तीन झूठ और हर झूठ में चालीस गप्पें : उज़्बेक लोक-कथा
Teen Jhooth Aur Har Jhooth Mein Chaalees Gappen: Uzbek Folk Tale
बहुत दिन हुए एक बादशाह था। उसकी बेटी शादी के लायक़ हो गयी थी। बहुत-से देशों के बादशाहों और खानों के बेटे उसके साथ शादी करने के इरादे से आये, पर शाहज़ादी बड़ी तुनुकमिज़ाज थी और वह किसी से शादी करने के लिए तैयार नहीं हुई ।
एक बार बादशाह ने अपनी बेटी को बुलाया और बोला : 'ऐ, मेरी आंखों का तारा ! सारे बादशाहों से मैंने कह रखा है कि मैं तेरे लिए दूल्हा ढूँढ़ रहा हूँ, एक से एक बहादुर नौजवान आ रहे हैं, पर तू सबको मना कर रही है। आखिर इसकी वजह क्या है ?"
"पिता जी !” बेटी ने जवाब दिया, “मैं शादी उसी के साथ करूँगी, जो मुझे तीन झूठ गढ़कर सुनाये और हर झूठ में चालीस गप्पें हों, बशर्ते उन्हें वह दिलचस्प ढंग से सुना सके ।
बादशाह ने चारों ओर मुनादी करवाने का हुक्म दिया।
"जो कोई तीन झूठ गढ़ेगा और हर झूठ में चालीस गप्पें सुनायेगा, उसी के साथ मैं अपनी बेटी की शादी कर दूँगा ।"
लोग चारों ओर से शाहजादी के साथ शादी की तमन्ना लिये आने लगे और गप्पें गढ़ने लगे। बादशाह ने देश के सारे विद्वानों को इकट्ठा करके उनसे कहा :
अगर कोई तीन झूठ सुनाये और हर झूठ में चालीस गप्पें हों और वह बिल्कुल सफ़ेद झूठ हो, तो कहिये कि यह झूठ है, अगर सच हो, तो कहिये सच है । अगर आप ने सच को झूठ बताया, तो आपके सिर कटवा दूँगा और आपकी जायदाद लुटवा दूँगा ।"
हर नौजवान अपनी-अपनी गप्पें सुनाने लगा। हर बार, जब भी बादशाह ने विद्वानों से पूछा -
"यह सच है या झूठ ?"
"ऐसा तो होता रहता है," उसे जवाब मिला ।
बहुत-से बादशाह और शाहजादे आये और खाली हाथ लौट गये।
उस शहर में एक ग़रीब नौजवान रहता था। एक बार वह सूखी टहनियाँ इकट्ठी करने पहाड़ों में गया, तो उसने बादशाह की यह मुनादी सुनी:
"जो तीन झूठ और हर झूठ में चालीस गप्पें गढ़कर सुनायेगा उसकी शादी शाहजादी के साथ कर दी जायेगी।"
"अहा," ग़रीब नौजवान ने सोचा,
और वह महल की ओर चल दिया ।
"बोलने का यह बड़ा अच्छा मौका मिला है।"
"ओ, बदबू मारनेवाले भिखारी, तू यहाँ किस लिए आया है?" पहरेदार उस पर बरस पड़े और उसे महल के दरवाजे में नहीं घुसने दिया ।
“ मैं बादशाह से एक दरखास्त करने आया हूँ," नौजवान बोला ।
"भिखारी कौन-सी दरखास्त करेगा। चल भाग यहाँ से यहाँ मत खड़ा हो।"
"मैं यह बताने आया हूँ कि मेरे मालिक के पास दो सौ भेड़ें हैं, जिन्हें बादशाह को महसूल के तौर पर देना है," नौजवान ने आदरपूर्वक हाथ जोड़कर कहा ।
एक पहरेदार फ़ौरन दौड़कर बादशाह के पास पहुँचा और बोला :
"शहंशाह एक भिखारी आया है, कहता है, उसके मालिक के पास बादशाह के लिए दो सौ भेड़े हैं। "
बादशाह बहुत खुश हुआ :
"उसे मेरे सामने पेश करो !"
