सुन्दर वासिलीसा : रूसी लोक-कथा

Sundar Vasilisa : Russian Folk Tale

बहुत पुरानी बात है कि एक राज्य में एक सौदागर रहता था। उसकी शादी को 12 साल हो गये थे। उसके एक बेटी थी – सुन्दर वासिलीसा। जब वह 8 साल की थी तो उसकी माँ मर गयी।

जब वह मरने वाली थी तो उसने अपनी बेटी को बुलाया। उसने एक गुड़िया निकाली और अपनी बेटी से कहा — “बेटी वासिलीसुष्का। अब तू मेरी यह आखिरी बात सुन। मैं अब मरने वाली हूँ। मैं तुझे अपना आशीर्वाद देती हूँ और यह गुड़िया देती हूँ। इस गुड़िया को तू अपने पास ही रखना किसी को दिखाना नहीं. तेरे ऊपर कोई मुसीबत नहीं आयेगी।

जब तुझे कोई उलझन हो तो इसको कुछ खाना देना और इससे इसकी सलाह लेना। जब यह खा लेगी तो तुझे यह तेरी उलझन को सुलझाने की तरकीब बतायेगी।”

कह कर वासिलीसा की माँ ने उसे चूमा और मर गयी। पत्नी के मर जाने के बाद सौदागर को बहुत दुख हुआ। पर घर चलाना जरूरी था सो उसने दूसरी शादी कर ली।

वह एक सुन्दर आदमी था और बहुत सारी लड़कियाँ उससे शादी करने की इच्छा रखती थीं। उसको सब लड़कियों में एक विधवा ज़्यादा पसन्द आयी। वह जवान तो ज़्यादा नहीं थी उसके दो बेटियाँ थीं जो वासिलीसा के बराबर की सी थीं। इसलिये वह एक अच्छी पत्नी और माँ हो सकती थी।

सौदागर ने उसी से शादी कर ली और यह उसकी एक बहुत बड़ी गलती थी। वह उसकी बेटी के लिये अच्छी माँ नहीं थी। वासिलीसा अपने गाँव की सबसे सुन्दर लड़की थी इसलिये उसकी सौतेली माँ और बहिनें उससे बहुत जलती थीं। वे हमेशा उसको परेशान करने पर लगी रहतीं।

वे उसके लिये बहुत सारा काम इकठ्ठा करके रख देतीं ताकि उसे करने से वह बदसूरत और कमजोर हो जाये धूप और हवा में काली पड़ जाये। इस तरह वह बच्ची बड़ी मुश्किल की ज़िन्दगी जी रही थी।

वासिलीसा बेचारी बिना कोई शिकायत किये अपना सारा काम करती रहती और और ज़्यादा सुन्दर होती रहती। जबकि उसकी सौतेली माँ और बहिनें बहुत कोशिशें करने के बावजूद साँवली और पतली होती जा रही थीं।

उसके बाद भी वे खुद हाथ पर हाथ रखे ऐसे बैठी रहतीं जैसे कुलीन घरों की स्त्रियाँ बैठी रहती हैं। ऐसा कैसे होता।

वासिलीसा की गुड़िया उसकी सहायता करती। उसके बिना तो वासिलीसा अपना कोई काम पूरा कर ही नहीं सकती थी। वासिलीसा अक्सर कुछ नहीं खाती और सबसे ज़्यादा स्वादिष्ट खाना गुड़िया के लिये रख देती।

रात को जब सब सोने चले जाते तो वह अपने आपको नीचे वाले छोटे कमरे में बन्द कर लेती और गुड़िया को खाना खिलाती और कहती — “सुन ओ गुड़िया मैं तुझे अपनी मुश्किलें बताती हूँ। मैं अपने पिता के घर में रहती हूँ और मेरी किस्मत बहुत खराब है। मेरी नीच सौतेली माँ मुझे हमेशा परेशान करने में लगी रहती है। तू मुझे बता मैं इसे सहन करने के लिये क्या करूँ।”

