सूरज और चाँद की बेटी : अंगोला की लोक-कथा

Suraj Aur Chand Ki Beti : Angola Folk Tale

यह बहुत दिनों पुरानी बात है कि अफ्रीका के अंगोला देश में एक बहुत ही सुन्दर और बहादुर नौजवान रहता था जिसका नाम था किया–तुम्बा ऐनडाला। वह एक सरदार का बेटा था और उस सरदार का नाम था किमानौऐजे।

गाँव की सारी लड़कियाँ उस नौजवान से शादी करना चाहती थीं। उसका पिता किमानौऐज़े भी चाहता था कि उसके बेटे की अब शादी हो जानी चाहिये सो वह बार बार किया से इस बारे में बात करता।

“मेरे बेटे, अब समय आ गया है जब तुमको शादी कर लेनी चाहिये सो अब तुम शादी कर लो और अपना परिवार बनाओ। गाँव में बहुत सारी लड़कियाँ हैं। तुम उनको देखो और जो तुमको सबसे अच्छी लगे उससे शादी कर लो। ”

पर हर बार किया कोई न कोई बहाना बना कर पिता की बात को या तो टाल जाता या फिर अनसुना कर देता।

आखिर एक दिन अपने पिता के लगातार कहने पर वह बोला — “पिता जी, मुझे इस धरती की किसी लड़की से शादी नहीं करनी। ”

किमानौऐज़े को लगा कि शायद उसकी समझ में नहीं आया कि उसके बेटे ने क्या कहा सो उसने उससे फिर कहा — “तुमने क्या कहा बेटा? तुम किससे शादी करना चाहते हो?”

किया कुछ नाराजी से बोला — “मैंने कहा न पिता जी कि मुझे इस धरती की किसी लड़की से शादी नहीं करनी। ”

यह सुन कर तो उसका पिता और भीे आश्चर्य में पड़ गया और उससे पूछा — “तब तुम किससे शादी करना चाहते हो बेटा?”

“मुझे अगर शादी करनी ही पड़ी तो मैं भगवान सूरज और रानी चाँद की बेटी से शादी करूँगा। ”

पिता बाला — “मेरे बेटे ज़रा ठीक से सोचो। हम लोग सूरज और चाँद की बेटी का हाथ माँगने के लिये स्वर्ग कैसे जा सकते हैं?”

“देखेंगे पिता जी। पर यह बात पक्की है कि मैं भगवान सूरज और रानी चाँद की बेटी के अलावा किसी और से शादी नहीं करूँगा। ”

सारे गाँव ने जब यह सुना तो उन सबको यही लगा कि किसी ने उसके ऊपर जादू कर दिया है और इस जादू की वजह से उसकी अक्ल काम नहीं कर रही। उसका दिमाग काम नहीं कर रहा।

यहाँ तक कि उसके पिता ने भी फिर उससे शादी के बारे में बात करना बन्द कर दिया। पर किया–तुम्बा ने यह पक्का इरादा कर रखा था कि वह अगर शादी करेगा तो केवल भगवान सूरज और रानी चाँद की बेटी से ही करेगा और किसी से भी नहीं।

सो उसने भग्वान सूरज को एक चिठ्ठी लिखी जिसमें उसने उनकी बेटी का हाथ माँगा।

हाथ में वह चिठ्ठी लिये हुए वह एक हिरन के पास गया ताकि वह उसकी चिठ्ठी सूरज के पास स्वर्ग ले जा सके पर हिरन ने अपना सिर ना में हिलाया और कहा — “मुझे अफसोस है किया कि मैं इतनी दूर नहीं जा सकता। ”

किया फिर एक हिरनी के पास गया पर उसने भी उसको मना कर दिया — “अफसोस किया मैं इतनी दूर ऊपर स्वर्ग में नहीं जा सकती। ”

उसके बाद किया–तुम्बा एक बाज़ के पास गया तो अपने पर चौड़े चौड़े फैला कर उसने कहा — “मैं उतनी दूर तक उड़ तो सकता हूँ पर मैं भगवान सूरज तक नहीं जा सकता। ”

