श्रीमती वील का प्रेत (कहानी) : डैनियल डीफ़ो
The Apparition of Mrs. Veal (Story in Hindi) : Daniel Defoe
अपनी सारी अवस्थाओं में यह बात इतनी अपूर्व और प्रमाणित है कि मेरे पढ़ने और बोलचाल में कभी ऐसी बात नहीं मिली। यह अत्यंत बुद्धिमान् एवं गंभीर जाँच करनेवाले व्यक्ति को कृतार्थ करने योग्य है।
श्रीमती बारग्रावे वह महिला है जिसके सामने श्रीमती वील मृत्यु के बाद प्रकट हुई। वह मेरी सुपरिचित मित्र है और मैं अपनी जानकारी के आधार पर उसकी इन पंद्रह-सोलह वर्षों की कीर्ति को प्रमाणित कर सकता हूँ तथा उसकी युवावस्था से लेकर मेरी जान-पहचान के समय तक मैं उसके सच्चरित्र होने की पुष्टि भी कर सकता हूँ; भले जब से यह संबंध हुआ है, कुछ आदमियों ने, जो प्रकट होनेवाली श्रीमती वील के भाई के मित्र हैं, इसको ऊँचे स्थान पर पहुँचा दिया है। वे यह सोचते हैं कि उन्होंने श्रीमती बारग्रावे की कीर्ति को धक्का पहुँचाने का प्रयत्न किया है, ताकि उस कहानी का मजाक उड़ाया जा सके। बुरे पति के दुर्व्यवहार के होते हुए भी उन अवस्थाओं में श्रीम बारग्रावे का स्वभाव हँसमुख है और उसके चेहरे पर निराशा का कोई चिह्न नहीं है; न ही बड़बड़ाने का भाव है। यह उस समय भी वैसी रहती है जब अपने पति की क्रूरता का शिकार होती है, जिसके साक्षी मैं और कई संदेहरहित आदमी हैं।
श्रीमती वील तीस वर्ष की कुँआरी भद्र नारी थी। कुछ वर्ष पहले से उसे दौरे पड़ते थे, जो किसी धृष्टता के बारे में वार्त्तालाप करते-करते आकस्मिक रूप से रुक जाने के कारण थे। उसकी देखभाल उसका अकेला भाई करता था । डोवर में उसका मकान था । वह बहुत धार्मिक महिला थी और उसका भाई हर प्रकार से मर्यादायुक्त था; परंतु अब वह कहानी को अप्रमाणित करके मिटा देने के लिए सबकुछ करता है । बचपन से ही श्रीमती वील की मित्रतापूर्ण जान-पहचान श्रीमती बारग्रावे से थी । तब श्रीमती वील की पारिवारिक स्थिति ठीक नहीं थी । उसका पिता बच्चों का ध्यान नहीं रखता था। इस कारण उन्हें कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था; और श्रीमती बारावे का पा निर्दयी था, उसे न खाना और न ही कपड़े की जरूरत थी, जबकि श्रीमती वील को दोनों की जरूरत थी । इसलिए श्रीमती वील इसकी चहेती बन गई, यहाँ तक कि वह प्रायः कहा करती - " श्रीमती बारग्रावे, तुम केवल अत्यंत अच्छी ही नहीं हो बल्कि संसार में मेरी एकमात्र सहेली हो और जीवन में कोई भी परिस्थिति हमारी मित्रता को भंग नहीं कर सकती।” वे प्रायः आपस में अपने-अपने दुर्भाग्य पर अफसोस करतीं और 'ड्रेलिनकोर्ट अपोन डेथ' तथा दूसरी अच्छी पुस्तकें पढ़ती थीं। इस प्रकार दो ईसाई मित्रों की तरह दुःख में एक-दूसरे को सांत्वना देती थीं।
