जानवरों का बदला : रूसी लोक-कथा

The Animals’ Revenge : Russian Folk Tale

कैटोफे इवानोविच बिल्ला अपनी जवानी के दिनों में एक बहुत ही अच्छा चूहा पकड़ने वाला हुआ करता था पर अब वह बूढ़ा होता जा रहा था सो वह अपने मालिक के लिये किसी काम का नहीं रह गया था। एक दिन उसका मालिक उस बिल्ले को जंगल में ले गया और उसको वहीं छोड़ आया। उस बिल्ले ने सोचा कि उसने अपने मालिक की ज़िन्दगी भर तो सेवा की और उसको उसका बस यही बदला मिला कि उसको जंगल में छोड़ दिया गया और वह भी अकेले।

फिर भी वह वहाँ अकेला नहीं था। दो तेज़ आँखें उसको देख रही थीं। वे थीं लिसा लोमड़ी की आँखें। लिसा लोमड़ी अब यह सोच रही थी कि वह कैसे उस बिल्ले का फायदा उठाये।

जंगल के किसी जानवर ने भी इतना भयानक जानवर पहले कभी नहीं देखा था तो उसके दिमाग में एक ख्याल आया।

लिसा बोली — “हलो भाई, तुम तो कुछ ऐसे दिखायी दे रहे हो जैसे तुम्हारे बुरे दिन आ गये हों। तुम अगर चाहो तो मेरे साथ रह सकते हो। मेरा घर कोई बहुत बढ़िया घर तो नहीं है पर सूखा है और गर्म है।”

बिल्ला बोला — “धन्यवाद, मैं तुम्हारे साथ जरूर रहना चाहूँगा।”

सो लोमड़ी उस बिल्ले को अपने घर ले गयी। जब वह बिल्ला लिसा लोमड़ी के उस मिट्टी वाले मकान में घुसा तो वह लोमड़ी अपने पड़ोस के सारे जानवरों को यह खबर देने के लिये बाहर भाग गयी।

वह उनसे जा कर बोली — “बुरी खबर है दोस्तों, बड़ी बुरी खबर है। आज यहाँ एक नया गवर्नर आया है। वह सचमुच में बड़ा भयानक है। उसकी नुकीली मूँछें हैं। सुई जैसी तेज़ जबान है। उसकी आँखें अँधेरे में चमकती हैं और उसके पंजे तो बिल्कुल ही चाकू जैसे हैं।

जब वह सोता है तो वह खर्राटे तो ऐसे मारता है जैसे कोई आदमी खर्राटे मारता है। जब वह जागता है तो वह पुकारता है “और और।” और वह सन्तुष्ट तो कभी होता ही नहीं है।”

यह सुन कर जानवरों की तो ऊह और आह ही निकल गयी। कोई चीख दिया तो कोई ई ई ई ई कर बैठा।

लोमड़ी बोली — “पर देखो इस बात का ध्यान रखना कि हालाँकि अब तो वह मेरे घर में ठहरा हुआ है पर उसने मुझे मेरे घर से बाहर ही खाने की कोशिश की थी। लेकिन अब वह यह चाहता है कि तुम सब लोग उसके लिये खाना ले कर आओ।”

फिर सब तरफ आह और ओह की आवाज सुनायी पड़ने लगी।

मीशा भालू अपना पेट खुजाते हुए और एक पैर से दूसरे पैर पर अपना बोझ डालते हुए बोला — “बिना गवर्नर के ज़िन्दगी बहुत मुश्किल है।”

सब जानवर गवर्नर का यह हुक्म ले कर अपने अपने घरों को चले गये। अगले दिन वे सब लोमड़ी के घर इकठ्ठे हुए।

लेवन भेड़िया चीज़ और दही ले कर आया।
मीशा भालू घर की बनी शराब ले कर आया।
बरान भैंसा अंडों की एक टोकरी ले कर आया।
कूज़्मा बकरा कुछ चिड़ियें ले कर आया जो सब साफ की हुई थीं।

लिसा लोमड़ी ने अपना सिर बाहर निकाला और अपना पंजा उठाया और बोली — “चुप दोस्तो चुप, थोड़ा धीरज रखो। गवर्नर साहब अभी आराम कर रहे हैं।”

कूज़्मा बकरा चिल्लाया — “ओ लिसा, जाओ और जा कर उसको जगाओ। हमारे पास सारा दिन नहीं है यहाँ बैठने के लिये।”

पर लोमड़ी ने उसकी बात बीच में ही काट दी — “माफ करना आप लोग जब मुझसे बात करें तो थोड़ी नम्रता से बात करें। मैं गवर्नर की साथिन हूँ। हमारे नये मालिक ने मुझे इस काम का यह इनाम दिया है कि उसने मुझे अपनी पत्नी बना लिया है।”

