होशियार तोता : कश्मीरी लोक-कथा

The Clever Parrot : Lok-Katha (Kashmir)

एक फकीर के पास एक बहुत ही बातूनी तोता था। वह उसके लिये बहुत कीमती था और वह उसे बहुत प्यार करता था। एक दिन फकीर की तबियत कुछ ठीक नहीं थी तो उसने तोते से कहा — “तुम मुझे कोई खबर नहीं सुनाते, तुम तो मुझे कुछ भी नहीं सुनाते।”

तोता बोला — “ठीक है मैं सुनाता हूँ। अब तक मैं ऐसा करने से डर रहा था कि कहीं ऐसा न हो कि तुम मेरे मुँह से कुछ ऐसी बात सुन लो जो तुम्हें सुनने में अच्छी न लगें।”

फकीर बोला — “उसकी तुम चिन्ता न करो तुम मुझे सब बता दो जो तुम्हें कहना हो।”

अगली सुबह फकीर को किसी दूसरे गाँव जाना था तो वहाँ जाने से पहले उसने अपनी पत्नी से कहा कि उस दिन उसके लिये वह एक मुर्गा पकाये जिसमें से आधा वह खा ले और बाकी आधा गर्म उसके लिये रखा रहने दे।

पत्नी ने उसके कहे अनुसार मुर्गा पकाया तो पर उसने वह सारा मुर्गा खा लिया। उसको बहुत ज़ोर की भूख लगी थी और वह मुर्गा भी इतना स्वादिष्ट बना था कि वह अपने आपको उसे पूरा खाने से रोक ही नहीं सकी।

फकीर जब शाम को घर लौटा तो उसने उससे पूछा कि उसका मुर्गा कहाँ है तो उसने कह दिया कि वह तो बिल्ली खा गयी।

फकीर बोला — “अच्छा। तब तो कुछ नहीं किया जा सकता। तुम मुझे कुछ और खाने को दे दो क्योंकि मुझे भी बहुत भूख लगी है। मैं जबसे घर छोड़ कर गया हूँ तबसे मैंने कुछ नहीं खाया है।” पत्नी खाना बनाने चली गयी।

जब वह खाना बना रही थी तो वह तोते के पास गया और बोला — “ओ मेरे प्यारे तोते बता आज की क्या नयी खबर है।”

तोता बोला — “तुम्हारी पत्नी ने तुमसे झूठ बोला है। मुर्गे को बिल्ली ने नहीं खाया बल्कि वह खुद खा गयी है। मैंने खुद उसको सारा मुर्गा खाते देखा है।”

जाहिर है पत्नी ने तोते के इस कहने को सरासर झूठ बताया पर फकीर ने घर में शान्ति बनाये रखने के लिये पत्नी की बात पर विश्वास करने का बहाना बनाया। अब यह भी साफ है कि पत्नी ऐसी चिड़िया को अपने घर में रखने के बिल्कुल पक्ष में नहीं थी। वह उससे बिल्कुल भी खुश नहीं थी क्योंकि ऐसा करने से उसकी पोल खुलती थी।

ऐसा नहीं था कि वह किसी और आदमी को अपने घर बुलाती थी या चोर थी पर अगर वह कोई भी काम पति से छिपा कर करना चाहती तो वह उस चिड़िया के जाने बिना नहीं कर सकती थी और वह चिड़िया उसके पति को उसकी हर बात की खबर देती रहती थी।

सो एक दिन उसने अपने पति से कहा — “अच्छा हो अगर हम लोग अलग हो जायें तो। ऐसा लगता है कि यह तोता ही अब तुम्हारे लिये सब कुछ है। तुम्हें मुझसे ज़्यादा अब उसके ऊपर विश्वास है। तुम मुझसे ज़्यादा उससे बात करना पसन्द करते हो। मुझसे अब यह और सहन नहीं होता। या तो तुम मुझे बाहर निकाल दो या फिर इस तोते को बाहर निकाल दो क्योंकि हम तीनों अब एक छत के नीचे शान्ति से नहीं रह सकते।”

फकीर अपनी पत्नी को बेहद प्यार करता था। जब उसने अपनी पत्नी के मुँह से यह सब सुना तो वह बहुत दुखी हुआ। उसने अपनी पत्नी से वायदा किया कि वह तोते को बेच देगा।

