सूरज के बच्चे : इंका सभ्यता की लोक-कथा

The Children of the Sun : Lok-Katha (Incas)

जब सूरज देवता ने अपनी बनायी दुनियाँ की तरफ नीचे देखा तो उन्होंने नदियों में चमकता हुआ साफ पानी नहीं देखा, उन्होंने चमकीली हरी घास से ढके पहाड़ भी नहीं देखे। उनको तो केवल आदमी ही दिखायी दिये और उनको देखने से भी उनके चेहरे पर मुस्कुराहट भी नहीं आयी। क्यों?

सूरज देवता बुदबुदाये — “उफ़ ये लोग बेचारे कितने दुखी हैं। ये लोग धरती पर जंगली जानवरों की तरह घूम रहे हैं। यह तो अच्छी बात नहीं है।

मैंने ऐसा तो नहीं चाहा था कि ये लोग इस तरह से रहें। मुझे अपने इन लोगों को अच्छी ज़िन्दगी बिताना सिखाने के लिये कोई न कोई तरीका जरूर सोचना चाहिये।”

सूरज देवता ने दुखी हो कर अपना सिर हिलाया और फिर बोले — “मुझे इन लोगों के लिये कुछ न कुछ जरूर सोचना चाहिये। मैं क्या करूँ?”

और फिर उनको अपने आदमियों के लिये कोई तरकीब सोचने में देर नहीं लगी। थोड़ी ही देर में उनके चेहरे पर एक मुस्कुराहट दौड़ गयी।

उन्होंने सोचा — “मुझे इस मामले में अपने एक बेटे और एक बेटी की सहायता लेनी ही पड़ेगी।” सो उन्होंने अपनी बेटी मामा और अपने बेटे मैन्को को बुलाया।

उन्होंने उनसे कहा — “मेरे बच्चों, मैंने तुम्हारे लिये एक प्लान सोचा है। मैं चाहता हूँ कि तुम लोग धरती पर जाओ और वहाँ रहने वालों को यह सिखाओ कि वे अपनी ज़िन्दगी किस तरह से और अच्छी बना सकते हैं।”

तीनों ने ऊपर आसमान से नीचे धरती की तरफ देखा तो सूरज देवता बोले — “मैं इनको रोशनी और गर्मी देता हूँ। मैं इनकी रक्षा करता हूँ। मैं दिन में इनके खाने को उगाने में सहायता करता हूँ और रात में आराम देता हूँ।

मैं धरती पर अपने इन बच्चों को ज़िन्दगी देने वाला हूँ पर हर दिन जब भी मैं आसमान से हो कर गुजरता हूँ तब तब मैं उनको दुखी ही देखता हूँ। इन लोगों को पता ही नहीं है कि इनको अच्छी तरह से कैसे जीना चाहिये।”

मामा और मैन्को ने पूछा — “पर हम इनकी सहायता किस तरह कर सकते हैं पिता जी?”

“मेरे बच्चों, मैं चाहता हूँ कि तुम लोग जा कर इनको पढ़ाओ। ये लोग बे पढ़े लिखे हैं। इस दुनियाँ में ठीक से जीने के लिये तुम इनको न्याय और दया सिखाओ।

इनको आपस में मिल कर रहना सीखना चाहिये बजाय इसके कि ये लोग जानवरों की तरह एक दूसरे से लड़ते रहें। जैसे मैंने तुमको सिखाया है उसी तरह से अब तुम जा कर इनको सिखाओ।”

मामा और मैन्को धरती पर जाने के लिये तैयार हो गये। जब उनके जाने की सब तैयारियाँ हो गयीं तो सूरज भगवान उनको आसमान के दरवाजे तक ले कर आये।

उन्होंने उनको एक सुनहरी डंडा दे कर कहा — “मैं तुम लोगों को यह सुनहरी डंडा दे रहा हूँ। इस डंडे को वहाँ इस्तेमाल करना जब तुमको यह मालूम करना हो कि तुमको कुज़्कू, यानी सूरज का शहर, कहाँ बनाना है।

जब तुम धरती पर घूम रहे होगे तो हर रात इस डंडे को धरती में गाड़ना। अगर यह डंडा धरती में गड़ जाये तो उससे तुम्हें पता चल जायेगा कि वहाँ की जमीन बहुत अच्छी है और वहीं तुमको कुज़्कू बसाना है। मैं चाहता हूँ कि वहीं मेरा शहर बनाया जाये।”

