तलाश (फिनिश कहानी) : इवा-लिज व्युरियो

Talash (Finnish Story in Hindi) : Eva-Lij Vuorio

मुझे लगा था कि फोरमेंटरा का बूढ़ा विन्सेंट संसार का सबसे खुशमिज़ाज व्यक्ति है और शायद सबसे गरीब भी। मुर्दे की तरह पीला उसका रंग, कूबड़ निकला हुआ और मुख पर झुर्रियां। उसके कपड़ों पर जगह-जगह पेबंद लगे थे। वह काला-पंजोल में रहता था। उसके पास गोताखोर का मुखौटा, रबर की झिल्ली और एक बढ़िया ट्यूब थी।

मैं लगातार कई वषों से फोरमेंटरा आता रहा था और मैंने विन्सेंट को बूढ़े मछुओं के साथ देखा था। किंतु बाद में मुझे पता चला कि वह मछुआ नहीं है। मैं उसकी बोली कुछ-कुछ समझ लेता था, इसलिए कि मैं पहले दिन ही उसकी बातें समझ गया था। वह एक मुछए से उसकी छोटी नाव मांग रहा था- प्रार्थना के स्वर में नहीं, अपितु आज्ञा के स्वर में। मैं तो उसे मछुआ समझता था और यह जानकर मुझे हैरानी हुई कि उसके पास किश्ती नहीं है। मैंने फोरमेंटरा में एक किश्ती किराये पर ले रखी थी, सो मैंने उससे कहा कि मेरी किश्ती ले जाओ। उसने धन्यावाद-सहित मेरा प्रस्ताव स्विकार कर लिया। फिर उसने किश्ती में अपनी ट्यूब, रबर की झिल्ली, मुखौटा, एक पानी की सुराही और कुछ खाने-पीने का सामान लादा। मैं खड़ा देखता रहा।

मैं हैरान था कि क्या चीज पकड़ना चाहता है और उसे कैसे पकड़ेगा! मेरे देखते-देखते वह क्षितिज की ओर चला पड़ा। मैं उसे तब तक देखता रहा, जब वह क्षितिज पर एक धब्बे-सा नजर आने लगा। और फिर मैं उसके बारे में सब कुछ भूल गया। काला-पंजोल में भूल जाना बड़ा आसान है और शांति में आदमी जल्दी भूल जाता है।

एक दिन की बात है, अफ्रीका की ओर से बड़ी तेज हवाएं बह रही थीं और समुद्र उमसदार था। मछुए समुद्र के तट पर बांस की छत वाली झोंपड़ी में बैठे शराब पी रहे थे और आपस में बातें कर रहे थे।

‘विन्सेंट आया?’

‘अभी नहीं।’

‘बड़ा झक्की है।’

‘इतना सनकी तो नहीं है वह! उसके इरादे नेक हैं।’

‘तुम ऐसा कहते हो, तुम भी पागल हो।’

‘मैं? बिलकुल नहीं। मैं सब कुछ समझता हूं।’

मैंने पूछ लिया- ‘क्या विन्सेंट वही आदमी है, जिसके पास गोता खोरी का सामान है।’

‘हां,हां।’ सब बोले।

मैंने भी एक बोतल शराब मंगवा ली और उनके साथ बैठकर पीने लगा। उन्होंने मुझे विन्सेंट की यह राम-कहानी, सुनायी-

‘आज से साठ वर्ष पहले वह एक महत्त्वाकांक्षी किशोर था और फोरमेंटरा टापू छोड़कर किसी विदेशी जहाज के साथ चला गया था। कुछ समय के बाद वह वापस लौट आया। उसने कई काम-धंधे किये और अंत में वह घाट पर कुली का काम करने लगा। उसने एक सपना देखा था, मगर इंसान के सपने कब पूरे होते हैं। वह अमीर स्पेनियों और दूसरे पर्यटकों का सामान ढोता। आज से दस साल पहले तक वह अपनी हैट पर अपना नम्बर चिपकाये, घाट पर खड़ा रहता, नावों से उतरते मुसाफिरों की ओर हाथ हिला-हिलाकर चिल्लाता था- ‘मैं हूं नम्बर तिहत्तर।’’

