तीन चूहे : अफ्रीकी लोक-कथा

Teen Choohe : African Folk Tale

एक चूहा नगर था जिसमें तीन अजीब चूहे रहते थे। उनमें से एक चूहा लम्बी टाँगों वाला था, उसको सारे चूहे लम्बू के नाम से पुकारते थे। दूसरा चूहा बहुत मोटा था, उसको सारे चूहे मोटू के नाम से पुकारते थे और तीसरा चूहा बहुत ही छोटा था सो उसका नाम छोटू पड़ गया।

एक बार उन तीनों चूहों ने अपनी किस्मत आजमाने की सोची। इस पर लम्बू छोटू से बोला — “अरे छोटू, तू क्या अपनी किस्मत आजमायेगा, तू तो है ही बहुत छोटा। जा घर में बैठ और अपनी मूँछें सँवार। इतनी बड़ी दुनिया और तू छोटा सा, तू कर ही क्या सकता है। ”

इस पर मोटू ने लम्बू भाई की तरफ से बोलते हुए कहा — “हाँ हाँ, तू कर ही क्या सकता है छोटू। जा जा, घर भाग जा। ”

पर छोटू गिड़गिड़ाते हुए बोला — “नहीं नहीं, मोटू और लम्बू भाई ऐसा न कहो। मैं भी तुम लोगों के साथ अपनी किस्मत आजमाना चाहता हूँ। मुझे भी अपने साथ ले चलो न। मुझे भी अपनी किस्मत आजमाने दो न। ”

सो तीनों चूहे अपनी अपनी किस्मत आजमाने निकल पड़े।

वे तीनों बहुत दूर नहीं जा पाये थे कि उनको एक सरकस दिखायी दिया। उन्होंने पास जा कर देखा तो वह सरकस तो चूहों का ही निकला।

एक चूहा बाहर सरकस के बाहर खड़ा आवाज लगा रहा था — “आओ आओ, दुनिया का सबसे लम्बा चूहा देखो, केवल एक पैसे में, आओ, आओ। ”

लम्बू बोला — “मुझे पूरा विश्वास है कि इस सरकस का चूहा मुझसे अधिक लम्बा नहीं हो सकता। ”

सो उन तीनों ने एक एक पैसा दिया और उस लम्बे चूहे को देखने के लिये उस सरकस में घुस गये। वह दुनिया का सबसे लम्बा चूहा तो सचमुच में ही बहुत लम्बा था परन्तु वह लम्बू के बराबर लम्बा नहीं था।

सरकस के मालिक ने जब लम्बू को देखा तो बोला — “तुम हमारे सरकस में क्यों नहीं आ जाते? मैं तुमको दूसरे चूहों से दोगुनी तनख्वाह दूँगा क्योंकि तुम तो हमारे लम्बे चूहे से भी अधिक लम्बे हो। ”

नेकी और पूछ पूछ। लम्बू राजी हो गया। उसकी किस्मत अच्छी थी उसको तुरन्त ही नौकरी मिल गयी थी। लम्बू ने अपने दोनों भाइयों को विदा कहा और सरकस में चला गया। छोटू और मोटू अपने सफर पर आगे बढ़ गये।

वे लोग कुछ ही दूर आगे गये थे कि उनको एक और सरकस दिखायी दिया। इत्तफाक से वह सरकस भी चूहों का ही था।

यहाँ एक चूहा सरकस के बाहर खड़ा चिल्ला रहा था — “केवल एक पैसा दो और दुनिया का सबसे मोटा चूहा देखो, आओ आओ, जल्दी करो। ”

मोटू बोला — “मुझे पूरा विश्वास है कि इस सरकस का चूहा मुझसे अधिक मोटा नहीं हो सकता। ” सो दोनों ने यहाँ भी एक एक पैसा दिया और दुनिया का सबसे मोटा चूहा देखने उस सरकस के अन्दर पहुँच गये।

उस सरकस में दुनिया का सबसे मोटा चूहा मोटा तो जरूर था पर फिर भी वह मोटू जितना मोटा नहीं था।

मोटू को देख कर सरकस का मालिक मोटू से बोला — “क्या तुम मेरे सरकस में काम करना पसन्द करोगे? मैं तुमको बहुत अच्छे पैसे दूँगा क्योंकि तुम हमारे सरकस के मोटे चूहे से भी ज़्यादा मोटे चूहे हो। ”

मोटू को और क्या चाहिये था, वह राजी हो गया। उसकी भी किस्मत चमक उठी थी।

उसने छोटू को विदा कहा और सलाह दी — “छोटू, तुम अब भी मान जाओ, तुम इतनी बड़ी दुनिया में कुछ भी नहीं कर पाओगे। तुम बहुत छोटे हो। घर जाओ और घर जा कर अपनी मूँछें सँवारो। ”

“नहीं, मैं भी अपनी किस्मत आजमाऊँगा। ” कह कर छोटू अकेला ही अपने सफर पर आगे बढ़ गया।

कुछ दूर जाने पर उसको एक और सरकस मिला। इत्तफाक से वह सरकस भी चूहों का था। वहाँ एक चूहा बाहर खड़ा चिल्ला रहा था — “इधर आओ और एक पैसे में दुनिया का सबसे छोटा चूहा देखो। ”

छोटू ने सोचा “शायद यहीं मेरी किस्मत यहीं चमकेगी”।

सो उसने अपना आखिरी पैसा उस सरकस वाले को दिया और दुनिया का सबसे छोटा चूहा देखने सरकस में चला गया। वहाँ दुनिया का सबसे छोटा चूहा तो जरूर मौजूद था परन्तु वह छोटू जितना छोटा चूहा नहीं था।

पर वहाँ कोई भी छोटू को काम देने के लिये आगे नहीं बढ़ा, तो वह बेचारा खुद ही उस सरकस के मालिक के पास गया और बोला — “मैं तो तुम्हारे इस छोटे से चूहे से भी बहुत छोटा हूँ फिर तुम मझे अपने सरकस में काम क्यों नहीं देते?”

