स्वर्ग का उपवन (डैनिश कहानी) : हैंस क्रिश्चियन एंडर्सन

The Garden of Paradise (Danish Story in Hindi) : Hans Christian Andersen

एक समय की बात है, एक राजकुमार था। वह पढ़ने का बड़ा शौकीन था । उसके पास कई तरह की किताबें थीं, अच्छी-अच्छी सुन्दर किताबें, जिनमें तरह-तरह की जानने योग्य बातें लिखी थीं। इन किताबों को वह खूब चाव से पढ़ता और देश-दुनिया के बारे में अपना ज्ञान बढ़ाता था । वह बहुत दिनों से जानना चाहता था कि स्वर्ग का उपवन कहां है और वहां तक कैसे पहुंचा जा सकता है ! लेकिन उसकी किताब में इसके बारे में कुछ भी नहीं लिखा था ।

जब वह बहुत छोटा था और पहले-पहल पढ़ने के लिए स्कूल भेजा गया था, तब उसकी दादी ने उसे स्वर्ग के उपवन की कहानी सुनाई थी। दादी ने बताया था कि स्वर्ग के उपवन में तरह-तरह के फूल लगे हैं, एक से एक बढ़कर सुन्दर और खुशबूदार । खाने में इतने मीठे हैं कि कुछ न पूछो। उनकी पंखुरियां जैसे शर्बत में डुबोई गई हैं । उनमें से एक फूल पर इतिहास लिखा है, दूसरे पर भूगोल । कोई गणित का फूल है तो कोई व्याकरण का । जो कोई इन फूलों को खा लेता है, उसे तुरंत अपना पाठ याद हो जाता है । जितने ही फूल खाओ उतनी ही बुद्धि बढ़ती जाए। ऐसे अजीब से फूल खिलते हैं स्वर्ग के उपवन में !

तब राजकुमार बहुत छोटा था और उसने इस कहानी पर विश्वास कर लिया था। लेकिन जैसे-जैसे वह बड़ा हुआ और उसकी बुद्धि बढ़ने लगी, वैसे-वैसे उसने सोचना शुरू किया कि इस कहानी का कोई दूसरा मतलब है । इस तरह की कहानियों का हमेशा कोई न कोई गहरा अर्थ होता है, जैसे आदम और हौआ की कहानी । उसमें कहा गया है। न, कि आदम ने वह फल खा लिया था जो नहीं खाना चाहिए था, क्योंकि वह पाप का फल था ।

'अगर उस समय मैं वहां होता तो आदम को पाप का फल नहीं खाने देता । और फिर दुनिया में पाप पैदा ही नहीं होता ।' राजकुमार अक्सर इस तरह सोचता था । इसलिए उसे लगा कि स्वर्ग के उपवन की कहानी का भी कोई अर्थ है। कहीं सचमुच में स्वर्ग का उपवन हो और वहां ऐसे ही फूल खिलते हों जैसे कि दादी बताया करती थी ! इतिहास और भूगोल के फूल, गणित और व्याकरण के फूल, जिन्हें खा लो और पंडित हो जाओ ! इसलिए बड़ा होकर भी अक्सर वह स्वर्ग के उपवन के बारे में सोचता रहता था ।

एक दिन राजकुमार जंगल में घूमने गया। वह अक्सर इस तरह घूमने निकल जाया करता था। कुछ देर तक वह घूमता रहा । फिर शाम हो आई और बादल घिरने लगे। थोड़ी देर में पानी बरसने लगा। देखते-देखते पानी का जोर बढ़ गया। पानी इस तरह जमकर बरसा कि जैसे आसमान फट गया हो । अंधेरा इतना घना हो गया कि हाथ को हाथ नहीं दिखता था । राजकुमार मुसीबत में फंस गया । अंधेरे में कभी उसका पैर फिसलता था और कभी ठोकर लगती थी। सिर छिपाने की कहीं जगह नहीं थी। चारों तरफ पानी ही पानी । पेड़ों के नीचे भी पानी से बचना मुश्किल था। पानी इस तरह मूसलाधार बरस रहा था कि राजकुंमार बुरी तरह भीग गया । वह इतना थक गया कि उससे चला भी नहीं जाता था ।

