अपने अलंकरण के लिये सर्वोत्तम घोड़े का इन्तजाम करते हैं और जनरल साहब गवर्नर के साथ भोज पर चले गये होते हैं....या अचानक जा धमकने पर कोई मेयर अपनी कुर्सी से उछल पड़ता है।हा....हा...हा...(हँसी से दोहरा हो जाता है) ये है जनरली का जल्वा।
अन्ना आन्द्रे. : तुम्हें हमेशा बेहूदा चीजें़ पंसद आती हैं। तुम्हें याद रखना चाहिये कि अब हमारी ज़िन्दगी बदल चुकी है। अब इन गवांर दोस्तों का जमावड़ा बंद करो। जज जैसे कुत्ता प्रेमी और वार्डन जैसे असभ्य लोगों का साथ छोड़ो। अब तुम काउंटों और राजकुमारों के भद्र-समाज में जा रहे हो, जिन्हें समाज का मक्खन कहा जाता है। लेकिन मुझे शक है कि तुम इस कसौटी पर खरे उतरोगे कभी-कभी तुम ऐसे शब्द बोल जाते हो जो “न्यू मान्डी” में कभी नहीं बोले जाते।
मेयर : उससे क्या? शब्दों से कोई नुकसान नहीं होता।
अन्ना आन्द्रे. : हाँ, जब तक तुम मेयर हो, नहीं हो सकता। लेकिन वहाँ की ज़िन्दगी बिलकुल अलग है।
मेयर : हाँ बिलकुल! वहाँ बेहतर किस्म की मछलियाँ-जैलीदार सील और भाप में पकाई स्टटजन खायी जाती है, जिन्हें देखते ही मुंह में पानी भरने लगता है।
अन्ना आन्द्रे. : हुंह मछली! ये आदमी इन्हीं चीज़ों के बारे में सोचता है। मेरे ख़्याल अलग हैं। मेरा घर राजधानी का सबसे सुन्दर घर होना चाहिये....और जब तुम मेरे कमरे में आओ तो नशीली गंध से तुम्हारी आँखें मिच जाएं (आँखें मूंदती है, छींकती है) ओ! कितना अदभुत....
दृश्य : दो
(व्यापारियों का प्रवेश)
मेयर : आह! मेरे मेमनो, तुम आ गये।
व्यापारी : (झुक कर) हम आपके लिये स्वास्थ्य और खुशी की कामना करते हैं।
मेयर : ठीक है। लेकिन मेरी बत्तखो, तुम लोग कैसे हो? तुम्हारा धंधा-पानी कैसा चल रहा है? मेरी उंगलियाँ मरोड़ने वालो! मांस के लोथड़ों दुकानदारो! क्या अब तुम कभी मेरी शिकायत करोगे? ये ठग के सिर-मौर, लुटेरे, जाल साज....मेरी शिकायत करते हैं। और देखा इसका क्या नतीजा निकला। तुम सोचते थे तुमने मुझे कुएं में धकेल दिया....नहीं? शैतान तुम्हारी सड़ी हुई आत्माओं को नरक में ले जाये।
अन्ना आन्द्रे. : ओह एन्टन! सचमुच कैसी भाषा कैसे शब्द?
मेयर : (बिगड़ कर) मेरी भाषा पर मत जाओ। (व्यापारियों से) मेरे पास तुम लोगों के लिये एक समाचार है। वह आला अफसर, जिसके पास तुम मेरी शिकायतें लेकर दौड़ गये थे, मेरी बेटी से विवाह करने जा रहा है। अब तुम क्या कहते हो? अब मैं....जब तक तुम लोगों की तबीयत हरी नहीं करता, इंतज़ार करो। सीध्ो लोगों को ठगने वालो!....ये खजाने से ठेका लेंगे, और सड़ा हुआ कपड़ा सप्लाई कर सरकार को एक लाख का चूना लगा देंगे....और इसकी एवज में दयानतदारी दिखाते हुए, मेरे लिये सिर्फ़ पन्द्रह गज!.... और इसके लिये भी कोई अलंकरण चाहिये। अगर कभी इन्हें पकड़ लिया तो कहेंगे-“हम व्यापारी हैं। तुम हमें नहीं छू सकते। हम भद्र लोग हैं....तुम भद्र-लोग हो गीदड़ो। भद्र-लोग विज्ञान पढ़ते हैं। हो सकता है स्कूल के दिनों में उन्हें पीटा जाता हो। लेकिन इससे कुछ शिष्टाचार तो उन्हें आ ही जाता है और तुम लोग! तुम पैदायशी चोर हो और मालिकों द्वारा इसलिये पीटे जाते हो क्योंकि तुम्हें सलीके से चोरी करना नहीं आता। ईश-प्रार्थना के पहले तुम जम कर ठगी करते हो और जैसे ही तुम्हारे बटुए भर जाते हैं, जेबें उफनने लगती हैं, तुम खुद को ईश्वर समझने लगते हो। क्योंकि तुम दिन में सोलह प्याली चाय पी सकते हो। इस बार मैं तुम्हें हमेशा के लिये सबक सिखा देना चाहता हूँ....