अन्त में वह गिद्ध के पास पहुँचा पर गिद्ध ने भी ऐसा ही कुछ कहा — “मैं आधी दूर तक तो जा सकता हूँ पर पूरी तरह से वहाँ जाना यानी स्वर्ग में अन्दर जाना, नहीं नहीं मैं वहाँ तक नहीं जा सकता। यह मुश्किल काम है किया। अफसोस यह मैं नहीं कर सकता। ”

इतने सारे जानवरों से ना सुनने के बाद किया काफी नाउम्मीद हो गया। उसको लगा कि यह शादी तो सचमुच में मुमकिन नहीं लगती सो उसने वह चिठ्ठी एक बक्से में बन्द कर दी और उसके बारे न सोचने की कोशिश की।

उधर भगवान सूरज और रानी चाँद की दासियाँ धरती पर किया–तुम्बा के गाँव के पास वाले कुँए से पानी भरने के लिये आया करती थीं।

वहीं उस कुँए में एक मेंढक रहता था। उसने उनको वहाँ से पानी ले जाते हुए कई बार देखा था। उस मेंढक को किया की इच्छा का भी पता था।

इसके अलावा वह किया को यह भी दिखाना चाहता था कि वह उसके लिये कितने काम का जानवर था सो उसके दिमाग में एक तरकीब आयी।

एक दिन वह किया के पास गया और बोला — “मुझे मालूम है कि तुमने अपनी शादी के लिये एक चिठ्ठी लिखी है। ”

किया बोला — “हाँ लिखी तो है। पर वह तो ऐसी ही है जैसे मैंने उसको लिखा ही न हो क्योंकि मुझे कोई ऐसा मिला ही नहीं जो उसको ऊपर स्वर्ग में ले जा सके। ”

मेंढक बोला — “तुम उस चिठ्ठी को मुझे दे दो मैं देखता हूँ। ”

किया कुछ शक के साथ बोला — “बेवकूफ मत बनो। क्योंकि जब उसको बड़े बड़े परों वाली चिड़ियें नहीं ले जा सकीं तो तुम कैसे ले कर जाओगे?”

मेंढक बोला — “मेरा विश्वास करो मुझे मालूम है कि मैं क्या कह रहा हूँ। तुम देखना मैं तुम्हारे लिये क्या कर सकता हूँ। ”

किया–तुम्बा ने कुछ देर सोचा पर फिर यह सोच कर कि इसमें हर्ज ही क्या है उसका कोई नुकसान तो है नहीं उसने वह चिठ्ठी ला कर मेंढक को दे दी और कहा — “याद रखना कि अगर तुम अपने इस काम में कामयाब नहीं हुए तो तुमको इसके लिये पछताना पड़ेगा। ”

मेंढक ने इसकी कुछ ज़्यादा चिन्ता नहीं की और किया से कुछ ज़्यादा हील हुज्जत भी नहीं की। बस वह उस चिठ्ठी को ले कर उस कुँए की तरफ चला गया जहाँ वह रहता था और जहाँ भगवान सूरज और रानी चाँद की दासियाँ पानी भरने आया करती थीं।

उसने वह चिठ्ठी अपने मुँह में रखी और उसको मुँह में रख कर वह कुँए के पानी में कूद गया और जा कर वहाँ बिल्कुल चुपचाप बैठ गया।

कुछ देर बाद ही वहाँ भगवान सूरज और रानी चाँद की दासियाँ पानी भरने के लिये आयीं। वहाँ आ कर उन्होंने पानी भरने के लिये अपने अपने घड़े पानी में डुबोये और पानी भर कर उनको ऊपर खींच लिया।

पलक झपकते ही वे पानी ले कर स्वर्ग की तरफ उड़ चलीं। मेंढक भी चुपचाप एक घड़े में छिप कर बैठ गया और उनके पानी के साथ साथ उनके घड़े में बैठ कर स्वर्ग चला गया।

जब वे दासियाँ भगवान सूरज के घर पहुँच गयीं तो उन्होंने पानी के घड़े उनकी जगह पर रख दिये और वहाँ से चली गयीं। एक बार जब मेंढक सूरज के घर में पहुँच गया तो वह पानी के घड़े से बाहर कूद गया।

उसके बाद वह कमरे के बीच में रखी एक ऊँची सी मेज पर कूद गया। वहाँ उसने किया की चिठ्ठी निकाल कर मेज पर रखी और तुरन्त ही एक अँधेरे कोने में जा कर छिप कर बैठ गया।

कुछ देर बाद भगवान सूरज वहाँ पानी पीने आये तो उन्होंने मेज पर रखी एक चिठ्ठी देखी तो उन्होंने अपनी दासियों को बुलाया और वह चिठ्ठी दिखाते हुए उनसे पूछा — “और यह? यह कहाँ से आयी?”

