कहना न मानने वाला बेटा : माया सभ्यता की लोक-कथा
The Disobedient Son : Lok-Katha (Maya)
एक बार की बात है कि एक लड़का था जो बहुत ही अक्खड़ किस्म का था। वह अपनी माँ का कहना भी नहीं मानता था। वह बिना खाना खाये ही बाहर घूमने चला जाता था। फिर वह रात को बहुत बहुत देर तक घर भी वापस नहीं लौटता था। जब तक वह घर वापस लौटता तब तक उसकी माँ बेचारी उसकी चिन्ता करती रहती थी।
उसकी माँ उससे पूछती “तू अब तक बाहर क्या कर रहा था। बहुत देर हो चुकी है मैं तो अब सोने जा रही हूँ। मैं तो बस तेरा इन्तजार ही कर रही थी। तू तो किसी की तरफ ध्यान ही नही देता। अब मैं तुझे तेरे गौडफादर के पास भेजूँगी। क्योंकि मैं जो कुछ भी तुझसे कहती हूँ उसको तो तू सुनता ही नहीं है।”
सो उसकी माँ उसके गौडफादर पादरी के पास गयी और बोली — “गौडफादर मैं आपके इस गौडसन का क्या करूँ। यह तो बहुत ही बदमाश है और मेरा कहा बिल्कुल ही नहीं मानता। आप पादरी हैं आप ही अपने इस गौडसन को कुछ समझा सकते हैं। मैं उसका कुछ नहीं कर सकती। आपका यह गौडसन तो बहुत ही बड़ा गधा है। आप उसको अपने पास रख लीजिये और देखिये अगर वह कुछ ठीक से बरताव करना सीख जाये तो।”
“ठीक है गौडमदर । तुम उसको मेरे पास भेज देना। मैं देखता हूँ। उसको वह सब क्यों नहीं करना चाहिये जो मैं उससे कहूँ। मैं तो सचमुच में पादरी हूँ।
मैं अपने गौडसन को काम करना सिखाऊँगा। मेरा गौडसन मेरा कहना जरूर मानेगा। तुम चिन्ता न करो मेरा गौडसन मेरा कहना जरूर मानेगा। तुम उसको मेरे पास ले आना।”
सो उस स्त्री ने अपने बेटे से कहा — “मेरे बेटे तू अपने गौडफादर के पास जा वही तुझे सिखायेगा। क्योंकि तू मेरा कहा तो मानता नहीं तो तू वहीं जा और वहीं काम कर।”
“ठीक है माँ। मैं अपने गौडफादर के पास जाता हूँ। क्योंकि मैं तुम्हारे किसी काम का नहीं तो मैं अपने गौदफादर के पास जाता हूँ और वहीं काम करूँगा।”
और वह लड़का अपने गौडफादर के पास चला गया। वहाँ जा कर वह उनसे बोला — “गौडफादर मैं आपके पास आ गया हूँ अब आप मुझे बतायें कि मुझे क्या करना है।”
“ठीक है। अब तुम्हें मेरे पास काम करना है।”
“ठीक है गौडफादर। मैं आपके पास काम करूँगा। मैं वही करूँगा जो आप मुझसे करने के लिये कहेंगे। आप कुछ भी कहें मैं वही करूँगा।”
“ठीक। अब तुम वह सुनो जो तुमसे मैं कह रहा हूँ। सुबह सवेरे जल्दी ही तीन बजे उठ कर तुम सारी जगह साफ करोगे। और इसके लिये मैं तुम्हें नहीं जगाऊँगा। मैं बस तुमसे अभी ही कह रहा हूँ। यह काम तुम अपने आप ही करना।”
लड़का बोला — “ठीक है।”
सो सुबह सवेरे ही वह लड़का उठा और सफाई करने लगा। जब उस लड़के ने सफाई खत्म कर ली तो वह यह पादरी से कहने गया — “गौडफादर मैंने चर्च की सफाई खत्म कर ली है मैं आपसे यही कहने आया हूँ।”
“बहुत अच्छे। मुझे बहुत खुशी है कि तुमने सफाई खत्म कर ली है। अब तुम आराम करो।”
एक दिन और बीत गया और फिर गौडफादर ने उसको दूसरा काम दे दिया।