नौजवान को पेश किया गया। बादशाह चिल्लाकर बोला :
"ऐ गुलाम, बता कहाँ हैं तेरी भेड़ें ?"
ग़रीब लड़का बोला :
"ऐ शहंशाह, मुझे बोलने की इजाजत दीजिये। मैं ग़रीब और अनाथ हूँ। मैं अपने बाप का इकलौता बेटा था, मेरे भाई मर रहे थे, पर हम तीन बच गये। हम तीनों भाइयों ने न एक दूसरे को देखा था और न ही पहचानते थे। एक दिन हम अचानक मिल गये, दुआ-सलाम हुआ। मैंने देखा - हममें से एक के चोग़े में गरेबान नहीं है, दूसरे के में आस्तीन नहीं है और तीसरे के में पल्ला नहीं है। जिस तरह 'अंधा अंधे को अंधेरे में भी ढूंढ़ लेता है,' हम तीनों मिले और दोस्त बन गये। हम चल पड़े, न हमने रास्ते पर क़दम रखा और न ही रास्ते के किनारे चले। हमें जमीन पर तीन सिक्के पड़े दिखाई दिये; उनमें से दो बिल्कुल घिसे हुए थे और एक पर कुछ भी नहीं लिखा था। हमने वह सिक्का उठा लिया, जिस पर कुछ नहीं लिखा था और आगे चल पड़े। रास्ते - रास्ते चलते रहे, चलते रहे और बहुत दूर पहुँच गये। चलते रहे, चलते रहे, फिर घाटी में उतरे। हमने नदी में तीन मछलियाँ देखीं। दो मरी हुई थीं, और एक बेजान थी। हमने बेजान मछली उठा ली और उस भाई के पल्ले में डाल दी, जिसके चोग़े में पल्ला नहीं था। आगे चले। चलते-चलते हमने अपने सामने तीन घर देखे : दो बिना छत के थे और एक पर छत बिल्कुल नहीं थी। हम उस घर में घुसे, जिस पर छत नहीं थी, वहाँ हमने तीन देग देखे दो में छेद ही छेद थे और एक बिना पेंदे का था । हमने बेजान मछली बिना पेंदे के देग में डाल दी और पानी डालकर उसे पकाने की तैयारी करने लगे। सूखी टहनियाँ ढूँढ़ीं, पर एक टहनी भी नहीं ढूँढ़ पाये। बिना आग के ही मछली पकायी। आँच में कोई कमी नहीं रखी सारी हड्डियाँ गल गयीं, पर गोश्त कच्चा रह गया। खाते-खाते हम तीनों के पेट भर गये और इतने मोटे हो गये कि जब हमने बाहर निकलना चाहा तो दरवाज़े में से नहीं निकल पाये। हमें दीवार में एक छोटी-सी दरार दिखाई दी और हम उसी में से बाहर निकलकर आगे चल पड़े। रास्ते रास्ते चलते रहे, चलते रहे, बहुत दूर निकल गये और स्तेपी में आ पहुँचे। हमने देखा घास पर बिना पैदा हुए खरगोश का बच्चा पड़ा है। हमने बिना रोपे गये पोपलर की बिना तोड़ी हुई डाल का डंडा बनाकर स्वरगोश के बच्चे को मारा। उसने तीन कलाबाजियाँ खायी और ढेर हो गया। हमने उसके टुकड़े कर दिये । खरगोश में से तीन मन चरबी निकली और तीन मन गोश्त । गोश्त को हमने न उबाला, न सुखाया और जल्दी से उठाकर उसे खा लिया पर पेट नहीं भरा भूखे रह गये। मेरे दोनों बड़े भाई गुस्सा हो गये और मुझसे नाराज होकर वहाँ से चले गये। चरबी मेरे लिए बच गयी, मैं बड़ा खुश हुआ। अपने जूते उतारकर मैं उनपर चरबी मलने लगा। सारी चरबी मैंने एक ही जूते पर लगा दी और दूसरे के