ठगराज : ओड़िआ/ओड़िशा की लोक-कथा
Thagraj : Lok-Katha (Oriya/Odisha)
जगन्नाथ पुरी में रथयात्रा की तैयारियां ज़ोर-शोर से चल रही थीं। पूरे
देश से भक्तजन इस यात्रा में सम्मिल्रित होने आए थे। यहीं पर एक
सराय में एक शहर के ठग और एक गांव के ठग की भेंट आपस में हो
गई। दोनों ही ठगी के लिए रोज़ नई जगह जाते थे। इससे पकड़े जाने का
डर कम रहता था। यहां भी ये दो नामी ठग धन कमाने की नीयत से
आए थे। गांव के ठग के सिर पर सेमल की रुई का बड़ा सा बोरा था।
शहर के ठग के कंधे पर छोटा सा झोला लटक रहा था।
“तुम्हारे पास क्या है?” शहर के ठग ने गांव के ठग से पूछा।
“मेरे पास ताज़ी हवा है। जो शहरों में नहीं मिलती। मैं इसे ऊंचे दाम
पर बेचूंगा।”
इस बात से शहर का ठग ललचा गया। उसने कहा, “मेरे पास क़ीमती
पत्थर हैं। जो कहीं भी बिक जाते हैं।"
“क्या तुम हवा के बदले मुझे अपना थैला दोगे?" शहर का ठग तो
यही चाहता था, तुरंत तैयार हो गया।
रात में दोनों ठग अपने-अपने घर गए। अपनी पत्नी और बच्चों के
सामने डींगे मारने लगे। “आज तो एक आदमी को ख़ूब उल्लू बनाया।"
“देखो छोटे से कोयले के थैले के बदले बोरी भर शुद्ध क़ीमती हवा
लाया हूं।" लेकिन जैसे ही बोरी का मुंह खोला, रूई चारों तरफ उड़ने लगी।
दूसरे ठग ने जब थैला खोला और देखा उसमें कोयले थे, उसकी
पत्नी ने ताना कसा, “चलो आज ठग को भी किसी ने ठग लिया। कोई
ढंग का काम तो तुम्हें करना नहीं है। अच्छा हुआ।"
अगले दिन फिर रास्ते में उनका आमना-सामना हो गया। दोनों ने
एक-दूसरे को घूरकर देखा और फिर ज़ोर से ठहाका लगाया। “ये भी ख़ूब
रही, उस्तादों से उस्तादी!” एक बोला।
“मैं तो किसी सुंदरी के आंख का काजल चुरा सकता हूं।" दूसरा
बोला।
“मैं तो ब्राह्मण के माथे का तिलक चुरा लूँ और उसे पता भी ना
लगे।” पहले ने रौब दिखाया।
इस पर दोनों ने एक साथ ठगी करने की बात तय की। दोनों ने रात
साथ में गुज़ारी। सवेरे वे एक घर में घुसे। वहां एक रईस बुढ़िया रहती
थी। दोनों ने बुढ़िया के बारे में जानकारी आसपास के लोगों से इकट्ठी
कर ली थी। वह बुढ़िया के पास गए, पैर छुए और बोले, “बुआ हम तुम्हारे
भतीजे हैं। तुम तो इतने दिनों से घर आई नहीं। अब मेरे लड़के की शादी
में तुमको ज़रूर आना है।”
बुढ़िया ने अपने भतीजों को बचपन में देखा था। इसी से उन्हें
पहचाना नहीं। बुढ़िया ने अपने परिवार का हालचाल पूछा। फिर
अतिथियों को चांदी के बर्तनों में खाना परोसा। ये बर्तन बुढ़िया को शादी
में मिले थे। केवल विशेष मौक़ों पर ही इन्हें निकालती थी। उन दोनों ने
खाना खाया और बर्तन धोने कुएं पर गए। ठगों ने बुढ़िया की नज़र
बचाकर चुपचाप बर्तन अपने कपड़ों में छिपा लिए। एक चिल्लाने लगा,
“अरे अरे क्या करता है, बर्तन कहां लिए जा रहा है?” आवाज़ सुनकर
बुढ़िया आई तो दोनों बोले, “बुआ बर्तन तो कुएं में गिर गए।” बर्तन खोने
से बुढ़िया दुखी हो गई और उसने कहा, “बेटा मैं तो तुम्हारे साथ नहीं चल
सकती। मेरा बेटा तुम्हारे साथ शादी में जाएगा।” बेटे ने उन दोनों को