तब गुड़िया उसको अच्छी सलाह देती उसको तसल्ली देती और उसका सुबह का सारा काम कर देती। वासिलीसा से कहा गया था कि वह जंगल से फूल चुन कर लाये सारी फूलों की क्यारियाँ साफ करे। बाहर से कोयला अन्दर ले कर आये। पानी भरे घड़े घर में ले कर आये। अँगीठी के पत्थर को गरम रखे। गुड़िया उसका यह सब काम कर देती।

गुड़िया ने उसे जड़ी बूटियों के बारे में भी बताया सो उस गुड़िया को धन्यवाद कि उसने उसकी ज़िन्दगी अच्छी बना दी थी। इस तरह कई साल निकल गये।

वासिलीसा बड़ी हो गयी गाँव के सारे लड़के उससे शादी की इच्छा करने लगे। पर सौतेली माँ की बेटियों की तरफ कोई देखता भी नहीं था। यह देख कर तो सौतेली माँ उसके लिये और भी बुरी हो गयी।

उसने उससे शादी करने वालों को जवाब देना शुरू कर दिया कि “मैं उसकी शादी तब तक नहीं करूँगी जब तक उसकी दोनों बहिनों की शादी न हो जाये।” इस तरह उसने उसके सारे उम्मीदवारों को वापस भेज दिया

एक दिन सौदागर को किसी काम से काफी दिनों के लिये बाहर जाना पड़ा। इस बीच सौतेली माँ एक नये घर में गयी जो एक घने अँधेरे जंगल के पास था। उस जंगल में एक घास का मैदान था। और उस मैदान में एक झोंपड़ी थी। और उस झोंपड़ी में बाबा यागा रहती थी। वह किसी को अन्दर नहीं आने देती थी और आदमियों को तो ऐसे खा जाती थी जैसे लोग मुर्गा खा जाते हैं।

जब वह जा रही थी तो सौतेली माँ ने अपनी सौतेली बेटी को जंगल में भेजा पर वह वहाँ से हमेशा ही सुरक्षित चली आयी क्योंकि उसकी गुड़िया ने उसे एक रास्ता बताया जिससे वह हमेशा ही बाबा यागा की झोंपड़ी से बच कर जा सकती थी।

एक दिन जब कटाई का समय आ गया तो सौतेली माँ ने तीनों बेटियों को शाम के लिये कुछ काम दिया।

एक को उसने लेस बनाने का काम दिया। दूसरी को उसने एक मोजा बुनने का काम दिया और वासिलीसा को कातने का काम दिया। हर एक को एक निश्चित काम करना था।

माँ ने घर की सारी रोशनी बुझा दी और केवल एक मोमबत्ती जली छोड़ दी। तीनों लड़कियाँ काम करने बैठ गयीं और वह खुद सोने चली गयी।

लड़कियाँ काम करती रहीं और मोमबत्ती जलती रही। आखिर वह खत्म हो गयी। सौतेली माँ की एक बेटी ने एक कैंची उठायी और उससे मोमबत्ती का धागा काट दिया। पर सौतेली माँ ने उससे यह कह रखा था कि वह ऐसा दिखाये कि जैसे रोशनी अपने आप अचानक ही बुझ गयी हो।

वे बोलीं — “अब क्या करें? घर में और कोई आग भी नहीं है और हमारा काम अभी खत्म भी नहीं हुआ है। हमको बाबा यागा से जा कर रोशनी लानी चाहिये।”

जो लड़की लेस बना रही थी वह बोली — “मुझे तो अपनी सुई की रोशनी ही काफी है।”

दूसरी बोली — “मैं भी नहीं जा रही क्योंकि मेरी बुनाई की सलाइयों की रोशनी मेरे लिये काफी है। वसिलीसा तुम बाबा यागा के पास जाओ और आग ले कर आओ।”