कुछ समय के बाद मिस्टर वील के एक मित्र ने उसकी नियुक्ति डोवर के कस्टम हाउस में करवा दी, जिसके कारण श्रीमती बारग्रावे के प्रति श्रीमती वील के प्यार में धीरे-धीरे अंतर आने लगा, भले ही कोई आपसी झगड़ा न हुआ था; परंतु धीरे-धीरे उदासीनता यहाँ तक आ गई कि श्रीमती बारग्रावे दो साल तक उससे नहीं मिली, जिसमें से एक वर्ष तो वह डोवर से अनुपस्थित रही, छह महीने केंट्बरी में गुजारे और दो महीने अपने घर में व्यतीत किए।
8 सितंबर, 1705 को प्रातः वह घर में अकेली बैठी, अपने दुर्भाग्य के बारे में सोच रही थी और अपने आपको परमात्मा की इच्छा पर छोड़ दिया था । उसने सोचा, 'मुझे अब तक सबकुछ मिला है, निस्संदेह आगे भी मिलेगा और मुझे पूरा विश्वास है कि जब समय आएगा मेरा कष्ट भी दूर हो जाएगा।' फिर उसने सिलाई का काम हाथ में लिया और ज्यों ही उसको समाप्त किया, उसने दरवाजे पर दस्तक सुनी। वह यह देखने के लिए उठी कि वहाँ कौन है? यह श्रीमती वील निकली, जो उस समय घुड़सवार की पोशाक में थी और दिन के बारह बजे थे ।
“मैडम!” श्रीमती बारग्रावे बोली, “मैं तुम्हें देखकर हैरान रह गई हूँ, तुम इतने लंबे समय तक अजनबी बनी रही हो!” परंतु उसने श्रीमती वील को बताया कि वह उससे मिलकर प्रसन्न हुई है और नमस्कार किया। श्रीमती वील ने भी उचित उत्तर दिया। फिर श्रीमती वील ने अपने हाथ अपनी आँखों के ऊपर रखते हुए कहा, "मैं बहुत अच्छी हूँ।" और हाथों को हिलाया । उसने श्रीमती बारग्रावेको बताया कि मैं एक लंबी यात्रा पर जाने का विचार कर रही थी और जाने से पहले तुमसे मिलना चाहती थी।
श्रीमती बारग्रावे ने पूछा, “तुम अकेली यात्रा कैसे करोगी? मुझे इसपर हैरानी हुई है; क्योंकि तुम अपने भाई को बहुत चाहती हो। "
"ओह!" श्रीमती वील ने कहा, "मैं भाई को बताए बिना यहाँ आई हूँ, क्योंकि यात्रा पर जाने से पहले तुमसे मिलने की मेरी बड़ी इच्छा थी । " श्रीमती बारग्रावे उसको लेकर दूसरे कमरे में गई और श्रीमती वील उस बाजुओंवाली कुरसी के हत्थे पर बैठी, जिसपर श्रीमती बारग्रावे बैठी थी । फिर श्रीमती वील ने कहा, "मेरी प्यारी सहेली, मैं अपनी पुरानी मित्रता को पूर्व अवस्था में लाने के लिए आई हूँ और इसको तोड़ने के लिए तुमसे क्षमा माँगती हूँ । यदि तुम मुझे क्षमा कर देती हो तो महिलाओं में तुम अति उत्तम हो।"
“ ओह!” श्रीमती बारग्रावे ने कहा, "इस बात को मत कहो। मुझे इसके बारे में बुरा विचार नहीं आया।"
" तुमने मेरे बारे में क्या सोचा?" श्रीमती वील ने पूछा ।
“मैंने सोचा, ” श्रीमती बारग्रावे ने उत्तर दिया – “कि तुम भी दुनिया में औरों जैसी ही निकली; समृद्धि में तुमने अपने आपको और मुझे भुला दिया है।"