जानवरों ने मजबूरी में एक दूसरे की तरफ देखा, अपने अपने कन्धे उचकाये और चुप हो गये।

अचानक लिसा लोमड़ी बोली — “खड़े हो जाओ। गवर्नर साहब आ रहे हैं। जल्दी से अपनी अपनी भेंटें मेरे दरवाजे पर रख दो।”

जानवर तो बेचारे डर के मारे हिल भी नहीं पा रहे थे। हर जानवर आगे जाने के लिये एक दूसरे को कह रहा था।

आखिर यह जिम्मेदारी बूढ़े कूज़्मा बकरे पर पड़ी जो इतना बहरा था कि उसको लिसा लोमड़ी की बहुत सारी बातें तो सुनायी ही नहीं पड़ीं। वह आगे बढ़ा और जल्दी से अपनी भेंट लोमड़ी के आगे रख दी।

इसके बाद आया मीशा भालू। जैसे ही वह भीड़ में से बाहर आया और उसने लोमड़ी के घर के अँधेरे दरवाजे की तरफ देखा तो उसमें उसने एक बहुत ही भयानक मूँछों वाले चेहरे पर एक जोड़ी जलती हुई आँखें देखीं।

उस चहरे को देख कर उसकी तो टाँगें हीं काँप गयीं। उसने उन्हीं काँपती टाँगों से वापस जाने से पहले उस गवर्नर को बार बार झुक कर सलाम किया और वहाँ से तेज़ी से भाग लिया।

लिसा लोमड़ी बोली — “रास्ता दो रास्ता दो। गवर्नर साहब आ रहे हैं।”

यह सब तो जानवरों के लिये बहुत था। उन्होंने तुरन्त ही अपनी अपनी पूँछ घुमायी और पेड़ों और झाड़ियों में जा कर छिप गये।

इस बीच कैटोफ़े इवानोविच बिल्ला कुछ सोता हुआ सा जंगल के साफ मैदान में आया। उसकी पूँछ बड़े भयानक रूप से इधर से उधर घूम रही थी।

वह अपनी उस दावत के सामने खड़ा था जो उसके लिये लिसा लोमड़ी के घर के दरवाजे पर लगायी गयी थी। उसने उस खाने को जल्दी जल्दी लालचीपने से खाना शुरू कर दिया। बीच बीच में वह ज़ोर ज़ोर से म्याऊँ म्याऊँ भी बोलता जाता था – “और और।”

जब वह बिल्ला खाना खाने में लगा हुआ था तो मीशा भालू ने हिम्मत जुटा कर झाड़ी में से अपना सिर बाहर निकाल कर उसको ठीक से देखना चाहा।

उसके इस तरह से सिर बाहर निकालने पर पत्तियों में आवाज हुई तो दूसरे जानवरों ने भी इधर उधर देखा। बिल्ला अपने आपको भूल गया और उधर की तरफ यह सोचते हुए कूद गया कि वहाँ कोई चूहा था।

बेचारा मीशा भालू तो डर के मारे वहीं बस मर सा ही गया सो वह वहाँ से बिजली की सी तेज़ी के साथ पेड़ों में से हो कर भाग लिया। और दूसरे जानवर भी उसके पीछे पीछे भाग लिये। वे इस डरावने जानवर से जितना दूर रह सकते थे उतना दूर रहना चाहते थे।

कुछ समय तक तो लिसा लोमड़ी उस बूढ़े बिल्ले को अपने साथ रखे रही पर फिर बाद में उसको लगा कि उसको अपने घर में रखने का उसको कोई फायदा नहीं था सो उसने उसको अपने घर से बाहर निकाल दिया।

एक बार फिर वह बिना घर का बिल्ला जंगल में इधर उधर घूमने लगा। घूमते घूमते वह एक ऐसी जगह आ गया जहाँ एक कैम्प लगा हुआ था। इस कैम्प में वे जानवर थे जो उससे डर कर भाग गये थे।

वहाँ जा कर वह बोला — “भाइयो और बहिनो, आप लोग मुझे माफ करें मैं आपमें से किसी को कोई नुकसान नही पहुँचाना चाहता। मैं कोई गवर्नर नहीं हूँ, मैं कैटोफ़े इवानोविच हूँ – एक बूढ़ा बिल्ला। असल में यह सब आप सबको मुझसे दूर रखने का लिसा लोमड़ी का प्लान था।”

