सुलाने वाली चिड़िया : बांग्ला/बंगाली लोक-कथा
Sulaane Wali Chidiya : Lok-Katha (Bangla/Bengal)
एक थे राजा। उनके हाथीशाला में हाथी, अस्तबल में घोड़े थे। स्वर्णावेष्टित राजभवन था। संदूक भर के मणि-मुक्ता एवं सोने की मोहर। लेकिन राजा के मन में सुख न था। असल में राजा का मन साफ नहीं था। मन में हिंसा की भावना थी। सब समय यही सोचते रहते कि किसके पास से क्या छीन लूँ! किस राजा के राज्य पर चढ़ाई कर उसकी धन-संपदा लूट ली जाए। दानधर्म के मामले में वे अत्यंत कंजूस थे। विपत्ति में पड़ने पर जब प्रजा उसके पास आकर रोती, तब भी उसका हृदय नहीं पिघलता।
राजा मिजाज से चिड़चिड़े थे। कारण यह कि उनको रात में जरा भी नींद नहीं आती थी। सारी रात आँखें खोलकर आसमान के तारे गिनते। उसके बाद भोर में उस संख्या को कागज में लिख लेते। इसी प्रकार जो तारे उन्होंने गिने थे, उसका कोई हिसाब नहीं था। राज्य के पंडित डर-डर के जी रहे थे। कारण, राजा ने उन्हें कह दिया था कि जब वे स्वस्थ हो जाएँगे, जब वे फिर रात में सो सकेंगे, तब पंडितों का काम होगा, उन संख्याओं का योग करना। तभी पता चलेगा कि आसमान में कितने तारे हैं!
लेकिन राजा के स्वस्थ होने के कोई आसार नजर नहीं आ रहे थे। माथे में फूलेल लगाने, बिस्तर पर चमेली का इत्र छिड़कने अथवा बर्फ के जल से भिगोई पट्टी लगाकर पंखे से हवा करने से भी कोई लाभ नहीं हो रहा था। कोमल तकिए पर सिर रखकर सारी रात राजा डबडबाई आँखों से आसमान को निहारते रहते। हालाँकि दोपहर में भात खाने के बाद बिस्तर में लेटने पर थोड़ी नींद आ जाती थी। इसी तरह दिन-पर-दिन रात में न सो पाने के बावजूद राजा अस्वस्थ नहीं हुए थे, पर चिड़चिड़े बहुत हो गए थे।
इसी प्रकार उनका राज-काज चल रहा था। इसी बीच एक दिन राजा का जन्मदिन आया। देशविदेश से अनेक अतिथि आए। नाना प्रकार के आकर्षक उपहार लेकर वे आए थे। कोई पन्ना एवं प्रवाल से सजा मुकुट लाया था, किसी ने गोल-गोल सफेद मुक्ता का हार दिया। कोई हीरे का कुंडल लाया था और कोई सोने की जरीवाली पोशाक लेकर आया था। प्रजागण भी अपने सामर्थ्य के अनुसार कुछ-न-कुछ उपहार राजा के लिए लेकर आए थे। ऐसे कीमती उपहारों को पाकर राजा उस दिन बहुत खुश हुए। राजसभा में बैठकर सभासदों के साथ हँसी-मजाक कर रहे थे, उसी समय वहाँ एक ब्राह्मण पंडित उपस्थित हुए। देखने में सुंदर। साफ धोती-चादर पहने हुए थे। राजा को हाथ जोड़कर प्रणाम कर वे खड़े रहे। राजा ने पूछा, "क्या बात है? क्या चाहिए?"