फिर श्रीमती वील ने श्रीमती बारग्रावे को उन बहुत सी बातों की याद दिलाई जो उसने इसके लिए बीते दिनों में की थीं और उस वार्त्तालाप को भी याद किया जो इन्होंने अपने बुरे समय में आपस में किया था; उन्होंने कौन-कौन सी पुस्तकें पढ़ी थीं; ‘ड्रेनिलकोर्ट अपोन डेथ' नामक पुस्तक से कैसी शांति प्राप्त की थी; उस विषय पर, उसने कहा—सबसे उत्तम पुस्तक थी जो किसी ने कभी लिखी थी। उसने डॉ. शरलक और अन्य पुस्तकों के साथ-साथ, दो डच पुस्तकों की भी चर्चा की, जो अनूदित थीं और मृत्यु के बारे में थीं, परंतु मृत्यु के बारे में ड्रेनिलकोर्ट के विचार को उसने अत्यधिक स्पष्ट बताया।
फिर उसने श्रीमती बारग्रावे से पूछा कि क्या उसके पास ड्रेनिलकोर्ट की पुस्तक थी? उसके 'हाँ' कहने पर उसे लाने के लिए कहा। श्रीमती बारग्रावे ऊपर गई और पुस्तक लेकर नीचे आ गई। फिर श्रीमती वील ने कहा-
"प्यारी श्रीमती बारग्रावे, यदि हमारे शरीर की आँखों की तरह हमारे विश्वास की आँखें भी उसी तरह खुली हों तो कई देवदूतों को अपने आसपास रक्षक के रूप में देख सकते हैं। स्वर्ग की हमारी धारणाएँ अब वैसी नहीं हैं जैसाकि ड्रेनिलकोर्ट कहता है। इसलिए अपने कष्ट के समय में शांत रहो और विश्वास करो कि परमात्मा को तुम्हारा विशेष ध्यान है तथा तुम्हारा कष्ट उसकी दया का चिह्न है। जब वे अपना काम कर चुकेंगे तो अपने आप तुमसे दूर हो जाएँगे। मुझपर विश्वास करो, मेरी प्यारी सहेली ! विश्वास करो उसपर, जो मैं तुम्हें कहती हूँ, भविष्य में एक पल की प्रसन्नता तुम्हारे कष्ट के लिए तुम्हें अपरिमित प्रतिफल देगी, क्योंकि मुझे विश्वास है ( और वह उत्साहपूर्वक अपने हाथों को अपने घुटनों पर मारती है जो उसके सारे वार्त्तालाप में चलता है) कि परमात्मा तुम्हारी कष्टदायक स्थिति हमेशा नहीं रखेगा । विश्वास रखो कि तुम्हारा कष्ट तुम्हें शीघ्र ही छोड़ देगा अथवा तुम उसे छोड़ दोगी। " उसने यह सब इस कारुणिक और दिव्य भाव से कहा कि बारग्रावे उससे गहराई से प्रभावित हुई और रो पड़ी।
फिर श्रीमती वील ने डॉ. होर्नेक के 'एसेटिक' की चर्चा की, जिसके अंत में उसने आदि ईसाइयों का विवरण दिया है। उसके नमूने की नकल करने की सिफारिश की और कहा कि उनका वार्त्तालाप हमारे समय जैसा नहीं था। "आज-कल तो," उसने कहा, “फेनदार और व्यर्थ की बकवास के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है, जो उनके वार्त्तालाप से कहीं भिन्न है। उनका वार्त्तालाप मानसिक उन्नति और एक-दूसरे को धार्मिक बनाने के लिए है, क्योंकि वे हमारी तरह और हम उनकी तरह न होते, बल्कि हम वैसा करें जैसा वे करते थे । उनमें परस्पर हार्दिक मित्रता थी, परंतु वह अब कहाँ देखने को मिलती है? "
"आजकल, " श्रीमती बारग्रावे कहती है- " वास्तव में एक सच्चा मित्र मिलना कठिन है।"
“मिसेज नोरिस," श्रीमती वील कहती है- "उसके पास कविताओं की एक पुस्तक है - फ्रेंडशिप इन परफेक्शन — जिसकी प्रशंसा मैं अद्भुत ढंग से करती हूँ। क्या तुमने उसे देखा है?"