व्यापारी : (झुक कर) हमें बहुत अफसोस है एन्टन एन्टनोविच।
मेयर : अब करोगे मेरी शिकायत? मैं पूछता हूँ वो कौन था जिसने तुम्हें पुल के लिये खरीदी गई लकड़ी के लिये 20000 रूबल वसूल करने दिये? जबकि लकड़ी घुनी हुई थी और 100 रूबल की भी नहीं थी? एह! ये मैं था। नहीं? क्या भूल गये? मुझे सिर्फ एक शब्द बोलना है और तुम्हें बर्फानी साइबेरिया में बंद कर दिया जायेगा। सुन रहे हो?
एक व्यापारी : ईश्वर की सौगंध! हमें पश्चाताप है एन्टन एन्टनोविच। हमें शैतान ने गुमराह किया श्रीमन्। हम कसम खाते हैं अब कभी शिकायत नहीं करेंगे। कृपा कर गुस्सा न हों। आप हमसे जो भी कहेंगे, हम करेंगे।
मेयर : अब तुम “हम पर गुस्सा न हों” कहते हुए गिड़गिड़ा रहे हो। क्योंकि मैं चोटी पर हूँ। लेकिन अगर किस्मत तुम्हारा जरा-सा-भी साथ देती, तो तुमने तो मेरे मुंह पर कीचड़ मल ही दिया था। सुअरो!....
व्यापारी : (बिलकुल झुकते हुए) हमें तबाह न करें एन्टन एन्टनोविच।
मेयर : हाँ!.... अब कहते हो हमें तबाह मत करें। लेकिन इससे पहले क्या कह रहे थे? मैं चाहता हूँ तुम सबको गिरफ्तार करूं और....(हवा में हाथ लहराता है) ठीक है। मैं उम्मीद करूँगा कि ईश्वर तुम्हें माफ करेगा। मैं इतना ही कह सकता हूँ। ये तुम्हारा सौभाग्य है कि मैं बदले की भावना रखने वाला इंसान नहीं। लेकिन आगे के लिये ख़बरदार!....मैं अपनी बेटी की शादी किसी बूढ़े सामंत से नहीं कर रहा हूँ। इसलिये शादी के लिये बेशकीमती उपहार होने चाहिये। यह मत सोचना कि हमेशा की तरह मसालेदार मछली और मिश्री से गला छूट जायेगा। अब दफा हो जाओ। (व्यापारी जाते हैं)
दृश्य : तीन
(वार्डन और जज का प्रवेश)
जज : (दरवाजे से ही) एन्टन एन्टनोविच! क्या हम इस अफवाह का विश्वास करें कि यकायक आपका भाग्य चमक उठा है?
