ततारा-वामीरो : आदिवासी लोक-कथा

Tatara-Vamiro : Adivasi Lok-Katha

यह कथा उस समय की है जब लिटिल अंडमान द्वीप और कारनिकोबार जुड़े हुए थे। उस समय लिटिल अंडमान से कारनिकोबार तक एक विस्तृत भू-भाग था। उन दिनों वहाँ एक सुंदर पर्वत था जिसका नाम था पासा। पासा पर्वत की तराई में एक छोटा-सा गाँव था जिसका नाम पर्वत के नाम पर था—पासा। उस पासा गाँव में एक बहादुर युवक रहता था जिसका नाम था ततारा। वह अपनी कमर में लकड़ी की एक तलवार लटकाए रखता था। ततारा की लकड़ी की तलवार के क़िस्से दूर-दूर तक फैले हुए थे। उसकी लकड़ी की तलवार लोहे की तलवारों से अधिक तेज़ और अधिक चमत्कारी थी। ततारा अपनी तलवार अन्याय करने वालों के विरुद्ध ही उठाता था। वह बहुत ही विनम्र और दूसरों की सहायता करने वाला व्यक्ति था।

पासा गाँव से कुछ दूर एक और गाँव था जिसका नाम था लपाती। वहाँ अत्यंत रूपवती और मधुर स्वर वाली एक युवती रहती थी जिसका नाम था वामीरो। वह संध्या होते ही समुद्र तट पर आ जाती और अपने मधुर स्वर से वातावरण को रसविभोर कर देती।

एक दिन ततारा समुद्र तट पर सूर्यास्त के दृश्य का आनंद ले ही रहा था कि उसके कानों में किसी युवती का मधुर स्वर प्रविष्ट हुआ। स्वर इतना मधुर और हृदय में उतर जाने वाला था कि ततारा मंत्रमुग्ध हो उठा। वह स्वर की दिशा में यंत्रवत् चल पड़ा। नारियल के पेड़ों का झुरमुट पार करने के बाद उसे एक युवती दिखाई दी। वह युवती वामीरो थी जो गाना गा रही थी।

ततारा वामीरो के निकट जा पहुँचा। वामीरो ने एक अपरिचित युवक सामने देखा तो वह चुप हो गई।

ततारा ने उसे गाना गाते रहते का आग्रह किया किंतु वामीरो लजाकर अपने गाँव की ओर दौड़ गई। दूसरे दिन शाम को ततारा उसी तट पर जा पहुँचा जहाँ उसने वामीरो को देखा था।

कुछ ही देर में वामीरो भी आ गईं।

‘मेरा नाम ततारा है। मैं पासा गाँव में रहता हूँ। तुम बहुत सुंदर हो और गाती भी बहुत अच्छा हो।’ ततारा ने कहा।

‘मैंने तुम्हारे बारे में सुन रखा है। तुम तो बहुत बहादुर हो। मेरा नाम वामीरो है और मैं लपाती गाँव में रहती हूँ।’ वामीरो ने कहा।

ततारा और वामीरो प्रतिदिन मिलने लगे। कुछ ही दिन में उन दोनों को परस्पर प्रेम हो गया।

‘ततारा, हम जो कर रहे हैं उसका परिणाम क्या होगा? तुम जानते हो कि हम दोनों के गाँवों की रीति के अनुसार हम अपने गाँव से बाहर विवाह नहीं कर सकते हैं। न तो मैं पासा गाँव की हूँ और न तुम लपाती के हो।’ वामीरो ने एक दिन चिंतित होते हुए कहा।

‘चाहे कुछ भी हो जाए लेकिन अब मैं तुम्हारा साथ नहीं छोड़ सकता हूँ।’ ततारा ने वामीरो से कहा।

