दस लाल कौए : चीनी लोक-कथा

Ten Red Crows : Chinese Folktale

सबसे पहले यह दुनियाँ अँधेरे में थी। जो लोग पूर्वीय शहतूत के पेड़ के साये में रहते थे उन्होंने तो कभी रोशनी देखी ही नहीं थी। इसलिये वे तो सोच भी नहीं सकते थे कि रोशनी होती क्या है। सो दस लाल कौओं ने मिल कर जिनके सबके तीन तीन पंजे थे इस अँधेरी दुनियाँ में रोशनी लाने के लिये अपनी खतरे से भरी यात्रा शुरू की।

वे एक खतरे वाले और बिल्कुल ही ऊबने वाले रास्ते पर बहुत दूर तक उड़ते रहे। काफी देर बाद उन्होंने अँधेरे में कुछ चमकता हुआ देखा।

वे अब देवताओं के राज्य में आ गये थे जहाँ बहुत चमकीली रोशनी थी और गर्मी थी। वे लाल कौए अपनी इस नये राज्य की खोज पर बहुत खुश थे।

वे रोशनी और गर्मी के बारे में जानने के लिये वहाँ बहुत दिन तक रहे। जैसे जैसे उनकी उस राज्य के बारे में जानकारी बढ़ती गयी उनके शरीर भी बदलते गये। अब उनके शरीरों में से कई रंग की चमकीली रोशनी निकलने लगी थी, साथ ही गर्मी भी।

जब उनको इस राज्य के सारे राज़ मालूम हो गये तो वे दसों लाल कौए धरती की तरफ चले। वे सब ऐसे चमकीले थे जैसे तारे। उनके शरीरों से निकलती हुई गर्मी भी बहुत तेज़ थी।

जो लोग पूर्वीय शहतूत के पेड़ के साये में रहते थे उन्होंने उनके आने के बारे में सबसे पहले तब जाना जब उनको दूर धरती और आसमान मिलने की जगह पर उनकी थोड़ी सी चमक दिखायी दी।

और उसके बाद तो बस सारी दुनियाँ ही नीले आसमान के सामने बहुत सारे रंगों की रोशनी से चमक गयी।

पर जैसे जैसे वे कौए पास आते गये वह रोशनी नीली सफेद होती गयी और उसके साथ ही उनकी गर्मी भी बहुत ज़्यादा हो गयी। वह गर्मी इतनी ज़्यादा थी कि वह जिस किसी को भी छूती वह चीज़ जल जाती।

जब वे दस कौए उस शहतूत के पेड़ पर बैठे तो सारी धरती सूखने लगी और चारों तरफ गर्मी फैलने लगी। जो उस पेड़ के साये में रह रहे थे वे सब भी इस गर्मी से डरने लगे।

वे सब उन दस लाल कौओं की रोशनी और गर्मी न सह सकने की वजह से दर्द से अपनी आँखें बन्द करते हुए हरी हरी घास पर लोटते हुए चिल्लाये — “हमें बचाओ, हमें बचाओ।”।

तीर चलाने में होशियार यी ने उनकी पुकार सुनी और देखा कि वे दस लाल कौए तो उनके लिये रोशनी की बजाय मौत ले कर आये हैं सो उसने अपनी कमान उठायी, उस पर नौ तीर रखे और एक के बाद एक कर के नौ कौओं को मार दिया।

हर कौआ नीले आसमान से नीचे गिर गया और मर कर अँधेरे में गायब हो गया। पर यी ने दसवें कौए को छोड़ दिया ताकि दुनियाँ से रोशनी और गर्मी बिल्कुल ही गायब न हो जाये।

आज भी वह दसवाँ लाल कौआ रोज पूर्वीय शहतूत के पेड़ से उठता है, सारी दुनियाँ का उड़ते हुए एक चक्कर लगाता है और फिर लौट कर उसी पेड़ पर बैठ जाता है।

इस तरह से वह दसवाँ कौआ अब सूरज के रूप आसमान में रहता है और दुनियाँ को रोशनी और गर्मी देता है।

(साभार सुषमा गुप्ता जी, जिन्होंने लोक-कथाओं पर उल्लेखनीय काम किया है.)

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