वार्डन : असाधारण सौभाग्य के लिये मुझे बधाई देनेकी इज़ाजत दें। जब यह ख़बर सुनी तो मुझे हार्दिक प्रसन्नता हुई। आगे बढ़ कर अन्ना अन्द्रेयेव्ना का हाथ चूमता है (अन्ना आन्द्रेयेव्ना) (मारिया का हाथ चूमता है) मारिया एन्टनोव्ना। (रस्टाक्लोवस्की का प्रवेश)
रस्टाक्लो. : बधाई एन्टन एन्टनोविच! ईश्वर आपको और आनंदित जुगल-जोड़ी को लम्बी उम्र दे और आपकी भावी पीढ़ियों को नाती-पोतों से भर दे। अन्ना आन्द्रेयेव्ना! (उसका हाथ चूमता है।) मारिया एन्टनोव्ना! उसका हाथ चूमता है।
दृश्य : चार
(कोरोब्किन, उसकी बीवी और ल्यूल्यूकोव का प्रवेश)
कोरोब्किन : सचमुच एन्टन एन्टनोविच! हार्दिक बधाई! अन्ना आन्द्रेयेव्ना (उसका हाथ चूमता है।)मारिया एन्टनोव्ना। (उसका हाथ चूमता है)
को.की बीवी : नई खुशी के अवसर पर मेरी हार्दिक बधाई।
ल्यूल्यूकोव : बधाई देने की इजाजत दें अन्ना आन्द्रयेन्वा (उसका हाथ चूमता है, फिर दर्शकों की ओर मुड़ कर मुंह बनाता और सिर हिलाता है) मारिया एन्टनोव्ना। (उसका हाथ चूमता है और दर्शकों की ओर मुड़कर मुंह बनाता और सिर हिलाता है) (टेल-कोट और फ्राक कोट पहने मेहमानों की भीड़ का प्रवेश, जो बारी बारी मारिया एन्टनोव्ना और अन्ना आन्द्रेयेव्ना के हाथ चूमते हैं। दरवाजे से आपस में टकराते हुए बाबचिंस्की और डाबचिंस्की का प्रवेश)
बाबचिंस्की : हार्दिक बधाई देने की इज़ाजत दें।
डाबचिंस्की : एन्टन एन्टनोविच। हार्दिक बधाई देने की इजाजत दें
बाबचिंस्की : आपके सौभग्य पर....
डाबचिंस्की : अन्ना आन्द्रेयेव्ना।
बाबचिंस्की : अन्ना आन्द्रयेव्ना।
(दोनों एक साथ अन्ना आन्द्रेयेव्ना के हाथ पर झुकते हैं, उनके सिर टकराते हैं)
दृश्य : पाँच
(पुलिस अधीक्षक और सिपाहियों का प्रवेश)
पु. अधीक्षक : श्रीमान् जी! मुझे बधाई देने की इज़ाजत दें। आपके लिये वैभवपूर्ण वर्षों की कामना करता हूँ।
जज : एन्टन एन्टनोविच! क्या आप बतायेंगे कि बात कैसे बनी। घटनाक्रम कैसे घटित हुआ?
ए.एन्टनो. : विलक्षण घटना चक्र!....खुद महामहिम ने शादी का प्रस्ताव किया।
अन्ना आन्द्रे. : और सब से बड़ी बात बड़े मृदु और सुन्दर तरीके से। मैं चाहती हूँ आप भी सुनें। उन्होंने कहा-“अन्ना आन्द्रेयेव्ना! मेरी ज़िन्दगी की कीमत एक कोपेक भी नहीं। मैं सिर्फ़ आपके दुर्लभ गुणों से प्रभावित हो कर यह प्रस्ताव कर रहा हूँ।
मा. एन्टनो. : ओह माँ! तुम्हें पता है, उन्होंने ये शब्द मेरे लिये कहे थे।
अन्ना आन्द्रे. : चुप लड़की! अपना काम देखो! उन्होंने मुझसे कहा-आपको देख कर मैं भावविभोर हूँ'' और मुझ पर प्रशंसाओं की झड़ी लगा दी। और जब मैंने उनसे कहा कि मैं आपसे ऐसे सम्मान की उम्मीद नहीं करती थी तो मेरे आगे घुटनों के बल गिर गये और बड़े ही सांस्कृतिक तरीके से बोले- ‘‘अन्ना आन्द्रेयेव्ना! मुझे बतायें कि क्या आप मेरी भावना का प्रतिदान करेंगी या मैं इसी क्षण अपने जीवन का अंत कर लूं।
मा. एन्टनो. : सच माँ! ये शब्द उन्होंने मेरे लिये कहे थे।
अन्ना आन्द्रे : हो सकता है तुम्हारे लिये भी कहे हों।
मेयर : महामहिम ने मुझे तो सचमुच बहुत डरा दिया। लगातार कह रहे थे। “मैं अपने को गोली मार लूंगा!....मैं अपने को गोली मार लूंगा।”
बहुत से मेह : लेकिन आप ऐसा मत कहें।
शिक्षाधिकारी : सब भाग्य का खेल है।
वार्डन : भाग्य। (स्वगत) ये शख्स बड़ा सुअर है। जो हर कहीं सबसे पहले घुसना चाहता है।
जज : मैं आपको वह पिल्ला बेचने को तैयार हूँ एन्टन एन्टनोविच जिसकी माँग आपने कभी की थी।
मेयर : अब मुझे पिल्लों की जरूरत नहीं।
जज : वह नहीं तो कोई दूसरा?
