टेलिफोन (व्यंग्य) : हरिशंकर परसाई
Telephone (Hindi Satire) : Harishankar Parsai
एक वैज्ञानिक था । उसने देखा की दुनिया के आधे लोग बाकी आधे लोगो की सूरत से नफ़रत करते हैं, पर उनसे बात ज़रूर करना चाहते हैं । उसने सोचा की कोई ऐसी कल बनानी चाहिए,जिसमे आदमी की सूरत तो ना दिखे पर उससे बातचीत हो सके । वह उसी छन काम में निरत हो गया । उसका एक शत्रु उसके घर से काफ़ी दूर रहता था । वैज्ञानिक ने एक तार लिया और उसके दोनों सिरों पर एक-एक चौँगा लगा दिया । एक सिरा उसने अपनी प्रयोगशाला में रखा और दूसरा अपने शत्रु के घर में । उसने वर्षों प्रयोग किया । वह रोज़ अपने चोंगे में कहता, "तुम बदमाश हो ?" उधर से कोई जवाब ना आता । एक दिन उसने हमेशा की तरह कहा, "तुम बदमाश हो !" उधर से क्रोध भरा उत्तर मिला, "तुम भी बदमाश हो !" वैज्ञानिक खुशी से उछल पड़ा । वह अपने पूर्वज आर्कमिडिस की तरह नंगा होकर सड़क पर खुशी से दौड़ना चाहता था, पर वह कपड़े उतार ही रहा था की उसे ख्याल आया, जमाना बदल गया है और मुझे पूलिस पकड़ लेगी । वैज्ञानिक अनुसंधान के सबसे महान छन में भी पूलिस को नहीं भूलता, यह मानव-स्वतंत्रता के लिए शुभ लक्षण है । इस अविष्कार से मानवी संबंधों में क्रांति हो गयी है । अब दुश्मन से बोल-चाल बंद करने की आवश्यकता नहीं रह गयी । उसकी सूरत बिना देखे उससे बात की जा सकती है । यह वैज्ञानिक उतना ही महान हुआ जितना वह विचारक जिसने यह सूत्र बताया था की किसी से बोल-चल बंद हो, तो उससे भी लिफाफे में कोरा काग़ज़ भेजकर पत्र-व्यवहार किया जा सकता है ।
टेलिफोन के अविष्कार से मनुष्य का नैतिक स्तर उठ गया । फोन पर सच और झूठ दोनो अधीक सफाई से बोले जा सकते हैं । आदमी आमने-सामने तो बेख़टके झूठ बोल जाता है, पर सच बोलने में झेंपता है । टेलिफोन के कारण संसार में सत्य-भाषण लगभग 67 प्रतिशत बढ़ा है । इससे मनुष्य जाती अधीक वीर भी बनी है । जिसकी छाया से भी डर लगता था, उस आदमी को फोन पर गाली भी दी जा सकती है, और जब तक वह पता लगाकर आपको मारने आए, आप भागकर बच सकते हैं ।
अब मैं फोन के उपयोग का ढंग बताता हूँ । भारत पीछड़ा हुआ देश है, इसलिए यहाँ लोगों को बात करना भी नहीं आता ।
घंटी बजते ही चोन्गा नहीं उठाना चाहिए । जब घंटी थक जाए और आराम करने लगे, तब उठाना चाहिए । इससे यह प्रभाव पड़ेगा की आपके पास फोन आते ही रहते हैं ।