वे डर कर बोलीं — “मालिक हमें नहीं पता कि यह चिठ्ठी कहाँ से आयी। हमें सचमुच ही नहीं पता कि यह चिठ्ठी कहाँ से आयी। ”

भगवान सूरज ने कागज काटने वाला एक चाकू उठाया और उस चिठ्ठी को खोल कर पढ़ा — “मैं किया–तुम्बा ऐनडाला, किमानौऐज़े का बेटा, धरती का एक आदमी, भगवान सूरज और रानी चाँद की बेटी से शादी करना चाहता हूँ। ”

भगवान सूरज मुस्कुराये और सोचा — “ज़रा इन धरती के लोगों के स्वर्ग में आने के विचार तो देखो। यह किया तो बहुत ही बहादुर है। पर यह सन्देश लाया कौन होगा। ”

भगवान सूरज ने कुछ कहा नहीं और वह चिठ्ठी अपनी जेब में रख कर कमरे से बाहर चले गये।

इस बीच उनकी दासियाँ और पानी लाने के लिये कुँए पर वापस जाने वाली थीं कि कमरे में छिपा हुआ मेंढक उनके एक घड़े में फिर से छिप कर बैठ गया और इस तरह फिर धरती पर वापस पहुँच गया। तुरन्त ही वह किया के गाँव की तरफ चल दिया।

वह किया के घर पहुँचा और जा कर उसका दरवाजा खटखटाया। किया ने दरवाजा खोला तो मेंढक को सामने खड़ा देख कर उसने उससे पूछा — “प्रिय मेंढक, क्या तुम मुझसे यह कहने आये हो कि तुमने मेरी चिठ्ठी भगवान सूरज तक पहुँचा दी है या फिर मेरी मार खाने के लिये आये हो?”

मेंढक बोला — “मैंने तुम्हारी चिठ्ठी भगवान सूरज तक पहुँचा दी है इसलिये तुम अपने मुझे मारने की तकलीफ को बचा कर रख सकते हो। ”

किया ने पूछा — “अगर ऐसा है तो फिर तुम्हारे पास उसका कोई जवाब क्यों नहीं है?”

मेंढक बोला — “यह तो मुझे नहीं पता पर मुझे यह पता है कि तुम्हारी चिठ्ठी सही आदमी के हाथ में पहुँच गयी है और उसने उसको पढ़ भी लिया है।

अगर तुम चाहते हो कि तुमको उसका जवाब मिले तो तुम एक और चिठ्ठी लिख सकते हो जिसमें तुम भगवान सूरज को जवाब देने के लिये कहो। तुम्हारे लिये मैं उसको भी स्वर्ग ले जाने के लिये तैयार हूँ। ”

किया–तुम्बा एक पल के लिये तो हिचकिचाया क्योंकि उसको डर था कि यह मेंढक शायद उसका मजाक बना रहा था पर फिर उसको भगवान सूरज और रानी चाँद की बेटी का ख्याल आया और उसने एक और कोशिश करने का निश्चय कर लिया।

वह बैठा और उसने एक और चिठ्ठी लिखी — “मैं किया–तुम्बा ऐनडाला, किमानौऐज़े का बेटा, धरती का एक आदमी, ने आपको पहले भी आपकी बेटी का हाथ माँगने के लिये लिखा था।

चिठ्ठी आपको भिजवा दी गयी थी पर मुझे अभी तक उसका कोई जवाब नहीं मिला है। इसलिये मैं यह जानने के लिये कि मेरा यह प्रस्ताव आपको मंजूर है कि नहीं मैं एक और चिठ्ठी भेज रहा हूँ। आशा है कि आप बताने की कृपा करेंगे। ”

चिठ्ठी लिख कर उसने अपने दस्तखत किये, उसको मोड़ा और बन्द करके मेंढक को दे दिया। मेंढक फिर से उस कुँए की तरफ चल दिया।

