अंडों की टोकरी : आयरिश लोक-कथा

The Basket of Eggs : Irish Folktale

एक बार की बात है कि एक स्त्री एक अंडे की टोकरी ले कर उन्हें बेचने के लिये बाजार जा रही थी। वह उसके पैसे गिनती चली आ रही थी।

“अगर अंडों के दाम कल से बढ़ गये होंगे तो मुझे कुछ चाँदी के सिक्के और मिल जायेंगे और अगर कम भी हो गये होंगे तो कोई बात नहीं। मुझे इतना ज़्यादा नुकसान भी नहीं होगा क्योंकि मेरे पास बेचने के लिये काफी अंडे होंगे।

यह कह कर उसने एक छोटे से बच्चे की तरफ देखा जो एक हैज के पास बैठा हुआ था और एक जूता सिल रहा था।

उसने सोचा कि “अगर मैं उस बच्चे को पकड़ सकती तो मैं उसको बहुत बड़ा खजाना दिलवा देती क्योंकि उस जैसे बच्चों को पता होता है कि सोना कहाँ छिपा हुआ है।

उसने उसके पीछे से झाँका जैसे कोई बिल्ली चिड़िया के पीछे से ताक लगाती है और उसकी गरदन को कस कर पकड़ लिया। वह आश्चर्य से चीख उठा। स्त्री बोली “आहा मैंने तुम्हें पकड़ लिया।”

लड़का बोला — “यकीनन। तुमने मुझे पकड़ लिया।”

स्त्री ने उससे पूछा — “क्या तुम मुझे खजाना बताओगे। लैप्राकौन्स तो इसी के लिये बनाये जाते हैं।”

लड़का बोला — “यकीनन। लेकिन वह सोने का बर्तन जो मैं तुम्हें ला कर दूँगा वह एक बहुत अजीब से मेंढक पहरेदार के सामने से हो कर तुम्हें ले जाना पड़ेगा।”

“पर मैं मेंढक की परवाह क्यों करूँ। मेंढक तो मुझे नहीं डरा सकेगा।”

उसने लड़के को टोकरी के हैन्डिल पर बिठा लिया। वह खुद उसका एक कान भी पकड़े रही और खजाना लेने के लिये जैसे जैसे वह बताता गया वह स्त्री उसके साथ साथ चलती रही।

लड़का बोला “तुम तो बहुत ही बड़ी मजबूत और पक्के इरादे वाली स्त्री हो। मैंने इससे पहले तुम्हारे जैसी कोई और स्त्री नहीं देखी।”

स्त्री बोली — “ऐसे ही बातें करते रहो।”

उनको चलते चलते घंटों बीत गये। फिर उसने अंडे बाहर फेंकने शुरू कर दिये।

स्त्री बोली — “यह तुम क्या कर रहे हो। मेरे अंडे तोड़ने बन्द करो।” कह कर उसने पीछे की तरफ देखा यह देखने के लिये कि अभी उसका कोई अंडा साबुत बचा भी है या नहीं।

पर जैसे ही उसने अपना सिर पीछे किया कि वह लड़का उसके हाथ से फिसल कर भाग गया। वह टोकरी के हैन्डिल से हैज पर कूदा और फिर वहाँ से गायब हो गया।

स्त्री बोली — “ओह इस लड़के ने मुझे बहुत बेवकूफ बनाया। इसने मेरे सारे अंडे भी बर्बाद कर दिये और मुझे खजाना भी नहीं दिलवाया। पर चलो उसने कम से कम यह तो कहा कि मैं दुनियाँ की सबसे अच्छी स्त्री हूँ मुझे यही बात जानने से बहुत खुशी मिली।

(साभार सुषमा गुप्ता जी, जिन्होंने लोक-कथाओं पर उल्लेखनीय काम किया है.)

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