नीली रोशनी : जर्मन लोक-कथा
The Blue Light : Lok-Katha (German)
एक सैनिक बहुत साल तक अपने राजा की सेवा करता रहा, पर अन्त में उसे
बिना वेतन या इनाम के निकाल दिया गया। अब उसे यह समझ में नहीं आ
रहा था कि वह अपनी रोटी कमाने के लिए क्या करे। वह बड़े उदास मन
से घर की तरफ चल दिया। पूरा दिन चलने के बाद शाम को वह एक घने
जंगल के पास पहुँचा। अभी कुछ ही दूर गया था कि उसे पेड़ों के बीच से
रोशनी चमकती दिखाई दी। उसने अपने थके हुए पैरों को उधर ही बढ़ा दिया।
जल्दी ही उसे एक झोंपड़ी दिखी जिसमें एक बुढ़िया चुड़ैल रहती थी। उस बेचारे
ने उसकी खुशामद की कि वह उसे रात को वहाँ ठहर जाने दे और कुछ खाने-पीने
के लिए भी दे दे। वह कुछ सुनने को तैयार नहीं थी, पर इस आदमी से पीछा
छुड़ाना भी आसान नहीं था। आखिर वह बोली, “चलो, मैं तुम पर दया कर
दूँगी, पर बदले में तुम्हें सुबह मेरा पूरा बगीचा खोदना पड़ेगा ।” सैनिक उसकी
हर बात मानने को तैयार था, इसलिए उसका मेहमान बन गया।
अगले दिन उसने अपनी बात पूरी की, और बड़ी सफाई से पूरा बगीचा
खोद डाला। यह काम करने में उसका पूरा दिन लग गया। शाम को उसे चले
जाना था, तब वह बुढ़िया से बोला, “सारा दिन काम करने से मैं बेहद थक
गया हूँ, मुझे एक रात और ठहर जाने दो।” पहले तो उसने मना कर दिया,
पर फिर इस शर्त पर राजी हुई कि वह अगले दिन एक गाड़ी भरकर लकड़ी
काट देगा।
उस दिन भी उसने काम तो पूरा कर दिया, पर करते-करते फिर रात हो
गई। इसके अलावा वह इतना थक गया था कि उसने फिर एक रात रुकने
की आज्ञा माँगी। अबकी बार बुढ़िया ने उससे यह वचन माँगा कि वह कुएँ
में नीचे जलती नीली रोशनी उसे ला देगा।
सुबह होते ही वह उसे कुएँ तक ले गई, उसकी कमर में एक लम्बी रस्सी
बाँधी और उसे नीचे उतार दिया । कुएँ में, जैसा कि चुड़ैल ने बताया था, नीली
रोशनी थी। उसने रस्सी हिलाकर उसे इशारा दिया कि वह उसे ऊपर खींच
ले। पर उसने सैनिक को बस इतना ऊपर खींचा कि वह हाथ बढ़ाकर रोशनी
ले सके और बोली, “पहले मुझे रोशनी पकड़ा दो, मैं सँभाल लूँगी।” सैनिक
भाँप गया कि इसका इरादा ठीक नहीं है। सच ही वह रोशनी लेकर सैनिक
को कुएँ में वापिस धकेलने की सोच रही थी। सैनिक उसके बुरे इरादे को
भाँप गया और बोला, “मैं जब तक कुएँ से सही-सलामत बाहर नहीं निकल
आऊँगा तब तक तुम्हें रोशनी नहीं दूँगा।” यह सुनते ही वह बहुत नाराज हो
गई और उसने उसे रोशनी समेत नीचे फेंक दिया। वह सालों से उस रोशनी
को हासिल करना चाहती थी। इधर बेचारा गरीब सैनिक कुछ देर निराश होकर
नीचे की गीली मिट्टी पर पड़ा रहा और सोचने लगा कि अब उसका अन्त पास
ही है। उसकी जेब में आधा भरा चुरुट था। उसने सोचा “क्यों न इसे पीकर
खत्म कर दूँ। दुनिया में अपना आखिरी मजा ले लूँ।” उसने नीली रोशनी से
उसे जलाया और पीने लगा।
अचानक धुएँ का बादल उठा और उसके बीच से एक काला बौना आता
दिखाई दिया। वह बोला, “सैनिक तुम्हें क्या चाहिए?” उसने जवाब दिया “कुछ
नहीं ।” तब बौने ने कहा, “तुम नीली रोशनी के मालिक हो, इसलिए मुझे तुम्हारी
हर बात माननी होगी।” उसने कहा, “सबसे पहले मुझे इस कुएँ से बाहर
निकालो ।” उसके कहने की देर थी कि बौना उसका हाथ पकड़कर उसे नीली
रोशनी समेत ऊपर ले आया। सैनिक फिर बोला, “अब एक दया और करो,
उस बुढ़िया को मेरी जगह कुएँ में डाल दो ।” बौने ने यह भी कर दिया। अब
उन्होंने उसका खजाना ढूँढ़ना शुरू कर दिया। सैनिक जितना सोना-चाँदी ले
जा सकता था, उतना उठाने लगा। फिर बौने ने कहा, “अगर कभी मेरी जरूरत
पड़े तो तुम सिर्फ नीली रोशनी से अपना पाइप जलाना और मैं फौरन तुम्हारे
पास पहुँच जाऊँगा।”
सैनिक अपनी खुशकिस्मती से बहुत खुश था | वह पहले शहर की सबसे महँगी
सराय में गया। उसने कुछ बढ़िया कपड़े बनवाये और अपने लिए एक अच्छा-सा