पंडित बोले, “महाराज, आज के शुभ दिन मेरी आपसे कुछ प्रार्थना है।" प्रार्थना का नाम सुनते ही राजा की भृकुटि टेढी हो गई। फिर भी शांत भाव से बोले, "क्या प्रार्थना है, सुनूँ जरा।"
पंडित बोले, "महाराज, हमारे गाँव में एक भी पाठशाला नहीं है। एक पाठशाला की बहुत जरूरत है। छोटे-छोटे बच्चे-बच्चियाँ नदी पार कर पास के गाँव में पढ़ने जाते हैं। शीत-ग्रीष्म, बरसात में, आँधी-तूफान में उन्हें अत्यंत मुसीबतों का सामना करना पड़ता है। आप यदि सहायता करें तो गाँव में एक छोटी सी पाठशाला बनवा सकता हूँ।"
एक तो राजा का जन्मदिन, उस पर विदेशी मेहमान वहाँ उपस्थित थे, इसीलिए राजा पंडित को निराश नहीं लौटा सके। मंत्री को बुलाकर निर्देश दिया कि पंडित को एक सौ मोहरें दे दें। राजा की जयजयकार करते हुए पंडित विदा हुए। लेकिन राजा के मन में खुदबदी लग गई। एक सौ मोहरें चले जाने के दुःख में उनके लिए जन्मदिन का आनंद फीका पड़ गया।
सारा दिन आमोद-प्रमोद में गुजरने के बाद शाम हुई। सूर्य के डूबते ही राजा का मिजाज खराब हो जाता था। थोड़ी देर के बाद ही तो रात हो जाएगी। और रात का मतलब सारी रात जागना! लेकिन कुछ करने को नहीं था। एकदम सफेद बिछावन पर राजा के सोने की व्यवस्था कर दास-दासी विदा हुए। विशाल राजमहल में शांति छा गई। हर प्रहर में ड्योढ़ी में लगे घंटे का स्वर और राज प्रहरियों की आवाज के अलावा और कोई शब्द नहीं।
तकिए पर सिर रखकर राजा लेटे हुए थे। तारों की गिनती शुरू नहीं हुई थी। मन-ही-मन प्राप्त उपहारों की गणना एवं उनका मूल्य निर्धारण कर रहे थे। कितना लाभ हुआ, कितना नुकसान, इसका हिसाब लगा रहे थे। उसी समय हठात् सुनाई पड़ी एक चिड़िया की सुरीली आवाज। राजा अवाक् ! इतनी रात को कौन सी चिड़िया सुरीली आवाज निकाल रही है ? वसंत का समय था। खुली खिड़की से फुरफुर दक्षिण की हवा आ रही थी और उसी के साथ आ रही थी चिड़िया की सुरीली आवाज! राजा समझ गए कि उनके बगीचे में कहीं बैठकर चिड़िया सुरीली आवाज में गा रही है। किस पक्षी की आवाज है, वे समझ नहीं सके, पर उसकी आवाज उन्हें अत्यंत मीठी लगी। पक्षी की सुरीली आवाज सुनते-सुनते राजा का सारा हिसाब गड़बड़ा गया। उसके बाद राजा हिसाब करने की बात भूलकर चिड़िया का सुरीला गाना सुनने लगे। धीरे-धीरे राजा की दोनों पलकें भारी होने लगी और उन्हें नींद आ गई। सुबह का प्रकाश शरीर पर पड़ते ही राजा धड़पड़ाकर उठ बैठे। वे आश्चर्यचकित रह गए। सारी रात गहरी नींद सोए थे वे। खैर, अंततः राजा का अनिद्रा रोग दूर हुआ। अत्यंत प्रसन्न होकर वे स्नान करने गए।
तीन रातों तक ऐसा ही चलने पर हठात् राजा के मन में विचार आया कि कहीं उस पक्षी की सुरीली आवाज सुनकर ही मुझे नींद आई है, क्या? तब तो उस पक्षी को पकड़कर लाने से ही मेरी समस्या दूर हो जाएगी। पिंजरे में उसे डाल दूंगा। वह सारी रात अपनी सुरीली आवाज से गीत गाएगा और सारी रात मैं आराम से सोऊँगा। उन्होंन तुरंत मालियों को पक्षी को पकड़ने का आदेश दिया। लेकिन सारा बगीचा छान मारने के बावजूद बुलबुल, गोरैया, देयोल एवं अन्य अनेक पक्षी दिखाई दिए, पर उस पक्षी का कुछ पता नहीं चला। वह पक्षी निश्चित रूप से उड़कर कहीं और चला गया था। उसे अब पकड़ा नहीं जा सकेगा, यह सोचकर राजा हताश हो गए।