लिए कम पड़ गयी। मैं बुरी तरह थककर सो गया । अचानक मैंने शोरगुल सुना। मैं फ़ौरन बिस्तर से उठा तो देखा जिस जूते पर मैंने चरबी मली थी, वह बिना चरबी मले जूते से लड़ रहा है। मैंने दोनों जूतों के जबड़ों पर घूंसे मारे और फिर सो गया। आधी रात में मैं ठंड से काँपता हुआ उठा, तो देखा - जिस जूते पर मैंने चरबी मली थी, वह मेरा चोग़ा ओढ़कर सो रहा है, और जिस जूते पर मैंने चरबी नहीं मली थी, वह नाराज़ होकर कहीं भाग गया है। मैंने चरबी मले हुए जूते को जगाकर उसे पहन लिया। बिना पल्ले के चोगे का पल्ला उठाकर पीछे पेटी में उड़स लिया और घर आ गया। जब मैं गया था, तो घर में मेरी बुढ़िया माँ और मुर्गा बचे थे। और जब घर लौटा, तो देखा न बुढ़िया घर में है, न मुर्गा । मैंने मुड़कर देखा तो दूसरा जूता भी नदारद था । 'क्या मुसीबत है! मैं उन्हें कहाँ ढूंढूंगा ?' मैं दुःखी होकर आपके महल में आया। मैं आप से मिलना चाहता था । पर दरवाजे पर खड़े आपके नौकरों ने मुझे किसी भी तरह अन्दर नहीं घुसने दिया । "
ग़रीब नौजवान सिर झुकाकर चुप हो गया ।
बादशाह ने हैरत में पड़कर अपने विद्वानों की ओर देखा ।
खड़े हुए और सिर झुकाकर बोले :
"ऐ, बादशाह, इस कुत्ते के बच्चे ने जो कुछ कहा है, वह सब झूठ है। ऐसे ही यह अपने मालिक की भेड़ों के लिए भी कहेगा कि वे खो गयी । " बादशाह चिल्लाया:
"मैं तुझसे पूछता हूँ, भेड़ें कहाँ हैं ?"
"शहंशाह, मुझे अपनी बात कहने की इजाजत दीजिये। जब आपके पहरेदारों ने मुझे दरवाज़े में नहीं घुसने दिया, तो मैं बहुत दुःखी होकर अपनी बुढ़िया माँ, मुर्गे और दूसरे जूते को ढूँढने निकला। मैं चलते-चलते बहुत दूर पहुँच गया और एक गाँव में जा पहुँचा । मैंने लोगों से पूछताछ करके अपने मुर्गे को ढूँढ़ लिया। वह ज़मींदार की जमीन जोत रहा था । हम गले मिले, दुआ सलाम हुआ। छ: महीनों में मुर्गे को तनख्वाह में बोरी सीने की एक सूई मिली और उसे भी उसका मालिक अपने पास रखे हुआ था। मैं मालिक से लड़ा और शोर मचाकर उससे सूई छीन ली। 'मेरे साथ चल' मैंने मुर्गे से कहा । 'नहीं' वह बोला, 'मुझे छः महीने नौकरी करनी है तीन महीने हो चुके हैं, मियाद पूरी होने पर मुझे पैसा मिलेगा और मैं खुद आ जाऊँगा ।' मैंने सूई लेकर मुर्गे से विदा ली और घर पहुँचा, पर घर नदारद था, बिल्कुल गायब हो गया था। मैं बहुत दुःखी हुआ और अपनी बुढ़िया माँ और दूसरे जूते को ढूँढने निकल पड़ा। मैंने टीले पर चढ़कर देखा, कोई दिखाई नहीं दिया। पहाड़ी पर चढ़कर देखा कोई दिखाई नहीं दिया। मैं घाटी में लौट आया। सूई को मैंने जमीन में गाड़ दिया और उस पर चढ़कर देखा, तो मेरी बुढ़िया माँ सिर-दरिया के घाट पर कपड़े धोती नजर आयी। मैं सूई उठाकर चल पड़ा। माँ तक पहुँचने के लिए न जाने मैंने कितने पहाड़ और नदियाँ पार की। मालूम पड़ा मुझसे बिछुड़ने के बाद वह एक आदमी के घर में नौकरी करने लगी थी। 