और उन्होंने वासिलीसा को कमरे से बाहर धक्का दे दिया। वासिलीसा बेचारी अपने कमरे में गयी। थोड़ा सा माँस और शराब गुड़िया के सामने रखी और बोली — “मेरी प्यारी गुड़िया ले तू इसे खा और मेरी उलझन सुन। वे मुझे आग लाने के लिये बाबा यागा के घर भेज रही हैं और बाबा यागा तो मुझे खा जायेगी।”

गुड़िया ने उसका रखा खाना खाया। उसकी दोनों आँखें ऐसे चमक गयीं जैसे दो लैम्प जल उठे हों। वह बोली — “तुम बिल्कुल नहीं डरो। जैसा वे कहती हैं वैसा ही करो पर बस तुम मुझे अपने साथ ले चलो। जब तक मैं तुम्हारे साथ रहूँगी तब तक बाबा यागा तुम्हें कोई नुकसान नहीं पहुँचा सकती।”

वासिलीसा ने गुड़िया को अपनी जेब में रखा भगवान की प्र्राथना की और उस अँधेरे जंगल की तरफ चल पड़ी।

अचानक ही एक नाइट घोड़े पर सवार वहाँ से गुजर गया जो बिल्कुल सफेद था। उसका शाल सफेद था उसका घोड़ा सफेद था और उसके घोड़े की लगाम भी सफेद थी। और रोशनी हो गयी।

वह और आगे चली तो अचानक एक और नाइट उधर से गुजरा। यह नाइट पूरा का पूरा लाल था। उसका घोड़ा लाल था उसके अपने कपड़े लाल थे उसके घोड़े की लगाम लाल थी। जब वह वहाँ से गुजरा तो सूरज निकल आया।

वासिलीसा रात भर चलती रही और फिर अगले दिन भी चलती रही। अगली शाम वह उस घास के मैदान में आ पहुँची जहाँ बाबा यागा की झोंपड़ी खड़ी हुई थी।

उसकी झोंपड़ी के चारों ओर एक बाड़ बनी हुई थी वह हड्डियों की बनी हुई थी। और उसमें लगे हुए खम्भों पर खोपड़ियाँ लगी थीं जो अपनी खाली आँखों से घूर रही थीं।

बजाय फाटक और दरवाजों के वहाँ पैर थे और जहाँ साँकल लगती है वहाँ हाथ लगे हुए थे। ताले की जगह उसमें मुँह लगा हुआ था जिसके दाँत बहुत तेज़ थे।

वासिलीसा तो यह सब देख कर पत्थर की तरह ठंडी पड़ गयी।

अचानक एक और घुड़सवार उधर से गुजरा। वह पूरा का पूरा काला था। उसका बिल्कुल काले रंग का घोड़ा था। काले रंग का शाल था। उसने दरवाजा खोला और वहाँ से भाग गया। जैसे कि उसे धरती निगल गयी हो। और फिर रात हो गयी।

पर यह अँधेरा बहुत देर तक नहीं रहा क्योंकि बाबा यागा की झोंपड़ी के चारों तरफ जो बाड़ लगी थी उसके खम्भों पर लगी खोपड़ियों की आँखें चमकने लगी थीं।

उस समय ऐसा उजाला हो गया जैसे दिन निकल आया हो। आसपास सब हरा हरा दिखायी देने लगा। वासिलीसा एक बार फिर डर के मारे काँप उठी। वह नहीं जानती थी कि वह वहाँ से बच कर कैसे भाग जाये।

अचानक जंगल में एक भयानक आवाज सुनायी पड़ी। पेड़ों की शाखाऐं चर्र चर्र की आवाजें करने लगीं। सूखे पत्ते चटकने लगे। जंगल के बाहर से बाबा यागा जंगल में आती दिखायी दी। वह एक ओखली में बैठी थी मूसल उसके पास रखा था और वह एक झाड़ू से अपने कदमों के निशान मिटाती आ रही थी।

वह अपनी झोंपड़ी के दरवाजे पर आ कर रुकी. कुछ इधर उधर सूँघा फिर अपने चारों तरफ सूँघा और चिल्लायी — “फ़ी फ़ो फ़ी फ़ुम। मुझे एक रूसी फूल की खुशबू आ रही है। कौन है यहाँ?”