बर्तन छुपाते देख लिया था। उसने मां के सामने कुछ नहीं कहा और
अपने घोड़े पर बैठ इन दोनों के साथ चल दिया।
चलते-चलते रास्ते में दोनों ठग बोले, "ए भाई घोड़ा रोको तो, बड़ी
भूख लगी है। हमारे पास तो पैसे नहीं हैं, तुम अमीर आदमी हो, ज़रा
अच्छा खाना खिलवाओ।"
“क्यों नहीं! इस जगह मेरा लेन-देन चलता है। हमें कुछ भी ख़र्च नहीं
करना पड़ेगा।" युवक ने कहा। वह इन दोनों को सबक़ सिखाना चाहता
था।
“ठीक है, ये तो बड़ी अच्छी बात है।” दोनों ठग बोले।
“तुम लोग यहीं रुको, मैं इंतजाम करके आता हूं," ऐसा कहकर वह
युवक वहां एक व्यापारी के पास गया। गुपचुप बात की। फिर वापस
आया और दोनों ठगों को व्यापारी के पास ले गया। व्यापारी ने युवक को
धन दिया। वह धन लेकर जाने लगा तो दोनों ठग बोले, “अरे भई अकेले
कहां जाते हो, हम भी चलते हैं।"
“नहीं मुझे काम है, थोड़ी देर में आता हूं। तब तक तुम्हारे स्वागत
और खान-पान का ध्यान ये श्रीमान रखेंगे।” युवक ने व्यापारी की ओर
इशारा किया।
व्यापारी ने उन दोनों को डपटकर कहा, “जाओ पीछे खेतों में मज़दूरों
के साथ काम पर लगो।” उन दोनों ने व्यापारी को समझाने की बहुत
कोशिश की कि वे मज़दूर नहीं हैं, पर व्यापारी ने कहा, “मैंने तुम दोनों
को पैसे देकर ख़रीदा है, काम तो लूंगा ही।"
“नहीं-नहीं, हम लोग अच्छे घर-परिवार के हैं। उस युवक ने हमारे
साथ धोखा किया है। आपको भी धोखा दिया है। हम उसे खोज लाएंगे,
आप एक बार हमें जाने दो।” दोनों ने बहुत विनती की। व्यापारी को दया
आ गई। उसने अपना एक नौकर उन दोनों के साथ युवक को खोजने के
लिए भेज दिया।
इस बीच वह युवक दूसरे गांव पहुंच गया। वहां एक हलवाई की
दुकान पर जाकर गपागप मिठाई खाने लगा। दुकान पर एक छोटा
लड़का बैठा था। उसने कहा, “मिठाई खानी है तो दाम निकालो।”
“देखो बच्चे मैं तुम्हारे पिताजी का दोस्त हूं। उनसे जाकर कहो
मक्खी मिठाई खा रही है, कुछ नहीं कहेंगे।” युवक ने प्यार से बच्चे को
समझाया।
जब उस बच्चे ने जाकर पिता को बताया तो वे नाराजगी से बोले,
“जाओ-जाओ, मक्खी तो मिठाई खाती ही है। चिंता मत करो, एक
मक्खी कितनी मिठाई खा लेगी।”
बच्चा लौटा। इस बीच में युवक ने ख़ूब छककर मिठाई खाई। थैलों
में भी भरी और घोड़े पर सवार होकर चल दिया। “रुको-रुको,” बच्चा
चिल्लाता रहा।
आगे रास्ते में उसने एक बूढ़ी औरत को देखा। उसके साथ उसकी
सुंदर बेटी भी थी। युवक उस पर मोहित हो गया। उसने झपटकर युवती
को घोड़े पर बैठाया और तेज़ी से आगे बढ़ गया। बुढ़िया रोती-चिल्लाती
उसके पीछे भाग रही थी। “अम्मा, तेरी बेटी को बहुत प्यार से रखूंगा।
हां, मेरा नाम याद रखना-जंवाई राजा।"
बुढ़िया रोने, चिल्लाने लगी, “हाय मेरी बेटी, मेरी बेटी।” लोग जमा
हो गए। “क्या हुआ? क्या हुआ?” पूछने लगे।
“वो मेरी बेटी को उठाकर ले गया, हाय! मैं क्या करूं?”
“कौन ले गया तेरी बेटी को अम्मा?” लोगों ने पूछा।
“जंवाई राजा,” बुढ़िया ने बताया।
यह बात सुनकर लोग हंसने लगे और बोले, “अरे, यह तो ख़ुशी की
बात है। बेटी को तो एक दिन जंवाई राजा के साथ जाना ही था, रोती क्यों
है?”