'चलो,' मैंने कहा । 'तनख्वाह के पैसे मिलने तक मैं नहीं जाऊँगी, वह बोली । 'तीन साल काम करके मैंने तीन महीने खाने लायक़ पैसा कमाया है। तू जा, मुझे तीन महीने और काम करना है, मैं खुद आ जाऊँगी।' मैंने बिना पल्ले के चोरो का पल्ला कमर में उड़सा और मुड़कर चल दिया। थोड़ी दूर चलने के बाद मैंने देखा, नदी में बाढ़ आयी हुई है और पुल बह गया है। गरमी के दिन थे, मैं प्यास के मारे तड़प रहा था। मैंने पानी पीना चाहा, पर नदी तो जम गयी थी। मैंने बर्फ तोड़नी चाही, लेकिन पथरीली जमीन पर एक पत्थर भी नहीं मिला इस लिए अपने सिर से ही बर्फ़ तोड़ी। गढ़े में सिर डालकर पानी पिया और आगे चल पड़ा। रास्ते में मुझे सूई की याद आयी। मैं किनारे पर लौट आया। देखा, मेरी सूई ग़ायब थी। मेरी सूई भी चली गयी, मैं दुःखी होकर माँ के पास आया । उसकी नौकरी के आखिरी तीन महीने खत्म हो चुके थे। पर जब उसने तनख्वाह माँगी, तो मालिक चिल्लाया: 'तुझे तनख़्वाह भी दूँ क्या !" उसने माँ को इतने जोर से मारा कि वह वहीं मर गयी। मेरी जिन्दगी में कितना दुःख है ?" मैं परेशान होकर आपके महल में आया, शहंशाह आपसे मिलने के लिए। पर मुझे दरवाजे के अन्दर क़दम नहीं रखने दिया गया।" यह कहकर ग़रीब नौजवान ने सिर झुका लिया ।
बादशाह और ज़्यादा हैरत में पड़कर अपने विद्वानों की ओर देखने लगा ।
विद्वानों में जो सबसे ज्यादा बुद्धिमान था, वह खड़ा हुआ और सिर झुकाकर बादशाह से बोला :
"बादशाह सलामत इस पिल्ले पर विश्वास मत कीजिये और इससे भेड़ें तलब कीजिये । यह आवारा झूठ बोलता है। अब यह कहेगा कि इसकी भेड़ें चुरा ली गयीं।"
ग़रीब नौजवान तीसरी बार बोला :
"ऐ शहंशाह, मुझे बोलने की इजाजत दीजिये। जब मुझे महल में नहीं घुसने दिया गया, तो मैंने उस मालिक के पास जाकर हल्ला मचाने की सोची, जिसने मेरी बूढ़ी माँ को मार डाला था । 'बुढ़िया की तनख्वाह मुझे दे, उसके खून के बदले में रुपया दे' मैं उस पर चिल्लाया । मालिक का गरेबान पकड़कर मैं उसे बाहर घसीट लाया। लोग इकट्ठे हो गये और उन्होंने फ़ैसला मेरे हक़ में किया। मालिक ने मुझे एक गधा दिया। मैं गधे पर बैठकर घर चल दिया । चलता रहा, चलता रहा, रास्ते में मुझे चालीस कारवाँ दिखाई दिये। कारवाँ के सरदार ने मुझे आवाज दी, 'ऐ, सुन, तेरे गधे की पीठ पर से काठी सरक गयी है! उतरकर जीन के नीचे की गद्दी ठीक कर ले।' मैंने उतरकर देखा, गधे की पीठ पर घाव हो गया था ' अरे सुनना, इसकी क्या दवा करूँ ? मैंने उससे पूछा । कारवाँ के सरदार ने जबाब दिया, 'यह अखरोट ले और इसे जलाकर इसकी राख घाव पर लगा दे, ठीक हो जायेगा । ' मैंने अखरोट जलाकर राख गधे के घाव पर बुरक दी। जैसे ही मैंने जीन के नीचे की गद्दी ठीक करनी चाही, मुझे घाव में से अखरोट का पेड़ उगता हुआ दिखाई दिया। पलक झपकते पेड़ बड़ा हो गया और उसमें फूल आ गये। थोड़ी देर बाद देखा, अखरोट पक भी गये । क्या करूँ ?' मैंने सोचा । 