जब मेंढक कुँए पर पहुँचा तो पहले की तरह से उसने किया की चिठ्ठी अपने मुँह में रखी और कुँए में कूद गया। वहाँ वह भगवान सूरज की दासियों के आने का इन्तजार करने लगा। कुछ देर बाद जब वे वहाँ पानी भरने आयीं तो वह मेंढक उनके घड़े में बैठ कर फिर से स्वर्ग चला गया।

वहाँ पहुँच कर उसने फिर से मेज पर चिठ्ठी रखी और अपने उसी अँधेरे कोने में छिप कर बैठ गया। कुछ देर बाद भगवान सूरज वहाँ आये तो उन्होंने मेज पर फिर एक चिठ्ठी रखी देखी। उन्होंने उसको भी उठाया, खोला और पढ़ा।

उस चिठ्ठी को देख कर उनका आश्चर्य और बढ़ गया कि वे चिठ्ठियाँ धरती पर से कौन ला रहा था सो उन्होंने अपनी दासियों को फिर से बुलाया और उनसे उस चिठ्ठी के बारे में पूछा।

उन्होंने कहा — “तुम लोग पानी लाने के लिये हमेशा ही धरती पर जाती रही हो। क्या तुमने किसी को देखा जो ये चिठ्ठियाँ वहाँ से यहाँ लाता है?”

यह सुन कर वे दासियाँ तो भगवान सूरज से भी ज़्यादा आश्चर्य में पड़ गयीं। वे एक साथ बोलीं — “नहीं तो। हमें तो इस बात का बिल्कुल ही पता नहीं है। ”

यह सुन कर भगवान सूरज ने अपना सिर खुजलाया पर उनकी समझ में यह नहीं आया कि वे चिठ्ठियाँ उनके पास तक पहुँच कैसे रही थीं। फिर भी उन्होंने एक कागज लिया और उस पर लिखा —

“तुम मुझे चिठ्ठियाँ भेजते रहे हो। कैसे, यह मैं नहीं जानता। उन चिठ्ठियों में तुमने मुझे लिखा था कि तुम मेरी बेटी से शादी करना चाहते हो। मैं तुमको उससे शादी करने की इजाज़त दे तो सकता हूँ पर इस शर्त पर कि तुम खुद यहाँ उसके लिये पहली भेंट ले कर आओ ताकि मैं यह देख सकूँ कि तुम किस तरह के आदमी हो। ”

फिर उन्होंने उस चिठ्ठी पर दस्तखत किये, उसको मोड़ा और बन्द करके उसको वहीं मेज पर रख दिया। मेज पर चिठ्ठी रख कर वह वहाँ से चले गये।

जैसे ही भगवान सूरज वहाँ से गये तो मेंढक अपनी जगह से निकला, मेज पर कूदा, चिठ्ठी उठा कर अपने मुँह में रखी और एक घड़े में जा कर बैठ गया। जब भगवान सूरज की दासियाँ फिर से पानी भरने के लिये धरती पर गयीं तो वह भी उनके साथ साथ धरती पर चला गया।

जब तक वे दासियाँ वहाँ से स्वर्ग गयीं तब तक वह वहीं छिप कर उनके जाने का इन्तजार करता रहा। जैसे ही वे स्वर्ग चली गयीं वह तुरन्त गाँव में किया के घर भाग गया।

किया ने दरवाजा खोला तो उसने भगवान सूरज की चिठ्ठी उसको थमा दी। किया को तो अपनी अपनी आँखों पर विश्वास ही नहीं हुआ कि वह भगवान सूरज के हाथ की लिखी चिठ्ठी पढ़ रहा था।

किया खुश हो कर बोला — “इसका मतलब है कि तुम सच बोल रहे थे दोस्त मेंढक। मैं उनके लिये अभी जा कर पहली भेंट तैयार करता हूँ ताकि तुम उसे भगवान सूरज के पास ले जा सको। ”

सो उसने एक चमड़े का थैला लिया और उसमें सोने के 40 सिक्के रखे और फिर एक और चिठ्ठी लिखी —

