एक लड़का और एक जलपरी : स्वीडिश लोक-कथा

The Boy and the Water Sprite : Folktale Sweden

एक बार की बात है कि स्वीडन देश के एक गाँव में तीन लड़के थे जो अपने माता पिता के मरने को बाद अकेले रह गये थे।

हालाँकि उनके माता पिता उनके लिये कुछ ज़्यादा छोड़ कर नहीं गये थे पर फिर भी जो कुछ भी वे छोड़ गये थे अगर वे उसको ठीक से बाँट लेते तो वह उनके लिये काफी था।

पर बड़े वाले दो भाई उसे बाँटना नहीं चाहते थे। सबसे बड़े भाई ने रहने के लिये घर ले लिया और दूसरे भाई ने घर के अन्दर का सारा सामान ले लिया।

उन दोनों को जो कुछ पैसा मिला वह उन दोनों ने बाँट लिया और साथ में उनके पिता के पास जो जमीन का टुकड़ा था वह भी उन दोनों ने ले लिया और अपने छोटे भाई को उसे कुछ भी देने से मना कर दिया।

इस तरह उन दोनों बेरहम भाइयों ने अपने सबसे छोटे भाई को अपने पिता की जायदाद से, उसके पैसे से, उसके घर से सबसे दूर कर दिया।

तो उसने अपने भाइयों से पूछा — “तुम लोगों ने तो सब कुछ ले लिया अब मैं कैसे रहूँगा?”

उसका सबसे बड़ा भाई बोला — “तुम तो होशियार हो। लो इसको लो और इससे गुजारा करो।” कह कर उसने घर के एक कोने पड़ा पाया एक रस्सा दरवाजे के बाहर फेंक दिया।

छोटे भाई ने सोचा कि यह रस्सा तो बड़े काम की चीज़ है सो उसने वह रस्सा उठाया और उसको ले कर वहाँ से चल दिया।

चलते चलते वह एक जंगल में आया। वहाँ उसने उस रस्से के एक हिस्से को खोल कर उसकी कई छोटी रस्सियाँ बनायीं। फिर उसने उनको एक खास तरीके से जोड़ कर एक छोटी रस्सी बनायी, एक बीच के साइज़ की रस्सी बनायी और एक लम्बी रस्सी बनायी।

वह लड़का छोटी वाली रस्सी से छोटे साइज़ का फन्दा बना कर छोटी साइज़ की गिलहरी पकड़ता। बीच के साइज़ की रस्सी का बीच का फन्दा बना कर बीच के साइज़ के जानवर पकड़ता जैसे कि खरगोश।

फिर वह लड़का जंगल में एक झील के किनारे पहुँच गया। वहाँ उसने एक अँधेरी गुफा में एक बड़ा भालू जाता देखा तो उसने अपनी लम्बी वाली रस्सी निकाली और भालू पकड़ने के लिये उसका एक बड़े साइज़ का जाल बनाने बैठ गया।

जैसे ही वह बड़ा जाल बनाने के लिये झील के पास बैठा कि एक जलपरी पानी में से बाहर निकली तो उसने एक लड़के को वहाँ बैठे देखा। उसने उसको देखा, और देखा, और देखा पर वह यह नहीं जान सकी कि वह लड़का कर क्या रहा था।

वह बूढ़ी जलपरी पानी में से बाहर निकल कर उस लड़के के पास आने और उससे बात करने के लिये या उसको खाने के लिये काफी बड़ी और काफी भारी थी। और वह लड़का पानी के बाहर बैठा था।

सो वह बूढ़ी जलपरी फिर से पानी के अन्दर चली गयी और वहाँ से उसने अपने बेटे को यह देखने के लिये भेजा कि उसका बेटा वहाँ जा कर यह देख कर आये कि वह लड़का उस रस्सी से क्या कर रहा था।

उसका वह बेटा इतना छोटा था कि वह झील के किनारे आसानी से घूम सकता था सो वह झील के बाहर निकला और उस लड़के से पूछा कि वह रस्सी से क्या कर रहा था।

इस पर लड़के ने उसको चिढ़ाया कि वह एक ऐसा जाल बना रहा था जिससे कि वह पूरी झील को बाँध सके। इससे फिर कोई न तो उसकी इजाज़त के बिना झील के अन्दर जा सकेगा और न ही उसकी इजाज़त के बिना झील के बाहर आ सकेगा।

जलपरी का बेटा तुरन्त ही झील में वापस चला गया और जो कुछ उस लड़के ने उससे कहा था अपने पिता को जा कर बताया।

पिता को यह सुन कर चिन्ता हुई वह बोला — “अगर कोई झील में आ जा नहीं सकेगा तो हम खाना कैसे खायेंगे। तुम ऊपर जाओ और उस लड़के से कहना कि वह तुमको पेड़ के ऊपर दौड़ कर पकड़े।