किसी तरह गिरते-पड़ते राजकुमार आगे बढ़ रहा था । अचानक उसे कुछ आहट - सी मिली। कुछ आगे जाने पर उसने देखा कि एक गुफा में रोशनी हो रही थी। और आगे चलकर उसने देखा कि गुफा के बीच में आग जल रही थी। आग पर एक हिरन भूना जा रहा था। आग के पास ही एक अधेड़ स्त्री बैठी थी । देखने में वह काफी लंबी-चौड़ी और ताकतवर मालूम होती थी। वह आग में धीरे-धीरे लकड़ियां डालती जाती थी। राजकुमार को देखकर वह बोली, "आओ, अन्दर आ जाओ ! आग के पास थोड़ी देर बैठकर अपने कपड़े सुखा लो।”

" बाहर बहुत पानी बरस रहा है और आंधी भी चल रही है ।" राजकुमार ने आग के पास ही जमीन पर बैठते हुए कहा ।

उस स्त्री ने कहा, “अभी क्या है, मेरे बेटे घर लौटेंगे, तब मौसम और ज्यादा खराब हो जाएगा। यह तूफानों की गुफा है। मेरे चार बेटे हैं। चारों चार दिशाओं में रहते हैं । समझे तुम ?"

“तुम्हारे लड़के कहां गए हैं ?” राजकुमार ने पूछा ।

"भला यह भी कोई सवाल हुआ ! मेरे लड़कों को बहुत काम करना पड़ता है। इस समय वे राजा इन्द्र के मैदान में बादलों के साथ गेंद खेल रहे हैं।” यह कहकर उस स्त्री ने आसमान की ओर संकेत किया ।

" अच्छा ! लेकिन तुम्हारी बोली बड़ी रूखी है। ऐसी स्त्रियों के बीच उठने-बैठने का मुझे कोई मौका नहीं मिला ।”

"हां, मेरा कुछ रूखा होना जरूरी है क्योंकि मुझे अपने तूफानी लड़कों को काबू में रखना पड़ता है। ये दीवार पर टंगे हुए चार बोरे देख रहे हो ? वे इन बोरों से बहुत डरते हैं। जब वे घर लौटते हैं तो मैं उन्हें इन बोरों में बंद कर देती हूं और फिर जब तक मैं नहीं चाहती तब तक वे इनमें से निकल नहीं सकते । लो एक तूफान तो लौट आया !”

यह उत्तरी तूफान था, ओले और बरफ से भरा हुआ । उसमें बहुत ही ठंड थी । उसने सील मछली के चमड़े के कपड़े पहन रखे थे और बड़ा-सा टोप भी पहन रखा था । जब वह अपने कपड़े झाड़ता था तो उसमें से बड़े-बड़े ओले टपक पड़ते थे । उसे आग के पास जाते देखकर राजकुमार बोला, "आग के बहुत पास न जाना। बाहर से आए हो, एकदम गर्मी लगेगी तो जुकाम हो जाएगा।"

उत्तरी तूफान खिलखिलाकर हंस पड़ा, बोला, “ जुकाम और मुझे, लेकिन तुम कौन हो ? मां, यह दुबला-पतला पिद्दी सा लड़का कौन है ? क्यों जी, तुम तूफानों की गुफा में कैसे चले आए ?”

वह स्त्री बोली, "यह मेरा मेहमान है। इसे तंग न करना वरना अभी तुम्हें बोरे में बन्द कर दूंगी। कायदे से बैठो । बताओ, आज तुमने क्या-क्या देखा और कहां-कहां घूमे ? "

उत्तरी तूफान करीब एक महीने के बाद घर लौटा था । वह अपने किस्से सुनाने लगा, “मां, मैं उत्तरी ध्रुव से आ रहा | मैं रूसी मल्लाहों के जहाज पर बैठकर भालुओं के द्वीप गया था। उनके जहाज पर मैं अक्सर सोता रहता था । जब भी मेरी आंख खुली तो मैंने तूफानी चिड़ियों को अपने आसपास उड़ते पाया। बर्फीली आंधियों में उड़नेवाली वे चिड़ियां बड़ी अजीब होती हैं । और वह भालुओं का द्वीप भी बड़ा अजीब था । चारों तरफ बर्फ ही बर्फ । कहीं बर्फ के पहाड़ हैं तो कहीं पिघली हुई बर्फ की नदियां । जगह-जगह व्हेल मछलियों और उत्तर में पाए जानेवाले बड़े-बड़े भालुओं की ठठरियां पड़ी थीं। वहां सूरज तो कभी उगता ही नहीं, सिर्फ थोड़ा-सा उजाला फैल जाता । मैंने धीरे-धीरे बहकर बादलों को साफ कर दिया । एक जगह मैंने एक छोटी-सी झोंपड़ी देखी, जो मछली की खाल की बनी थी। जगह-जगह समुद्री चिड़ियों के घोंसले थे, जिनमें उनके नन्हे-मुन्ने बच्चे भूख से चहचहा रहे थे । वालरस नाम की, शेर की शक्ल की, मछलियां इधर-उधर लुढ़क रही थीं और उनके लम्बे-लम्बे दांत चमक रहे थे ।

