सूरज की बेटी : इतालवी लोक-कथा

The Daughter of the Sun : Italian Folk Tale

यह कहानी इटली देश की उसके पिसा शहर की एक लोक कथा है। पिसा शहर का नाम तो तुमने सुना ही होगा। वहाँ की झुकती हुई मीनार दुनिया के आठ आश्चर्यों में से एक है।

एक बार एक राजा और एक रानी थे जिनके बहुत दिनों से कोई बच्चा नहीं था। कुछ दिनों बाद रानी को बच्चे की आशा हो गयी।

जब उनको यह पता चला कि अब उनके घर बच्चा आने वाला है तो उन्होंने कई ज्योतिषियों को यह जानने के लिये बुलाया कि वह लड़का होगा या लड़की। और वह किस तारे में पैदा होगा आदि आदि।

सितारे देख कर ज्योतिषी बोले — “यह बच्चा एक लड़की होगी और उसका भाग्य कहता है कि 20 साल की उम्र से पहले पहले वह सूरज को प्यारी होगी और उसकी बेटी की माँ बनेगी।

राजा और रानी यह सब जान कर बहुत परेशान हुए कि उनकी बेटी सूरज की बेटी की माँ बनेगी। वह सूरज जो आसमान में रहता है और शादी नहीं कर सकता।

ऐसी बुरी किस्मत को दूर रखने के लिये उन्होंने एक इतनी ऊँची मीनार बनवायी कि सूरज खुद भी उसकी तली तक न पहुँच सके।

वह बच्ची पैदा होने के बाद से अपनी आया के साथ उस मीनार में तब तक के लिये बन्द कर दी गयी जब तक वह 20 साल की नहीं होती। सूरज भी तब तक उसको नहीं देख सकता था और न ही वह सूरज को देख सकती थी।

उस आया के अपनी भी एक बेटी थी जो राजा की बेटी के बराबर थी सो दोनों लड़कियाँ उस मीनार में एक साथ ही खेल खेल कर बड़ी होती रहीं।

एक दिन जब वे दोनों 20 साल की होने वाली थीं तो उनको लगा कि वे मीनार के बाहर की चीज़ों का आनन्द लें तो आया की बेटी बोली — “चलो एक कुरसी के ऊपर दूसरी कुरसी रख कर उस ऊँची वाली खिड़की पर चढ़ते हैं। वहाँ से हम देख पायेंगे कि इस मीनार के बाहर क्या है।”

दोनों ने यह काम बहुत जल्दी कर लिया। वे एक के ऊपर एक कुरसियाँ रख कर खिड़की तक पहुँच गयीं और उस खिड़की से बाहर झॉका – बड़े बड़े पेड़, बहती हुई नदी, आसमान में उड़ती हुई चिड़ियाँ, बादल और सूरज।

जैसे उन्होंने सूरज को देखा वैसे ही सूरज ने भी राजा की बेटी को देखा तो वह उसके प्रेम में पड़ गया। उसने अपनी एक किरन को भेजा। और जैसे ही उस किरन ने राजा की बेटी को छुआ राजा की बेटी को बच्चे की आशा हो गयी – सूरज की बेटी।

समय आने पर सूरज की बेटी मीनार में पैदा हुई तो आया ने राजा के गुस्से के डर के मारे बच्ची को शाही कपड़ों में लपेटा और बीन्स के एक खेत में ले जा कर छोड़ आयी।

बहुत जल्दी ही जब राजा की बेटी 20 साल की हो गयी तो राजा ने यह सोचते हुए अपनी बेटी को मीनार में से निकाल लिया कि अब तो उसकी बेटी 20 साल की हो गयी है इसलिये अब सूरज से उसे कोई खतरा नहीं है।

पर उसको तो इस बात का ज़रा भी पता नहीं था कि वह अनहोनी तो पहले ही घट चुकी थी जिसकी वजह से उसको मीनार में रखा गया था।

जब जब जो जो होना होता है वह तो होता ही है . . . राजा की बेटी के सूरज की बेटी पैदा हो चुकी थी और बीन्स के खेत में पड़ी रो रही थी।

एक दूसरा राजा शिकार खेलने के लिये उस खेत से गुजर रहा था कि उसे किसी बच्चे के रोने की आवाज सुनायी दी। उसने इधर उधर देखा तो एक बच्चा खेत में पड़ा रो रहा था।

खेत में पड़ी उस बच्ची के ऊपर उसको दया आ गयी तो उसने उस बच्ची को उठा लिया और उसे ले जा कर अपनी पत्नी को दे दिया।

उस राजा ने उस बच्ची के लिये एक आया रख ली और वह आया उसको पालने लगी। इस तरह से वह बच्ची उस दूसरे राजा के महल में उनकी अपनी बेटी की तरह पलने लगी।