जब तुम पेड़ के ऊपर पहुँच जाओ तो उसके वहाँ आने का इन्तजार करना और जब वह ऊपर आ कर तुमको पकड़े तो उसको झील में धक्का दे देना। हम उसको नाश्ते में खा लेंगे।”

जलपरी के बेटे ने वैसा ही किया जैसा कि उसके पिता ने उससे करने को कहा था। वह वापस लड़के के पास गया और उसको पेड़ पर चढ़ने और उसको पकड़ने के लिये ललकारा।

लड़का बोला कि अभी उसको बहुत काम है इसलिये वह खुद तो अभी उसके साथ दौड़ नहीं सकता पर उसका एक छोटा सा दोस्त था जो उसके साथ दौड़ सकता था।

इतना कह कर उसने अपने जाल में फँसी एक छोटी सी गिलहरी खोली और उसको बोला — “भाग़ गिलहरी भाग़ एक दो तीन .. ..।”

वह गिलहरी तुरन्त भाग कर पास वाले पेड़ पर चढ़ गयी और जलपरी का वह बेटा तो वहीं का वहीं खड़ा रह गया। वह बेचारा फिर अपने पिता के पास गया और जो कुछ हुआ था कह सुनाया।

यह सुन कर उसके पिता ने उससे कहा — “तुम फिर वापस जाओ और उससे फिर अपने साथ दौड़ लगाने को कहो और जब वह तुम्हारे साथ दौड़ते दौड़ते थक जाये तो उसको झील में धकेल देना। फिर हम उसको थोड़ा थोड़ा कर के खा सकते हैं।”

जलपरी का बेटा फिर चल दिया और उसने फिर उस लड़के को दौड़ के लिये ललकारा।

वह लड़का बोला — “मैंने तुमसे कहा न कि मुझे अभी बहुत काम है इसलिये मैं तुम्हारे साथ अभी नहीं दौड़ सकता पर मेरा एक और छोटा सा दोस्त है जो तुम्हारे साथ दौड़ सकता है।”

कह कर उसने अपना पकड़ा हुआ एक खरगोश खोला और उसको उस लड़के के साथ दौड़ने के लिये भेज दिया — “भाग़ खरगोश भाग़ एक दो तीन .. ..।”

और खरगोश तो जैसे ही खुला वैसे ही वह तेज़ी से भाग लिया। अब क्या था खरगोश आगे आगे और वह लड़का उसके पीछे पीछे। बहुत जल्दी ही वह लड़का खरगोश से बहुत पीछे रह गया।

यह सब देख कर तो वह लड़का बहुत परेशान हुआ। वह फिर वापस अपने पिता के पास पहुँचा और जा कर पिता को सारा हाल सुनाया। पिता ने कहा कि अबकी बार जा कर तुम उसको कुश्ती के लिये ललकारो और क्योंकि तुम मेरे बेटे हो इसलिये तुम बहुत ताकतवर हो। तुम जल्दी ही उसको जमीन पर पटक दोगे।

जब तुम उसको जमीन पर पटक दो तो उसको उठा कर झील में डाल देना। फिर हम उसको साथ साथ खा लेंगे। यह सुन कर वह लड़का फिर झील के ऊपर आया और उस लड़के को अबकी बार कुश्ती के लिये ललकारा।

वह लड़का कुछ गुस्से में बोला — “मैंने तुमसे कितनी बार कहा कि मुझे अभी बहुत काम है इसलिये मैं खुद तुम्हारे साथ कुछ नहीं कर सकता। मेरे दादा जी उस गुफा में सो रहे हैं तुम जा कर उनको कुश्ती के लिये ललकार सकते हो।

पर कुश्ती लड़ने से पहले तुमको उन्हें जगाना पड़ेगा। उस गुफा में चले जाओ और वहाँ जा कर उनके सिर पर ज़ोर से मारना। बस वह उठ जायेंगे।”

वह जलपरी का बेटा उस अँधेरी गुफा में गया और एक बड़ी सी परछाईं जमीन पर पड़ी देखी। उसने उससे कहा — “आओ कुश्ती लड़ते हैं।” पर वह परछाईं तो वहाँ खर्राटे भरती रही बोली नहीं।

उसने उससे फिर कहा — “आओ न कुश्ती लड़ते हैं।” पर वह परछाईं फिर भी वहाँ खर्राटे भरती रही उठी ही नहीं। इस पर उसने उसका हाथ पकड़ कर उसके कान पर मारा। इससे वह भालू जाग गया और अपने पिछले पैरों पर खड़ा हो गया। उसने उस जलपरी के बेटे को एक ही धक्के में गुफा के बाहर जंगल के पार वापस झील में फेंक दिया।