कुछ दिनों के बाद राजा को गीत सुनाने के लिए वह पक्षी फिर से आया। उस दिन राजा का मन बहुत दु:खी था। उस वर्ष राज्य में सूखा पड़ा था। फसल की उपज नहीं हुई थी, इसीलिए किसान लोग राजसभा में विनती करने आए थे कि राजा इस साल का लगान माफ कर दें, वरना भुखमरी की नौबत आ जाएगी। सुनकर राजा गुस्से से लाल हो गए। इससे पहले कि राजा उन्हें गरदन से धक्का देकर बाहर निकाल देते, मंत्री ने राजा के कान में कहा कि इन किसानों में डर की भावना नहीं है। इन्हें प्राण जाने का भय नहीं। आप इन्हें भगा देंगे तो ये पड़ोसी राजा के साथ मिलकर आपके विरुद्ध षड्यंत्र करेंगे। उसके बाद यदि पड़ोसी राजा हमारे राज्य पर आक्रमण कर दे, तो हमारा बहुत धन बरबाद होगा। इससे बेहतर है कि इनका इस साल का लगान आप माफ कर दें।"
आँखें तरेरकर राजा ने मंत्री को देखा, परंतु उसकी बातों को उड़ा देने का साहस नहीं जुटा सके। कारण, मंत्री बूढ़ा एवं अत्यंत अनुभवी था। किसी तरह अपने गुस्से को काबू में रखकर राजा ने आदेश दिया कि इस साल का लगान माफ किया जाता है। किसान राजा की जय-जयकार कर वापस लौट गए।
उस दिन रात में राजा अपने बिस्तर पर लेटे-लेटे हिसाब लगा रहे थे कि किसानों का लगान माफ करने पर उन्हें कितने रुपए का नुकासान हुआ है ! ठीक तभी उन्हें उस पक्षी का मीठा गीत सुनाई दिया। हड़बड़ाकर राजा खिड़की की ओर दौड़े। अंधकार में आँखें फाड़-फाड़कर चारों ओर देखा एवं यह समझने की कोशिश की कि चिड़िया किस पेड़ पर बैठकर गा रही है! लेकिन उन्हें कुछ समझ में नहीं आया। निराश होकर राजा बिस्तर पर लेटकर चिड़िया का मधुर गान सुनने लगे। सुनते-सुनते राजा को नींद आ गई। एक ही नींद में रात कट गई।
राजा को अब यह बात अच्छी तरह समझ में आ गई थी कि उस चिड़िया के गान से ही उन्हें नींद आती है। लेकिन उस पक्षी को पकड़ने का कोई उपाय वे नहीं कर पा रहे थे। उनके जैसा एक पराक्रमी राजा एक छोटे से पक्षी को काबू में नहीं कर पा रहा था, यह सोचकर उनका मन भारी हो गया। दिन बीतने लगे। राजा को राज-काज में मन नहीं लग रहा था। सब समय सिर्फ उस चिड़िया की बात सोचते रहते।
इसी बीच खबर आई कि राज्य के उत्तरी क्षेत्र के कुछ गाँवों में महामारी फैल गई है। बड़ी संख्या में लोग अस्वस्थ हो गए हैं। खबर सुनकर राजवैद्य का मन छटपट करने लगा। उनकी बड़ी इच्छा थी कि और कुछ चिकित्सकों को लेकर स्वयं वहाँ जाएँगे और लोगों की चिकित्सा करेंगे, किंतु उसके लिए तो राजा की अनुमति चाहिए। उस दिन वृद्ध राजवैद्य ने राजसभा में हाथ जोड़कर कहा, “महाराज, उत्तर क्षेत्र के गाँवों में अच्छे चिकित्सकों की जरूरत है। आप यदि अनुमति दें तो मैं और कुछ चिकित्सकों को लेकर वहाँ जा सकता हूँ।"
"ठीक है, जाइए," राजा ने अन्यमनस्क होकर कहा।
कुछ साहस करके राजवैद्य ने कहा, गरीबों की दवा, पथ्य आदि के लिए कुछ व्यवस्था तो करनी होगी। पाँच सौ स्वर्ण मुद्राएँ मिल जाती तो अच्छा होता।"
अन्यमनस्कता की अवस्था में राजा ने झोंक में कह दिया, "ठीक है, ले जाइए।" लेकिन तुरंत वे चौंक पड़े कि हाय! क्या कह दिया परंतु भरी राजसभा में सबके सामने बताने के बाद बात को वापस लेना उनके लिए संभव नहीं हुआ। पाँच सौ स्वर्ण मुद्राएँ लेकर राजवैद्य रवाना हुए। उसके बाद राजा का मन-मिजाज एकदम बिगड़ गया। राज-काज बीच में ही छोड़कर वे अपने कमरे में आ गए।