अगली सुबह वह अपने घोड़ी पर चढ़ा और तोते को बेचने के लिये चला तो रास्ते में तोते ने कहा — “ओ मेरे मालिक सुनो तुम मुझे किसी ऐसे आदमी को मत बेचना जो तुम्हें मेरा कहा हुआ पैसा न दे।

फकीर बोला — “ठीक है। मैं समझ गया।”

चलते चलते वे लोग समुद्र के किनारे तक चले गये जो उसके घर से बहुत दूर था वहाँ उन्होंने रात बिताने की सोची।

आधी रात हो गयी फकीर सो नहीं सका। उसको नींद ही नहीं आ रही थी। उसने तोते से कहा — “मैं बहुत थक गया हूँ मुझे नींद नहीं आ रही है। मुझे डर है कि तुम और मेरी घोड़ी दोनों मेरे सोने का फायदा उठा कर यहाँ से भाग जाओगे।”

तोता बोला — “कभी नहीं। तुम क्या हमें इतना बेवफा समझते हो कि हम तुम्हें इस तरह का धोखा देंगे। हम पर विश्वास रखो। घोड़ी को आजादी से घूमने दो। मुझे भी मेरे पिंजरे से निकाल दो। मैं तुम्हें छोड़ कर कहीं नहीं जाऊँगा। मैं पास के एक पेड़ पर जा कर बैठ जाऊँगा और तुम्हारी और तुम्हारी घोड़ी दोनों की रखवाली करूँगा।”

यह विश्वास करते हुए कि वह तोता उसका वफादार था फकीर ने उसकी बात मान ली। उसने घोड़ी को खोल दिया और तोते को पिंजरा खोल कर बाहर निकाल दिया। फिर वह सोने के लिये लेट गया। तोता उनकी रखवाली करता रहा।

रात को तोते ने पानी में से एक घोड़े जैसा जानवर निकलते देखा और देखा कि वह घोड़ी पर कूदा और फिर वापस पानी में चला गया।

फकीर की आँख सुबह जल्दी ही खुल गयी। उसने अपने तोते को बुलाया और उसको पिंजरे में बन्द किया। तोते ने उसको रात में हुई उस अजीब सी घटना के बारे में फकीर को कुछ नहीं बताया। फकीर ने अपनी घोड़ी ली और समुद्र के किनारे किनारे चल दिया। चलते चलते वह एक बहुत ही खुशहाल शहर में आ गया जहाँ वह वहाँ के कोतवाल से मिला। कोतवाल ने उसको सलाम करने के बाद उससे पूछा कि क्या वह अपना तोता बेचना चाहता था। फकीर ने कहा कि हाँ वह उसे बेचना चाहता था।

तोता बोला — “पर तुम मुझे नहीं खरीद सकते।”

कोतवाल के मुँह से निकला — “अरे वाह यह तो बड़ा अच्छा तोता है। मैं तुम्हारे आने की खबर वजीर को देता हूँ क्योंकि वह ऐसा तोता खरीदने के लिये बहुत दिनों से तलाश में हैं। चलो तुम मेरे साथ जल्दी चलो कहीं ऐसा न हो कि वह दरबार चले जायें।”

सो वे तीनों वजीर के घर गये। वजीर ने कोतवाल को उसके इस तोते वाले को उसके घर लाने के लिये बहुत धन्यवाद दिया फिर बोला — “पर मैं ऐसी चिड़िया खुद नहीं खरीद सकता जब तक कि मैं यह न जान लूँ कि राजा को ऐसी चिड़िया की जरूरत है या नहीं। एक बार मैंने उनको ऐसी चिड़िया के बारे बात करते सुना था।”

सो वे सब राजा के महल गये। जब राजा ने उनके आने का उद्देश्य सुना तो उन्होंने पूछा कि इस चिड़िया का दाम क्या है।

जवाब तोते ने दिया — “दस हजार रुपये।”

राजा चिड़िया की साफ आवाज सुन कर इतना खुश हुआ कि उसने तुरन्त ही फकीर को दस हजार रुपये दे कर वह चिड़िया खरीद ली। इतना सारा पैसा पा कर फकीर बहुत खुश हुआ। तोते ने अच्छा मौका देख कर फकीर से राजा को यह वायदा करा दिया कि वह अपनी घोड़ी का अगला बच्चा राजा को दे देगा।