वासिलीसा डर के मारे काँपने लगी। वह बाबा यागा की तरफ आगे बढ़ी उसे जमीन तक झुक कर नमस्ते की और बोली — “माँ जी मैं हूँ। मेरी सौतेली माँ की बेटियों ने मुझे आपके पास आग लाने के लिये भेजा है।”

बाबा यागा बोली — “ठीक है। मैं उन्हें जानती हूँ। तू मेरे पास रुक और मेरे लिये काम कर तो मैं तुझे आग दे दूँगी नहीं तो मैं तुझे ही खा जाऊँगी।”

फिर वह दरवाजे की तरफ गयी और चिल्लायी — “ओ मेरे मजबूत तालों खुल जाओ। मेरे मजबूत दरवाजो खुल जाओ।” और दरवाजा खुल गया। बाबा यागा उसमें से सीटी बजाती नाचती बाहर चली गयी। वासिलीसा उसके पीछे पीछे चल दी। उन दोनों के जाते ही दरवाजा बन्द हो गया।

वासिलीसा ने बाहर बाड़े पर लगी हुई खोपड़ियों में से एक खोपड़ी से आग जलायी बाबा यागा के लिये ओवन में से खाना निकाला। वह खाना तो दस आदमियों के खाने से भी ज़्यादा ही था। फिर एक कमरे में से वह उसके लिये शराब ले कर आयी।

बाबा यागा ने वह सारा खाना खा लिया और सारी शराब पी ली पर वासिलीसा के लिये केवल थोड़ा सा सूप एक डबल रोटी का टुकड़ा और सूअर के माँस एक टुकड़ा ही बचा।

खा पी कर बाबा यागा सोने के लिये लेट गयी और बोली — “कल सुबह जब मैं यहाँ से चली जाऊँ तो मेरा आँगन साफ कर देना। कमरों में झाड़ू लगा देना। मेरा शाम का खाना तैयार करके रखना। मेरे कपड़े धो देना। खेत से जा कर ओट्स ले आना और उसे छान कर साफ कर देना। और ध्यान रखना कि यह सब काम मेरे घर आने से पहले पूरा हो जाये नहीं तो मैं तुझे खा जाऊँगी।” यह सब कह कर वह खर्राटे मारने लगी।

वासिलीसा ने बचा हुआ खाना गुड़िया के सामने रखा और बोली — “ओ मेरी गुड़िया। ले यह खा और मेरा दुखड़ा सुन। बाबा यागा ने मुझे जो काम करने के लिये दिये हैं वे बहुत मुश्किल हैं और अगर मैंने उसके वे सब काम नहीं किये तो उसने मुझे खा जाने की धमकी दी है। मेरी सहायता कर।”

“ओ सुन्दर लड़की वासिलीसा तू बिल्कुल चिन्ता मत कर। खाना खा भगवान की प्र्राथना कर और सो जा। सुबह तो शाम से ज़्यादा अक्लमन्द होती है।”

अगले दिन सुबह वासिलीसा बहुत जल्दी ही उठ गयी। बाबा यागा तो उससे भी पहले उठ गयी थी और अपनी खिड़की से बाहर देख रही थी। खोपड़ियों की आँखों की चमक धीरे धीरे धुँधली पड़ती जा रही थी। सफेद घुड़सवार उधर से दौड़ गया और सुबह हो गयी।

