सुअर और कुत्ते का दाना : असमिया लोक-कथा
Suar Aur Kutte Ka Dana : Lok-Katha (Assam)
पुराने जमाने की बात है। एक घने जंगल के पास एक छोटा-सा गाँव हुआ करता था। उस गाँव में एक दंपति रहा करते थे। दोनों पति-पत्नी बहुत ही दयालु थे। वे खेती-किसानी करके अपना गुजारा करते थे। दोनों अपने गुजर-बसर के लिए मौसम के अनुसार अपनी बगिया में हरी सब्जियाँ उगाया करते थे और उसे बेचकर अपनी जरूरतों को पूरी करते थे। एक दिन की बात है… वे दोनों दोपहर को अपने खेत में उपयोग किए जाने वाले कुछ जरूरी उपकरण लेने बाजार जा रहे थे। उसी रास्ते पर एक सुअर और एक कुत्ता मिल गए। दोनों बहुत भूखे थे।
सुअर ने कहा- “दादीजी, मुझे कुछ खाने को दो। इसके बदले मैं आप के लिए हल चलाउँगा। घर का सारा काम कर दूंगा।”
कुत्ता भी बोला- “दादाजी, मैं बहुत दिनों का भूखा हूँ। कुछ खिला दो, तो तुम्हारा दास बन जाऊँ।”
बूढ़ा-बूढ़ी थे बहुत ही दयालु, तो उन्होंने सुअर और कुत्ते से कहा-
“अभी तो है हाथ खाली
घर आ जाओ तो खिला दूं भरकर थाली।”
बूढ़ा और बूढ़ी दोनों सुअर और कुत्ते को घर ले आए और पेट भर खाना खिलाया। वादों के मुताबिक सुअर और कुत्ता बूढा-बूढ़ी के काम में हाथ बँटाने लगे और दोनों प्यार से रहने लगे। लेकिन कुछ दिनों के बाद कुत्ते को लगा कि बूढ़ा-बूढी सुअर को ज्यादा प्यार करते हैं और उसे ज्यादा अच्छा खाना देते हैं। उधर सुअर को भी लगा कि बूढ़े दंपति कुत्ते को ज्यादा प्यार करते हैं और उसे ज्यादा अच्छा खाना देते हैं। इसी बात को लेकर दोनों के बीच लड़ाई-झगड़े होने लगे।
सुअर और कुत्ते की इस तरह रोज की लड़ाई-झगड़े को सुनकर एक दिन बूढ़ा बोला-
“होता है रोज झगड़ा तुम दोनों के बीच
तंग आ गये हम लोग, तुम लोग सोचते जो हो इतनी बातें नीच
फिर भी देंगे हम तुम दोनों को एक मौका
जो जीते उसे मिलेगा खाना सबसे अच्छा
पर जितना भी हो अच्छा हो खाना
वह होगा हमारा जूठा।”
दोनों राजी हो गये। बूढे से पूछने लगे कि क्या इम्तिहान होगा और उस इम्तिहान में कैसे पास होना है? बूढ़े ने दोनों को खेत में हल चलाने को कहा और यह कहा कि खेत की मिट्टी में जिनके पैरों के निशान अधिक मिलेंगे उसी को सबसे ज्यादा मेहनती माना जाएगा और अच्छा खाना उसी को दिया जाएगा।
अगले दिन सुअर एकदम सवेरे उठकर हल लेकर खेत में चला गया और जी जान लगाकर मेहनत करने लगा। उस समय बूढा-बूढ़ी गहरी नींद में थे।
कुत्ते ने देखा अभी मालिक-मलकिन उठे नहीं हैं। थोड़ी देर और सो लूँ। यह सोचकर वह सोता रहा।
कुछ देर बाद बूढा-बूढ़ी नींद से जागकर घर के काम-काज करने लगे। फिर उन्हें याद आया कि आज तो सुअर और कुत्ते का इम्तहान लेने का दिन है। दोनों में से कौन ज्यादा मेहनत कर रहा है यह देखने के लिए खेत में चले गए।
कुत्ता उसी पल का इंतजार कर रहा था। जैसे ही बूढ़ा-बूढी खेत की तरफ आगे बढ़ने लगे वह दूसरा रास्ता पकड़कर खेत में चला गया और जहाँ सुअर हल चला रहा था। वहाँ पहुँचकर इधर से उधर भागने लगा। इस तरह भागने की वजह से उसके पैरों के निशान सुअर से ज्यादा हो गये और उसके बदन में मिट्टी भी बहुत ज्यादा लग गई।
जब बूढ़ा-बूढी पास आये तो सुअर बोला- “आप लोग देखिये कौन मेहनत ज्यादा कर रहा है?”
कुत्ता बोला-“हाँ देखिये-देखिये, जिनके पैरों के निशान ज्यादा होंगे तो वही मेहनती ज्यादा होगा।”
कुत्ते की बातों को सुनकर बूढ़ा-बूढी को भी यहीं लगा कि पैरों के निशान देखना ही सबसे ज्यादा आसान तरीका होगा। जिसके पैरों के निशान ज्यादा मिलेंगे उसी को ही विजयी घोषित कर दिया जाएगा और अच्छा खाना मिलेगा।
जब बूढ़े दंपति ने देखा कि खेत में चारों तरफ कुत्ते के ही पैरों के निशान हैं और उसके बदन में सुअर से ज्यादा मिट्टी लगी हुई है तो फैसला यही किया है कि कुत्ता ज्यादा मेहनती है और उसको अच्छा खाना मिलने का हक है।
बूढ़े दंपति के फैसले से नाखुश होते हुए भी सुअर को उनका फैसला मानना पड़ा। घर आकर बूढ़ी ने सुअर को खाने के लिए चावल का छिलका दिया और कुत्ते को मांस मछली के साथ चावल दे दिया।
उस दिन से सुअर का खाना चावल का छिलका या भूसा है और कुत्ते का खाना लोगों का जूठा चावल, मांस-मछली है।
(साभार : डॉ. गोमा देवी शर्मा)