"नहीं, " श्रीमती बारग्रावे ने कहा, "परंतु मेरे पास मेरी अपनी लिखी हुई कविताएँ हैं ।"
"क्या सच?" श्रीमती वील ने कहा, "तो फिर उन्हें ले आओ।" वह उनको ले आई और श्रीमती वील को पढ़ने के लिए पेश किया, परंतु उसने यह कहते हुए इनकार कर दिया कि उनको थामने से उसको सिरदर्द हो जाएगा। उसने श्रीमती बारग्रावे को पढ़ने के लिए कहा और उसने पढ़ा।
जब वह ‘फ्रेंडशिप' की प्रशंसा कर रही थी, श्रीमती वील ने कहा, "प्यारी श्रीमती बारग्रावे, मैं तुम्हें सदा प्यार करूँगी।” कविताओं में दो बार 'एलिशियन' शब्द का प्रयोग किया गया था । "आह!" श्रीमती वील ने कहा, "यह कवि लोग स्वर्ग के लिए ऐसे ही नाम रखते हैं।" अपना हाथ अपनी आँखों पर रखते हुए कहा, "श्रीमती बारग्रावे, क्या तुम नहीं सोचती कि दौरों ने मुझे क्षति पहुँचाई है?"
"नहीं, तुम उसी तरह से ठीक दिखाई देती हो जैसा मैंने हमेशा देखा है।"
इस सारे वार्त्तालाप के बाद, जिसको श्रीमती बारग्रावे की अपेक्षा प्रेत ने अच्छे शब्दों में किया था, उसने कहा कि वह बहाना कर सकेगी कि वह सब याद नहीं रख सकेगी (क्योंकि यह सोचा भी नहीं जा सकता था कि पौने दो घंटे के पूरे वार्त्तालाप को वह याद रख सकती थी, भले ही वह सोचती थी कि मुख्य बातें उसे याद थीं) । उसने श्रीम बारग्रावे से कहा कि वह उसके भाई को पत्र लिखे और कहे कि अमुक-अमुक व्यक्ति को अंगूठियाँ दे दे। उसकी अलमारी में उसका सोने का बटुआ रखा था और अपने चचेरे भाई वॉटसन को वह दो बड़े सिक्के देना चाहती थी।
इस गति से बात करते देखकर श्रीमती बारग्रावे ने सोचा कि इसे अब दौरा पड़ने वाला है। इसलिए उसे घुटनों के पास उस कुरसी में स्थापित कर दिया और उसको भूमि पर गिरने से रोका, ताकि दौरे में कहीं नीचे न गिर जाए (उसने सोचा कि बाजूदार कुरसी उसको किसी तरफ भी गिरने से बचा सकती है) और उसका ध्यान दूसरी तरफ मोड़ने के लिए – क्योंकि श्रीमती बारग्रावे ने देखा कि वह कई बार अपने चोगे के आस्तीन की प्रशंसा कर चुकी थी - श्रीमती वील ने कहा था कि वह स्वच्छ सिल्क का था और नया ही बनवाया था, परंतु इस बात के लिए श्रीमती वी ने अपनी प्रार्थना पर जोर दिया और श्रीमती बारग्रावे को कहा कि वह इसे इनकार न करे और अवसर मिलने पर सारा वार्त्तालाप उसके भाई को बता दे ।
“प्यारी श्रीमती वील, ” श्रीमती बारग्रावे ने कहा, "यह धृष्टता प्रतीत होती है; मैं नहीं जानती कि इसे कैसे पूरा करूँ और उस भद्र पुरुष के लिए हमारे वार्त्तालाप की कहानी कितनी अपमानजनक होगी ! यह भी सोचा है?"
