सुन्दरता : हिमाचल प्रदेश की लोक-कथा
Sundarta : Lok-Katha (Himachal Pradesh)
युवती खुबसूरत और ससदय थी तो उसका प्रेमी युवक भी कद-काठी में आकर्षित करने वाला था। युवक ने आते ही युवती को बाहों में भर लिया और कई चुमे ले लिए। युवक हर दूसरे-तीसरे दिन उससे मिलने आ जाता था। काम-काज में उसका दिल नहीं लगता था। बस उसे देखता रहता था। सामने भी और विचारों में भी युवती दिखती थी। युवती भी उसे बहुत चाहती थी। किन्तु युवक का उसमें डूबे रहना उसे चुभ जाता था। आज भी उसे चुमना और बाहों में भरना उसे अच्छा नहीं लगा था।
मेरी रानी, तुम बहुत सुन्दर हो। तुम्हारे बिना मैं अब नहीं रह सकता। युवक ने फिर उसे जोर से बाहों में भींच लिया। तन के आवेग में वह कुछ अपने से बाहर भी निकल चला था। उसके तन की गर्मी और मन की हकीकत जानकर युवती ने उसे जोर से झनकोड़ा और थोड़ा सा धक्का देकर अलग किया।
मैं भी आपसे बहुत प्यार करती हूं किन्तु प्यार का अर्थ डूब जाना नहीं तैरना होता है। युवती ने कहा किन्तु युवक समझ नहीं पाया पर हक्का-बक्का रह गया। कुछ सोचने के उपरान्त युवती ने बहुत प्यार से कहा- आज रविवार है और आपने अब अगले रविवार को आना। उस दिन आपकी जा इच्छा हो वह पूरी कर लेना। ।
युवक अत्यन्त खुश होकर घर लौट आया। युवती ने क्या किया दस्त लगाने वाली दवाई की पुड़िया खा ली। बस फिर तो उसका दस्तों से बुरा हाल हो गया। चार-पांच दिन में ही वह बुढ़िया नजर आने लगी। यह करिश्मा ही था कि वह मरने से बच गई द्य पर उसे चलना-फिरना भी कठिन हो गया और वह लाठी के सहारे-सहारे चलने लगी।
दूसरे रविवार को युवक बहुत बन ठन कर और खुश होकर पहुंचा तो उसने आंगन में लाठी पकड़े कमजोरनबीमार बदसूरत युवती को देखा तो उसे काटो तो खून नहीं।
तुम्हें क्या हो गया? वह आकर्षण और सुन्दरता कहां चली गई री। ये क्या हुआ? वह सुन्दर-सुन्दर तन, रंग-रूप कुछ ही दिनों में ढल गया? कहां गई वह सुन्दरता।
मेरी सुन्दरता देखनी हो तो खेतों में जाइए। सब वहां निकल गया है। सौन्दर्य में फंस कर क्या आदमी को निज कर्म और कर्तव्य भूल जाने चाहिए? सच्चा प्यार क्या बाहरी सुन्दरता पर ही होता है? ………. अन्तः की सुन्दरता ही मैं असली सुन्दरता समझती हूं पर आपकी आप जाने। युवती ने इतने अच्छे अन्दाज में कहा कि युवक ढीला पड़ गया।
अब वह सब समझ गया कि उसे शिक्षा देने के लिए ही इस युवती ने अपनी जान ही दांव पर लगा दी है। सच्ची सुन्दरता और सच्चे प्यार का अर्थ समझकर उस युवती को निहार-निहार कर उसकी आंखों में आंसू आ गए। युवक ने उसे गले लगा लिया। सत्य है जी कि प्यार मनुष्य को उन्नति के मार्ग पर अग्रसर करता है। तन ही नहीं मन भी सुन्दर रहना चाहिए।
(साभार : कृष्ण चंद्र महादेविया)