“मल्लाहों ने अपना काम शुरू किया। उन्होंने रस्सी में बंधे लम्बे-लम्बे भालों से मछली मारने की तैयारी की । एक बड़ा-सा कांटा समुद्री घोड़े की छाती में लगा और खून बर्फ पर फैल गया। मुझे यह बड़ा बुरा लगा और मैंने समुद्र में तैरनेवाले बड़े-बड़े हिमखंडों को उनके जहाज से टकराना शुरू किया। मल्लाह चीखने-चिल्लाने लगे। लेकिन मैं और भी जोर से चीखकर बहने लगा । उन्हें मजबूर होकर अपना काम बन्द करना पड़ा। आना सारा सामान वहीं फेंककर उन्हें समुद्र की ओर भागना पड़ा। अब कभी वे भालुओं के द्वीप पर नहीं जाएंगे ।”

तूफान की मां बोली, "अच्छा, अच्छा, अपनी शरारतों की कहानी रहने दो । लो, पश्चिमी तूफान भी आ गया है।"

और सचमुच, एक भारी भरकम आदमी के रूप में पश्चिमी तूफान ने गुफा में प्रवेश किया। वह अमेरिका के घने जंगलों से आ रहा था और उसके हाथों में एक बड़ी भारी गदा थी। कुछ देर की बातचीत के बाद वह भी आने किस्से सुनाने लगा, "मां, इस बीच मैं बड़े घने जंगलों और दलदलों के बीच बहता रहा। वहां आदमी तो नाम लेने को नहीं थे। मैंने गहरी गहरी नदियां देखीं। ऊंचे-ऊंचे झरने देखे । एक बड़ा-सा भैंसा एक जगह नदी में तैर रहा था । लेकिन देखते-देखते वह बीच धार में बह गया । यह देखकर मुझे इतनी खुशी हुई कि मैंने बहुत से पेड उखाड़ डाले इसके बाद मैं नारियल के पेड़ों के बीच बहता रहा । लम्बे-लम्बे मैदानों में मैंने जंगली घोड़ों से छेड़छाड़ की । फिर बड़े मजे में इधर-उधर घूमता रहा । "

तब तक दक्षिणी तूफान भी लौट आया। उसने पगड़ी बांध रखी थी। आते ही उसने उत्तरी तूफान से झगड़ा शुरू कर दिया, “जब यह आता है तो मुझे जाड़ा लगने लगता है।" उन्हें लड़ते देखकर उनकी मां ने बीच-बचाव किया और दोनों को बोरे में बन्द कर देने की धमकी दी। तब कहीं जाकर वे दोनों शान्त हुए ।

फिर दक्षिणी तूफान अपने किस्से सुनाने लगा, “मां, मैं अफ्रीका से आ रहा हूं, वहां मैंने शेर का शिकार देखा । वहां की घास बहुत अच्छी होती है। वहां शुतुरमुर्ग अक्सर मुझसे दौड़ने में होड़ लिया करते थे। लेकिन भला वे मेरे मुकाबले में ठहर सकते हैं ! मैं रेगिस्तानों में बहता रहा । एक बार मैंने ऐसा कारवां देखा जो रेगिस्तान में रास्ता भूलं गया था। लोग पानी के बिना तड़प रहे थे । उन्होंने एक- एक करके अपने सारे ऊंटों को इसलिए मार डाला था कि उनके पेट से दो चुल्लू पानी मिल जाए। मुझे भी खिलवाड़ करने की सूझी। मैंने बालू का अंधड़ उठा दिया । उस समय उन लोगों के चेहरे देखने के काबिल थे। मुझे बड़ा मजा आया। मैंने उन पर इतनी बालू बरसाई कि वे सब उसी में दब गए। और उनके ऊपर बालू का एक पिरामिड खंड़ा हो गया। अब अगर मैं वहां की सारी बालू उड़ा दूं तो उन लोगों की ठठरियां दिखाई देंगी ।"