को.की बीवी : प्यारी अन्ना मैं किनता खुश हूँ तुम इसकी कल्पना भी नहीं कर सकती।
कोरोब्किन : लेकिन इस समय हमारे विशिष्ट मेहमान कहाँ हैं? सुना है महामहिम जा चुके हैं।
मेयर : हाँ! एक बेहद जरूरी काम से, एक दिन के लिये।
अन्ना आन्द्रे. : अपने पिता के पास। उनका आशीर्वाद लेने के लिये।
मेयर : हाँ, अपने पिता के पास, उनका आशीर्वाद लेने के लिये। (छींकता है....“ईश्वर मदद करे” की आवाजें)
मेयर : धन्यवाद लेकिन....(फिर छींकता है, अपशकुन मान कर आवाजें़, शोरगुल)
पु.अधीक्षक : मेरी ओर से श्रीमान जी के लिये बेहतर स्वास्थ की शुभकामनायें।
बाबचिंस्की : आपको सौ साल की उम्र और थैले भर सोने के सिक्के प्राप्त हों।
मेयर : आप सबको धन्यवाद! आप सबके लिये मेरी शुभ कामनायें!
अन्ना आन्द्रे. : अब हम जल्द ही सेन्टपीटर्सबर्ग चले जायेंगे। इस जगह के तौर तरीके ऐसे.... मेरा मतलब, इतने गंवारूं हैं कि मुझे बर्दाशत नहीं। वहाँ मेरे पति जनरल बन जायेंगे।
मेयर : हाँ महानुभावो! मुझे स्वीकार करना चाहिये कि मैं अभी से एक जनरल की तरह महसूस करने लगा हूँ।
वार्डन : ईश्वर से प्रार्थना है कि आपको जनरल बना दे।
रस्टाकोवस्की : ईश्वर के लिये सब कुछ संभव है।
जज : बड़े जहाजों के लिये गहरे पानी की जरूरत होती है।
वार्डन : दुनिया में सच्ची सेवा का सम्मान होता है।
जज : (स्वगत) इसे जनरल बनाने का मतलब होगा बैल की पीठ पर घोड़े की जीन कसना। नहीं प्यारे! अभी तुम्हें लम्बा सफर करना है। तुम्हारे आगे, तुमसे साफ-सुथरे रिकार्ड वाले दर्जनों उम्मीदवार हैं।
वार्डन : (स्वगत) जरा देखो तो! इसने अभी से अपने को जनरल समझ लिया...लेकिन क्या पता बन ही जाय। गजब का जुगाड़ू है। (प्रकट) एन्टन एन्टनोविच वहाँ पहुँच कर हमें भूल मत जाना।
जज : अगर हम पर कोई परेशानी आये तो वहाँ आप हमारी पैरवी करें।
कोरोब्किन : अगले साल मैं अपने बेटे को कोई सरकारी नौकरी में लगाने के लिये पीटर्सबर्ग आऊँगा। क्या आप मेरी खातिर उस के लिये एक पिता की तरह चिन्ता करेंगे? एन्टन एन्टनोविच।
मेयर : मेरे अधिकारों के अंतर्गत जो भी होगा, जरूर करूंगा।
अन्ना आन्द्रे. : तुम हमेशा वादे करने को उतावले रहते हो एन्टन! वहाँ तुम्हें ऐसे कामों के लिये समय ही कहाँ मिलेगा?
मेयर : मेरी प्रिया! क्यों नहीं? मैं कभी - कभी समय निकाल लिया करूंगा।
अन्ना आन्द्रे. : अगर समय मिला भी तो हर ऐरे-गैरे के लिये उतना चल फिर नहीं सकोगे।
को. की बीवी. : (आपस में) देखा, ये किस तरह हमारी तौहीन करती है। ये.... हमेशा से ऐसी है।
एक महि.महे. : किसी सुअर को टेबिल पर बैठाओ तो वह उसे भी गंदा कर देगा।
दृश्य : छह
(हाथ में एक खुला पत्र लिये, हड़बड़ाये पोस्ट मास्टर का प्रवेश)
पोस्टमास्टर : जो मैं कहने जा रहा हूँ उसे सब महानुभाव ध्यान से सुनें। एक विचित्र ख़बर है। वह शख्स जिसे हम आला अफसर समझते रहे, कोई नहीं था।
सब : कोई नहीं था....मतलब?