"ठीक है, " श्रीमती वील ने कहा, "मुझे इनकार मत करो। "
“क्यों?” श्रीमती बारग्रावे ने कहा, "मैं सोचती हूँ कि तुम इसे स्वयं करो तो बेहतर रहेगा ।"
"नहीं," श्रीमती वील ने कहा, " तुम इस समय इसको धृष्टता समझती हो, परंतु इसका अर्थ तुम्हें बाद में मालूम होगा।"
फिर श्रीमती बारग्रावे उसके आग्रह को संतुष्ट करने के लिए कलम और स्याही लेने चली, परंतु श्रीमती वील ने कहा, “ अब इसे यहीं रहने दो; मेरे जाने के पश्चात् कर लेना, परंतु कर अवश्य लेना, याद से।" यह जाने से पहले उसकी अंतिम आज्ञा थी, अतः श्रीमती बारग्रावे ने भी उसको वचन दे दिया।
फिर श्रीमती वील ने श्रीमती बारग्रावे की बेटी के बारे में पूछा। उसने बताया, "वह घर पर नहीं है, परंतु यदि तुम उससे मिलना चाहती हो तो मैं उसे बुला लेती हूँ! "
"जरूर," श्रीमती वील ने कहा । इसपर श्रीमती बारग्रावे श्रीमती वील को वहीं छोड़कर पड़ोस में उसे बुलाने गई। जब तक श्रीमती बारग्रावे लौटी, श्रीमती वील दरवाजे से बाहर पशु बाजार के सामने सड़क पर चली गई। यह शनिवार का दिन था (जो बाजार का दिन था)। जब श्रीमती बारग्रावे उसके पास आई, तब वह जाने के लिए तैयार खड़ी थी।
श्रीमती बारग्रावे ने पूछा कि वह इतनी जल्दी क्यों कर रही है! उसने कहा कि अब उसे जाना चाहिए, भले ही वह सोमवार तक अपनी यात्रा पर जाएगी । उसने श्रीमती बारग्रावे को आगे बताया कि जाने से पहले वह उससे अपने चचेरे भाई वॉटसन के घर मिलेगी और बताएगी कि वह कहाँ जा रही है। फिर उसने विदा होने के लिए आज्ञा चाही और श्रीमती बारग्रावे के सामने से चली गई तथा सड़क के मोड़ पर नजरों से ओझल हो गई। उस समय दोपहर के पौने दो बजे थे।
6 सितंबर को दोपहर बारह बजे श्रीमती वील की मृत्यु दौरा पड़ने के कारण हो गई। मरने से पूर्व वह चार घंटे से अधिक बेहोश रही, जिसके बीच उसने धर्मविधि को प्राप्त किया।
श्रीमती वील के प्रकट होने के अगले दिन रविवार था । श्रीमती बारग्रावे नजला-जुकाम और गले के दर्द से बुरी तरह ग्रसित थी, इसलिए उस दिन वह बाहर नहीं जा सकी; परंतु सोमवार को उसने कैप्टन वॉटसन के घर दासी को भेजा, ताकि मालूम कर सके कि श्रीमती वील वहाँ है या नहीं। इस पूछताछ से उनको दुःख हुआ और उत्तर मिला कि वह वहाँ नहीं है और न ही उसके आने की कोई आशा है।
यह उत्तर मिलने पर श्रीमती बारग्रावे ने दासी से कहा कि तुमने नाम में गलती या कोई गहरी भूल की थी। भले ही वह बीमार थी, उसने टोपी पहनी और स्वयं कैप्टन वॉटसन के घर गई ताकि देख सके कि श्रीमती वील वहाँ है या नहीं; कैप्टन के परिवार में उसे कोई नहीं जानता था । उन्होंने बताया कि उन्हें श्रीमती बारग्रावे की पूछताछ पर हैरानी हुई है, क्योंकि उन्हें विश्वास है कि श्रीमती वील शहर में ही नहीं है । श्रीमती बारग्रावे ने बताया - " मैं आश्वस्त हूँ कि वह शनिवार को दो घंटे तक मेरे साथ थी।" उन्होंने कहा कि यह असंभव था, क्योंकि यदि वह वहाँ होती तो उनसे अवश्य मिलती ।
जब यह वाद-विवाद चल रहा था तो कैप्टन वॉटसन ने अंदर आकर कहा, "श्रीमती वील वास्तव में मर चुकी है। और उसके कुल-चिह्न की ढाल बनाई जा रही है।" यह सुनकर श्रीमती बारग्रावे हैरान रह गई और तुरंत उस आदमी के पास गई जो ढाल बना रहा था। उन्होंने वॉटसन की बात को सही पाया ।
