परी नर्स : आयरिश लोक-कथा

The Fairy Nurse : Irish Folktale

एक बार एक किसान और उसकी पत्नी कूलगैरो के पास रहते थे। उनके तीन बच्चे थे जिनमें से सबसे छोटा बच्चा तो अभी बच्चा ही था। किसान की पत्नी बहुत अच्छी थी वह अपने अच्छे दिमाग से अपना घर चलाती थी और खेत को भी देखती थी।

एक रात अपने बच्चों के रोने से किसान की आँख खुल गयी। वे माँ माँ चिल्ला रहे थे। वह उठा और आँखें मलता हुआ चारों तरफ को देखने लगा तो उसने देखा कि उसकी पत्नी उसके पास नहीं है।

जब उसने बच्चों से पूछा कि उनकी माँ को क्या हुआ तो उन्होंने बताया कि उन्होंने देखा कि कमरा छोटे छोटे आदमियों और स्त्रियों से भर गया था। वे सब लाल हरे और सफेद कपड़े पहने हुए थे। उनके बीच में उनकी माँ थी और वह दरवाजे से बाहर जा रही थी। ऐसा लग रहा था जैसे वह नींद में चल कर जा रही हो। यह सुनते ही वह उठ कर बाहर भागा चारों तरफ देखा भाला पर उसको कहीं कुछ दिखायी नहीं दिया। बहुत दिनों तक उसकी कोई खबर भी नहीं मिली। बेचारा किसान बहुत परेशान था क्योंकि वे दोनों एक दूसरे को बहुत प्यार करते थे।

अब उसके बच्चों की देख भाल करने वाला घर में कोई नहीं था सो उसकी आँखों से आँसू बहने लगे। पर भगवान का लाख लाख धन्यवाद कि एक पड़ोसन आ कर उनकी थोड़ी बहुत देखभाल कर जाती थी। सबसे छोटे बच्चे को जो एक लड़की थी एक नर्स देख रही थी।

करीब छह हफ्ते के बाद एक दिन सुबह को वह अपने काम पर जा रहा था कि उसकी एक पड़ोसन उसके पास आयी और उसके साथ साथ उसके खेत की तरफ चलने लगी।

उसने उससे कहा — “कल रात जब मैं सोने जा ही रही थी तो मैंने बाहर घास पर एक घोड़े की टाप की आवाज सुनी और फिर अपने घर के दरवाजे पर खटखट की आवाज सुनी।

मैं बाहर आयी तो मैंने देखा कि बाहर एक काले घोड़े पर बहुत अच्छा सुन्दर साँवले रंग का नौजवान खड़ा है। उसने मुझे बहुत जल्दी तैयार होने के लिये कहा क्योंकि किसी स्त्री को मेरी जरूरत थी। जैसे ही मैं अपने कपड़े पहन कर तैयार हुई उसने मेरा हाथ पकड़ा और अपने पीछे बिठा लिया।

मैंने उससे पूछा — “सर हम लोग कहाँ जा रहे हैं।”

वह बोला — “तुम्हें अभी पता चल जायेगा।”

मैंने उसको कस कर पकड़ रखा था। आखिर हम लोग एक सोने वाले कमरे में आये। वहाँ एक बिस्तर पर एक सुन्दर स्त्री लेटी हुई थी और उसके बराबर में एक बच्चा था। उस स्त्री ने ताली बजायी तो वह साँवला नौजवान अन्दर आया।

उसने स्त्री और बच्चे को चूमा और मेरी प्रशंसा की। उसने मुझे हरे रंग का एक मरहम दिया कि मैं उसे बच्चे के शरीर पर मल दूँ। मैंने उससे वह मरहम लिया और बच्चे के शरीर पर मलने लगी। तभी मेरी दाँयी आँख फड़कने लगी। मैंने अपनी उँगली उठायी और फिर मरहम मलने लगी और फिर देखा कि वह सुन्दर कमरा तो एक गुफा थी और जो कीमती कपड़े थे वे सब चिथड़े बन गये थे।

कुछ देर बाद साँवले नौजवान ने कहा — “तुम कमरे की दरवाजे तक चलो मैं अभी थोड़ी देर में तुमसे आ कर मिलता हूँ और तुम्हें तुम्हारे घर तक सुरक्षित छोड़ कर आता हूँ।”

जैसे ही मैं गुफा से बाहर निकलने के लिये घूमी तो मैंने तुम्हारी बेचारी मौली को वहाँ देखा। वह चारों तरफ डरी डरी सी देख रही थी। वह मुझसे फुसफुसा कर बोली — “मुझे यहाँ के परियों के राजा से बचाने का एक तरीका मालूम है।