सरकस के मालिक ने उसे घूरा और प्यार से मुस्कुरा कर बोला — “मैं तुमको अपने सरकस में काम नहीं दे सकता। तुम निश्चय ही दुनिया के सबसे छोटे चूहे हो क्योंकि मैं खुद ही तुमको बड़ी मुश्किल से देख पा रहा हूँ।

पर तुम्हारे साथ परेशानी यह है कि तुम सचमुच में ही बहुत छोटे हो। जब मैं सामने खड़ा तुमको ठीक से नहीं देख पा रहा हूँ तो जनता तुमको कैसे देख पायेगी?

और जनता अपना पैसा ऐसी चीज़ों को देखने में खराब नहीं करेगी जिसे वह ठीक से देख ही न सकती हो। ”

बेचारा छोटू दुखी सा अपनी पूँछ हिलाता हुआ खाली जेब वहाँ से चल दिया। वह सोचता जा रहा था कि उसके दोनों भाई ठीक ही कह रहे थे कि “छोटू, तू दुनिया में कुछ नहीं कर सकता, जा घर जा कर अपनी मूँछें सँवार। ”

पर फिर भी वह सड़क के किनारे किनारे धीरे धीरे चलता जा रहा था कि शायद कहीं कभी कुछ हो जाये।

चलते चलते अँधेरा होने लगा था और छोटू को अब भूख भी लग आयी थी। इतने में उसे सामने एक किला दिखायी दिया। उसने सोचा यहाँ तो खाने पीने को खूब मिलेगा सो उसने उस किले के अन्दर जाने का विचार किया।

उस किले में अन्दर जाने के लिये बहुत सारे छेद थे सो एक छोटे से छेद में से हो कर छोटू किले के अन्दर पहुँच गया। उसने वहाँ खूब खाया और खूब बिगाड़ा।

जब वह खा बिगाड़ कर खूब थक गया तो उसने चारों तरफ निगाह दौड़ायी। एक कोने में उसको एक सुनहरा गोला दिखायी दिया जिस पर बहुत सारे कीमती हीरे जवाहरात जड़े हुए थे और जो बहुत चमक रहे थे।

वास्तव में वह एक अंगूठी थी पर छोटू यह बात नहीं जानता था। उसने उसे खेलने की चीज़ समझा और उसने उससे खेलना शुरू कर दिया। वह उसे कभी इधर लुढ़काता तो कभी उधर। अंगूठी भारी थी, छोटू को उसको लुढ़काने के लिये काफी ज़ोर लगाना पड़ रहा था।

परन्तु उसकी चमक उसको अच्छी लग रही थी कि यकायक वह अंगूठी और छोटू दोनों ही एक छेद से बाहर गिर पड़े।

“ओह, मेरी खोयी हुई अंगूठी। ” मीठी सी आवाज में किसी ने कहा। छोटू की तो बस जान ही निकल गयी जैसे। उसने उस अंगूठी को किसी स्त्री को उठाते हुए देखा तो वह वहाँ से डर के मारे भागा।

पर उस स्त्री ने पुकारा — “रुको रुको, छोटे चूहे, तुम भागो नहीं, यहाँ आओ मेरे पास। मैं तुमको सजा नहीं दूँगी। मैं तो अपनी इस अंगूठी के पा जाने के बदले में तुम्हें धन्यवाद देना चाहती हूँ। बोलो मैं तुम्हारे लिये क्या करूँ?”

यह सब सुन कर चूहे का डर भाग गया। वह उस स्त्री के पास आ कर बोला — “ंमैं नहीं जानता, मैं तो अपनी किस्मत बनाने निकला था। ”

वह स्त्री बोली — “किस्मत बनाने के लिये तुम अभी बहुत छोटे हो छोटे चूहे। पर अगर तुम इतने छोटे न होते तो मुझे मेरी अंगूठी कैसे मिलती। मेरी यह अंगूठी बहुत कीमती है इसलिये इसे खोजने के बदले में मैं तुमको इनाम दूँगी। तुम कहाँ रहते हो?”

छोटू बोला — “चूहा नगर की चूहा गली के चूहा घर में। ”

स्त्री बोली — “ठीक है, तुम घर जाओ। जब तक तुम घर पहुँचोगे तुम्हारी किस्मत तुम्हारा इन्तजार कर रही होगी। ”

छोटू को वहाँ से अपने घर का रास्ता ढूँढने में पूरे दो दिन लग गये। जब वह घर पहुँचा तो उसकी माँ दरवाज़े पर खड़ी थी।

माँ बोली — “मेरे बेटे, तुम्हारी किस्मत तो बन चुकी है। तुमने अपने भाइयों को हरा दिया है। सोने के सिक्कों से भरे दो थैले तुम्हारे लिये आज ही आये हैं। हम अब आराम से ज़िन्दगी गुजारेंगे। ”

और छोटू घर में बैठ कर अपनी मूँछें सँवारने लगा। छोटू ने सब्र किया और हिम्मत नहीं हारी थी उसी का फल उसको मिला था।

(साभार : सुषमा गुप्ता)

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