तब बाबा यागा अपने आँगन में गयी और वहाँ जा कर सीटी बजायी तो तुरन्त ही उसकी ओखली और मूसल और झाड़ू आ गये। तभी लाल घुड़सवार उधर से गुजरा तो सूरज निकल आया। बाबा यागा अपनी ओखली में बैठी और मूसल की सहायता उसको आगे बढ़ाया।

और झाड़ू की सहायता से उसने अपने पीछे के सारे निशान मिटा दिये।

अब वासिलीसा घर में अकेली रह गयी। उसने बाबा यागा का घर देखा तो उसको वहाँ इकठ्ठा की गयी चीज़ों को देख कर बहुत आश्चर्य हुआ। वह सोचने लगी कि वह अपना काम कहाँ से शुरू करे। पर उसने देखा कि उसका सारा काम तो कभी का खत्म हो चुका है।

बाबा यागा का ओट्स तो कभी का आ चुका है और उसे साफ भी किया जा चुका है।

वासिलीसा के मुँह से निकला — “हे भगवान। तुमने मेरी इस जरूरत के वक्त बहुत बड़ी सहायता की।”

गुड़िया बोली — “अब तुमको बाबा यागा का बस खाना ही तो बनाना है।” कह कर वह कूद कर वासिलीसा की जेब में बैठ गयी और फिर बोली — “भगवान की कृपा से तुम यह काम भी कर ही लोगी। तुम यहीं चुपचाप बैठ कर उसका इन्तजार करो।”

शाम को वासिलीसा ने कपड़ा बिछाया और बाबा यागा का इन्तजार करने लगी। इतने में अँधेरा छाने लगा। तभी एक काला घुड़सवार आ कर गुजर गया और रात हो गयी। खोपड़ियों की आँखों में रोशनी चमक उठी।

पेड़ हिलने लगे पत्तियाँ चरमराने लगीं। बाबा यागा अन्दर आयी। वासिलीसा उसके स्वागत के लिये उठी। बाबा यागा ने पूछा — “काम हो गया?”

वासिलीसा बोली — “हाँ दादी माँ। देखिये न।”

बाबा यागा ने चारों तरफ देखा तो देख कर गुस्सा हो गयी क्योंकि अब उसके पास उससे कहने के लिये कुछ नहीं था। वह बोली — “ठीक है।”

वह फिर चिल्लायी — “ओ मेरे बहादुर नौकरों ओ मेरे दिल के दोस्तों यह सारी ओट्स इकठ्ठी कर करके रख दो।”

तभी तीन जोड़ी हाथ प्रगट हुए उन्होंने ओट्स उठायी और उसको वहाँ से उठा कर ले गये।

बाबा यागा ने शाम का खाना खाया और सोने जाने से पहले वासिलीसा से कहा — “कल को भी वही सब कुछ करना जो तूने आज किया था। पर उस भूसे को भी ले लेना जो मेरे खेत में पड़ा हुआ है। उसकी हर बाल में से सारी मिट्टी साफ कर देना। किसी ने गलती से उसमें मिट्टी मिला दी है।” जैसे ही उसने ऐसा कहा उसने दीवार की तरफ करवट ली और खर्राटे भरने लगी।

वासिलीसा तुरन्त ही गुड़िया के पास गयी उसको खाना खिलाया और उससे सलाह माँगी तो गुड़िया ने उसको फिर वही जवाब दिया जो उसने उसको पहले दिन दिया था — “अभी तुम भगवान की प्रार्थना करो और सो जाओ। सुबह तो हमेशा ही रात से ज़्यादा अक्लमन्द होती है। कल सब कुछ हो जायेगा वासिलीसुष्का।”

अगली सुबह बाबा यागा उठी और खिड़की में से बाहर देखा। फिर वह अपने आँगन में गयी और वहाँ जा कर सीटी बजायी तो मूसल ओखली झाड़ू सब एक दम से वहाँ आ गये।