एक दिन एक धनी अमरीकी ने अपनी नाव से उसको हाथ हिलाते देखा और इशारे से उसे बुलाया। दूसरे कुलियों को धकेलता हुआ विन्सेंट नाव के पास पहुंचा। वहां सूटकेस, और यह चीज। इसका ध्यान रखना बड़ी कीमती चीज है यह।’ विन्सेंट मिट्टी के उस बर्तन को पहचान गया। वह एक दुर्लभ फीनिशियन सुराही थी। पुराने जमाने में मछुओं के जाल में ऐसी सुराहियां आ जाती थीं और वे उन्हें वापस समुद्र में फेंक दिया करते थे। लेकिन जब शहर से बाबू लोग इन्हें खरीदने के लिए आने लगे, तो मछुओं ने उन्हें वापस समुद्र में फेंकना बंद कर दिया।

विन्सेंट सूटकेस अपनी पीठ पर लादे और उस बड़ी-सी गुलाबी सुराही को हाथ में उठाकर चल पड़ा। लोग नाव से उतर-उतरकर आ रहे थे, पर चढ़ने वालों का भी तांता लगा हुआ था। वह घाट तक पहुंच गया। तभी एक कुली नौका से बंधे रस्से से ठोकर खाकर विन्सेंट पर गिर पड़ा और सुराही विन्सेंट के हाथ से छूट गयी। दो हजार वर्ष पुरानी सुराही ठीकरों का ढेर हो गयी।

अमरीकी पर्यटक ने पांच सौ डालर देकर असली फीनिशियन सुराही होने की पूरी तसल्ली करके उसे एक मल्लाह से खरीदा था। उसका कुली पर क्रुद्ध होना स्वाभाविक था। परंतु उसे यह भी मालूम था कि विन्सेंट जैसा गरीब कुली जीवन-भर पांच सौ डालर इकट्टे नहीं कर पायेगा। इसलिए वह सब्र कर गया और अपनी क्षति को भुलाने को तैयार हो गया।

लेकिन विन्सेंट वैसा न कर सका। उसने देखा था कि सुराही के टूटने पर अमरीकी के चेहरे पर कैसी घोर निराशा छा गयी थी। विन्सेंट इज्जतदार आदमी था और वह उस अमरीकी को हर्जाना देना चाहता था। जब वे होटल पहुंचे, उसने अमरीकी से उसका नाम और पता मांगा और क्षतिपूर्ति करने का वादा किया। अमरीकी ने डायरी के एक पन्ने पर यह पता लिख दिया- ‘अब्राहम लिंकन-स्मिथ, 72 हडसन ऐवेन्यु मिलवाकी, विसकान्सिन, यू।एस।ए।’ कागज का यह फटा-पुराना टुकड़ा विन्सेंट की सबसे कीमती संपत्ति बन गया।

विन्सेंट जानता था कि सुराही खरीदने लायक धन कभी इकट्ठा नहिं कर सकेगा। परंतु वह वैसी सुराही ढ़ूंढ तो सकता था। जब वह छोटा था, बहुतों को ऐसी दर्जनों सुराहियां मिल जाती थीं, तो उसे अब क्यों न मिलेंगी? उसके बीवी-बच्चे तो थे नहीं। पास में जो कुछ सामान था, सब उसने बेच दिया। इबीजा का टिकट खरीदने के बाद उसके पास बहुत थोड़े पैसे बाकी रह गये थे।

एक बार फिर उसने समुद्र को गाते सुना। टापुओं पर पहुंचकर उसने अपना काम शुरू कर दिया। उसने उस जगह का पता लगाया, जहां आखिरी बार फीनिशियन सुराही मिली थी और उसने महसूस किया कि तट के पास के सभी स्थानों से लोगों ने सब सुराहियां ढूंढ़ निकाली होंगी।

विन्सेंट ने एक प्रसिद्ध और दक्ष गोताखोर के साथ सलाह-मशविरा किया। गोताखोर ने बताया कि कछार में ऐसे स्थान हैं, जहां पानी बीस-तीस हाथ गहरा है, वहां कोई सुराही मिलना सम्भव है।