“आदरणीय भगवान सूरज जी और रानी चाँद जी। यह आपको मेरी पहली भेंट है। मुझे अफसोस है कि मैं आपके पास खुद नहीं आ सकता। मुझे धरती पर ही ठहरना है क्योंकि मुझे अभी शादी की तैयारियाँ करनी हैं। ”

और मेंढक किया की चिठ्ठी और पहली भेंट ले कर पहले की तरह से फिर से स्वर्ग पहुँच गया। उसने वह चिठ्ठी और पैसों का थैला मेज पर रखा और जैसे गया था वैसे ही वापस आ गया।

इस तरह मेंढक कुछ समय तक किया और भगवान सूरज के बीच सन्देश लाता ले जाता रहा। किया की भेंटें ले जाता रहा।

इस तरह दिन दिन करके एक महीना निकल गया, फिर दूसरा महीना भी निकल गया और फिर आया वह दिन जिस दिन किया की शादी भगवान सूरज और रानी चाँद की बेटी से होनी थी।

पर किया–तुम्बा अपना मन पक्का नहीं कर पा रहा था क्योंकि उसको बहुत चिन्ता लगी थी। बारह दिन तक वह पलक तक नहीं झपका सका था। आखिर उसने मेंढक को बुलाया और उससे अपनी चिन्ता बतायी।

वह बोला — “दोस्त, मैं खुद तो अपनी पत्नी को लेने के लिये स्वर्ग जा नहीं सकता और न मैं किसी और को जानता हूँ जो उसको यहाँ धरती पर ला सके। मैं क्या करूँ?”

मेंढक तुरन्त ही बोला — “पर मैं तो हूँ। मैं वहाँ जाऊँगा और फिर पता लगाता हूँ कि उसको यहाँ कैसे लाया जा सकता है। तुम चिन्ता न करो। ”

किया–तुम्बा को मेंढक के तसल्ली देने पर भी तसल्ली नहीं हुई। वह बोला — “पर तुम तो बहुत छोटे से हो तुम ऐसा कैसे कर सकते हो। ”

पर मेंढक ने उसे विश्वास दिलाया — “तुम बिल्कुल चिन्ता न करो। तुम देखना कि मैं उसको यहाँ लाने का कोई न कोई रास्ता उसी तरह से निकाल लूँगा जैसे मैंने तुम्हारी चिठ्ठियाँ और भेंटें ले जाने का निकाला था। ,”

कह कर मेंढक फिर से उसी कुँए पर चला गया।

पहले की तरह से वह वहाँ से वह भगवान सूरज की दासियों की पानी के घड़े में बैठ कर स्वर्ग चला गया और जा कर अपने उसी कोने में बैठ गया जहाँ वह बैठा करता था और भगवान सूरज के सोने का इन्तजार करने लगा।

जब भगवान सूरज के सोने का समय आया तो सब जगह अँधेरा और शान्त हो गया। मेंढक अपनी जगह से निकला और भगवान सूरज की सुन्दर बेटी को ढूँढने चल दिया। उसने इधर देखा उधर देखा तो वह उसको गहरी नींद में सोती हुई मिल गयी।

वह चुपचाप उसके तकिये तक पहुँच गया। फिर उसने एक सुई धागा निकाला और उसकी पलकें सिलने लगा।

अब उस मेंढक के पास तो वह जादू की सुई धागा थे और दिखायी भी नहीं दे रहे थे। भगवान सूरज की बेटी को उसकी पलकों की सिलाई से कोई तकलीफ भी नहीं हुई। इसके अलावा उनकी सिलाई भी दिखायी नहीं दे रही थी।

जब उसने उसकी पलकें सिल दीं तो अब उनको कोई खोल भी नहीं सकता था।

जब वह लड़की अगले दिन सुबह उठी तो वह अपनी आँखें ही नहीं खोल पायी। वह बहुत डर गयी और चिल्ला चिल्ला कर रोने लगी और सहायता के लिये पुकारने लगी।

रानी चाँद उसके कमरे में दौड़ी दौड़ी आयी और उससे पूछा — “बेटी क्या बात है क्या हो गया?”

