तेजीमोला : असमिया लोक-कथा
Tejimola : Lok-Katha (Assam)
तेजीमोला को अपने पैदा होने से पहले से ही बहुत परेशानियाँ उठानी पड़ी थीं और उसके बाद भी उसे जीवन में कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।
तेजीमोला के जन्म लेने से तीन हफ्ते पहले उसकी माँ न्योमोली ने इतने सारे संतरे, पके हुए आड़ू और इतने सारे चिकने बीज खा लिए थे कि उसे अपने बचपन में सुनी वे बातें याद आ गई थीं कि अगर आप गलती से बीज निगल जाते हो तो रातोरात एक पेड़ में तब्दील हो जाते हो। डर के मारे वह उस रात सो नहीं पाई और अजीब-अजीब सपने उसे आते रहे कि वह अलग-अलग तरह के पेड़ों में बदल गई है। सुबह उसने अपने पति धनीराम को सपनों के बारे में बताया। वह एक व्यापारी था और अकसर काम के सिलसिले में बाहर रहता था। धनीराम ने उसे समझाया कि उसके सपनों का कोई मतलब नहीं है। यही नहीं, उसकी दाई अगहुनी ने यह भी कहा कि उसे सपने में चूँकि हरे-भरे आम और अन्य पेड़ दिखाई दिए हैं तो इसका अर्थ है कि वह एक स्वस्थ बच्चे को जन्म देगी और संतान सुख भोगेगी। पर अगहुनी की बात गलत साबित हुई और बच्ची को जन्म देते ही न्योमोली की मृत्यु हो गई। बच्ची की आंवन नाल काटते हुए अगहुनी ने देखा कि वह छोटी नन्हीं कलियों में बदल रही है। जब तक उसने बच्ची को नहलाया, वे कलियाँ पूरी पत्तियों का रूप ले चुकी थीं। हालाँकि उसने उन्हें एक-एक कर चुनना शुरू कर दिया था, पर वे उसके शरीर के विभिन्न हिस्सों से किसी घास की तरह उगने लगी थीं। जब तक न्योमोली की पलकों को उन पत्तियों ने ढका, वह मर गई, क्योंकि पत्तियों द्वारा उसके शरीर से सारे रक्त को चूस लेने के कारण वह साँस नहीं ले पा रही थी। अगहुनी ने पूरी कोशिश करके उसके शरीर को साफ किया, ताकि किसी को इस बारे में पता न चले और उसके बाद ही सबको बच्ची के जन्म की सूचना दी। उसने धनीराम से यह भी कहा कि क्योंकि वह न्योमोली को अपनी बहन की तरह मानती थी, इसलिए जब तक तेजीमोला शादी के योग्य नहीं हो जाती और किसी योग्य वर से उसका विवाह नहीं हो जाता, वह उसकी देखभाल करना चाहेगी। असल में उसे डर था कि कहीं शिशु के शरीर में से भी पत्तियाँ न फूटने लगें और उसकी भी मृत्यु न हो जाए।
धनीराम ने अपने घर के पिछवाड़े में उसके लिए एक घर बनवा दिया, ताकि वह वहाँ रहते हुए बच्ची की देखभाल कर सके। वैसे भी उसका कोई रिश्तेदार नहीं था। तेजीमोला को सब प्यार से ‘तेजी’ कहते थे। गाँववालों के जोर देने पर धनीराम ने दूसरा विवाह कर लिया, ताकि तेजी को माँ का प्यार मिल सके। इस बीच अगहुनी, तेजीमोला के शरीर से कम-से-कम चार बार अलग-अलग तरह की पत्तियाँ निकाल चुकी थी। ऐसा करने के लिए वह कभी उसे हल्दी का लेप लगाती, तो कभी सोयाबीन का लेप, ताकि उसे पत्तियाँ खींचकर निकालनी न पड़ें।
इस तरह के लेप लगाए जाने के वजह से तेजीमोला के रंग में लगातार निखार आता जा रहा था और उसकी सौतेली माँ रमोला उसे देख जहाँ हैरान रह जाती, वहीं उसे जलन भी होती। उसका खुद का रंग काला था और तेजीमोला न सिर्फ सुंदर थी, वरन् उसकी आँखें भी एकदम अंडाकार थीं और पलकें घनी थीं। पर अगहुनी को हमेशा उसकी चिंता सताए रहती थी कि कहीं उसे भी कुछ हो न जाए। दो हफ्ते पहले लाल गरदनवाले हरे रंग के तोते ने धनीराम के घर पर, जब वह बाहर अपना सामान बेचने जाने के लिए सामान बाँध रहा था, तब गीत गाया था। अगहुनी की सोते-सोते ही मृत्यु हो गई।
तोते ने यह गीत गाया था—
“जब तुम मुझे देखते हो, तुम नाराज हो जाते हो
तुम्हारी बेटी एक खूबसूरत युवती बन गई है
तुम शहर से उसके लिए वर कब लेकर आओगे?”