विन्सेंट को तैरना नहीं आता था। पास में जो भी पैसा बचा था, उससे उसने गोताखोर का साज-सामान खरीदा और बड़ी लगन के साथ जुट गया तैरना सीखने में। शीघ्र ही उसने तैरना ही नहीं, बल्कि मुखौटा और अन्य दूसरे साज-सामान धारण करके मेढक की तरह गहरा गोता लगाना भी सीख लिया। वह सागर में दूर तक चला जाता, जहां पानी कासनी रंग का हो जाता है। गहरे सागर की उस अप्रत्याशित सुंदरता पर वह मुग्ध हो जाता। समुद्र में उसे जीवन की स्वच्छंदता का पहली बार अनुभव हुआ। सागर का ऐसा सुमधुर संगीत उसने जीवन में कभी नहीं सुना था।

दिन सप्ताहों में ढलते गये, सप्ताह महीनों में, महीने वर्षों में, और विन्सेंट की तलाश जारी रही सुराही के लिए। वह मानता था कि उसके हाथों जो सुराही टूट गयी है, उसकी जगह दूसरी सुराही देना उसका कर्तव्य है। हर नया दिन उसके लिए खुशी का दिन भी होता और जोखिम का भी। उसकी रोजमर्रा की ज़रूरतें अपने आप पूरी हो जातीं। उसकी तलाश समुद्र-तट के मछुओं के जीवन का अंग बन गयी थी और वे लोग उसके साथ उदारता से पेश आते थे।

इस तरह मछुओं ने विन्सेंट की पूरी कहानी मुझे कह सुनायी।इसी बीच फादर पेद्रो हमारी पार्टी में आ बैठे थे। मैं उनकी ओर मुड़ा और बोला-‘फादर, क्या बूढ़े विन्सेंट को सुराही मिल गयी?’

मोटे-ठिगने पादरी ने अपने हाथों की उंगलियां परस्पर मिलायीं और दृष्टि क्षितिज पर गड़ा दी, जो शांत और स्थिर दिखाई दे रहा था। अफ्रीका की ओर से आने वाली हवाओं ने हमारी झोंपड़ी की बांस की छत को हिलाकर रख दिया था।

‘देखिये, बात ऐसी है,’ पादरी बोला- ‘विन्सेंट को तलाश थी। महत्त्व की बात यह नहीं है कि मनुष्य कुछ पा लेता है या नहीं, बल्कि तलाश का अपने आप में महत्त्व है। केवल तलाश का!’

पिछले वर्ष समुद्र में जब तूफान आया, तो वह नौका जो विन्सेंट ने उधार ली थी, किनारे आ गयी। लेकिन बूढ़ा विन्सेंट फिर दिखाई नहीं दिया।

किश्ती के तले समुद्री सिवार में लिपटी एक सुराही मजबूती से बंधी हुई थी। सदियों पुरानी सुराही, जो समुद्र-गर्भ से निकली थी।

चूंकि मैं अंग्रेज़ी जानता था, इसलिए फादर पेद्रो और एक मछुए ने, जो विन्सेंट का दोस्त रहा था, मुझसे कहा कि मैं मिलवाकी, विसकान्सिन में रहने वाले अब्राहम लिंकन-स्मिथ को पत्र लिखूं कि आकर अपनी सुराही ले जाये। मैंने पत्र तो लिख दिया, लेकिन कोई उत्तर न आया। कई और पत्र भी इसी पते पर लिखे गये, परंतु कोई जवाब नहीं आया। हारकर अंत में मैंने मिलवाकी नगर के मेयर को पत्र लिखा। उनका उत्तर आया- ‘इस नाम का कोई आदमी यहां नहीं है।’

शायद बूढ़े-बेवकूफ विन्सेंट के सुराही गिरा दने से चिढ़कर और उससे छुटकारा पाने के लिए अमरीकी ने यह नाम गढ़ लिया था। या हो सकता है, अमरीकी मिलवाकी का ही रहा हो। कुछ कहा नहीं जा सकता।