सुन्दर नौजवान साकूनाका : ज़िम्बाब्वे लोक-कथा
Sundar Naujawan Sakunaka : Zimbabwe Folk Tale
एक बार की बात है कि एक विधवा अपने एक बहुत सुन्दर बेटे के साथ रहती थी। उसके बेटे का नाम था साकूनाका मुगवई।
उसकी माँ यह नहीं चाहती थी कि वह कभी शादी करे क्योंकि उसको डर था कि शादी के बाद वह अपनी पत्नी के पीछे पीछे चला जायेगा और फिर उसको वह अकेला छोड़ जायेगा।
सो जब वह बड़ा हो गया तो उसने उससे यह वायदा ले लिया कि वह कभी किसी ऐसी लड़की से शादी नहीं करेगा जिसने उसकी माँ के हाथ का पकाया खाना खाया हो।
उसकी माँ खाना बहुत अच्छा बनाती थी और सारे लोग उसके हाथ का बना खाना खाना पसन्द करते थे।
बहुत जल्दी ही इस नौजवान की तारीफें सारे देश में फैल गयीं और बहुत सारी जवान लडकियाँ उससे अपनी शादी के लिये मिलने के लिये और उसकी सुन्दरता देखने के लिये उसके पास आने लगीं।
जब वे साकूनाका को देखने आतीं तो उसकी माँ उन लड़कियों को प्रेम से अन्दर बुलाती और बिठाती और उनसे कहती — “लड़कियों तुम लोग भूखी होगी। मैं तुम लोगों के खाने के लिये थोड़ा दलिया ले कर आती हूँ। ”
वे जवाब देतीं — “धन्यवाद माँ। ” और जब वह उनके लिये दलिया बना कर लाती तो वे उसको गाँव के बाहर पेड़ के नीचे बैठ कर खा लेतीं।
फिर साकूनाका की माँ अपने बेटे की झोंपड़ी की तरफ जाती और उसके बाहर खड़े हो कर यह गाना गाती , , ,
साकूनाका मेरे बेटे, कुछ लड़कियाँ तुमसे मिलने आयीं हैं
माँ तुमने क्या पकाया है? दलिया मेरे बेटे मुगवई
क्या उन्होंने कुछ खाया? हाँ हाँ मेरे बेटे, तो उनको वापस भेज दो
और साकूनाका की माँ उन सबको वापस भेज देती। इस तरह लड़कियों के कई झुंड इस सुन्दर नौजवान साकूनाका से मिलने के लिये गाँव आये पर सब वापस भेज दिये गये।
हर बार साकूनाका की माँ उनको कुछ न कुछ खाने को देती और वे उसको खा लेतीं। हर बार साकूनाका की माँ अपना गाना गाती और हर बार सकाूनाका उन लड़कियों को वापस भेज देता।
एक बार 10 लड़कियों के एक झुंड ने यह देखा कि कोई भी जो वहाँ उसकी माँ के हाथ का बना खाना खाता वह वहाँ से बिना साकूनाका से मिले ही वापस भेज दिया जाता।
सो उन्होंने इसके लिये एक तरकीब सोची कि वे अपने घर से अपना खाना ले जायेंगी और उसे गाँव के पास एक झाड़ी में छिपा देंगी फिर बाद में एक साथ मिल कर खा लेंगी।
उन्होंने ऐसा ही किया। जब वे गाँव के पास आयीं तो उन्होंने अपना लाया खाना एक झाड़ी में छिपा दिया और फिर वे साकूनाका के घर आयीं।
हर बार की तरह साकूनाका की माँ ने उनको प्रेम से अन्दर बुलाया और कहा — “लड़कियों तुम लोग भूखी होगी। मैं तुम लोगों के खाने के लिये थोड़ा दलिया ले कर आती हूँ। ”
सब लड़कियाँ एक साथ बोलीं — “धन्यवाद माँ जी, हम लोगों को भूख नहीं है। ”
माँ बोली — “तो तुम लोग थकी हुई होगी तुम सो जाओ। ” कह कर उसने उनको एक झोंपड़ी दिखायी जहाँ वे रात बिता सकतीं थीं। साकूनाका की माँ को पूरा विश्वास था कि जब वे सुबह उठेंगी तो वे सब जरूर ही भूखी होंगी।
पर रात में वे लड़कियाँ उठीं, अपनी झोंपड़ी से बाहर निकलीं और उस झाड़ी के पास गयीं थीं जहाँ उन्होंने अपना खाना छिपा रखा था। वहाँ उन सबने मिल कर अपना खाना खाया और अपनी झोंपड़ी में वापस लौट कर आ कर सो गयीं।
सुबह सवेरे ही साकूनाका की माँ उनकी झोंपड़ी की तरफ गयी और बोली — “लड़कियों अब तो तुमको भूख लग आयी होगी। आओ अब कुछ खालो। यह लो मैं तुम्हारे लिये कुछ दलिया बना कर लायी हूँ, इसे खा लो। ”
लड़कियों ने फिर कहा — “धन्यवाद माँ जी, हम लोगों को भूख नहीं है। ”
माँ ने सोचा अब मैं क्या करूँ। ये लड़कियाँ तो मेरे हाथ का बना खाना ही नहीं खाना चाहतीं।
उसने उन सबको किसी तरह गाँव के बाहर एक पेड़ की छाया में अगले दिन सारे दिन बैठने के लिये मजबूर कर दिया और अगले दिन वे फिर उसी झोंपड़ी में सोयीं।
उस रात को भी वे अपनी उसी झाड़ी में गयीं और अपना खाना खा कर फिर अपनी झोंपड़ी में वापस आ कर सो गयीं।
अगले दिन सुबह सवेरे ही साकूनाका की माँ उनकी झोंपड़ी की तरफ गयी और बोली — “लड़कियों अब तो तुमको भूख लग आयी होगी। दो दिन हो गये तुम लोगों को खाना खाये। यह लो मैं तुम्हारे लिये कुछ दलिया बना कर लायी हूँ, इसे खालो। ”
लड़कियों ने फिर कहा — “धन्यवाद माँ जी, हम लोगों को भूख नहीं है। ”
साकूनाका की माँ ने सोचा अब मैं क्या करूँ। वह एक बार फिर साकूनाका की झोंपड़ी को पास गयी और वहाँ जा कर उसने फिर एक गाना गाया , , ,
साकूनाका मेरे बेटे, कुछ लड़कियाँ तुमसे मिलने आयी हैं
माँ तुमने क्या पकाया है? दलिया मेरे बेटे मुगवई
क्या उन्होंने कुछ खाया? नहीं नहीं मेरे बेटे
तो उनको यहाँ अन्दर भेज दो
पर यह गाना गा कर वह रो पड़ी — “ओह मेरे बेटे, अब मेरे दिन खत्म हो गये। अब मुझे यहाँ से चले जाना चाहिये और मर जाना चाहिये। ”
साकूनाका बोला — “यही करो माँ, अगर तुम यही चाहती हो तो। ”
सो साकूनाका की माँ ने अपनी सब चीज़ें एक टोकरी में रखीं और दूर जंगल में एक झोंपड़ी में रहने चली गयी और वहीं मर गयी।
उसके बाद साकूनाका ने उन लड़कियों को अपने गाँव बुलाया और उनमें से सबसे बड़ी लड़की के साथ शादी कर ली और सुख से रहने लगा।
(साभार : सुषमा गुप्ता)