तोते की आवाज बहुत ही कर्कश और तेज थी, जिसे सुनकर धनीराम को अपनी दूसरी पत्नी का ध्यान आ जाता, जो बहुत ही लड़ाकू किस्म की स्त्री थी। गाँव में वह सबसे लड़ती रहती थी और तेजीमोला के साथ नौकरों की तरह व्यवहार करती थी। उसने तोते को देखकर एक ठंडी आह भरी और उसे आश्वासन दिया कि अगले छह महीनों की अपनी समुद्री यात्रा के दौरान वह अपनी बेटी के लिए उपयुक्त वर जरूर ढूँढ़ लेगा।
पर रमोला के दिमाग में तो कोई और ही खुराफात चल रही थी। जैसे ही धनीराम अपनी यात्रा पर निकला, उसी रात रमोला ने अपने तीनों बेटों के लिए स्वादिष्ट भोजन बनाया, पर तेजीमोला को खाने के लिए केवल बचे हुए चावल नमक के साथ खाने को दिए। वह दिन-रात उससे घर के सारे काम करवाती और सोने के लिए एक बाँस की चटाई दे देती। तेजीमोला खुशी-खुशी सारे काम करती। जब भी उसे अपनी माँ की याद आती, वह रुआँसी हो जाती। जिस रात धनीराम घर से निकला, तेजी की अंगुली में एक छोटी सी हरी पत्ती उग आई, जिसे उसने तुरंत ही चंदन का लेप लगाकर हटा दिया, जिसके बारे में अगहुनी ने उसे बताया था। वह अकसर अगहुनी को याद कर रोती, क्योंकि उसे तो माँ का प्यार उसी से मिला था।
उसकी सबसे खास सहेली का विवाह तय हो गया था और जब उसने अपनी सौतेली माँ से जाने की अनुमति माँगी तो तेजीमोला यह देखकर हैरान रह गई कि न सिर्फ उसने उसे जाने की अनुमति दे दी, वरन् अपनी माँ के सूती कपड़े माँगने पर उसने उसे अपने महँगे रेशमी कपड़े भी पहनने को दिए। उसे हिचकिचाते देख रमोला ने कहा, “तुम नए डिजाइन के कपड़े पहनो और अपने इन वस्त्रों के नीचे ब्लाउज भी पहनो। इससे तुम और सुंदर लगोगी। मैं तो अब ऐसे कपड़े नहीं पहन सकती हूँ, क्योंकि अब मैं बूढ़ी हो रही हूँ, लेकिन तुम्हें ऐसे ही कपड़े पहनने चाहिए। अपनी सहेली के विवाह में तुम खूब सजकर जाओ, पर क्या तुम अकेली वहाँ जा सकोगी?”