पोस्टमास्टर : वह कोई आला अफसर नहीं था-जैसा कि इस पत्र से प्रकट है।
मेयर : क्या मतलब?....कैसा पत्र?....
पोस्टमास्टर : ये पत्र। उसी के हाथ का लिखा हुआ। घटना यों हुई। वे इसे पोस्ट अॉफिस में दे गये। इस पर पते में लिखा है-पोस्ट आफिस स्ट्रीट। मैं एक साथ चकराया और घबराया। मैंने समझा उसने मेरे डाक विभाग की किसी खामी की, ऊपर रिपोर्ट की है। इसलिये मैंने इसे खोल लिया।
मेयर : ये बात तुम्हें सूझी कैसे?
पोस्टमास्टर : यह मैं खुद नहीं जानता।....मुझे किसी अदृश्य शक्ति ने प्रेरित किया। मैं डाकिये को बुला कर इसे विशिष्ट-एक्सपे्रस-डिलेवरी से भेजना ही चाहता था....लेकिन मुझे इतना कौतूहल हो रहा था जितना आज तक किसी चीज़ से नहीं हुआ। आखिरकार मैं अपने को रोक नहीं सका। एक कान में कोई आवाज मुझसे कहती थी-इसे मत खोलो, इसकी कीमत तुम्हारी ज़िन्दगी से ज्यादा है। लेकिन दूसरे कान में कोई शैतान बार-बार फुसफुसाता था-“खोल ले.... इसे खोल ले! पत्र के पते पर लगी सील से मेरा हाथ जल रहा था.... लेकिन जब मैंने इसे खोला तो लगा मैं बर्फ हो गया हूँ। ईश्वर की सौगंध मेरे हाथ थरथराने लगे, सिर चक्कर खाने लगा....
मेयर : लेकिन तुमने इतनी महत्त्वपूर्ण शख्सियत की डाक खोलने की जुर्रत कैसे की?
पोस्ट मास्टर : लेकिन असली मुद्दा यही है। वह कतई कोई महत्त्वपूर्ण शख्सियत नहीं।
मेयर : ठीक है। तो वह क्या है? तुम्हारे ख्याल से?
पोस्ट मास्टर : एक फकत नाचीज। एक मामूली -सा आदमी।
मेयर : (गुस्से से) तुम्हें उसको नाचीज कहने की हिम्मत कैसे हुई? मैं तुम्हें गिरफ्तार कर लूंगा।
पोस्ट मास्टर : कौन तुम?
मेयर : हाँ, मैं!
पोस्ट मास्टर : तुम्हें इसका कोई अधिकार नहीं।
मेयर : ज़ाहिर है तुम्हें नहीं मालूम वह मेरी बेटी से शादी कर रहा है। इसके बाद मैं खुद एक आला अफसर बन जाऊँगा और तुम्हें साइबेरिया भेज दूंगा।
पोस्ट मास्टर : एन्टन एन्टनाविच! अगर तुम्हारी जगह मैं होता तो साइबेरिया को भूल गया होता। बेहतर होगा तुम्हारे सामने ये पत्र पढ़ दूं। महानुभाव!और श्रीमतियो....
सब : हाँ, हाँ.... पढ़ो।
पोस्टमास्टर : (पढ़ता है) प्यारे दोस्त! त्रयाप्चिकिन! शिद्दत से लगता है कि तुम्हें इन अविश्वसनीय और विचित्र घटनाओं के बारे में लिख ही दूं, जिनसे इस वक्त गुजर रहा हूँ। रास्ते में फौज के एक केप्टन ने जेबें साफ कर दीं जिससे मजबूर हो कर मुझे एक सराय में रुक जाना पड़ा। एक समय वह भी आया जब सराय-मालिक मुझे जेल भेजने पर आमादा हो गया। तभी एक करिश्मा हुआ। मेरी शक्ल-सूरत और पीटर्सबर्ग की डे्रेस के कारण सारे कस्बे ने मुझे गवर्नर जनरल समझना शुरू कर दिया। आज-कल मैं मेयर के बंगले में, उसकी बीवी और बेटी से इश्क लड़ाता हुआ, कस्बे के माल पर गुलछर्रे उड़ा रहा हूँ समस्या सिर्फ इतनी है कि पहले किससे गुजरूं? संभव है माँ से, क्योंकि वह ज्यादा लचीली है। तुम्हें मेरे वे दुर्दिन याद होंगे जब मैंने अपना बिल इंग्लैण्ड के राजा के खाते में डालना चाहा और होटल मालिक ने कान पकड़ कर निकाल दिया। लेकिन विश्वास करो, यहाँ मामला एकदम उलट है। मुझे जितना भी उधार चाहिये होता है, वे सहर्ष देते हैं। उनकी मूर्खताओं को देखकर तुम हँसी से लोट-पोट हो जाओगे। तुम साहित्यिक कहानियाँ लिखते हो। इस पर भी कोई कहानी लिखो। उदाहरण के लिये मेयर को लेा जो दो लट्ठों के बराबर मोटा....
