टेलीफोन सेट (कहानी) : डॉ. शोभा घोष
Teliphone Set (Hindi Story) : Shobha Ghosh
लो फिर कोई आ गया घंटी। बजते ही उमा तिलमिला उठी। हाथ धोये बिना ही दरवाजा खोलने चली। दरवाजा खोल कर जिस देवीजी का दर्शन हुआ उनसे उमा बहुत डरती है। मुहल्लेवाले उसे बातूनी बुआ कहते हैं। जिसके पास पहुँच गयी उसकी घंटे दो घंटे की नहीं, पर पूरे पहर की छुट्टी हो गयी। शहद शून्य मधुमखी! दूसरों की निंदा करना, दूसरों के घर में आग लगाना ही उनका काम है, उमा डर गयी, न जाने किसकी शिकायत ले कर पहुँच गयी है। बोली – ‘नमस्ते बुआ, क्या बात है?’
‘चलो अंदर, बतलाती हूँ। इतनी धूप है, सर फटा जा रहा है, हाँ बेटी, जरा मुन्नी के बापू को टेलीफोन कर के बतला दो कि शाम को जब लौटेंगे तो गरमा-गरम समोसा लेते आएंगे और हाँ, दाल बेसन के लड्डू अगर ताज़ा मिले तो ले लें। कल होली है, सबका मुँह मीठा करना होगा न।‘
'मैं अभी कर देती हूँ, तुम बैठो बुआ।'
'और कह देना कि चाय पत्ती और साबुन भी लेते आवेंगे।'
'हेलो, क्या कहा? नहीं है? अच्छा धन्यवाद्।'
‘बुआ, फूफा तो अभी है नहीं, किसी को मालूम नहीं कब तक आवेंगे।‘
‘अच्छा बिटिया एक काम करो, तुम मुझे थोड़ी सी चाय पत्ती दे दो। फिर थोड़ी देर में दुबारा फ़ोन करके बतला देना। भूल न जाओ, लिख लो - समोसा, दाल बेसन के लड्डू, और चाय पत्ती साबुन।'
‘अच्छा बुआ, कर दूँगी, यह लो चाय पत्ती।‘
‘अच्छा बिटिया, एक बात बतला, आजकल तुम्हारी वह सहेली, अरे भूल गयी वह काली-कलूटी सर पर चिड़ियों का घोंसला बनाकर लिपस्टिक लगा कर जिस छोकरे के साथ घूमती है, वह है कौन?’
‘बुआ, वह उसका मौसेरा भाई है, हाल में विलायत से लौटा है।'
‘भाई है तो क्या हुआ? दुनिया तो नहीं जानती। कुवारी लड़की का इतना सज-धज कर तितली बनकर उड़ते रहना सभी को बुरा लगता है।‘
वह आगे कुछ बोलने वाली थी कि उमा ने टोकते हुए कहा - 'बुआ अभी जरा एक काम से बहार जाना है।'
अच्छा बिटिया, मैं भी अभी चलती हूँ, हजारों काम पड़े हैं। अच्छा बिटिया, उन्हें फ़ोन जरूर कर देना।‘
उन्हें विदा करके जब फिर खाना खाने बैठी तो खाना बिलकुल ठंडा हो चूका था। जैसे-तैसे खाना खा कर हाथ धो कर लेटने चली तो फिर घंटी बजी। दरवाजा खोल कर पूछा, किसको मिलना चाहते हो?
‘आपको’ - जवाब मिला
‘क्या काम है?’
‘माताजी ने यह चिट्ठी दी है।‘ खोलकर पढ़ा - लिखा था, 'प्रिय उमा, आज हमलोगों को मैटिनी शो में सिनेमा जाना है, रूपक में जरा फ़ोन करके पूछलो कि टिकट मिल जायेंगे? हाँ, एक बात और, नौकर के हाथ तुम मुझे २५ रुपये भेज देना, परसों लौटा दूँगी।‘ उमा ने नौकर को सूचना सहित २५ रुपये दे कर विदा किया।
दूसरे दिन की बात है, शाम का वक्त है, उमा को कुछ सामान लेने बहार जाना था। वह तैयार हो कर चप्पल पहन रही थी कि घंटी की आवाज़ सुनते ही तिलमिला उठी। रोज़ यही हाल। जब से इस घर में टेलीफोन आया है, उसकी परेशानी दिन दुगनी रात चौगुनी बढ़ गयी है। दरवाजा खोल के – ‘अरे भाभी, आप, क्या बात है?'
‘अरे मत पूछो, नौकर ब्याह करने जब से गया तब से अभी वहीँ दुल्हिन का पल्ला पकड़े बैठा है। सुपुत्रों से कहा जरा फ़ोन कर आओ, तो उसी वक्त खेलने जाना है। माँ-बाप चाहे बच्चो के लिए जान दे दे, पर वे भला कभी महसूस करते हैं? आज अप्पर इंडिया से हमारे भैया भाभी आ रहे हैं। जरा फ़ोन करके पूछ लो, गाड़ी लेट तो नहीं है?’