बेटी बोली — “माँ मुझे ऐसा लग रहा है जैसे मेरी आँखों पर बहुत सारा बोझ रखा है। मैं तो अपनी आँख ही नहीं खोल पा रही हूँ। मुझे डर है कि कहीं मैं अन्धी तो नहीं हो गयी हूँ। ”

यह सब सुन कर भगवान सूरज भी वहाँ दौड़े दौड़े आ गये। उन्होंने भी देखा कि उनकी बेटी की आँखें तो बन्द हैं।

वह बोले — “वैसे तो सब कुछ ठीक लग रहा है पर ऐसा लगता है कि किसी अनदेखी ताकत ने इसकी पलकों को नीचे कर रखा है। वह कौन सी ताकत हो सकती है? शायद कोई जादू। क्योंकि कल तक तो यह ठीक थी। ”

रानी चाँद ने चाँदी के आँसू बहाते हुए भगवान सूरज से पूछा —“तो अब हम क्या करें?”

भगवान सूरज बोले — “मैं अपने दो दूत अपने अक्लमन्द ओझा ऐनगोम्बो के पास भेजता हूँ। वह हमको बतायेगा कि हमें क्या करना है। ” कह कर उन्होंने अपने दो नौकरों को बुलाया और उनको ऐनगोम्बो के पास धरती पर भेजा।

मेंढक वहीं बैठा यह सब सुन रहा था। वह तुरन्त ही एक घड़े में कूद गया और अपने पुराने तरीके से धरती पर पहुँच गया। वह उन दूतों के पहुँचने से पहले ही उस ओझा ऐनगोम्बो के घर पहुँच गया। दूतों ने रास्ते में शहतूत की झाड़ियाँ देखीं तो वे कुछ देर तक वहीं रुक गये।

उधर वह ओझा अपने किसी काम से घर से बाहर गया हुआ था तो इस मौके का फायदा उठाते हुए मेंढक उसके घर में घुस गया और अन्दर से घर का दरवाजा बन्द कर लिया।

उस ओझा के घर में उसका मुखौटा दीवार पर टँगा हुआ था जिसको वह अपनी रस्में करते समय पहना करता था सो वह मुखौटा उस मेंढक ने पहन लिया।

कुछ ही देर में भगवान सूरज के दोनों दूत वहाँ आ पहुँचे। उन्होंने ओझा के घर का दरवाजा खटखटाया तो मुखौटा पहने मेंढक ने अन्दर से पूछा — “कौन है?”

उसकी आवाज सारी झोंपड़ी में गूँज गयी।

दोनों दूतों ने कहा कि “हम भगवान सूरज के दूत हैं। क्या हम अन्दर आ सकते हैं?”

मेंढक जल्दी से बोला — “नहीं नहीं। तुम अभी अन्दर नहीं आ सकते। यह नामुमकिन है। मैं अभी एक बहुत जरूरी काम में लगा हूँ। तुम लोग मुझे वहीं बाहर से ही बता दो कि भगवान सूरज को मुझसे क्या काम है। ”

दूतों ने अन्दर आने की जिद नहीं की और उन्होंने उसको वहीं से बताया कि उनके मालिक की बेटी को क्या हुआ है। मेंढक ने शान्ति से उनकी बात सुनी जैसे कि वह उनकी बातें बड़े ध्यान और रुचि से सुन रहा था।

फिर वह कुछ देर चुप रहा जैसे वह कुछ सोच रहा हो और फिर उसी आवाज में बोला — “इसमें कोई शक नहीं है कि लड़की बीमार है और वह इसलिये बीमार है क्योंकि उसका होने वाला पति स्वर्ग जा कर उसको धरती पर नहीं ला सकता।

यह तो एक ऐसा जादू है जिसको सभी जानते हैं। यह तो बहुत पुराना और बहुत ही ताकतवर जादू है। यह कहता है कि “भगवान सूरज और रानी चाँद की बेटी तुम जल्दी से मेरे पास आ जाओ नहीं तो तुम हमेशा के लिये रात के अँधेरे में डूब जाओगी।

और तुम दोनों जल्दी से यहाँ से भाग जाओ और अपने मालिक से कहो कि वह अपनी बेटी को जल्दी से जल्दी धरती पर भेजने का इन्तजाम करें वरना मौत से बचने का और कोई रास्ता नहीं है। ”