जलपरी का बेटा फिर अपने पिता के पास गया और बोला —
“यह लड़का तो हम लोगों से बहुत ज़्यादा ताकतवर लगता है। उसके दादा ने तो मुझे इतनी ज़ोर से धक्का मारा कि मैं तो झील के बीच में ही आ गिरा। ऐसे तो हम उस लड़के को कभी नहीं जीत सकते पिता जी।”

पिता ने कहा — “ठीक है, तुम एक बार फिर उस लड़के के पास जाओ और उससे पूछो कि वह हम लोगों को यहाँ छोड़ने का क्या लेगा। हम नहीं चाहते कि वह हमारी झील को बाँधे।”

सो वह बेटा फिर उस लड़के के पास गया और उससे पूछा कि वह उनको वहाँ छोड़ने का कितना पैसा लेगा।

लड़के ने अपना टोप उतार कर उलटा कर के उसके सामने रख दिया और बोला — “बस यह टोप भर कर।”

वह बेटा फिर से अपने पिता के पास दौड़ा गया और वहाँ जा कर कुछ सिक्के बटोरने में उसकी सहायता करने लगा जो सालों से झील की तली में इकठ्ठे हो गये थे।

इधर जब जलपरी का बेटा चला गया तब उस लड़के ने अपने टोप में एक छेद कर लिया और उस टोप को एक गहरे गड्ढे के ऊपर रख लिया।

उधर जलपरी के बेटे ने जितने सिक्के वह सोच सकता था कि उस टोप को भरने के लिये काफी होंगे उतने सिक्के बटोरे और झील के ऊपर आ कर उस लड़के के टोप में डाले पर वे तो बस उस टोप की तली ही ढक सके।

वह फिर झील में गया और फिर से बहुत सारे सिक्के उठा कर लाया और उस लड़के के टोप में डाले पर फिर भी उसका टोप नहीं भरा।

जलपरी के बेटे ने जा कर यह अपने पिता से कहा कि वह कई बार सिक्के उस लडके के टोप में डाल चुका है पर उसका टोप है कि वह तो भरता ही नहीं।

उसके पिता ने कहा — “उससे जा कर कहो कि हमारे पास इतना ही पैसा है।” और यह कह कर उसने एक सिक्के भरा एक बैरल झील के किनारे पर फेंक दिया।

बेटा फिर झील के ऊपर आया और उस लड़के से बोला —
“मेरे पिता जी कहते हैं कि हमारे पास इतना ही पैसा है। इसको ले लो और यहाँ से जाओ और हमको छोड़ दो।”

लड़के ने वायदा किया कि वह अब झील को नहीं बाँधेगा और जलपरी का बेटा यह खुशखबरी ले कर तुरन्त ही अपने पिता के पास दौड़ गया।

उधर लड़के ने सँभाल कर अपनी रस्सियों के सारे जाल समेटे ताकि उसमें कोई जानवर फँस न जाये। फिर उसने अपना वह सिक्के वाला गड्ढा मिट्टी से भर दिया और इस तरह से अपना कुछ पैसा वहाँ छिपा दिया।

उसके बाद उसने अपना टोप अपने सिर पर रखा और सिक्कों से भरा वह बैरल लुढ़काता हुआ वह पैसा दिखाने के लिये अपने भाइयों के घर चला।

उसके पास उतना सारा पैसा देख कर आश्चर्य से उसके भाइयों ने पूछा — “तुमको इतना सारा पैसा कहाँ से मिला?”

उसने जवाब दिया — “जानवर पकड़ कर। मुझे तो अपने माता पिता से केवल एक रस्सी ही मिली थी जो तुम लोगों ने मुझे दी थी। सो इस रस्सी से मैंने जानवर पकड़ने के जाल बनाये और झील के पास जो जंगल है वहाँ जा कर जानवर पकड़े।”

वे दोनों एक साथ बोले — “तो तुम यह घर और जमीन ले लो और हमको यह रस्सी दे दो।”

कह कर उन दोनों भाइयों ने कानूनी कार्यवाही कर के वह घर और जमीन अपने छोटे भाई के नाम कर दी और वह रस्सी उससे खुद ले ली।

रस्सी ले कर वे जंगल की तरफ चले गये ताकि वे वहाँ जानवर पकड़ सकें। उसके बाद वे फिर कभी अपने छोटे भाई को परेशान करने के लिये नहीं लौटे।

हो सकता है कि वे अभी भी जंगल में जानवर पकड़ रहे हों। या फिर झील की जलपरी के मेहमान बन गये हों। या फिर उनको वह गुफा वाला भालू ही खा गया हो – कुछ भी हो सकता है, है न?

(साभार सुषमा गुप्ता जी, जिन्होंने लोक-कथाओं पर उल्लेखनीय काम किया है)

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