उस राजा के अपना भी एक बेटा था जो उससे थोड़ा सा ही बड़ा था। वह भी उसी के साथ साथ बड़ा होने लगा।

राजा का बेटा और यह सूरज की बेटी दोनों साथ साथ बड़े होते होते एक दूसरे से प्रेम करने लगे।

राजा का बेटा उससे शादी करने का बड़ा इच्छुक था पर उसका पिता उस लड़की से उसकी शादी इसलिये नहीं करना चाहता था क्योंकि वह एक पायी गयी लड़की थी और उसके माता पिता का कोई पता नहीं था।

राजा ने उस लड़की को यह सोच कर अपने महल से दूर एक अकेले घर में भेज दिया कि इस तरह से उसका अपना बेटा शायद उसको भूल जायेगा।

पर राजा ने यह सपने में भी नहीं सोचा था कि वह सूरज की बेटी थी और उसके अन्दर कई जादुई ताकतें थीं जो आदमियों में नहीं होती थीं।

जैसे ही वह महल से चली गयी राजा ने अपने बेटे की शादी एक अच्छे राज घराने की एक लड़की से पक्की कर दी। शादी वाले दिन चीनी चढ़े बादाम दुलहिन और दुलहे के सब रिश्तेदारों और दोस्तों को भेजे गये। वे बादाम सूरज की बेटी को भी भेजे गये।

जब दूतों ने सूरज की बेटी के घर का दरवाजा खटखटाया तो वह उसे खोलने आयी पर उसका तो सिर ही नहीं था।

वह बोली — “ओह अफसोस, मैं अपने बालों में कंघी कर रही थी तो मैंने अपना सिर मेज पर उतार कर रख दिया था। उसको तो मैं वहीं मेज पर रखा छोड़ आयी। मैं ज़रा जा कर अपना सिर ले आऊँ। अभी आयी।”

कह कर उसने दूतों को घर के अन्दर बुलाया, अपना सिर मेज पर से उठा कर लगाया और मुस्कुरायी और बोली — “अब मुझे यह बताओ कि मैं तुम्हें शादी की भेंट के लिये क्या दूँ।”

इतना कह कर वह दूतों को रसोईघर में ले गयी।

वहाँ जा कर उसने कहा — “ओवन खुल जाओे।” और ओवन खुल गया।

सूरज की बेटी दूतों को देख कर फिर मुस्कुरायी और फिर बोली — “लकड़ी ओवन में जाओ।” और लकड़ी उड़ कर ओवन में चली गयी।

वह फिर बोली — “ओवन तुम जल जाओ और जब तुम गरम हो जाओ तो मुझे बुला लेना।”

कह कर वह दूतों से बोली — “अब बताओ क्या अच्छी खबर है?”

ये सब देख कर तो वे दूत आश्चर्य से हक्का बक्का रह गये और उनके चेहरे पर मुर्दनी छा गयी। वे कुछ कहने के लिये शब्द ढूँढने लगे कि तभी ओवन की आवाज आयी — “मालकिन।”

सूरज की बेटी बोली —“मैं अभी आयी।” कह कर वह उस गरम ओवन में सिर के बल घुस गयी और एक तैयार पाई निकाल लायी।

उसको उन दूतों को देते हुए वह बोली — “यह पाई राजा के लिये शादी की दावत के लिये ले जाओ।”

आँखें फाड़े और केवल फुसफुसाते हुए वे दूत वहाँ से वह पाई ले कर घर आ गये और राजा को आ कर सब बातें बतायीं पर वहाँ तो कोई उनकी बातों का विश्वास ही नहीं कर रहा था।

राजा के बेटे की दुलहिन उस लड़की से बहुत जलती थी क्योंकि हर आदमी जानता था कि राजा का बेटा पहले उसको प्यार करता था।

वह बोली — “उॅह, यह तो कुछ भी नहीं। मैं जब अपने घर में रहती थी तो मैं भी ऐसे काम बहुत करती थी।”

राजा का बेटा बोला — “अच्छा, तो ज़रा फिर कुछ हमारे सामने भी तो करके दिखाओ।”

दुलहिन बोली — “हाँ हाँ लेकिन . . . . ।”

पर राजा का बेटा उसको खींच कर रसोईघर में ले गया।

दुलहिन बोली — “ओ लकड़ी, ओवन में जाओ।” पर लकड़ी तो ओवन में नहीं गयी। नौकरों ने उसमें लकड़ी अपने हाथ से रखी।

दुलहिन फिर बोली — “ओवन में आग जल जाओ।” पर ओवन तो ठंडा का ठंडा ही पड़ा रहा। उसमें तो आग अपने आप जली ही नहीं।