तभी लाल घुड़सवार वहाँ आया और सूरज निकल आया।

बाबा यागा अपनी ओखली में बैठी हाथ में मूसल लिया और झाड़ू से अपने पीछे वाले निशान मिटाते हुए उड़ गयी।

वासिलीसा ने अपनी गुड़िया की सहायता से अपना सारा काम खत्म कर लिया। शाम को जब बुढ़िया वापस आयी तो उसने चारों तरफ देखा और बोली — “ओ मेरे वफादार नौकरों और मेरे दिल के दोस्तों। मेरे लिये पौपी का तेल बनाओ।” तुरन्त ही तीन जोड़ी हाथ वहाँ प्रगट हुए और पौपी ले गये।

बाबा यागा शाम का खाना खाने बैठी तो वासिलीसा उसके सामने चुपचाप बैठी रही। बाबा यागा ने उससे पूछा — “तू कुछ बोलती क्यों नहीं है? तू यहाँ ऐसे क्यों बैठी है जैसे कोई गूँगा बैठता है?”

वासिलीसा बोली — “मेरे पास कुछ बोलने के लिये है ही नहीं। पर अगर मुझे कुछ बोलने का मौका मिले तो मैं कुछ सवाल पूछना चाहूँगी।”

“पूछो पर यह जरूरी नहीं है कि तुम्हें हर सवाल का जवाब ठीक से मिले। ज़्यादा जानना अब बहुत पुराना हो गया।”

वासिलीसा बोली — “मैं जब यहाँ आ रही थी तो मुझे एक सफेद घुड़सवार मिला जो सफेद शाल ओढ़े था और सफेद घोड़े पर सवार था। कौन था वह?”

“वह चमकीला दिन था।”

“उसके बाद मुझे एक लाल घुड़सवार मिला जो लाल शाल ओढ़े था और लाल घोड़े पर सवार था। वह कौन था?”

“वह लाल सूरज था।”

“और उस काले घुड़सवार का क्या मतलब था जो मुझे पीछे छोड़ कर मुझसे आगे निकल गया जब मैं आपके घर आ रही थी?”

बाबा यागा बोली — “वह काली अँधेरी रात थी। वे तीनों मेरे वफादार नौकर हैं।”

वासिलीसा के दिमाग में तभी वे तीन जोड़ी हाथ घूम गये। उसके बाद वह फिर और कुछ नहीं बोली। बाबा यागा ने उससे पूछा — “तू इससे आगे और कुछ क्यों नहीं पूछती?”

वासिलीसा बोली — “बस मैं काफी जान गयी। और फिर आप ही तो कहती हैं कि ज़्यादा जानना बहुत पुरानी बात हो गयी।”

बाबा यागा बोली — “अच्छा हुआ तूने वही बातें पूछी जिनको तूने आँगन में देखा था और किसी दूसरी चीज़ के बारे में नहीं।

क्योंकि मुझे वे लोग बिल्कुल पसन्द नहीं है जो बहुत ज़्यादा पूछताछ करते हैं। पर अब मैं तुझसे पूछना चाहूँगी कि जितना काम मैंने तुझे दिया तूने इतना सारा काम वह कैसे पूरा किया?”

“अपनी माँ के आशीर्वाद से।”

“ओ तब तो तू यहाँ से जितनी जल्दी हो सकता हो उतनी जल्दी भाग जा ओ आशीर्वाद दी गयी लड़की। क्योंकि कोई भी आशीर्वाद पाया हुआ आदमी मेरे पास नहीं रुक सकता।”

और उसने वासिलीसा को अपने कमरे से बाहर निकाल दिया और दरवाजे से भी बाहर निकाल दिया। बाड़े के लठ्ठों पर लगी हुई खोपड़ियों में से एक खोपड़ी उठायी उसको एक डंडे पर रखा और उसको दे कर कहा — “अब तेरे पास तेरी सौतेली माँ की बेटियों के लिये यह आग है जिसके लिये तुझे यहाँ भेजा गया था।”

