सुनहरा घोड़ा : इथियोपिया की लोक-कथा

Sunehra Ghoda : Ethiopia Folk Tale

इथियोपिया के पूर्वी हिस्से में एक चरवाहा रहता था। उसके पास थोड़ी सी जमीन थी, कुछ भेड़ें, कुछ बकरियाँ, कुछ गायें, कुछ बैल और एक घोड़ा और एक घोड़ी थी।

हर साल वसन्त में वह घोड़ी एक बच्चे को जन्म देती थी और वह चरवाहा कुछ महीने तक उसको अपने पास रख कर बड़ा करके उसे बेच दिया करता था। उस पैसे से वह अपने परिवार के लिये नये कपड़े बनवाया करता था।

फिर एक बार वसन्त आया और फिर एक बार उस घोड़ी ने एक बच्चे को जन्म दिया। पर इस बार का बच्चा उस घोड़ी के पहले के सभी बच्चों से अलग था। इस बच्चे के बाल सुनहरे थे और जैसे जैसे वह बच्चा बड़ा होता गया वह बच्चा और भी ज़्यादा सुन्दर होता गया।

कुछ महीने बाद एक व्यापारी हर साल की तरह उस बच्चे को खरीदने के लिये उसके पास आया।

चरवाहे ने पहले तो बच्चे की तरफ देखा और फिर व्यापारी की तरफ, और बोला - "यह बच्चा बहुत सुन्दर है। मैं अभी इसे आपको नहीं बेचूँगा। मैं इसको थोड़े दिन और अपने पास रखना चाहता हूँ।"

व्यापारी चला गया और घोड़े का बच्चा वहीं खाता खेलता बड़ा होता रहा। जैसे जैसे वह बड़ा होता गया उसका खाना भी बढ़ता गया।

हालाँकि चरवाहा उसको बेचना नहीं चाहता था परन्तु वह उसको अपने पास रख भी नहीं सकता था क्योंकि वह बहुत गरीब था और उसके खाने के खरचे का बोझ नहीं उठा सकता था।

उसने सोचा कि बारिश खत्म हो जाने के बाद जब जमींदार वहाँ आयेगा तो वह उस बच्चे को उस जमींदार को दे देगा।

कुछ हफ्ते बाद बारिश का मौसम खत्म हो गया और जमींदार गाँव में आया। गाँव के सभी लोग उससे मिलने गये। एक बड़ी दावत दी गयी उसके आने की खुशी में। उस दावत में गवैयों को भी बुलाया गया था। दावत खत्म होने के बाद सभी अपने अपने घर चले गये।

अगले दिन वह चरवाहा उस जमींदार के घर गया और बोला - "सरकार, आपके लिये मेरे पास एक भेंट है।"

जमींदार बोला - "अच्छा, कहाँ है वह भेंट?" जमींदार ने चारों तरफ अपनी निगाह दौड़ायी पर उसको कोई भेंट दिखायी नहीं दी।

इतने में चरवाहे का बेटा बाहर से वह सुनहरा घोड़ा ले आया। घोड़ा सचमुच ही बहुत सुन्दर था। जमींदार उस घोड़े को देख कर बहुत खुश हुआ। उसने सभी लोगों को वह घोड़ा दिखलाया। सभी ने उस घोड़े की बहुत तारीफ की क्योंकि उन लोगों ने ऐसा घोड़ा पहले कभी नहीं देखा था।

जब सब लोग उसका घोड़ा देख रहे थे तो चरवाहा अपने बेटे को ले कर दुखी मन से वहाँ से बाहर चला गया और फिर अपने घर चला आया।

उधर जब उस घोड़े की काफी तारीफ हो रही थी तो जमींदार ने पूछा - "अरे वह आदमी कहाँ है जो इस घोड़े को लाया था? मैं उसे इतना सुन्दर घोड़ा देने के लिये कुछ इनाम देना चाहता हूँ।"

यह सुन कर जमींदार के नौकरों ने अन्दर बाहर चारों तरफ देखा परन्तु चरवाहे और उसके बेटे का तो कहीं पता ही नहीं था। वे दूर दूर तक उनको ढूँढने के लिये भी गये पर वह चरवाहा और उसका बेटा उनको कहीं दिखायी नहीं दिये।

जमींदार एक मिनट तक तो चुप रहा फिर बोला - "देखो, वह गरीब आदमी मुझे इतनी कीमती भेंट देगया और बदले में कुछ भी नहीं ले गया, इसे कहते हैं उदारता।"

(साभार : सुषमा गुप्ता)

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