इसके बाद तो तोता बड़ी शान से महल में रहने लगा। वह एक बहुत ही सुन्दर चाँदी के पिंजरे में रहता था और चाँदी के बर्तनों में ही खाना खाता था और पानी पीता था। यह पिंजरा राजा के जनानखाने में लटका रहता था।

बहुत जल्दी ही तोता सबका प्यारा हो गया। और राजा की रानियाँ तो उससे हमेशा ही खेलती रहती उसे प्यार से थपथपाती रहतीं और बात करती रहती थीं।

इस तरह सबके दिन बड़े अच्छे और हँसी खुशी गुजर रहे थे कि एक दिन राजा की पत्नियाँ तोते के पास आयीं और उससे पूछा कि उनमें सबसे सुन्दर कौन है। तोते को कोई शक नहीं हुआ उसने उस बात को हँसी में लेते हुए कहा कि वे सब सुन्दर थीं सिवाय एक के। उसने उस एक का नाम भी बताया। इत्तफाक से वह राजा की सबसे प्यारी पत्नी थी। उसने कहा कि उसका चेहरा बहुत भद्दा था जिसको सुन कर वह बेहोश हो गयी।

जैसे ही वह होश में आयी उसने कहा कि राजा को बुलाओ सो राजा को बुलाया गया। रानी बोली — “मैं बहुत बीमार हूँ। तुम मुझे इस तोते का माँस खाने के लिये दो नहीं तो मैं मर जाऊँगी।”

राजा ने जब यह सुना तो वह बहुत दुखी हुआ पर क्योंकि वह अपनी पत्नी को भी बहुत प्यार करता था उसने तोते को मारने का हुक्म दे दिया।

बेचारी चिड़िया बोली — “राजा साहब मेहरबानी कर के मुझे छह दिन की मोहलत दीजिये कि मैं जहाँ चाहूँ वहाँ जा सकूँ। उसके बाद में वायदा करता हूँ मैं अपनी पूरी वफादारी के साथ आपके पास लौट आऊँगा फिर आप जो चाहें मेरे साथ कीजियेगा।”

राजा ने उसको इजाज़त दे दी और चेतावनी दी कि वह छह दिन के बाद जरूर वापस आ जाये। तोते को आजाद कर दिया गया और वह तुरन्त ही उड़ गया। वह अभी वहाँ से बहुत दूर नहीं गया था कि वह बारह हजार तोतों से मिला। वे सब एक ही दिशा में कहीं जा रहे थे।

राजा का तोता चिल्ला कर बोला — “रुक जाओ रुक जाओ। तुम सब लोग कहाँ जा रहे हो।”

वे बोले — “हम सब एक ऐसे देश जा रहे हैं जहाँ एक राजकुमारी हमें मोती और मिठाई खाने के लिये देती है। तुम अगर हमारे साथ चलना चाहो तो तुम भी हमारे साथ चलो। तुम भी वहाँ मोती और मिठाई खाना।”

राजा का तोता राजी हो गया और वह भी उनके साथ उस राजकुमारी के देश चल दिया। वे जल्दी ही उस टापू पर पहुँच गये और वहाँ उनका उसी तरह से स्वागत हुआ जैसा कि उन बारह हजार तोतों ने उससे कहा था।

जब सब खा पी चुके तो सारे तोते वहाँ से वापस आने के लिये उड़े पर राजा का तोता बीमार पड़ गया। वह जमीन पर लेट गया। उसको वहाँ लेटा देख कर राजकुमारी बाहर आयी और उससे पूछा
— “ओ सुन्दर चिड़िया तुम्हें क्या हुआ। क्या तुम बीमार हो? मेरे साथ आओ। मैं तुम्हारी देखभाल करूँगी। तुम जल्दी ही ठीक हो जाओगे।”

सो राजकुमारी उसको अपने महल में ले गयी। वहाँ ले जा कर उसने उसके लिये एक छोटा सा घोंसला बनाया और खुद उसकी देखभाल की। उसने उसको और मोती और और मिठाई खाने के लिये दी। मगर तोते को जैसे इस किसी चीज़ की परवाह ही नहीं थी।