“हाँ, मैं अकेली जा सकती हूँ।” सुंदर कपड़ों को देखते हुए तेजीमोला ने खुशी से कहा।
पर रमोला तो कुछ और ही सोच रही थी। उसने उन कपड़ों को एक जूट के थैले में डालते हुए रेशमी वस्त्र की तहों के बीच धीरे-धीरे जलने वाला एक अंगार और एक छोटा-सा चूहा रख दिया।
फाल्गुन का महीना था। ठंडी हवा चल रही थी। सड़क पर लाल रंग के गुड़हल के फूल बिखरे हुए थे। सहेली के घर जाते हुए तेजीमोला को लगा कि जैसे थैले में कुछ हिल रहा है। वह उसे खोलकर देखना चाहती थी, पर उसकी सौतेली माँ ने उसे हिदायत दी थी कि वह विवाह-स्थल पर पहुँचकर ही थैला खोले, उससे पहले नहीं, वरना रास्ते की धूल-मिट्टी से वस्त्र गंदे हो जाएँगे। माँ के डर से तेजीमोला चुपचाप चलती रही। वह अपनी माँ के गुस्से को जानती थी। उसने अपने प्रति पहली बार जो ममता देखी थी, उसे वह खोना नहीं चाहती थी। वह हर हालत में उसे खुश देखना चाहती थी। उसने और तेज चलना शुरू कर दिया, ताकि जल्दी से सहेली के घर पहुँच सके और नहाने के बाद इन वस्त्रों को पहन सके। उसने अपने थैले से धुआँ निकलता नहीं देखा।
विवाह-स्थल पर पहुँचने के बाद जब उसने पहनने के लिए वस्त्रों को निकाला और देखा कि वे जगह-जगह से कटे हुए हैं और कहीं-कहीं से जल भी गए हैं, तो वह हैरान रह गई। वह डर के मारे रोने लगी कि अब तो उसकी सौतेली माँ उसे कोई बड़ी सजा देगी, क्योंकि उसने उसके इतने कीमती कपड़े खराब कर दिए थे।
उसकी सखी सोखी ने उसे सांत्वना देने की कोशिश की, “तेजी, तुम इसके लिए उत्तरदायी नहीं हो।”
“माँ को मैं यह बात कैसे समझाऊँगी? वह मुझे बहुत मारेगी।”
“उन्हें सब सच बता देना। इसमें तुम्हारी कोई गलती नहीं है।”
फिर सोखी ने उसे उपहार में मिले हुए अपने रेशमी वस्त्र पहनने के लिए दिए, पर तेजी दुःखी थी और यह बात भी उसे रुला रही थी कि सोखी उससे दूर चली जाएगी, जिसके साथ वह अब तक अपने सारे दुःख-सुख बाँटती आई थी।
फिर जिसका तेजी को डर था, वही हुआ। उसकी माँ ने उसकी बात पर विश्वास नहीं किया। उसने तेजी के लंबे बालों को खींचा और उसे मारने लगी। सजा के रूप में उसने तेजी से भीगे हुए चावलों को पीसने के लिए कहा। तेजीमोला बहुत रोई कि उसने सचमुच वस्त्र नहीं फाड़े हैं, पर रमोला नहीं मानी। वह तो कब से तेजी को मारना चाहती थी और अब इस सुनहरे अवसर को वह गँवाना नहीं चाहती थी, खासकर जब उसके पिता भी घर पर नहीं थे। उसने चावल पीस रही तेजीमोला के दाएँ हाथ को ही चावल के साथ पीसना शुरू कर दिया और उससे कहा कि अब वह पीसने के लिए अपने बाएँ हाथ का इस्तेमाल करे।
तेजीमोला रोते-रोते बोली, “माँ, तुमने मेरे दोनों हाथों को आहत कर दिया है। मुझे जाने दो।” रमोला ने उससे कहा कि वह अपने सिर से चावल पीसे और फिर लकड़ी के डंडे से उसका सिर ही तोड़ दिया। रमोला ने उसके शव को पिछवाड़े में दबा दिया। जैसे ही रमोला वहाँ से हटी, तेजीमोला का मांस धीरे-धीरे फूटकर कद्दू की एक बेल में बदल गया। उसकी वाहिकाओं ने मिट्टी से रक्त चूस लिया और उससे पौधे का पोषण होने लगा। पत्तियों, टहनियों और जड़ों ने तेजीमोला की आत्मा को सुरक्षित रखा। दोपहर में जब ठंडी हवा बह रही होती तो पिछवाड़े में खड़ा कद्दू का पौधा गीत गाता और अपने फूलों की खुशबू बिखेरता रहता। लोगों को इसमें कुछ भी अजीब नहीं लगता था, क्योंकि ऐसी ठंडी दोपहर में अकसर हवा में ऐसे गीत बहते थे, खासकर जब अपनी मादा कबूतर को लुभाने के लिए नर कबूतर गुटर-गूँ करते थे। बेलवाले पौधे द्वारा गाया जानेवाला गीत बहुत ही मधुर होता था। लगता था कि कहीं बहुत दूर कोई स्त्री गा रही है।
जब पड़ोसियों ने तेजीमोला के बारे में पूछा तो रमोला ने कहा कि वह अपनी सहेली के घर गई है। कुछ महीनों बाद वापस आ जाएगी। अपने अपराध-बोध की वजह से शायद रमोला पिछवाड़े में जाती ही नहीं थी। एक दिन एक दुबली-पतली स्त्री उससे भीख माँगने आई और कद्दू की माँग की। रमोला उसकी बात सुन हैरान रह गई। वह उस पर चिल्लाई, “तुम बेवकूफ हो क्या? मैंने तो हफ्तों से कद्दू नहीं पकाया है, यहाँ तक कि रोहू मछली के साथ खाने के लिए भी नहीं। मैंने अपने बेटे को आज ही बाजार भेजा है कि वह कहीं से अच्छा कद्दू ले आए, पर तुमने कहाँ से मेरे घर में कद्दू देख लिया?”
