तीसरा संस्करण (कहानी) : कमलेश्वर
Teesra Sanskaran (Hindi Story) : Kamleshwar
एक बौद्ध भिक्षु था। उसने छह खण्डों में भगवान गौतम बुद्ध की जीवनी
लिखी। लगभग तीन हजार पृष्ठों के उस भारी-भरकम ग्रन्थ को प्रकाशित
करने के लिए कोई प्रकाशक तैयार नहीं हुआ। भिक्षु बहुत निराश हुआ।
तब समाज के कुछ लोगों ने सोचा कि क्यों न भगवान गौतम बुद्ध की
इस जीवन कथा को चंदा जमा करके छपवा दिया जाए। इस से समाज
का हित होगा। दया, क्षमा, अहिंसा और करुणा का सन्देश घर-घर
पहुँचेगा।
लोगों ने चन्दा जमा करना शुरू कर दिया। जो भी चन्दा आता, वे
उसे बौद्ध भिक्षु को सौंप देते थे। धीरे-धीरे पर्याप्त से अधिक ही पैसा
जमा हो गया। और एक दिन लोग आश्चर्यचकित और ठगे-से रह गए,
जब उन्हें पता लगा कि चन्दे की भारी-भरकम राशि के साथ वह बौद्ध
भिक्षु गायब हो गया है! कम से कम एक बौद्ध भिक्षु जैसे आदर्शवादी से
उन्हें ऐसी बेईमानी की उम्मीद नहीं थी। वह बौद्ध भिक्षु लापता था।
तीन-चार वर्ष बाद उसी तरह का एक बौद्ध भिक्षु धुर दक्षिण प्रदेश
में घूमता पाया गया। वह भी यही कहता था कि उसने छह खण्डों में
भगवान गौतम बुद्ध की जीवनी लिखी है। वह उसे प्रकाशित करवाना
चाहता है। इस बार भी कोई प्रकाशक उस भारी-भरकम ग्रन्थ में पैसा
लगाने को तैयार नहीं हुआ। दक्षिण प्रदेश के लोगों ने उत्तरी क्षेत्र के
लोगों की तरह ही सोचा कि क्यों न भगवान गौतम बुद्ध की जीवन
कथा को चन्दा जमा करके छपवा दिया जाए। इससे समाज का हित
होगा। दया, क्षमा, अहिंसा, करुणा जैसे महान विचारों का प्रचार होगा।
लोगों ने चन्दा जमा करना शुरू कर दिया। वे भी चन्दे की राशि को
बौद्ध भिक्षु को सौंप देते थे।
उन्हें मालूम नहीं था कि उत्तर भारत में यही व्यक्ति चन्दे की
मोटी पूँजी लेकर चम्पत हो चुका है।
आख़िर काफी चन्दा जमा हो गया। और एक दिन लोग आश्चर्य-
चकित और ठगे-से रह गए, जब उन्हें मालूम हुआ कि बौद्ध भिक्षु चन्दे
की मोटी रकम लेकर चम्पत हो गया है। लेकिन अब सिवा पछताने के
किया भी क्या जा सकता था। धीरे-धीरे यह बात उत्तर-दक्षिण में फैल
गई कि एक बौद्ध भिक्षु भगवान गौतम बुद्ध की जीवनी लिखने और उसे
प्रकाशित करने के नाम पर धोखाधड़ी का धन्धा कर रहा है।
फिर कुछ समय बीत गया।
तीन-चार वर्ष बाद वह सारनाथ मन्दिर परिसर में घूमता हुआ पाया
गया। वह पहचाना गया। लोगों ने उसे पकड़ लिया। उसकी
लानत-मलामत की। अपमान किया। उसने अपना अपराध मंजूर किया।
एक प्रकाशक को इस घटना का पता चला। उसने सोचा कि यह
भिक्षु तो बेईमान है ही, यह भगवान गौतम बुद्ध की जीवनी के नाम पर
फिर समाज को धोखा दे सकता है। अच्छा यही होगा कि भगवान बुद्ध
की जीवन कथा को प्रकाशित कर दिया जाए। फिर न रहेगा बाँस, न
बजेगी बाँसुरी। धोखाधड़ी का सिलसिला ही खत्म हो जाएगा।
आख़िर किताब का पहला खण्ड प्रेस में दे दिया गया। शुरू के
पन्नों के मैटर का सवाल आया। वही पृष्ठ, जिस पर कॉपी राइट, मूल्य
संस्करण वगैरह का ब्यौरा दिया जाता है। बौद्ध भिक्षु ने उस पर
लिखा-तीसरा संस्करण!
प्रकाशक चौंका, उसे लगा कि भिक्षु फिर किसी बेईमानी पर उतारू
है। उसने भिक्षु से पूछा-इस तीसरे संस्करण का क्या मतलब है? क्या
यह ग्रन्थ दो बार पहले कहीं छप चुका है?
-यही समझिए।-भिक्षु ने उत्तर दिया।
प्रकाशक थोड़ा क्षुब्ध हुआ। वह बोला-देखिए भिक्षु महाशय, मुझे
आपकी पिछली दोनों करतूतों की जानकारी है। आप मुझे धोखा नहीं दे
सकते!
-मैं आपको धोखा नहीं दे रहा हूँ।-भिक्षु बोला।
-तो यह तीसरा संस्करण क्या है?-प्रकाशक बिगड़ा।
-देखिए, जब इसके लिए पहली बार चन्दा जमा हुआ, उन्हीं दिनों
उड़ीसा में चक्रवात आया था, सैकड़ों परिवार नष्ट हुए, सैकड़ों मछुआरों
की जान चली गई थी। वह पैसा मैं वहाँ खर्च कर आया। दूसरी बार
पैसा जमा किया गया। गुजरात में भूकम्प आ गया। चन्दे का पैसा मेरे
पास था। वह पैसा मैंने भूकम्प पीड़ितों की सेवा में लगा दिया। यही तो
भगवान बुद्ध के जीवन और उनकी करुणा का सन्देश है। यदि मैं उस
पर आचरण नहीं करता तो मुझे यह जीवनी लिखने का अधिकार नहीं
था...लेखक जो भी लिखता है, उस पर यदि वह खुद विश्वास और
अमल नहीं करता तो उसका लिखना व्यर्थ है। तो महोदय! इसका पहला
संस्करण उड़ीसा में निकला, दूसरा संस्करण गुजरात में। इस तरह, यह
अब इसका तीसरा संस्करण है!
(‘महफ़िल’ से)