कमरा तैयार करने को कहा। यह सब हो जाने पर उसने बौने को बुलाया और
बोला, “राजा ने मुझे एक पैसा भी न देकर भूख-प्यास से मरने को छोड़ दिया
था। अब मैं उसे दिखाना चाहता हूँ कि अब मैं मालिक हूँ। आज शाम को राजा
की बेटी को यहाँ लाओ, उसे मेरी सेवा करनी होगी ।” बौना बोला, “यह खतरनाक
काम है।” पर चला गया। फिर गहरी नींद में सोती राजकुमारी को सैनिक के
पास ले आया।
अगले दिन बहुत सुबह वह उसे वापिस छोड़ आया। राजकुमारी अपने पिता
को देखते ही कहने लगी, “मैंने पिछली रात एक अजीब-सा सपना देखा; मुझे
लगा कि मुझे हवा में उड़ाकर एक सैनिक के घर ले जाया गया। वहाँ मैंने
नौकरानी की तरह उसकी सेवा की ।” राजा इस अजीब कहानी के बारे में सोचता
रहा। फिर उसने अपनी बेटी से कहा कि वह अपनी जेब में छेद करके मटर
भर ले। जो वह कह रही है वह अगर सपना नहीं, सच हुआ तो गली में मटर
के दानों के गिरने से यह पता चल जाएगा कि वह किधर गई थी। उसने वैसा
ही किया पर बौने ने भी यह बात सुन ली थी। शाम होने पर सैनिक ने फिर
से राजकुमारी को लाने के लिए कहा। बौने ने दूसरी गलियों में भी मटर के
दाने बिखेर दिए। अब यह जानना मुश्किल हो गया कि कौन-से राजकुमारी
की जेब से गिरे । इधर लोग-बाग सारा दिन मटर के दाने बटोरते रहे और साथ
ही यह भी सोचते रहे कि इतने सारे दाने कहाँ से आए।
राजकुमारी ने फिर पिता को बताया कि उसके साथ दुबारा वैसा ही हुआ,
तब राजा ने कहा, “तुम अपने साथ अपना एक जूता ले जाना और वहाँ छिपा
देना जहाँ तुम्हें ले जाया जाएगा।” बौने ने यह भी सुन लिया। जब सैनिक
ने फिर से राजकुमारी को लाने को कहा तब बौना बोला, “इस बार मैं तुम्हें
नहीं बचा सकता। मुझे लगता है कि इस बार तुम जरूर पकड़े जाओगे, और
यह दुर्भाग्य होगा ।” पर सैनिक नहीं माना। तब बौने ने समझाया कि “ध्यान
रखना, सुबह जल्दी शहर के दरवाजे से बाहर निकल जाना।” राजकुमारी ने
पिता के कहे के अनुसार सैनिक के कमरे में एक जूता छिपा दिया। उसके
वापिस पहुँचने के बाद राजा ने पूरे शहर में जूता ढूँढ़ने का आदेश दिया। जूता
जहाँ छिपाया गया था, वहाँ मिल गया। सैनिक भागा तो सही पर जल्दी न
करने की वजह से पकड़ा गया और जंजीरों से बाँधकर जेल में डाल दिया गया।
सबसे बुरी बात यह हुई कि शहर छोड़ने की जल्दी में वह नीली रोशनी, सोना-चाँदी
सब अपने कमरे में ही छोड़ गया। अब उसकी जेब में सिर्फ एक अशर्फी थी।
वह उदास खड़ा जेल की जाली के बाहर देख रहा था, तभी उसे अपना
एक दोस्त जाता दिखा। उसने उसे पुकारकर कहा, “मेरा एक बण्डल सराय
में छूट गया है, अगर तुम ला दोगे तो मैं तुम्हें एक अशर्फी दूँगा।” उसके दोस्त
को लगा, इतने से काम के बदले में एक अशर्फी तो काफी है। वह गया और
लाकर सैनिक को दे दिया। सैनिक ने फौरन पाइप जलाया, धुआँ उठने के
साथ उसका दोस्त वह बौना आ गया। वह बोला, “मालिक डरना मत। बस
जब आपकी पेशी होगी तब नीली रोशनी को साथ ले जाना मत भूलना। बाकी
हिम्मत रखना, सब कुछ अपनी गति से चलने देना ।” जल्दी ही पेशी हुई, मामले
की पूरी छानबीन हुई, कैदी को दोषी पाया गया। जब फैसला सुनाया गया
तो उसे फाँसी की सज़ा दी गई।
उसे ले जाया जा रहा था, तब उसने राजा से एक बात की अनुमति माँगी।
राजा ने पूछा “क्या चाहिए?” वह बोला, “मुझे रास्ते में एक पाइप पी लेने
दो ।” राजा ने कहा, “एक नहीं दो पियो ।” तब उसने नीली रोशनी से अपना
पाइप जलाया, पल-भर में बौना उसके सामने खड़ा था। सैनिक ने हुक्म दिया,
“इस सारी भीड़ को या तो भगा दो या मार दो। रही राजा की बात, तो उसे
तीन टुकड़ों में काट दो।” बौने ने सब काम करना शुरू कर दिया, जल्दी ही
भीड़ हटा दी; पर राजा ने दया की भीख माँगी। अपनी जान के बदले में वह
सैनिक को अपनी बेटी देने के लिए तैयार हो गया। उसने यह भी मान लिया
कि उसके बाद पूरे राजपाट का मालिक वह सैनिक ही होगा।
(ग्रिम ब्रदरज़)