“मैं झूठ नहीं बोल रही हूँ। आप इस घर की मालकिन हैं और अगर आप मुझे कद्दू नहीं देना चाहती हैं, तो कोई बात नहीं।” उसने बहुत सम्मान से रमोला के सामने अपनी बात रखी।
स्त्री जाने को मुड़ी। रमोला हैरानी से बोली, “मुझे नहीं पता कि तुमने कद्दू कहाँ देखा है, पर अगर ऐसा है तो खुद ही जाकर ले लो।”
कुछ क्षण बाद वह स्त्री चिल्लाती और रोती हुई वापस आई और बेहोश हो गई। रमोला के तो जैसे होश ही उड़ गए। बड़बड़ाती हुई वह अंदर गई और पानी लाकर उस स्त्री पर छिड़का।
“क्या तुम ठीक हो? क्या हुआ? तुमने क्या देखा?”
होश आने पर स्त्री ने अपनी घबराई हुई नजरें चारों ओर घुमाईं। वह अभी भी काँप रही थी और पसीने से तर थी। “उस बेल में भूत है। वह कहती है कि वह तेजीमोला है और उसकी सौतेली माँ ने रेशमी वस्त्र खराब हो जाने की वजह से उसकी हत्या कर दी है। वह कौन है?” यह सुन रमोला बरामदे में इधर-उधर चक्कर काटने लगी। उसे डर लग रहा था, क्योंकि पड़ोसी अकसर उससे पूछते ही रहते थे कि तेजीमोला अभी तक वापस क्यों नहीं आई। अचानक उसके मन में एक विचार कौंधा—आखिर वह एक बेल ही है। वह तो मर चुकी है। वह एक बड़ी सी कुल्हाड़ी लेकर पिछवाड़े में गई और बेल से सटकर खड़ी हो गई, ताकि गाना सुन सके। उसने सुना, कोई विवाह के समय गाए जानेवाला विदाई गीत गा रहा है। तुरंत उसने बेल के टुकड़े-टुकड़े कर दिए। पौधे के कोमल बीज चारों ओर बिखर गए। उनका रस उसके सफेद कपड़ों पर पड़ा तो निशान बन गए। वह बुरी तरह से हाँफ रही थी और उसके माथे से पसीना बह रहा था। उस पौधे में 459 बड़े कद्दू लगे हुए थे, 92 अभी पूरी तरह से बने नहीं थे और उस पर 3045 फूल थे, जिन्हें वह एक-एक करके चुनने लगी। पहले अकेले, फिर अपने दोनों बेटों की सहायता से, जो तब तक घर लौट आए थे। बड़ा बेटा, जो कद्दू लेने गया था, अभी तक नहीं लौटा था। उन तीनों ने मिलकर एक गहरा गड्ढा खोदकर उस पौधे को बगीचे के एक एकांत कोने में दबा दिया।
इस बार जहाँ इस पौधे की पत्तियाँ, टहनियाँ, बीज, जड़ आदि दबाए गए थे, वहाँ पर गहरे लाल रंग के आलूबुखारे के फल जैसा पौधा उग आया। कुछ हफ्तों बाद गाँव के कुछ गाय चरानेवाले रमोला के पास पके हुए आलूबुखारे माँगने आए, पर उसने उनकी बात नहीं सुनी और नारियल कसने बैठ गई। तभी एक-एक कर आलूबुखारे धरती पर गिरने लगे। एक आलूबुखारे के मुँह से गाढ़ा झाग निकलकर बहने लगा। एक आलूबुखारा वहाँ बैठकर किसी बच्चे की तरह रोने लगा। फिर उनमें से एक गाने लगा—
“अपने हाथ फैलाने की हिम्मत मत करना
मैं कोई आलूबुखारे का पेड़ नहीं हूँ,
मुझे तो रेशमी वस्त्रों की वजह से पीसकर यहाँ दबा दिया गया है,
यह मैं हूँ,
मैं हूँ तेजीमोला।”