फिर उसने सारी कहानी कैप्टन वॅटसन के परिवार को सुना दी और बताया कि जो चोगा उसने पहन रखा था, वह धारीदार और स्वच्छ था । फिर श्रीमती वॉटसन चिल्लाई – “तुमने वास्तव में उसे देखा है; क्योंकि उसके और मेरे अतिरिक्त और कोई नहीं जानता था कि उसका चोगा स्वच्छ था ।" श्रीमती वॉटसन ने माना कि चोगे का विवरण बिलकुल सही है, क्योंकि चोगे को बनवाने में इसने उसकी सहायता की थी। श्रीमती वॉटसन ने इस घटना को सारे शहर में फैला दिया और श्रीमती बारग्रावे द्वारा श्रीमती वील के प्रेत को देखने की बात की पुष्टि की। कैप्टन वॉटसन ने तुरंत दो भद्र पुरुषों को साथ लेकर श्रीमती बारग्रावे के घर की ओर प्रस्थान किया, ताकि सारी कहानी उसके मुँह से सुन सके।
फिर यह सूचना आग की तरह इतनी जल्दी फैल गई कि न्याययुक्त और संशयात्मक जगत् के श्रेष्ठ व्यक्ति और भद्र पुरुष उसके पास आने लगे और अंत में स्थिति ऐसी हो गई कि उसको असामान्य बनना पड़ा, क्योंकि वे उसकी कहानी के बारे में अत्यंत संतुष्ट थे और स्पष्ट तौर पर देखते थे कि श्रीमती बारग्रावे किसी तरह से भी पित्तोन्मादी नहीं थी और उसने समस्त कुलीन व्यक्तियों से आदर और मान पाया था। वे सारी कहानी उसके मुँह से सुनने के लिए उत्सुक थे।
श्रीमती वील ने श्रीमती बारग्रावे को बताया था कि उसकी बहन तथा बहनोई उससे मिलने के लिए लंदन से आने वाले थे।
श्रीमती बारग्रावे ने कहा, "यह कैसे होता है कि मामलों को अनोखे ढंग से जान जाती हो?"
"मैं इसको रोक नहीं सकती।" श्रीमती वील ने कहा। उसकी बहन और बहनोई उससे मिलने आए। वे डोवर शहर में उस समय आए, जब श्रीमती वील प्राण त्याग रही थी । श्रीमती बारग्रावे ने उससे पूछा कि वह चाय लेगी, तो श्रीमती वील ने उत्तर दिया- "मुझे परवाह नहीं, यदि मैं लेती हूँ, परंतु मैं इस पागल व्यक्ति (अर्थात् श्रीमती बारग्रावे के पति) को ठीक करना चाहती हूँ, जिसने तुम्हारे सारे बरतन फोड़ दिए हैं।"
“परंतु ऐसा होते हुए भी, " श्रीमती बारग्रावे ने कहा, “मैं पीने के लिए कुछ-न-कुछ ले आती हूँ।" परंतु श्रीमती वील ने हाथ हिलाया और कहा, "नहीं, इसकी कोई जरूरत नहीं, रहने दो इसे ।" और इस तरह मामला टल गया।
सारा समय, जो कुछ घंटे थे, जब तक मैं श्रीमती बारग्रावे के पास बैठा रहा, वह श्रीमती वील की कही हुई ताजा बातों को याद करती रही । उसने श्रीमती बारग्रावे को एक विशेष बात बताई थी कि वृद्ध ब्रेटन को श्रीमती वील को दस पाउंड वार्षिक देने थे, जो एक गुप्त बात थी और जिसकी बाबत श्रीमती बारग्रावे को पता नहीं था ।
श्रीमती बारग्रावे ने अपनी कहानी को कभी नहीं बदला, यह उन लोगों के लिए पहेली बन गई जो सचाई में विश्वास नहीं करते या विश्वास करना नहीं चाहते । श्रीमती बारग्रावे के पड़ोसी के बाड़े में एक नौकर ने किसी महिला को एक घंटे तक बातें करते सुना था और श्रीमती वील उसके साथ थी।