यह सुन कर भगवान सूरज के नौकर तो तुरन्त ही भगवान सूरज के पास दौड़ गये और उनको जा कर जो कुछ भी ऐनगोम्बो ने कहा था वैसा का वैसा ही बता दिया।

इधर उन दूतों के जाने के बाद मेंढक किया के घर दौड़ा गया।

“किया–तुम्बा, किया–तुम्बा। अब तुम जल्दी से तैयार हो जाओ तुम्हारी होने वाली दुलहिन बस यहाँ कभी भी आने वाली होगी। ”

दुखी किया–तुम्बा घर से बाहर निकल कर आया और मेंढक से पूछा — “यह कैसे मुमकिन है दोस्त? क्या तुम मेरा बेवकूफ बना रहे हो? मेंढक तुम चले जाओ यहाँ से। मुझसे झूठ नहीं बोलो। ”

मेंढक बोला — “पर तुम मेरे कहने का विश्वास तो करो। देख लेना शाम होने से पहले पहले तुम्हारी होने वाली दुलहिन यहाँ मौजूद होगी। ”

और किया–तुम्बा को जवाब देने का समय दिये बिना ही वह फिर से उसी कुँए पर चला गया जहाँ सूरज भगवान की दासियाँ पानी भरने के लिये आती थीं। और उसके पानी में कूद कर वहाँ उनका इन्तजार करने लगा।

असल में तो मेंढक ने यह पहले ही देख लिया था कि जैसे ही भगवान सूरज के दूतों ने जा कर भगवान सूरज को उसका सन्देश दिया भगवान सूरज ने अपनी बेटी को धरती पर भेजने का इन्तजाम करना शुरू कर दिया था।

उन्होंने तुरन्त ही मकड़े को हुकुम दिया कि वह स्वर्ग से ले कर धरती तक एक बहुत ही लम्बा और मजबूत जाला तैयार करे जिस पर से उनकी अन्धी बेटी उतर कर नीचे धरती पर जा सके। मकड़े ने वैसा ही किया।

और लो। जब शाम होने लगी तो मकड़े का जाला ऊपर से नीचे लटकाया गया और भगवान सूरज की सुन्दर बेटी अपनी दासियों के साथ नीचे धरती पर उतरी।

उसकी दासियों ने उसको कुँए के पास बिठा दिया। उसके बाल सँवारे। उसको तसल्ली दी और उसको वहाँ शान्ति से इन्तजार करने के लिये कहा। उसके बाद वे स्वर्ग वापस चली गयीं।

जैसे ही भगवान सूरज की बेटी वहाँ अकेली रह गयी मेंढक पानी में से बाहर निकला और उसके पास आ कर बोला — “तुम डरो नहीं। मैं तुम्हें तुम्हारे होने वाले दुलहे के पास ले चलूँगा। ”

उसने अपना छोटा सा जादू का चाकू निकाला और उससे उसकी आँखों का वह धागा काटना शुरू किया जिससे उसने उसकी पलकों को पहले सिला था और जिसे केवल वही देख सकता था। जब वह दोनों आँखों के धागे काट चुका तो उसको दिखायी देखने लगा।

अब वे दोनों किया–तुम्बा के गाँव की तरफ चले। वे किया–तुम्बा की झोंपड़ी के दरवाजे के सामने आये और मेंढक ने उसका दरवाजा खटखटाया। किया–तुम्बा बाहर आया तो मेंढक बोला — “यह लो अपनी दुलहिन। ”

किया–तुम्बा तो उस लड़की सुन्दरता देख कर दंग रह गया। उसके मुँह से तो कोई शब्द ही नहीं निकला। मेंढक को धन्यवाद की जरूरत नहीं थी सो वह सबकी नजर बचा कर वहाँ से गायब हो गया।

इस तरह से धरती के एक बेटे ने भगवान सूरज और रानी चाँद की बेटी से शादी की और फिर वे दोनों ज़िन्दगी भर खुशी खुशी साथ साथ रहे।

(साभार : सुषमा गुप्ता)

  • अफ़्रीका की कहानियां और लोक कथाएं
  • भारतीय भाषाओं तथा विदेशी भाषाओं की लोक कथाएं
  • मुख्य पृष्ठ : संपूर्ण हिंदी कहानियां, नाटक, उपन्यास और अन्य गद्य कृतियां