तोता बोला — “राजकुमारी जी आप तो बहुत दयालु और बहुत अच्छी हैं। आप हमें मोती और मिठाई खाने के लिये देती हैं। मगर मेरे मालिक राजा साहब जिनका राज्य उत्तर से दक्षिण तक और पूर्व से पश्चिम तक फैला हुआ है वह इस टापू पर भी है हालाँकि यह आपको मालूम नहीं है वह तो मोती और मिठाई अपने मुर्गों को खिलाते हैं।

काश आप उनको जान पातीं। आप उनसे शादी कर लीजिये क्योंकि वह आपके लायक हैं और आप उनके लायक हैं राजकुमारी जी।”

तोते की बातें सुन कर राजकुमारी बहुत खुश हुई। वह दौड़ी दौड़ी अपने पिता के पास गयी और उनसे प्रार्थना की वह ऐसे राजा से एक बार मिलना चाहती है और अगर मुमकिन हो तो शादी करना चाहती है।

राजा बोला — “मैं तुम्हें इस तरह वहाँ नहीं जाने दे सकता पर हाँ मैं उस राजा को एक चिठ्ठी लिखूँगा और उसे इस तोते के हाथ भिजवा दूँगा। मैं उस राजा से कहूँगा कि वह एक निश्चित दिन शादी के लिये आ जाये।

अगर यह चिड़िया सच कहती है तो वह राजा उस दिन शादी के लिये जरूर यहाँ आयेगा। तुम चिन्ता मत करो मैं तुम्हारी शादी उस राजा से कर दूँगा।”

राजकुमारी राजी हो गयी और तोते को इस मजमून की एक चिठ्ठी लिख कर राजा के पास भिजवा दी गयी। तोता पाँचवें दिन की शाम को राजा के पास पहुँचा और वह चिठ्ठी उसको दी। राजा बोला — “तुम ठीक समय से आ पहुँचे।”

तोता ज़ोर से बोला — “राजा साहब मुझे मारना नहीं। मैंने आपका या आपके परिवार के किसी का कोई बुरा नहीं किया। आपकी रानियों ने मुझसे पूछा कि मैं उनके बारे में क्या सोचता हूँ सो मैंने उसका जवाब उन्हें दे दिया। मैंने कोई झूठ नहीं बोला राजा साहब।

मुझे यकीन हे कि आप अपनी पत्नी की किसी भी छोटी सी सनक के लिये मुझे नहीं मारेंगे। वह तो नहीं मरेगीं जबकि मैं ज़िन्दा रहूँगा। मेरे मरने से उनको ज़िन्दगी नहीं मिलेगी। और अगर ऐसा है भी तो मैं आपको उनसे भी सुन्दर पत्नी दिलवा दूँगा।

यह देखिये मैं दुनियाँ की सबसे सुन्दर राजकुमारियों में से एक राजकुमारी के पिता की यह चिठ्ठी ले कर आया हूँ जिसमें उनके लिये आपकी बस हाँ की जरूरत है।”

राजा बोला — “तुम बहुत न्यायपूर्वक बोल रहे हो और तुमने हमारे साथ हमेशा ईमानदारी का व्यवहार किया है इसलिये मैं तुम्हें बिल्कुल नहीं मारूँगा। मैं तुम्हारी इस प्रार्थना को सुनूँगा और इस राजकुमारी से शादी करूँगा। पर मैं उस टापू पर पहुचूँगा कैसे जहाँ ये लोग रहते हैं।”

तोता बोला — “आप चिन्ता न करें। मैंने यह सलाह आपको बिना सोचे विचारे नहीं दी है। अगर आप उस फकीर को हुक्म करें जिसने मुझे आपको बेचा था तो वह अपनी घोड़ी का बच्चा आपको दे देगा। उस पर बैठ कर आप इस टापू पर आसानी से जा सकेंगे।”

राजा बोला “अच्छा ठीक है।” और फकीर से उसकी घोड़ी का बच्चा भेजने के लिये कहा।

अब फकीर को तो उस घोड़ी के बच्चे के लक्षणों का पता नहीं था सो उसने उसे बिना किसी ना नुकुर के वह बच्चा राजा साहब को भेज दिया। उस बच्चे से उसे और क्या चाहिये था वह तो अब बहुत अमीर हो गया था और वह भी एक छोटी सी चीज़ के बदले में। और वह भी उस आदमी को दे कर जिसने पहले ही उसे कितनी अच्छी तरह से अमीर बना दिया था।

