बच्चा जिसे कोई नहीं चाहता था : चीनी लोक-कथा
The Child No One Wanted : Chinese Folktale
यह हजारों साल पहले की बात है जब चीन में लोग हल चलाना या खेती करना नहीं जानते थे। उन दिनों वे लोग केवल शिकार पर ही ज़िन्दा रहते थे।
हर गर्मी के मौसम में वे शिकार की पार्टियाँ बनाते और जंगलों और पहाड़ों पर शिकार करने का हफ्ते भर का प्रोग्राम बनाते। अगर उस समय में उनके ये प्रोग्राम अच्छे रहते और काम करते तो उस शिकार से उनकी सारी बरसात और सारे जाड़े निकल जाते। उनका यह भी विश्वास था कि उनकी किस्मत स्वर्ग के देवता पर निर्भर करती थी इसलिये वे सुबह शाम स्वर्ग के देवता की पूजा जरूर करते थे।
उस समय बादशाह की राजकुमारी दस साल की थी जिसका नाम था चिआँग युआन । वह बहुत होशियार थी, मेहनती थी और अपना काम बहुत ध्यान से करती थी।
एक सुबह जब वह जंगली बंजर पहाड़ी के पास स्वर्ग के देवता की पूजा कर रही थी तो उसने वहाँ पैरों के कुछ निशान देखे जो वहाँ तक जा रहे थे जहाँ तक उसकी नजर जाती थी।
पैरों के उन निशानों की बहुत बड़ी लम्बाई और चौड़ाई देख कर उसको बहुत आश्चर्य हुआ कि इतनी बड़ी क्या चीज़ हो सकती थी जिसके पैरों के निशान इतने बड़े हों।
उसने झुक कर उन पैरों के साइज़ की अपने छोटे छोटे पैरों के साइज़ से तुलना की तो उसका तो पूरा का पूरा पैर उस पैर के निशान के केवल अँगूठे में ही आ गया।
यह देख कर वह कुछ घबरा तो गयी पर डरी नहीं। उसने उन निशानों के पीछे पीछे चलना शुरू किया तो वे पहाड़ के ऊपर जा रहे थे फिर वहाँ से उतर कर नीचे घाटी में जा रहे थे।
वे निशान अचानक एक अकेली पड़ी चट्टान पर आ कर रुक गये जिस पर जंगली घास उगी हुई थी। उसने वहाँ किसी ऐसी छिपने की जगह ढूँढने की कोशिश की जहाँ उसको कोई देख न सके पर वहाँ उसको कोई भी ऐसी जगह दिखायी ही नहीं दी जहाँ वह छिप सकती। फिर भी वह एक जगह छिप कर खड़ी हो गयी। जब वह सन्तुष्ट हो गयी कि वहाँ वह सुरक्षित थी तो वह उस चट्टान के सहारे बैठ गयी और सो गयी। पर एक बहुत ही साफ सपना देख कर वह जल्दी से उठ भी गयी।
उस सपने में एक हिरन उससे कह रहा था — “मैं स्वर्ग का देवता हूँ। मैंने हर सुबह और हर शाम तुम्हारी प्रार्थनाओं को सुना है। तुम बहुत छोटी हो पर तुम्हारे अन्दर उतनी हिम्मत है कि जो काम मैं तुमको देने वाला हूँ वह तुम ठीक से कर पाओगी।”
सपने में ही चिआँग युआन उसके सामने झुक गयी और स्वर्ग के देवता से पूछा कि वह उससे क्या कहना चाहते हैं।
देवता ने कहा — “तुमको जल्दी ही पता चल जायेगा।”
और यह कह कर वह देवता गायब हो गये। चिआँग युआन ने देवता की एक झलक देखने की कोशिश भी की पर वह केवल उनकी छाया ही देख सकी क्योंकि वह बहुत चमकदार थे। उनकी बहुत चमकीली रोशनी से अपनी आँखों को बचाने के लिये उसको अपनी आँखों पर हाथ रखने पड़े। उसने उनको पुकारा भी पर वह चले गये थे।
वह जब जागी तब भी उसके हाथ उसकी आँखों पर उनको रोशनी से बचाने के लिये रखे हुए थे।
अब तक अँधेरा होने वाला हो रहा था। जहाँ वह लेटी हुई थी वहाँ ठंडी हवा उसके शरीर को काटती हुई चल रही थी। वह वहाँ से पैरों के उन बड़े बड़े निशानों के सहारे सहारे तारों की रोशनी में रास्ता देखती हुई वापस घर चल दी।
उस सपने के बाद से वह अपने अन्दर एक नयी ताकत महसूस करने लगी थी। और आगे आने वाले दिनों में तो वह सपना बजाय धुँधला पड़ने के और भी ज़्यादा साफ होता गया।