सारा दिन गुस्से में रहे। बात-बेबात दास-दासियों को राजा के गुस्से का भाजन बनना पड़ा। रात में अपने बिस्तर पर लेटकर राजा ने निश्चय किया कि उस चिड़िया के बारे में वे अब नहीं सोचेंगे। पक्षी के बारे में सोचने के कारण ही आज उनका इतना नुकसान हुआ। ठीक उसी समय पक्षी के गाने की आवाज आई। और अधिक चिंता-भावना करने का अवसर ही नहीं मिला राजा को। धीरे-धीरे उन्हें नींद आ गई।
दूसरे दिन सुबह उठकर राजा ने अपने मंत्री को बता दिया कि वे आज राजसभा में नहीं जाएँगे। उसके बाद दरवाजा बंद कर चिंता करने बैठे। वे सोचने लगे यह चिड़िया क्यों आती है? कब आती है ? उनके मस्तिष्क में एक संदेह ने जन्म लिया। सारा दिन सोचने के उपरांत उन्होंने निश्चय किया कि परीक्षा करके वे देखेंगे।
राजा राजसभा में बैठे हुए थे। मंत्री, सेनापति सब उपस्थित थे। कुछ सिपाहियों ने एक चोर को राजा के सामने उपस्थित किया। चोर एक व्यापारी के घर में सेंध काटकर घुसा था। रंगे हाथों पकड़ा गया। व्यपारी का इल्जाम खत्म होने पर राजा ने चोर से पूछा, “तुम्हें कुछ कहना है ?"
चोर के वस्त्र जगह-जगह से फटे हुए थे। शरीर हड्डी का ढाँचा मात्र था। उसने हाथ जोड़कर कहा, "महाराज, मैं पेशे से कुम्हार हूँ। गत वर्ष बाढ़ में मेरा घर, चाक सब बह गया था। इतने पैसे नहीं थे कि कोई नया काम कर सकूँ। इसीलिए पेट की खातिर चोरी करने गया था।"
राजा मौन रहकर कुछ सोचते रहे, फिर बोले, "ठीक है, मैं तुम्हें पचास स्वर्ण मुद्राएँ दे रहा हूँ। तुम घर बनाओ। नई चाक खरीदो। एक माह के बाद अपने हाथ से बनाई मिट्टी की वस्तुएँ मुझे लाकर दिखाना। और हाँ, फिर यदि चोरी की तो कठिन सजा मिलेगी।"
सारी राजसभा आश्चर्यचकित, मंत्री स्तंभित ! राजा को साष्टांग प्रणाम कर स्वर्ण-मुद्राएँ लेकर चोर ने विदा ली।
उस दिन पक्षी का गान सुनकर रातभर गहरी नींद सोए राजा।
दूसरे दिन राजा ने आदेश दिया, जिन गाँवों में जल का अभाव है, वहाँ पोखर खुदवा दिया जाए। उसके बाद वाले दिन गरीब किसान-मजदूरों को चावल-दाल दिया गया। इसी तरह दिन पर दिन चलता रहा। राज्य के प्रत्येक गाँव में राजा ने पाठशाला बनवा दीं। पंडितों को राजकोष से भत्ता दिया जाने लगा। लोगों की चिकित्सा के लिए प्रत्येक गाँव में चिकित्सकों की व्यवस्था करवा दी गई। बाढ़ में, सूखा में राज्य का भंडार खोल दिया जाता। किसी के प्रति अगर अन्याय हुआ है, तो राजा के पास जाने से उसे निराशा नहीं होती थी। सारे राज्य में सुख-समृद्धि की बहार थी। प्रजागणों के मुख पर हँसी एवं सर्वदा राजा की जय-जयकार होती रहती थी।
इस तरह से पूरा एक साल बीत गया। एक दिन सुबह के समय नींद से उठकर हठात् राजा के मन में एक बात आई कि गाना गानेवाला पक्षी तो अब आ नहीं रहा है। अंतिम बार पक्षी ने कब गाना सुनाया था, राजा याद नहीं कर पाए। असल में सारा दिन प्रजा का अभाव-अभियोग सुनकर, उनकी समस्याओं का समाधान कर, उनका आशीर्वाद लेकर जब वे अपने कमरे में जाते थे, तब उनका शरीर अत्यंत थका हुआ एवं मन शांति से भरा होता था। बिस्तर पर लेटते ही उनकी आँखों में नींद आ जाती थी। वह पक्षी उन्हें छोड़कर कब दूसरे राज्य के लिए उड़ गया, वे समझ ही नहीं सके।