एक दिन गौडफादर ने अपने गौडसन ने कहा — “अब मैं तुम्हें बताता हूँ कि कल सुबह तुम्हें क्या करना है। तुमको कल सुबह छह बजे उठ कर तीन बार घंटा बजाना है। और जब तुम यह कर लो तो मुझे आ कर बताना। फिर मैं चर्च में मास पढ़ने जाऊँगा।”
लड़का बोला “ठीक है।”
जब अगला दिन खत्म हो गया तो वह लड़का घंटा बजाने गया ओर घंटा बजा कर वह पादरी के पास गया और बोला — “गौडफादर मैंने घंटा तीन बार बजा दिया है। अब उठने का और मास पढ़ने का समय हो गया।”
“बहुत अच्छे।” और एक दिन और निकल गया।
पादरी एक दिन फिर बोला — “आज मैं तुम्हें फिर बताने जा रहा हूँ कि कल तुम्हें क्या करना है। कल सुबह तीन बजे घंटा फिर से तीन बार बजाना।”
“ठीक है।”
अगले दिन उस लड़के को याद रहा कि सुबह तीन बजे उसे घंटा बजाना है सो वह उठा और घंटा बजाने गया पर पादरी ने इस बार उसका यह इम्तिहान लिया था। सो उसने उस घंटे के पास आदमी का एक ढाँचा रख दिया।
वह लड़का जब सुबह तीन बजे घंटा बजाने गया तो रास्ते में उसको एक आदमी का ढाँचा मिला। लडके ने ढाँचे से कहा — “मेरे रास्ते से हट मैं घंटा बजाने जा रहा हूँ क्योंकि मेरे गौडफादर ने मुझसे घंटा बजाने के लिये कहा है। तू मेरे रास्ते में मत आ नहीं तो मैं तुझे मार दूँगा।
पर वह तो ढाँचा था वह तो उसके रास्ते से न हटा, न वह हिला और न ही उसने कोई जवाब दिया।
लड़का फिर बोला — “या तो मुझे जवाब दे नहीं तो मैं तुझे मार दूँगा। मैं तुझसे एक बार और पूछूँगा और अगर तूने मुझे तीसरी बार भी जवाब नहीं दिया तो मैं तेरे टुकड़े टुकड़े कर दूँगा। क्या तू यही चाहता है?”
इसके बाद भी वह ढाँचा न तो उसके रास्ते से हटा, न हिला और न ही उसने कोई जवाब दिया।
वह लड़का फिर बोला — “इस बार मैं तुझसे आखिरी बार पूछ रहा हूँ। अगर तूने इस बार भी जवाब नहीं दिया तो मैं तुझे मार ही दूँगा। क्या तू इसी लिये यहाँ मेरे रास्ते में खड़ा है? अब तू न तो मुझे कोई जवाब दे रहा है और न यहाँ से हट रहा है तो बस तू यह जान ले कि अब तू मरेगा। मैं तुझे यहाँ से नीचे फेंक दूँगा।”
यह कह कर उसने वह ढाँचा वहाँ से नीचे फेंक दिया। नीचे गिरते ही ढाँचा टूट गया। उसने तीन बार अपना घंटा बजाया और अपने गौडफादर के सोने के कमरे की तरफ उसको जगाने के लिये उसका दरवाजा खटखटाया।
पादरी अन्दर से बोला — “क्या है?”
लड़का बोला — “गौडफादर उठिये मैंने घंटा बजा दिया है।”
पादरी ने जब यह सुना तो उसको बड़ा आश्चर्य हुआ। वह बोला — “ओह तूने घंटा बजा दिया?”
लड़का बोला — “जी गौडफादर मैंने घंटा बजा दिया।”
“तुझे वहाँ कोई चीज़ दिखायी नहीं दी?”
“जी गौडफादर दिखायी दी।”
“तूने क्या देखा?”
“कोई चीज़ थी जो मेरे रास्ते में खड़ी थी। वह मुझे घंटा बजाने नहीं जाने दे रही थी।”
“तो फिर तूने क्या किया? तू उससे डरा नहीं?”
“नहीं गौडफादर।”
“तो फिर तूने क्या किया?”
“मैंने धक्का दे कर उसे नीचे फेंक दिया और उसे तोड़ दिया।”
(साभार सुषमा गुप्ता जी, जिन्होंने लोक-कथाओं पर उल्लेखनीय काम किया है.)