देवता के उससे बात करने के ठीक नौ महीने बाद उसने एक बेटे को जन्म दिया। पर क्योंकि उसने महल में अभी तक किसी से भी शादी नहीं की थी बादशाह से ले कर नौकर तक सभी ने इसको एक बुरा शकुन समझा।
इस बच्चे को बुरा समझा गया और राजकुमारी के अलावा कोई और दूसरा इस बच्चे को छूने को भी तैयार नहीं था क्योंकि उनका विश्वास था वह बच्चा जरूर ही उनके ऊपर कोई आफत ले कर आयेगा।
चिआँग युआन अपने बच्चे के लिये लड़ने के लिये अभी बहुत छोटी थी और बादशाह को उसको छोड़ने के लिये मना भी नहीं कर सकी।
उसके परिवार वाले बच्चे को ले कर एक ठंडे और एक ऐसी जगह चले गये जहाँ कोई नहीं रहता था। और उस बच्चे को वहाँ छोड़ कर वे लोग घर चले आये।
वहाँ उसको मरने के लिये छोड़ने से पहले उन्होंने उसका नाम ची21 रख दिया। ची एक ऐसा नाम है जो चीन में किसी ऐसी बहुत ही बेकार की चीज़ को दिया जाता है जिसको फेंक देना चाहिये। उनको नहीं मालूम था कि जहाँ उन्होंने उस बच्चे को छोड़ा था वहीं पास में जानवरों का एक झुंड चर रहा था।
जब ची वहाँ अपनी पहली रात को उस ठंड में लेटा हुआ था तो कुछ बैल उसके पास उसको ठंड से बचाने के लिये आ कर लेट गये और गायों ने उसको दूध पिलाया।
चार दिन के बाद महल से शिकारियों का एक झुंड वहाँ शिकार करने के लिये आया तो उन्होंने एक बच्चे की रोने की आवाज सुनी। उन्होंने जा कर देखा तो उनको यह देख कर बड़ा आश्चर्य हुआ कि जो बच्चा उनके राज्य पर आफत लाने वाला था वह तो वहीं पर पड़ा था और अभी तक ज़िन्दा था।
उन्होंने सोचा कि वे उसको मार कर ही रहेंगे सो उन्होंने उसको एक चमड़े के थैले में रखा और उसको इतने घने जंगल में ले गये जहाँ पर सूरज की रोशनी वहाँ के पेड़ों के पत्तों में से भी छन कर नहीं आ सकती थी।
वहाँ उन्होंने ची को नम पत्तों पर लिटा दिया जहाँ जहरीले साँपों के आने की उम्मीद बहुत ज़्यादा थी क्योंकि वे साँप सड़ी हुई पत्तियों पर ही ज़िन्दा रहते थे।
स्वर्ग के देवता ने ची की देखभाल की। उस जंगल के किनारे पर ही एक लकड़हारा लकड़ी काट रहा था। उसने किसी बच्चे के रोने की आवाज सुनी तो वह तेल का लैम्प लाने के लिये तुरन्त ही घर दौड़ा गया और जब उसे ले कर वह वापस आया तो वहाँ उसने एक खोखले पेड़ के पास एक बच्चा लेटा हुआ देखा।
वह बच्चे को उठाने के लिये बढ़ा ही था कि उसके उस बच्चे को उठाने से पहले ही उस पेड़ पर से एक अजगर उतरा और उस बच्चे की तरफ लालची निगाहों से देखने लगा। वह अपनी लपलपाती जीभ बार बार उस बच्चे की तरफ बढ़ा रहा था।
वह अजगर करीब करीब पन्द्रह मिनट तक उस बच्चे पर हमला करने के लिये उसको धमकाता रहा पर कोई अनजानी ताकत उस बच्चे को बचाती रही और वह अजगर उससे दूर ही रहा। इसी समय एक चीता वहाँ आया तो वह अजगर कुंडली मार कर एक शाख पर बैठ गया। पर अब चीते की बारी थी।
भूखा चीता भी उस बच्चे की तरफ भूखी नजरों से देखता रहा और अपने होठ चाटता रहा पर उसकी भी बच्चे की तरफ बढ़ने की हिम्मत नहीं हुई। आखिर वह भी वहाँ से खाने की खोज में कहीं और चला गया।
इस सारे समय में वह लकड़हारा झाड़ियों में छिपा रहा और चुपचाप सब देखता रहा। अब वहाँ कोई जानवर नहीं था और जंगल भी शान्त था तो वह बच्चे की तरफ बढ़ा, उसे उठा कर अपने बुने हुए कम्बल में लपेटा और उसे घर ले गया।
पर उस लकड़हारे के घर में भी बच्चा खतरे से बाहर नहीं था। इस अजीब बच्चे की खबर बादशाह तक भी पहुँची। बादशाह को बच्चे के बारे में अभी भी यही विश्वास था कि वह बच्चा उनके लिये ठीक नहीं है सो उसने अपने सिपाहियों को उस लकड़हारे के घर भेजा कि वे उस बच्चे को वहाँ से उसके पास ले आयें।