मेयर : बकवास! तुम बना कर पढ़ रहे हो।
पोस्ट मास्टर : (पत्र दिखाता हुआ) लो तुम खुद पढ़ लो।
मेयर : (पढ़ता है).... जो दो लटठों के बराबर मोटा है.... असंभव। ये तुमने लिखा है।
पोस्ट मास्टर : तुमने कैसे सोच लिया कि मैंने लिखा है?
वार्डन : आगे पढ़ो।
पोस्ट मास्टर : उदाहरण के लिये मेयर जो लट्ठों के बराबर मोटा है....
मेयर : दोबारा क्यों पढ़ते हो?
पोस्ट मास्टर : म....म....म....दो लटठों के बराबर....यहाँ का पोस्ट मास्टर एक अजूबा है....(पढ़ना बंद कर) मेरे लिये भी कुछ बेहूदा बातें लिखी हैं।
मेयर : पढ़ते जाओ।
पोस्ट मास्टर : मैं क्यों पढ़ूं?
मेयर : क्योंकि सबके सामने पढ़ने का प्रस्ताव तुम्हारा था। इसलिये पूरा पत्र पढ़ो।
वार्डन : मुझे दो। मैं पढ़ता हूँ। (चश्मा लगा कर पढ़ा है-“पोस्ट मास्टर हमारे संतरी मिखयेव जैसी गन्दी शकल का है और मेरे ख्याल से मछली की तरह पियक्कड़ है...)
पोस्ट मास्टर : इसे कोड़े लगने चाहिये।
वार्डन : जहाँ तक अनुदान संस्थाओं के वार्डन का सवाल है....(हकलाता है)
कोरोब्किन : रुक क्यों गये?
वार्डन : लिखावट बहुत घसीट है....कुछ भी हो, जाहिर है कि पक्का ठग है।
कोरोब्किन : मैं पढ़ता हूँ। मेरी आंखें तुमसे तेज हैं (पत्र पकड़ लेता है)
वार्डन : (पत्र को कस कर पकड़ता हुआ) नहीं। इतना हिस्सा छोड़ सकते हैं। आगे पढ़ने में आता है।
कोरोब्किन : मुझे दो। मैं पढ़ूंगा।
पोस्ट मास्टर : (वार्डन से) तुम नहीं। (कोरोब्किन से) तुम पढ़ो।
सब : उसे दो अरटेमी फिलिप्पोविच। (कोरोब्किन से) तुम पढ़ो इवान कुजमिच।
वार्डन : ठीक है। (पत्र देता है।) हम यहाँ तक पढ़ चुके हैं (अंगूठे से पत्र का एक अंश छिपाता हुआ) यहाँ से पढ़ो। (सब उन्हें घेर लेते हैं)
पोस्ट मास्टर : अब कोई बेहूदा हरकत नहीं। पूरा पत्र पढ़ो।
कोरोब्किन : सरकारी अनुदान संस्थाओं का वार्डन नकली बालों की टोपी लगाये सुअर जैसा दिखता है....
वार्डन : कोई अक्लमंदी की बात नहीं। नकली बालों की टोपी लगाये सुअर.... किसी ने आज तक सुना?
कोरोब्किन : (पढ़ता है) जिला शिक्षाधिकारी सुबह से शाम तक धतूरे की तरह गंधाता है....
शिक्षाधिकारी : कैसी बेहूदा बात! मैंने जिन्दगी में कभी धतूरे का सेवन नहीं किया।
जज : ईश्वर का शुक्र है। मेरे बारे में कुछ नहीं लिखा।
कोरोब्किन : और जज-
जज : (स्वगत) कयामत! (प्रकट) ईमान से महानुभावो! पत्र बहुत लम्बा है जिसे सुनना....