वासिलीसा भी उस खोपड़ी की रोशनी की सहायता से वहाँ से जितनी जल्दी हो सकता था भाग ली। पर उसकी आग तो सुबह तक बुझ गयी।

अगले दिन शाम तक वह अपने घर पहुँच गयी। वह उस खोपड़ी को फेंकने ही वाली थी कि उसने खोपड़ी में से आती एक आवाज सुनी — “मुझे फेंकना नहीं। मुझे अपनी सौतेली माँ के घर तक ले चलो।”

उसने अपनी सौतेली माँ के घर की तरफ देखा तो देखा कि उसकी तो किसी भी खिड़की में रोशनी नहीं थी सो उसने घर में उस खोपड़ी के साथ ही घुसने का निश्चय किया।

वहाँ उसका बड़े अच्छे से स्वागत हुआ। उसकी बहिनों ने उसे बताया कि जबसे वह वहाँ से गयी थी तबसे उनके घर में आग ही नहीं थी। वे लोग वहाँ आग जला ही नहीं पायीं। और जो कुछ भी उन्होंने अपने पड़ोसियों से उधार माँगी तो वह उनके कमरे में आ कर बुझ गयी।

सौतेली माँ बोली — “हो सकता है कि तुम्हारी लायी आग जल जाये।”

सो वे खोपड़ी को कमरे में ले कर गये तो उसकी जलती हुई आँखों ने सौतेली माँ और सौतेली बहिनों की आँखों में देखा तो उनकी आँखों में जलन पैदा हो गयी। वे जिधर भी गयीं उस खोपड़ी की आँखों ने उनका पीछा नहीं छोड़ा। सुबह तक वे तीनों जल कर राख हो गयीं। केवल वासिलीसा ही ज़िन्दा बची।

उसके बाद वासिलीसा ने उस खोपड़ी को जमीन में दबा दिया घर को ताला लगा दिया और शहर चली गयी। वहाँ एक गरीब स्त्री से उसने उसे अपने घर ले जाने की और खाना देने की विनती की जब तक उसका पिता वापस आता है।

उसने उस बुढ़िया से कहा — “माँ इस तरह से बिना किसी काम के बैठना मुझे आलसी बना रहा है। आप मुझे बहुत अच्छी रुई ला दें तो मैं उसे कातती रहूँगी।”

सो बुढ़िया बाजार गयी और उसको बहुत अच्छी रुई ला कर दे दी। वासिलीस ने उस पर काम करना शुरू कर दिया। उसका काम खूब अच्छा चलता रहा। उसका बुना हुआ धागा इतना बारीक था जैसे बाल।

जब उसने काफी धागा बुन लिया तो कोई उसका कपड़ा बुनने को तैयार नहीं। तो वह फिर अपनी गुड़िया के पास गयी तो गुड़िया ने उससे कहा — “मुझे कहीं से कोई पुरानी कंघी ला दो पुरानी अटेरन ला दो घोड़े के बाल ला दो तो तुम्हारा काम कर दूँगी।”

वासिलीसा सोने चली गयी। गुड़िया ने उस रात एक बहुत ही शानदार स्टूल बनाया और जाड़ा खत्म होने तक उसने वासिलीसा का सारा सूत बुन दिया था। वह इतना अच्छा कपड़ा तैयार हो गया था कि वह सुई के छेद में से धागे की तरह से निकाला जा सकता था।

वसन्त आने पर उन्होंने उस कपड़े को धोया और फिर वासिलीसा ने बुढ़िया से कहा — “मँ जी अब आप इस कपड़े को बाजार में बेच दें और इसको बेच कर जो पैसा आये वह आप रख लें।”

बुढ़िया ने कपड़ा देखा तो देखा कि वह तो बहुत बढ़िया कपड़ा था। वह बोली — “ओह मेरी बच्ची इतने बढ़िया कपड़ों को तो केवल ज़ार ही पहन सकता है। मैं इसको ज़ार के पास ले जाऊँगी।”