नौकरों ने उसको अपने हाथ से जलाया और जैसे ही वह गरम हो गया तो उस घमंडी दुलहिन ने उसके अन्दर घुसने की जिद की। पर वह उसके पूरी तरह से अन्दर घुसने भी नहीं पायी थी कि वह उसकी तेज़ गरमी से जल कर मर गयी।

कुछ समय बाद राजा के बेटे की दूसरी शादी की गयी।

उस दिन भी चीनी चढ़े बादाम दुलहिन और दुलहे के सब रिश्तेदारों और दोस्तों को भेजे गये। सो वे बादाम सूरज की बेटी को भी भेजे गये।

एक बार फिर दूतों ने जा कर सूरज की बेटी के घर का दरवाजा खटखटाया तो इस बार वह दरवाजा खोलने नहीं आयी बल्कि दीवार में से निकल कर आयी और उनका स्वागत किया।

वह बोली — “अफसोस, घर का दरवाजा आजकल अन्दर से खुलता ही नहीं। मुझे हमेशा ही दीवार में से हो कर बाहर आना पड़ता है और फिर दरवाजे को बाहर से ही खोलना पड़ता है।”

कह कर उसने घर का दरवाजा बाहर से खोला और उनको अन्दर ले गयी। उनको रसोईघर में ले जाते हुए वह बोली — “इस बार मैं शादी की भेंट के लिये क्या बनाऊँ।”

“लकड़ी ओवन में जाओ और जल जाओ।” और पल भर में ही लकड़ियाँ ओवन में चली गयीं और जल गयीं।

यह सब दूतों के सामने ही हो गया तो यह देख कर तो उनको ठंडा पसीना आ गया।

फिर वह बोली — “कड़ाही, आग के ऊपर जाओ। तेल कड़ाही में जाओ। और जब तुम गरम हो जाओ तो मुझे बुला लेना।”

कुछ पल बाद ही आवाज आयी — “मालकिन, मैं तैयार हूँ।”

सूरज की बेटी बोली — “यह लो।” कह कर उसने अपने हाथ की दसों उॅगलियाँ कड़ाही के गरम तेल में डाल दीं। तुरन्त ही उसकी दसों उॅगलियाँ बहुत सुन्दर 10 तली हुई मछलियाँ बन गयीं। ऐसी सुन्दर मछलियाँ कभी किसी ने देखी नहीं थीं।

मछलियाँ निकालने के बाद उसकी उॅगलियाँ फिर से वापस आ गयीं। सूरज की बेटी ने उन मछलियों को अपने हाथ से पत्तों में लपेटा और मुस्कुरा कर उनको उन दूतों को दे दिया।

यह नयी दुलहिन भी पहली वाली दुलहिन की तरह से इस लड़की से जलती थी। जब उसने उन दूतों से उस लड़की की मछलियाँ बनाने वाली कहानी सुनी तो वह बोली — “तुम लोग देखो कि मैं मछली कैसे तलती हूँ।”

दुलहे ने उसके कहे अनुसार चूल्हे पर कड़ाही रखी, उसमें तेल डाला और उसको खूब गरम होने दिया। सूरज की बेटी की नकल करके उसने भी अपनी उॅगलियाँ उस गरम तेल में डाल दीं और उसकी जलन से वह मर गयी।

तब रानी माँ ने दूतों को आड़े लिया — “तुम लोगों की ऐसी कहानियों ने इस घर की कई दुलहिनों को मार डाला है। आगे से ऐसा कुछ नहीं करना।”

राजा और रानी ने फिर किसी तरह अपने बेटे की शादी एक तीसरी लड़की से करने के लिये तैयारी की तो एक बार फिर से दूत चीनी चढ़े बादाम ले कर सूरज की बेटी के पास गये।

वहाँ जा कर उन्होंने एक बार फिर उसके घर का दरवाजा खटखटाया तो वह बोली — “मैं यहाँ हूँ ऊपर।” दूतों ने ऊपर देखा तो उसको हवा में लटके पाया।

वह बोली — “मैं ज़रा एक मकड़ी के जाले पर चढ़ कर सैर करने यहाँ चली आयी थी। मैं अभी नीचे आती हूँ।”

कह कर वह जाले के सहारे सहारे नीचे आयी और दूतों से बादाम ले कर बोली — “इस बार तो मैं सचमुच ही नहीं जानती कि मुझे भेंट के लिये क्या करना चाहिये।”

कुछ देर सोचने के बाद वह बोली — “चाकू, इधर आओ।” चाकू उसके पास आ गया तो उसने उसको पकड़ लिया।