शिक्षाधिकारी : नहीं है।
वार्डन : नहीं है। पढ़ते जाओ।
मेयर : आगे पढ़ो।
कोरोब्किन : (पढ़ता है) और जज निश्चित रूप से “मोवे-टोने” है। (रुक कर) कोई फ्रेंच शब्द लगता है।
जज : बेहतर था मतलब भी लिख दिया होता। असली मतलब कम खराब हो सकता है।
कोरोब्किन : (पढ़ता है) लेकिन कुल मिला कर बुरे लोग नहीं और बड़े ही मेहमान-नवाज। खुश रहो पुराने खिलाड़ी त्रयाप्चिकिन। मैं तुम्हारी मिसाल पर चल कर साहित्यकार बनना चाहता हूँ। इस तरह की लम्पट ज़िन्दगी तो सचमुच बहुत उबाऊ है। आखिर आत्मा को भी अपनी खुराक चाहिये। मनुष्य को अपने सामने हमेशा बड़े आदर्श रखने चाहिये। मुझे ग्राम फोटकाट्लोव्का, जिला सरटोव के पते पर पत्र देना। (पत्र को पलट कर, पता पढ़ता है) प्रति, श्रीयुत इवान बेसिलीएविच त्रयाप्चिकिन, पोस्ट आफिस स्ट्रीट नम्बर-97, तीसरी मंजिल, दायीं ओर से प्रथम। सेन्ट पीटर्सबर्ग।
एम महि.मेह. : ये पत्र है या भूचाल?
मेयर : मैं हर तरफ से मारा गया। मेरा सब कुछ लुट गया।.... मुझे कुछ नहीं सूझता....सूझते हैं तो लोगों के सुअरों जैसे चेहरे (हाथ हिला कर) उसे पकड़ लाओ....फौरन से पेश्तर पकड़ लाओ....
पोस्टमास्टर : इसकी कोई संभावना नहीं! मैंने मुकद्दम को उसे सबसे तेज घोड़े देने को कहा था।.... इतना ही नहीं, मैंने उसे प्राथमिकता-अनुज्ञा-पत्र भी दे दिया।
को की बीवी : हे ईश्वर! अब क्या करें?
जज : और महानुभावों मैंने उसे 300 रूबल उधार दे दिये।
वार्डन : मैंने भी।
पोस्ट मास्टर : मैंने भी।
बाबचिंस्की : मैंने भी। मैंने और प्योत्र इवानोविच ने मिलकर उसे 65 रूबल दिये।
जज : (माथा ठोकता हुआ) मैं इतना कमबख्त कैसे हो गया। मेरा दिमाग कमजोर हो चला है। मैं तीस साल से, कानून की नौकरी में हूँ। आज तक कोई ठेकेदार या व्यापारी मुझे मूर्ख नहीं बना सका। मैंने एक से एक शातिरों के कान काटे, और ऐसे ऐसे लोमड़ों और शार्कों को फांसा जो सारी मनुष्य कौम को ठग सकते थे। मैंने तीन गवर्नरों को झांसा दिया। अन्ना आन्दे्र. : लेकिन यह असंभव है एन्टन! उसकी हमारी माशा से सगाई हो चुकी है।
मेयर : (बिफर कर) सगाई हो चुकी है। बेकार की बात। (गहरी सांस लेकर) ठीक है। सब लोग मुझे देखो। अपने मेयर को। देखो कि वह किस कदर उल्लू बना। बेवकूफ कटसिर्री और उजबक।....(हवा में मुटि्ठयाँ तानता है) अब सोचो वह रास्ते भर इसकी धूम मचायेगा। इस किस्से को दुनिया के चारोे छोरों तक फैला देगा। सारा देश हमारा मजाक बनायेगा, और कोई भी झूठ बोलने वाला लफंगा लेखक हमें किसी मजाकिया नाटक में चिपका देगा। मैं देख रहा हूँ ये उचक्के किसी को नहीं बख्शेंगे। हमारे ओहदों, शोहरत या किसी चीज़ का लिहाज, अपने ओछे स्वभाव और दुकानों पर होने वाली चर्चाओं की खातिर नहीं करेंगे।....आप लोग किस बात पर हँस रहे हैं? आप अपने आप पर हँस रहे हैं। बिलकुल!.... आप....उफ! (जमीन पर पैर ठोकता है) मैं इन सारे कलम-नवीसों, कलम-घसीटों, गंदे स्वतंत्रता- वादियों और घास में छिपे सांपों की खबर लूंगा। धूल में मिला दूंगा और चारों तरफ हवा में बिखरे दूंगा। (जूते को जोर से फर्श पर ठोकता हुआ, हवा में मुट्ठियां भांजता है, कुछ रुक कर) मैं अभी भी तरतीबवार कुछ नहीं सोच सकता। जब ईश्वर किसी को दंड देता है तो उसकी बुद्धि हर लेता है। क्या उस नाली के कीड़े में एक भी खूबी थी जो आला अफसर से मेल खाती हो एक भी नहीं और यकायक वह आला अफसर हो जाता है। अब, ये बताओ, ये सब से पहले किसके दिमाग़ में आया कि ये आला अफसर है?