बादशाह के चौकीदार बच्चे को मारने से डरते थे कि कहीं ऐसा न हो कि उन पर कोई बुरा जादू पड़ जाये या उन पर कोई आफत आ जाये सो अबकी बार उन्होंने उसको एक बहुत ही ठंडी नदी के किनारे छोड़ दिया। उनको यकीन था कि रात होने से पहले पहले तो वह वहाँ जम ही जायेगा।
नदी के पास रहने वाली चिड़ियें और जानवर सभी ठंड से बचने के लिये अपने अपने घरों में दुबके बैठे थे। और वहाँ और भी कोई ऐसा आदमी नहीं था जो उस बच्चे की देखभाल करता। सो एक बार फिर स्वर्ग के देवता ने ही उसकी देखभाल की।
समुद्री चिड़ियों का एक झुंड वहाँ उड़ता हुआ आया जहाँ वह बच्चा लेटा हुआ था। हालाँकि उस बच्चे की सफेद पोशाक बर्फ के रंग में बिल्कुल मिल रही थी फिर भी उन चिड़ियों की तेज़ आखों ने ची को देख ही लिया।
वे चिड़ियें उड़ कर नीचे आ गयीं और अपने पंखों से उसको ढक लिया। सारी रात वे उसको अपने पंखों के नीचे गर्मी देती रहीं।
वे तो उसके पास दूसरी रात भी रहने के लिये तैयार थीं पर वे एक तीर से डर गयीं जो एक शिकारी ने उनकी तरफ चला दिया था। यह देख कर कि उनको कोई आसानी से मार सकता था वे वहाँ से उड़ कर दूसरी जगह चली गयीं।
जब वे समुद्री चिड़ियें वहाँ से चली गयीं तो हवा बहुत ज़ोर से चलने लगी और ची को ठंड लगने लगी। वह बहुत ज़ोर से रोने लगा।
जिस शिकारी ने उन समुद्री चिड़ियों पर तीर चलाया था उसने बच्चे के रोने की आवाज सुनी तो वह वहाँ आया जहाँ बच्चा लेटा हुआ था। उसने देखा कि वहाँ तो वाकई एक बहुत ही छोटा बच्चा बर्फ में लेटा हुआ है।
उसको लगा कि किसी ने उस बच्चे को वहाँ मरने के लिये छोड़ दिया है सो उसने उसको उठाया और वह भी उसको अपने घर ले गया।
उसने राजकुमारी के उस बच्चे के बुरे शकुन के बारे में कुछ भी नहीं सुना था सो वह बच्चा उसके घर में रह कर उसके अपने बच्चों के साथ उसके अपने बच्चे की तरह से पलने बढ़ने लगा।
बहुत साल बाद ची जब बड़ा हो गया तो वह अपने गाँव के आस पास की तेज़ हवा से भरी पहाड़ियों पर और खाली घाटियों में अकेला काम करता था। अपने तजुर्बे से उसको पता था कि वहाँ के कौन से पौधे जहरीले थे और कौन से नहीं।
उसने वहाँ बीज बोना और फसल उगाना भी सीखा। उसको पता था कि कब बीज बोना चाहिये और कब जमीन को ऐसे ही छोड़ देना चाहिये। इस तरह से कई साल काम करने के बाद उसने वहाँ की खाली जमीन को हरी भरी लहलहाती जमीन में बदल दिया।
वहाँ का हर आदमी चाहे वह अक्लमन्द हो या बूढ़ा सभी ची से इस खेती को सीखने के लिये उसके पास आने लगा। उसकी यह जानकारी एक प्रान्त से दूसरे प्रान्त तक फैलने लगी और बहुत जल्दी ही सारे प्रान्तों में दालें, चावल, मटर, गेहूँ और तरबूज आदि होने लगे।
ची से यह सब सीखने के लिये लोग हफ्तों तक चलने के लिये तैयार थे। जल्दी ही वह स्वर्ग और धरती के बीच की एक कड़ी के नाम से मशहूर हो गया।
अब रोज ही गाँव के लोग स्वर्ग के देवता की पूजा करने लगे और उनको भेंट चढ़ाने लगे। जब वे चावल उबालते तो स्वर्ग के देवता को धन्यवाद देने के रूप में उसकी भाप को आसमान तक जाने देते।
बाद में ची ने अपना गाँव छोड़ दिया और देश में खेती करते हुए, पढ़ाते हुए और अपना परिवार बनाते हुए घूमने लगा। और कई साल बाद चीन में जब चू साम्राज्य आया तो हर साल ची की देखभाल में वहाँ बहुत अच्छी फसलें उगने लगीं।
Chu Empire – 1030 BC–223 BC
(साभार सुषमा गुप्ता जी, जिन्होंने लोक-कथाओं पर उल्लेखनीय काम किया है.)