बागीचे में बकरियाँ : नॉर्वे की लोक-कथा
The Goats in the Garden : Norway Folktale/Folklore
एक बार नौर्वे में एक परिवार रहता था। उनके एक बेटा था जिसका नाम था जौनी । परिवार की बकरियों की देखभाल करना जौनी का खास काम था। उनके पास तीन बकरियाँ थीं।
वह रोज सुबह उन बकरियों को दुह कर उनका दूध निकालता था और फिर उनको पहाड़ों की तरफ हाँक कर ले जाता था जहाँ वे सारा दिन घास चरती रहतीं। शाम को वह उनको वापस घर ले आता और फिर उनका दूध निकालता था।
वैसे तो वे बकरियाँ ठीक से ही रहती थीं पर एक दिन एक दादी के बागीचे का दरवाजा खुला था सो उसकी तीनों बकरियाँ उस दादी के बागीचे में घुस गयीं और उन्होंने दादी के शलगमों के सारे पत्ते खाने शुरू कर दिये।
“ओह यह नहीं हो सकता। ” कहते हुए जौनी ने एक डंडी उठायी और उससे उनको दादी के बागीचे से बाहर निकालना शुरू कर दिया। पर बकरियाँ तो वहाँ से बाहर निकलने का नाम ही नहीं ले रही थीं वे तो बस चारों तरफ घूम घूम कर उसके बागीचे में लगी शलगमों की पत्तियाँ ही खाये जा रही थीं।
जब जौनी कुछ नहीं कर सका तो वह रुक गया और थक हार कर बैठ गया। बकरियाँ वे पत्ते खाती रहीं और जौनी ने वहाँ बैठे बैठे रोना शुरू कर दिया।
तभी सड़क पर एक लोमड़ी आयी। उसने जौनी से पूछा — “तुम क्यों रो रहे हो जौनी भाई?”
जौनी बोला — “मैं इसलिये रो रहा हूँ क्योंकि मेरी ये बकरियाँ दादी के बागीचे में घुस कर उनके पत्ते खा रही हैं और मैं उनको उसके बागीचे से बाहर नहीं निकाल पा रहा हूँ। ”
लोमड़ी बोली — “अच्छा, तुम यहीं बैठो, मैं उनको बागीचे में से बाहर निकालने की कोशिश करती हूँ। ” यह कह कर वह लोमड़ी बागीचे के अन्दर घुस गयी औ उन बकरियों को बाहर की ओर निकालने की कोशिश करने लगी।
पर वे बकरियाँ तो बागीचे के बाहर निकल ही नहीं रही थीं। वे चारों तरफ भागती रहीं पर बाहर नहीं निकलीं। आखिर लोमड़ी भी थक कर बैठ गयी। जब लोमड़ी बैठ गयी तो बकरियों ने दादी के पौधे फिर से खाने शुरू कर दिये।
इधर लोमड़ी भी जौनी के पास बैठ गयी और रोने लगी। तभी सड़क पर एक कुत्ता आया। उसने उन दोनों से पूछा — “तुम लोग क्यों रो रहे हो जौनी भाई और लोमड़ी बहिन?”
लोमड़ी बोली — “मैं इसलिये रो रही हूँ क्योंकि जौनी रो रहा है, और जौनी इसलिये रो रहा है क्योंकि उसकी बकरियाँ दादी के बागीचे में घुस गयीं हैं और हम उनको बाहर नहीं निकाल पा रहे हैं। ”
कुत्ता बोला — “अच्छा, तो तुम लोग यहीं बैठो, मैं उनको बागीचे में से निकालने की कोशिश करता हूँ। ”
यह कह कर वह कुत्ता बागीचे के अन्दर घुस गया और उन बकरियों को बाहर की ओर निकालने की कोशिश करने लगा।
पर वे बकरियाँ तो बागीचे के बाहर निकल ही नहीं रही थीं। वे फिर चारों तरफ भागती रहीं और दादी के बागीचे में लगी शलगमों की पत्तियाँ खाती रहीं।
कुत्ता भी आखिर थक कर बैठ गया। जब कुत्ता बैठ गया तो बकरियों ने दादी के पौधे फिर से खाने शुरू कर दिये।
सो कुत्ता भी लोमड़ी और जौनी के पास बैठ गया और उसने भी रोना शुरू कर दिया। तभी सड़क पर एक खरगोश आता दिखायी दिया। उसने जब तीनों को रोता देखा तो उनसे पूछा — “तुम सब क्यों रो रहे हो जौनी भाई, लोमड़ी बहिन और कुत्ते भाई?”