मामा और मैन्को धरती पर आये तो सबसे पहले वे टिटीकाका झील के पास उतरे। मामा उस झील को देख कर चिल्लायी — “भैया देखो न, यह जगह कितनी सुन्दर है। मुझको तो लगता है कि यही वह जगह है जहाँ हमको अपना शहर बनाना चाहिये।”

पर जब मैन्को ने वह डंडा वहाँ धरती में घुसाने की कोशिश की तो वहाँ तो वह उसके अन्दर घुसा ही नहीं।

मैन्को बोला — “नहीं बहिन, यह वह जगह नहीं है। यहाँ तो हमारा यह डंडा घुस ही नहीं रहा है। हमको अभी उस जगह को देखते रहना चाहिये जहाँ यह डंडा जमीन में घुसेगा।”

हर शाम वे दोनों उस डंडे को धरती में घुसा घुसा कर देखते रहे पर वह डंडा कहीं भी नहीं घुसा। फिर वे उस झील वाली जगह छोड़ कर पहाड़ों की तरफ बढ़ गये।

जैसे जैसे वे पहाड़ पर ऊँचे और ऊँचे चढ़ते गये तो वहाँ रहने वाले लोग कम होते गये। पर वह डंडा कहीं भी घुस कर नहीं दिया।

एक दिन दोनों भाई बहिन लोगों की नजरों से छिपी हुई एक घाटी में आ निकले। वहाँ कोई नहीं रहता था।

उसको देख कर मामा बोली — “देखो न भैया, यह जगह भी कितनी हरी भरी है। मुझे लग रहा कि यही वह जगह होगी जहाँ हम अपना शहर बनायेंगे। ज़रा पिता जी का दिया हुआ डंडा यहाँ घुसा कर देखो तो।”

मैन्को को भी लगा कि शायद वही वह जगह होगी जहाँ हम अपना शहर बसा सकते हैं सो वह बोला — “हाँ लगता तो कुछ ऐसा ही है कि यही वह जगह है। देखो हमारे पिता जी भी हमारे ऊपर चमक रहे हैं।

मुझको लगता है कि हम उस पहाड़ी की चोटी पर शाम तक पहुँच जायेंगे तब हम इस डंडे को वहीं गाड़ कर देखेंगे कि वहाँ यह गड़ता है या नहीं।”

शाम तक वे लोग उस पहाड़ी की चोटी पर पहुँच गये। वहाँ की जमीन वाकई बहुत ही अच्छी थी सो जब उन्होंने अपना वह सुनहरा डंडा वहाँ की जमीन में घुसाया तो वह तुरन्त ही वहाँ अन्दर गहरे तक चला गया और न केवल वह वहाँ अन्दर चला गया बल्कि उसके अन्दर जा कर गायब भी हो गया।

मामा बोली — “हमको अपना कुज़्कू यहीं बनाना है।”

मैन्को बोला — “और फिर यहीं से हम अपने पिता की इच्छा के अनुसार लोगों पर राज करेंगे।”

फिर दोनों ने मिल कर पहाड़ और मैदान ढूँढे और आदमियों को वहाँ ला कर कुज़्कू में बसाया। वहाँ जो कोई भी मामा और मैन्को को देखता उनके पीछे चल देता।

वे ही इनका सभ्यता के पहले आदमी थे। फिर जैसे जैसे उनके पिता ने उनको सिखाया था उसी तरह उन्होंने धरती के लोगों को न्याय और दया और साथ साथ रहना सिखाया।

उसके बाद जब भी सूरज देवता आसमान से हो कर जाते और अपने लोगों को नीचे धरती पर देखते तो उनके चेहरे पर एक मुस्कुराहट खेल जाती।

1. इंका साम्राज्य, पूर्व-कोलंबियाई अमेरिका का सबसे बड़ा साम्राज्य, कोलंबिया से चिली तक एंडीज़ पर्वतमाला के साथ लगभग 2,500 मील लंबा था और पश्चिम से पूर्व तक, तटीय रेगिस्तान अटाकामा से लेकर भाप से भरे अमेज़ोनियन वर्षावन तक फैला हुआ था। इसका केंद्र कुज़्को, आधुनिक पेरू था। इसका उदय 13वीं शताब्दी में हुआ था।

2. Cuzco - the City of the Sun.

(साभार सुषमा गुप्ता जी, जिन्होंने लोक-कथाओं पर उल्लेखनीय काम किया है.)

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