स्वर्ग सुंदरी : ओड़िआ/ओड़िशा की लोक-कथा
Swarg Sundari : Lok-Katha (Oriya/Odisha)
जगन नाम का एक लड़का था जिसके माँ-बाप, भाई-बहन कोई नहीं था। काम करता तो खाने को मिलता, नहीं तो भूखे पेट रहना पड़ता। हर दिन काम से लौटकर खाना बनाता, खाता, फिर दूसरे दिन काम पर निकल जाता। एक दिन काम से लौटकर देखा तो घर में चूल्हा जलाने के लिए एक भी लकड़ी नहीं थी। उस दिन दूसरों से माँगकर खाना बना लिया। दूसरे दिन सुबह कुल्हाड़ी लेकर लकड़ी काटने जंगल की तरफ़ गया।
जंगल में लकड़ी काटते-काटते वह जंगल के दूसरे छोर पर पहुँच गया। वहाँ से दो गट्ठर लकड़ी बाँधकर चलने को हुआ तो काफ़ी देर हो चुकी थी और वह थक गया था। नहाने के लिए पास के झरने पर गया तो देखा कि कई सुंदर लड़कियाँ अपने वस्त्र पेड़ पर टाँग कर झरने में नहा रही हैं। उसी पेड़ के नीचे वह सुस्ताने के लिए बैठ गया। वहाँ डाल पर लटकी साड़ियों को देख उसे शरारत सूझी।
उसने एक साड़ी को छुपा दिया और ख़ुद भी छुप गया। वह लड़कियाँ स्वर्ग की अप्सराएँ थीं। वे सब नहाकर बाहर निकलीं और अपनी-अपनी साड़ी पहनकर उड़ते हुए स्वर्ग की तरफ़ चली गईं।
एक लड़की की साड़ी उसने छिपा दी थी, इसलिए वह लड़की जा नहीं पाई और वहीं बैठकर रोने लगी। तब लड़के ने बाहर निकलकर पूछा, “तूम रो क्यों रही हो?” लड़की बोली, “हम स्वर्ग की अप्सराएँ हैं। हम हर दिन इस झरने पर नहाने के लिए आती हैं और नहाकर वापस लौट जाती हैं। पर आज किसी ने मेरी साड़ी चुरा ली इसलिए मैं वापस स्वर्ग नहीं जा पाई।” उसकी बात सुनकर लड़का बोला, “साड़ी नहीं होने से तो तुम जा नहीं पाओगी। तुम अब रोना बंद करो और मेरे घर चलो, वहाँ और कोई नहीं है। हम दोनों साथ घर-संसार बसाएँगे।” उसकी बात पर हामी भरते हुए लड़की उसके साथ घर चली गई। दोनों विवाह कर सुख से रहने लगे।
एक साल बाद उनको एक स्वस्थ सुंदर लड़का हुआ। एक दिन घर का काम करते समय स्वर्ग सुंदरी को अपनी वही पुरानी साड़ी मिल गई। तब उसने मन में सोचा, यही व्यक्ति वह चोर था। उसका मन दुःखी और विचलित हो गया। अपनी वही साड़ी पहनकर, बेटे को गोद में लेकर वह स्वर्ग जाने के लिए तैयार हो गई। तभी उस लड़के ने वहाँ पहुँचकर यह सब देखा तो भयभीत हो गया। कुछ देर बाद आसमान से एक काला बादल नीचे उतरा।
उस लड़के ने स्वर्ग सुंदरी से बहुत विनती की, गिड़गिड़ाया, पर उसने एक न सुनी और बादल में बैठकर चली गई। जाते समय पति से बोली, “अगर तुम एक हज़ार खड़ाऊँ बना लोगे तो स्वर्गधाम में आ सकोगे।”
उस दिन से वह लड़का खड़ाऊँ बनाने में जुट गया। जिस दिन उसने नौ सौ निन्यानवे खड़ाऊँ तैयार कर लिए, उस दिन एक बादल उसके घर पहुँचा और वह उस बादल पर बैठकर स्वर्ग पहुँच गया। पर स्वर्ग में अप्सरा के माता-पिता ने उस लड़के को पसंद नहीं किया। फिर भी वह स्वर्ग सुंदरी अपने पति को पहले जैसा ही प्यार करती रही।
एक दिन धूप में काम करते-करते लड़के को प्यास लगी। चारों तरफ़ पानी ढूँढ़ा, पर कहीं भी पानी नहीं मिला। उसी समय उसने देखा कि एक बग़ीचे में ककड़ी फला है। पर स्वर्गपुर में ककड़ी खाना वर्जित था। उनका विश्वास था कि ककड़ी खाने पर बाढ़ आती है। युवक ने प्यास से परेशान होकर जैसे ही ककड़ी तोड़ी, सच में बाढ़ आ गई। स्वर्ग के लोगों में हाहाकार मच गया। उसी पानी में स्वर्ग सुंदरी और उसका बच्चा बह गए। जब पानी कुछ थमा तो उस जगह एक नदी बन गई। स्वर्ग सुंदरी और वह लड़का नदी के दोनों किनारे बन गए। फिर कभी दोनों का मिलन नहीं हो पाया।
स्वर्ग की उस नदी को अब 'छायापथ' या कंध आदिवासियों की भाषा में 'गाए धरस' कहा जाता है। नदी के दोनों किनारे स्वर्ग सुंदरी और वह युवक दो तारे बनकर रह गए। अमावस्या की रात को छायापथ के दोनों तरफ़ यही दो तारे दिखते हैं।
(साभार : अनुवाद : सुजाता शिवेन, ओड़िशा की लोककथाएँ, संपादक : महेंद्र कुमार मिश्र)