सुयोग्य लड़की : उत्तर प्रदेश की लोक-कथा

Suyogya Ladki : Lok-Katha (Uttar Pradesh)

दो सयाने बहू बनाने के लिए लड़की ढूंढने लगे थे। लड़की बुद्धिमति और काम-काज में निपुण हो। चलते-चलते वे एक घर के पास पहुंचे, जहां एक लड़की आंगन में रसोई बना रही थी। वृद्धों को वह पसन्द आ गई किन्तु उसकी परीक्षा लेना अभी शेष थी।

एक सयाने ने वह पूछ ही ली, “बेटी, तेरी माता कहां है?” “वह एक की दो करने गई हैं।” “तेरे पिता कहां गए हैं?” दूसरे सयाने ने पूछा। “पानी पकड़ने गए हैं।” लड़की ने स्नेह से कहा। “और भाई कहां गया है?” “वह पागल खाने गया है।” “तुम क्या कर रही हो?” “मैं सौ मार रही हूं और एक को परख रही हूं।”

दोनों सयानों ने समझ लिया कि यह लड़की बहुत बुद्धिमति है। लड़की ने उन्हें बैठने के लिए चटाई दी। वे बैठ गए।

लड़की की माता एक की दो करने मतलब उड़द दलने गई थी। पिता पानी पकड़ने मतलब छप्पर छाने गए थे। भाई पागलखाने गया है यानी शराब पीने गया है। लड़की के सौ मारने और एक परखने का अर्थ था कि वह चावल पका रही है। एक चावल के दाने को देख कर वह पूरे चावल पकने को परख रही है।

दोनों सयानों की आंखें मिली और यह लड़की उन्होंने पसन्द कर ली। अब इसके माता-पिता से इसे अपने बेटे की शादी के लिए मांग करनी है और आज ही ब्याह के लिए पक्की जुबान करनी है। दोनों सयानों ने परामर्श किया। (साभार : प्रियंका वर्मा)

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