“तुमने यह बड़ा बुरा काम किया। तुम ऐसे ही बुरे काम करते रहते हो । चलो, इधर आओ !" तूफानों की मां नाराज होकर बोली । उसने दक्षिणी तूफान को एक बोरे में ठूंस दिया । वह इधर-उधर लुढ़कने लगा, तो वह उसी पर चढ़कर बैठ गई ।

राजकुमार बोला, “तुम्हारे ये लड़के बड़े ऊधमी है !"

"हां, लेकिन मैं जानती हूं कि इनकी अक्ल किस तरह दुरुस्त की जा सकती है। लो, वह चौथा लड़का भी आ गया।"

इतने में पूर्वी तूफान आ पहुंचा। उसने चीनियों जैसे कपड़े पहन रखे थे । उसे देखकर मां बोली, "ओह, तो तुम चीन देश गए थे। मैंने तो सोचा था, तुम स्वर्ग के उपवन में गए हो ।”

"हां मां, वहां मैं कल जाऊंगा। करीब सौ साल से वहां जा नहीं पाया हूं। अभी तो मैं चीन से आ रहा हूं । वहां मैंने ऊंची-ऊंची लकड़ी और बांस की मीनारों की घटियां बजाई। वहां सड़कों पर लोग धर्म के नाम पर और पुण्य कमाने के उद्देश्य से मार खा रहे थे। उनके धार्मिक गुरु पीट-पीटकर उनकी पीठों पर बांस की खपच्चियां तोड़ रहे थे। यह देखकर मुझे बड़ी खुशी हुई और मैंने एक विशाल घण्टे को घनघनाकर बजाया । "

मां बोली, “तुम भी बहुत शरारती हो गए हो । अब कल तुम जरूर स्वर्ग के उपवन में जाना। देखो, वहां बुद्धि झरने से खूब पेट भरकर पानी पीना न भूलना। मेरे लिए भी उस झरने का थोड़ा-सा पानी ले आना ।”

पूर्वी तूफान बोला, “ठीक है मां ! लेकिन यह तो बताओ कि तुमने दक्षिणी भैया को बोरे में क्यों बन्द कर रखा है ! जरा मैं उससे फिनिक्स नाम की चिड़िया के बारे में पूछना चाहता हूं, क्योंकि जब भी मैं सौ साल बाद राजकुमारी से मिलता हूं तो वह मुझसे चिड़िया के बारे में पूछती है। मां, बोरा खोल दो, मैं तुम्हें दो प्याला चाय दूंगा - बिल्कुल ताजी, चीन की चाय !”

चाय का नाम सुनकर बुढ़िया खुश हो गई। उसने बोरा खोल दिया । दक्षिणी तूफान शर्म से गर्दन नीची किए बोरे में से निकल आया । वह बोला, “लो यह ताड़ की पत्ती लो। यह उस चिड़िया ने मुझे राजकुमारी के लिए दी थी । इस पर उसने पूरे सौ साल का इतिहास लिखा है । उसमें लिखा है कि किस तरह उसने खुद अपने घोंसले में आग लगाई और एक हिन्दू सती की तरह वह उसी में जल मरी । लेकिन उसका अण्डा नहीं जला। अण्डा फूटा और उसमें से फिनिक्स का बच्चा निकलकर उड़ गया। बस दुनिया में उस जाति की चिड़िया का यही एक नमूना बचा है। उसने इस पत्ती में एक छेद कर दिया है और इस तरह राजकुमारी को अपना संदेश भेजा है।"

अब पूर्वी तूफान राजकुमार के पास आ बैठा । तूफानों की मां ने सबके लिए खाना परोस दिया। राजकुमार ने पूर्वी तूफान से पूछा, "वह कौन-सी राजकुमारी है, जिसके बारे में तुम लोग बातें कर रहे हो ? और यह स्वर्ग का उपवन कहां है?”

