तीस्ता और रंगित : सिक्किम की लोक-कथा
Teesta Aur Rangit : Lok-Katha (Sikkim)
(तीस्ता और रंगित—सिक्किम में बहनेवाली दो प्रमुख नदियाँ हैं। जो हिमालय के पहाड़ों से अपना रास्ता बनाती हुई घाटी, घने जंगलों और गहरी खाइयों को पार करते हुए पश्चिम बंगाल के मैदानी इलाके को जाती हैं। तीस्ता सीधे बहती है, जबकि रंगित कई तीव्र मोड़ों से होते हुए बहती है। इन नदियों के बहने के इस अनोखे अंदाज के संबंध में लोक में एक कहानी प्रचलित है।)
एक समय की बात है। नदियों के देवता हिमालय की गोद में बड़े प्रसन्न भाव से रहते थे, जिनमें रंगित और तीस्ता भी थे। रंगित देवता है और तीस्ता देवी। दोनों नदियों ने मैदानी भाग तक पहुँचने का भिन्न मार्ग अपनाने का फैसला किया। भिन्न रास्तों का अनुसरण करते हुए अंत में मैदान में उनका मिलना निश्चित हुआ।
दोनों इस बात पर भी सहमत हुए कि दोनों को रास्ता संबंधी जानकारी देने के लिए एक सहायक प्रदान किया जाएगा। चालाक तीस्ता ने साँपों के राजा को अपने इस कार्य के लिए चुना, जबकि रंगित ने पक्षियों के राजा का चुनाव किया।
एक निर्धारित दिन उनके मध्य दौड़ आरंभ हुई, कौन निर्धारित स्थान पर पहले पहुँचेगा? तीस्ता को पथ का परिचय देनेवाला साँप था, वह इधर-उधर बिना ताके-झाँके सीधे रास्ते आगे बढ़ने लगा, जबकि पक्षी आवारागर्दों की भाँति यहाँ-वहाँ मुँह मारता आगे बढ़ने लगा। पक्षी यहाँ-वहाँ दाना-पानी देखकर रुक जाता, उसे चुगने चला जाता। रंगित पक्षी को याद दिलाता कि दौड़ में हम पिछड़ जाएँगे, पर वह अपनी आदत से कहाँ बाज आनेवाला था! मजबूर रंगित नदी को जहाँ पक्षियों का राजा ले जाता, उसी दिशा में उसे बहना पड़ता। रंगित नदी पक्षी की प्रकृति का अनुसरण करता, कई मोड़ों से गुजरता हुआ मैदानी इलाके में प्रवेश करता है, परंतु अंत में रंगित हार जाता है। ढलान की ओर बहते हुए रंगित नदी ने जब दूर अपनी प्रेमिका तीस्ता को बड़े धैर्य के साथ उसका इंतजार करते हुए देखा, रंगित नदी को जैसे, ‘परास्त होकर सबको अपना चेहरा कैसे दिखाऊँगा? मैं एक स्त्री से हार गया?’ ऐसा सोचते ही उसका अहं भड़क उठा और उसने बाढ़ का भयंकर रूप धारण किया और यहाँ-वहाँ तहस-नहस करता आगे बढ़ने लगा। तीस्ता रंगित के उस भयानक रूप को देखकर डर गई। उसने याचना भरे स्वर में रंगित से कहा, “मैं जानती हूँ, इस पराजय में तुम्हारा कोई दोष नहीं है, बल्कि यह सब उस अनाड़ी पक्षी का किया-धरा है।” इतना सब कहते हुए तीस्ता ने रंगित से विनम्रता से निवेदन किया कि वह अपने मूल स्वरूप में वापस आ जाए। रंगित ने तीस्ता की याचना भरे स्वर को सुनकर अपने स्वरूप में परिवर्तन किया और सहज गति में बहने लगा। उसके बाद वे दो प्रेमी एक-दूसरे के संग बहने लगे। इन दो प्रेमियों के संगम स्थल को ‘व्यू पॉइंट’ कहते हैं, जिसे हम दार्जिलिंग कलिंपोंग की सड़कों से भलीभाँति देख सकते हैं। उसके पश्चात् यह नदियाँ एक-दूसरे से एक निश्चित दूरी पर कभी न बिछड़ने के लिए समानांतर बहती हैं।
इन दो नदियों के संगम स्थल को लेपचा जन पवित्र स्थान मानते हैं और प्रत्येक वर्ष माघ महीने में तीस्ता और रंगित नदियों के देवत्व की पूजा-अर्चना होती है। इस उपलक्ष्य में एक भव्य आयोजन किया जाता है। युवा जन उस संगम स्थल पर आकर पानी में डुबकी लगाते हैं और प्रेमगीत गाते और नाचते हैं। तीस्ता और रंगित दो महान् प्रेमियों की अमर प्रेमकथा का स्मरण किया जाता है। उनके अमर प्रेमकथा के प्रति अपने श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं।
(साभार : डॉ. चुकी भूटिया)