अगले शुक्रवार की रात को सारे लोग ओल्ड रौस की परियों से मिलने के लिये टैम्पिलशैम्बो के पास से हो कर गुजरेंगे। तो जब मैं वहाँ से जा रही होऊँगी अगर जौन मुझे मेरा हाथ या मेरा शाल पकड़ कर खींच ले और हिम्मत से मुझे कस कर पकड़े रहे तो मैं सुरक्षित रहूँगी। राजा यहीं है सो मेरी बात का जवाब देने के लिये तुम अपना मुँह मत खोलना।”

मैंने यह सब मरहम लगाने के बाद देखा। साँवले नौजवान ने मौली की तरफ एक बार भी नहीं देखा और मेरे ऊपर भी उसको कोई शक नहीं हुआ।

जब हम गुफा से बाहर निकले तो मैंने अपने चारों तरफ देखा तो तुम क्या सोचते हो कि हम कहाँ थे – हम लोग थे क्रोमोग के रथ के डाइक में। जल्दी ही मैं अपने घर में थी। राजा ने मेरे हाथ में पाँच गिनी दीं। मैंने उनको उठा कर मेज की ड्रौअर में रख दिया और सोने चली गयी।

पर उसके बाद मैं बहुत देर तक नहीं सो सकी। जब सुबह मैंने अपनी पाँच गिनी दोबारा देखीं जो मैंने अपनी मेज की ड्रौअर में रखी थीं तो वहाँ तो मुझे कोई गिनी नहीं थी बल्कि वहाँ ओक के पाँच मुरझाये हुए पत्ते रखे थे।”

जब शुक्रवार की रात आयी तो किसान और उसकी पड़ोसन वहाँ खड़े हुए थे जहाँ रौस को जाते समय पहाड़ी सड़कें आपस में एक दूसरे को काटती थीं। वे लोग वहाँ खड़े खड़े थुआर पुल की तरफ देखते हुए उनके आने का इन्तजार कर रहे थे। थोड़ा सा चाँद चमका तो थोड़ी सी रोशनी फैली।

आखिर पड़ोसन ने किसान से काँपते हुए अपनी आँखें चौड़ी चौड़ी खोलते हुए कहा — “देखो उधर देखो। वे लोग वहाँ से अपनी लगामें बजाते हुए और पंख उछालते हुए चले आ रहे हैं।”

किसान ने उस तरफ देखा तो उसे तो कुछ भी दिखायी नहीं दिया। पड़ोसन फिर बोली — “देखो मुझे तुम्हारी पत्नी दिखायी दे रही है। वह बाहर की तरफ को बैठी है ताकि वह हमसे छू कर जा सके। हम लोग शान्ति से चलेंगे जैसे हमें कुछ पता ही नहीं है। जब हम उसके पास से गुजर रहे होंगे तो मैं तुम्हें हल्का सा धक्का दूँगी। अगर उस समय तुम अपना काम नहीं करोगे तो फिर तुम सारी उम्र दुखी ही रहना।”

यह तय कर के वे आराम से चलने लगे। उनका दिल उनकी छाती के अन्दर ज़ोर ज़ोर से धड़क रहा था। हालाँकि किसान को कुछ दिखायी नहीं दे रहा था पर उसने बहुत हल्की लगामों के हिलने की और घोड़ों के कूदने की आवाज सुनी।

आखिर उसने धक्का महसूस किया तो उसने अपने हाथ फैलाये तो उसकी बाँहों में उसकी पत्नी की कमर थी। अब वह उसको साफ साफ देख सकता था। पर वहाँ इतना हल्ला गुल्ला मचा जैसे वहाँ कोई भूचाल आ गया हो। उसने देखा कि वह तो चारों तरफ से बहुत सी भयानक चीज़ों से घिरा हुआ है।

वे सब उस पर गरज रही थीं गुर्रा रही थीं और उसकी पत्नी को उसके हाथों से छीन रही थीं। पर वह उनसे जाने के लिये कहता रहा और उसे अपनी बाँहों में ऐसा जकड़ा रहा जैसे उसकी बाँहें माँस हड्डी की न बनी हों बल्कि लोहे की बनी हों।

पल भर में ही सब शान्त हो गया। किसान की पत्नी किसान और अपनी पड़ोसन की बाँहों में बेहोश सी पड़ी थी।

उसको ठीक होने में थोड़ा समय लग गया। ठीक होने के बाद वह फिर से अपना घर और खेत सँभालने में लग गयी थी। फिर उसे कभी कोई परी आदमी नहीं मिला।

(साभार सुषमा गुप्ता जी, जिन्होंने लोक-कथाओं पर उल्लेखनीय काम किया है.)

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