सो वह उस कपड़े को ले कर ज़ार के महल चली गयी और उसके महल के आगे पीछे घूमती रही। ज़ार ने उसे देखा तो उससे पूछा — “ओ बुढ़िया तुम्हें क्या चाहिये।”

बुढ़िया बोली — “सरकार मैं आपके लिये बहुत बढ़िया चीज़ लायी हूँ जिसे मैं केवल आप ही को दिखाना चाहती हूँ किसी और को नहीं।”

ज़ार ने बुढ़िया को अकेले में मिलने की इजाज़त दे दी। बुढ़िया ने उसको वह कपड़ा दिखाया तो ज़ार तो उसे देख कर हक्का बक्का रह गया और उसने उसकी बहुत तारीफ की। फिर उसने पूछा कि उसको उसके बदले में क्या चाहिये।

बुढ़िया बोली — “मैं यह आपको भेंट देना चाहती हूँ।”

“यह तो बहुत वेशकीमती है।”

ज़ार ने फिर कुछ सोचा और बहुत सारी कीमती भेटें दे कर उसे वापस भेज दिया। अब ज़ार उस कपड़े की अपने लिये कमीजें बनवाना चाहता था पर उसको कोई ऐसा आदमी नहीं मिल रहा था जो यह काम कर सकता हो।

वह बहुत देर तक सोचता रहा फिर उसने बुढ़िया को फिर से बुला भेजा और उससे कहा — “अगर तुम यह सूत कात सकती हो और फिर उसका कपड़ा बुन सकती हो तो तुम इसकी कमीज भी सिल सकती होगी।”

बुढ़िया बोली — “हुजूर मैं कात भी नहीं सकती और मैं बुन भी नहीं सकती। मेरे घर में एक लड़की ठहरी हुई है शायद वह यह कर सके।”

“ठीक है तो वही मेरा यह काम कर दे।”

सो बुढ़िया अपने घर गयी और वासिलीसा से जा कर सब कहा। वासिलीसा बोली — “मुझे मालूम था कि मुझे यह काम करना पड़ेगा।”

उसने अपने आपको अपने छोटे कमरे में बन्द कर लिया और अपने काम पर लग गयी। वहा जब तक उस कमरे में से बाहर नहीं निकली जब तक उसने 12 कमीजें नहीं बना लीं।

जब कमीजें बन गयीं तो बुढ़िया उनको ज़ार के महल ले गयी। इधर वासिलीसा नहायी धोयी अपने बालों में कंघी की अच्छे कपड़े पहने और खिड़की में बैठ कर ज़ार का इन्तजार करने लगी।

वह जब इस तरह से वहाँ बैठी हुई थी तो एक शाही नौकर उसके कमरे में आया और बोला — “ज़ार उस कलाकार को देखना चाहते हैं जिसने उनके लिये कमीजें बनायी हैं और वह उसको अपने हाथों से इनाम देना चाहते हैं।”

सुन्दर वासिलीसा उसके साथ ज़ार के पास गयी। ज़ार ने जब उसे देखा तो वह तो उससे प्यार करने लगा। वह बोला — “नहीं ओ सुन्दर लड़की मैं तुमसे अलग नहीं रह सकता। तुमको मुझसे शादी करनी होगी।”

सो ज़ार ने वासिलीसा के सफेद हाथ पकड़े और उसको अपने बराबर में बिठा लिया और शादी के घंटे बजाने का हुकुम दे दिया।

वासिलीसा का पिता भी घर वापस लौट आया था। वह अपनी बेटी की खुशकिस्मती पर बहुत खुश था। वह अपनी बेटी के पास ही रहा। वासिलीसा ने बुढ़िया को भी अपने साथ ही रख लिया और गुड़िया हमेशा उसकी जेब में रही।

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