उस चाकू से उसने अपना एक कान काटा। उस कान में एक सुनहरी लेस लगी थी और वह लेस उसके सिर में से ऐसे निकल कर आ रही थी जैसे वह उसके दिमाग में से खुल खुल कर आ रही हो। वह उस लेस को खींचती रही खींचती रही जब तक कि वह लेस खत्म नहीं हो गयी।

फिर उसने अपना वह कटा हुआ कान अपने कान की जगह लगा लिया और उंगलियों से उसे धीरे से दबा कर चिपका लिया। वह लेस उसने दूतों को दे दी और कहा कि वे यह भेंट उसकी तरफ से राजा के लिये ले जायें।

दूत उसको देख कर एक बार फिर आश्चर्य में पड़ गये। जब उन्होंने उस लेस को राजा को दिया तो क्योंकि वह लेस बहुत सुन्दर थी कि वहाँ बैठा हर आदमी यह जानना चाहता था कि वह लेस कहाँ से आयी।

हालाकि रानी माँ ने उन दूतों को कुछ भी कहने से मना कर दिया था पर फिर भी उनको उसकी कहानी तो बतानी ही पड़ी।

सुनते ही नयी दुलहिन बोली — “इसमें क्या खास बात है। मैंने तो अपनी सारी पोशाकों पर इसी तरह से निकाली हुई लेस लगा रखी है।”

दुलहा बोला — “अच्छा? तो यह चाकू लो और फिर ज़रा हम भी तो देखें कि तुम यह कैसे करती हो?”

इस पर उस बेवकूफ लड़की ने अपना एक कान काट डाला पर उसमें से लेस निकलने की बजाय इतना सारा खून बहा कि वह वहीं मर गयी।

इस तरह राजा का बेटा अपनी पत्नियाँ खोता गया और उसका प्रेम उस सूरज की बेटी की तरफ बढ़ता गया। आखिर वह बीमार पड़ गया और कोई उसका इलाज नहीं कर सका क्योंकि अब न वह खाता था और न हँसता था।

राजा ने अपने राज्य के कई बड़े बूढ़े जादूगरों को बुला भेजा तो उन्होंने राजा को सलाह दी कि उन्हें अपने बेटे को उस जौ का दलिया खिलाना चाहिये जो केवल एक घंटे के अन्दर बोया गया हो, उगाया गया हो, तोड़ा गया हो और फिर दलिये में तैयार किया गया हो।

राजा तो यह सुन कर पागल सा हो गया क्योंकि ऐसा जौ तो किसी ने कभी सुना ही नहीं था जो केवल एक घंटे के अन्दर बोया गया हो, उगाया गया हो और तोड़ा गया हो। तो वह उसका दलिया कहाँ से बनायेगा।

आखिर राजा के दिमाग में उस लड़की का ख्याल आया जिसने पहले से ही इतने सारे आश्चर्य कर रखे थे। सो उसने उसको बुला भेजा।

सूरज की बेटी आयी और बोली — “हाँ मैं ऐसे जौ को जानती हूँ।” कह कर उसने बिजली की सी चमक के साथ एक घंटा बीतने से पहले ही जौ बोये, उगाये, काटे और उनका दलिया बना दिया।

उसने राजा से प्रार्थना की कि उस दलिये को वह खुद उसके बेटे के पास ले कर जाना चाहती है। राजा ने उसको इजाज़त दे दी। जब वह राजा के बेटे के कमरे में पहुँची तो वह अपने बिस्तर में आँखें बन्द किये लेटा हुआ था।

यह दलिया बहुत ही बेस्वाद था सो जैसे ही उसने उसका एक चम्मच पिया उसने उसको तुरन्त ही थूक दिया। उस थूके हुए दलिये के कुछ कण उस लड़की की आँख में जा पड़े।

वह तुरन्त ही बोली — “तुम्हारी यह हिम्मत कि तुम दलिया सूरज की बेटी और एक राजा की धेवती की आँख में थूको?”

राजा ने आश्चर्य से पूछा — “क्या तुम सूरज की बेटी हो?”

“हाँ मैं सूरज की बेटी हूँ।”

“और एक राजा की धेवती भी?”

“हाँ मैं एक राजा की धेवती भी हूँ।”

“अरे, हम तो यहाँ यह सोचे बैठे थे कि तुम कोई पड़ी हुई लड़की हो। अगर ऐसा है कि तुम सूरज की बेटी हो और राजा की धेवती हो तो तुम हमारे बेटे से शादी कर सकती हो।”

“हाँ मैं बिल्कुल आपके बेटे से शादी कर सकती हूँ।”

राजा का बेटा ठीक हो गया और उसकी शादी सूरज की बेटी से हो गयी। उस दिन के बाद से वह एक साधारण लड़की हो गयी और फिर उसके बाद से उसने कोई जादू नहीं किया।

(साभार : सुषमा गुप्ता)

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