यह सुन कर सारे जानवर उस बूढ़े बिल्ले को देखने के लिये एक एक कर के बाहर निकलने लगे और जब उन्होंने देखा कि वह बूढ़ा बिल्ला तो एक बहुत ही सीधा सादा सा जानवर है तो उन्होंने उसके साथ लोमड़ी से बदला लेने का प्लान बनाना शुरू किया।

लैवन भेड़िया बोला — “मेरे दिमाग में एक प्लान आया है।” कह कर उसने सब जानवरों को अपना प्लान बताया।

सब जानवरों को भेड़िये का प्लान बहुत पसन्द आया। प्लान के अनुसार वे सब जानवर मछली पकड़ने के लिये जमी हुई नदी की तरफ चल दिये।

क्योंकि उस समय जाड़े का मौसम था नदी जमी हुई थी सो मछली पकड़ने का जाल डालने से पहले उनको उस नदी में एक छेद करना पड़ा। सबने मिल कर उस छेद में से एक थैला भर कर कई तरह की मछलियाँ पकड़ लीं।

इन मछलियों को पकड़ कर वे लोमड़ी के घर के पास एक खाली जगह में ले गये और वहाँ आग जला कर उनको भूनने लगे। भुनी हुई मछली की खुशबू लिसा लोमड़ी की नाक में पहुँची तो वह वहाँ देखने के लिये आयी।

वहाँ आ कर वह बोली — “हलो दोस्तो, एक मछली अपनी पुरानी दोस्त को भी दो न।”

लैवन भेड़िया बोला — “तुम भी अपने लिये मछली पकड़ लो और फिर जी भर कर खाओ।”

लोमड़ी बोली — “अगर मैं जानती कि मछली कैसे पकड़ी जाती है तो मैं जरूर पकड़ लेती।”

भेड़िया एक लम्बी साँस लेकर बोला — “सुनो बहिन, इसमें कुछ खास नहीं करना है। बस नदी पर जाओ, अपनी पूँछ नदी के पानी में डालो और ज़ोर से बोलो — “मेरी पूँछ पर छोटी और बड़ी सब मछली आ जाओ।

यह सुन कर सारी मछलियाँ तुम्हारी घनी पूँछ पर आ कर चिपक जायेंगी। पर थोड़ा धीरज रखना नहीं तो तुम कुछ नहीं पकड़ पाओगी।”

लिसा लोमड़ी यह सुन कर बहुत खुश हुई और वह भी नदी से मछली पकड़ने के लिये नदी की तरफ चल दी। उसने अपनी पूँछ बर्फ में नीचे डाली और ज़ोर से बोली — “मेरी पूँछ पर छोटी और बड़ी सब तरह की मछली आ जाओ।” पर उसकी पूँछ पर तो कोई मछली नहीं आयी।

लोमड़ी बेचारी रात भर वहाँ बैठी बैठी ठंड में सिकुड़ती रही। सुबह होते होते उसकी पूँछ तो जम ही गयी थी। जब उसने उठने की कोशिश की तो उसने देखा कि वह तो वहाँ से उठ ही नहीं पा रही है।

अपनी पूँछ इतनी भारी देख कर वह यह सोच कर खुश हो गयी कि लगता है कि मेरी पूँछ पर बहुत सारी मछलियाँ चिपक गयी हैं शायद इसी लिये मैं उठ नहीं पा रही हूँ। सो वह वहीं बर्फ में जमी हुई बैठी रही और सोचती रही कि अब वह क्या करे।

इतने में उसने देखा कि जानवर अपने अपने हाथों में लकड़ी के डंडे और मिट्टी के ढेले ले ले कर चले आ रहे हैं। आते ही वे लोमड़ी पर टूट पड़े और उसके ऊपर कीचड़ उछालने लगे और सड़े हुए टमाटर फेंकने लगे।

लिसा लोमड़ी ने उस जमे हुए पानी से बाहर निकलने की बहुत कोशिश की। बड़ी मुश्किल से वह अपने आपको वहाँ से छुड़ा सकी। घायल और परेशान लँगड़ाती हुई वह वहाँ से बर्फ के ऊपर से होती हुई अपने घर की तरफ भाग ली।

इस तरह से जानवरों ने उस चालाक लिसा लोमड़ी से अपना बदला लिया।

(साभार सुषमा गुप्ता जी, जिन्होंने लोक-कथाओं पर उल्लेखनीय काम किया है.)

  • रूस की कहानियां और लोक कथाएं
  • भारतीय भाषाओं तथा विदेशी भाषाओं की लोक कथाएं
  • मुख्य पृष्ठ : संपूर्ण हिंदी कहानियां, नाटक, उपन्यास और अन्य गद्य कृतियां