बच्चे के आने पर राजा उस घोड़े पर चढ़े और तोते को साथ ले कर उस टापू की तरफ चल पड़े जिस पर वह राजकुमारी रहती थी। जब राजा समुद्र के किनारे पहुँचे तो इतना बड़ा समुद्र देख कर तो वह बहुत ही नाउम्मीद हो गये और वापस जाने लगे कि वह इतना बड़ा समुद्र कैसे पार करेंगे।

उन्होंने तोते से पूछा — “इतना बड़ा समुद्र हम कैसे पार करेंगे?”

तोता बोला — “इस समुद्र को पार करने में तो कोई परेशानी ही नहीं है। आपका यह घोड़े का बच्चा कोई साधारण घोड़ा नहीं है। इस पर सवार हो कर ही आप इस समुद्र को पार कर सकते हैं। आप डरिये नहीं बस इसको पानी में हाँक दीजिये। यह पानी में भी उतनी ही आसानी से चला जायेगा जितनी आसानी से यह जमीन पर चलता है।”

राजा ने तोते की बात का विश्वास कर के उस घोड़े को पानी में हाँक दिया और वह जल्दी ही उस टापू पर पहुँच गया।

टापू के राजा ने उसका दिल से स्वागत किया और राजकुमारी तो उसको देख कर बहुत खुश हुई। राजा भी राजकुमारी को देख कर बहुत खुश हुआ और देखते ही उसे प्यार करने लगा। राजा ने राजकुमारी के पिता से कहा कि क्या वह अपनी बेटी की शादी उससे जल्दी से जल्दी कर देगा।

अब क्योंकि सब मन में एक ही बात थी तो जल्दी ही शादी हो गयी। जैसे ही सारी रस्में खत्म हुईं तो राजा और राजकुमारी दोनों अपने घोड़े पर सवार अपने घर वापस चल दिये। तोता उनके आगे आगे उनको रास्ता दिखाता हुआ उड़ा।

वे उसी रास्ते से वापस नहीं गये जिस रास्ते से वे वहाँ आये थे। इस जाने वाले रास्ते में एक ऐसा टापू पड़ता था जिस पर कोई नहीं रहता था। उस टापू को देख कर राजा बोला कि वह बहुत थक गया था और थोड़ी देर वहाँ आराम करना चाहता था। तोता बोला — “नहीं राजा साहब यहाँ नहीं। यहाँ बहुत खतरा है।”

राजा बोला — “कोई बात नहीं पर मैं अब आराम किये बिना आगे नहीं जा सकता। मैं यहाँ थोड़ा सो लूँ तब यहाँ से आगे चलेंगे।”

सो राजा और उसकी पत्नी दोनों उस टापू पर उतर गये और सो गये। तोता वहीं एक पेड़ पर बैठ गया और उनका पहरा देने लगा। एक घंटे के अन्दर ही एक पानी का जहाज़ उधर से गुजरा। उस जहाज़ के कप्तान ने देखा कि उस टापू पर दो आदमी सो रहे थे तो वह उनको देखने के लिये उस टापू पर उतर गया।

रानी की सुन्दरता देख कर वह उस पर मोहित हो गया और उसको उठा कर वह अपने जहाज़ पर ले गया। वह घोड़े के बच्चे को भी ले गया बस राजा को वहीं अकेला सोता छोड़ गया। तोता पेड़ पर बैठा बैठा यह सब देख रहा था पर वह राजा को को इस बात से सावधान करने से डर रहा था ताकि कहीं ऐसा न हो कि वह कप्तान उसे गोली मार दे। इस तरह वह जहाज़ रानी और घोड़े को ले कर चलता बना।

जब वे चले गये तो तोते ने राजा को उठाया। राजा उठते ही बोला — “ओह मेरे तोते काश मैंने तुम्हारी सुनी होती और मैं यहाँ आराम करने के लिये न रुका होता। अब मैं क्या करूँ। यहाँ तो मेरे लिये खाना भी नहीं है। यहाँ तो कोई ऐसा जानवर भी नहीं है जो मुझे इस समुद्र के पार ले जाये। तुम्हीं बताओ मेरे तोते कि मैं अब क्या करूँ। तुम्हीं मेरी कुछ सहायता करो।”