जब धनीराम गाँव लौटा, तब तक शरद ऋतु आ चुकी थी। पके धान के खेत सुनहरी लग रहे थे और एकदम स्वच्छ आकाश का स्वागत कर रहे थे, जिस पर सरसों के खेतों में खिले नन्हे पीले फूलों की तरह करोड़ों तारे टिमटिमा रहे थे। असम के एक सुदूर बसे गाँव में उसकी मुलाकात एक व्यक्ति से हुई थी, जो उसे अपनी बेटी के लिए उपयुक्त वर लगा था। मेहनती व बलिष्ठ कद-काठी का वह आदमी बड़ों के पैर छूता था, अपनी माँ की बात सुनता था और अपनी दादी की सिलबट्टे पर चूना सहित पान पीसने में मदद करता था। उसमें कोई भी बुरी आदत नहीं थी। वह रोज नहाता था, इसलिए उसका शरीर चमकता रहता था।
नाव धनीराम के गाँव के करीब पहुँच रही थी। बहते पानी की आवाज पैदा हो रही थी, जो किसी गीत की तरह लग रही थी। वह अपने साथ बहुत तरह का सामान लाया था। तभी उसकी नजर पानी में खिले कमल पर गई। ऐसा कमल उसने अपनी जिंदगी में कभी नहीं देखा था। वह बाँस से बनी छतरी, जितना बड़ा था। उसने कहा, “इसे मैं अपनी बेटी के लिए तोड़ूँगा, क्योंकि मेरी सुंदर बेटी इस तरह का फूल पाने की ही हकदार है।”
जैसे ही धनीराम उसे तोड़ने के लिए आगे बढ़ा कि तभी वह कमल अपनी दुःखभरी कहानी सुनाने लगा, जिसमें वह चूहे, अंगार और अपनी सखी के विवाह की बात कर रहा था। तेजीमोला केवल एक ही बार गा सकती थी, इसलिए उसकी बात पर विश्वास न करते हुए जब वह कमल को उखाड़कर फेंकने देने लगा तो वह ऐसा न करने की प्रार्थना करने लगी। जब उसे तोड़ा जाने लगा तो अचानक उसने देखा कि उस फूल ने अपनी हथेलियाँ खोल ली हैं। उसने एक हाथ में पान का नया पत्ता लिया और दूसरे हाथ में चबाया हुआ पान का पत्ता, और बोला, “अगर तुम वास्तव में तेजीमोला हो तो तुम चातक पक्षी में बदल जाओगी और मेरे दाएँ हाथ में रखे चबाए हुए पान के पत्ते पर चोंच मारोगी। अगर तुम कोई भूत हो, जो मुझे छलने की कोशिश कर रहा है, तो तुम मेरे बाएँ हाथ में रखे ताजे पान के पत्ते पर चोंच मारोगी। मेरे आदेश का पालन करने में दैवी शक्तियाँ तुम्हारी मदद करेंगी।”
हवा अचानक बहते-बहते रुक गई। ऐसा लगा कि कमल साँस ले रहा है। जब दोपहर को वह घर पहुँचा तो साथ में पिंजरे में एक चातक पक्षी भी उसके साथ था। रमोला ने उसके बारे में कोई जिज्ञासा नहीं दिखाई। धनीराम ने जब तेजीमोला के बारे में पूछा तो वह जोर-जोर से रोने लगी और बोली कि जब वह अपनी सहेली के विवाह में गई थी तो वहीं से एक आदमी के साथ भाग गई। उसने शर्म के मारे यह बात किसी को नहीं बताई है। उसके तीनों बेटों ने कहा कि उन्होंने तेजीमोला को जगह-जगह ढूँढ़ा, पर वह कहीं नहीं मिली। यह सुन धनीराम एक लाल बॉर्डरवाला वस्त्र लेकर पिंजरे के पास गया और तेजीमोला से कहा, “अब मैं तुम्हें आदेश देता हूँ कि तुम अपने असली रूप में आओ और इस वस्त्र को पहनो।”
धनीराम ने रमोला को उसके बेटों सहित घर से निकाल दिया।
एक महीने बाद गाँववाले ऐसी भव्य शादी में शामिल हुए, जिसकी उन्होंने कभी कल्पना तक नहीं की थी। रमोला को उसके बाद किसी ने नहीं देखा। हालाँकि गाँव के बाहरी हिस्से में रहते हुए तीनों बेटे तेजीमोला के खिलाफ कोई-न-कोई षड्यंत्र रचते रहे, पर कभी सफल नहीं हुए। तेजीमोला अपने पति के साथ सुखमय जीवन व्यतीत करती रही।
(साभार : सुमन वाजपेयी)