श्रीमती वील से जुदा होते ही श्रीमती बारग्रावे उसी क्षण अपने साथवाले पड़ोसी के यहाँ गई और बताया कि उसने अपनी पुरानी सहेली से किस प्रकार वार्त्तालाप किया। इस घटना के बाद ड्रेनिलकोर्ट की पुस्तक 'बुक ऑफ डेथ' विलक्षण रूप से पूरी हो गई। अब इस बात को देखना होगा कि कष्ट और थकावट के होते हुए भी, जो श्रीमती बारग्रावे को इस मामले में झेलने पड़े, उसने पैनी के मूल्य की भी परवाह नहीं की, न ही अपनी बेटी को किसी से कोई चीज लेने का कष्ट दिया और इसलिए कहानी सुनने में उसकी कोई रुचि नहीं रही।
परंतु इस मामले को दबाने के लिए मिस्टर वील ने वह सब किया जो वह कर सकता था । उसने कहा कि वह श्रीमती बारग्रावे से मिलेगा, परंतु अभी तक यह मत है कि अपनी बहन की मृत्यु के बाद आज तक वह कैप्टन वॉटसन के घर पर ही रहता है और कभी भी श्रीमती बारग्रावे के निकट तक नहीं गया। उसके कुछ मित्रों ने बताया कि वह महा झूठा आदमी है और वह मिस्टर ब्रेटन के दस पाउंड वार्षिक की बात जानती थी, परंतु वह व्यक्ति, जो ऐसा कहने का बहाना करता है, वह उन आदमियों में से कुख्यात झूठे की दुनमि वाला है जिनको मैं जानता हूँ वे संदेहरहित प्रसिद्धिवाले हैं।
अब मिस्टर वील यह कहने के लिए अधिक भद्र हो गया है कि वह झूठ बोलती है, परंतु उसका कहना है कि एक बुरे पति ने उसे सनकी बना दिया है। उसे केवल अपने आप पेश करना पड़ेगा और उसका झूठ आसानी से सिद्ध हो जाएगा। मिस्टर वील का कहना है कि उसने मृत्युशय्या पर पड़ी अपनी बहन से पूछा था कि क्या वह अपनी कोई वस्तु देना चाहती थी, तो उसने उत्तर दिया 'नहीं! अब जो वस्तुएँ श्रीमती वील का प्रेत देता, वे तुच्छ प्रकार की होतीं और उनके देने में भी कोई औचित्य न होता। इसका अभिप्राय यही प्रतीत होता था कि श्रीमती बारग्रावे इन वस्तुओं को प्रदर्शित करके दुनिया के सामने उसके प्रकट होने की सचाई और जो कुछ उसने देखा था, उसे प्रमाणित कर सके तथा विवेकशील और समझदार लोगों से सम्मान पा सके।
फिर मिस्टर वील ने माना कि उसका सोने का बटुआ उसकी अलमारी में नहीं बल्कि उसकी कंघियों के बक्से में पाया गया। यह दुर्घट मालूम होता है, क्योंकि श्रीमती वॉटसन मानती है कि श्रीमती वील इतनी सावधानी अपनी अलमारी की चाबी अपने पास रखती थी और उसके लिए किसीपर विश्वास नहीं करती थी । यदि ऐसा था तो निस्संदेह वह अपना सोना उसमें से न निकालती । श्रीमती वील का अपना हाथ अपनी आँखों पर ले जाना और श्रीमती बारग्रावे से पूछना कि दौरों ने उसे क्षति तो नहीं पहुँचाई, मेरे विचार में वह इससे श्रीमती बारग्रावे को अपने दौरों की याद दिलाना चाहती थी, ताकि उसको अजीब न लगे कि वह अपने भाई के लिए उससे पत्र लिखवाना चाहती थी और अंगूठियों और सोने को देना चाहती थी । यह ऐसा था जैसे कोई मरनेवाला व्यक्ति प्रार्थना कर रह हो। जैसे ही दौरों का प्रभाव उसपर पड़ा, श्रीमती बारग्रावे ने इसे तदनुसार ही लिया और यह उसके अद्भुत प्यार और चिंता के कई अवसरों में से एक था; और उसे किसी प्रकार से डरना नहीं चाहिए था, विशेषकर उसके दिन में प्रकट होने अथवा अभिवादनों का परित्याग करने से― और फिर उसके दूसरी बार अभिवादन करने की चेष्टा को रोककर उससे जुदा होने के ढंग से !