ततारा और वामीरो का प्रतिदिन का मिलन भला कब तक छिपता? कुछ लोगों ने दोनों को मिलते हुए देख लिया। यह बात वामीरो के घर तक पहुँची। वामीरो की माँ बहुत क्रोधित हुई। उसने वामीरो का विवाह करने का निश्चय किया। जब इस बात का पता वामीरो को चला को वह घबरा गई। उसे लगा कि यह बात उसे तत्काल ततारा को बता देनी चाहिए। उस दिन पासा गाँव में ‘सुअर-उत्सव’ मनाया जाना था अत: ततारा समुद्र तट पर आने वाला नहीं था।

वामीरो ने साहस करके पासा जाने का निश्चय किया।

ततारा उस समय ‘सुअर-उत्सव’ में सुअरों की प्रतिस्पर्द्धा देख रहा था। यद्यपि उसका मन नहीं लग रहा था। उसे वामीरो की याद आ रही थी। उसी समय उसे लगा कि भीड़ के पीछे वामीरो खड़ी हुई है। ततारा को पहले तो लगा कि उसे कोई भ्रम हुआ है किंतु ध्यान से देखने पर वह समझ गया कि वामीरो ही खड़ी है। वह दौड़कर वामीरो के पास पहुँचा। वामीरो ततारा का हाथ पकड़कर खींचती हुई उसी तट पर ले गई जहाँ वे मिला करते थे।

‘क्या हुआ वामीरो? सब ठीक तो है न?’ ततारा ने चिंतित होते हुए पूछा।

वामीरो ने जैसे ही बोलना चाहा वैसे ही उसकी रुलाई फूट पड़ी और वह ज़ोर-ज़ोर से रोने लगी। ततारा घबरा गया। वह वामीरो से पूछने लगा कि वह रो क्यों रही है? ततारा जितना पूछता, वामीरो उतने ही ज़ोर से रोने लगती। वामीरो के रुदन का स्वर इतना तेज़ हो गया कि वह पासा और लपाती दोनों गाँवों तक जा पहुँचा। दोनों गाँवों के लोग वहाँ आ जुटे। वामीरो की माँ भी आ गई। उसने वामीरो को ततारा के साथ देखा तो आगबबूला हो उठी। उसने ततारा को बुरा-भला कहा और स्पष्ट शब्दों में कह दिया कि उसका और वामीरो का विवाह नहीं हो सकता है क्योंकि वे दोनों अलग-अलग गाँव और अलग-अलग क़बीले के हैं।

वामीरो की माँ की बात सुनकर ततारा को अत्यंत क्रोध आया। उसने क्रोध में आकर अपनी तलवार खींच ली। किंतु वह वामीरो की माँ पर तलवार कैसे चलाता? अपनी विवशता से व्यथित होकर उसने अपनी तलवार प्रहार करते हुए भूमि में धँसा दी और तलवार से भूमि को चीरने लगा। ततार अपनी तलवार से भूमि को एक छोर से दूसरे छोर तक चीरता चला गया। जिससे पासा और लपाती गाँव के बीच ज़मीन कट गई और भूमि के दो टुकड़े हो गए। भूमि के जिस टुकड़े पर ततारा खड़ा था, वह टुकड़ा अलग होकर समुद्र में डूबने लगा। यह दृश्य देखकर वामीरो चीख़ उठी। उसने ततारा का नाम ले-लेकर उसे पुकारना शुरू किया। वामीरो का स्वर सुनकर ततारा को होश आया कि वह क्या कर बैठा है। वह भी वामीरो को पुकारने लगा। उसी समय भूमि का वह टुकड़ा डगमगाया और एक बड़ी लहर में ततारा ग़ायब हो गया।

उस दिन से ततारा को किसी ने नहीं देखा। वामीरो ततारा से बिछड़ने के दुख में विक्षिप्त हो गई। किंतु इस दुखद घटना का एक सुखद परिणाम यह हुआ कि उस दिन के बाद से दो गाँवों और दो भिन्न क़बीलों के बीच विवाह संबंध किए जाने लगे। ततारा और वामीरो के बलिदान ने भावी प्रेमियों के लिए एक नया मार्ग प्रशस्त कर दिया।

(साभार : भारत के आदिवासी क्षेत्रों की लोककथाएं, संपादक : शरद सिंह)

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