स्वर्ग की यात्रा : सिक्किम की लोक-कथा

Swarg Ki Yatra : Lok-Katha (Sikkim)

हिमालय की ऊँची चोटी के पास दराम्दीन नाम का एक गाँव था, जो अपने वैभव और संपन्नता के लिए लोक में प्रसिद्ध था। वहाँ के निवासियों को किसी प्रकार का कोई कष्ट नहीं था। खाद्य सामग्री और पेय पदार्थों की वहाँ कोई कमी नहीं थी, जिसके कारण वहाँ के निवासियों को कोई शारीरिक श्रम करने की आवश्यकता नहीं थी। उनके पास चर्चा-परिचर्चा के लिए प्रचुर समय रहता था। आसपास के लोगों में यह धारणा मान्य थी कि उनसे बुद्धिमान वहाँ कोई नहीं है, इसलिए वहाँ हमेशा लोगों का जमघट लगता। परिचर्चा के लिए कोई बिंदु निकलता और उस पर फिर सब अपनी राय देते। वहाँ के लोगों की दिमागी कसरत खूब होती। दराम्दीन के स्थानीय लोगों में ऐसा भाव आ चुका था कि दिमागी मामले में उन्हें कोई परास्त नहीं कर सकता। वे जो सोचते और करते हैं, वैसा कोई कर नहीं सकता।

एक बार एक बुद्धिमान व्यक्ति के सामने विचार-विमर्श के लिए एक विषय आया कि यह गाँव आकाश से कितनी दूरी पर अवस्थित है ?

एक व्यक्ति ने कहा, “शायद एक या दो मील।"

"नहीं-नहीं, इससे तो दूरी ज्यादा ही है।" दूसरे व्यक्ति ने कहा।

उसी समय, जो व्यक्ति अपने को दूसरों से ज्यादा बुद्धिमान समझता था, उसने कहा, “आकाश जैसी कोई चीज होती नहीं है। यह सब मूर्खतापूर्ण बातें हैं।"

कोई भी व्यक्ति इस चर्चा से संतुष्ट नहीं हुआ; क्योंकि आकाश के नाम पर कुछ तो है, जिसे वे सब देखते हैं। उनमें से किसी ने कहा, "शायद कभी कोई इस ऊँची चोटी के माध्यम से उस पर चढ़ जाए!"

उनमें से एक व्यक्ति ने जरा कठोर भाव से उत्तर दिया, "यह असंभव है। ऐसा कभी नहीं सुना गया कि ऊँची चोटी के माध्यम से कोई आकाश में पहुँचा हो।"

"हमारी यह चोटी अपने में बहुत ही ऊँची है, उस पर आकाश तो यहाँ से बहुत ही दूर है, वहाँ पहुँचना असंभव है।"

गाँववालों ने आपस में खुसर-पुसर करना आरंभ कर दी और आपस में यही बात करने लगे कि क्यों न आकाश जाने के लिए एक सीढ़ी (टावर) का निर्माण किया जाए! सब इस पर सहर्ष राजी हो गए। उनमें एक बुद्धिमान व्यक्ति ने कहा, "टावर मिट्टी के मटकों से बनाया जाएगा, जिनका इस्तेमाल सीढ़ी के रूप में होगा। उसी पर चढ़ते हुए आकाश जाया जाएगा।"

कुछ दिनों के पश्चात् गाँव में एक बड़े कार्यक्रम का आयोजन हुआ, जिसके तहत देशभर से मटके इकट्ठे किए जाने लगे। भारी संख्या में लोगों को देश के विभिन्न स्थानों में भेजा गया, ताकि ज्यादा-सेज्यादा मटके जमा किए जा सकें। कुछ दिनों बाद गाँव में बड़ी तादाद में मटके इकट्ठे होने लगे।

गाँववालों ने अपने मध्य में से दो लोगों का चयन किया, जो मटके के सहारे सबसे पहले आकाश जाएगा। आसमान में जाने की सारी व्यवस्था हो गई। एक सवेरे आसमान में चढ़ने का निर्णय लिया। मटके का इस्तेमाल सीढ़ियों के रूप में करने का निर्णय हुआ। एक के ऊपर दूसरा, दूसरे पर तीसरा, इस तरह मटकों को रखा जाना तय हुआ। मटके का टावर बढ़ता गया, वह इतना बढ़ गया कि ऊपर से नीचे देखने पर चक्कर आने लगा। अब नीचे खड़े लोगों को ऊपर चढ़े लोग दिखने बंद हो गए। नीचे खड़े लोगों को लगने लगा कि उनके दो लोग आकाश पहुँचने को हैं। ऊपर चढ़े उन लोगों को भी यह अहसास होने लगा कि वे मंजिल के करीब हैं। सवेरे से शाम होने को आई। सूरज बादलों की ओट में छुपने लगा, उन्हें महसूस होने लगा कि वे आसमान के बड़े नजदीक आ गए हैं।

जो मटके उनके हाथों में थे, वे अब खत्म हो चुके थे और नीचे जो मटके दे रहे थे, उनसे और मटकों के लिए कहना अब संभव नहीं था। उन्हें लगने लगा कि अन्य मटकों का सहारा लेने की बजाय दो खंभों के सहारे आसमान में पहुँचना ज्यादा आसान रहेगा, इसलिए उन्होंने जोर से आवाज लगाई, 'कोक बिंग यान तांग', जिसका आशय है, 'हमें दो लंबे खंभे दिए जाएँ।' आसमान की ओर जानेवालों की आवाज स्पष्ट जमीन तक नहीं पहुँची, उन्हें सिर्फ फुसफुसाहट सुनाई दी और नीचे खड़े लोगों को केवल इतना भर सुनाई पड़ा, वे कह रहे हैं 'चाकता'। लेपचा भाषा में जिसका अर्थ है, 'नीचे गिर रहे हैं।'

"क्या? टावर गिर रहा है? ऐसा नहीं हो सकता, यह असंभव है !" वे कराहते हुए बोले।

उन्होंने पूरी बात जानने के लिए पुनः पूछा, "चाकता।"

ऊपर के दोनों व्यक्तियों ने जोर से आवाज लगाई, “कोक बिंग यान तांग", पर नीचे खड़े लोगों को वही पहले का शब्द ही सुनाई पड़ा, 'चाकता।'

सुननेवाले के कानों में पुनः वही बात सुनने में आई। ऊपर चढ़े लोग आसमान पहुँचने की चाह में काफी थक चुके थे, पर वहाँ पहुँचने का किनारा नहीं दिख रहा था। नीचे खड़े लोग भी इंतजार करते थक चुके थे, पर आसमान में पहुँचने का कोई संकेत नहीं मिल रहा था। अंत में निराश होकर नीचे खड़े एक बुद्धिमान व्यक्ति ने निर्णय लिया कि टावर गिरा दिया जाए। उसने मटकों की पंक्तियों में सबसे निचला मटका निकाल दिया, उसके निकलते ही जोर की आवाज के साथ सारे मटके धड़ाधड़ गिरकर टूट गए। आसमान की ओर गति करनेवाले दो बुद्धिमान लोग नीचे जमीन पर गिरकर धराशायी हो गए। बुद्धिमान लोगों का गर्व टूटकर चकनाचूर हो गया। असल में वे संख्या में बहुत कम थे, उन्हें लगता था, उनसे ज्यादा बुद्धिमान कोई है नहीं।

(लेपचा इस टावर के सहारे स्वर्ग पहुँचने की चाह रख रहे थे, पर वे स्वयं गिरकर लहूलुहान हो गए।)

(साभार : डॉ. चुकी भूटिया)

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