इस तरह रास्ते में सबको चकमा देता युवक सुंदर युवती को साथ
लिए घर की तरफ़ लौट रहा था। एक जगह पेड़ के नीचे उसने घोड़ा रोका
और वे दोनों थैले में से मिठाई निकालकर खाने लगे। पास ही राजघराने
का धोबी कपड़े सुखा रहा था। उसने कुछ मिठाई उसे भी दी और बताया,
“ये मामूली नहीं, दिव्य मिठाइयां हैं। वहां झील के उस पार पेड़ पर उगती
हैं। जितनी चाहे तोड़ लो। ख़ुद भी खाओ और बेचकर पैसे भी कमाओ।”
धोबी उसकी बातों में आ गया और विनती की, “कुछ देर आप मेरे कपड़ों
का ध्यान रखना, मैं मिठाई लेकर जल्द ही लौट आऊंगा।"
“जाओ, पर शीघ्र लौटना। हम अधिक देर नहीं रुक सकते हैं।” युवक
ने कहा। जब धोबी चला गया तो युवक ने राजघराने के क़ीमती वस्त्रों की
गठरी बांधी, घोड़े पर लादी और युवती को बैठाकर चल दिया।
व्यापारी का नौकर और दोनों ठग उसे ढूँढ़ते हुए हलवाई की दुकान
पर पहुंचे। उसकी बातें सुनीं और अपने साथ मिला लिया। आगे बुढ़िया
मिली, वो अभी तक अपनी बेटी के लिए रो रही थी। अब इन पांचों की
टोली युवक की तलाश में आगे बढ़ी, तो देखा धोबी लुट जाने पर अपना
सिर पीट रहा था। उसे भी साथ लिया। वे सब रास्ते में अपनी-अपनी
कहानी सुनाने लगे। सब क्रोध में थे और युवक को पकड़ना चाहते थे।
अंततः एक गांव के बाहर इन लोगों ने उस युवक को पकड़ ही लिया।
सबने उसका घेराव किया और धमकाने लगे। बचने का कोई उपाय न
देख वह बोला, “देखो भाई, आप सब मेरी बात सुनो, मैं कोई चोर-
उचक्का नहीं हूँ। मैं आप सबका सामान लौटा दूंगा। जो मिठाई मैंने खाई
थी, उसके पैसे दे दूंगा। मैं तो परख रहा था कि कैसे लोग आसानी से
बेवकूफ़ बन जाते हैं। आप सब छोटे-मोटे फ़ायदे के लिए मेरी बातों में आ
गए। आज आप सब मेरे मेहमान हैं। मैं आप सबके रहने-खाने का
इंतज़ाम अपने एक मित्र के घर में कर देता हूं। रात्रि में आराम कीजिए।
सवेरे मैं सबका सामान लौटा दूंगा, फिर आप लोग अपने-अपने घर चले
जाना।”
वे सब लोग खा-पीकर सो गए। युवक ने मोहल्ले के चौकीदार को
घूस दी और डोंडी पिटवा दी, “गांव में कुछ नए लोगों को देखा गया है।
लगता है पड़ोस के जासूस हैं। जो कोई इनको पकड़ने में सहायता करेगा
उसे इनाम मिलेगा।"
पकड़े जाने की घोषणा सुनकर दोनों ठग, व्यापारी का नौकर,
हलवाई, बुढ़िया, धोबी सभी घबरा गए और वहां से जान बचाकर भागे।
जाते-जाते अपने पास का सामान भी वहीं छोड़ गए। बहुत दूर निकल
जाने पर जब लगा कि कोई उनके पीछे नहीं आ रहा था तो दोनों ठग एक
जगह बैठ गए। एक ठग दूसरे से बोला, “भाई आज तो जान बची। तुम
शहर के नामी ठग हो और मैं गांव का। पर हम तो छोटी-मोटी हेरा-फेरी
करते हैं। मामूली ठग हैं। असली ठग तो वह युवक है, ठगों का राजा
'ठगराज'। सबको ख़ूब चकमा दिया।"
उधर उस युवक ने सबके भागने का तमाशा देखा। हंसते-हंसते
अपनी मां के चांदी के बर्तन लिए और युवती के साथ घोड़े पर सवार
अपने घर पहुंचा। घर पर मां के आशीर्वाद से युवती से शादी की और
सुखपूर्वक रहने लगा। एक दिन पत्नी ने पूछा कि उसने उन सब लोगों
को क्यों सताया? इस पर युवक बोला, “ख़ाली हेरा-फेरी में क्या है! मज़ा
तो चतुराई से चकमा देने में है।”
(शशि जैन)