तोता बोला — “राजा साहब अब आपके लिये बस एक ही रास्ता बचा है। इस पेड़ को काट कर इसका तना पानी में फेंक दो और फिर इस तने पर चढ़ कर भगवान जिधर चाहे उधर ही चले जाओ। इसके अलावा मैं और कोई रास्ता नहीं जानता।”

यह सुन कर राजा ने पेड़ काटा और उसको काट कर उसका तना पानी में डाल कर उस पर बैठ गया और अपने आपको भगवान के हवाले कर दिया।

भगवान की कृपा से उसी समय एक गरुड़ उड़ता हुआ उधर आया जो उस समय वहीं पास में उड़ रहा था। उसने उस पेड़ को समुद्र में तैरता हुआ देखा तो वह उसको अपनी चोंच में दबा कर ले उड़ा। वह उसको ले कर एक जंगल में चला गया और वहाँ जा कर उसे नीचे गिरा दिया। इस तरह राजा बच गया।

तोता भी उसके पीछे पीछे उड़ता आ रहा था। वह राजा से बोला — “राजा साहब अब आप यहीं ठहरिये। यहाँ से कहीं जाना नहीं। मैं जाता हूँ और रानी जी और घोड़े की खोज करता हूँ और फिर वापस आता हूँ।”

राजा ने उससे वायदा किया कि वह वहीं रहेगा कहीं नहीं जायेगा और तोता रानी और घोड़े को ढूँढने निकल गया। काफी इधर उधर घूमने के बाद उसको रानी मिल गयी। कप्तान उसको अपने घर ले गया था और वहाँ वह उसके सईस की हैसियत से रह रही थी।

जैसे ही उसने तोते को देखा तो वह खुशी से चिल्ला पड़ी —
“ओ तोते तुम कहाँ थे और राजा साहब कहाँ हैं। वह ज़िन्दा तो हैं न।”

तोते ने उसे सारा हाल बताया तो राजकुमारी बोली — “तोते तुम यहाँ से तुरन्त ही चले जाओ और जा कर उन्हें मेरा सारा हाल बताओ। ये जवाहरात साथ में लेते जाओ शायद उन्हें खाना खरीदने के लिये जरूरत पड़े।

उनसे यहाँ जल्दी आने के लिये कहना और कहना कि वह यहाँ आ कर इस कप्तान के घर में सईस की नौकरी कर लें। तब हम यहाँ से घोड़े पर बच निकलने की कोशिश कर सकेंगे। एक बार हम उस घोड़े पर बैठ गये तो फिर चाहे हम जमीन पर हों या समुद्र में हमें कोई नहीं रोक सकेगा।”

यह सुन कर तोता वहाँ से जल्दी से जल्दी उड़ गया और राजा के पास पहुँच कर उसको रानी का सारा हाल बताया। उसने उसको सलाह दी कि वह जल्दी से जल्दी रानी के पास चले और उसको उस कप्तान के चंगुल से छुड़ाये।

राजा तैयार हो गया और कुछ ही दिनों में रानी के पास पहुँच गया। वे दोनों एक दूसरे को देख कर बहुत खुश हुए। वे लोग तो एक दूसरे से मिलने की आशा ही छोड़ चुके थे पर भगवान उन पर बहुत दयालु था जो उसने उन्हें फिर से मिला दिया।

उसी दिन शाम को राजा और रानी दोनों अपने घोड़े के बच्चे पर चढ़े और शहर से बाहर चल दिये। उनका तोता उन्हें रास्ता दिखा रहा था। जल्दी ही वे राजा के देश पहुँच गये। वहाँ उनके लोगों ने उनका दिल से स्वागत किया।

उसके बाद राजा और रानी अपने आखिरी दिनों तक खुशी खुशी रहे। तोते को उन्होंने अपना खास वजीर बना लिया। उसने उनके राज्य की खुशहाली को बढ़ाने में उनका बहुत साथ दिया।

(साभार सुषमा गुप्ता जी, जिन्होंने लोक-कथाओं पर उल्लेखनीय काम किया है.)

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