‘भाभी, फ़ोन ख़राब है, सूचना भेजी है, अभी ठीक करने नहीं आया है।‘
‘अरे उमा, मैंने धुप में बाल सफ़ेद नहीं कीये, फ़ोन नहीं करना है तो साफ़ बतला क्यों नहीं देती? अरे हम से पैसे ही ले लेती’, कह कर एक अट्ठनी निकल के उसके सामने फेंक दी। ‘एक टेलीफोन आ गया है तो बड़ा दिमाग हो गया है। अर्जी तो हमने भी दे राखी है, बस २ महीने में मिल जायेगा। तब तुम्हारे दरवाजे थूकने भी नहीं आउंगी।‘
वह चिल्ला ही रही थी कि बगल कि शिखा भाभी पहुँच गयी, ‘उमा, उमा बहन, एक काम कर दो अभी दूध गरम कर ही रही थी कि गैस चला गया - मेरा कस्टमर नंबर ४२० है, जरा तुरंत फ़ोन कर दो।‘ वह जवाब देने ही वाली थी कि भाभी ने तन कर जवाब दे दिया – ‘अरे भाई, इन का फ़ोन खराब है, कब से मैं इनकी सिफारिश कर रही थी, सो फ़ोन ठीक नहीं हुआ’ - कह कर चल दी। पीछे-पीछे शिखा भी।
उमा को बेहद गस्सा आया, आज ही इसे पटक-पटक आकर चूर कर दूँगी। न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी। वह टेलीफोन कि तरफ बढ़ने लगी परन्तु फिर बुलाहट, लो फिर कोई आ गया। दरवाजा खोले बिना ही उसने पूछा - ‘क्यों, क्या है? फ़ोन करना है? फ़ोन ख़राब है।'
'अरे उमा मैं हूँ, दरवाजा खोलो।'
दरवाजा खोल कर राकेश (उसका पति) को देखकर वह उसी पर बरस पड़ी, ‘मैंने लाख मना कीया था, फ़ोन मत लो, तुम तो दिन बाहर रहते हो, इस फ़ोन कि वजह से मुझ पर क्या बीतती है तुम्हें क्या मालूम? उठते-बैठते, खाते-पीते, दिन भर - फ़ोन करना है, फ़ोन करना है। किसी को चावल मंगाना है, किसी को सिनेमा टिकट लेना है, किसी को ब्याह का तोहफा मंगवाना है, तो किसी को प्रेमी के साथ मिलने का समय तय करना है, तो किसी को गुलाल और मिठाई मंगवाना है। फ़ोन ख़राब हो तो बहाना समझकर खरी खोटी सुनने को मिलती है।‘
'उमा क्या मालूम था कि इसकी वजह से तुम्हारी परेशानी बढ़ जाएगी, मैंने तो तुम्हारी सुविधा के लिए फ़ोन मंगवाया था।'
‘लो फिर कोई आया, वह सर पर हाथ रख कर बैठ गयी।‘
राकेश ने कहा, ‘मैं देखता हूँ, कौन है?’
‘होगा कौन, कोई फ़ोन करने वाला ही होगा - न जाने कौन हमारे बदकिस्मत का तोहफा ले कर आया है।‘
दरवाजा खोलकर – ‘अरे आराधना तुम?’
'नमस्ते जीजाजी, उमा नहीं है क्या?'
'है, आओ।'
'अरे, आज ये गूलर का फूल कैसे दिखा?'
'व्यंग मत करो उमा, चाँद मिनिट कि फुर्सत नहीं मिलती आज भी स्वार्थ से ही आयी हूँ।'
‘क्यों, फ़ोन करना है क्या?’
‘हाँ जी, तुम्हें कैसे मालूम?’
‘हमारी हाथ कि रेखा जो कह रही है।‘
‘तुम्हारे जीजाजी दफ्तर जाते समय कह गए थे कि संजय को फ़ोन करके बतला देना कि अल्पना को लेकर नींद खुलते ही हमारे यहाँ आ जाये, यहीं रंग खेलेंगे कल।‘
‘आराधना, माफ़ करना, फ़ोन खराब है। अंजू दीदी के यहाँ से कर लो न।‘
‘न बाबा, उनके यहाँ फोन करने जाओ तो कोई न कोई बहाना बनाकर इंकार कर देती है। अरे, वक्त बेवक्त ज़रा फोन कर लेने से फ़ोन घिस तो नहीं जायेगा, रही पैसे कि बात, सो साफ़ साफ़ कह क्यों नहीं देती कि भाई पैसे दो और फ़ोन करो। अच्छा उमा, एक काम करो, मैं चिट्ठी लिख देती हूँ जरा अपने नौकर से पहुंचवा दो। उससे कह देना आते समय ५ रुपये कि मिठाई, १ रुपये का गुलाल और एक छोटी सी पिचकारी लेता आएगा। अभी मौका न हो तो थोड़ी देर बाद घर पर पहुंचवा देना। अच्छा अभी चलती हूँ, घर में सौ काम पड़े हैं। फिर मौका लगते ही आ जाउंगी। लो हो गयी छुट्टी।‘
‘अभी किशन को सिनेमा टिकट लेने भेजने वाली थी।‘
राकेश ने कहा – ‘जल्दी तैयार हो जाओ हमी लोग जाकर टिकट ले लेंगे। वे लोग तैयार हो कर स्कूटर पर बैठने ही वाले थे कि टेलीफोन का नया लाल रंग का सेट लेकर एक आदमी आ पहुंचा। आज उमा की वर्ष गाँठ है, उसे यह नया सेट लेने का इरादा था। उसे देखते ही उमा तिलमिला उठी, बोली- सुनिए, इनकी बदली हो गयी है। आप यह नया सेट लेते जाईये और यह लीजिये लाइन काटने का नोटिस। लाइन काट दीजियेगा। धन्यवाद्।‘
उसे बिदाकर उसने स्कूटर पर बैठते ही चैन की साँस ली।
'उमा, तुमने यह क्या किया? तुम्हें यह नया सेट लेने की ….. ?
‘चलो, चलो जल्दी स्टार्ट करो, फिर कोई फोन करने पहुंच जायेगा।‘
वे दोनों जोर से हंस पड़े। भीतर फ़ोन की घंटी बजी और बजती ही रही वे दोनों हवा हो गए।