पूर्वी तूफान खिलखिलाकर हंस पड़ा, "क्यों ? क्या तुम वहां जाना चाहते हो ? अच्छी बात है, कल तुम मेरे साथ वहां चले चलना । लेकिन मैं पहले बता दूं कि आज तक वहां कोई मनुष्य नहीं गया है। तुमने शायद बाइबिल में इसके बारे में पढ़ा है, जिसमें लिखा है कि सिर्फ आदम और हौआ ही वहां गए थे और जब उन्हें वहां से निकाल दिया गया तो वह उपवन पाताललोक में चला गया। लेकिन अब भी वह उतना ही सुन्दर है। वहां परियों की रानी रहती है। अच्छा, अब मुझे नींद आ रही हैं। रात भी काफी हो गई है। अब सो जाएं। कल सवेरे मैं तुम्हें वहां ले चलूंगा ।"

सब लोग सो गए । सवेरे जब राजकुमार की आंख खुली तो उसने देखा कि वह बादलों के ऊपर उड़ा चला जा रहा था । पूर्वी तूफान उसे अपनी पीठ पर उठाए हुए उड़ा जा रहा था। वहां से धरती की सब चीजें बहुत छोटी दिखाई दे रही थीं। शाम होते-होते सभी चीजें अंधेरे में डूबने लगीं। नीचे जो शहर पड़ते थे उनके दीये तारों की तरह टिमटिमा रहे थे ।

पूर्वी तूफान ने राजकुमार से कहा, "लो, अब हम लोग हिमालय पर्वत के ऊपर से उड़ रहे हैं। यह संसार का सबसे ऊंचा पहाड़ है। अब थोड़ी ही देर में हम स्वर्ग के उपवन में पहुंच जाएंगे ।"

और सचमुच कुछ दूर आगे जाने पर हवा में तरह-तरह के फूलों की खुशबू आने लगी। कभी-कभी पके हुए सेब, नाशपाती, अंगूर और अंजीरों की खुशबू भी आती थी ।

इसके बाद वे लोग गुफा से होकर गुजरे। यहां बहुत ठण्डक थी। कभी-कभी गुफा इतनी संकरी हो जाती थी कि उन्हें अपने घुटनों के बल रेंगकर उसे पार करना पड़ा था । राजकुमार ने कहा, “स्वर्ग के उपवन में जाने से पहले शायद हम मौत की घाटी से होकर गुजर रहे हैं।"

पूर्वी तूफान ने हामी भरी और सामने की ओर इशारा किया, जहां से गुफा में से नीला प्रकाश आ रहा था। आगे बढ़ते-बढ़ते चट्टानें कुहरे की शक्ल में बदलने लगीं । हवा बहुत ही ताजी थी और ताजे गुलाब की खुशबू से भरी हुई थी। अब वे गुफा के बाहर हो गए थे। उन्हें एक नदी मिली, जिसमें बहुत ही साफ पानी बह रहा था । उसमें तरह-तरह की सुनहरी और सफेद मछलियां तैर रही थीं । नदी पर संगमरमर का एक बहुत ही सुन्दर पुल बना हुआ था। पुल क्या था, जैसे सीदा काढ़ा गया हो। इस पुल के पार सौभाग्य का द्वीप पड़ता था । वही स्वर्ग का उपवन था ।

पूर्वी तूफान राजकुमार को पुल के पार ले गया। वहां उपवन के फूल और पेड़-पौधे उन मीठी लोरियों की तरह सुन्दर गीत गा रहे थे, जिन्हें राजकुमार ने बचपन में सुना था। वहां पेड़-पौधे अजीब से थे। देखने में इतने धुंधले जैसे कोहरे या पानी के नीचे छिपे हों । उन्हें ठीक से पहचान पाना मुश्किल था । अजीब-सा उपवन था यह । यहां के फूल-पौधे, पेड़-पत्ती, यहां तक कि चिड़ियों में भी फर्क करना मुश्किल था। घास के कालीनों पर मोरों के झुण्ड अपनी बहुरंगी पूंछें फैलाए नाच रहे थे। जब राजकुमार ने उन्हें छूकर देखा तो उसे बड़ा आश्चर्य हुआ कि ये मोर नहीं थे, पौधे थे। बड़े-बड़े शेर और चीते, जो शायद पालतू थे, बिल्लियों की तरह इधर-उधर खेल रहे थे । इन्हीं के बीच हिरन भी निडर होकर घूम रहे थे । और फिर अन्त में परियों की राजकुमारी मिली। उसके कपड़े जाड़े की सुहानी धूप की तरह चमक रहे थे और उसका चेहरा प्रसन्नता से खिला हुआ था। उसके पीछे-पीछे उसकी सुन्दर सखियां चल रही थीं, जिनके बालों में एक-एक सितारा चमक रहा था ।