मैं सोच नहीं सकता कि मिस्टर वील इस कहानी को निक्षेप क्यों समझता है (जब यह स्पष्ट हो गया है कि वह इसको दबाना चाहता है); क्योंकि आम लोगों का विश्वास है कि वह एक अच्छी आत्मा है और उसका वार्त्तालाप दिव्य है। उसके दो बड़े काम थे - पहला, श्रीमती बारग्रावे को उसके कष्ट में आराम पहुँचाना और दूसरा, अपनी मित्रता को भंग करने के लिए, अपने पवित्र वार्त्तालाप से उसे प्रोत्साहित करके उससे क्षमा माँगना, ताकि अंततः यह मानने के लिए कि बिना हालात को मोड़े-तोड़े और बिना अपनी किसी रुचि के श्रीमती बारग्रावे ने (यह मानते हुए कि श्रीमती वील की मृत्यु का उसे उसी क्षण पता चल गया था) शुक्रवार दोपहर से शनिवार दोपहर तक इस आविष्कार की रचना की हो, तो किसी भी उदासीन व्यक्ति की अपेक्षा वह अधिक रसिक, भाग्यशाली और दुष्ट रही होगी, परंतु मैं कहने का साहस कर सकता हूँ कि ऐसा नहीं था।
मैंने कई बार श्रीमती बारग्रावे से पूछा कि क्या उसको विश्वास था कि उसने उसके चोगे को छुआ था । उसने नम्रता से उत्तर दिया – “यदि मेरी चेतना पर भरोसा किया जा सकता है तो मैंने छुआ था।" मैंने पूछा कि क्या उसने आवाज को सुना था जब उसने अपने हाथ अपने घुटनों पर मारे थे। उसने उत्तर दिया कि उसे याद नहीं था कि उसने ऐसा किया था और उसने कहा - " उसका भी ऐसा ही अस्तित्व था जैसा मेरा, जो उससे बात कर रही थी; और यदि मुझे आश्वस्त किया जाए कि इस समय तुम्हारा प्रेत मुझसे बात कर रहा है तो मैंने वास्तव में उसे नहीं देखा; क्योंकि मुझे किसी प्रकार का भय नहीं था। मैंने मित्र की तरह उसका स्वागत किया और इस तरह हम विदा हुए। इसपर विश्वास करने के लिए मैं किसी को भी एक पैनी तक नहीं दूँगी। मुझे अब इसमें जरा सी भी रुचि नहीं है। काफी समय से इसके कारण मुझे कठिनाई ने घेर रखा है। काश! मुझे मालूम होता और यह बात दुर्घटनावश रोशनी में न आती तो आम जनता को इसका पता भी न चलता ।"
परंतु अब वह कहती है कि वह इसका निजी प्रयोग करेगी और जहाँ तक संभव हो सकेगा, इसको औरों से दूर रखेगी; और तभी से ऐसा करती आ रही है। वह कहती है कि एक भद्र पुरुष यह कहानी सुनने के लिए तीस मील चलकर आया और इस कहानी को एक बार लोगों को भरे कमरे में सुनाया था। कई विशिष्ट भद्र पुरुष इस कहानी को श्रीमती बारग्रावे के मुँह से सुन चुके थे।
मैं इस चीज से अधिक प्रभावित हुआ हूँ और इससे उतना ही संतुष्ट हूँ जितना परिश्रम के साथ अध्ययन किए गए सत्य से। मुझे यह अद्भुत प्रतीत होता है कि हम सचाई के बारे में वाद-विवाद क्यों करें, जबकि हम उसको हल नहीं कर सकते और उसके लिए हमारे पास कोई विशेष अथवा निर्देशक विचार भी नहीं हैं। काश, श्रीमती बारावे का अधिकार और उसकी ईमानदारी किसी भी दूसरे मामले में संदेहरहित रहते !
(अनुवाद : भद्रसेन पुरी)