'अगर मैंने पेड़ पर चढ़कर उसे हिलाया तो गधे की कमर टूट जायेगी, बेहतर यही रहेगा कि अखरोट पत्थर मारकर ही तोड़ें।' मैं गधे को खेत में ले आया, जहाँ पत्थर नहीं थे। मैंने आस्तीनें ऊँची करके अखरोट के पेड़ पर पत्थर मारने शुरू किये। न तो कोई पत्थर ही वापस गिरा और न ही कोई अखरोट ज़मीन पर गिरा। मैं पत्थर फेंकता रहा, पूरी ताक़त लगाकर फेंकता रहा। देखा, पत्थर भी ख़त्म हो गये। 'अब और कोई चारा नहीं रहा, मैं खुद ही चढ़ता हूँ !' मैंने फ़ैसला किया। अखरोट के पेड़ पर चढ़ा तो वहाँ खरबूजों और तरबूजों का खेत दिखाई दिया और उसके एक किनारे पर नहर में पानी कलकल करता बहता नज़र आया । 'यह तरबूज बोने के लिए सबसे अच्छी जगह है,' मैंने सोचा और तरबूज के बीज बो दिये। और पलक झपकते तरबूज पक गये। वे इतने बड़े थे कि दोनों हाथों में नहीं समा रहे थे। मैंने नहर के किनारे बैठकर जैसे ही तरबूज में चाकू की नोक घुसेड़ी, तरबूज कट गया और चाकू तरबूज़ के अन्दर गिर गया। मैंने झुककर उसे निकालना चाहा, पर मैं खुद भी उसके अंदर गिर पड़ा। अंदर चाकू ढूँढ़ता रहा। एक आदमी मिला, मैंने उससे पूछा, 'भाई, आपने मेरा चाकू तो नहीं देखा ?' 'आप बस चाकू ही खोज रहे हैं ?' बूढ़े ने पूछा । 'हमारे चालीस कारवाँ थे और हर कारवाँ में चालीस ऊंट थे। हम सब बिछुड़ गये, मैं किसी को भी नहीं ढूंढ़ पाया।' ऐ, बादशाह, मैं अपनी इस बदकिस्मती के बारे में बताने आपके महल आया ।"
ग़रीब नौजवान ने यह कहकर सिर झुका लिया ।
बादशाह सोच में पड़ गया। विद्वानों में से एक खड़ा हुआ और सिर झुकाकर बोला :
"शहंशाह, आप इस पिल्ले को दो मोहरें देकर यहाँ से भगा दीजिये ।"
पर दरवाज़े की आड़ में खड़ी बादशाह की बेटी ने सारी बात सुन ली थी। वह अपने पिता के पास दौड़ी आयी और बोली :
"इसने मेरी तीनों शर्तें पूरी कर दीं। चाहे यह ग़रीब भी क्यों न हो, मैं शादी इसके साथ ही करूँगी ।
ग़रीब नौजवान ने सिर झुकाकर बादशाह को सलाम किया:
"शहंशाह, मैं कुछ सालों से पहाड़ों में अपने मालिक की भेड़ें चरा रहा हूँ । मालिक से मेरी दो सौ भेड़ें निकलती हैं। उसने मुझे भेड़ें नहीं दीं और नौकरी से निकाल दिया।
आप मेरे मालिक से दो सौ भेड़ें वसूल कीजिये, मैं शादी के मौके पर उन्हें आपको नज़र करता हूँ।"
बादशाह ने अपनी बेटी की शादी ग़रीब नौजवान के साथ कर दी और इस मौके पर बड़ी शानदार दावत दी।
हमने भी दावत में छककर खाया पिया और अपनी मूंछों और दाढ़ी पर खूब घी मला ।