पूर्वी तूफान ने झुककर राजकुमारी को प्रणाम किया और फिर उसके हाथ में फिनिक्स की दी हुई ताड़ की पत्ती. दे दी। राजकुमारी की आंखें खुशी से चमक उठीं। इसके बाद परी राजकुमार को अपने महल में ले गई, जिसकी दीवारें धूप से खिले हुए कमल की तरह थीं और जिसकी छत पर एक उल्टे फूल की तरह थी । राजकुमार ने एक खिड़की से झांककर बाहर देखा । वहां उसे पाप और पुण्य के ज्ञान का वह वृक्ष दिखाई दिया, जिसका फल आदम और हौआ ने खाया था । आदम और हौआ भी वहीं खड़े थे। परी ने राजकुमार को बताया कि असल में यह एक चित्र है। समय ने ये चित्र खिड़की के शीशे पर बना दिए हैं । लेकिन ये जिन्दे चित्र हैं, जिनमें पेड़ों की पत्तियां हिलती हैं और जीव-जन्तु उसी तरह आते-जाते दिखाई देते हैं, जिस तरह किसी आईने में दिखाई देते हैं। राजकुमार ने इसी तरह के चित्र दूसरी खिड़कियों के शीशों पर भी बने हुए देखे जिन पर बाइबिल की कहानियां जीवित रूप में अंकित थीं । केवल समय ही ऐसे चित्र बना सकता था ।

परी ने राजकुमार से कहा - " आओ, तुम्हें नाव में घुमाऊं । यह नौका-विहार तुम पसन्द करोगे। यह नाव ऊंची-नीची लहरों पर थपेड़े खाती हुई इस तरह तैरती है कि अपनी जगह ही खड़ी लगती है और सारे संसार के सारे देश अपने पुराने इतिहास के साथ इसके पास से गुजरते जाते हैं । "

सचमुच यह बड़ा विचित्र दृश्य था । नाव के पास से कभी आल्पस पर्वत की बर्फीली चोटियां गुजरती थीं तो कभी अफ्रीका के घने जंगल, कभी तुरही बजाते हुए गड़रियों के झुण्ड दिखाई देते थे, तो कभी मिस्र के ऊंचे-ऊंचे पिरामिड । कहीं जंगली लोग नाच रहे थे तो कहीं साधु भजन गा रहे थे। थोड़ी देर में परी ने राजकुमार को सारे संसार की सैर करा दी।

"क्या मैं यहां हमेशा के लिए रह सकता हूं ?" राजकुमार ने पूछा ।

"यह तो तुम्हारे मन पर निर्भर है। जिन बातों से तुम्हें मना कर दिया जाए उन्हें अगर तुम कभी न करो तो यहां हमेशा रह सकते हो ।"

राजकुमार बोला, “मैं आदम की तरह यहां पाप और पुण्य के वृक्ष के फल नहीं खाऊंगा। दूसरे भी तो बहुत-से पेड़ हैं । "

“सोच लो, अगर तुम्हें अपने पर भरोसा न हो तो पूर्वी तूफान के साथ लौट जाओ। वह फिर सौ साल बाद ही यहां आएगा। लेकिन हमारे लिए यह सिर्फ सौ घण्टे का समय होता है। हर शाम को मैं तुमसे अलग होते समय कहूंगी - 'आओ मेरे साथ चलो !' मैं तुम्हें बुलाने के लिए इशारे करूंगी, लेकिन याद रखो, तुम आना मत, क्योंकि जैसे ही तुम मेरे पास आओगे यह उपवन पाताल में चला जाएगा। तुम्हारे आसपास रेगिस्तानी आंधियां चलने लगेंगी। तुम बर्फीले पानी में भीगोगे और हमेशा के लिए दुःख और चिन्ता तुम्हारे भाग्य में लिख दी जाएगी !”