कुत्ता बोला — “मैं इसलिये रो रहा हूँ क्योंकि लोमड़ी रो रही है, और लोमड़ी इसलिये रो रही है क्योंकि जौनी रो रहा है और जौनी इसलिये रो रहा है क्योंकि उसकी बकरियाँ दादी के बागीचे में घुस गयीं हैं और हम उनको बाहर नहीं निकाल पा रहे हैं। ”
खरगोश बोला — “अच्छा, तो तुम लोग यहीं बैठो, मैं उनको बागीचे में से बाहर निकालने की कोशिश करता हूँ। ”
यह कह कर वह खरगोश बागीचे के अन्दर घुस गया और उन बकरियों को बाहर की ओर निकालने की कोशिश करने लगा।
पर बकरियाँ थीं कि बागीचे के बाहर निकलने का नाम ही नहीं ले रहीं थीं। वे चारों तरफ भागती रहीं पर बागीचे के बाहर नहीं निकलीं।
आखिर खरगोश भी थक कर बैठ गया। जब खरगोश बाहर आ कर बैठ गया तो बकरियों ने दादी के पौधे फिर से खाने शुरू कर दिये।
खरगोश भी कुत्ता, लोमड़ी और जौनी के पास आ कर बैठ गया और उसने भी रोना शुरू कर दिया। तभी एक मधुमक्खी उधर से गुजरी तो उसने जब इन चारों को रोते देखा तो पूछा — “तुम सब क्यों रो रहे हो?”
खरगोश बोला — “मैं इसलिये रो रहा हूँ क्योंकि कुत्ता रो रहा है। कुत्ता इसलिये रो रहा है क्योंकि लोमड़ी रो रही है, और लोमड़ी इसलिये रो रही है क्योंकि जौनी रो रहा है और जौनी इसलिये रो रहा है क्योंकि उसकी बकरियाँ दादी के बागीचे में घुस गयीं हैं और हम सब उनको बाहर नहीं निकाल पा रहे हैं। ”
मधुमक्खी हँसी और बोली — “अच्छा, तुम सब यहीं बैठो, मैं उनको बागीचे में से बाहर निकालने की कोशिश करती हूँ। ”
यह सुन कर खरगोश बोला — “तुम? इतनी छोटी सी इन बकरियों को बाहर निकालोगी? जब हम सब यानी मैं, कुत्ता, लोमड़ी और जौनी मिल कर भी इनको बाहर नहीं निकाल सके तो तुम इतनी छोटी सी इनको बाहर कैसे निकालोगी?”
मधुमक्खी बोली — “तुम बस देखते जाओ। ” यह कह कर वह मक्खी उस बागीचे में उड़ी और उन बकरियों में से सबसे बड़ी बकरी के कान में जा कर घुस गयी।
उस बकरी ने अपना सिर ज़ोर ज़ोर से हिलाया ताकि वह उस मक्खी को अपने कान के बाहर निकाल सके तब तक वह मक्खी उस बकरी के दूसरे कान में जा कर घुस गयी। आखिर वह बकरी तंग हो कर बागीचे के दरवाजे से बाहर की तरफ भागने लगी।
वह मक्खी फिर दूसरी बकरी के एक कान में घुस गयी और फिर उसके दूसरे कान में घुस गयी और उसको वह जब तक तंग करती रही जब तक कि वह भी बागीचे के दरवाजे के बाहर की ओर नहीं भाग गयी।
यही उसने तीसरी बकरी के साथ भी किया और इस तरह उस ने तीनों बकरियों को दादी के बागीचे से बाहर निकाल दिया।
जौनी बोला — “बहुत बहुत धन्यवाद तुम्हारा ओ छोटी मक्खी। ” और वह पहाड़ों की तरफ अपनी बकरियों की देखभाल करने के लिये दौड़ गया जैसे वह रोज करता था।
इस कथा से हमें यह सीख मिलती है कि कोई काम करने के लिये किसी आदमी या जानवर का साइज़ मायने नहीं रखता उसकी अक्ल मायने रखती है। अक्लमन्द की हमेशा जीत होती है।
(सुषमा गुप्ता)