वार्डन : मेरी जान भी जाय तो नहीं बता सकता कि यह कैसे हुआ।
जज : मैं बताता हूँ कि शुरुआत किसने की। (बाबचिंस्की और डाबचिंस्की की ओर संकेत करते हुए) इन दो लालबुझक्कड़ों ने।
बाबचिंस्की : मैंने नहीं! मैंने सपने में भी नहीं सोचा कि ये वो हैं।
डाबचिंस्की : मैंने एक शब्द नहीं कहा।
वार्डन : यही दोनों थे। बिलकुल।
मेयर : तुम्ही दोनों ने कस्बे में अफवाहें फैलाइर्ं।
वार्डन : तुम दोनों और तुम्हारा आला अफसर नरक में जायें।
मेयर : तुम्हीं दोनों सारे कस्बे को डराते हुए दौड़ रहे थे।
जज : बातूनी बन्दर।
शिक्षाधिकारी : जड़-बुद्धि!
वार्डन : पेटू बौने!
(सब दोनों को घेर लेते हैं)
बाबचिंस्की : ईश्वर कसम! मैं नहीं ये प्योत्र इवानोविच था।
डाबचिंस्की : ओह नहीं प्योत्र इवानोविच! पहले तुम्हीं ने कहा था- “अहा!”
अंतिम दृश्य
(चोबदार का प्रवेश)
चोबदार : सम्राट जार की आज्ञा से निरीक्षक आला अफसर सराय में पधारे हुए हैं। उनका आदेश है कि आप सब फौरन से पेश्तर सराय में हाजिर हों। (इन शब्दों के साथ ही सब बज्राघात की तरह स्तब्ध और निष्चेष्ट हो जाते हैं। महिलाओं के मुंह से आश्चर्य की चीखें निकलती हैं। सबके सब बुतों की तरह बेजुम्बिश खड़े रहते हैं।)
गूंगा दृश्य
(सबके बीच मेयर एक खम्भे की तरह खड़ा हुआ है, हाथ फैले, गर्दन पीछे की ओर झुकी हुई। उसके दाहिने उसकी पत्नी और बेटी। इसके बाद सवालिया निशान की मुद्रा में दर्शकों से मुखातिब, मुंह बाये, पोस्ट मास्टर। फिर किंंकर्त्तव्यविमूढ़ मुद्रा में जड़ित शिक्षाधिकारी। अंत में तीन महिलायें खड़ी हैं, एक-दूसरे पर झुकी और मेयर परिवार की ओर व्यंग्य से देखती हुइर्ं। मेयर की बायीं ओर सिर लटकाये वार्डन खड़ा है- कुछ इस तरह जैसे कुछ सुनने की कोशिश कर रहा हो। उसके बाद फर्श पर उकड़ूं बैठा जज एकटक महिलाओं की ओर ताकता हुआ। होंठों से सीटी बजाने की मुद्रा में कहता हुआ सा-“वाह! एक खूबसूरत मछलियों का झुन्ड। उसके बाद कोरोब्किन खड़ा है-चेहरा दर्शकों की ओर लेकिन अधमुँदी आँखों से मेयर की ओर घृणा से देखता हुआ। मंच के किनारे बाबचिंस्की और डाबचिंस्की खड़े हैं-एक दूसरे की ओर मुटि्ठयाँ ताने, मुंह बाये और गुस्से से एक-दूसरे को घूरते हुए। यह दृश्य लगभग डेढ़ मिनिट चलता है)
(अंग्रेजी से अनुवाद : वल्लभ सिद्धार्थ)