"मैं तो यही रहूंगा और हर तरह के लालच से बचने की कोशिश करूंगा ।" राजकुमार दृढ़ निश्चय के साथ बोला ।

पूर्वी तूफान ने उसका सिर चूमकर उससे विदा लेते हुए कहा, "अच्छा, मैं चलूं । सौ साल के बाद अब तुमसे मुलाकात होगी। तुम यहाँ आराम से रहना ।" यह कहकर उसने अपने बड़े-बड़े चमकीले पंख फैला दिए । फूल- पत्तियों ने भी 'विदा ! अलविदा !' कहकर उसे विदा दी । कई तरह की चिड़ियां स्वर्ग के उपवन की आखिरी सीमा तक उसके साथ उड़कर गईं।

परी ने राजकुमार से कहा, "अच्छा, चलो ! अब हम अपना नृत्य शुरू करें। हर रोज जब शाम होने लगेगी तो मैं तुम्हें अपने साथ चलने के लिए कहूंगी, लेकिन तुम मत आना। सौ साल तक हर रोज शाम को मैं इसी तरह तुम्हें बुलाऊंगी। तुम हर रोज अपने को काबू में रखने की कोशिश करना। धीरे-धीरे तुम्हारा धीरज इतना बढ़ जाएगा की तुम फिर कभी मेरे साथ आने को तैयार नहीं होओगे । तो, आज की शाम पहली शाम है । "

फिर परी ने उसके साथ नाचना शुरू किया। दोनों खूब देर तक नाचते रहे। उनके साथ-साथ वहां के सारे फूल-पौधे भी नाचते रहे। जब शाम होने लगी तो कमरे की एक दीवार गायब हो गई । और राजकुमार को पाप और पुण्य के ज्ञान का वह अनोखा वृक्ष दिखाई देने लगा । उसने सुना जैसे कोई उसकी मां की आवाज में बुला रहा हो, “आओ, राजकुमार, चलो मेरे साथ ! आओ, चलो !” और राजकुमार अपना वादा भूलकर फौरन उसकी ओर दौड़ा चला गया हालांकि यह उसकी पहली ही शाम थी।

फलों की खुशबू और भी घनी हो गई। नृत्य का संगीत और भी मधुर हो गया। जिस कमरे में पाप और पुण्य के ज्ञान का वृक्ष खड़ा था वहीं से परी उसे बुला रही थी, "आओ, चले आओ !" और दूसरे ही क्षण वह उस पेड़ की डालियों के पीछे छिप गई।

राजकुमार ने आगे बढ़कर पेड़ की डालियों को हटा दिया। वहां राजकुमारी सो रही थी। परियों की राजकुमारी इस समय इतनी सुन्दर लग रही थी, जैसे सुन्दरता की देवी हो । राजकुमार ने आगे बढ़कर उसे छू लिया। लेकिन जैसे ही उसने उसे छुआ कि बहुत जोरों से बिजली कड़की । स्वर्ग का उपवन कांप उठा। देखते-देखते परी गायब हो गई । और स्वर्ग का उपवन पाताल में धंसने लगा। धीरे-धीरे उपवन राजकुमार से दूर हो गया। अब वह आसमान में एक तारे की तरह चमक रहा था। राजकुमार के चारों तरफ घोर अंधेरा छाया हुआ था । वह घबराकर बेहोश हो गया ।

कुछ देर बाद वहां बहुत ही ठण्डे पानी की बरसात शुरू हो गई। तेज हवा बहने लगी। काफी देर बाद राजकुमार को होश आया । वह बड़बड़ाने लगा, "हाय, यह मैंने क्या कर डाला ! मैंने भी आदम की तरह पाप किया और स्वर्ग का उपवन पाताल में धंस गया ।" उसने आंखें खोलीं तो देखा, दूर आसमान में सुबह का तारा चमक रहा था, ठीक वैसे ही जैसे स्वर्ग का उपवन उससे दूर होते हुए चमका था ।

राजकुमार ने इधर-उधर आंखें घुमाकर देखा तो अपने को तूफानों की गुफा में पाया । तूफानों की बुढ़िया मां उसके पास ही बैठी थी, वह बोली, "अगर तुम अच्छे काम करोगे और अच्छे लड़के बनोगे तो मरने के बाद उसी तारे में तुम्हें जगह मिलेगी जहां स्वर्ग का उपवन है ! अब तो तुमने देख लिया न स्वर्ग का उपवन !"

इसके बाद राजकुमार घर लौट आया और एक अच्छा लड़का बनने की कोशिश करने लगा ।

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