स्वागत की विडंबना (व्यंग्य) : हरिशंकर परसाई

Swagat Ki Vidambana (Hindi Satire) : Harishankar Parsai

बैतूल का समाचार है। उपमंत्री गुमास्ता साहब पंचायतों के पंचों के सामने भाषण करने गए।

सब इंतजाम हो गया। सैकड़ों पंच आनेवाले थे। लेकिन जब गुमास्ता साहब पहुँचे तो कुल 5-6 पंच उपस्थित थे। पंच लोग उपमंत्री का भाषण सुनने आखिर नहीं आए ।

लेकिन अधिकारी लोग बड़े चतुर निकले। उन्होंने झट स्कूल बंद करवाए और शिक्षकों को ले जाकर बिठा दिया। सब जगहें भर गईं। शिक्षक लोग पंचायत के पंचों के स्थानों पर बैठे और फिर प्रस्ताव पर प्रस्ताव पास होने लगे ।

सब प्रस्ताव सर्वसम्मति से पास हुए। जहाँ पंच ही नहीं थे वहाँ पंचायत संबंधी प्रस्ताव सर्वसम्मति से पास हो गए।

और हमें एक अखबार में यह पढ़कर बड़ा मजा आया कि एक अफसर की इसलिए तारीफ हुई कि उन्होंने बड़ी चतुराई से काम लिया और पंचों की जगह शिक्षकों को बिठाकर स्थिति को सँभाल लिया । याने शुद्ध घी के नाम से डालडा बेच देनेवाले सेठ की जो तारीफ होती है वही तारीफ पंचों की जगह शिक्षकों को बिठा देने से अफसर की हुई ।

अफसरों को इसका अभ्यास हो गया है। उन नेताओं के स्वागत में जिन्हें कोई सुनना नहीं चाहता, अफसर लोग लड़कों और शिक्षकों को इकट्ठा कर देते हैं । वे जानते हैं समाज शिक्षा केंद्र में स्वागत के दिन हाजिरी शून्य से किस प्रकार सौ तक चढ़ाई जाती है।

आजकल भाषण सुनने को कोई खाली नहीं है और भाषण -युग की पैदाइश इन नेताओं का मन बिना भाषण दिए मानता नहीं है। यहाँ जबलपुर की तिलकभूमि तलैया में बेचारे दिन-भर घोषणा करके सभा बुलाते हैं तो 25 आदमी पहुँचते हैं। इसलिए उस दिन तरण- तारण जयंती में हजारों की संख्या में नर-नारियों को देखकर नेताओं का मन हरा हो गया। कुछ ऐसा लगा जैसे भूखे आदमी के सामने छप्पन प्रकार के भोजन रखे हों। बस उस दिन कई नेताओं ने अपने मन की हविश निकाल ली। उस दिन उन्हें खुशी के मारे नींद नहीं आई होगी।

इन नेताओं से अधिक भीड़ तो वह चौराहे पर खड़ा होनेवाला साँप और बिच्छू दिखाकर दवाई बेचनेवाला जोड़ लेता है।

तिलकभूमि में तो जिस दिन लाउडस्पीकर लगते दिखते हैं वहाँ रोज बैठनेवाले भी अन्यत्र भाग जाते हैं। एक दिन एक पार्टी के लोग शाम के 6 बजे से 7.30 बजे तक लाउडस्पीकर लगाए बैठे रहे । श्रोता नदारद। एक नेता हमारे पास आकर कहने लगे- 'इस जनता को क्या हो गया है। लोग आते ही नहीं हैं।'

हमारे पास बैठे एक आदमी ने कहा- 'आप लोग ये लाउडस्पीकर चोंगे निकाल दो। इन्हें देखकर ही लोग नहीं आते। जब कुछ आदमी सहज ही यहाँ आकर बैठें तो एकदम भाषण शुरू कर दो। धोखे से पकड़ो जनता को !'

प्रहरी, 25 दिसम्बर, 1955

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